समाजशास्त्र की गहरी समझ: आज का विशेष अभ्यास
समाजशास्त्र के जटिल सिद्धांतों और विचारों की दुनिया में एक नया दिन, नई चुनौती! अपनी वैचारिक स्पष्टता को निखारने और विश्लेषणात्मक कौशल को धार देने के लिए तैयार हो जाइए। आज के इस विशेष अभ्यास सत्र में शामिल हों और समाज के विभिन्न पहलुओं पर अपनी महारत का प्रदर्शन करें।
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) की अवधारणा को निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्री ने केंद्रीय माना है?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- ताल्कोट पार्सन्स
- मैक्स वेबर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ताल्कोट पार्सन्स को सामाजिक संरचना के अपने व्यवस्थित और व्यापक सिद्धांत के लिए जाना जाता है। उन्होंने सामाजिक व्यवस्था को समझने के लिए सामाजिक संरचना को एक प्रमुख कारक माना।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने अपनी कृति “The Social System” (1951) में सामाजिक संरचना को एक मॉडल के रूप में प्रस्तुत किया, जिसमें सामाजिक क्रियाएँ (social actions) और उसके प्रतिमान (patterns) शामिल थे। उनके अनुसार, सामाजिक संरचना समाज की विभिन्न इकाइयों के बीच अपेक्षाकृत स्थायी संबंधों को संदर्भित करती है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स के लिए ‘वर्ग संघर्ष’ और ‘आर्थिक संरचना’ केंद्रीय थे। एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्य’ (social facts) और ‘सामूहिकता’ (collective consciousness) पर जोर दिया। मैक्स वेबर ने ‘सामाजिक क्रिया’ (social action) और उसके व्यक्तिपरक अर्थों (subjective meanings) पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 2: मैक्स वेबर के अनुसार, नौकरशाही (Bureaucracy) की निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता ‘तर्कसंगत-कानूनी अधिकार’ (Rational-Legal Authority) का आधार है?
- वंशानुगत पद
- व्यक्तिगत आकर्षण
- पदानुक्रमित संगठन और अलिखित नियम
- अलौकिक शक्ति
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: वेबर ने नौकरशाही को तर्कसंगत-कानूनी अधिकार के सबसे शुद्ध रूप के रूप में वर्णित किया। इसकी मुख्य विशेषता पदानुक्रमित संगठन, विशेषज्ञता, अलिखित नियम (लिखित नियम भी, लेकिन मुख्य जोर औपचारिकता पर है), और अवैयक्तिक संबंध हैं।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने तीन प्रकार के आदर्श अधिकार (ideal types of authority) बताए: पारंपरिक, करिश्माई और तर्कसंगत-कानूनी। आधुनिक राज्यों में तर्कसंगत-कानूनी अधिकार प्रबल होता है, जिसका आधार नियम और कानून होते हैं, न कि व्यक्ति।
- गलत विकल्प: ‘वंशानुगत पद’ पारंपरिक अधिकार से संबंधित है। ‘व्यक्तिगत आकर्षण’ करिश्माई अधिकार की विशेषता है। ‘अलौकिक शक्ति’ भी करिश्माई अधिकार का हिस्सा है।
प्रश्न 3: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवाद में ‘अलगाव’ (Alienation) की प्रक्रिया का क्या अर्थ है?
- श्रमिक का अपने उत्पाद से अलगाव
- श्रमिक का उत्पादन प्रक्रिया से अलगाव
- श्रमिक का अपनी मानव प्रकृति (Species-Being) से अलगाव
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था में श्रमिक के चार प्रकार के अलगाव का वर्णन किया है: अपने उत्पादन के उत्पाद से, उत्पादन प्रक्रिया से, अपनी मानव प्रकृति (species-being) से, और अन्य मनुष्यों से।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनके प्रारंभिक लेखन, विशेष रूप से “Economic and Philosophic Manuscripts of 1844” में प्रमुखता से पाई जाती है। मार्क्स का मानना था कि पूंजीवाद श्रमिक को उसकी रचनात्मकता और श्रम के फल से वंचित कर देता है।
- गलत विकल्प: सभी विकल्प अलगाव के मार्क्सवादी सिद्धांत के अभिन्न अंग हैं।
प्रश्न 4: एमिल दुर्खीम के अनुसार, ‘एमी’ (Anomie) की स्थिति का तात्पर्य है:
- समाज में अत्यधिक नियंत्रण
- सामाजिक मानदंडों और मूल्यों का विघटन
- व्यक्ति का अत्यधिक स्वतंत्रता
- सांस्कृतिक एकरूपता
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: दुर्खीम ने ‘एमी’ शब्द का प्रयोग उस स्थिति का वर्णन करने के लिए किया जहाँ समाज में सामान्य नियम या नैतिक मार्गदर्शन का अभाव होता है, जिससे व्यक्तियों में दिशाहीनता और अनिश्चितता की भावना पैदा होती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तकों “The Division of Labour in Society” और “Suicide” में इस अवधारणा का विस्तार से विश्लेषण किया। उनके अनुसार, सामाजिक परिवर्तन या संकट के समय में एमी की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- गलत विकल्प: ‘अत्यधिक नियंत्रण’ सामाजिक व्यवस्था को दर्शाता है, एमी को नहीं। ‘अत्यधिक स्वतंत्रता’ स्वयं एमी का कारण हो सकती है, लेकिन इसका अर्थ नहीं है। ‘सांस्कृतिक एकरूपता’ अक्सर सामाजिक सामंजस्य का प्रतीक होती है।
प्रश्न 5: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) द्वारा विकसित ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मुख्य केंद्रीय बिंदु क्या है?
- समाज की बड़े पैमाने की संरचनाएँ
- व्यक्तियों के बीच प्रतीकों के माध्यम से होने वाली अंतःक्रियाएँ
- शक्ति और प्रभुत्व के संबंध
- सामाजिक संस्थानों का कार्य
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मीड के अनुसार, समाज और स्वयं (self) का निर्माण व्यक्तियों के बीच भाषा, हाव-भाव और अन्य प्रतीकों के माध्यम से होने वाली अंतःक्रियाओं से होता है।
- संदर्भ और विस्तार: उनकी मरणोपरांत प्रकाशित पुस्तक “Mind, Self, and Society” (1934) इस सिद्धांत का आधार है। मीड ने ‘I’ (प्रतिक्रिया) और ‘Me’ (सामाजिकृत आत्म) के बीच द्वंद्व का भी वर्णन किया।
- गलत विकल्प: ‘बड़े पैमाने की संरचनाएँ’ प्रकार्यवाद (functionalism) और संघर्ष सिद्धांत (conflict theory) का मुख्य विषय हैं। ‘शक्ति और प्रभुत्व’ संघर्ष सिद्धांत से जुड़े हैं। ‘सामाजिक संस्थानों का कार्य’ प्रकार्यवाद का केंद्रीय विषय है।
प्रश्न 6: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा भारतीय समाज में किस प्रकार की गतिशीलता को दर्शाती है?
- राजनीतिक गतिशीलता
- आर्थिक गतिशीलता
- सांस्कृतिक और सामाजिक स्थिति की गतिशीलता
- शैक्षणिक गतिशीलता
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संस्किृतिकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निचली या मध्य जातियों के लोग उच्च, विशेष रूप से द्विज जातियों के अनुष्ठानों, प्रथाओं और जीवन शैली को अपनाते हैं, ताकि वे उच्च सामाजिक स्थिति प्राप्त कर सकें।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने इस शब्द का प्रयोग अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” (1952) में किया था। यह एक प्रकार की सांस्कृतिक और सामाजिक गतिशीलता है, जो सामाजिक व्यवस्था के भीतर ही होती है।
- गलत विकल्प: यह सीधे तौर पर राजनीतिक, आर्थिक या शैक्षणिक गतिशीलता से संबंधित नहीं है, हालांकि इन क्षेत्रों में प्रभाव हो सकता है।
प्रश्न 7: भारतीय समाज में ‘जजमानी प्रणाली’ (Jajmani System) का मुख्य कार्य क्या था?
- जातिगत भेदभाव को बढ़ावा देना
- पारस्परिक सेवा और वस्तु विनिमय पर आधारित ग्रामीण आर्थिक संबंध स्थापित करना
- औद्योगीकरण को प्रोत्साहित करना
- शहरीकरण की प्रक्रिया को तेज करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जजमानी प्रणाली एक पारंपरिक भारतीय सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था थी जिसमें विभिन्न जातियों के बीच सेवा और वस्तुओं का आदान-प्रदान पदानुक्रमित तरीके से होता था। ‘जजमान’ (संरक्षक) अपने ‘कमीन’ (सेवा प्रदाता) को सेवाएं प्रदान करने के बदले में निर्वाह और सुरक्षा प्रदान करता था।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रणाली ग्रामीण भारत में सामाजिक सामंजस्य और आर्थिक स्थिरता का आधार थी, हालांकि यह जातिगत असमानताओं को भी सुदृढ़ करती थी।
- गलत विकल्प: इसका मुख्य उद्देश्य भेदभाव बढ़ाना नहीं, बल्कि सेवा विनिमय के माध्यम से आर्थिक संतुलन बनाना था। यह औद्योगीकरण या शहरीकरण को प्रोत्साहित नहीं करती थी।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सी समाजशास्त्रीय पद्धति ‘सहानुभूतिपूर्ण समझ’ (Verstehen) पर जोर देती है?
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- प्रत्यक्षवाद (Positivism)
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- मार्क्सवाद
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘Verstehen’, एक जर्मन शब्द जिसका अर्थ है ‘समझना’, मैक्स वेबर द्वारा प्रतिपादित एक प्रमुख अवधारणा है। यह किसी व्यक्ति के सामाजिक क्रियाओं के पीछे के व्यक्तिपरक अर्थों और इरादों को समझने पर बल देता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद भी व्यक्तिपरक अर्थों और समझ पर केंद्रित है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर का मानना था कि सामाजिक विज्ञान को प्राकृतिक विज्ञान की तरह केवल बाहरी व्यवहार का अध्ययन नहीं करना चाहिए, बल्कि उन प्रेरणाओं को भी समझना चाहिए जो उस व्यवहार को संचालित करती हैं।
- गलत विकल्प: प्रत्यक्षवाद (दुर्खीम) वस्तुनिष्ठता और अनुभवजन्य साक्ष्य पर जोर देता है। संरचनात्मक प्रकार्यवाद (पार्सन्स) सामाजिक व्यवस्था और उसके कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है। मार्क्सवाद संघर्ष और भौतिक परिस्थितियों का विश्लेषण करता है।
प्रश्न 9: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का कौन सा सिद्धांत मानता है कि यह समाज के सभी सदस्यों के लिए फायदेमंद है क्योंकि यह योग्यता और कड़ी मेहनत को पुरस्कृत करता है?
- संघर्ष सिद्धांत
- प्रकार्यवादी सिद्धांत
- नारकीय सिद्धांत (Elite Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रकार्यवादियों, विशेष रूप से किंग्सले डेविस और विल्बर्ट मूर, ने तर्क दिया कि सामाजिक स्तरीकरण आवश्यक है क्योंकि यह समाज में सबसे महत्वपूर्ण पदों को सबसे योग्य व्यक्तियों से भरने के लिए एक प्रोत्साहन के रूप में कार्य करता है।
- संदर्भ और विस्तार: उनका “Some Principles of Stratification” (1945) लेख इस विचार को प्रस्तुत करता है कि उच्च पदों के लिए अधिक प्रशिक्षण और प्रतिभा की आवश्यकता होती है, और समाज उन्हें उच्च पुरस्कार (जैसे धन, प्रतिष्ठा) देकर प्रेरित करता है।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत इसे शोषण का एक साधन मानता है। नारकीय सिद्धांत उच्च वर्ग के प्रभुत्व की बात करता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तिगत स्तर पर स्तरीकरण के निर्माण पर ध्यान केंद्रित करता है।
प्रश्न 10: परिवार की संरचना को समझने के लिए ‘समरक्त समूह’ (Consanguineal Kin) और ‘विवाह समूह’ (Affinal Kin) के बीच अंतर कौन सी अवधारणा करती है?
- विस्तारित परिवार
- नातेदारी (Kinship)
- गोत्र (Clan)
- वंश (Lineage)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: नातेदारी (Kinship) समाजशास्त्रीय और मानवशास्त्रीय अध्ययन का वह क्षेत्र है जो रक्त संबंध (समरक्त) और विवाह संबंध (विवाह) के आधार पर स्थापित होने वाले संबंधों का विश्लेषण करता है।
- संदर्भ और विस्तार: मानवविज्ञानी जैसे लेवी-स्ट्रॉस ने नातेदारी व्यवस्थाओं का गहन अध्ययन किया है। समरक्त समूह वे होते हैं जिनसे हम जन्म से जुड़े होते हैं, जबकि विवाह समूह वे होते हैं जिनसे हम विवाह के माध्यम से जुड़ते हैं।
- गलत विकल्प: विस्तारित परिवार (Extended Family) परिवार की एक संरचना है। गोत्र और वंश (Lineage) नातेदारी के विशिष्ट प्रकार हैं, लेकिन नातेदारी स्वयं इन संबंधों का व्यापक अध्ययन है।
प्रश्न 11: रॉबर्ट मर्टन (Robert Merton) के अनुसार, समाज की मुख्यधारा के लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधनों को अस्वीकार करके, लेकिन लक्ष्यों को स्वीकार करके, व्यक्ति किस अनुकूलन (Adaptation) का प्रदर्शन करता है?
- अनुपालन (Conformity)
- नवाचार (Innovation)
- अनुष्ठानवाद (Ritualism)
- पलायनवाद (Retreatism)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मर्टन ने अपनी ‘तनाव सिद्धांत’ (Strain Theory) में इस प्रकार के अनुकूलन को ‘नवाचार’ कहा है। इसमें व्यक्ति समाज द्वारा निर्धारित लक्ष्यों को स्वीकार करता है, लेकिन उन्हें प्राप्त करने के लिए अनैतिक या अवैध साधनों का उपयोग करता है (जैसे, अपराध)।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन की पुस्तक “Social Theory and Social Structure” (1949) में यह सिद्धांत प्रस्तुत किया गया है। यह बताता है कि कैसे सामाजिक संरचना कुछ व्यक्तियों को अवैध साधनों का सहारा लेने के लिए प्रेरित कर सकती है।
- गलत विकल्प: अनुपालन लक्ष्यों और साधनों दोनों को स्वीकार करता है। अनुष्ठानवाद लक्ष्यों को अस्वीकार करके साधनों पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है। पलायनवाद लक्ष्यों और साधनों दोनों को अस्वीकार करता है।
प्रश्न 12: भारत में ‘संरक्षण’ (Reservation) की नीति के सामाजिक प्रभाव का अध्ययन करते समय, समाजशास्त्री मुख्य रूप से किस पर ध्यान केंद्रित करते हैं?
- जातिगत समीकरणों पर आरक्षण का प्रभाव
- आर्थिक विकास पर सकारात्मक प्रभाव
- अंतरराष्ट्रीय संबंधों पर प्रभाव
- राजनीतिक दलों के चुनावी लाभ
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारत में आरक्षण नीति का उद्भव ऐतिहासिक रूप से सामाजिक असमानता, विशेषकर जातिगत असमानता को दूर करने के उद्देश्य से हुआ है। इसलिए, समाजशास्त्री इसके जातिगत समीकरणों पर प्रभाव का गहन विश्लेषण करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह नीति सकारात्मक कार्रवाई (affirmative action) का एक रूप है जिसका उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से वंचित समूहों को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में अवसर प्रदान करना है।
- गलत विकल्प: जबकि आर्थिक विकास, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और राजनीतिक लाभ इसके परिणाम हो सकते हैं, समाजशास्त्रीय विश्लेषण का मूल विषय सामाजिक संरचना, समानता और जातिगत गतिशीलता पर इसका प्रभाव है।
प्रश्न 13: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा को किस समाजशास्त्री ने लोकप्रिय बनाया, जिसका अर्थ है सामाजिक नेटवर्क, जुड़ाव और विश्वास जो व्यक्तियों या समूहों को लाभ पहुंचाते हैं?
- पियरे बॉर्डियू
- जेम्स कॉलमैन
- रॉबर्ट पुटनम
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को कई समाजशास्त्रियों ने विकसित किया है। पियरे बॉर्डियू ने इसे सांस्कृतिक और आर्थिक पूंजी के साथ जोड़ा, जेम्स कॉलमैन ने इसे मानव पूंजी से जोड़ते हुए इसके कार्यों पर जोर दिया, और रॉबर्ट पुटनम ने नागरिक समाज और लोकतंत्र पर इसके प्रभाव का अध्ययन किया।
- संदर्भ और विस्तार: बॉर्डियू ने सामाजिक पूंजी को ‘संसाधनों तक पहुँचने की क्षमता के रूप में वर्णित किया है जो किसी के सामाजिक संबंधों के नेटवर्क से प्राप्त होता है’। कॉलमैन ने इसे ‘अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए उपयोग किए जा सकने वाले सामाजिक संगठनों की संरचना में निहित दायित्वों, संभावनाओं और सामाजिक बनावट’ के रूप में देखा। पुटनम ने ‘संघों में संलग्नता’ को इसका मुख्य स्रोत बताया।
- गलत विकल्प: तीनों विद्वानों ने इस अवधारणा में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
प्रश्न 14: भारत में ‘हरित क्रांति’ (Green Revolution) के सामाजिक प्रभावों में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल नहीं है?
- किसानों की आय में वृद्धि
- ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक असमानताओं में वृद्धि
- भूमिहीन मजदूरों की स्थिति में सुधार
- कृषि का व्यावसायीकरण
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: हरित क्रांति का उद्देश्य कृषि उत्पादन बढ़ाना था। इससे किसानों की आय में वृद्धि हुई और कृषि का व्यावसायीकरण हुआ। इसने बड़े किसानों और छोटे किसानों के बीच और साथ ही भूमि वाले और भूमिहीन मजदूरों के बीच असमानताओं को भी बढ़ाया। भूमिहीन मजदूरों की स्थिति में अक्सर सुधार नहीं हुआ, बल्कि कुछ मामलों में गिरावट आई क्योंकि मशीनीकरण बढ़ा और श्रम की आवश्यकता कम हुई।
- संदर्भ और विस्तार: हरित क्रांति मुख्य रूप से उत्तर भारत के पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में केंद्रित थी।
- गलत विकल्प: a, b, और d सभी हरित क्रांति के महत्वपूर्ण सामाजिक-आर्थिक प्रभाव थे।
प्रश्न 15: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो बताती है कि समाज के गैर-भौतिक तत्व (जैसे मानदंड, मूल्य) भौतिक तत्वों (जैसे प्रौद्योगिकी) की तुलना में धीमी गति से बदलते हैं, किसने प्रस्तुत की?
- विलियम एफ. ओगबर्न
- ए. एल. क्रोबर
- रॉबर्ट पार्क
- इमाइल दुर्खीम
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम एफ. ओगबर्न ने 1922 में अपनी पुस्तक “Social Change with Respect to Culture and Original Nature” में ‘सांस्कृतिक विलंब’ की अवधारणा विकसित की।
- संदर्भ और विस्तार: ओगबर्न के अनुसार, तकनीकी नवाचार और भौतिक संस्कृति में परिवर्तन अक्सर सामाजिक और गैर-भौतिक संस्कृति में परिवर्तन से आगे निकल जाते हैं, जिससे सामाजिक समायोजन की समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- गलत विकल्प: क्रोबर ने संस्कृति पर व्यापक काम किया, लेकिन यह विशेष अवधारणा ओगबर्न की है। पार्क शिकागो स्कूल के सदस्य थे और शहरी समाजशास्त्र में योगदान दिया। दुर्खीम ने सामाजिक एकता और तथ्यों पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 16: भारत में ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया पर समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से विचार करते समय, निम्नलिखित में से कौन सा एक मुख्य पहलू है?
- पारंपरिक संस्थाओं का सुदृढ़ीकरण
- धर्म की बढ़ती भूमिका
- तर्कसंगतता, धर्मनिरपेक्षीकरण और व्यक्तिवाद का उदय
- सामुदायिक बंधनों का मजबूत होना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: आधुनिकीकरण को अक्सर तर्कसंगतता (rationality), वैज्ञानिक सोच, धर्मनिरपेक्षीकरण (secularization), औद्योगीकरण, शहरीकरण और व्यक्तिवाद (individualism) जैसे मूल्यों और संस्थाओं के विकास के रूप में देखा जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह एक जटिल प्रक्रिया है जो पारंपरिक समाजों को उन समाजों में बदलती है जो प्रौद्योगिकी, बाजार अर्थव्यवस्था और नौकरशाही पर अधिक निर्भर होते हैं।
- गलत विकल्प: आधुनिकीकरण आम तौर पर पारंपरिक संस्थाओं (जैसे वंश या जाति) की भूमिका को कम करता है, धर्म की भूमिका को सीमित करता है (धर्मनिरपेक्षीकरण), और व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा जिम्मेदारी पर जोर देता है।
प्रश्न 17: ‘सामुदायिक संगठन’ (Community Organization) के संदर्भ में, टी.बी. बोटमोर (T.B. Bottomore) ने ग्रामीण समुदायों का वर्गीकरण किस आधार पर किया?
- आर्थिक गतिविधियों का स्वरूप
- सामाजिक संरचना और सामुदायिक भावना की तीव्रता
- राजनीतिक जागरूकता का स्तर
- सांस्कृतिक विविधता
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: टी.बी. बोटमोर ने ग्रामीण समुदायों को उनकी सामाजिक संरचना की जटिलता और ‘सामुदायिक भावना’ (Gemeinschaft/Gesellschaft के आधार पर) की तीव्रता के आधार पर वर्गीकृत किया, जो फर्डीनेंड टोनीज़ के विचारों से प्रभावित था।
- संदर्भ और विस्तार: उन्होंने समुदायों को तीन प्रकारों में बांटा: प्राथमिक (उच्च सामुदायिक भावना, सरल संरचना), माध्यमिक (मिश्रित भावना, जटिल संरचना), और तृतीयक (निम्न सामुदायिक भावना, अत्यधिक जटिल और अवैयक्तिक संरचना)।
- गलत विकल्प: हालांकि अन्य कारक प्रासंगिक हो सकते हैं, बोटमोर का मुख्य विभाजन सामाजिक संरचना और सामुदायिक भावना पर आधारित था।
प्रश्न 18: दुर्खीम के अनुसार, ‘सामाजिक एकजुटता’ (Social Solidarity) को बनाए रखने में ‘साझा चेतना’ (Collective Consciousness) की क्या भूमिका है?
- यह व्यक्ति की स्वतंत्रता को कम करती है।
- यह समाज के सदस्यों के बीच साझा विश्वासों, मूल्यों और भावनाओं का प्रतिनिधित्व करती है।
- यह सामाजिक असमानता को बढ़ावा देती है।
- यह सामाजिक परिवर्तन को रोकती है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: दुर्खीम ने माना कि साझा चेतना वह ‘आंतरिक गोंद’ है जो समाज को एक साथ बांधता है। यह समाज के सदस्यों के साझा विचारों, विश्वासों, मूल्यों और नैतिक दृष्टिकोणों का समुच्चय है।
- संदर्भ और विस्तार: उन्होंने ‘यांत्रिक एकता’ (mechanical solidarity) में इसकी प्रबलता और ‘सांविधिक एकता’ (organic solidarity) में इसकी घटती भूमिका पर चर्चा की, जो श्रम विभाजन से उत्पन्न होती है।
- गलत विकल्प: साझा चेतना व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पूरी तरह से कम नहीं करती, बल्कि उसे सामाजिक संदर्भ प्रदान करती है। यह असमानता को बढ़ावा नहीं देती, बल्कि समानता को दर्शाती है। यह सामाजिक परिवर्तन को रोकती नहीं, बल्कि परिवर्तन के साथ अनुकूलन की प्रक्रिया में इसकी भूमिका बदलती है।
प्रश्न 19: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) का अर्थ है:
- किसी व्यक्ति की वित्तीय संपत्ति
- किसी व्यक्ति की शिक्षा और कौशल
- सामाजिक नेटवर्क, विश्वास और आपसी समझ से उत्पन्न लाभ
- समाज में व्यक्ति की सामाजिक स्थिति
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक पूंजी उन संसाधनों को संदर्भित करती है जो व्यक्तियों या समूहों के सामाजिक संबंधों और नेटवर्कों से प्राप्त होते हैं। इसमें विश्वास, आपसी सहयोग और साझा जानकारी शामिल है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अक्सर लोगों को जानकारी प्राप्त करने, अवसर का लाभ उठाने या सहायता प्राप्त करने में मदद करता है।
- गलत विकल्प: (a) और (b) क्रमशः वित्तीय पूंजी और मानव पूंजी हैं। (d) सामाजिक स्थिति स्तरीकरण का परिणाम हो सकती है, न कि सामाजिक पूंजी का स्रोत।
प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक अनुसंधान पद्धति ‘नियंत्रित प्रयोग’ (Controlled Experiment) पर आधारित है?
- सहसंबंधात्मक अध्ययन (Correlational Study)
- क्षेत्र अध्ययन (Field Study)
- केस स्टडी (Case Study)
- प्रयोगशाला प्रयोग (Laboratory Experiment)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रयोगशाला प्रयोग एक ऐसी विधि है जिसमें शोधकर्ता स्वतंत्र चर (independent variable) में हेरफेर करता है और आश्रित चर (dependent variable) पर इसके प्रभाव को मापता है, जबकि अन्य सभी संभावित चरों को नियंत्रित करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह विधि कारण-प्रभाव संबंधों (cause-effect relationships) को स्थापित करने के लिए सबसे उपयुक्त मानी जाती है।
- गलत विकल्प: सहसंबंधात्मक अध्ययन दो या दो से अधिक चरों के बीच संबंध का पता लगाते हैं लेकिन कारण-प्रभाव स्थापित नहीं करते। क्षेत्र अध्ययन और केस स्टडी अक्सर गहन, वर्णनात्मक विश्लेषण के लिए उपयोग किए जाते हैं।
प्रश्न 21: भारतीय समाज में, ‘पैट्रिलीनियल’ (Patrilineal) और ‘मैट्रिलीनियल’ (Matrilineal) प्रणालियाँ किस आधार पर भिन्न होती हैं?
- गोत्र का निर्धारण
- संपत्ति का उत्तराधिकार
- विवाह की रीति-रिवाज
- धार्मिक अनुष्ठान
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पैट्रिलीनियल प्रणाली में, वंश और संपत्ति पिता से पुत्र को हस्तांतरित होती है। मैट्रिलीनियल प्रणाली में, वंश और संपत्ति माता से पुत्री या पुत्र को हस्तांतरित होती है (हालांकि अक्सर भाइयों के माध्यम से)।
- संदर्भ और विस्तार: भारत के कुछ हिस्सों (जैसे केरल में नायर) में मैट्रिलीनियल परिवार प्रणालियाँ पाई जाती हैं, जबकि अधिकांश भारत में पैट्रिलीनियल व्यवस्था प्रचलित है।
- गलत विकल्प: गोत्र का निर्धारण भी इनसे प्रभावित होता है, लेकिन उत्तराधिकार (विशेषकर संपत्ति का) सबसे मुख्य भेद है। विवाह और धार्मिक अनुष्ठानों में भिन्नताएँ हो सकती हैं, लेकिन वे मुख्य परिभाषित कारक नहीं हैं।
प्रश्न 22: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का तात्पर्य है:
- व्यक्तियों का एक भौगोलिक स्थान से दूसरे स्थान पर जाना।
- समाज के भीतर व्यक्तियों या समूहों की सामाजिक स्थिति में परिवर्तन।
- सामाजिक समूहों के बीच सांस्कृतिक आदान-प्रदान।
- किसी समाज में जनसंख्या का घनत्व।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक गतिशीलता एक समाज के भीतर व्यक्तियों या समूहों के एक सामाजिक स्तर से दूसरे सामाजिक स्तर पर जाने की प्रक्रिया है। यह ऊर्ध्वाधर (ऊपर या नीचे) या क्षैतिज (समान स्तर पर) हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: गतिशीलता सामाजिक परिवर्तन का एक महत्वपूर्ण सूचक है और यह खुले या बंद समाजों के लक्षण को भी दर्शाती है।
- गलत विकल्प: (a) प्रवासन (migration) है। (c) सांस्कृतिक आदान-प्रदान है। (d) जनसंख्या घनत्व है।
प्रश्न 23: समाजशास्त्र में ‘नारकीय सिद्धांत’ (Elite Theory) के प्रमुख प्रतिपादकों में कौन शामिल हैं?
- कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स
- एमिल दुर्खीम और मैक्स वेबर
- गाएतानो मोस्का, विल्फ्रेडो परेटो और रॉबर्ट मिशेल्स
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड और चार्ल्स कर्टिस
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मोस्का, परेटो और मिशेल्स को अभिजात वर्ग सिद्धांत के क्लासिक प्रतिपादक माना जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि किसी भी समाज में, चाहे वह कितना भी लोकतांत्रिक क्यों न हो, हमेशा एक अल्पसंख्यक शासक वर्ग (अभिजात वर्ग) होता है।
- संदर्भ और विस्तार: मोस्का ने ‘शासक वर्ग’ के महत्व पर जोर दिया, परेटो ने ‘अभिजातों के चक्रीकरण’ (circulation of elites) का सिद्धांत दिया, और मिशेल्स ने ‘नारकीय अल्पतंत्र का लौह नियम’ (iron law of oligarchy) का प्रतिपादन किया।
- गलत विकल्प: मार्क्सवाद वर्ग संघर्ष और क्रांति पर केंद्रित है। दुर्खीम ने सामाजिक एकता और वेबर ने अधिकार और नौकरशाही पर काम किया। मीड और कर्टिस प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से जुड़े हैं।
प्रश्न 24: निम्नलिखित में से कौन सी संकल्पना ‘पारिवारिक संरचना’ (Family Structure) का वर्णन करती है, जिसमें पति, पत्नी और अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं?
- संयुक्त परिवार (Joint Family)
- समरक्त परिवार (Consanguineal Family)
- नाभिकीय परिवार (Nuclear Family)
- विस्तारित परिवार (Extended Family)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: नाभिकीय परिवार (Nuclear Family) वह मूल इकाई है जिसमें पति, पत्नी और उनके अविवाहित बच्चे शामिल होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह आधुनिक समाजों में सबसे आम पारिवारिक संरचनाओं में से एक है, हालांकि संयुक्त परिवार भारत सहित कई संस्कृतियों में भी महत्वपूर्ण हैं।
- गलत विकल्प: संयुक्त परिवार में कई पीढ़ियों के सदस्य एक साथ रहते हैं। समरक्त परिवार रक्त संबंधियों पर केंद्रित होता है। विस्तारित परिवार नाभिकीय परिवार से परे अन्य रिश्तेदारों को भी शामिल कर सकता है।
प्रश्न 25: ‘सामाजिक परिवर्तन’ (Social Change) की व्याख्या करते समय, ‘समन्वय’ (Accommodation) का क्या अर्थ है?
- संघर्ष को पूरी तरह से समाप्त करना
- विभिन्न समूहों के बीच मतभेदों को कम करना या समाप्त करना
- समाज के सभी सदस्यों का एक ही संस्कृति को अपनाना
- सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए जबरन अनुकूलन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: समन्वय (Accommodation) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा विरोधी समूह अपने बीच के मतभेदों को हल करते हैं, जिससे वे सद्भाव में रह सकें। यह पूर्ण एकीकरण (assimilation) से भिन्न है जहाँ अंतर मिट जाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सामाजिक संघर्ष के प्रबंधन और समाजीकरण के लिए एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है।
- गलत विकल्प: समन्वय संघर्ष को समाप्त नहीं करता, बल्कि प्रबंधित करता है। यह एकीकरण से भिन्न है क्योंकि इसमें समूहों की पहचान बनी रहती है। यह हमेशा जबरन नहीं होता, बल्कि स्वैच्छिक भी हो सकता है।