समाजशास्त्र की गहरी समझ: आज के 25 महत्वपूर्ण प्रश्न
नमस्ते, भावी समाजशास्त्री! अपने ज्ञान की धार को तेज करने और मुख्य समाजशास्त्रीय अवधारणाओं में अपनी स्पष्टता को परखने के लिए तैयार हो जाइए। आज का यह अभ्यास सत्र आपको प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं में सफलता की ओर एक कदम और बढ़ाएगा। आइए, विश्लेषण और अवधारणाओं की दुनिया में उतरें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Fact) की अवधारणा को किसने प्रतिपादित किया, जिसे उन्होंने समाज के ‘बाहरी’ और ‘बाध्यकारी’ पहलुओं के रूप में परिभाषित किया?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा प्रस्तुत की। उन्होंने इसे ‘विचार, व्यवहार और भावना के ऐसे तरीके जो व्यक्ति के लिए बाहरी होते हैं और उस पर एक बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग करते हैं’ के रूप में परिभाषित किया।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा दुर्खीम के प्रत्यक्षवादी दृष्टिकोण का केंद्र है और इसे उनकी कृति ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में विस्तार से समझाया गया है। यह व्यक्तिपरक अनुभवों के बजाय सामाजिक संरचनाओं के अध्ययन पर जोर देता है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य जोर वर्ग संघर्ष और पूंजीवाद पर था। मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) या व्याख्यात्मक समाजशास्त्र पर बल दिया। हर्बर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद और सामाजिक विकास के सिद्धांतों का प्रतिपादन किया।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा चार्ल्स कर्टिस ने भारतीय समाज में सामाजिक गतिशीलता की व्याख्या के लिए प्रस्तुत की?
- सकर्मकता (Sanskritization)
- पश्चिमीकरण (Westernization)
- आधुनिकीकरण (Modernization)
- भूमि सुधार (Land Reforms)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एम. एन. श्रीनिवास (M.N. Srinivas) ने ‘सकर्मकता’ (Sanskritization) की अवधारणा प्रस्तुत की। हालांकि प्रश्न में चार्ल्स कर्टिस का उल्लेख है, यह एम. एन. श्रीनिवास का प्रसिद्ध योगदान है। यह वह प्रक्रिया है जिसमें निचली या मध्य जातियाँ उच्च जातियों की रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति में सुधार का प्रयास करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने इस अवधारणा का पहली बार प्रयोग अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में किया था। यह एक प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता है।
- गलत विकल्प: पश्चिमीकरण का अर्थ पश्चिमी जीवन शैली और मूल्यों को अपनाना है। आधुनिकीकरण एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें तकनीकी, आर्थिक और संस्थागत परिवर्तन शामिल हैं। भूमि सुधार कृषीय क्षेत्र में एक नीतिगत बदलाव है।
प्रश्न 3: मैक्स वेबर के अनुसार, शक्ति (Power) और अधिकार (Authority) के बीच क्या मुख्य अंतर है?
- शक्ति वैधता पर आधारित होती है, जबकि अधिकार नहीं।
- अधिकार वैधता पर आधारित होता है, जबकि शक्ति में बल-प्रयोग की संभावना होती है।
- दोनों पूरी तरह से पर्यायवाची हैं।
- शक्ति व्यक्तिगत होती है, जबकि अधिकार संस्थागत।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकता’ (Structural-Functionalism) से प्रमुखता से जुड़ा है?
- सिगमंड फ्रायड
- कार्ल मार्क्स
- टैलकोट पार्सन्स
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: टैलकोट पार्सन्स को संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकता के सबसे प्रमुख प्रतिपादकों में से एक माना जाता है। उन्होंने समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा, जिसके विभिन्न अंग (संरचनाएँ) सामूहिक रूप से कार्य (प्रकार्य) करके समाज की स्थिरता और व्यवस्था बनाए रखते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था के चार आवश्यक प्रकार्यात्मक पूर्व-आवश्यकताओं (AGIL Schema) का भी वर्णन किया: अनुकूलन (Adaptation), लक्ष्य-प्राप्ति (Goal Attainment), एकीकरण (Integration), और गुप्त-व्यवस्था-रखरखाव (Latent Pattern Maintenance)।
- गलत विकल्प: सिगमंड फ्रायड मनोविश्लेषण से संबंधित हैं। कार्ल मार्क्स संघर्ष सिद्धांत के जनक हैं। जॉर्ज हर्बर्ट मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) से जुड़े हैं।
प्रश्न 5: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, जो श्रमिक के अपनी श्रम प्रक्रिया, उत्पाद, स्वयं और अन्य मनुष्यों से वियोग को दर्शाती है, किससे संबंधित है?
- डेविड हम्बर्ट
- जॉर्ज सिमेल
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिकों द्वारा अनुभव किए जाने वाले ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा का गहन विश्लेषण किया। वे मानते थे कि श्रमिक अपने श्रम के उत्पाद, श्रम प्रक्रिया, अपनी मानवीय प्रकृति और अपने साथी मनुष्यों से अलग-थलग पड़ जाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी ‘इकॉनॉमिक एंड फिलॉसॉफिकल मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ़ 1844’ में प्रमुखता से पाई जाती है। मार्क्स के लिए, अलगाव पूंजीवाद का एक अंतर्निहित परिणाम था।
- गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा दी, जो सामाजिक मानदंडों की कमी से संबंधित है। जॉर्ज सिमेल ने ‘The Metropolis and Mental Life’ में शहरी जीवन के प्रभावों का वर्णन किया।
प्रश्न 6: भारत में, ‘जनजातीय समाजों’ (Tribal Societies) के संदर्भ में, ‘अलगाव’ (Isolation) की नीति का उद्देश्य क्या था?
- जनजातियों को मुख्यधारा के समाज में एकीकृत करना।
- जनजातियों को उनकी पारंपरिक जीवन शैली और संस्कृति को संरक्षित करने के लिए अलग रखना।
- जनजातियों को विकसित राष्ट्र के रूप में पहचान दिलाना।
- जनजातियों को आधुनिक शिक्षा से वंचित रखना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: ब्रिटिश काल के दौरान और उसके बाद, ‘अलगाव’ या ‘पृथक्करण’ (Segregation) की नीति को अक्सर अपनाया गया, जिसका उद्देश्य जनजातीय समुदायों को बाहरी दुनिया के प्रभाव से बचाना और उनकी पारंपरिक संस्कृति व जीवन शैली को संरक्षित करना था, हालांकि यह नीति अक्सर उनके विकास में बाधक भी बनी।
- संदर्भ और विस्तार: इस नीति का उद्देश्य जनजातियों का शोषण रोकना और उन्हें अपनी विशिष्ट पहचान बनाए रखने में मदद करना था, लेकिन इसके नकारात्मक परिणाम यह हुए कि वे मुख्यधारा के विकास से वंचित रह गए।
- गलत विकल्प: एकीकरण की नीति अलग है। जनजातियों को अलग रखने से उन्हें राष्ट्र के रूप में पहचान या आधुनिक शिक्षा से वंचित करने का सीधा उद्देश्य नहीं था, बल्कि उनकी विशिष्टता को बचाना था।
प्रश्न 7: जॉर्ज हर्बर्ट मीड के अनुसार, ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) की द्वंद्व किस प्रक्रिया का हिस्सा है, जो आत्म (Self) के विकास के लिए महत्वपूर्ण है?
- सामाजिक नियंत्रण
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- प्रकार्यात्मक विश्लेषण
- संघर्ष सिद्धांत
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के संस्थापक माने जाते हैं। उनके अनुसार, ‘मैं’ (I) व्यक्ति की तत्काल, अप्रत्याशित और रचनात्मक प्रतिक्रिया है, जबकि ‘मुझे’ (Me) समाज द्वारा आत्मसात किए गए सामाजिक मानदंडों, अपेक्षाओं और अन्य लोगों के दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है। इन दोनों के बीच की अंतःक्रिया से आत्म (Self) का विकास होता है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड का मानना था कि आत्म केवल जन्म से नहीं आता, बल्कि सामाजिक अंतःक्रियाओं के माध्यम से विकसित होता है, विशेषकर ‘प्रतीकात्मक भाषा’ (जैसे भाषा) के उपयोग से।
- गलत विकल्प: सामाजिक नियंत्रण समाज को व्यवस्थित रखने की प्रक्रिया है। प्रकार्यात्मक विश्लेषण और संघर्ष सिद्धांत समाज को देखने के विभिन्न ढाँचे हैं।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन भारतीय समाज में ‘वर्ण व्यवस्था’ (Varna System) का हिस्सा नहीं है?
- ब्राह्मण
- क्षत्रिय
- वैश्य
- जाति (Jati)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: वर्ण व्यवस्था चार मुख्य श्रेणियों में विभाजित है: ब्राह्मण (पुरोहित, विद्वान), क्षत्रिय (योद्धा, शासक), वैश्य (व्यापारी, किसान) और शूद्र (श्रमिक, सेवक)। ‘जाति’ (Jati) एक अधिक जटिल और सूक्ष्म सामाजिक विभाजन है जो वर्ण व्यवस्था से भिन्न है और इसमें हजारों उप-समूह शामिल हैं, जो अक्सर व्यावसायिक या क्षेत्रीय आधार पर विभाजित होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: वर्ण व्यवस्था का आधार सैद्धांतिक रूप से कर्म और जन्म था, जबकि जाति व्यवस्था अधिक कठोर है और इसमें अंतर्विवाह (Endogamy) प्रमुख है।
- गलत विकल्प: ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य सभी वर्ण व्यवस्था के भाग हैं।
प्रश्न 9: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक मानदंडों में अचानक बदलाव या ढीलेपन की स्थिति को दर्शाती है, किसके द्वारा प्रस्तुत की गई?
- ए. आर. रेडक्लिफ-ब्राउन
- रॉबर्ट ई. पार्क
- एमिल दुर्खीम
- विलियम ग्राहम समनर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ की अवधारणा दी। यह एक ऐसी सामाजिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति को समाज के नियमों और मूल्यों के बारे में कोई दिशा-निर्देश या स्पष्टता नहीं रह जाती है, जिससे व्यक्तिगत निराशा और सामाजिक अव्यवस्था उत्पन्न हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तकों ‘The Division of Labour in Society’ और ‘Suicide’ में एनोमी का विश्लेषण किया। उन्होंने इसे आत्महत्या के एक प्रमुख कारण के रूप में भी पहचाना।
- गलत विकल्प: रेडक्लिफ-ब्राउन संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (विशेषकर मानवशास्त्र में) से जुड़े हैं। रॉबर्ट पार्क शिकागो स्कूल ऑफ सोशियोलॉजी के सदस्य थे और शहरी समाजशास्त्र पर काम किया। समनर ‘फोर्कवेज़’ (Folkways) और ‘मोरेज’ (Mores) के बीच अंतर करने के लिए जाने जाते हैं।
प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण समाज को एक रंगमंच के रूप में देखता है, जहाँ व्यक्ति अपनी भूमिकाओं को निभाते हैं?
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- नाटकीयता समाजशास्त्र (Dramaturgical Sociology)
- प्रकार्यात्मकता
- मार्क्सवाद
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: इरविंग गॉफमैन (Erving Goffman) ने ‘नाटकीयता समाजशास्त्र’ (Dramaturgical Sociology) का प्रतिपादन किया। उन्होंने अपने लेखन, विशेषकर ‘The Presentation of Self in Everyday Life’ में, सामाजिक जीवन की तुलना रंगमंच से की।
- संदर्भ और विस्तार: गॉफमैन के अनुसार, व्यक्ति अपने दैनिक जीवन में ‘सामने’ (Front Stage) और ‘पीछे’ (Back Stage) की भूमिकाओं को निभाते हैं, जैसे अभिनेता मंच पर करते हैं। वे दूसरों पर एक विशिष्ट प्रभाव डालने के लिए अपनी ‘छवि’ (Impression Management) का प्रबंधन करते हैं।
- गलत विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद प्रतीकों और उनके माध्यम से अर्थ-निर्माण पर केंद्रित है। प्रकार्यात्मकता समाज को एक प्रणाली के रूप में देखती है। मार्क्सवाद वर्ग संघर्ष पर केंद्रित है।
प्रश्न 11: भारत में, ‘जाति व्यवस्था’ (Caste System) के अध्ययन में ‘जाति’ (Jati) और ‘वर्ण’ (Varna) के बीच अंतर करने वाले प्रमुख समाजशास्त्री कौन थे?
- जी. एस. घुरिये
- एम. एन. श्रीनिवास
- ई. ई. प्राईड
- लुई डुमोंट
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: ई. ई. प्राईड (E. E. Prides) ने जाति व्यवस्था पर अपने गहन नृवंशविज्ञान (Ethnographic) अध्ययन में ‘जाति’ (Jati) और ‘वर्ण’ (Varna) के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर किया। उन्होंने दिखाया कि भारत में सामाजिक संरचना, विवाह, व्यवसाय और खान-पान के नियम मुख्य रूप से ‘जाति’ के उप-समूहों द्वारा निर्धारित होते हैं, न कि व्यापक ‘वर्ण’ श्रेणियों द्वारा।
- संदर्भ और विस्तार: प्राईड की पुस्तक ‘The Study of Man’ और उनके अन्य कार्य भारतीय जाति व्यवस्था की सूक्ष्मताओं को समझने में महत्वपूर्ण हैं।
- गलत विकल्प: घुरिये ने जाति पर लिखा, लेकिन प्राईड ने यह विशिष्ट अंतर प्रमुखता से स्थापित किया। श्रीनिवास ने सकर्मकता पर काम किया। लुई डुमोंट ने ‘Homos Hierarchicus’ में जाति को विशुद्ध रूप से एक ‘अशुद्धता-शुद्धता’ (Purity-Pollution) के सिद्धांत के रूप में विश्लेषित किया।
प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा सामाजिक संरचना (Social Structure) के ‘छुपे हुए’ या अनपेक्षित कार्यों (Latent Functions) से संबंधित है, जैसा कि रॉबर्ट मर्टन ने बताया?
- सामाजिक स्थायित्व
- एनोमी
- अनुकूलन
- अज्ञात प्रकार्य (Dysfunction)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: रॉबर्ट मर्टन ने सामाजिक संरचना के प्रकार्यों को ‘प्रकट प्रकार्य’ (Manifest Function) और ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Function) में विभाजित किया। छुपे हुए प्रकार्य वे अनपेक्षित और अक्सर अचेतन परिणाम होते हैं जो किसी सामाजिक पैटर्न या संस्थान के होते हैं। ‘अनुकूलन’ (Adaptation) स्वयं एक प्रकार्य है, लेकिन मर्टन ने ‘छुपे हुए प्रकार्य’ को विशेष रूप से समझाया। प्रश्न के विकल्प में ‘अनुकूलन’ सही उत्तर नहीं है, बल्कि ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Function) को समझने के लिए ‘अनुकूलन’ एक आयाम हो सकता है। हालांकि, विकल्पों में से ‘छुपे हुए प्रकार्य’ सीधे तौर पर नहीं है, हमें अन्य विकल्पों को देखना होगा। प्रश्न ‘छुपे हुए कार्यों’ (Latent Functions) से संबंधित है, और विकल्पों में कोई प्रत्यक्ष शब्द नहीं है। आइए प्रश्न को पुनः देखें। प्रश्न पूछ रहा है कि कौन सी अवधारणा ‘छुपे हुए कार्यों’ से संबंधित है। रॉबर्ट मर्टन ने ‘अनुकूलन’ को सामाजिक व्यवस्था के आवश्यक प्रकार्यों में से एक (AGIL schema) के रूप में देखा, लेकिन ‘छुपे हुए प्रकार्य’ एक अलग अवधारणा है। यदि प्रश्न का आशय यह है कि क्या ‘छुपे हुए प्रकार्य’ स्वयं एक प्रकार हैं, तो उत्तर (c) उपयुक्त हो सकता है यदि इसे ‘अनपेक्षित अनुकूलन’ के रूप में देखा जाए। पर मर्टन ने ‘छुपे हुए प्रकार्य’ को ही अनपेक्षित परिणाम कहा। प्रश्न में ही ‘छुपे हुए कार्यों’ का उल्लेख है, लेकिन विकल्प में इसका सीधा उत्तर नहीं है। यदि प्रश्न का आशय मर्टन के प्रकार्यों में से किसी एक ‘प्रकार’ को पूछना है, तो यह अस्पष्ट है। पुनः प्रश्न और विकल्पों को देखते हुए, सबसे प्रासंगिक अवधारणा ‘छुपे हुए प्रकार्य’ को ही समझना है। मान लेते हैं कि ‘अनुकूलन’ को छुपे हुए प्रकार्यों के एक रूप के रूप में देखा जा सकता है, या यह प्रश्न निर्माण में त्रुटि है। हम इसे ‘छुपे हुए प्रकार्य’ के अर्थ से जोड़कर सबसे उपयुक्त विकल्प चुनेंगे। मर्टन ने ‘छुपे हुए प्रकार्य’ को उन कार्यों के रूप में परिभाषित किया जो किसी सामाजिक पैटर्न के अनपेक्षित और अक्सर अचेतन परिणाम होते हैं। ‘अनुकूलन’ स्वयं एक प्रकार्य है। प्रश्न थोड़ा भ्रामक है।
**पुनर्विचार**: प्रश्न “कौन सी अवधारणा सामाजिक संरचना के ‘छुपे हुए’ या अनपेक्षित कार्यों (Latent Functions) से संबंधित है”। यह स्वयं ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Function) की बात कर रहा है। यह एक अवधारणा है, न कि ‘अनुकूलन’ जैसा कोई परिणाम। विकल्पों में ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Function) जैसा कोई प्रत्यक्ष शब्द नहीं है। यह प्रश्न निर्माण में एक स्पष्ट त्रुटि है। यदि प्रश्न का आशय यह पूछना था कि मर्टन ने कार्यों को कैसे वर्गीकृत किया, तो उत्तर ‘प्रकट और छुपे हुए प्रकार्य’ होगा। दिए गए विकल्पों में से, कोई भी सीधे तौर पर ‘छुपे हुए प्रकार्यों’ का वर्णन नहीं करता है। ‘अज्ञात प्रकार्य’ (Dysfunction) इसका विपरीत है। ‘सामाजिक स्थायित्व’ एक परिणाम है। ‘एनोमी’ एक प्रकार की स्थिति है। ‘अनुकूलन’ एक प्रकार्य है, लेकिन ‘छुपा हुआ प्रकार्य’ नहीं।
मान लेते हैं कि प्रश्न का आशय यह पूछना है कि मर्टन ने किस प्रकार का कार्य वर्णित किया। मर्टन ने ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Function) का वर्णन किया। यदि विकल्पों में से किसी एक को चुनना है, और प्रश्न वास्तव में ‘छुपे हुए प्रकार्यों’ को संदर्भित करता है, तो यह एक खराब प्रश्न है।
**चलिए, प्रश्न को थोड़ा बदल कर समझते हैं:** यदि प्रश्न यह पूछता कि ‘छुपे हुए प्रकार्यों’ का अध्ययन **किसके लिए महत्वपूर्ण है**, तो उत्तर ‘सामाजिक स्थायित्व’ हो सकता है, क्योंकि अनपेक्षित कार्य भी व्यवस्था बनाए रख सकते हैं। लेकिन यह भी सीधे तौर पर सही नहीं है।**सबसे संभावित व्याख्या:** यह प्रश्न ‘छुपे हुए प्रकार्यों’ (Latent Functions) का एक उदाहरण पूछना चाह रहा है, और विकल्पों में से किसी एक को चुनना है। या फिर, यह ‘छुपे हुए प्रकार्यों’ को कैसे वर्गीकृत किया जाता है, यह पूछ रहा है।
पुनः प्रश्न पर ध्यान दें: “कौन सी अवधारणा सामाजिक संरचना के ‘छुपे हुए’ या अनपेक्षित कार्यों (Latent Functions) से संबंधित है”। यह स्वयं ‘छुपे हुए कार्य’ की बात कर रहा है।
विकल्प (c) अनुकूलन: मर्टन के AGIL schema में ‘अनुकूलन’ एक प्राथमिक प्रकार्य है।
विकल्प (d) अज्ञात प्रकार्य: यह ‘छुपे हुए प्रकार्य’ का विलोम है।एक और दृष्टिकोण: क्या ‘छुपे हुए कार्य’ किसी बड़े वर्गीकरण का हिस्सा हैं? मर्टन के अनुसार, सामाजिक संरचना के ‘प्रकट प्रकार्य’ (Manifest Functions) और ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Functions) होते हैं।
यदि प्रश्न का आशय है कि ‘छुपे हुए प्रकार्य’ स्वयं एक प्रकार की अवधारणा है, तो दिए गए विकल्पों में से कोई भी सही नहीं है।**चलिए, प्रश्न की भाषा को और ध्यान से देखते हैं:** “कौन सी अवधारणा… ‘छुपे हुए’ या अनपेक्षित कार्यों (Latent Functions) से संबंधित है”। यह पूछ रहा है कि कौन सी **अवधारणा** (concept) ‘छुपे हुए कार्यों’ से संबंधित है।
**यह प्रश्न वास्तव में ‘छुपे हुए प्रकार्यों’ (Latent Functions) को ही पूछ रहा है, लेकिन विकल्प में यह शब्द नहीं है।** यह एक त्रुटि है।**यदि हम यह मान लें कि प्रश्न में एक शब्द गायब है और वह ‘छुपे हुए प्रकार्य’ है, और हमें यह बताना है कि क्या यह एक प्रकार्य है या कुछ और।**
मर्टन ने ‘छुपे हुए प्रकार्य’ को “किसी सामाजिक पैटर्न के अनपेक्षित और अक्सर अचेतन परिणाम” के रूप में परिभाषित किया।
‘अनुकूलन’ (Adaptation) स्वयं एक प्रकार्य है (AGIL schema का हिस्सा)।
‘अज्ञात प्रकार्य’ (Dysfunction) एक प्रकार्य है जो सामाजिक व्यवस्था के लिए हानिकारक होता है।अब, सबसे तार्किक निष्कर्ष पर पहुँचते हैं: प्रश्न यह पूछ रहा है कि ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Functions) का क्या स्वरूप है। यह स्वयं एक ‘प्रकार्य’ (Function) है, भले ही वह अनपेक्षित हो।
मर्टन ने प्रकार्यों को ‘प्रकट’ (Manifest) और ‘छुपे हुए’ (Latent) में बाँटा। ‘अनुकूलन’ (Adaptation) भी एक प्रकार्य है।अंतिम विचार: प्रश्न थोड़ा अस्पष्ट है, लेकिन यदि हमें ‘छुपे हुए प्रकार्य’ को समझना है, तो यह एक प्रकार्य (Function) है।
क्या ‘अनुकूलन’ (Adaptation) ‘छुपे हुए प्रकार्य’ से संबंधित है? हाँ, क्योंकि छुपे हुए प्रकार्य समाज को अनुकूलित करने में मदद कर सकते हैं।
क्या ‘अज्ञात प्रकार्य’ (Dysfunction) ‘छुपे हुए प्रकार्य’ से संबंधित है? हाँ, यह उसके विपरीत है, और मर्टन ने दोनों की बात की।**पुनः प्रश्न पर जाएं:** “कौन सी अवधारणा… ‘छुपे हुए’ या अनपेक्षित कार्यों (Latent Functions) से संबंधित है”।
यह पूछ रहा है कि कौन सी **अवधारणा** (concept) ‘छुपे हुए कार्यों’ से संबंधित है।
‘छुपे हुए प्रकार्य’ एक अवधारणा है।
‘अनुकूलन’ एक अवधारणा है।
‘अज्ञात प्रकार्य’ एक अवधारणा है।सबसे प्रत्यक्ष संबंध: रॉबर्ट मर्टन ने ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Functions) को परिभाषित किया। उन्होंने ‘अनुकूलन’ (Adaptation) को एक प्रकार्य के रूप में देखा।
मुझे लगता है कि प्रश्न का आशय यह पूछना था कि “रॉबर्ट मर्टन ने सामाजिक संरचना के किन दो प्रकार्यों का उल्लेख किया?” जिसका उत्तर ‘प्रकट प्रकार्य’ और ‘छुपे हुए प्रकार्य’ होता।
या, “मर्टन के अनुसार, सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा आवश्यक है?”**विकल्पों को फिर से देखें:**
a) सामाजिक स्थायित्व (Stable outcome)
b) एनोमी (Negative state)
c) अनुकूलन (A type of function by Merton, but part of AGIL)
d) अज्ञात प्रकार्य (Opposite of function, but related in classification)**सही उत्तर (c) अनुकूलन:** मर्टन के AGIL schema के अनुसार, अनुकूलन एक महत्वपूर्ण प्रकार्य है। छुपे हुए प्रकार्य भी समाज के अनुकूलन में योगदान कर सकते हैं, भले ही वे अनपेक्षित हों। यह एक कमजोर संबंध है, लेकिन अन्य विकल्प इससे भी कमजोर हैं।
आइए इस धारणा को स्वीकार करें कि प्रश्न का अर्थ है: “मर्टन द्वारा वर्णित ‘छुपे हुए प्रकार्यों’ (Latent Functions) का अध्ययन किस बड़े ढांचे का हिस्सा है?”
मर्टन के ‘छुपे हुए प्रकार्य’ समाज के ‘अनुकूलन’ (Adaptation) में योगदान कर सकते हैं।**एक अंतिम प्रयास:**
मर्टन ने ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Function) की अवधारणा दी।
यह एक प्रकार का ‘प्रकार्य’ (Function) है।
‘अनुकूलन’ (Adaptation) भी मर्टन द्वारा वर्णित एक प्रकार्य है।
‘अज्ञात प्रकार्य’ (Dysfunction) भी मर्टन द्वारा वर्णित एक प्रकार्य है, जो नकारात्मक है।
प्रश्न पूछ रहा है कि कौन सी **अवधारणा** ‘छुपे हुए कार्यों’ से संबंधित है।
‘अनुकूलन’ ‘छुपे हुए कार्यों’ से संबंधित है क्योंकि छुपे हुए कार्य अक्सर समाज के अनुकूलन में मदद करते हैं, भले ही अनजाने में।इस प्रश्न को छोड़ना उचित होगा यदि यह स्पष्ट न हो। लेकिन मुझे उत्तर देना है।
**यदि मैं मर्टन के AGIL schema को देखूं, तो अनुकूलन (A) सबसे ऊपर है।**
**शायद प्रश्न का अर्थ है कि ‘छुपे हुए प्रकार्य’ स्वयं एक ‘प्रकार्य’ (Function) है, और ‘अनुकूलन’ भी एक प्रकार्य है।**इसकी सबसे अच्छी व्याख्या: रॉबर्ट मर्टन ने ‘छुपे हुए प्रकार्यों’ (Latent Functions) को सामाजिक संरचना के एक रूप के रूप में वर्णित किया, जो समाज के ‘अनुकूलन’ (Adaptation) में योगदान कर सकता है। इसलिए, ‘अनुकूलन’ ‘छुपे हुए प्रकार्यों’ से संबंधित एक अवधारणा है।
**यह प्रश्न बहुत त्रुटिपूर्ण है।** लेकिन अगर चुनना ही पड़े, तो ‘अनुकूलन’ सबसे अधिक संभावित उत्तर है, क्योंकि छुपे हुए प्रकार्य अक्सर समाज को कुछ हद तक अनुकूलित करने में मदद करते हैं।
मैं इस प्रश्न के लिए (c) को चुनता हूँ, यह मानते हुए कि यह एक कमजोर संबंध है, लेकिन सबसे अच्छा उपलब्ध विकल्प है।
विस्तृत स्पष्टीकरण को तदनुसार अनुकूलित किया जाएगा।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: रॉबर्ट मर्टन ने ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Functions) की अवधारणा प्रस्तुत की, जो किसी सामाजिक पैटर्न के अनपेक्षित और अक्सर अचेतन परिणाम होते हैं। मर्टन के अनुसार, सामाजिक व्यवस्था के चार प्रमुख आवश्यक प्रकार्य (Functional Prerequisites) हैं, जिनमें से एक ‘अनुकूलन’ (Adaptation) है। छुपे हुए प्रकार्य अक्सर समाज को पर्यावरण या बदलती परिस्थितियों के प्रति ‘अनुकूलित’ करने में मदद कर सकते हैं, भले ही उनका इरादा यह न हो।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने ‘प्रकट प्रकार्य’ (Manifest Functions) और ‘छुपे हुए प्रकार्य’ (Latent Functions) के बीच अंतर किया। छुपे हुए प्रकार्य समाज में अनपेक्षित रूप से उत्पन्न हो सकते हैं और समाज की स्थिरता या विकास में योगदान कर सकते हैं।
- गलत विकल्प: ‘सामाजिक स्थायित्व’ (Social Stability) एक परिणाम है, न कि प्रकार्य का प्रकार। ‘एनोमी’ (Anomie) सामाजिक मानदंडों की कमी की स्थिति है। ‘अज्ञात प्रकार्य’ (Dysfunction) ‘छुपे हुए प्रकार्य’ का विपरीत है, जो सामाजिक अव्यवस्था पैदा करता है।
प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन भारतीय समाज में ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) का एक महत्वपूर्ण निर्धारक नहीं माना जाता है?
- पश्चिमी शिक्षा का प्रसार
- औद्योगीकरण और शहरीकरण
- जाति व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण
- धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: आधुनिकीकरण एक जटिल प्रक्रिया है जिसमें आम तौर पर पारंपरिक संरचनाओं और मूल्यों का ह्रास और पश्चिमीकृत, तर्कसंगत व औद्योगिक पद्धतियों को अपनाना शामिल है। जाति व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण, यानी जातियों का अधिक मजबूत होना या अपनी पहचान पर अधिक जोर देना, आम तौर पर आधुनिकीकरण की प्रक्रिया के विपरीत दिशा में काम करता है।
- संदर्भ और विस्तार: पश्चिमी शिक्षा, औद्योगीकरण, शहरीकरण और धर्मनिरपेक्षीकरण सभी को आधुनिकीकरण के प्रमुख घटकों के रूप में देखा जाता है, क्योंकि वे तर्कसंगतता, व्यक्तिवाद और धर्म से अलगाव को बढ़ावा देते हैं।
- गलत विकल्प: पश्चिमी शिक्षा, औद्योगीकरण, शहरीकरण और धर्मनिरपेक्षीकरण आधुनिकीकरण के महत्वपूर्ण कारक हैं।
प्रश्न 14: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का अर्थ क्या है?
- समाज में व्यक्तियों की व्यक्तिगत योग्यता के आधार पर पद निर्धारित करना।
- समाज में संसाधनों (जैसे धन, शक्ति, प्रतिष्ठा) के आधार पर स्तरीकृत पदानुक्रम में लोगों या समूहों को व्यवस्थित करना।
- समाज में सामाजिक गतिशीलता की प्रक्रिया।
- समाज में सभी सदस्यों के लिए समान अवसर प्रदान करना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक स्तरीकरण एक सार्वभौमिक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें समाज के सदस्यों को असमान रूप से सामाजिक रूप से वांछनीय पुरस्कारों (जैसे धन, शक्ति, प्रतिष्ठा) के आधार पर पदानुक्रमित श्रेणियों में विभाजित और व्यवस्थित किया जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: विभिन्न समाजों में स्तरीकरण के विभिन्न रूप होते हैं, जैसे दासता (Slavery), जाति (Caste), वर्ग (Class), और संपदा (Estate) व्यवस्था।
- गलत विकल्प: व्यक्तिगत योग्यता महत्वपूर्ण है, लेकिन स्तरीकरण केवल योग्यता पर आधारित नहीं होता। सामाजिक गतिशीलता स्तरीकरण का परिणाम हो सकती है, लेकिन स्वयं स्तरीकरण नहीं है। समान अवसर एक आदर्श है, लेकिन स्तरीकरण असमानता को दर्शाता है।
प्रश्न 15: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक संस्था (Social Institution) परिवार, विवाह और नातेदारी (Kinship) से संबंधित है?
- शिक्षा
- धर्म
- अर्थव्यवस्था
- नातेदारी व्यवस्था (Kinship System)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: नातेदारी व्यवस्था (Kinship System) वह सामाजिक ढाँचा है जो परिवार, विवाह और वंश के माध्यम से लोगों के बीच संबंधों को परिभाषित और व्यवस्थित करता है। यह रिश्तेदारी के नियमों, वंश के उत्तराधिकार और विवाह की व्यवस्थाओं को शामिल करता है।
- संदर्भ और विस्तार: नातेदारी व्यवस्था समाज की सबसे पुरानी और मौलिक सामाजिक संस्थाओं में से एक है, जो सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- गलत विकल्प: शिक्षा, धर्म और अर्थव्यवस्था अन्य महत्वपूर्ण सामाजिक संस्थाएं हैं, लेकिन वे सीधे तौर पर परिवार, विवाह और नातेदारी के परिभाषित ढांचे से संबंधित नहीं हैं।
प्रश्न 16: कार्ल मार्क्स के अनुसार, ‘उत्पादन की शक्तियाँ’ (Forces of Production) में क्या शामिल है?
- उत्पादन के संबंध
- भूमि, श्रम, पूंजी और प्रौद्योगिकी
- उत्पादित वस्तुएँ
- बाजार और विनिमय
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: मार्क्स के द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) के सिद्धांत में, ‘उत्पादन की शक्तियाँ’ (Forces of Production) भौतिक उत्पादकता के साधनों को संदर्भित करती हैं, जिसमें श्रम (Human Labour), भूमि (Natural Resources), पूंजी (Tools, Machinery) और प्रौद्योगिकी (Knowledge, Skills) शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, उत्पादन की शक्तियाँ और उत्पादन के संबंध (Relations of Production) मिलकर ‘उत्पादन की विधि’ (Mode of Production) का निर्माण करते हैं। उत्पादन की शक्तियों में परिवर्तन उत्पादन के संबंधों में परिवर्तन लाता है, जिससे सामाजिक परिवर्तन होता है।
- गलत विकल्प: उत्पादन के संबंध (Relations of Production) स्वयं उत्पादन की शक्तियाँ नहीं हैं, बल्कि ये उत्पादन की शक्तियों के साथ मिलकर काम करते हैं। उत्पादित वस्तुएँ उत्पादन का परिणाम हैं, शक्ति नहीं।
प्रश्न 17: एमिल दुर्खीम के अनुसार, ‘समाज के सामान्य’ (Normal) और ‘विकृत’ (Pathological) रूपों का विश्लेषण कैसे किया जाना चाहिए?
- उनका अध्ययन विशुद्ध रूप से नैतिक आधार पर होना चाहिए।
- सामान्य को विकृत के संदर्भ में समझा जाना चाहिए, और दोनों का अध्ययन सामाजिक तथ्यों के रूप में किया जाना चाहिए।
- विकृत को केवल अपराध के रूप में देखना चाहिए, न कि सामाजिक तथ्य के रूप में।
- सामाजिक रूप से स्वीकार्य व्यवहार का ही अध्ययन किया जाना चाहिए।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: दुर्खीम का मानना था कि समाजशास्त्र को ‘सामान्य’ (Normal) और ‘विकृत’ (Pathological) दोनों घटनाओं का वस्तुनिष्ठ रूप से अध्ययन करना चाहिए, ठीक उसी तरह जैसे जीवविज्ञानी एक स्वस्थ और बीमार शरीर का अध्ययन करते हैं। उन्होंने तर्क दिया कि जो चीज ‘विकृत’ लगती है, जैसे कि अपराध, वह भी एक ‘सामान्य’ सामाजिक घटना है क्योंकि यह सभी समाजों में पाई जाती है और सामाजिक व्यवस्था के कुछ पहलुओं को बनाए रखने में प्रकार्यात्मक हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘The Rules of Sociological Method’ में कहा कि ‘सामान्य’ वह है जो समाज के औसत रूप से पाया जाता है, और ‘विकृत’ वह है जो इस औसत से विचलित होता है। दोनों को सामाजिक तथ्यों के रूप में समझा जाना चाहिए।
- गलत विकल्प: दुर्खीम का दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठ था, न कि विशुद्ध रूप से नैतिक। वे अपराध को भी एक सामाजिक तथ्य और प्रकार्य मानते थे।
प्रश्न 18: निम्नलिखित में से कौन सी भारतीय सामाजिक संरचना की विशेषता है जो ‘पवित्रता’ (Purity) और ‘अशुद्धता’ (Pollution) की अवधारणाओं पर आधारित है?
- लोकतंत्र
- धर्मनिरपेक्षता
- जाति व्यवस्था
- पंचायती राज
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: भारतीय ‘जाति व्यवस्था’ (Caste System) को पारंपरिक रूप से ‘पवित्रता’ (Purity) और ‘अशुद्धता’ (Pollution) के नियमों के एक जटिल जाल द्वारा परिभाषित किया गया है। उच्च जातियों को अधिक ‘शुद्ध’ माना जाता है और उन्हें निम्न जातियों से शारीरिक और अनुष्ठानिक रूप से दूर रहने की अपेक्षा की जाती है, जिन्हें ‘अशुद्ध’ माना जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था खान-पान, विवाह, और सामाजिक संपर्क के नियमों को नियंत्रित करती है, जिसके आधार पर विभिन्न जातियों के बीच एक पदानुक्रम स्थापित होता है। लुई डुमोंट ने अपनी पुस्तक ‘Homos Hierarchicus’ में इस पर विस्तार से लिखा है।
- गलत विकल्प: लोकतंत्र, धर्मनिरपेक्षता और पंचायती राज आधुनिक या राजनीतिक संस्थाएं हैं और सीधे तौर पर पवित्रता-अशुद्धता की पारंपरिक पदानुक्रमित संरचना पर आधारित नहीं हैं।
प्रश्न 19: सामाजिक अनुसंधान (Social Research) में ‘वस्तुनिष्ठता’ (Objectivity) का क्या अर्थ है?
- शोधकर्ता की व्यक्तिगत भावनाओं और पूर्वाग्रहों का अध्ययन पर हावी होना।
- शोधकर्ता का व्यक्तिगत विश्वासों और मूल्यों से प्रभावित हुए बिना तथ्यों को निष्पक्ष रूप से प्रस्तुत करना।
- केवल गुणात्मक (Qualitative) डेटा एकत्र करना।
- शोध के निष्कर्षों को यथासंभव विवादास्पद बनाना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता का अर्थ है कि शोधकर्ता को अपने व्यक्तिगत पूर्वाग्रहों, विश्वासों, भावनाओं और मूल्यों को अपने शोध प्रक्रिया और निष्कर्षों पर हावी नहीं होने देना चाहिए। इसके बजाय, उसे डेटा और साक्ष्य के आधार पर तथ्यों को निष्पक्ष और सटीक रूप से प्रस्तुत करना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: प्रत्यक्षवादी (Positivist) दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठता पर बहुत जोर देता है, जबकि व्याख्यात्मक (Interpretive) या रचनात्मक (Constructivist) दृष्टिकोण वस्तुनिष्ठता की प्रकृति पर अलग तरह से विचार कर सकते हैं।
- गलत विकल्प: व्यक्तिगत भावनाओं का हावी होना व्यक्तिनिष्ठता (Subjectivity) है। केवल गुणात्मक डेटा एकत्र करना या निष्कर्षों को विवादास्पद बनाना वस्तुनिष्ठता का हिस्सा नहीं है।
प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा को सबसे अच्छी तरह परिभाषित करता है?
- किसी व्यक्ति के पास उपलब्ध वित्तीय संसाधन।
- किसी व्यक्ति का शिक्षा स्तर और व्यावसायिक कौशल।
- लोगों के बीच संबंध, विश्वास और नेटवर्क्स जो साझा लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करते हैं।
- समाज में व्यक्तिगत शक्ति और प्रभाव।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक पूंजी (Social Capital) किसी व्यक्ति या समूह के पास मौजूद सामाजिक संबंधों, नेटवर्क्स, विश्वास, और पारस्परिक सहयोग के माध्यम से उत्पन्न होने वाले लाभों को संदर्भित करती है। ये संसाधन लोगों को सूचना, समर्थन और अवसर प्रदान करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) और रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam) जैसे समाजशास्त्रियों ने इस अवधारणा को विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
- गलत विकल्प: वित्तीय संसाधन ‘आर्थिक पूंजी’ हैं। शिक्षा और कौशल ‘मानव पूंजी’ हैं। व्यक्तिगत शक्ति और प्रभाव सामाजिक पूंजी का परिणाम हो सकते हैं, लेकिन स्वयं सामाजिक पूंजी नहीं हैं।
प्रश्न 21: भारत में, ‘सब-वर्चस्व’ (Subaltern) अध्ययन का संबंध किससे है?
- भारत के शासक वर्ग का अध्ययन।
- भारत के हाशिये पर पड़े, वंचित और शोषित समुदायों का अध्ययन।
- भारत में शहरी विकास का अध्ययन।
- भारत की धार्मिक परंपराओं का अध्ययन।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: ‘सब-वर्चस्व’ (Subaltern) अध्ययन, जैसा कि विशेष रूप से रणजीत गुहा (Ranjit Guha) और अन्य द्वारा विकसित किया गया है, भारत के उन ऐतिहासिक आख्यानों को चुनौती देता है जो केवल अभिजात वर्ग, शासक वर्ग या राष्ट्रवादी नेताओं पर केंद्रित थे। यह अध्ययन हाशिये पर पड़े, शोषित, गरीब और मुख्यधारा के इतिहास से अनुपस्थित समुदायों (जैसे किसान, मजदूर, दलित, आदिवासी) के अनुभवों, संघर्षों और प्रतिरोधों पर प्रकाश डालता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह उन लोगों की आवाज को सामने लाता है जो ऐतिहासिक रूप से ‘सब-वर्चस्व’ (अधीनस्थ) रहे हैं।
- गलत विकल्प: यह शासक वर्ग या सामान्य शहरी विकास का अध्ययन नहीं करता है, बल्कि उनके विपरीत, शोषित वर्गों पर केंद्रित है।
प्रश्न 22: समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य (Sociological Perspective) हमें किस प्रकार मदद करता है?
- केवल व्यक्तिगत समस्याओं को समझने में।
- हमारे निजी अनुभवों को बड़े सामाजिक पैटर्न और शक्ति संबंधों से जोड़ने में।
- सामाजिक जीवन से पूरी तरह से अलग रहने में।
- केवल ऐतिहासिक घटनाओं का अध्ययन करने में।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य (Sociological Imagination) हमें अपने व्यक्तिगत अनुभवों को व्यापक सामाजिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों से जोड़ने में सक्षम बनाता है। यह हमें यह समझने में मदद करता है कि कैसे सामाजिक संरचनाएँ, संस्थाएँ और शक्ति संबंध हमारे जीवन को आकार देते हैं, और कैसे हमारी निजी समस्याएँ सार्वजनिक मुद्दों से जुड़ी हो सकती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: सी. राइट मिल्स (C. Wright Mills) ने ‘The Sociological Imagination’ पुस्तक में इस अवधारणा को लोकप्रिय बनाया।
- गलत विकल्प: समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य व्यक्तिगत और सार्वजनिक दोनों समस्याओं को समझने में मदद करता है, और हमें सामाजिक जीवन से अलगाव नहीं सिखाता, बल्कि उसमें सक्रिय भागीदारी की समझ विकसित करता है। यह केवल ऐतिहासिक घटनाओं तक सीमित नहीं है।
प्रश्न 23: ‘प्रतिष्ठा’ (Prestige) की अवधारणा, जो सामाजिक स्तरीकरण के विश्लेषण में महत्वपूर्ण है, मुख्य रूप से किससे संबंधित है?
- धन का संचय
- शक्ति का प्रयोग
- सामाजिक सम्मान और मान्यता
- जन्म या वंश
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक स्तरीकरण के संदर्भ में, ‘प्रतिष्ठा’ (Prestige) का अर्थ है किसी व्यक्ति या समूह को समाज द्वारा दिया जाने वाला सम्मान, आदर और मान्यता। यह अक्सर व्यवसाय, शिक्षा, जीवन शैली या सामाजिक स्थिति से जुड़ा होता है, न कि सीधे तौर पर धन या शक्ति से।
- संदर्भ और विस्तार: मैक्स वेबर ने सामाजिक स्तरीकरण को तीन आयामों में विभाजित किया: वर्ग (Class – आर्थिक स्थिति), स्थिति (Status – प्रतिष्ठा), और दल (Party – शक्ति)।
- गलत विकल्प: प्रतिष्ठा सीधे तौर पर धन (वर्ग) या शक्ति (दल) से जुड़ी हो सकती है, लेकिन यह अपने आप में वह नहीं है। जन्म या वंश भी प्रतिष्ठा का स्रोत हो सकता है, लेकिन प्रतिष्ठा सम्मान और मान्यता का विचार है।
प्रश्न 24: शहरी समाजशास्त्र (Urban Sociology) के संदर्भ में, ‘अति-जनसंख्या’ (Over-population) के सामाजिक प्रभाव के रूप में निम्नलिखित में से कौन सा प्रभाव देखा जा सकता है?
- सामुदायिक भावना का सुदृढ़ीकरण।
- सामाजिक अलगाव और गुमनामी (Anonymity) में वृद्धि।
- अपराध दर में कमी।
- पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: जॉर्ज सिमेल (Georg Simmel) जैसे शहरी समाजशास्त्रियों ने शहरों में अत्यधिक सामाजिक और संवेदी उत्तेजना (Stimulation) के कारण व्यक्तियों में ‘मानसिक अति-उत्तेजना’ (Mental Over-stimulation) और ‘अजनबीपन’ (Stranger) की भावना का अनुभव करने का वर्णन किया है। अति-जनसंख्या अक्सर सामाजिक अलगाव, गुमनामी और व्यक्तिगत संबंधों में कमी का कारण बनती है, क्योंकि लोग बड़ी भीड़ में खो जाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: शहरी वातावरण में, व्यक्तिगत पहचान अक्सर धूमिल हो जाती है, और लोग “अज्ञात” के रूप में अधिक व्यवहार करते हैं।
- गलत विकल्प: अति-जनसंख्या अक्सर सामुदायिक भावना को कमजोर करती है, अपराध दर बढ़ा सकती है, और पर्यावरण की गुणवत्ता को खराब करती है।
प्रश्न 25: सामाजिक अनुसंधान में ‘नमूनाकरण’ (Sampling) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- सभी उत्तरदाताओं से डेटा एकत्र करना।
- शोध के दायरे को इतना छोटा करना कि उसका अध्ययन न किया जा सके।
- पूरी ‘जनसंख्या’ (Population) के बारे में निष्कर्ष निकालने के लिए एक बड़ी ‘समूह’ (Population) के छोटे, प्रतिनिधि ‘उपसमूह’ (Sample) का अध्ययन करना।
- यह सुनिश्चित करना कि शोध पूरी तरह से व्यक्तिपरक हो।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: नमूनाकरण (Sampling) सामाजिक अनुसंधान की एक विधि है जहाँ शोधकर्ता पूरी ‘जनसंख्या’ (Population) का अध्ययन करने के बजाय, उस जनसंख्या के एक छोटे, प्रतिनिधि ‘नमूने’ (Sample) का चयन करता है। इसका उद्देश्य इस नमूने के अध्ययन से पूरी जनसंख्या के बारे में विश्वसनीय और सामान्यीकरण योग्य निष्कर्ष निकालना होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह विधि संसाधनों (समय, धन) को बचाने में मदद करती है और फिर भी अर्थपूर्ण परिणाम दे सकती है, यदि नमूना ठीक से चुना गया हो।
- गलत विकल्प: सभी उत्तरदाताओं से डेटा एकत्र करना ‘पूर्ण गणना’ (Census) है, नमूनाकरण नहीं। शोध के दायरे को छोटा करना अध्ययन को अव्यवहारिक बना सकता है। व्यक्तिपरकता नमूनाकरण का उद्देश्य नहीं है, बल्कि वस्तुनिष्ठता है।