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समाजशास्त्र की तैयारी को दें धार: आपकी दैनिक बौद्धिक कसरत

समाजशास्त्र की तैयारी को दें धार: आपकी दैनिक बौद्धिक कसरत

नमस्कार, भावी समाजशास्त्रियों! आज का दिन आपकी समाजशास्त्रीय अवधारणाओं की स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को परखने का है। हर दिन की तरह, हम आपके लिए लाए हैं 25 नए और चुनौतीपूर्ण प्रश्न, जो आपकी आगामी परीक्षाओं के लिए आपकी तैयारी को और मजबूत बनाएंगे। आइए, अपनी गति को तेज करें और समाजशास्त्र की दुनिया में गोता लगाएं!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किस समाजशास्त्री ने प्रतिपादित की?

  1. ए. एम. हॉब्सन
  2. बी. विलियम ग्राहम समनर
  3. सी. विलियम एफ. ऑग्बर्न
  4. डी. रॉबर्ट मैकर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: विलियम एफ. ऑग्बर्न ने अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज: एक नया दृष्टिकोण’ (Social Change: With Respect to Culture and Original Nature) में ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा पेश की। यह तब होता है जब संस्कृति के भौतिक घटक (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक घटकों (जैसे रीति-रिवाज, मूल्य, कानून) की तुलना में अधिक तेजी से बदलते हैं, जिससे समाज में समायोजन की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: ऑग्बर्न का तर्क था कि प्रौद्योगिकी में प्रगति अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन से तेज होती है, जिसके परिणामस्वरूप विलंब होता है। उदाहरण के लिए, सोशल मीडिया की तीव्र गति से वृद्धि हुई है, लेकिन इसके उपयोग के संबंध में नैतिक और सामाजिक मानदंड अभी भी विकसित हो रहे हैं।
  • गलत विकल्प: विलियम ग्राहम समनर ने ‘लोकप्रियता’ (Folkways) और ‘रूढ़ियाँ’ (Mores) जैसी अवधारणाएँ दीं। ए. एम. हॉब्सन ने ‘सांस्कृतिक मूल्य’ (Cultural Value) पर काम किया। रॉबर्ट मैकर ने सामाजिक स्तरीकरण पर महत्वपूर्ण योगदान दिया।

प्रश्न 2: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में श्रमिकों का अपनी मेहनत से उत्पन्न वस्तुओं से अलगाव (Alienation) निम्न में से किस रूप में प्रकट नहीं होता?

  1. उत्पाद से अलगाव
  2. उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव
  3. अपने ‘प्रजाति सार’ (Species-Essence) से अलगाव
  4. समाज से अलगाव

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन में श्रमिकों के चार प्रमुख प्रकार के अलगाव का वर्णन किया: उत्पाद से अलगाव, उत्पादन की क्रिया से अलगाव, मानव के ‘प्रजाति सार’ (जो उसकी रचनात्मक और स्वतंत्र चेतना है) से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव। “समाज से अलगाव” सीधे तौर पर उनके अलगाव के विश्लेषण का एक अलग बिंदु नहीं है, बल्कि उत्पादन प्रक्रिया से अलगाव का एक परिणाम या पहलू है।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने ‘अर्थशास्त्र और दर्शन के पांडुलिपियाँ (1844)’ में अलगाव पर विस्तृत चर्चा की। उनके अनुसार, मजदूर उस उत्पाद से अलग हो जाता है जिसे वह बनाता है, क्योंकि उत्पाद उसका अपना नहीं रहता बल्कि पूंजीपति का हो जाता है। उत्पादन की प्रक्रिया भी मजबूर और दोहराव वाली हो जाती है।
  • गलत विकल्प: विकल्प (a), (b), और (c) मार्क्स द्वारा वर्णित अलगाव के प्रत्यक्ष रूप हैं। समाज से अलगाव (d) एक परिणाम है, न कि अलगाव का एक स्वतंत्र प्रकार जैसा कि मार्क्स ने औपचारिक रूप से सूचीबद्ध किया है।

प्रश्न 3: इमाइल दुर्खीम के अनुसार, समाज के ‘धर्म’ (Religion) के कार्य में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल नहीं है?

  1. सामूहिक चेतना को मजबूत करना
  2. समाज में एकजुटता (Solidarity) को बढ़ावा देना
  3. सामाजिक परिवर्तन को उत्प्रेरित करना
  4. जीवन के अर्थ और उद्देश्य प्रदान करना

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: दुर्खीम ने अपनी कृति ‘द एलिमेंट्री फॉर्म्स ऑफ द रिलीजियस लाइफ’ में धर्म को एक सामाजिक तथ्य के रूप में विश्लेषित किया। उनके अनुसार, धर्म का प्राथमिक कार्य पवित्र और अपवित्र के बीच अंतर करके, अनुष्ठानों के माध्यम से सामूहिक चेतना और एकजुटता को मजबूत करना, और यह सिखाना है कि दुनिया में उनका क्या स्थान है (अर्थ और उद्देश्य प्रदान करना)। सामाजिक परिवर्तन को उत्प्रेरित करना धर्म का प्राथमिक या प्रत्यक्ष कार्य नहीं था, हालांकि अप्रत्यक्ष प्रभाव हो सकते थे।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम का मानना ​​था कि धर्म समाज को एकीकृत करता है और व्यक्तियों को साझा विश्वासों और अभ्यासों के माध्यम से बांधता है। अनुष्ठान (rituals) सामूहिक भावना को पुनर्जीवित करते हैं।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (d) दुर्खीम द्वारा बताए गए धर्म के मुख्य कार्य हैं। (c) सामाजिक परिवर्तन अक्सर धर्म के बजाय सामाजिक और आर्थिक संरचनाओं से उत्पन्न होता है, जैसा कि वेबर ने प्रोटेस्टेंट नैतिकता के मामले में तर्क दिया था।

प्रश्न 4: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संसूकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया से क्या तात्पर्य है?

  1. पश्चिमी संस्कृति को अपनाना
  2. उच्च जातियों की प्रथाओं, अनुष्ठानों और विश्वासों को अपनाकर सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाना
  3. आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को अपनाना
  4. शहरी जीवन शैली को अपनाना

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संसूकरण’ की अवधारणा को सबसे पहले ‘दक्षिण भारत के कूर्गों के बीच धर्म और समाज’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) पुस्तक में प्रस्तुत किया। इसका अर्थ है कि निचली या मध्यम जाति के समूह किसी उच्च, अक्सर ‘द्विजा’ (twice-born) जाति की जीवन शैली, रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और विचारों को अपनाते हैं, ताकि वे ब्राह्मणवादी या उच्च जाति के रूप में माने जा सकें और अपनी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ा सकें।
  • संदर्भ और विस्तार: यह एक प्रकार की सांस्कृतिक और सामाजिक गतिशीलता है, जो जाति व्यवस्था में ऊर्ध्वाधर (vertical) गतिशीलता को दर्शाती है। यह आवश्यक नहीं कि इसमें धार्मिक अनुष्ठानों को ही अपनाया जाए, बल्कि इसमें खान-पान, विवाह, वेशभूषा आदि के नियम भी शामिल हो सकते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) है। (c) ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) एक व्यापक अवधारणा है। (d) ‘शहरीकरण’ (Urbanization) का परिणाम हो सकता है, लेकिन स्वयं शहरी जीवन शैली को अपनाना संसूकरण नहीं है।

प्रश्न 5: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Fact) की अवधारणा किसने विकसित की, जिसे उन्होंने समाजशास्त्र के अध्ययन का प्राथमिक विषय माना?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. ऑगस्ट कॉम्ते
  4. इमाइल दुर्खीम

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: इमाइल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय विधि के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा को परिभाषित किया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य वे तरीके हैं जिनसे सामूहिक चेतना समाज में कार्य करती है, जो व्यक्ति से स्वतंत्र होते हैं और उन पर बाहरी दबाव डालते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने समाजशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में स्थापित करने पर जोर दिया और इसे मनोविज्ञान व दर्शन से अलग करने के लिए सामाजिक तथ्यों का अध्ययन आवश्यक माना। उदाहरणों में सामाजिक मानदंड, कानून, नैतिक नियम, रीति-रिवाज और सामाजिक संरचनाएं शामिल हैं।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और आर्थिक नियतत्ववाद पर ध्यान केंद्रित किया। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया (social action) और उसके व्यक्तिपरक अर्थों (subjective meanings) पर जोर दिया। ऑगस्ट कॉम्ते को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है, लेकिन उन्होंने ‘सामाजिक स्थैतिकी’ (social statics) और ‘सामाजिक गतिकी’ (social dynamics) जैसी अवधारणाएँ दीं।

प्रश्न 6: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) के अनुसार, ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) के बीच द्वंद्व (Duality) किस प्रक्रिया का परिणाम है?

  1. सामाजिक स्तरीकरण
  2. सांस्कृतिक प्रसार
  3. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
  4. आर्थिक असमानता

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के एक प्रमुख संस्थापक, ने ‘स्व’ (Self) के विकास को सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से समझाया। उन्होंने ‘स्व’ के दो पहलुओं की पहचान की: ‘मैं’ (I) – व्यक्ति की तात्कालिक, सहज और प्रतिक्रियाशील प्रतिक्रिया, और ‘मुझे’ (Me) – समाज के संगठित दृष्टिकोण या ‘अन्य’ के सामान्यीकृत दृष्टिकोण (Generalized Other) को आत्मसात करना। यह द्वंद्व प्रतीकात्मक अंतःक्रिया के माध्यम से उभरता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड का मानना ​​था कि एक व्यक्ति का ‘स्व’ सामाजिक है, और यह भाषा और प्रतीकों के माध्यम से दूसरों के साथ अंतःक्रिया करके विकसित होता है। ‘मैं’ व्यक्ति की मौलिकता और रचनात्मकता को दर्शाता है, जबकि ‘मुझे’ सामाजिक अनुरूपता को दर्शाता है।
  • गलत विकल्प: (a) सामाजिक स्तरीकरण समाज की संरचना से संबंधित है। (b) सांस्कृतिक प्रसार का अर्थ है संस्कृतियों का एक-दूसरे के संपर्क में आना। (d) आर्थिक असमानता सामाजिक-आर्थिक विश्लेषण का हिस्सा है।

प्रश्न 7: मैक्स वेबर के ‘तर्कसंगतता’ (Rationalization) की अवधारणा का अर्थ निम्नलिखित में से क्या है?

  1. सभी सामाजिक समस्याओं को हल करने के लिए तर्क का उपयोग करना
  2. समाज को दक्षता, पूर्वानुमान और गणितीय गणना के सिद्धांतों पर आधारित बनाना
  3. अंधविश्वासों और परंपराओं से दूर होना
  4. सार्वभौमिकता और अमूर्तता की ओर बढ़ना

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: मैक्स वेबर के लिए, तर्कसंगतता का अर्थ था कि समाज को दक्षता, पूर्वानुमान, नियंत्रण और गणना के आधार पर व्यवस्थित करना। यह विशेष रूप से नौकरशाही (bureaucracy) के उदय और पूंजीवाद के विकास के साथ जुड़ा हुआ था। वेबर का मानना ​​था कि आधुनिक समाज धीरे-धीरे पारंपरिक और भावनात्मक सोच से हटकर तार्किक, कुशल और उद्देश्य-उन्मुख (goal-oriented) सोच की ओर बढ़ रहा है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने ‘कैदी वाली पिंजरा’ (iron cage) के रूप में तर्कसंगतता के संभावित नकारात्मक परिणामों के बारे में भी चेतावनी दी, जहाँ मनुष्य व्यक्तिगत स्वतंत्रता खो सकते हैं क्योंकि सब कुछ नियमों और प्रक्रियाओं से नियंत्रित होता है।
  • गलत विकल्प: (a) यह तर्कसंगतता का एक संकीर्ण दृष्टिकोण है। (c) परंपराओं से दूर होना तर्कसंगतता का एक परिणाम है, लेकिन यह स्वयं अवधारणा का पूर्ण अर्थ नहीं है। (d) सार्वभौमिकता और अमूर्तता तर्कसंगतता से जुड़े हो सकते हैं, लेकिन दक्षता और गणना मुख्य हैं।

प्रश्न 8: भारतीय समाज में ‘हरिजन’ शब्द का प्रयोग किसने और किस उद्देश्य से किया?

  1. महात्मा फुले, अछूतों को ‘शुद्ध जन’ कहने के लिए
  2. बी. आर. अम्बेडकर, जाति व्यवस्था को समाप्त करने के लिए
  3. महात्मा गांधी, दलितों को ‘ईश्वर के लोग’ के रूप में सम्मान देने के लिए
  4. स्वामी विवेकानंद, आध्यात्मिक एकता को बढ़ावा देने के लिए

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: महात्मा गांधी ने ‘दलित’ (Dalit) समुदाय के सदस्यों को, जिन्हें पहले ‘अछूत’ कहा जाता था, ‘हरिजन’ (Harijan) नाम दिया, जिसका अर्थ है ‘ईश्वर के लोग’ या ‘ईश्वर के पुत्र’। उन्होंने इस शब्द का प्रयोग उनके प्रति सम्मान व्यक्त करने और समाज में उनकी गरिमा को बढ़ावा देने के उद्देश्य से किया।
  • संदर्भ और विस्तार: गांधीजी ने छुआछूत (untouchability) के उन्मूलन के लिए एक व्यापक आंदोलन चलाया और दलितों के उत्थान के लिए काम किया। हालाँकि, बाद में इस समुदाय के कुछ सदस्यों ने ‘हरिजन’ शब्द को बाहरी थोपा हुआ माना और ‘दलित’ शब्द को अधिक पसंद किया, जिसका अर्थ ‘दबा हुआ’ या ‘कुचला हुआ’ है।
  • गलत विकल्प: महात्मा फुले ने ‘सत्यशोधक समाज’ की स्थापना की और दलितों को ‘बहिष्कृत हितकारिणी सभा’ के माध्यम से संबोधित किया। बी. आर. अम्बेडकर ने ‘अछूत’ के बजाय ‘दलित’ शब्द को बढ़ावा दिया और जातिगत उत्पीड़न को समाप्त करने के लिए अथक प्रयास किए। स्वामी विवेकानंद ने सभी मनुष्यों की अंतर्निहित दिव्यता पर जोर दिया।

प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सी संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकता (Structural-Functionalism) के प्रमुख समाजशास्त्रियों में से नहीं है?

  1. टैलकॉट पार्सन्स
  2. रॉबर्ट किंग मर्टन
  3. हरबर्ट स्पेंसर
  4. सी. राइट मिल्स

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: टैलकॉट पार्सन्स, रॉबर्ट किंग मर्टन और हरबर्ट स्पेंसर को संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकता के प्रमुख विचारक माना जाता है। वे समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखते हैं जिसके विभिन्न भाग (संरचनाएं) एक साथ मिलकर कार्य करते हैं और समाज के संतुलन और स्थिरता बनाए रखते हैं। स्पेंसर को अक्सर इस दृष्टिकोण का अग्रदूत माना जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने AGIL (अनुकूलन, लक्ष्य-प्राप्ति, एकीकरण, अव्यवस्था-निवारण) मॉडल विकसित किया, जबकि मर्टन ने ‘प्रकट प्रकार्य’ (Manifest Functions) और ‘अव्यक्त प्रकार्य’ (Latent Functions) जैसी अवधारणाएँ प्रस्तुत कीं।
  • गलत विकल्प: सी. राइट मिल्स एक महत्वपूर्ण समाजशास्त्री थे, लेकिन वे मुख्य रूप से ‘समाजशास्त्रीय कल्पना’ (Sociological Imagination) और आलोचनात्मक सिद्धांत (Critical Theory) से जुड़े थे, न कि संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकता से।

प्रश्न 10: ‘संस्कृति का प्रसार’ (Cultural Diffusion) से क्या तात्पर्य है?

  1. एक समाज के सदस्यों द्वारा अपनी ही संस्कृति को गहराई से समझना
  2. विभिन्न समाजों या संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक तत्वों (जैसे विचार, आविष्कार, प्रथाएँ) का आदान-प्रदान
  3. समाज के विभिन्न वर्गों के बीच सांस्कृतिक भिन्नताओं का विकास
  4. किसी विशेष समूह की अनूठी जीवन शैली

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सांस्कृतिक प्रसार एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा एक समाज या संस्कृति के तत्व (जैसे नवाचार, विश्वास, प्रथाएं, प्रौद्योगिकी) दूसरे समाज या संस्कृति में फैलते हैं। यह अक्सर संपर्क, व्यापार, प्रवास, युद्ध या मीडिया के माध्यम से होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, पिज्जा का इटली से दुनिया भर में फैलना, या मार्शल आर्ट का एशिया से पश्चिमी देशों में प्रसार सांस्कृतिक प्रसार के उदाहरण हैं।
  • गलत विकल्प: (a) आत्म-आत्मसात्करण या सांस्कृतिक आत्मसात (acculturation) का हिस्सा हो सकता है। (c) यह सांस्कृतिक भिन्नता (cultural variation) को दर्शाता है। (d) यह उपसंस्कृति (subculture) या विशेष संस्कृति (distinct culture) का वर्णन करता है।

प्रश्न 11: मैक्स वेबर ने सत्ता (Power) के तीन आदर्श प्रकार (Ideal Types) बताए हैं। निम्नलिखित में से कौन सा इनमें से एक नहीं है?

  1. करिश्माई सत्ता (Charismatic Authority)
  2. परंपरागत सत्ता (Traditional Authority)
  3. वैध-तर्कसंगत सत्ता (Legal-Rational Authority)
  4. सैन्यवादी सत्ता (Militaristic Authority)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: मैक्स वेबर ने तीन आदर्श प्रकार के सत्ता बताए: करिश्माई सत्ता (नेता के असाधारण व्यक्तिगत गुणों पर आधारित), परंपरागत सत्ता (प्रथाओं और परंपराओं की पवित्रता पर आधारित), और वैध-तर्कसंगत सत्ता (कानूनों और नियमों की तर्कसंगत प्रणाली पर आधारित)।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर के अनुसार, आधुनिक समाज में वैधता-तर्कसंगत सत्ता का प्रभुत्व होता है, जो नौकरशाही में स्पष्ट रूप से देखा जाता है। करिश्माई सत्ता अक्सर क्रांतिकारी परिवर्तनों के समय उत्पन्न होती है, जबकि परंपरागत सत्ता राजशाही या पैतृक शासन में पाई जाती है।
  • गलत विकल्प: ‘सैन्यवादी सत्ता’ वेबर द्वारा सत्ता के तीन प्रमुख प्रकारों में से एक के रूप में सूचीबद्ध नहीं है। यद्यपि सेना में इन सत्ता के प्रकारों का मिश्रण हो सकता है, यह एक अलग वैचारिक श्रेणी नहीं है।

प्रश्न 12: ‘द्वितीयक समूह’ (Secondary Group) की मुख्य विशेषता क्या है?

  1. अनौपचारिकता और भावनात्मक संबंध
  2. बड़े आकार, औपचारिकता और विशिष्ट उद्देश्यों की पूर्ति
  3. घनिष्ठता और दीर्घकालिक व्यक्तिगत संबंध
  4. व्यक्तिगत पहचान और आपसी निर्भरता

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: द्वितीयक समूह वे समूह होते हैं जो बड़े, अनौपचारिक, अप्रत्यक्ष और प्रायः अल्पकालिक होते हैं। सदस्य विशिष्ट लक्ष्यों या उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इन समूहों में शामिल होते हैं। संबंध अक्सर औपचारिक और अवैयक्तिक (impersonal) होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरणों में काम की जगह, एक राजनीतिक पार्टी, एक स्कूल, या एक खेल टीम शामिल हैं। ये प्राथमिक समूह (जैसे परिवार, करीबी दोस्त) के विपरीत हैं, जहाँ संबंध अनौपचारिक, घनिष्ठ और व्यक्तिगत होते हैं।
  • गलत विकल्प: (a) और (c) प्राथमिक समूहों की विशेषताएँ हैं। (d) यह व्यक्तिगत पहचान के विकास को संदर्भित करता है, जो स्वयं समूहों की विशेषता नहीं है।

प्रश्न 13: समाजशास्त्रीय कल्पना (Sociological Imagination) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?

  1. ई. पी. थॉम्पसन
  2. ई. पी. थॉम्पसन
  3. एंथोनी गिडन्स
  4. सी. राइट मिल्स

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सी. राइट मिल्स ने अपनी 1959 की पुस्तक ‘द सोशियोलॉजिकल इमेजिनेशन’ में इस अवधारणा को प्रस्तुत किया। यह व्यक्तियों की क्षमता को व्यक्तिगत अनुभवों और व्यापक सामाजिक संरचनाओं के बीच संबंध बनाने की क्षमता के रूप में परिभाषित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मिल्स का मानना ​​था कि समाजशास्त्रियों को व्यक्तिगत समस्याओं (जैसे बेरोजगारी) को सार्वजनिक मुद्दों (जैसे आर्थिक मंदी) से जोड़ने की आवश्यकता है, जो सामाजिक संरचनाओं में निहित हैं। यह उन्हें अपने जीवन और समाज को बेहतर ढंग से समझने में मदद करता है।
  • गलत विकल्प: थॉम्पसन एक इतिहासकार थे। एंथोनी गिडन्स संरचनात्मकता (structuration) के सिद्धांत के लिए जाने जाते हैं।

प्रश्न 14: भारतीय समाज में ‘वंशानुक्रम’ (Lineage) की अवधारणा ‘गोत्र’ (Gotra) से कैसे भिन्न है?

  1. वंशानुक्रम केवल पितृवंशीय होता है, जबकि गोत्र मातृवंशीय हो सकता है।
  2. वंशानुक्रम का संबंध पूर्वजों के एक प्रत्यक्ष, ज्ञात क्रम से है, जबकि गोत्र एक काल्पनिक पूर्वज से जुड़ता है।
  3. गोत्र हमेशा बहिर्विवाही (exogamous) होता है, जबकि वंशानुक्रम अंतर्विवाही (endogamous) हो सकता है।
  4. वंशानुक्रम केवल शहरी समुदायों में पाया जाता है, जबकि गोत्र ग्रामीण समुदायों में।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: ‘गोत्र’ (Gotra) एक काल्पनिक या पौराणिक पूर्वज से उत्पन्न होने वाले लोगों के एक व्यापक समूह को संदर्भित करता है, और यह आमतौर पर बहिर्विवाही होता है (अर्थात, एक ही गोत्र के सदस्यों के बीच विवाह वर्जित होता है)। ‘वंशानुक्रम’ (Lineage) पूर्वजों की एक प्रत्यक्ष, ऐतिहासिक रूप से सत्यापित पंक्ति को संदर्भित करता है, जहाँ यह दिखाया जा सकता है कि कौन किससे कैसे संबंधित है। वंशानुक्रम पितृवंशीय या मातृवंशीय हो सकता है।
  • संदर्भ और विस्तार: गोत्र एक अधिक व्यापक और अमूर्त संबंध है, जो अक्सर एक ही वंश का होने की भावना प्रदान करता है, भले ही सदस्यों को व्यक्तिगत रूप से एक-दूसरे का पता न हो। वंशानुक्रम अधिक ठोस होता है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी संबंध स्थापित करता है।
  • गलत विकल्प: (a) वंशानुक्रम पितृवंशीय हो सकता है, लेकिन मातृवंशीय भी। गोत्र भी अक्सर पितृवंशीय माना जाता है, लेकिन इसकी मुख्य भिन्नता काल्पनिक पूर्वज से जुड़ना है। (c) दोनों ही प्रायः बहिर्विवाही होते हैं, लेकिन गोत्र की बहिर्विवाहिता अधिक व्यापक रूप से मान्य है। (d) यह कथन गलत है।

प्रश्न 15: रॉबर्ट किंग मर्टन के अनुसार, ‘अव्यक्त प्रकार्य’ (Latent Function) क्या है?

  1. समाज की किसी संस्था या प्रथा का वह स्पष्ट और इच्छित परिणाम
  2. समाज की किसी संस्था या प्रथा का वह अनपेक्षित और अज्ञात परिणाम
  3. वह कार्य जो किसी समाज में मौजूद नहीं है
  4. किसी सामाजिक समस्या का समाधान

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: रॉबर्ट किंग मर्टन ने प्रकार्यों को दो भागों में विभाजित किया: ‘प्रकट प्रकार्य’ (Manifest Functions) जो स्पष्ट, पहचाने गए और इच्छित परिणाम होते हैं, और ‘अव्यक्त प्रकार्य’ (Latent Functions) जो अनपेक्षित, अज्ञात और अप्रत्यक्ष परिणाम होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, एक विश्वविद्यालय का प्रकट प्रकार्य शिक्षा प्रदान करना है, लेकिन इसका अव्यक्त प्रकार्य नेटवर्किंग के अवसर प्रदान करना या सामाजिक गतिशीलता को सुगम बनाना हो सकता है।
  • गलत विकल्प: (a) यह प्रकट प्रकार्य की परिभाषा है। (c) यह प्रकार्य की अनुपस्थिति को दर्शाता है। (d) यह प्रकार्य का परिणाम नहीं, बल्कि उसका उद्देश्य हो सकता है।

प्रश्न 16: ‘सांस्कृतिक भिन्नता’ (Cultural Variation) से क्या आशय है?

  1. विभिन्न समाजों के बीच संस्कृति का आदान-प्रदान
  2. एक ही समाज के भीतर विभिन्न समूहों की जीवन शैली में अंतर
  3. समाज में उत्पन्न होने वाली नई सांस्कृतिक प्रथाएँ
  4. संस्कृति के अभौतिक घटकों का विकास

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सांस्कृतिक भिन्नता से तात्पर्य एक ही समाज या राष्ट्र के भीतर विभिन्न समूहों, समुदायों या उपसंस्कृतियों के बीच विश्वासों, मूल्यों, प्रथाओं, भाषाओं, वेशभूषा आदि में मौजूद अंतर से है।
  • संदर्भ और विस्तार: भारत में, क्षेत्र, धर्म, जाति, जनजाति, वर्ग और क्षेत्र के आधार पर जीवन शैली में काफी सांस्कृतिक भिन्नताएँ देखी जाती हैं।
  • गलत विकल्प: (a) यह सांस्कृतिक प्रसार है। (c) यह नवाचार (innovation) या परिवर्तन है। (d) यह संस्कृति के विकास का एक पहलू है।

प्रश्न 17: वेबर के अनुसार, ‘आदर्श प्रारूप’ (Ideal Type) का क्या उद्देश्य है?

  1. यथार्थवाद का सटीक प्रतिनिधित्व करना
  2. सामाजिक वास्तविकता की जटिलताओं को समझने के लिए एक विश्लेषणात्मक उपकरण के रूप में काम करना
  3. ऐतिहासिक घटनाओं के नैतिक मूल्यांकन के लिए एक ढाँचा प्रदान करना
  4. सामाजिक परिवर्तन की भविष्यवाणी करना

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: मैक्स वेबर ने ‘आदर्श प्रारूप’ को एक ऐसी वैचारिक रचना के रूप में परिभाषित किया जो किसी विशेष घटना या सामाजिक संस्था के कुछ विशिष्ट लक्षणों को अतिरंजित या व्यवस्थित करके बनाई जाती है, ताकि उसे समझने और उसका विश्लेषण करने के लिए एक स्पष्ट ‘मानदंड’ (yardstick) मिल सके। यह यथार्थ का एक शुद्ध, तार्किक निर्माण है, न कि एक आदर्श स्थिति।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर का मानना ​​था कि आदर्श प्रारूप सीधे अवलोकन से प्राप्त नहीं होते, बल्कि वे समाजशास्त्री द्वारा निर्मित होते हैं ताकि वास्तविकता का विश्लेषण किया जा सके। उदाहरण के लिए, ‘तर्कसंगत नौकरशाही’ एक आदर्श प्रारूप है।
  • गलत विकल्प: (a) आदर्श प्रारूप यथार्थ का अतिरंजित रूप है, न कि सटीक प्रतिनिधित्व। (c) यह नैतिक मूल्यांकन के लिए नहीं, बल्कि विश्लेषण के लिए है। (d) भविष्यवाणी करना इसका प्राथमिक उद्देश्य नहीं है।

प्रश्न 18: भारत में जाति व्यवस्था के संदर्भ में, ‘अंतर्विवाह’ (Endogamy) का क्या अर्थ है?

  1. किसी व्यक्ति का अपनी ही जाति के भीतर विवाह करना
  2. किसी व्यक्ति का अपनी ही गोत्र के बाहर विवाह करना
  3. किसी व्यक्ति का अपनी ही उप-जाति के बाहर विवाह करना
  4. किसी व्यक्ति का अपनी ही गोत्र के भीतर विवाह करना

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: अंतर्विवाह (Endogamy) का अर्थ है किसी व्यक्ति का अपने ही समूह या समुदाय के भीतर विवाह करना। भारतीय जाति व्यवस्था में, विवाह सामान्यतः जाति के भीतर ही करने का नियम है, जिसे ‘जाति-अंतर्विवाह’ कहा जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह जाति व्यवस्था को बनाए रखने में एक महत्वपूर्ण कारक है, क्योंकि यह जाति की शुद्धता को बनाए रखने और जाति की पहचान को मजबूत करने में मदद करता है।
  • गलत विकल्प: (b) और (d) ‘बहिर्विवाह’ (Exogamy) को परिभाषित करते हैं, विशेष रूप से गोत्र बहिर्विवाह। (c) उप-जाति (sub-caste) भी एक बहिर्विवाही इकाई हो सकती है, लेकिन अंतर्विवाह का मुख्य नियम जाति के स्तर पर लागू होता है।

प्रश्न 19: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक संस्था परिवार का कार्य नहीं मानी जाती?

  1. प्रजनन
  2. बच्चों का समाजीकरण
  3. आर्थिक सहयोग
  4. सामाजिक नियंत्रण के प्राथमिक साधन के रूप में कार्य करना

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: परिवार, समाज की एक प्राथमिक संस्था के रूप में, प्रजनन, बच्चों का समाजीकरण, आर्थिक सहायता प्रदान करना और भावनात्मक सुरक्षा जैसे कार्य करता है। हालाँकि, आधुनिक समाजों में, सामाजिक नियंत्रण का प्राथमिक और सबसे व्यापक साधन राज्य, कानून और पुलिस जैसी संस्थाएँ हैं, न कि केवल परिवार। परिवार एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, लेकिन ‘प्राथमिक साधन’ के रूप में नहीं।
  • संदर्भ और विस्तार: परिवार बचपन में सामाजिक मानदंडों और मूल्यों को सिखाता है, लेकिन समाज के अन्य अंग भी सामाजिक नियंत्रण में योगदान करते हैं।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) परिवार के मुख्य कार्य माने जाते हैं। (d) यह सामाजिक नियंत्रण की एक विस्तारित भूमिका को दर्शाता है जो अन्य संस्थाओं द्वारा बेहतर ढंग से निभाई जाती है।

प्रश्न 20: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) से क्या तात्पर्य है?

  1. व्यक्तियों के बीच सामाजिक संबंधों का पैटर्न
  2. एक समाज के भीतर संस्थाओं का संग्रह
  3. लोगों के विश्वासों और मूल्यों का कुल योग
  4. समाज में शक्ति वितरण का तरीका

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सामाजिक संरचना समाज में अंतर्संबंधित सामाजिक भूमिकाओं, स्थिति-समूहों और संस्थाओं का एक अपेक्षाकृत स्थिर पैटर्न है, जो व्यक्तियों और समूहों के व्यवहार को प्रभावित करता है। यह व्यक्तियों के बीच सामाजिक संबंधों का व्यवस्थित पैटर्न है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह एक अदृश्य खाका है जो समाज के विभिन्न भागों को एक साथ जोड़ता है और समाज में व्यवस्था और पूर्वानुमेयता प्रदान करता है।
  • गलत विकल्प: (b) संस्थाएँ सामाजिक संरचना का हिस्सा हैं, लेकिन यह उसका पूर्ण अर्थ नहीं है। (c) यह संस्कृति का हिस्सा है। (d) यह सामाजिक स्तरीकरण या शक्ति संरचना का हिस्सा है।

प्रश्न 21: भारत में, ‘प्रजाति’ (Race) की अवधारणा पारंपरिक रूप से किस से जुड़ी रही है?

  1. जैविक भेद
  2. सांस्कृतिक समानता
  3. भौगोलिक अलगाव
  4. भाषा-आधारित पहचान

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सामाजिक विज्ञान में, ‘प्रजाति’ शब्द पारंपरिक रूप से मनुष्यों के बीच कथित जैविक भिन्नताओं (जैसे त्वचा का रंग, शारीरिक विशेषताएँ) पर आधारित वर्गीकरण से जुड़ा रहा है। हालाँकि, आधुनिक समाजशास्त्र और आनुवंशिकी इस बात पर जोर देते हैं कि ये जैविक अंतर सामाजिक रूप से निर्मित (socially constructed) हैं और प्रजाति कोई ठोस जैविक वास्तविकता नहीं है।
  • संदर्भ और विस्तार: भारत में, जबकि जाति व्यवस्था को अक्सर जैविक वर्गीकरण के साथ जोड़ा जाता रहा है, ‘प्रजाति’ शब्द का प्रयोग कम होता है। जब इसका प्रयोग होता है, तो यह प्रायः त्वचा के रंग और कुछ शारीरिक लक्षणों पर आधारित होता है।
  • गलत विकल्प: (b) सांस्कृतिक समानता या (d) भाषा-आधारित पहचान ‘प्रजाति’ से सीधे संबंधित नहीं हैं, बल्कि जातीयता (ethnicity) या राष्ट्रीयता से संबंधित हो सकते हैं। (c) भौगोलिक अलगाव प्रजाति के विकास में भूमिका निभा सकता है, लेकिन यह स्वयं प्रजाति की परिभाषा नहीं है।

प्रश्न 22: ‘नवाचार’ (Innovation) किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत से संबंधित है, जो बताता है कि सामाजिक परिवर्तन का एक तरीका मौजूदा सांस्कृतिक तत्वों को नए तरीकों से जोड़ना है?

  1. संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
  2. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
  3. प्रकार्यवादी सिद्धांत (Functionalism)
  4. समाजशास्त्रीय कल्पना (Sociological Imagination)

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: यद्यपि ‘नवाचार’ संस्कृति और समाज में परिवर्तन का एक सामान्य तरीका है, इसे अक्सर संघर्ष सिद्धांत के संदर्भ में देखा जाता है। संघर्ष सिद्धांतकार बताते हैं कि समाज में असमानता और शक्ति संघर्ष मौजूद हैं, और परिवर्तन अक्सर नए विचारों, प्रौद्योगिकियों या सामाजिक आंदोलनों के माध्यम से आता है जो मौजूदा व्यवस्था को चुनौती देते हैं। नवाचार (जैसे नई प्रौद्योगिकी या सामाजिक आंदोलन) सामाजिक परिवर्तन का एक प्रमुख चालक हो सकता है।
  • संदर्भ और विस्तार: हालाँकि, दुर्खीम जैसे प्रकार्यवादियों ने भी संस्कृति के विकास में नवाचार को एक प्रकार्य के रूप में देखा। एल.ए. गोल्डनर ने नवाचार को सामाजिक नियंत्रण के एक रूप के रूप में भी देखा। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद में, नवाचार अक्सर समूह की बातचीत के माध्यम से उत्पन्न होता है। लेकिन प्रश्न ‘नए तरीकों से जोड़ना’ पर जोर देता है, जो सामाजिक परिवर्तन की एक व्यापक व्याख्या है। (यहाँ, विकल्प ‘a’ संघर्ष सिद्धांत के व्यापक दायरे में आता है जहाँ व्यवस्था को बदलने के लिए नए विचार आ सकते हैं।)
  • गलत विकल्प: (b) प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद स्वयं के निर्माण और अर्थ पर अधिक केंद्रित है। (c) प्रकार्यवाद मुख्य रूप से संतुलन और व्यवस्था पर केंद्रित है, हालांकि यह परिवर्तन को भी स्वीकार करता है। (d) समाजशास्त्रीय कल्पना विश्लेषण का एक तरीका है, न कि परिवर्तन का सिद्धांत। (नोट: यह प्रश्न थोड़ा अस्पष्ट हो सकता है, लेकिन संघर्ष सिद्धांत सामाजिक परिवर्तन के इंजन के रूप में नवाचार को प्राथमिकता देता है।)

प्रश्न 23: ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व प्रायः शामिल नहीं होता?

  1. औद्योगीकरण (Industrialization)
  2. शहरीकरण (Urbanization)
  3. धर्मनिरपेक्षता (Secularization)
  4. सामंतवाद का सुदृढ़ीकरण (Strengthening of Feudalism)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: आधुनिकीकरण एक व्यापक प्रक्रिया है जो समाज के पारंपरिक रूपों से औद्योगिक, शहरी और धर्मनिरपेक्ष समाजों की ओर परिवर्तन का वर्णन करती है। इसमें औद्योगीकरण, शहरीकरण, शिक्षा का प्रसार, तर्कसंगतता, धर्मनिरपेक्षता और राजनीतिक लोकतंत्रीकरण जैसी प्रक्रियाएँ शामिल हैं। सामंतवाद आधुनिकीकरण की विरोधी प्रक्रिया है; आधुनिकीकरण अक्सर सामंती व्यवस्था के पतन के साथ जुड़ा होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: आधुनिकीकरण का संबंध प्रायः सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि, पारंपरिक संबंधों में कमी और व्यक्तिवाद के उदय से भी है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) आधुनिकीकरण के महत्वपूर्ण तत्व हैं। (d) सामंतवाद का सुदृढ़ीकरण आधुनिकीकरण का विरोधी है।

प्रश्न 24: भारतीय संदर्भ में, ‘ग्रामीण समुदाय’ (Rural Community) की सबसे प्रमुख विशेषता क्या है?

  1. उच्च स्तर का औद्योगीकरण
  2. घनत्वपूर्ण जनसंख्या और सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था
  3. कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था और प्राथमिक संबंध
  4. विभिन्न व्यवसायों में विशेषज्ञता

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: पारंपरिक रूप से, भारतीय ग्रामीण समुदायों की पहचान कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था, प्राथमिक संबंध (जैसे परिवार, पड़ोस) और घनत्वपूर्ण जनसंख्या के बजाय विस्तृत फैलाव से रही है। हालाँकि, आधुनिक समय में, ये विशेषताएँ बदल रही हैं। लेकिन दिए गए विकल्पों में, “कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था और प्राथमिक संबंध” अभी भी ग्रामीण भारत का एक महत्वपूर्ण, यद्यपि घटता हुआ, पहलू है। (प्रश्न में “सबसे प्रमुख” पूछा गया है, और यह महत्वपूर्ण है। विकल्प B “घनत्वपूर्ण जनसंख्या” ग्रामीण भारत के लिए हमेशा सच नहीं है, लेकिन “सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था” शहरीकरण की विशेषता है। विकल्प C “कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था और प्राथमिक संबंध” अधिक सटीक लगता है, लेकिन इसे एक बिंदु के रूप में देखा जाना चाहिए)।
  • पुनर्मूल्यांकन: प्रश्न 24 का उत्तर “कृषि पर आधारित अर्थव्यवस्था और प्राथमिक संबंध” (c) होना चाहिए। भारत में अधिकांश ग्रामीण समुदाय अभी भी कृषि पर अत्यधिक निर्भर हैं, और परिवार, नातेदारी और पड़ोस के मजबूत प्राथमिक संबंध अभी भी ग्रामीण जीवन का एक प्रमुख हिस्सा हैं। उच्च औद्योगीकरण (a) और सेवा-आधारित अर्थव्यवस्था (b) शहरी क्षेत्रों की विशेषताएँ हैं। विभिन्न व्यवसायों में विशेषज्ञता (d) भी शहरीकरण से अधिक जुड़ी हुई है।
  • सही उत्तर (सुधार): (c)
  • विस्तृत स्पष्टीकरण (सुधार): भारतीय ग्रामीण समुदायों की पारंपरिक और अभी भी महत्वपूर्ण विशेषता कृषि पर उनकी आर्थिक निर्भरता है। इसके अलावा, इन समुदायों में नातेदारी, पड़ोस और समुदाय के सदस्यों के बीच घनिष्ठ, व्यक्तिगत और अक्सर भावनात्मक संबंध (प्राथमिक संबंध) पाए जाते हैं, जो उन्हें शहरी समुदायों से अलग करते हैं।
  • गलत विकल्प (सुधार): (a) और (b) शहरी क्षेत्रों की विशेषताएँ हैं। (d) विशेषज्ञता शहरों में अधिक पाई जाती है।

प्रश्न 25: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का अर्थ है:

  1. समाज के सदस्यों को उनकी स्थिति के आधार पर विभिन्न परतों या स्तरों में व्यवस्थित करना
  2. लोगों के बीच सामाजिक संबंधों का एक जटिल जाल
  3. सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए नियमों और विनियमों का एक समूह
  4. समाज में व्यक्तियों के बीच सहयोग की प्रक्रिया

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सामाजिक स्तरीकरण एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज अपने सदस्यों को योग्यता, संपत्ति, शक्ति, या अन्य सामाजिक रूप से परिभाषित लक्षणों के आधार पर असमान स्तरों या परतों में व्यवस्थित करता है। यह समाज में असमानता की एक सार्वभौमिक विशेषता है।
  • संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण के मुख्य रूप वर्ग (class), स्थिति (status) और शक्ति (power) हैं, जैसा कि मैक्स वेबर ने बताया। जाति व्यवस्था भी स्तरीकरण का एक कठोर रूप है।
  • गलत विकल्प: (b) यह सामाजिक संरचना का हिस्सा है। (c) यह सामाजिक व्यवस्था या नियंत्रण से संबंधित है। (d) यह सामाजिक सामंजस्य (social cohesion) का एक पहलू है।

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