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समाजशास्त्र की दैनिक कसौटी

समाजशास्त्र की दैनिक कसौटी

नमस्कार, समाजशास्त्र के जिज्ञासु अध्ययनों! अपनी वैचारिक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को एक नई ऊँचाई देने के लिए तैयार हो जाइए। आज हम समाजशास्त्र के विभिन्न आयामों से 25 चुनिंदा बहुविकल्पीय प्रश्न लेकर आए हैं, जो आपकी परीक्षा की तैयारी को और भी मज़बूत बनाएंगे। आइए, इस बौद्धिक यात्रा का आरंभ करें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।


प्रश्न 1: ‘कार्यात्मक परिप्रेक्ष्य’ (Functional Perspective) के अनुसार, समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा जाता है जिसके विभिन्न हिस्से मिलकर एक साथ कार्य करते हैं। इस विचारधारा का प्रमुख प्रवर्तक कौन है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. टैल्कॉट पार्सन्स

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: टैल्कॉट पार्सन्स को कार्यात्मक परिप्रेक्ष्य के प्रमुख सिद्धांतकारों में से एक माना जाता है। उन्होंने समाज को एक ऐसे सिस्टम के रूप में देखा जिसके विभिन्न भाग (जैसे परिवार, शिक्षा, अर्थव्यवस्था) एक-दूसरे से जुड़े हुए हैं और समाज के संतुलन व स्थायित्व को बनाए रखने में योगदान करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने ‘सोशल सिस्टम’ (1951) जैसी रचनाओं में अपने विचारों को विस्तृत किया। उनका AGIL प्रतिमान (Adaptation, Goal Attainment, Integration, Latency) समाज की चार प्रमुख प्रकार्यात्मक आवश्यकताओं को दर्शाता है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स संघर्ष सिद्धांत के जनक हैं, जो समाज को विभिन्न वर्गों के बीच शक्ति और संसाधनों के लिए संघर्ष के रूप में देखते हैं। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया और नौकरशाही पर काम किया। एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकता (Solidarity) और एनोमी (Anomie) जैसी अवधारणाएँ दीं, लेकिन वे प्रत्यक्ष रूप से पार्सन्स के व्यापक संरचनात्मक-कार्यात्मक दृष्टिकोण के लिए उतने केंद्रीय नहीं हैं।

प्रश्न 2: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज में व्यक्ति और समाज के बीच संबंधों के कमजोर पड़ने की स्थिति को क्या कहा जाता है?

  1. अलगाव (Alienation)
  2. एनोमी (Anomie)
  3. विसंस्कृतिकता (Deculturation)
  4. अराजकता (Anarchy)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एनोमी (Anomie) वह स्थिति है जहाँ समाज में कोई स्पष्ट नियम या मानक नहीं रह जाते, जिससे व्यक्तियों में दिशाहीनता और अनिश्चितता की भावना उत्पन्न होती है। दुर्खीम ने इसे आत्महत्या के एक प्रकार (anomic suicide) से भी जोड़ा।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा दुर्खीम की पुस्तक ‘The Division of Labour in Society’ और ‘Suicide’ में प्रमुखता से मिलती है। यह अक्सर सामाजिक परिवर्तन या संकट के समय उत्पन्न होती है।
  • गलत विकल्प: अलगाव (Alienation) कार्ल मार्क्स की एक प्रमुख अवधारणा है, जो उत्पादन के साधनों से श्रमिक के अलगाव को दर्शाती है। विसंस्कृतिकता एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति के प्रभाव में आना है। अराजकता (Anarchy) शासन की अनुपस्थिति की स्थिति है।

प्रश्न 3: “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की, जिसके अनुसार भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मूल्य, मानदंड) की तुलना में तेज़ी से बदलती है?

  1. विलियम ग्राहम समनर
  2. अल्बर्ट सैमुअल्स एलिसन
  3. रॉबर्ट ई. पार्क
  4. चार्ल्स कूली

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: अल्बर्ट सैमुअल्स एलिसन (Alvin Toffler को भी अक्सर इस अवधारणा से जोड़ा जाता है, लेकिन एलिसन इसके प्रारंभिक प्रस्तावक थे) ने “सांस्कृतिक विलंब” की अवधारणा दी। इसका अर्थ है कि प्रौद्योगिकी जैसी भौतिक संस्कृति में तेज़ी से बदलाव आता है, जबकि सामाजिक मूल्य, विश्वास और संस्थान (अभौतिक संस्कृति) उस गति से नहीं बदल पाते, जिससे सामाजिक तनाव पैदा होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा सामाजिक परिवर्तन को समझने में महत्वपूर्ण है, खासकर औद्योगिक और सूचना युग में।
  • गलत विकल्प: विलियम ग्राहम समनर ने ‘फ़ोकस’ (Folkways) और ‘मोर्स’ (Mores) जैसी अवधारणाएँ दीं। रॉबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल से जुड़े थे और शहरी समाजशास्त्र में योगदान दिया। चार्ल्स कूली ने ‘प्राइमरी ग्रुप’ (Primary Group) और ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ (Looking-Glass Self) जैसी अवधारणाएँ दीं।

प्रश्न 4: भारत में किस समाजशास्त्री ने “जाति व्यवस्था” को एक “प्रणाली” (System) के रूप में समझने पर बल दिया, जहाँ विभिन्न जातियाँ एक-दूसरे से अंतःक्रिया करती हैं और एक पदानुक्रम (Hierarchy) बनाती हैं?

  1. जी.एस. घुरिये
  2. एम.एन. श्रीनिवास
  3. इरावती कर्वे
  4. ई.वी. रामासामी

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज, विशेषकर जाति व्यवस्था के अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उन्होंने जाति को केवल एक पदानुक्रम के रूप में नहीं, बल्कि एक गतिशील सामाजिक प्रणाली के रूप में देखा, जिसमें जातियाँ एक-दूसरे से विभिन्न रूपों (जैसे विवाह, भोजन, पेशा) में जुड़ी होती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उनकी प्रसिद्ध पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में उन्होंने ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा भी दी। उन्होंने जाति के संदर्भ में ‘डोमिनेंट कास्ट’ (Dominant Caste) की भी चर्चा की।
  • गलत विकल्प: जी.एस. घुरिये ने जाति को एक संस्थान (Institution) माना और उसकी विशेषताओं का वर्णन किया। इरावती कर्वे ने भारत के मानवशास्त्रीय अध्ययन पर काम किया और जाति के क्षेत्रीय पहलुओं पर प्रकाश डाला। ई.वी. रामासामी पेरियार एक समाज सुधारक थे जिन्होंने जाति-विरोधी आंदोलन का नेतृत्व किया।

प्रश्न 5: हर्बर्ट ब्लूमर ने जॉर्ज हर्बर्ट मीड के विचारों को संकलित करते हुए किस समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण को “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” (Symbolic Interactionism) नाम दिया?

  1. संघर्ष सिद्धांत
  2. संरचनात्मक प्रकार्यवाद
  3. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
  4. फेमिनिस्ट सिद्धांत

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: हर्बर्ट ब्लूमर ने जॉर्ज हर्बर्ट मीड के विचारों को व्यवस्थित करते हुए “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” को एक सैद्धांतिक ढाँचा प्रदान किया। यह सिद्धांत समाज को व्यक्तियों के बीच अर्थपूर्ण अंतःक्रियाओं के माध्यम से निर्मित होते हुए देखता है, जहाँ प्रतीक (जैसे भाषा, हाव-भाव) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड के अप्रकाशित व्याख्यानों को ब्लूमर ने “Mind, Self, and Society” (1934) के रूप में संपादित किया। ब्लूमर ने स्वयं इस सिद्धांत के तीन मूल सिद्धांतों (अर्थ, भाषा, विचार) को प्रतिपादित किया।
  • गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) मुख्य रूप से मार्क्सवाद से जुड़ा है। संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) दुर्खीम और पार्सन्स जैसे विचारकों से संबंधित है। फेमिनिस्ट सिद्धांत (Feminist Theory) लैंगिक असमानता पर केंद्रित है।

प्रश्न 6: समाजशास्त्र के अध्ययन में “सामाजिक स्तरीकरण” (Social Stratification) का अर्थ क्या है?

  1. समाज में विभिन्न प्रकार के सामाजिक समूहों का उदय
  2. समाज में असमानता और पदानुक्रम के आधार पर व्यक्तियों या समूहों का विभाजन
  3. सामाजिक मानदंडों का समूह
  4. सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने की प्रक्रिया

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक स्तरीकरण समाज में धन, शक्ति, प्रतिष्ठा, जाति, वर्ग आदि जैसे विभिन्न आधारों पर व्यक्तियों और समूहों के असमान वितरण और पदानुक्रमित विभाजन को संदर्भित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह एक सार्वभौमिक सामाजिक घटना है जो विभिन्न समाजों में अलग-अलग रूपों में पाई जाती है, जैसे जाति, वर्ग, दासता, सम्पदा (Estate) व्यवस्था आदि।
  • गलत विकल्प: ‘a’ सामाजिक विभेदीकरण (Social Differentiation) को दर्शाता है। ‘c’ सामाजिक मानदंडों (Social Norms) का वर्णन करता है। ‘d’ सामाजिक व्यवस्था (Social Order) या सामाजिक एकीकरण (Social Integration) से संबंधित है।

प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सा कथन “सामाजिक पूंजी” (Social Capital) की अवधारणा को सबसे अच्छी तरह दर्शाता है, जिसे रॉबर्ट पुटनम जैसे समाजशास्त्रियों ने लोकप्रिय बनाया?

  1. किसी व्यक्ति की व्यक्तिगत संपत्ति और संसाधन।
  2. किसी व्यक्ति की शिक्षा और कौशल का स्तर।
  3. सामाजिक नेटवर्क, विश्वास और सहयोग की भावना जो सामूहिक कार्रवाई को सक्षम बनाती है।
  4. समाज में शक्ति और प्रभाव का पैमाना।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक पूंजी से तात्पर्य उन सामाजिक नेटवर्क (जैसे रिश्ते, समुदाय) और उन नेटवर्क से उत्पन्न होने वाले लाभों (जैसे विश्वास, सहयोग, सूचना का प्रवाह) से है जो व्यक्तियों और समुदायों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: रॉबर्ट पुटनम ने अपनी पुस्तक “Bowling Alone” में अमेरिकी समाज में सामाजिक पूंजी में गिरावट पर चिंता व्यक्त की थी। पियरे बोरदिउ (Pierre Bourdieu) भी सामाजिक पूंजी के एक महत्वपूर्ण विचारक हैं, जिन्होंने इसे व्यक्तिगत और सामाजिक हैसियत को बढ़ाने वाले संसाधन के रूप में देखा।
  • गलत विकल्प: ‘a’ भौतिक पूंजी (Physical Capital) है। ‘b’ मानव पूंजी (Human Capital) है। ‘d’ शक्ति (Power) का एक पहलू हो सकता है, लेकिन सामाजिक पूंजी केवल शक्ति नहीं है; यह नेटवर्किंग और विश्वास पर आधारित है।

प्रश्न 8: “संस्कृति का आत्मसात्करण” (Acculturation) से आप क्या समझते हैं?

  1. एक संस्कृति का दूसरी संस्कृति पर प्रभुत्व जमाना।
  2. दो या दो से अधिक संस्कृतियों के संपर्क में आने पर होने वाले सांस्कृतिक आदान-प्रदान और परिवर्तन।
  3. किसी विशिष्ट समुदाय के भीतर सांस्कृतिक मूल्यों का प्रसार।
  4. किसी संस्कृति के मूल तत्वों का क्षरण।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: आत्मसात्करण वह प्रक्रिया है जहाँ विभिन्न संस्कृतियों के लोग एक-दूसरे के संपर्क में आते हैं और अपनी मूल संस्कृति के तत्वों को बनाए रखते हुए दूसरी संस्कृति के तत्वों को अपनाते या संशोधित करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह प्रक्रिया अक्सर प्रवास, उपनिवेशीकरण या वैश्विक संपर्क के परिणामस्वरूप होती है। इसमें सांस्कृतिक तत्वों का आदान-प्रदान (जैसे भाषा, भोजन, रीति-रिवाज) शामिल हो सकता है।
  • गलत विकल्प: ‘a’ प्रभुत्व (Dominance) या सांस्कृतिक साम्राज्यवाद (Cultural Imperialism) का द्योतक है। ‘c’ प्रसार (Diffusion) या सामाजिकीकरण (Socialization) से अधिक संबंधित है। ‘d’ सांस्कृतिक क्षरण (Cultural Erosion) या विसंस्कृतिकता (Deculturation) का वर्णन करता है।

प्रश्न 9: मैक्स वेबर के अनुसार, “आदर्श प्रारूप” (Ideal Type) का उद्देश्य क्या है?

  1. एक पूर्ण और आदर्श समाज का निर्माण करना।
  2. सामाजिक वास्तविकता को सरलीकृत और व्यवस्थित तरीके से समझने के लिए एक वैचारिक उपकरण प्रदान करना।
  3. सामाजिक पूर्वाग्रहों को बढ़ावा देना।
  4. ऐतिहासिक घटनाओं की भविष्यवाणी करना।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: वेबर ने ‘आदर्श प्रारूप’ को एक वैचारिक निर्माण (conceptual construct) के रूप में परिभाषित किया, जो किसी सामाजिक घटना की विशेषता को अतिरंजित करके या एक साथ लाकर बनाया जाता है। इसका उद्देश्य जटिल सामाजिक वास्तविकता को अधिक स्पष्ट रूप से समझना और उसका विश्लेषण करना है, न कि यह वर्णन करना कि समाज ‘कैसा होना चाहिए’।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने नौकरशाही, पूंजीवाद और सत्ता के विभिन्न प्रकारों (जैसे करिश्माई, पारंपरिक, कानूनी-तर्कसंगत) के विश्लेषण के लिए आदर्श प्रारूप का उपयोग किया। यह अनुभवजन्य अनुसंधान के लिए एक माप (yardstick) के रूप में कार्य करता है।
  • गलत विकल्प: ‘a’ आदर्श प्रारूप का उद्देश्य एक आदर्श समाज बनाना नहीं है, बल्कि विश्लेषण के लिए एक उपकरण है। ‘c’ यह पूर्वाग्रहों को नहीं, बल्कि तार्किक विश्लेषण को बढ़ावा देता है। ‘d’ यह भविष्यवाणी के बजाय विश्लेषण पर केंद्रित है।

प्रश्न 10: भारत में “संस्कृतिकरण” (Sanskritization) की अवधारणा का सर्वप्रथम प्रयोग किसने किया और इसका क्या अर्थ है?

  1. जी.एस. घुरिये; निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों के रीति-रिवाजों को अपनाना।
  2. एम.एन. श्रीनिवास; निम्न जातियों या जनजातियों द्वारा प्रभुत्वशाली (Dominant) या उच्च जातियों के अनुष्ठानों, जीवन शैली और विचारधारा को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने की प्रक्रिया।
  3. इरावती कर्वे; उच्च जातियों द्वारा निम्न जातियों के रीति-रिवाजों को अपनाना।
  4. अ.र. देसाई; आधुनिकीकरण के कारण पारंपरिक मूल्यों का क्षरण।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने “संस्कृतिकरण” (Sanskritization) की अवधारणा पेश की, जो भारतीय जाति व्यवस्था में सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) का एक महत्वपूर्ण रूप है। इसके तहत, निम्न या मध्य जातियों के समूह अक्सर स्थानीय प्रभुत्वशाली जातियों के व्यवहार, अनुष्ठानों और विश्वासों को अपनाते हैं ताकि वे उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा प्राप्त कर सकें।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा श्रीनिवास के काम, विशेष रूप से ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ (1952) में पाई जाती है। यह एक सांस्कृतिक प्रक्रिया है, न कि संरचनात्मक परिवर्तन।
  • गलत विकल्प: जी.एस. घुरिये ने जाति को एक संस्था माना, लेकिन संस्किृतिकरण को एम.एन. श्रीनिवास ने परिभाषित किया। इरावती कर्वे का ध्यान भारतीय लोगों के वर्गीकरण पर अधिक था। अ.र. देसाई मार्क्सवादी दृष्टिकोण से भारतीय समाज का विश्लेषण करते थे।

प्रश्न 11: “सामाजिक संरचना” (Social Structure) का सबसे उपयुक्त समाजशास्त्रीय अर्थ क्या है?

  1. समाज में मौजूद विभिन्न भवनों और बुनियादी ढाँचों का समूह।
  2. उन स्थिर और व्यवस्थित पैटर्न को दर्शाता है जो सामाजिक संस्थाओं, समूहों और संबंधों द्वारा निर्मित होते हैं और जो समाज के सदस्यों के व्यवहार को प्रभावित करते हैं।
  3. लोगों का जनसांख्यिकीय वितरण।
  4. समाज के राजनीतिक और आर्थिक संस्थान।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक संरचना समाज के विभिन्न भागों (जैसे संस्थाएँ, समूह, वर्ग) के बीच संबंधों का एक पैटर्न है। यह समाज के सदस्यों के व्यवहार, भूमिकाओं और अपेक्षाओं को आकार देता है और एक हद तक स्थायित्व प्रदान करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम, पार्सन्स और स्ट्रक्चरलिज्म (जैसे लेवी-स्ट्रॉस) जैसे विचारकों ने सामाजिक संरचना के अध्ययन पर जोर दिया है। यह मैक्रो-समाजशास्त्र का एक केंद्रीय विचार है।
  • गलत विकल्प: ‘a’ भौतिक संरचनाओं से संबंधित है, सामाजिक संरचना अमूर्त होती है। ‘c’ जनसांख्यिकी (Demography) का विषय है। ‘d’ राजनीतिक और आर्थिक संस्थान सामाजिक संरचना के ‘हिस्से’ हो सकते हैं, लेकिन स्वयं संरचना नहीं।

प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक अनुसंधान पद्धति (Social Research Method) “किसी विशेष घटना या समूह के बारे में गहन, वर्णनात्मक जानकारी” प्राप्त करने के लिए उपयुक्त है?

  1. सर्वेक्षण (Survey)
  2. प्रायोगिक विधि (Experimental Method)
  3. नृजातीयता अध्ययन (Ethnography) / सहभागी अवलोकन (Participant Observation)
  4. आंकड़ा विश्लेषण (Statistical Analysis)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: नृजातीयता अध्ययन (Ethnography) या सहभागी अवलोकन एक गुणात्मक (qualitative) अनुसंधान पद्धति है जिसमें शोधकर्ता लंबे समय तक एक समुदाय या सांस्कृतिक समूह के बीच रहता है, उनकी गतिविधियों में भाग लेता है और उनके जीवन को गहराई से समझता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह विधि अक्सर मानवशास्त्र (Anthropology) में प्रयोग की जाती है, लेकिन समाजशास्त्र में भी सांस्कृतिक, उप-सांस्कृतिक या हाशिए वाले समूहों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। ब्रॉनिस्लॉ मैलिनोवस्की और क्लिनफोर्ड गर्ट्ज़ इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
  • गलत विकल्प: सर्वेक्षण (Survey) बड़ी आबादी से डेटा एकत्र करने के लिए मात्रात्मक (quantitative) तरीका है। प्रायोगिक विधि (Experimental Method) कारण-कार्य संबंध (cause-effect) स्थापित करने के लिए प्रयोगों पर निर्भर करती है। आंकड़ा विश्लेषण (Statistical Analysis) मात्रात्मक डेटा का विश्लेषण है।

प्रश्न 13: “वर्ग संघर्ष” (Class Struggle) की अवधारणा, जो उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व के कारण समाज के विभिन्न वर्गों के बीच अंतर्निहित संघर्ष को दर्शाती है, किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत का मूल आधार है?

  1. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
  2. संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) / मार्क्सवाद
  3. संरचनात्मक प्रकार्यवाद
  4. सामाजिक विनिमय सिद्धांत (Social Exchange Theory)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: कार्ल मार्क्स के लिए, वर्ग संघर्ष इतिहास के विकास का मुख्य चालक था। उन्होंने समाज को उन लोगों के बीच विभाजित देखा जो उत्पादन के साधनों (जैसे कारखाने, भूमि) के मालिक थे (बुर्जुआ) और वे जो अपनी श्रम शक्ति बेचते थे (सर्वहारा)। इन दोनों वर्गों के हित परस्पर विरोधी थे, जिससे निरंतर संघर्ष पैदा होता था।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा मार्क्स की सबसे प्रसिद्ध कृतियों, जैसे ‘Das Kapital’ और ‘The Communist Manifesto’ में विस्तृत है।
  • गलत विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तियों के बीच अर्थपूर्ण अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है। संरचनात्मक प्रकार्यवाद समाज को एक संतुलित प्रणाली के रूप में देखता है। सामाजिक विनिमय सिद्धांत व्यक्तिगत स्तर पर अंतःक्रियाओं में लागत-लाभ विश्लेषण पर केंद्रित है।

प्रश्न 14: “भूमिका संघर्ष” (Role Conflict) से आप क्या समझते हैं?

  1. समाज में विभिन्न भूमिकाओं के बीच प्रतिस्पर्धा।
  2. एक व्यक्ति द्वारा विभिन्न सामाजिक भूमिकाओं से जुड़ी परस्पर विरोधी अपेक्षाओं का अनुभव करना।
  3. लोगों का अपनी भूमिकाओं को निभाने में असमर्थ होना।
  4. समाज में भूमिकाओं का अभाव।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: भूमिका संघर्ष तब उत्पन्न होता है जब एक व्यक्ति को एक साथ कई ऐसी भूमिकाएँ निभानी होती हैं, जिनकी अपेक्षाएँ आपस में टकराती हैं, जिससे उस व्यक्ति के लिए दुविधा की स्थिति पैदा होती है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति का एक ही समय में एक कर्मचारी, माता-पिता और बेटे की भूमिका में होना।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा सामाजिक भूमिकाओं (Social Roles) और सामाजिक अपेक्षाओं (Social Expectations) के अध्ययन से संबंधित है।
  • गलत विकल्प: ‘a’ भूमिका संघर्ष का परिणाम हो सकता है, लेकिन यह स्वयं भूमिका संघर्ष नहीं है। ‘c’ भूमिका निभाने में असमर्थता को भूमिका प्रदर्शन विफलता (Role Performance Failure) कह सकते हैं। ‘d’ भूमिकाओं का अभाव भूमिका की कमी (Role Vacancy) या खालीपन (Emptiness) को दर्शाता है।

प्रश्न 15: एम.एन. श्रीनिवास ने “प्रभुत्वशाली जाति” (Dominant Caste) की अवधारणा का प्रयोग करते हुए किस मुख्य विशेषता का उल्लेख किया?

  1. ऐतिहासिक रूप से उच्च जाति होना।
  2. जाति पदानुक्रम में सबसे ऊपर होना।
  3. गाँव की ज़मीनी अर्थव्यवस्था पर आर्थिक और राजनीतिक नियंत्रण रखना, और संख्यात्मक रूप से भी प्रभावशाली होना।
  4. धार्मिक अनुष्ठानों में सर्वोच्च स्थान रखना।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: श्रीनिवास के अनुसार, प्रभुत्वशाली जाति वह जाति है जो किसी गाँव या क्षेत्र में आर्थिक और राजनीतिक शक्ति रखती है, सदस्यों की संख्या में अधिक होती है, और अक्सर पारंपरिक पदानुक्रम में भी उच्च स्थान रखती है, जिससे वह गाँव के सामाजिक और आर्थिक जीवन को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित कर सके।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा विशेष रूप से दक्षिण भारत के गाँवों के अध्ययन से विकसित हुई। यह दर्शाती है कि जाति की शक्ति केवल धार्मिक या सांस्कृतिक पवित्रता पर आधारित नहीं है, बल्कि आर्थिक और राजनीतिक नियंत्रण पर भी निर्भर करती है।
  • गलत विकल्प: केवल उच्च जाति होना या धार्मिक अनुष्ठानों में सर्वोच्च होना प्रभुत्वशाली जाति की निर्णायक परिभाषा नहीं है। प्रभुत्व बहुआयामी होता है, जिसमें आर्थिक और राजनीतिक शक्ति प्रमुख है।

प्रश्न 16: “सामाजिक गतिशीलता” (Social Mobility) का सबसे सटीक अर्थ क्या है?

  1. समाज में लोगों की सांस्कृतिक गतिविधियों का अध्ययन।
  2. लोगों का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में स्थानांतरण, चाहे वह ऊपर की ओर हो, नीचे की ओर हो, या क्षैतिज हो।
  3. समाज में व्यक्तियों द्वारा निभाई जाने वाली विभिन्न भूमिकाएँ।
  4. सामाजिक समूहों का एक स्थान से दूसरे स्थान पर भौगोलिक प्रवास।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक गतिशीलता उन प्रक्रियाओं को संदर्भित करती है जिनके द्वारा व्यक्ति या समूह अपनी सामाजिक स्थिति, वर्ग, या पदानुक्रम में ऊपर या नीचे जाते हैं। इसमें ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (Vertical Mobility) और क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility) शामिल है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। ऊर्ध्वाधर गतिशीलता में आरोहण (Ascending) और अवरोहण (Descending) शामिल हैं, जबकि क्षैतिज गतिशीलता एक ही स्तर पर स्थिति परिवर्तन है।
  • गलत विकल्प: ‘a’ सांस्कृतिक गतिविधियों का अध्ययन है। ‘c’ सामाजिक भूमिकाओं (Social Roles) से संबंधित है। ‘d’ भौगोलिक प्रवास (Geographical Migration) है, सामाजिक गतिशीलता नहीं।

प्रश्न 17: जॉर्ज हर्बर्ट मीड के अनुसार, “स्व” (Self) का विकास किस प्रक्रिया के माध्यम से होता है?

  1. केवल आनुवंशिकता द्वारा।
  2. सामाजिक अंतःक्रिया और अनुकरण के माध्यम से।
  3. स्वतंत्र रूप से, जन्म से ही।
  4. प्रौद्योगिकी के उपयोग से।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: मीड का मानना था कि “स्व” (Self) कोई जन्मजात इकाई नहीं है, बल्कि यह सामाजिक अंतःक्रियाओं की एक उत्पाद है। बच्चे दूसरों के साथ अंतःक्रिया करते हुए, उनकी प्रतिक्रियाओं को आत्मसात करते हुए (जैसे ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ की अवधारणा में कूली ने बताया) और “महत्वपूर्ण अन्य” (Significant Others) तथा “सामान्यीकृत अन्य” (Generalized Others) की भूमिकाओं को निभाना सीखते हुए अपने “स्व” का विकास करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) का एक मूल सिद्धांत है। यह विचार कि व्यक्ति समाज में दूसरों के प्रति अपने व्यवहार के माध्यम से स्वयं को आकार देता है।
  • गलत विकल्प: ‘a’ केवल आनुवंशिकता व्यक्ति के विकास को निर्धारित नहीं करती। ‘c’ जन्म से ही स्व का पूरा विकास नहीं होता। ‘d’ प्रौद्योगिकी केवल एक माध्यम हो सकती है, मुख्य प्रक्रिया नहीं।

प्रश्न 18: “अनुष्ठान” (Ritual) को समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में कैसे समझा जा सकता है?

  1. ऐच्छिक और व्यक्तिगत आध्यात्मिक अभ्यास।
  2. एक समाज में स्थायित्व और सामाजिक एकता को बढ़ावा देने वाले प्रतीकात्मक क्रियाओं और व्यवहारों का एक व्यवस्थित क्रम।
  3. ज्ञान प्राप्त करने का एक तरीका।
  4. केवल धार्मिक समारोह।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अनुष्ठानों को सामूहिक चेतना (Collective Consciousness) और सामाजिक एकता (Social Solidarity) को मजबूत करने वाले प्रतीकात्मक व्यवहार के रूप में देखा। अनुष्ठान अक्सर सामूहिक रूप से किए जाते हैं और समूह के सदस्यों के बीच साझा मूल्यों और विश्वासों को सुदृढ़ करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम की पुस्तक ‘The Elementary Forms of Religious Life’ में अनुष्ठानों का विस्तृत विश्लेषण मिलता है, जहाँ वे उन्हें धर्म के मूल तत्व मानते हैं।
  • गलत विकल्प: अनुष्ठान केवल ऐच्छिक या व्यक्तिगत नहीं होते (a), न ही केवल ज्ञान प्राप्ति (c) या केवल धार्मिक (d) होते हैं। वे अक्सर अनिवार्य और सामाजिक रूप से महत्वपूर्ण होते हैं, और धर्म के अलावा भी पाए जाते हैं।

प्रश्न 19: भारत में “पश्चिमीकरण” (Westernization) की अवधारणा किसने विकसित की, जिसका संबंध ब्रिटिश शासन के दौरान भारतीय समाज में आए सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से है?

  1. अ.र. देसाई
  2. जी.एस. घुरिये
  3. एम.एन. श्रीनिवास
  4. ई.के. नागराज

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने “पश्चिमीकरण” की अवधारणा का उपयोग भारतीय समाज पर, विशेष रूप से ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के प्रभाव में हुए सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों का वर्णन करने के लिए किया। इसमें शिक्षा, कानून, प्रौद्योगिकी, जीवन शैली और विचारों में बदलाव शामिल थे।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने अपनी पुस्तक ‘Social Change in Modern India’ (1966) में इस अवधारणा को विस्तृत किया, जिसमें उन्होंने पश्चिमीकरण को संस्किृतिकरण के विपरीत या पूरक प्रक्रिया के रूप में भी देखा।
  • गलत विकल्प: अ.र. देसाई ने ‘भारतीय राष्ट्रवाद’ और ‘भारत में सामाजिक दर्शन’ जैसे विषयों पर मार्क्सवादी दृष्टिकोण से लिखा। जी.एस. घुरिये ने भारतीय समाज के कई पहलुओं का अध्ययन किया, लेकिन पश्चिमीकरण को श्रीनिवास ने प्रमुखता से परिभाषित किया।

प्रश्न 20: “अभिजन सिद्धांत” (Elite Theory) के मुख्य प्रस्तावक कौन हैं, जिन्होंने तर्क दिया कि समाज हमेशा एक छोटे, विशेषाधिकार प्राप्त अभिजन वर्ग द्वारा शासित होता है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. विलफ्रेडो पैरेटो और गैतानो मोस्का
  4. ए.एम. हब्सबॉम

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: विलफ्रेडो पैरेटो (Vilfredo Pareto) और गैतानो मोस्का (Gaetano Mosca) इटली के समाजशास्त्री थे जिन्होंने स्वतंत्र रूप से इस विचार को विकसित किया कि इतिहास अनिवार्य रूप से अभिजन वर्गों के शासन का इतिहास है। उनका मानना था कि भले ही शासन का स्वरूप बदल जाए, लेकिन सत्ता हमेशा कुछ प्रभावशाली व्यक्तियों के हाथों में केंद्रित रहती है।
  • संदर्भ और विस्तार: पैरेटो ने ‘The Mind and Society’ (1916) में ‘अभिजन का चक्रीय सिद्धांत’ (Circulation of Elites) दिया, जबकि मोस्का ने ‘The Ruling Class’ (1896) में अभिजन की अनिवार्य उपस्थिति पर बल दिया।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष की बात की, जहाँ क्रांति के बाद सर्वहारा वर्ग का शासन आता है। मैक्स वेबर ने सत्ता के विभिन्न रूपों का विश्लेषण किया, लेकिन अभिजन की अनिवार्यता पर पैरेटो और मोस्का जितना ज़ोर नहीं दिया।

प्रश्न 21: “भूमिका प्रत्याशा” (Role Expectation) से क्या तात्पर्य है?

  1. किसी व्यक्ति द्वारा अपनी भूमिका को पूरा करने की इच्छा।
  2. किसी विशिष्ट सामाजिक भूमिका निभाने वाले व्यक्ति से समाज या अन्य व्यक्तियों द्वारा की जाने वाली अपेक्षाएँ।
  3. किसी व्यक्ति की अपनी भूमिका के बारे में समझ।
  4. समाज में भूमिकाओं का आवंटन।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: भूमिका प्रत्याशाएँ वे व्यवहार, कर्तव्य और अधिकार हैं जिनकी समाज किसी व्यक्ति से यह उम्मीद करता है कि वह अपनी विशिष्ट सामाजिक स्थिति (जैसे शिक्षक, माता-पिता, डॉक्टर) के अनुसार उनका निर्वहन करे।
  • संदर्भ और विस्तार: ये प्रत्याशाएँ सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और संस्थाओं द्वारा निर्धारित होती हैं और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करती हैं।
  • गलत विकल्प: ‘a’ भूमिका की इच्छा है, प्रत्याशा नहीं। ‘c’ व्यक्ति की अपनी समझ ‘भूमिका की धारणा’ (Role Perception) हो सकती है। ‘d’ भूमिका आवंटन (Role Allocation) प्रक्रिया है।

प्रश्न 22: मैक्रो-समाजशास्त्र (Macro-Sociology) का मुख्य ध्यान किन पर होता है?

  1. व्यक्तिगत अंतःक्रियाएँ और छोटे समूह।
  2. बड़े पैमाने की सामाजिक प्रणालियाँ, जैसे समाज, संस्थाएँ और सामाजिक संरचनाएँ।
  3. मानव मनोविज्ञान और व्यक्तित्व विकास।
  4. सांस्कृतिक प्रतीकों का अर्थ।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: मैक्रो-समाजशास्त्र समाज के व्यापक, समग्र दृष्टिकोण का अध्ययन करता है। यह बड़े सामाजिक पैटर्न, संस्थाओं (जैसे परिवार, सरकार, शिक्षा), सामाजिक स्तरीकरण, सामाजिक परिवर्तन और पूरे समाज की संरचनाओं पर केंद्रित होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: कार्ल मार्क्स, एमिल दुर्खीम और टैल्कॉट पार्सन्स जैसे सिद्धांतकार मैक्रो-समाजशास्त्र के प्रमुख प्रतिनिधि माने जाते हैं।
  • गलत विकल्प: ‘a’ माइक्रो-समाजशास्त्र (Micro-sociology) का विषय है। ‘c’ मनोविज्ञान का विषय है। ‘d’ प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) जैसे माइक्रो-दृष्टिकोणों से संबंधित है।

प्रश्न 23: भारत में “निर्धनता” (Poverty) के अध्ययन में “सापेक्षिक निर्धनता” (Relative Poverty) से क्या तात्पर्य है?

  1. मूलभूत आवश्यकताओं (भोजन, वस्त्र, आवास) की कमी।
  2. किसी समाज के एक निश्चित औसत आय या जीवन स्तर की तुलना में लोगों का गरीब होना।
  3. आर्थिक रूप से समाज में निचले पायदान पर होना।
  4. सरकारी परिभाषा के अनुसार गरीब होना।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सापेक्षिक निर्धनता का अर्थ है किसी समाज के अन्य सदस्यों की तुलना में संसाधनों, आय या जीवन स्तर में कमी का अनुभव करना। यह एक व्यक्ति को सामाजिक रूप से बहिष्कृत (socially excluded) महसूस करा सकती है, भले ही उसके पास जीवित रहने के लिए पर्याप्त साधन हों।
  • संदर्भ और विस्तार: यह निरपेक्ष निर्धनता (Absolute Poverty) से भिन्न है, जो जीवन रक्षा के लिए आवश्यक न्यूनतम संसाधनों की कमी को दर्शाती है।
  • गलत विकल्प: ‘a’ निरपेक्ष निर्धनता का उदाहरण है। ‘c’ यह सापेक्ष निर्धनता का एक परिणाम हो सकता है, लेकिन परिभाषा नहीं। ‘d’ सरकारी परिभाषाएँ विभिन्न हो सकती हैं और वे निरपेक्ष या सापेक्ष दोनों पर आधारित हो सकती हैं।

प्रश्न 24: “संस्था” (Institution) को समाजशास्त्र में कैसे परिभाषित किया जाता है?

  1. सभी सामाजिक समूह।
  2. मानव व्यवहार के पैटर्न का एक स्थापित और स्थायी स्वरूप, जो समाज के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है और अक्सर नियमों, प्रथाओं और मूल्यों से जुड़ा होता है।
  3. लोगों का एक बड़ा समूह जो समान गतिविधियों में भाग लेता है।
  4. सार्वजनिक भवनों का समूह।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक संस्थाएँ (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म, सरकार, अर्थव्यवस्था) व्यवहार के वे पैटर्न हैं जो समाज में व्यवस्थित और स्थायी हो जाते हैं। वे सदस्यों की आवश्यकताओं को पूरा करती हैं और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में योगदान करती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: इनमें नियम, प्रक्रियाएँ, भूमिकाएँ और अधिकार शामिल होते हैं। एमिल दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों (Social Facts) के रूप में संस्थाओं के महत्व पर बल दिया।
  • गलत विकल्प: ‘a’ सभी सामाजिक समूह संस्थाएँ नहीं होते। ‘c’ यह एक विशिष्ट प्रकार के समूह को दर्शाता है। ‘d’ भवनों का समूह केवल भौतिक पहलू है, संस्था का अमूर्त, कार्यात्मक पहलू अधिक महत्वपूर्ण है।

प्रश्न 25: “जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत” (Demographic Transition Theory) समाज के किस पहलू का वर्णन करता है?

  1. सामाजिक वर्ग संरचना में परिवर्तन।
  2. राजनीतिक व्यवस्था में परिवर्तन।
  3. जनसंख्या वृद्धि दर में ऐतिहासिक बदलाव, जो उच्च जन्म और मृत्यु दर से निम्न जन्म और मृत्यु दर में परिवर्तन को दर्शाता है।
  4. सांस्कृतिक मूल्यों में परिवर्तन।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत बताता है कि कैसे समाज औद्योगिकरण और आधुनिकीकरण की ओर बढ़ते हुए जनसंख्या वृद्धि के पैटर्न को बदलते हैं। यह प्रारंभिक अवस्था में उच्च जन्म और मृत्यु दर, फिर मृत्यु दर में गिरावट और जन्म दर में थोड़ी गिरावट, और अंततः निम्न जन्म और मृत्यु दर की ओर संक्रमण की व्याख्या करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत पश्चिमी यूरोप के अनुभव पर आधारित है और सामाजिक-आर्थिक विकास के साथ जनसंख्या गतिशीलता को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण मॉडल है।
  • गलत विकल्प: यह सिद्धांत मुख्य रूप से जनसंख्या के आँकड़ों और पैटर्न से संबंधित है, न कि सामाजिक वर्ग (a), राजनीतिक व्यवस्था (b), या सांस्कृतिक मूल्यों (d) में सीधे परिवर्तन से।

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