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समाजशास्त्र की चुनौती: ज्ञान की गहराई को मापें

समाजशास्त्र की चुनौती: ज्ञान की गहराई को मापें

नमस्ते, भविष्य के समाजशास्त्रियों! आज फिर हम आपकी संकल्पनाओं और विश्लेषण क्षमता को परखने के लिए एक नए, गहन अभ्यास सत्र के साथ हाज़िर हैं। इन 25 प्रश्नों के माध्यम से अपने ज्ञान को पैना करें और परीक्षा के लिए अपनी तैयारी को एक नई दिशा दें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।


प्रश्न 1: निम्नांकित में से किस समाजशास्त्री ने ‘वर्टेहेन’ (Verstehen) की अवधारणा प्रस्तुत की, जिसका अर्थ है सामाजिक क्रियाओं के पीछे व्यक्ति द्वारा आरोपित अर्थों को समझना?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. एमिल दुर्खीम
  3. मैक्स वेबर
  4. हरबर्ट मीड

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: मैक्स वेबर ने ‘वर्टेहेन’ (Verstehen) शब्द का प्रयोग किया, जिसका जर्मन में अर्थ ‘समझना’ है। यह समाजशास्त्रियों के लिए यह समझने की आवश्यकता पर बल देता है कि व्यक्ति अपने सामाजिक कार्यों को किस व्यक्तिगत या व्यक्तिपरक अर्थ के साथ करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Interpretive Sociology) का केंद्रीय हिस्सा है और उनकी रचना ‘इकॉनमी एंड सोसाइटी’ (Economy and Society) में विस्तृत है। यह दुर्खीम के प्रत्यक्षवादी (Positivist) दृष्टिकोण के विपरीत है।
  • गलत विकल्प: ‘अमीरी’ (Anomie) दुर्खीम की अवधारणा है, मार्क्सवाद का मूल ‘वर्ग संघर्ष’ है, और मीड ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) से जुड़े हैं, न कि वर्टेहेन से।

प्रश्न 2: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया किस बारे में है?

  1. पश्चिमी संस्कृति को अपनाना
  2. तकनीकी प्रगति और आधुनिकीकरण
  3. निम्न जातियों या जनजातियों द्वारा उच्च जातियों की प्रथाओं और अनुष्ठानों को अपनाना
  4. शहरी जीवन शैली को स्वीकार करना

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ की अवधारणा दी, जो एक सामाजिक-सांस्कृतिक प्रक्रिया है जिसमें निम्न जाति या समूह उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, विश्वासों और जीवन शैली को अपनाते हैं ताकि वे अपनी सामाजिक स्थिति में सुधार कर सकें और जाति पदानुक्रम में ऊपर उठ सकें।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने यह अवधारणा अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में प्रस्तुत की थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है।
  • गलत विकल्प: ‘पश्चिमीकरण’ पश्चिमी जीवन शैली को अपनाने से संबंधित है। ‘आधुनिकीकरण’ व्यापक है और इसमें तकनीकी, आर्थिक व राजनीतिक परिवर्तन शामिल हैं। ‘शहरीकरण’ शहरी जीवन की ओर विस्थापन और उससे जुड़ी जीवन शैली है।

प्रश्न 3: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) की अवधारणा को निम्नलिखित में से किसने ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के दृष्टिकोण से देखा?

  1. टैल्कॉट पार्सन्स
  2. ए.आर. रेडक्लिफ-ब्राउन
  3. जॉर्ज हर्बर्ट मीड
  4. इरविन गॉफमैन

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: जॉर्ज हर्बर्ट मीड ने व्यक्ति की चेतना और स्वयं (Self) के निर्माण पर ज़ोर दिया, जो सामाजिक अंतःक्रियाओं और प्रतीकों के माध्यम से होता है। उनका दृष्टिकोण संरचना को व्यक्तियों के बीच निरंतर चलने वाली अंतःक्रियाओं के उत्पाद के रूप में देखता है, न कि पूर्वनिर्धारित बाहरी इकाई के रूप में।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड का कार्य प्रत्यक्ष रूप से प्रकाशित नहीं हुआ था, लेकिन उनके विचारों को उनके छात्रों (जैसे हर्बर्ट ब्लूमर) ने संकलित किया। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का मानना है कि सामाजिक वास्तविकता व्यक्तियों के अर्थ-निर्माण की प्रक्रियाओं द्वारा निर्मित होती है।
  • गलत विकल्प: पार्सन्स और रेडक्लिफ-ब्राउन को कार्यात्मकतावादी (Functionalist) माना जाता है जिन्होंने सामाजिक संरचना को समाज के स्थिरता और संतुलन के लिए आवश्यक मानवीकृत तत्वों के एक सेट के रूप में देखा। गॉफमैन ने ‘नाटकशास्त्र’ (Dramaturgy) के माध्यम से सामाजिक जीवन को देखा, जो मीड से भिन्न है।

प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन दुर्खीम के अनुसार, समाज की एकजुटता (Solidarity) का वह रूप है जो अत्यंत विभेदित श्रम विभाजन वाले समाजों में पाया जाता है?

  1. यांत्रिक एकजुटता (Mechanical Solidarity)
  2. जैविक एकजुटता (Organic Solidarity)
  3. सामूहिक चेतना (Collective Consciousness)
  4. अमीरी (Anomie)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘The Division of Labour in Society’ में ‘जैविक एकजुटता’ (Organic Solidarity) की अवधारणा दी। यह आधुनिक, औद्योगिक समाजों में पाई जाती है जहाँ श्रम विभाजन अत्यधिक होता है, और व्यक्ति अपनी विशिष्ट भूमिकाओं के कारण एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं, जैसे शरीर के विभिन्न अंग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: जैविक एकजुटता समानता के बजाय विभिन्नता पर आधारित होती है। यह ‘यांत्रिक एकजुटता’ के विपरीत है, जो सरल, कम विभेदित समाजों में समान विश्वासों और सामूहिक चेतना पर आधारित होती है।
  • गलत विकल्प: ‘यांत्रिक एकजुटता’ सरल समाजों से संबंधित है। ‘सामूहिक चेतना’ दुर्खीम की एक महत्वपूर्ण अवधारणा है, लेकिन यह एकजुटता का प्रकार नहीं, बल्कि समाज के सदस्यों के साझा विश्वासों और नैतिक भावनाओं का समूह है। ‘अमीरी’ सामाजिक विघटन की स्थिति है।

प्रश्न 5: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने विकसित की?

  1. विलियम ग्राहम समनर
  2. एल्बर्ट स्मॉल
  3. विलियम ओग्बर्न
  4. रॉबर्ट ई. पार्क

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: विलियम ओग्बर्न ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा प्रस्तुत की। इसके अनुसार, समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी, उपकरण) अक्सर अभौतिक संस्कृति (जैसे मूल्य, रीति-रिवाज, कानून, संस्थाएँ) की तुलना में तेज़ी से बदलती है, जिससे एक प्रकार का ‘विलंब’ या असंतुलन पैदा होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने यह अवधारणा अपनी पुस्तक ‘Social Change with Respect to Culture and Original Nature’ (1922) में दी। यह सामाजिक परिवर्तन का विश्लेषण करने में एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
  • गलत विकल्प: समनर ‘लोकप्रिय रीति-रिवाज’ (Folkways) और ‘रूढ़ियाँ’ (Mores) के बीच अंतर के लिए जाने जाते हैं। स्मॉल और पार्क शिकागो स्कूल से जुड़े हैं जिन्होंने शहरी समाजशास्त्र पर काम किया।

प्रश्न 6: भारतीय समाज में ‘अ.श. (AS)’ शब्द का प्रयोग अक्सर किस संदर्भ में किया जाता है, जहां ‘A’ का अर्थ ‘अनुयायी’ (Follower) और ‘S’ का अर्थ ‘स्वामी’ (Master) है?

  1. जाति व्यवस्था में भूमिका
  2. संतुलन और संतुलन
  3. शक्ति और अधीनता
  4. शहरीकरण की प्रक्रिया

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: समाजशास्त्र में ‘AS’ (Follower/Owner) का अर्थ अक्सर शक्ति के संबंधों, प्रभुत्व और अधीनता (Dominance and Subordination) के संदर्भ में प्रयोग किया जाता है, जहाँ एक समूह या व्यक्ति ‘स्वामी’ (Owner/Dominant) होता है और दूसरा ‘अनुयायी’ (Follower/Subordinate)। यह पदानुक्रम और नियंत्रण को दर्शाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा शक्ति संरचनाओं, विशेषकर भारत जैसे देश में जहाँ पदानुक्रमित व्यवस्थाएँ (जैसे जाति) गहरी पैठ रखती हैं, का विश्लेषण करने के लिए उपयोगी है।
  • गलत विकल्प: यद्यपि यह अप्रत्यक्ष रूप से जाति में भूमिकाओं से संबंधित हो सकता है, ‘AS’ विशेष रूप से प्रभुत्व-अधीनता संबंध को दर्शाता है। ‘संतुलन’ या ‘शहरीकरण’ के साथ इसका सीधा संबंध नहीं है।

प्रश्न 7: किसने ‘रैंकिंग’ (Ranking) को जाति व्यवस्था की एक महत्वपूर्ण विशेषता के रूप में पहचाना, जिसमें सदस्यों को उच्च और निम्न इकाइयों में वर्गीकृत किया जाता है?

  1. इरावती कर्वे
  2. जी.एस. घुरिये
  3. एम.एन. श्रीनिवास
  4. आंद्रे बेतेई

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: आंद्रे बेतेई, एक फ्रांसीसी समाजशास्त्री, जिन्होंने भारतीय जाति व्यवस्था पर गहन अध्ययन किया, उन्होंने जाति व्यवस्था की मुख्य विशेषताओं में से एक के रूप में ‘रैंकिंग’ (Ranking) पर ज़ोर दिया। रैंकिंग का अर्थ है विभिन्न जातियों को एक पदानुक्रमित क्रम में व्यवस्थित करना, जहाँ प्रत्येक जाति को दूसरी जाति से ऊपर या नीचे रखा जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: बेतेई ने विशुद्धता (Purity) और प्रदूषण (Pollution) के सिद्धांतों को रैंकिंग के आधार के रूप में भी पहचाना।
  • गलत विकल्प: इरावती कर्वे, घुरिये और श्रीनिवास सभी ने जाति पर महत्वपूर्ण कार्य किया है, लेकिन ‘रैंकिंग’ को विशेष रूप से रेखांकित करने वाले प्रमुख व्यक्तियों में बेतेई का नाम आता है।

प्रश्न 8: ‘पैटर्न वेरिएबल्स’ (Pattern Variables) की अवधारणा किसने विकसित की, जो सामाजिक क्रियाओं के प्रकारों का वर्णन करती है?

  1. मैक्स वेबर
  2. अल्फ़्रेड शुट्ज़
  3. टैल्कॉट पार्सन्स
  4. रॉबर्ट मेर्टन

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: टैल्कॉट पार्सन्स ने ‘पैटर्न वेरिएबल्स’ की अवधारणा विकसित की। ये पांच द्वंद्वात्मक विकल्प (dichotomous choices) हैं जिनका सामना प्रत्येक सामाजिक कर्ता को अपनी भूमिका निभाते समय करना पड़ता है। ये सामाजिक व्यवस्था के बुनियादी आयामों का प्रतिनिधित्व करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स की प्रमुख कृतियों में ‘The Structure of Social Action’ और ‘The Social System’ शामिल हैं। पैटर्न वेरिएबल्स में शामिल हैं: भावुकता बनाम अ-भावुकता (Affectivity vs. Affective Neutrality), प्रसार बनाम विशिष्टता (Diffuseness vs. Specificity), सार्वभौमिकता बनाम विशिष्टता (Universalism vs. Particularism), आत्मीयता बनाम वस्तुनिष्ठता (Self-Orientation vs. Collectivity-Orientation), और गुण बनाम प्रदर्शन (AsCRIPTION vs. Achievement)।
  • गलत विकल्प: वेबर ने ‘आदर्श प्रकार’ (Ideal Types) और ‘वर्टेहेन’ पर काम किया। शुट्ज़ ने फेनोमेनोलॉजी पर काम किया। मेर्टन ने ‘मध्यम-श्रेणी के सिद्धांत’ (Middle-Range Theories) और ‘अनपेक्षित परिणाम’ (Unintended Consequences) जैसी अवधारणाएं दीं।

प्रश्न 9: ‘अनपेक्षित परिणाम’ (Unintended Consequences) की अवधारणा, जो बताती है कि सामाजिक क्रियाओं के हमेशा ऐसे परिणाम होते हैं जिनकी अपेक्षा नहीं की जाती, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. कार्ल मार्क्स
  3. रॉबर्ट के. मेर्टन
  4. मैक्स वेबर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: रॉबर्ट के. मेर्टन ने ‘अनपेक्षित परिणाम’ (Unintended Consequences) की अवधारणा को प्रमुखता से समझाया। उन्होंने बताया कि कैसे जानबूझकर किए गए कार्य अक्सर अनपेक्षित, अप्रत्याशित और कभी-कभी विपरीत परिणाम उत्पन्न कर सकते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मेर्टन ने इसके तीन प्रकार बताए: (1) अनपेक्षित सकारात्मक परिणाम (Unexpected positive consequences), (2) अनपेक्षित नकारात्मक परिणाम (Unexpected negative consequences – जिसे कभी-कभी ‘विपरीत परिणाम’ भी कहा जाता है), और (3) अनपेक्षित परिणाम जो न तो सकारात्मक हैं और न ही नकारात्मक (Unintended consequences that are neither positive nor negative)। यह अवधारणा उनके ‘मध्यम-श्रेणी के सिद्धांत’ (Middle-Range Theories) का हिस्सा है।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘सामूहिक चेतना’, ‘अमीरी’ पर काम किया। मार्क्स ने ‘वर्ग संघर्ष’ और ‘अलगाव’ की बात कही। वेबर ने ‘शक्ति’, ‘सत्ता’ और ‘तर्कसंगति’ पर ज़ोर दिया।

प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक संस्था के रूप में ‘परिवार’ (Family) का प्रकार विवाह के आधार पर वर्गीकृत नहीं है?

  1. एकविवाह (Monogamy)
  2. बहुपत्नीत्व (Polygyny)
  3. बहुपतित्व (Polyandry)
  4. समूह विवाह (Group Marriage)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: एकविवाह (एक व्यक्ति का एक साथी), बहुपत्नीत्व (एक पुरुष की कई पत्नियाँ), और बहुपतित्व (एक महिला के कई पति) विवाह के आधार पर परिवार के वर्गीकरण के अंतर्गत आते हैं, जो यह निर्धारित करते हैं कि एक व्यक्ति के कितने साथी हो सकते हैं। ‘समूह विवाह’ को कभी-कभी परिवार के रूप में संदर्भित किया जाता है, लेकिन यह प्रत्यक्ष रूप से विवाह की संख्या पर आधारित वर्गीकरण नहीं है, बल्कि एक से अधिक पुरुष और महिलाएँ मिलकर एक वैवाहिक इकाई बनाते हैं। मुख्य वर्गीकरण उपर्युक्त तीन पर आधारित है।
  • संदर्भ और विस्तार: परिवार का अध्ययन करते समय, विवाह की प्रणालियों के आधार पर इसे वर्गीकृत करना एक सामान्य तरीका है।
  • गलत विकल्प: (a), (b), और (c) सीधे तौर पर व्यक्तियों की संख्या और उनके वैवाहिक संबंध को बताते हैं। ‘समूह विवाह’ एक अधिक जटिल व्यवस्था है जो इन तीन मुख्य प्रकारों में सीधे फिट नहीं बैठती, हालाँकि यह अनौपचारिक या विशिष्ट समुदायों में देखा जा सकता है।

प्रश्न 11: ‘पवित्र’ (Sacred) और ‘अपवित्र’ (Profane) के बीच अंतर किसने किया, जो धर्म के समाजशास्त्रीय अध्ययन का आधार बनता है?

  1. मैक्स वेबर
  2. एमिल दुर्खीम
  3. कार्ल मार्क्स
  4. जॉर्ज सिमेल

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘The Elementary Forms of Religious Life’ में ‘पवित्र’ और ‘अपवित्र’ की अवधारणा को विस्तार से समझाया। उनके अनुसार, धर्म का सार यह है कि वह पवित्र को अपवित्र से अलग करता है, जहाँ पवित्र उन वस्तुओं, स्थानों या विचारों से संबंधित है जो असाधारण, वर्जित और श्रद्धा के पात्र होते हैं, जबकि अपवित्र रोजमर्रा की दुनिया से संबंधित है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम का मानना ​​था कि समाज ही धर्म का स्रोत है, और पवित्र वस्तुओं के प्रति सामाजिक भावनाएँ ही धर्म का मूल हैं।
  • गलत विकल्प: वेबर ने ‘प्रोटेस्टेंट एथिक’ और ‘कैरिज़्मा’ पर काम किया। मार्क्स ने धर्म को ‘जनता के लिए अफीम’ कहा। सिमेल ने सामाजिक रूपों और अंतरंगता पर लिखा।

प्रश्न 12: ‘ज्ञान का समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) के क्षेत्र में काम करने वाले प्रमुख विचारक कौन हैं, जो यह अध्ययन करते हैं कि ज्ञान कैसे सामाजिक रूप से निर्मित होता है?

  1. हैबरमास और फोको
  2. पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन
  3. डारेंडोर्फ और कोलिन्स
  4. एंटनी गिडेंस और उलरिक बेक

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन अपनी पुस्तक ‘The Social Construction of Reality’ (1966) के लिए जाने जाते हैं, जिसने ज्ञान के समाजशास्त्र को गहराई से प्रभावित किया। उन्होंने तर्क दिया कि वास्तविकता सामाजिक रूप से निर्मित होती है, और ज्ञान सामाजिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से आकार लेता है।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने ‘बाह्यीकरण’ (Externalization), ‘वस्तुनिष्ठता’ (Objectivation) और ‘आत्मसात्करण’ (Internalization) की प्रक्रिया के माध्यम से सामाजिक वास्तविकता के निर्माण की व्याख्या की।
  • गलत विकल्प: हैबरमास (संचार क्रिया) और फोको (सत्ता और ज्ञान) ने अलग-अलग योगदान दिए। डारेंडोर्फ (संघर्ष सिद्धांत) और कोलिनस (संघर्ष सिद्धांत) प्रमुख रूप से सामाजिक स्तरीकरण और संघर्ष पर काम करते हैं। गिडेंस (संरचनाकरण) और बेक (जोखिम समाज) आधुनिकता और परिवर्तन के सिद्धांतों से जुड़े हैं।

प्रश्न 13: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, जो पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के तहत श्रमिकों द्वारा अनुभव की जाने वाली मनोवैज्ञानिक और सामाजिक विच्छिन्नता का वर्णन करती है, किस विचारक की है?

  1. मैक्स वेबर
  2. एमिल दुर्खीम
  3. कार्ल मार्क्स
  4. जॉर्ज सिमेल

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: कार्ल मार्क्स ने ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा को पूंजीवाद के विश्लेषण में केंद्रीय माना। उनके अनुसार, श्रमिक उत्पादन की प्रक्रिया से, उत्पाद से, अपने सह-श्रमिकों से और अंततः स्वयं से अलगाव महसूस करते हैं क्योंकि वे अपनी श्रम शक्ति को बेचते हैं और उत्पादन के साधनों पर उनका कोई नियंत्रण नहीं होता।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने ‘Economic and Philosophic Manuscripts of 1844’ में अलगाव के चार मुख्य रूपों का वर्णन किया: उत्पादन के उत्पाद से अलगाव, उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव, अपनी प्रजाति-प्रकृति (species-nature) से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव।
  • गलत विकल्प: वेबर ने ‘तर्कसंगति’ (Rationalization) और ‘नौकरशाही’ (Bureaucracy) के माध्यम से होने वाले अलगाव पर बात की, लेकिन मार्क्स का अलगाव का विश्लेषण अधिक मूलभूत और उत्पादन-केंद्रित था। दुर्खीम ने ‘अमीरी’ (Anomie) पर ध्यान केंद्रित किया। सिमेल ने आधुनिक जीवन की तीव्रता और व्यक्तिवाद पर लिखा।

प्रश्न 14: ‘सामूहिकता’ (Collectivism) और ‘व्यक्तिवाद’ (Individualism) के बीच अंतर, जो सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करते हैं, किस समाजशास्त्रीय प्रतिमान (Paradigm) का हिस्सा है?

  1. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
  2. संरचनात्मक कार्यात्मकता
  3. संघर्ष सिद्धांत
  4. सबके लिए प्रासंगिक

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: सामूहिकता और व्यक्तिवाद के बीच अंतर समाजशास्त्र के लगभग सभी प्रमुख प्रतिमानों में किसी न किसी रूप में चर्चा का विषय रहा है। उदाहरण के लिए, दुर्खीम ने सामूहिक चेतना (सामूहिकता का एक रूप) पर ज़ोर दिया, जबकि वेबर ने तर्कसंगतता और व्यक्ति पर ध्यान केंद्रित किया। संघर्ष सिद्धांत (जैसे मार्क्स) अक्सर सामूहिक हितों (वर्ग) पर केंद्रित होता है, जबकि प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तिगत अर्थों पर। इसलिए, यह किसी एक प्रतिमान का अनन्य हिस्सा नहीं है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह समाज को कैसे संगठित किया जाता है और व्यक्ति समाज में कैसे भूमिका निभाते हैं, इस पर विभिन्न दृष्टिकोणों को समझने के लिए एक मौलिक द्वंद्व है।
  • गलत विकल्प: उपरोक्त प्रतिमानों में से कोई भी इस द्वंद्व को पूरी तरह से अपने अधिकार क्षेत्र में नहीं रखता। यह एक अधिक सामान्य समाजशास्त्रीय अवधारणा है।

प्रश्न 15: निम्नलिखित में से कौन भारत में ‘अनुकूलित अनुकूलन’ (Adaptive Adaptation) के सिद्धांत से जुड़ा है, जो यह बताता है कि कैसे आदिवासी समूह मुख्यधारा की संस्कृति के साथ तालमेल बिठाते हैं?

  1. एन.के. बोस
  2. टी.बी. नायक
  3. सुरजीत सिन्हा
  4. कैथरीन लघरी

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: एन.के. बोस (Nirmal Kumar Bose) एक प्रमुख मानवविज्ञानी और समाजशास्त्री थे जिन्होंने भारतीय जनजातियों, विशेष रूप से पश्चिम बंगाल और ओडिशा की जनजातियों पर व्यापक शोध किया। उन्होंने ‘अनुकूलित अनुकूलन’ (Adaptive Adaptation) की अवधारणा का उपयोग यह समझाने के लिए किया कि कैसे आदिवासी समुदाय पर्यावरण और सामाजिक-आर्थिक परिवर्तनों के अनुसार अपनी जीवन शैली, प्रौद्योगिकियों और सामाजिक संरचनाओं को बदलते हैं ताकि जीवित रह सकें और विकसित हो सकें।
  • संदर्भ और विस्तार: बोस ने जनजातीय संस्कृतियों के अध्ययन में ‘समरूपीकरण’ (Homogenization) और ‘विभेदित एकीकरण’ (Differential Integration) जैसी अवधारणाओं का भी उपयोग किया।
  • गलत विकल्प: नायक, सिन्हा और लघरी ने भी आदिवासी अध्ययन पर महत्वपूर्ण कार्य किया है, लेकिन ‘अनुकूलित अनुकूलन’ की विशेष चर्चा और इसे भारतीय जनजातियों के संदर्भ में स्थापित करने का श्रेय मुख्य रूप से एन.के. बोस को जाता है।

प्रश्न 16: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जो किसी व्यक्ति या समूह की सामाजिक संबंधों, नेटवर्क और उनके साथ जुड़े लाभों से प्राप्त शक्ति को संदर्भित करती है, किसने लोकप्रिय की?

  1. जेम्स कोलमेन
  2. रॉबर्ट पुटनम
  3. पियरे बॉर्डियू
  4. सभी उपरोक्त

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को तीन प्रमुख समाजशास्त्रियों ने विकसित और लोकप्रिय बनाया: पियरे बॉर्डियू (Bourdieu), जेम्स कोलमेन (Coleman) और रॉबर्ट पुटनम (Putnam)। बॉर्डियू ने इसे पहले सामाजिक, सांस्कृतिक और प्रतीकात्मक पूंजी के हिस्से के रूप में सिद्धांतित किया। कोलमेन ने इसे अपने सबसे विस्तृत रूप में पेश किया, जिसमें सामाजिक संरचनाओं की ओर इशारा किया गया था जो व्यक्तियों को उनके सामाजिक नेटवर्क के माध्यम से लाभ प्राप्त करने में सक्षम बनाती हैं। पुटनम ने इसे नागरिक जुड़ाव, विश्वास और सामाजिक नेटवर्क के रूप में देखा जो समुदायों को मजबूत बनाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: तीनों ने सामाजिक पूंजी के विभिन्न पहलुओं पर ज़ोर दिया, लेकिन यह अवधारणा उनके कार्यों से गहराई से जुड़ी हुई है।
  • गलत विकल्प: क्योंकि तीनों ही इस अवधारणा के विकास में महत्वपूर्ण रहे हैं, इसलिए ‘सभी उपरोक्त’ सही उत्तर है।

प्रश्न 17: ‘अमीरी’ (Anomie) की स्थिति, जहाँ सामाजिक मानदंड (Norms) शिथिल हो जाते हैं या अनुपस्थित होते हैं, जिससे व्यक्तिगत संकट और विघटन होता है, मुख्य रूप से किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: एमिल दुर्खीम ने ‘अमीरी’ (Anomie) की अवधारणा को अपने सामाजिक सिद्धांत में केंद्रीय स्थान दिया। उन्होंने इसे विशेष रूप से श्रम विभाजन के तीव्र परिवर्तनों के कारण उत्पन्न होने वाली एक सामाजिक स्थिति के रूप में परिभाषित किया, जहाँ व्यक्ति के लक्ष्य और समाज के मानदंड के बीच एक विसंगति होती है, जिससे व्यक्ति को दिशाहीनता और लक्ष्यहीनता का अनुभव होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने ‘The Division of Labour in Society’ और ‘Suicide’ जैसी कृतियों में अमीरी का विश्लेषण किया। यह वह स्थिति है जब व्यक्ति अपने व्यवहार को निर्देशित करने के लिए कोई सामाजिक या नैतिक ढाँचा नहीं पाता।
  • गलत विकल्प: मार्क्स ने ‘अलगाव’ और ‘वर्ग संघर्ष’ पर ध्यान केंद्रित किया। वेबर ने ‘तर्कसंगति’ और ‘लोहा का पिंजरा’ (Iron Cage) जैसी अवधारणाएँ दीं। स्पेंसर ने ‘सामाजिक डार्विनवाद’ पर काम किया।

प्रश्न 18: ‘जीवन जगत’ (Lifeworld) और ‘तंत्र’ (System) के बीच द्वंद्व, जो आधुनिक समाज में अनुभव किए जाने वाले ‘सांस्कृतिक तर्कसंगतता’ (Cultural Rationality) के पतन की ओर इशारा करता है, किस विचारक का है?

  1. लुई अल्थुसर
  2. युरगेन हैबरमास
  3. मिशेल फोको
  4. जैक्स डेरिडा

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: युरगेन हैबरमास ने अपने सिद्धांत में ‘जीवन जगत’ (Lifeworld) और ‘तंत्र’ (System) के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर किया है। जीवन जगत व्यक्तिपरक अर्थों, सांस्कृतिक मूल्यों और संचार पर आधारित है, जबकि तंत्र (जैसे बाजार और नौकरशाही) वस्तुनिष्ठ, साधनात्मक तर्कसंगतता (Instrumental Rationality) पर आधारित है। उन्होंने तर्क दिया कि आधुनिक समाजों में तंत्र का जीवन जगत पर ‘औपनिवेशीकरण’ (Colonization of the Lifeworld) हो रहा है, जिससे अर्थ और स्वायत्तता का क्षरण हो रहा है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह विचार उनकी प्रमुख कृतियों जैसे ‘The Theory of Communicative Action’ में विस्तृत है।
  • गलत विकल्प: अल्थुसर (वैज्ञानिक समाजवाद), फोको (शक्ति, ज्ञान), और डेरिडा (विखंडन) के विचार उनके अपने विशिष्ट सैद्धांतिक ढाँचों में निहित हैं।

प्रश्न 19: भारतीय समाज में ‘जाति’ (Caste) की उत्पत्ति के संबंध में ‘पुरोहितीय’ (Priestly) सिद्धांत के प्रमुख प्रस्तावक कौन थे, जो वर्ण व्यवस्था को जाति का आधार मानते हैं?

  1. जे.एच. हट्टन
  2. जी.एस. घुरिये
  3. एन.के. दत्त
  4. ए.एल. बाशम

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: एन.के. दत्त (N.K. Dutta) अपनी पुस्तक ‘Origin of Caste’ में उन शुरुआती विद्वानों में से एक थे जिन्होंने ‘पुरोहितीय सिद्धांत’ (Priestly Theory) का समर्थन किया। इस सिद्धांत के अनुसार, ब्राह्मणों (पुरोहितों) ने अपनी शक्ति और विशेषाधिकार बनाए रखने के लिए जाति व्यवस्था का निर्माण किया, विशेष रूप से धार्मिक अनुष्ठानों और पवित्र ज्ञान पर अपना एकाधिकार स्थापित करके।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत ऋग्वेद में वर्णित वर्ण व्यवस्था (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) के धार्मिक और पदानुक्रमित आधार पर ज़ोर देता है।
  • गलत विकल्प: हट्टन ने ‘जाति में एक अध्ययन’ लिखा, घुरिये ने जाति के कई लक्षण बताए, और बाशम ने भारतीय समाज और धर्म पर लिखा, लेकिन पुरोहितीय सिद्धांत के प्रमुख प्रतिपादकों में दत्त का नाम लिया जाता है।

प्रश्न 20: ‘मांग-आपूर्ति’ (Demand-Supply) का आर्थिक सिद्धांत, जो यह निर्धारित करता है कि सामाजिक संस्थाओं और संरचनाओं को भी ऐसे ही तर्क से संचालित होना चाहिए, किस समाजशास्त्री के ‘तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत’ (Rational Choice Theory) से अप्रत्यक्ष रूप से जुड़ा है?

  1. जेम्स एस. कोलमेन
  2. गैरी बेकर
  3. जॉर्ज होमन्स
  4. मैक्स वेबर

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: मैक्स वेबर ने ‘तर्कसंगतता’ (Rationality) को आधुनिक समाज की एक प्रमुख विशेषता के रूप में पहचाना। यद्यपि उन्होंने प्रत्यक्ष रूप से ‘तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत’ (Rational Choice Theory) नहीं दिया, लेकिन उनके कार्य, विशेष रूप से ‘क्रिया के प्रकार’ (Types of Social Action) में ‘साधनात्मक-तर्कसंगत क्रिया’ (Instrumentally Rational Action) का वर्णन, यह दर्शाता है कि व्यक्ति लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए सबसे कुशल साधनों का चयन करते हैं, जो आर्थिक सिद्धांतों की तरह ही है। बाद के सिद्धांतकारों जैसे कोलमेन और बेकर ने इसे प्रत्यक्ष रूप से सामाजिक व्यवहार पर लागू किया।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर का तर्क था कि नौकरशाही (Bureaucracy) भी साधनात्मक-तर्कसंगतता का एक रूप है।
  • गलत विकल्प: कोलमेन, बेकर और होमन्स ने तर्कसंगत विकल्प सिद्धांत को प्रत्यक्ष रूप से विकसित किया, लेकिन वेबर का कार्य इस विचार की जड़ों को समझने में मदद करता है कि क्यों समाजशास्त्री इस सिद्धांत की ओर आकर्षित हुए। प्रश्न वेबर की ओर एक अप्रत्यक्ष जुड़ाव पूछ रहा है।

प्रश्न 21: ‘सांस्कृतिक पुनरुत्पादन’ (Cultural Reproduction) की अवधारणा, जो बताती है कि कैसे एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को सांस्कृतिक ज्ञान, मूल्य और मानदंड हस्तांतरित किए जाते हैं, मुख्यतः किस विद्वान से जुड़ी है?

  1. लुई अल्थुसर
  2. पियरे बॉर्डियू
  3. सिंथिया एफ. डेविस
  4. सैम नून \\ (Samir Nan)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: पियरे बॉर्डियू ने ‘सांस्कृतिक पुनरुत्पादन’ (Cultural Reproduction) की अवधारणा को सामाजिक असमानता के विश्लेषण में केंद्रीय माना। उन्होंने तर्क दिया कि स्कूल प्रणाली और अन्य सामाजिक संस्थाएँ केवल शैक्षणिक ज्ञान ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक पूंजी (Cultural Capital) का भी हस्तांतरण करती हैं, जो समाज में सामाजिक गतिशीलता को सीमित करता है और मौजूदा सामाजिक संरचनाओं को बनाए रखता है।
  • संदर्भ और विस्तार: बॉर्डियू के अनुसार, सांस्कृतिक पूंजी में भाषा, शिष्टाचार, कला की समझ, शिक्षा में महारत आदि शामिल हैं, जो अक्सर विशेषाधिकार प्राप्त वर्गों के पास अधिक होती है।
  • गलत विकल्प: अल्थुसर ने ‘विचारधारात्मक राज्य उपकरण’ (Ideological State Apparatuses) पर काम किया, जो सांस्कृतिक पुनरुत्पादन से संबंधित है लेकिन बॉर्डियू की अवधारणा से भिन्न है। डेविस और नून अन्य क्षेत्रों के विद्वान हैं।

प्रश्न 22: ‘अमीरी’ (Anomie) की व्याख्या करते हुए, दुर्खीम ने आत्महत्या के किन कारणों में इसका उल्लेख किया?

  1. अत्यधिक सामाजिक एकीकरण (Over-integration)
  2. अत्यधिक सामाजिक विनियमन (Over-regulation)
  3. सामाजिक मानदंडों का अभाव (Lack of social norms)
  4. अत्यधिक व्यक्तिगत स्वतंत्रता (Excessive individual freedom)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘Suicide’ में अमीरी (Anomie) को आत्महत्या के एक कारण के रूप में पहचाना। अमीरी की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब समाज के मानदंडों और मूल्यों की स्पष्टता या प्रभावशीलता कम हो जाती है, जिससे व्यक्ति के लिए अपने लक्ष्यों को निर्धारित करना या प्राप्त करना कठिन हो जाता है। यह सामाजिक नियंत्रण और मार्गदर्शन की कमी की ओर ले जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: अमीरी की आत्महत्या (Anomic Suicide) तब होती है जब आर्थिक या सामाजिक परिवर्तन अचानक होते हैं, और लोग पुराने नियमों को खो देते हैं या नए नियमों को नहीं समझ पाते।
  • गलत विकल्प: (a) और (b) ‘अहंकारी’ (Egoistic) और ‘अति-एकीकृत’ (Altruistic) या ‘अति-विनियमित’ (Fatalistic) आत्महत्याओं से संबंधित हो सकते हैं, न कि अमीरी से। (d) ‘व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ स्वयं में अमीरी का कारण नहीं है, बल्कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता के साथ सामाजिक मार्गदर्शन का अभाव अमीरी को जन्म देता है।

प्रश्न 23: ‘समूह-इन’ (In-group) और ‘समूह-आउट’ (Out-group) की अवधारणा, जो सामाजिक पहचान और समूह संघर्ष के विश्लेषण में महत्वपूर्ण है, किसने दी?

  1. सोरोकिन
  2. वर्नर
  3. समर
  4. विलियम ग्राहम समनर

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: विलियम ग्राहम समनर (William Graham Sumner) ने अपनी पुस्तक ‘Folkways’ (1906) में ‘समूह-इन’ (In-group) और ‘समूह-आउट’ (Out-group) की अवधारणा प्रस्तुत की। इन-ग्रुप वह समूह होता है जिससे व्यक्ति संबंधित महसूस करता है और जिसकी वह सदस्यता लेता है, जबकि आउट-ग्रुप वह समूह होता है जिससे व्यक्ति स्वयं को अलग या विपरीत मानता है। यह अवधारणा सामाजिक संबंध, निष्ठा, पूर्वाग्रह और संघर्ष को समझने में सहायक है।
  • संदर्भ और विस्तार: समनर ने इन समूहों के बीच ‘हम’ (We) और ‘वे’ (They) की भावना के विकास पर भी प्रकाश डाला।
  • गलत विकल्प: सोरोकिन ने सामाजिक स्तरीकरण और संचलन पर काम किया। वर्नर (संभवतः वेबर का संदर्भ) ने तर्कसंगतता पर लिखा। अन्य नाम प्रासंगिक नहीं हैं।

प्रश्न 24: निम्नांकित में से कौन भारतीय समाज में ‘विवाह’ (Marriage) को केवल एक धार्मिक कृत्य (Religious Ceremony) न मानकर, बल्कि समाजशास्त्रीय और आर्थिक व्यवस्था के रूप में भी देखते हैं?

  1. इरावती कर्वे
  2. जी.एस. घुरिये
  3. एम.एन. श्रीनिवास
  4. सभी उपरोक्त

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: इरावती कर्वे, जी.एस. घुरिये और एम.एन. श्रीनिवास, सभी प्रमुख भारतीय समाजशास्त्रियों ने भारतीय समाज में विवाह के बहुआयामी स्वरूप को समझा। उन्होंने माना कि विवाह केवल दो व्यक्तियों का मिलन नहीं है, बल्कि यह वंशानुक्रम, संपत्ति का हस्तांतरण, सामाजिक स्थिति, नातेदारी व्यवस्था का विस्तार और धार्मिक अनुष्ठानों से जुड़ा एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थान है। वे सभी विवाह के सामाजिक, आर्थिक, और सांस्कृतिक आयामों पर ज़ोर देते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: इन विद्वानों के कार्यों ने भारतीय समाजशास्त्रीय अध्ययन को गहरा किया है, जिसमें विवाह की भूमिका को केवल धार्मिक क्रिया के रूप में सीमित नहीं किया गया है।
  • गलत विकल्प: उपरोक्त सभी विद्वानों ने विवाह को एक जटिल सामाजिक संस्था के रूप में देखा, जिसमें धार्मिक, सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक आयाम शामिल हैं।

प्रश्न 25: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) के अध्ययन में, ‘संसाधनों के असमान वितरण’ (Unequal Distribution of Resources) का विश्लेषण किस समाजशास्त्री के द्वंद्वात्मक दृष्टिकोण (Conflict Perspective) का मूल आधार है?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. मैक्स वेबर
  3. कार्ल मार्क्स
  4. ए.आर. रेडक्लिफ-ब्राउन

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही क्यों: कार्ल मार्क्स ने सामाजिक स्तरीकरण को मुख्य रूप से उत्पादन के साधनों के स्वामित्व के आधार पर वर्गों के बीच संघर्ष के रूप में देखा। उनके अनुसार, समाज को शासक वर्ग (जो उत्पादन के साधनों का मालिक है) और सर्वहारा वर्ग (जो अपनी श्रम शक्ति बेचता है) में विभाजित किया गया है, और इन वर्गों के बीच संसाधनों के असमान वितरण से ही वर्ग संघर्ष उत्पन्न होता है, जो सामाजिक परिवर्तन का मुख्य चालक है।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स का ‘द्वंद्वात्मक भौतिकवाद’ (Dialectical Materialism) यह मानता है कि समाज इतिहास में आर्थिक आधार और उत्पादन संबंधों में विरोधाभासों के माध्यम से विकसित होता है।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम ने सामाजिक स्तरीकरण को श्रम विभाजन और सामाजिक एकता के रूप में देखा। वेबर ने वर्ग, दर्जा (Status) और शक्ति (Party) को स्तरीकरण के तीन आयाम माना। रेडक्लिफ-ब्राउन एक संरचनात्मक-कार्यात्मकतावादी थे जिन्होंने सामाजिक संरचनाओं के कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया।

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