समाजशास्त्र की गहरी समझ: आज की विशेष प्रश्नोत्तरी
तैयारी के इस सफर में, संकल्प और अवधारणात्मक स्पष्टता ही आपके सबसे बड़े सहयोगी हैं। आइए, आज के इस दैनिक अभ्यास सत्र के साथ अपनी समाजशास्त्रीय समझ को और पैना करें। यह प्रश्नोत्तरी आपको विभिन्न महत्वपूर्ण सिद्धांतों, विचारकों और भारतीय समाज की बारीकियों में गहराई से उतरने का अवसर प्रदान करेगी। अपनी तैयारी को नई ऊंचाइयों पर ले जाने के लिए तैयार हो जाइए!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक संरचना’ के अपने सिद्धांत में, एमिली दुर्खीम ने किस तत्व को समाज का आधारभूत पहलू माना?
- व्यक्तिगत चेतना
- सामूहिक चेतना
- आर्थिक संबंध
- राजनीतिक सत्ता
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: एमिली दुर्खीम ने ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) को समाज का आधार माना। उनका मानना था कि यह समाज के सदस्यों की साझा मान्यताओं, मूल्यों और मनोवृत्तियों का योग है, जो समाज में एकता और सुसंगति बनाए रखती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के लिए, सामूहिक चेतना सामाजिक व्यवस्था की कुंजी है और यह व्यक्तिगत चेतनाओं से भिन्न होती है, यह अधिक व्यापक और शक्तिशाली होती है। उन्होंने इसे अपनी पुस्तक ‘समाज का विभाजन’ (The Division of Labour in Society) में विस्तार से समझाया।
- गलत विकल्प: व्यक्तिगत चेतना सामाजिक एकता का आधार नहीं है, बल्कि सामूहिक चेतना ही सदस्यों को बांधती है। आर्थिक संबंध और राजनीतिक सत्ता सामाजिक संरचना के महत्वपूर्ण पहलू हो सकते हैं, लेकिन दुर्खीम के अनुसार, सामाजिक संरचना का मूल तत्व सामूहिक चेतना है।
प्रश्न 2: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी समाज में वर्ग संघर्ष का मुख्य कारण क्या है?
- धर्म और नैतिकता में भिन्नता
- उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व का असमान वितरण
- राजनीतिक विचारधाराओं में अंतर
- सामाजिक स्तरीकरण की जटिल व्यवस्था
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद के सिद्धांत के अनुसार, पूंजीवादी समाज में वर्ग संघर्ष का मूल कारण उत्पादन के साधनों (भूमि, पूंजी, कारखाने आदि) पर स्वामित्व का असमान वितरण है। इससे बुर्जुआ (पूंजीपति वर्ग) और सर्वहारा (श्रमिक वर्ग) का जन्म होता है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने अपनी कृति ‘दास कैपिटल’ (Das Kapital) में विस्तार से बताया है कि कैसे बुर्जुआ वर्ग सर्वहारा वर्ग के श्रम का शोषण करके लाभ कमाता है, जिससे दोनों वर्गों के बीच अनिवार्य रूप से संघर्ष होता है।
- गलत विकल्प: धर्म, नैतिकता, राजनीतिक विचारधाराएं और सामाजिक स्तरीकरण वर्ग संघर्ष को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन मार्क्स के अनुसार, ये व्यक्तिगत कारण नहीं हैं, बल्कि उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व के असमान वितरण के परिणाम या गौण कारण हैं।
प्रश्न 3: मैक्स वेबर ने ‘प्रशासनिक संगठन’ के ऐसे आदर्श प्रकार का वर्णन किया है, जो तर्कसंगतता, पदानुक्रम और स्पष्ट नियमों पर आधारित है। इसे क्या कहा जाता है?
- विभिन्नता (Alienation)
- नौकरशाही (Bureaucracy)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- सशक्तिकरण (Empowerment)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: मैक्स वेबर ने ‘नौकरशाही’ (Bureaucracy) को आधुनिक संगठनों की एक आदर्श प्रकार की संरचना के रूप में परिभाषित किया। यह अत्यधिक तर्कसंगत, पदानुक्रमित, विशेषज्ञता-आधारित और लिखित नियमों द्वारा शासित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर के अनुसार, नौकरशाही दक्षता और निष्पक्षता को बढ़ावा देती है, लेकिन इसके अत्यधिक औपचारिकतावाद से ‘लौह पिंजरा’ (Iron Cage) जैसी स्थितियां भी उत्पन्न हो सकती हैं। उन्होंने अपनी कृति ‘अर्थव्यवस्था और समाज’ (Economy and Society) में इस पर विस्तार से लिखा है।
- गलत विकल्प: ‘विभिन्नता’ मार्क्सवादी अवधारणा है, ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ मीड और ब्लूमर से जुड़ा है, और ‘सशक्तिकरण’ एक समकालीन सामाजिक-राजनीतिक अवधारणा है, न कि वेबर द्वारा वर्णित प्रशासनिक संगठन का प्रकार।
प्रश्न 4: सामाजिक स्तरीकरण के किस सिद्धांत के अनुसार, समाज में असमानता व्यक्तियों को महत्वपूर्ण भूमिकाएँ निभाने के लिए प्रेरित करके समाज के लिए कार्यात्मक होती है?
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
- नव-मार्क्सवाद (Neo-Marxism)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) के अनुसार, डेविस और मूर जैसे समाजशास्त्रियों ने तर्क दिया कि सामाजिक स्तरीकरण समाज के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक है। यह सुनिश्चित करता है कि सबसे योग्य व्यक्ति सबसे महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्त हों, क्योंकि उन पदों पर पहुंचने के लिए अधिक प्रशिक्षण और प्रयास की आवश्यकता होती है, और इसलिए उन्हें अधिक पुरस्कार (जैसे उच्च आय, प्रतिष्ठा) मिलते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत समाज को एक जीवित जीव के रूप में देखता है, जहाँ प्रत्येक अंग (सामाजिक संस्था या संरचना) समाज को संतुलित रखने में योगदान देता है।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) और नव-मार्क्सवाद (Neo-Marxism) असमानता को शोषण और शक्ति के परिणाम के रूप में देखते हैं, न कि कार्यात्मक। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्ति-स्तरीय अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है।
प्रश्न 5: हर्बर्ट मीड द्वारा विकसित ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ का केंद्रीय विचार क्या है?
- समाज को बड़े पैमाने पर संरचनाओं के रूप में समझना
- प्रतीकों के माध्यम से होने वाली व्यक्तिगत अंतःक्रियाओं पर जोर देना
- समाज में शक्ति संबंधों का विश्लेषण करना
- सामाजिक परिवर्तन के कारणों की व्याख्या करना
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) का मूल सिद्धांत यह है कि मनुष्य अपनी अंतःक्रियाओं में प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) का उपयोग करते हैं, और इन्हीं प्रतीकों के माध्यम से वे अर्थ निर्मित करते हैं और अपनी सामाजिक दुनिया को समझते हैं। यह दृष्टिकोण व्यक्ति-स्तरीय अंतःक्रियाओं और आत्म (self) के निर्माण पर केंद्रित है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड ने ‘मैं’ (I) और ‘मी’ (Me) की अवधारणा दी, जहाँ ‘मी’ सामाजिक अपेक्षाओं और अन्य लोगों के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है, और ‘मैं’ उस पर व्यक्ति की प्रतिक्रिया है। यह सिद्धांत ‘आत्म’ (self) के निर्माण की प्रक्रिया को सामाजिक बताता है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प क्रमशः प्रकार्यवाद, संघर्ष सिद्धांत और अन्य समाजशास्त्रीय दृष्टिकोणों के मुख्य विषय हैं, न कि प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के।
प्रश्न 6: भारत में जाति व्यवस्था के संदर्भ में, ‘अंतर-भोजन’ (Inter-dining) से क्या तात्पर्य है?
- विभिन्न जातियों के लोगों द्वारा एक साथ भोजन करना
- समान जाति के सदस्यों द्वारा एक साथ भोजन करना
- किसी विशेष जाति के सदस्यों द्वारा अनुष्ठानिक उपवास रखना
- विभिन्न जातियों के लोगों द्वारा पवित्र ग्रंथों का अध्ययन करना
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: भारत में जाति व्यवस्था के संदर्भ में, ‘अंतर-भोजन’ (Inter-dining) से तात्पर्य है कि विभिन्न जातियों के लोग एक साथ बैठकर भोजन करते हैं। परंपरागत रूप से, जातिगत नियमों के अनुसार, कुछ जातियों के लोग दूसरों के साथ भोजन करने से परहेज करते थे।
- संदर्भ और विस्तार: अंतर-भोजन की प्रथा का उल्लंघन पारंपरिक जातिगत शुद्धता और प्रदूषण की धारणाओं को चुनौती देता है। यह सामाजिक गतिशीलता और जातिगत बंधनों के कमजोर पड़ने का एक महत्वपूर्ण सूचक है।
- गलत विकल्प: समान जाति के साथ भोजन करना या अनुष्ठानिक उपवास रखना अंतर-भोजन के दायरे में नहीं आता। पवित्र ग्रंथों का अध्ययन जातिगत जुड़ाव से अधिक धार्मिक गतिविधि है।
प्रश्न 7: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज के संदर्भ में किस अवधारणा को विकसित किया, जो निम्न जाति या जनजाति द्वारा उच्च जाति की परंपराओं, रीति-रिवाजों और विश्वासों को अपनाने की प्रक्रिया को दर्शाती है?
- पश्चिमीकरण (Westernization)
- आधुनिकीकरण (Modernization)
- धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization)
- संस्कृतीकरण (Sanskritization)
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा प्रस्तुत की। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निम्न सामाजिक या जाति समूहों के लोग उच्च, विशेष रूप से द्विजा (Brahminical) जातियों की जीवन शैली, रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और विचारधाराओं को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने इस अवधारणा को अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में प्रतिपादित किया। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है, न कि संरचनात्मक गतिशीलता का।
- गलत विकल्प: पश्चिमीकरण पश्चिमी संस्कृति को अपनाने से संबंधित है, आधुनिकीकरण प्रौद्योगिकी और संस्थागत परिवर्तन से, और धर्मनिरपेक्षीकरण धर्म के प्रभाव में कमी से।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था समाज के सदस्यों के समाजीकरण (Socialization) और सांस्कृतिक हस्तांतरण के लिए प्राथमिक रूप से जिम्मेदार है?
- बाजार
- परिवार
- राजनीतिक दल
- न्यायपालिका
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: परिवार को समाज की प्राथमिक समाजीकरण संस्था माना जाता है। यह बच्चों को समाज के नियमों, मूल्यों, विश्वासों और व्यवहार के प्रतिमानों को सिखाता है, जिससे वे समाज के सदस्य बन पाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: परिवार प्रारंभिक वर्षों में बच्चे के व्यक्तित्व, भाषा और सामाजिक कौशल के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। बाद में, विद्यालय, मित्र समूह और मीडिया जैसी अन्य संस्थाएँ भी समाजीकरण में योगदान करती हैं।
- गलत विकल्प: बाजार, राजनीतिक दल और न्यायपालिका भी अप्रत्यक्ष रूप से समाजीकरण में भूमिका निभा सकते हैं, लेकिन परिवार की भूमिका प्रारंभिक और मौलिक होती है।
प्रश्न 9: एंथनी गिडेंस के ‘संरचनात्मकता’ (Structuration) सिद्धांत का मुख्य ध्यान किस पर है?
- समाज में शक्ति के वितरण का अध्ययन
- व्यक्तिगत व्यवहार के मनोवैज्ञानिक निर्धारकों का विश्लेषण
- संरचनाओं (Structures) और क्रियाओं (Agency) के बीच द्वंद्वात्मक संबंध
- सामाजिक परिवर्तन के कारणों की पहचान
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: एंथनी गिडेंस का ‘संरचनात्मकता’ (Structuration) सिद्धांत इस बात पर केंद्रित है कि सामाजिक संरचनाएं (जैसे नियम, संसाधन) किस प्रकार व्यक्तियों की क्रियाओं (agency) को संभव बनाती हैं और साथ ही उन्हें प्रभावित भी करती हैं, और कैसे व्यक्तियों की क्रियाएं इन संरचनाओं को पुन: उत्पन्न या रूपांतरित करती हैं। यह संरचना और क्रिया के बीच द्वंद्वात्मक (dialectical) संबंध पर जोर देता है।
- संदर्भ और विस्तार: गिडेंस का तर्क है कि सामाजिक व्यवस्था न तो पूरी तरह से संरचनाओं द्वारा निर्धारित होती है और न ही पूरी तरह से व्यक्तियों की स्वतंत्र क्रियाओं का परिणाम है, बल्कि इन दोनों के निरंतर अंतःक्रिया का उत्पाद है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प समाजशास्त्र के महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं, लेकिन गिडेंस के संरचनात्मकता सिद्धांत के मुख्य फोकस को सटीक रूप से व्यक्त नहीं करते।
प्रश्न 10: रॉबर्ट किंग मर्टन ने ‘विचलित व्यवहार’ (Deviant Behavior) के बारे में ‘सांस्कृतिक लक्ष्यों’ (Cultural Goals) और ‘संस्थागत साधनों’ (Institutionalized Means) के बीच विसंगति के आधार पर कौन सा सिद्धांत दिया?
- संघर्ष सिद्धांत
- अनात्मवाद (Anomie) का तनाव सिद्धांत
- नियंत्रण सिद्धांत (Control Theory)
- लेबलिंग सिद्धांत (Labeling Theory)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: रॉबर्ट किंग मर्टन ने ‘अनात्मवाद’ (Anomie) के तनाव सिद्धांत (Strain Theory) को विकसित किया। उनके अनुसार, जब समाज में स्वीकृत सांस्कृतिक लक्ष्य (जैसे आर्थिक सफलता) और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपलब्ध संस्थागत साधन (जैसे शिक्षा, रोजगार) के बीच एक विसंगति या तनाव उत्पन्न होता है, तो कुछ व्यक्ति विचलित व्यवहार अपनाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने इस सिद्धांत को अपनी पुस्तक ‘Social Theory and Social Structure’ में प्रस्तुत किया और विचलित व्यवहार के पांच प्रकार बताए: अनुरूपता (Conformity), नवाचार (Innovation), अनुष्ठानवाद (Ritualism), पलायनवाद (Retreatism) और विद्रोह (Rebellion)।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत वर्ग या शक्ति के आधार पर विचलन को देखता है, नियंत्रण सिद्धांत बाहरी नियंत्रण के कमजोर पड़ने को, और लेबलिंग सिद्धांत इस बात पर केंद्रित है कि समाज किसी को ‘विचलित’ के रूप में कैसे लेबल करता है।
प्रश्न 11: ग्रामीण समाजशास्त्र (Rural Sociology) के अध्ययन में, ‘समानता’ (Gemeinschaft) और ‘संबंधीता’ (Gesellschaft) की अवधारणाएं किसने प्रस्तुत कीं?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- फर्डिनेंड टोनीज
- इमाइल दुर्खीम
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: फर्डिनेंड टोनीज (Ferdinand Tönnies) ने जर्मन समाज में सामाजिक संबंधों के विकास को समझाने के लिए ‘समानता’ (Gemeinschaft – समुदाय) और ‘संबंधीता’ (Gesellschaft – समाज/संगठन) की अवधारणाएं प्रस्तुत कीं।
- संदर्भ और विस्तार: समानता छोटे, घनिष्ठ समुदायों का वर्णन करती है जहाँ संबंध व्यक्तिगत, भावनात्मक और पारंपरिक होते हैं (जैसे परिवार, गांव)। इसके विपरीत, संबंधीता बड़े, आधुनिक समाजों का प्रतिनिधित्व करती है जहाँ संबंध अवैयक्तिक, तर्कसंगत और स्वार्थी होते हैं (जैसे बड़े शहर, निगम)।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स वर्ग संघर्ष पर, मैक्स वेबर नौकरशाही और तर्कसंगतता पर, और इमाइल दुर्खीम सामाजिक एकता और अनात्मवाद पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
प्रश्न 12: भारत में ‘उत्तर-औपनिवेशिक सिद्धांत’ (Post-Colonial Theory) के संदर्भ में, ‘सांस्कृतिक वर्चस्व’ (Cultural Hegemony) की अवधारणा को किसने विकसित किया, जो उपनिवेशित समाजों पर औपनिवेशिक शक्ति के प्रभाव की व्याख्या करती है?
- एडवर्ड सईद
- होमी भाभा
- अमिताभ घोष
- ग्राम्शी (Antonio Gramsci)
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: ‘सांस्कृतिक वर्चस्व’ (Cultural Hegemony) की अवधारणा मूल रूप से इतालवी मार्क्सवादी विचारक एंटोनियो ग्राम्शी (Antonio Gramsci) द्वारा विकसित की गई थी। हालांकि, उत्तर-औपनिवेशिक सिद्धांतकारों जैसे एडवर्ड सईद और होमी भाभा ने इस अवधारणा का उपयोग उपनिवेशित समाजों में औपनिवेशिक शक्ति के सांस्कृतिक और वैचारिक नियंत्रण को समझाने के लिए किया। यह प्रश्न ग्राम्शी की मूल अवधारणा पर आधारित है।
- संदर्भ और विस्तार: ग्राम्शी ने तर्क दिया कि शासक वर्ग (Ruling Class) अपनी शक्ति को न केवल बल (coercion) से बनाए रखता है, बल्कि सहमति (consent) के निर्माण से भी, जिसके माध्यम से उनकी विचारधाराएं और मूल्य समाज में सामान्य और स्वाभाविक माने जाते हैं।
- गलत विकल्प: एडवर्ड सईद ने ‘ओरिएंटलिज्म’ (Orientalism) की अवधारणा दी, जो पश्चिमी दृष्टिकोण से ‘पूर्व’ (East) का चित्रण करती है। होमी भाभा ने ‘हाइब्रिडिटी’ (Hybridity) और ‘मिमिक्री’ (Mimicry) जैसी अवधारणाएं दीं। अमिताभ घोष एक लेखक हैं।
प्रश्न 13: सामाजिक अनुसंधान में ‘गुणात्मक अनुसंधान’ (Qualitative Research) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- बड़ी आबादी के बारे में सांख्यिकीय रूप से महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकालना
- सामाजिक घटनाओं के पीछे के गहरे अर्थों, अनुभवों और संदर्भों को समझना
- कारण और प्रभाव संबंधों को स्थापित करने के लिए चर (variables) को मापना
- शोध निष्कर्षों की सामान्यीकरण (generalizability) सुनिश्चित करना
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: गुणात्मक अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य सामाजिक घटनाओं की जटिलता, गहराई और संदर्भों को समझना होता है। यह लोगों के अनुभवों, दृष्टिकोणों, विश्वासों और व्यवहारों के पीछे के अर्थों को जानने पर केंद्रित है, अक्सर साक्षात्कार, अवलोकन और केस स्टडी जैसी विधियों का उपयोग करके।
- संदर्भ और विस्तार: इसका लक्ष्य ‘क्यों’ और ‘कैसे’ का पता लगाना है, न कि केवल ‘कितना’ या ‘क्या’। यह खोजपूर्ण (exploratory) प्रकृति का होता है।
- गलत विकल्प: सांख्यिकीय निष्कर्ष, चर मापन और सामान्यीकरण मुख्य रूप से मात्रात्मक अनुसंधान (Quantitative Research) की विशेषताएं हैं।
प्रश्न 14: ‘औद्योगीकरण’ (Industrialization) के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में निम्नलिखित में से कौन सा महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन देखा गया?
- संयुक्त परिवार प्रणाली का मजबूत होना
- जाति व्यवस्था का और अधिक दृढ़ होना
- शहरीकरण और नगरीय जीवन शैली का प्रसार
- पारंपरिक ग्राम पंचायत व्यवस्था का पुनरुद्धार
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
प्रश्न 15: ‘पारिवारिक हिंसा’ (Domestic Violence) के अध्ययन में, ‘पितृसत्ता’ (Patriarchy) की अवधारणा का क्या महत्व है?
- यह परिवार के मुखिया के प्रति सम्मान को दर्शाता है।
- यह समाज में पुरुषों के प्रभुत्व और महिलाओं पर उनके नियंत्रण को इंगित करता है, जो हिंसा का एक कारण हो सकता है।
- यह परिवार के भीतर सद्स्यों के बीच समानता पर जोर देता है।
- यह महिलाओं को पारिवारिक निर्णय लेने में सशक्त बनाता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: पितृसत्ता (Patriarchy) एक सामाजिक व्यवस्था है जहाँ पुरुष (विशेषकर बड़े पुरुष) शक्ति और अधिकार के प्रमुख होते हैं, और संपत्ति का वंशानुक्रम मुख्य रूप से पिता से पुत्र की ओर होता है। पारिवारिक हिंसा के अध्ययन में, पितृसत्ता को अक्सर एक ऐसे ढांचे के रूप में देखा जाता है जो पुरुषों को महिलाओं पर प्रभुत्व और नियंत्रण रखने की अनुमति देता है, जिससे हिंसा की संभावना बढ़ जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा समझाती है कि कैसे सामाजिक संरचनाएं लिंग आधारित असमानताओं को बढ़ावा देती हैं, जो घरेलू हिंसा जैसे सामाजिक मुद्दों को जन्म दे सकती हैं।
- गलत विकल्प: यह सम्मान, समानता या सशक्तिकरण को नहीं, बल्कि पुरुषों के वर्चस्व को इंगित करता है।
प्रश्न 16: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो सामाजिक परिवर्तन के विश्लेषण में प्रयुक्त होती है, किसने प्रस्तुत की?
- विलियम एफ. ओगबर्न
- एल्बिन टॉफलर
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- हर्बर्ट स्पेंसर
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: विलियम एफ. ओगबर्न (William F. Ogburn) ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा दी। उनका तर्क था कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक संस्थाएं, मूल्य, कानून) की तुलना में तेजी से बदलती है, जिससे इन दोनों के बीच एक अंतर या विलंब उत्पन्न होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह विलंब सामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकता है क्योंकि समाज नई तकनीकों के लिए अनुकूलित होने के लिए अपनी संस्थाओं और मूल्यों को बदलने के लिए संघर्ष करता है।
- गलत विकल्प: एल्बिन टॉफलर ‘फ्यूचर शॉक’ (Future Shock) के लिए जाने जाते हैं। मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से संबंधित हैं, और स्पेंसर विकासवाद के लिए।
प्रश्न 17: भारत में ‘धार्मिक अल्पसंख्यकों’ (Religious Minorities) से संबंधित मुद्दों का अध्ययन करते समय, ‘सांप्रदायिकता’ (Communalism) की अवधारणा किस प्रकार प्रासंगिक हो जाती है?
- यह विभिन्न धार्मिक समुदायों के बीच सद्भाव को बढ़ावा देती है।
- यह किसी विशेष धर्म के प्रति अत्यधिक भक्ति को दर्शाती है।
- यह किसी एक धार्मिक समूह द्वारा दूसरे पर अपने सांस्कृतिक और राजनीतिक प्रभुत्व को स्थापित करने का प्रयास है, जो अक्सर संघर्ष को जन्म देता है।
- यह धर्मनिरपेक्ष राज्य की स्थापना का एक रूप है।
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: भारत जैसे बहुधार्मिक समाज में, ‘सांप्रदायिकता’ (Communalism) का अर्थ है अपने धार्मिक समूह के प्रति अत्यधिक निष्ठा और अन्य धार्मिक समूहों के प्रति शत्रुता या अलगाव की भावना। यह अक्सर राजनीतिक या आर्थिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है, जिससे धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ भेदभाव और संघर्ष होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा भारत में धार्मिक विविधता और संबंधित सामाजिक-राजनीतिक तनावों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: यह सद्भाव, सामान्य भक्ति या धर्मनिरपेक्षता को नहीं, बल्कि धार्मिक समूहों के बीच अलगाव और प्रभुत्व की राजनीति को दर्शाती है।
प्रश्न 18: ‘अनात्मवाद’ (Anomie) की अवधारणा, जिसका अर्थ है सामाजिक मानदंडों की अनुपस्थिति या क्षरण, किसके द्वारा सबसे प्रमुख रूप से विकसित की गई?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- इमाइल दुर्खीम
- जी.एच. मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: इमाइल दुर्खीम (Émile Durkheim) ने ‘अनात्मवाद’ (Anomie) की अवधारणा को विकसित किया। उनके अनुसार, यह एक ऐसी स्थिति है जहाँ समाज में सामाजिक मानदंड (norms) कमजोर पड़ जाते हैं या अनुपस्थित होते हैं, जिससे व्यक्ति दिशाहीन और अनियंत्रित महसूस करता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने आत्महत्या (suicide) के अध्ययन में इस अवधारणा का प्रयोग किया, यह बताते हुए कि जब व्यक्ति और समाज के बीच संबंध कमजोर पड़ जाते हैं, तो आत्महत्या की दर बढ़ जाती है। उन्होंने इसे अपनी पुस्तक ‘आत्महत्या’ (Suicide) में विस्तार से समझाया।
- गलत विकल्प: मार्क्स वर्ग संघर्ष, वेबर नौकरशाही, और मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से जुड़े हैं।
प्रश्न 19: सामाजिक अनुसंधान में ‘साक्षात्कार’ (Interview) विधि का मुख्य लाभ क्या है?
- यह बड़े नमूना आकार (sample size) के लिए उपयुक्त है।
- यह उत्तरदाताओं की प्रतिक्रियाओं में पूर्वाग्रह (bias) को कम करता है।
- यह शोधकर्ता को उत्तरदाताओं के दृष्टिकोण, भावनाओं और विचारों को गहराई से समझने का अवसर देता है।
- यह सर्वेक्षण की तुलना में अधिक वस्तुनिष्ठ (objective) डेटा प्रदान करता है।
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: साक्षात्कार विधि शोधकर्ता को उत्तरदाताओं से सीधे जुड़ने और उनके अनुभवों, दृष्टिकोणों, प्रेरणाओं और भावनाओं को विस्तार से समझने की अनुमति देती है। यह गहराई से जानकारी प्राप्त करने का एक प्रभावी तरीका है।
- संदर्भ और विस्तार: व्यक्तिगत साक्षात्कार में, शोधकर्ता अनुवर्ती प्रश्न पूछकर और गैर-मौखिक संकेतों को देखकर विषय की समझ को गहरा कर सकता है।
- गलत विकल्प: यह हमेशा बड़े नमूना आकार के लिए उपयुक्त नहीं होता, इसमें पूर्वाग्रह की संभावना हो सकती है, और यह सर्वेक्षणों की तुलना में कम वस्तुनिष्ठ हो सकता है यदि साक्षात्कार ठीक से संरचित न हो।
प्रश्न 20: ‘पारिवारिक संरचना’ (Family Structure) के संदर्भ में, ‘नातेदारी’ (Kinship) की प्रणाली में निम्नलिखित में से कौन सा तत्व महत्वपूर्ण है?
- केवल वैवाहिक संबंध
- जन्म और विवाह पर आधारित सामाजिक संबंध
- केवल आर्थिक लेन-देन
- केवल पड़ोस के संबंध
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: नातेदारी (Kinship) प्रणाली समाज द्वारा मान्यता प्राप्त जन्म (रक्त संबंध) और विवाह (वैवाहिक संबंध) पर आधारित संबंधों का एक समूह है। यह परिवार और समाज की संरचना का एक मूलभूत हिस्सा है।
- संदर्भ और विस्तार: नातेदारी नियम निर्धारित करते हैं कि लोग एक-दूसरे से कैसे संबंधित हैं, उनके क्या अधिकार और कर्तव्य हैं, और वे विवाह, वंशानुक्रम और सामाजिक सहायता के संबंध में कैसे व्यवहार करते हैं।
- गलत विकल्प: नातेदारी केवल वैवाहिक संबंधों, केवल आर्थिक लेन-देन या केवल पड़ोस के संबंधों तक सीमित नहीं है, बल्कि जन्म और विवाह से जुड़े व्यापक सामाजिक संबंधों को समाहित करती है।
प्रश्न 21: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का क्या अर्थ है?
- किसी व्यक्ति या समूह का समाज में अपनी स्थिति बदलना।
- समाज में व्यक्ति के व्यवहार में परिवर्तन।
- समाज में होने वाले सांस्कृतिक परिवर्तनों का अध्ययन।
- समाज में विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच संबंध।
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) से तात्पर्य किसी व्यक्ति या समूह का समाज के भीतर एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना है। यह ऊपर की ओर (ऊंची स्थिति में), नीचे की ओर (नीची स्थिति में) या क्षैतिज (समान स्तर पर) हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह किसी समाज की खुली या बंद प्रकृति को समझने में मदद करता है, यानी एक व्यक्ति कितनी आसानी से अपनी सामाजिक स्थिति बदल सकता है।
- गलत विकल्प: व्यवहार में परिवर्तन, सांस्कृतिक परिवर्तन या समूहों के बीच संबंध सामाजिक गतिशीलता के प्रत्यक्ष अर्थ नहीं हैं।
प्रश्न 22: भारत में ‘दलित साहित्य’ (Dalit Literature) किस सामाजिक परिवर्तन का प्रतिनिधित्व करता है?
- उच्च जातियों द्वारा दलितों के उत्थान का प्रयास।
- दलितों द्वारा अपनी पहचान, उत्पीड़न और संघर्ष की अभिव्यक्ति।
- ब्राह्मणवादी परंपराओं का पुनरुद्धार।
- भारत में पश्चिमी सांस्कृतिक प्रभाव का प्रसार।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: दलित साहित्य दलित समुदाय के सदस्यों द्वारा लिखा जाता है और यह उनकी पहचान, सदियों से चले आ रहे जातिगत उत्पीड़न, सामाजिक बहिष्कार और उनके द्वारा किए जा रहे मुक्ति और प्रतिरोध के संघर्षों की अभिव्यक्ति है।
- संदर्भ और विस्तार: यह साहित्य दलितों को अपनी आवाज देने और समाज में व्याप्त अन्याय के प्रति जागरूकता फैलाने का एक शक्तिशाली माध्यम है।
- गलत विकल्प: यह उच्च जातियों के प्रयास, ब्राह्मणवादी पुनरुद्धार या पश्चिमी प्रभाव से संबंधित नहीं है।
प्रश्न 23: ‘सार्वभौमिकता’ (Universalism) और ‘विशिष्टता’ (Particularism) के बीच का अंतर, जो समाजशास्त्रीय विश्लेषण में महत्वपूर्ण है, मुख्य रूप से किससे संबंधित है?
- आर्थिक वितरण की प्रणाली
- सामाजिक व्यवहार के मूल्यांकन के मानदंड
- धार्मिक अनुष्ठानों का प्रकार
- राजनीतिक शासन की विधि
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: सार्वभौमिकता (Universalism) और विशिष्टता (Particularism) सामाजिक व्यवहार के मूल्यांकन के मानदंड हैं। सार्वभौमिकता का अर्थ है कि व्यवहार का मूल्यांकन सामान्य, निष्पक्ष और सार्वभौमिक रूप से लागू होने वाले मानकों के आधार पर किया जाता है (जैसे आधुनिक समाजों में कानून)। विशिष्टता का अर्थ है कि व्यवहार का मूल्यांकन व्यक्तिगत संबंधों, व्यक्तिगत स्थिति या समूह की सदस्यता के आधार पर किया जाता है (जैसे पारंपरिक समाजों में परिवार या नातेदारी के संबंध)।
- संदर्भ और विस्तार: टैल्कॉट पार्सन्स ने इन्हें ‘पैटर्न वेरिएबल्स’ (Pattern Variables) के रूप में प्रस्तुत किया था, जो सामाजिक क्रियाओं के उन्मुखीकरण को समझने में मदद करते हैं।
- गलत विकल्प: यह सीधे तौर पर आर्थिक वितरण, धार्मिक अनुष्ठानों या राजनीतिक शासन से नहीं, बल्कि समाज में व्यवहार को कैसे मूल्यांकित और निर्देशित किया जाता है, इससे संबंधित है।
प्रश्न 24: ‘सामाजिक विघटन’ (Social Disorganization) की अवधारणा का उपयोग अक्सर किस प्रकार के समाज या समुदायों के अध्ययन में किया जाता है?
- समानता (Gemeinschaft) वाले समुदायों में
- अत्यधिक संगठित और पदानुक्रमित समाजों में
- तेजी से सामाजिक परिवर्तन या शहरीकरण से गुजर रहे क्षेत्रों में
- पारंपरिक और स्थिर समाजों में
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: सामाजिक विघटन (Social Disorganization) की अवधारणा का उपयोग अक्सर उन समाजों या समुदायों के अध्ययन में किया जाता है जो तीव्र सामाजिक परिवर्तन, औद्योगीकरण, शहरीकरण या अन्य अस्थिरताकारी ताकतों से गुजर रहे होते हैं। ऐसे में पारंपरिक सामाजिक नियंत्रण और एकता कमजोर पड़ जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: शिकागो स्कूल के समाजशास्त्रियों ने शहरी अपराधों का अध्ययन करते हुए इस अवधारणा का प्रयोग किया था, यह बताते हुए कि शहरी क्षेत्रों में सामाजिक संस्थाओं के कमजोर होने से अपराध दर बढ़ सकती है।
- गलत विकल्प: समानता वाले समुदाय, संगठित समाज या स्थिर समाज आमतौर पर विघटन की स्थिति में नहीं होते।
प्रश्न 25: ‘धर्मनिरपेक्षीकरण’ (Secularization) की प्रक्रिया से क्या तात्पर्य है?
- सभी धर्मों का एक ही सार्वभौमिक धर्म में विलय।
- समाज से धर्म का प्रभाव कम होना और सार्वजनिक जीवन में तर्कसंगत, गैर-धार्मिक संस्थाओं का बढ़ना।
- सभी समाजों द्वारा नास्तिकता को अपनाना।
- धार्मिक ग्रंथों की महत्ता का बढ़ना।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सटीकता: धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization) वह प्रक्रिया है जिसके तहत समाज के विभिन्न क्षेत्रों (जैसे राजनीति, शिक्षा, कानून) में धर्म का प्रभाव और प्रभुत्व कम होता जाता है, और तर्कसंगत, वैज्ञानिक और मानवीय दृष्टिकोणों का महत्व बढ़ता है।
- संदर्भ और विस्तार: इसका मतलब यह नहीं है कि धर्म समाप्त हो जाता है, बल्कि यह सार्वजनिक क्षेत्र से हटकर अधिक निजी क्षेत्र में चला जाता है।
- गलत विकल्प: यह धर्मों के विलय, नास्तिकता अपनाने या ग्रंथों की महत्ता बढ़ने से संबंधित नहीं है।