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समाजशास्त्र की गहरी समझ: अपनी तैयारी को परखें!

समाजशास्त्र की गहरी समझ: अपनी तैयारी को परखें!

नमस्कार, भावी समाजशास्त्रियों! आज के इस विशेष अभ्यास सत्र में आपका स्वागत है। अपनी अवधारणाओं को मजबूत करने और विश्लेषणात्मक कौशल को पैना करने के लिए तैयार हो जाइए। यह 25 प्रश्नों का मॉक टेस्ट आपकी समाजशास्त्रीय यात्रा में एक महत्वपूर्ण पड़ाव साबित होगा। आइए, ज्ञान की इस यात्रा को शुरू करें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) की अवधारणा को किसने प्रतिपादित किया, जो समाजशास्त्रीय विश्लेषण की एक बाहरी और बाध्यकारी इकाई के रूप में देखी जाती है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. अगस्त कॉम्टे

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्यों’ की अवधारणा को अपनी कृति ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में प्रस्तुत किया। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य समाज में व्यक्तियों के सोचने, महसूस करने और कार्य करने के वे तरीके हैं जो बाह्य होते हैं और व्यक्ति पर बाध्यकारी शक्ति रखते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित करने के लिए इन ‘सामाजिक तथ्यों’ को अध्ययन की मुख्य इकाई माना। यह अवधारणा व्यक्तिनिष्ठता (subjectivity) के बजाय वस्तुनिष्ठता (objectivity) पर जोर देती है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और उत्पादन के संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया के अर्थों को समझने पर जोर दिया (Verstehen)। अगस्त कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है, जिन्होंने ‘सामाजिक स्थैतिकी’ और ‘सामाजिक गतिकी’ जैसे विचारों का प्रतिपादन किया।

प्रश्न 2: निम्नांकित में से कौन सी अवधारणा रॉबर्ट मर्टन द्वारा ‘अनुकूलता’ (Conformity) के पांच प्रकारों में से एक है, जो सांस्कृतिक लक्ष्यों और संस्थागत साधनों दोनों को स्वीकार करती है?

  1. विद्रोह (Rebellion)
  2. नवाचार (Innovation)
  3. अनुष्ठानवाद (Ritualism)
  4. सांस्कृतिक विचलन (Cultural Deviation)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: रॉबर्ट मर्टन ने अपनी ‘अधिवृद्धि सिद्धांत’ (Strain Theory) में सामाजिक अनुरूपता के पांच तरीके बताए: अनुरूपता (Conformity), नवाचार (Innovation), अनुष्ठानवाद (Ritualism), पतनवाद (Retreatism), और विद्रोह (Rebellion)। नवाचार वह स्थिति है जहाँ व्यक्ति सांस्कृतिक लक्ष्यों को स्वीकार करता है लेकिन उन्हें प्राप्त करने के लिए अवैध या गैर-संस्थागत साधनों का उपयोग करता है (जैसे, अपराध)।
  • संदर्भ और विस्तार: मर्टन का मानना था कि जब समाज में सांस्कृतिक लक्ष्यों और उन्हें प्राप्त करने के साधनों के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर (anomie) होता है, तो व्यक्ति इन विभिन्न तरीकों से प्रतिक्रिया कर सकता है।
  • गलत विकल्प: विद्रोह (Rebellion) सांस्कृतिक लक्ष्यों और साधनों दोनों को अस्वीकार कर उन्हें बदलने का प्रयास करता है। अनुष्ठानवाद (Ritualism) सांस्कृतिक लक्ष्यों को त्याग देता है लेकिन संस्थागत साधनों का कड़ाई से पालन करता है। सांस्कृतिक विचलन (Cultural Deviation) एक सामान्यीकृत शब्द है, जो मर्टन के विशिष्ट प्रकारों में से एक नहीं है।

प्रश्न 3: भारत में जाति व्यवस्था की उत्पत्ति से संबंधित ‘प्रजातीय सिद्धांत’ (Racial Theory) का मुख्य प्रतिपादक कौन है?

  1. जी.एस. घुरिये
  2. इरावती कर्वे
  3. एच.एच. रिस्ले
  4. एम.एन. श्रीनिवास

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एच.एच. रिस्ले, एक ब्रिटिश मानवशास्त्री, ने जाति व्यवस्था की उत्पत्ति की व्याख्या के लिए प्रजातीय सिद्धांत पर जोर दिया। उन्होंने माना कि जाति का आधार आर्यों के भारत में आगमन और उनके द्वारा स्वदेशी आबादी पर विजय प्राप्त करना है, जिससे वर्ण व्यवस्था का विकास हुआ।
  • संदर्भ और विस्तार: रिस्ले ने ‘The Peoples of India’ जैसी अपनी कृतियों में जाति और प्रजाति के बीच संबंध का विश्लेषण किया। यह सिद्धांत ऐतिहासिक रूप से काफी विवादास्पद रहा है।
  • गलत विकल्प: जी.एस. घुरिये ने जाति की उत्पत्ति को धार्मिक पवित्रता और प्रदूषण के विचारों से जोड़ा। इरावती कर्वे ने जाति को एक “विस्तारित परिवार” के रूप में देखा। एम.एन. श्रीनिवास ने संस्कृतिकरण और पश्चिमीकरण जैसी अवधारणाएँ दीं।

प्रश्न 4: दुर्खीम के अनुसार, निम्नलिखित में से किस प्रकार के समाज में ‘आदिम एकता’ (Primitive Solidarity) पाई जाती है, जो समानता (Sameness) पर आधारित होती है?

  1. यांत्रिक एकता (Mechanical Solidarity)
  2. सांविधिक एकता (Organic Solidarity)
  3. प्रतिभागी एकता (Participatory Solidarity)
  4. नव-यांत्रिक एकता (Neo-Mechanical Solidarity)

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाज में श्रम विभाजन’ (The Division of Labour in Society) में दो प्रकार की सामाजिक एकता का वर्णन किया है। यांत्रिक एकता (Mechanical Solidarity) सरल, पूर्व-औद्योगिक समाजों में पाई जाती है जहाँ लोग समान कार्य करते हैं और उनमें समान विश्वास और भावनाएँ होती हैं। यह समानता पर आधारित होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, यांत्रिक एकता एक ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Conscience) से उत्पन्न होती है जो समाज के सभी सदस्यों के मन में गहराई से अंतर्निहित होती है।
  • गलत विकल्प: सांविधिक एकता (Organic Solidarity) आधुनिक, जटिल समाजों में पाई जाती है, जहाँ श्रम विभाजन के कारण लोग एक-दूसरे पर निर्भर होते हैं। प्रतिभागी एकता और नव-यांत्रिक एकता समाजशास्त्रीय अवधारणाएँ नहीं हैं।

प्रश्न 5: “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की अवधारणा को किसने विकसित किया, जो समाज में भौतिक संस्कृति के परिवर्तन की दर की तुलना में अभौतिक संस्कृति के पिछड़ने की ओर इशारा करती है?

  1. विलियम ग्राहम समनर
  2. ऑगस्ट बेकेल
  3. एल्बिन जी. टॉयलर
  4. रॉबर्ट ई. पार्क

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एल्बिन जी. टॉयलर (Alvin G. Toffler) ने अपनी पुस्तक ‘फ्यूचर शॉक’ (Future Shock) में “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया। यह विचार विलियम एफ. ओगबर्न (William F. Ogburn) द्वारा पहली बार प्रस्तुत किया गया था, लेकिन टॉयलर ने इसे व्यापक रूप से प्रचारित किया। यह भौतिक संस्कृति (जैसे, प्रौद्योगिकी) के तेजी से विकास और अभौतिक संस्कृति (जैसे, कानून, नैतिकता, सामाजिक संस्थाएँ) के धीमे अनुकूलन के बीच अंतर को दर्शाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: सांस्कृतिक विलंब सामाजिक तनाव और संघर्ष का एक स्रोत हो सकता है, क्योंकि समाज नई प्रौद्योगिकियों और नवाचारों के साथ तालमेल बिठाने के लिए संघर्ष करता है।
  • गलत विकल्प: विलियम ग्राहम समनर ने ‘लोकप्रिय रीति’ (Folkways) और ‘रूढ़ियाँ’ (Mores) की अवधारणाएँ दीं। ऑगस्ट बेकेल ने ‘औपचारिकता’ (Formality) पर काम किया। रॉबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल से जुड़े थे और शहरीकरण पर काम किया।

प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था समाज की सबसे छोटी और प्राथमिक इकाई मानी जाती है, जो सामाजिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है?

  1. विद्यालय
  2. परिवार
  3. चर्च
  4. सरकार

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: परिवार को समाज की सबसे छोटी, मूलभूत और प्राथमिक इकाई माना जाता है। यह वह पहला समूह है जिसके संपर्क में व्यक्ति जन्म से आता है और जहाँ वह भाषा, मूल्य, विश्वास और व्यवहार के पैटर्न सीखता है, जिसे समाजीकरण कहते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: समाजशास्त्री परिवार को प्रजनन, भावनात्मक समर्थन, आर्थिक सहयोग और बच्चों के समाजीकरण जैसी महत्वपूर्ण भूमिकाओं के निर्वहन के लिए आवश्यक मानते हैं।
  • गलत विकल्प: विद्यालय, चर्च और सरकार भी समाजीकरण की महत्वपूर्ण संस्थाएँ हैं, लेकिन वे परिवार के बाद आती हैं और परिवार जितनी प्राथमिक नहीं मानी जातीं।

प्रश्न 7: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूँजीवादी समाज में, उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व रखने वाले वर्ग को क्या कहा जाता है?

  1. प्रभु वर्ग (Bourgeoisie)
  2. सर्वहारा वर्ग (Proletariat)
  3. बुद्धिजीवी वर्ग (Intelligentsia)
  4. कृषि वर्ग (Peasantry)

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: कार्ल मार्क्स ने पूँजीवादी समाज को दो मुख्य वर्गों में विभाजित किया: बुर्जुआ (Bourgeoisie), जो उत्पादन के साधनों (जैसे, कारखाने, भूमि, मशीनें) के मालिक होते हैं, और सर्वहारा (Proletariat), जो केवल अपनी श्रम शक्ति बेचकर जीवित रहते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स का मानना था कि बुर्जुआ वर्ग सर्वहारा वर्ग का शोषण करता है, और यह वर्ग संघर्ष अंततः पूँजीवाद के पतन का कारण बनेगा। यह अवधारणा उनकी द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (Dialectical Materialism) की थ्योरी का मुख्य आधार है।
  • गलत विकल्प: सर्वहारा वर्ग (Proletariat) वह वर्ग है जो उत्पादन के साधनों का मालिक नहीं होता। बुद्धिजीवी वर्ग और कृषि वर्ग भी समाज के अंग हो सकते हैं, लेकिन मार्क्स के विश्लेषण में बुर्जुआ और सर्वहारा प्रमुख विरोधी वर्ग हैं।

प्रश्न 8: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) ने व्यक्ति के ‘आत्म’ (Self) के विकास के लिए किन तीन चरणों की पहचान की?

  1. शिशु अवस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था
  2. अनुकरण (Imitation), क्रीड़ा (Play), खेल (Game)
  3. प्रागैतिहासिक, ऐतिहासिक, आधुनिक
  4. ज्ञान, भावना, कर्म

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) के प्रमुख विचारक, के अनुसार व्यक्ति का ‘आत्म’ (Self) एक सामाजिक उत्पाद है जो तीन चरणों में विकसित होता है: अनुकरण (Imitation), क्रीड़ा (Play), और खेल (Game)।
  • संदर्भ और विस्तार: अनुकरण चरण में शिशु दूसरों के व्यवहार की नकल करता है। क्रीड़ा चरण में बच्चा भूमिकाएँ निभाना सीखता है, जैसे ‘महत्वपूर्ण अन्य’ (Significant Others) की भूमिका। खेल चरण में बच्चा ‘सामान्यीकृत अन्य’ (Generalized Other) की भूमिकाओं और अपेक्षाओं को समझना सीखता है, जो उसे समाज के नियमों के अनुसार कार्य करने में सक्षम बनाता है।
  • गलत विकल्प: अन्य विकल्प मानव विकास या समाज के वर्गीकरण के संबंध में हैं, लेकिन आत्म के विकास के मीड के विशिष्ट चरणों का प्रतिनिधित्व नहीं करते।

प्रश्न 9: भारत में, ‘दलित’ शब्द का प्रयोग आमतौर पर उन सामाजिक समूहों के लिए किया जाता है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से ______ का सामना करना पड़ा है?

  1. जातिगत भेदभाव और सामाजिक बहिष्कार
  2. आर्थिक असमानता
  3. धार्मिक उत्पीड़न
  4. सांस्कृतिक अलगाव

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: ‘दलित’ शब्द का अर्थ ‘कुचला हुआ’ या ‘दबा हुआ’ है। यह शब्द उन सामाजिक समूहों के लिए प्रयोग किया जाता है जिन्हें सदियों से जाति-आधारित भेदभाव, सामाजिक बहिष्कार, अस्पृश्यता और उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह शब्द आत्म-पहचान और सशक्तिकरण का प्रतीक बन गया है, जो उन समूहों की गरिमा और अधिकारों की मांग को दर्शाता है। डॉ. बी.आर. अम्बेडकर जैसे नेताओं ने इन समुदायों के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • गलत विकल्प: हालांकि आर्थिक असमानता, धार्मिक उत्पीड़न और सांस्कृतिक अलगाव भी इन समुदायों द्वारा अनुभव किए जा सकते हैं, ‘दलित’ शब्द का मुख्य संदर्भ जाति-आधारित भेदभाव और बहिष्कार से है।

प्रश्न 10: समाजशास्त्रीय अनुसंधान में, ‘प्रतिभागी अवलोकन’ (Participant Observation) का क्या अर्थ है?

  1. शोधकर्ता केवल देखे और नोट्स ले
  2. शोधकर्ता अध्ययन समूह में सक्रिय रूप से भाग लेता है और एक सदस्य के रूप में व्यवहार करता है
  3. शोधकर्ता अध्ययन समूह से संवाद करने के लिए प्रश्नावली का उपयोग करता है
  4. शोधकर्ता अपने निष्कर्षों को प्रकाशित करता है

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: प्रतिभागी अवलोकन एक गुणात्मक अनुसंधान विधि है जिसमें शोधकर्ता स्वयं उस समूह या समुदाय का सदस्य बनकर उनके जीवन में सक्रिय रूप से भाग लेता है जिसका वह अध्ययन कर रहा है। इससे उसे समूह के व्यवहार, विश्वासों और सामाजिक अंतःक्रियाओं की गहराई से जानकारी मिलती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह विधि सामाजिक वास्तविकता को गहराई से समझने में मदद करती है, लेकिन इसमें शोधकर्ता की निष्पक्षता और डेटा की व्याख्या में पूर्वाग्रह की संभावना भी होती है। इसे अक्सर मानव विज्ञान और समाजशास्त्र में उपयोग किया जाता है।
  • गलत विकल्प: विकल्प (a) गैर-प्रतिभागी अवलोकन का वर्णन करता है। विकल्प (c) सर्वेक्षण अनुसंधान का वर्णन करता है। विकल्प (d) अनुसंधान प्रक्रिया का अंतिम चरण है, विधि नहीं।

प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन सी समाजशास्त्रीय अवधारणा सामाजिक व्यवस्था और एकीकरण को बनाए रखने के लिए सामाजिक मानदंडों, मूल्यों और विश्वासों के साझाकरण पर जोर देती है?

  1. अलगाव (Alienation)
  2. अराजकता (Anomie)
  3. सामाजिक एकजुटता (Social Solidarity)
  4. संघर्ष (Conflict)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक एकजुटता (Social Solidarity) वह अवधारणा है जो समाज के सदस्यों के बीच बंधुत्व, एकता और साझा चेतना की भावना को दर्शाती है। यह समाज को एक साथ बांधे रखती है। दुर्खीम ने इसे समाज की स्थिरता और एकीकरण के लिए महत्वपूर्ण माना।
  • संदर्भ और विस्तार: यांत्रिक एकता (समानता पर आधारित) और सांविधिक एकता (निर्भरता पर आधारित) दोनों ही सामाजिक एकजुटता के रूप हैं।
  • गलत विकल्प: अलगाव (Alienation) व्यक्तिगत या सामूहिक अलगाव की भावना है। अराजकता (Anomie) सामाजिक नियमों की अनुपस्थिति या दुर्बलता की स्थिति है, जो सामाजिक विघटन की ओर ले जाती है। संघर्ष (Conflict) सामाजिक व्यवस्था के बजाय परिवर्तन और असंतोष पर जोर देता है।

प्रश्न 12: पार्सन्स का ‘ए.जी.आई.एल.’ (AGIL) प्रतिमान समाज को एक प्रणाली के रूप में समझने के लिए चार अनिवार्य प्रकारों का वर्णन करता है। इसमें ‘जी’ (G) का क्या अर्थ है?

  1. गवर्नेंस (Governance)
  2. गोल अटैनमेंट (Goal Attainment)
  3. जनरलाइजेशन (Generalization)
  4. ग्रोथ (Growth)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: तालकोट पार्सन्स ने अपने ‘स्ट्रक्चरल-फंक्शनलिज्म’ (Structural-Functionalism) के सिद्धांत में समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा, जिसके जीवित रहने के लिए चार कार्यात्मक आवश्यकताएँ होती हैं। उनका ‘ए.जी.आई.एल.’ (AGIL) प्रतिमान इन आवश्यकताओं को दर्शाता है: अनुकूलन (Adaptation), लक्ष्य प्राप्ति (Goal Attainment), एकीकरण (Integration), और अव्यक्त पैटर्न रखरखाव (Latent Pattern Maintenance)। यहाँ ‘जी’ का अर्थ ‘गोल अटैनमेंट’ (Goal Attainment) है, जिसका अर्थ है किसी समाज या उसकी उप-प्रणालियों द्वारा अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने की क्षमता।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स का मानना था कि जो समाज इन चार आवश्यकताओं को प्रभावी ढंग से पूरा कर पाते हैं, वे स्थिर और कार्यात्मक बने रहते हैं।
  • गलत विकल्प: अन्य विकल्प पार्सन्स के प्रतिमान में ‘जी’ के लिए सही अर्थ नहीं हैं।

प्रश्न 13: “अभिजन सिद्धांत” (Elite Theory) के प्रमुख समर्थकों में कौन शामिल हैं, जो समाज में शक्ति के अल्पसंख्यक द्वारा केंद्रीकरण पर बल देते हैं?

  1. एमिल दुर्खीम और मैक्स वेबर
  2. कार्ल मार्क्स और फ्रेडरिक एंगेल्स
  3. गैतानो मोस्का, विल्फ्रेडो परेटो और सी. राइट मिल्स
  4. जॉर्ज हर्बर्ट मीड और चार्ल्स कूली

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: गैतानो मोस्का, विल्फ्रेडो परेटो और सी. राइट मिल्स अभिजन सिद्धांत के प्रमुख प्रतिपादक हैं। वे मानते हैं कि किसी भी समाज में, चाहे वह कितना भी लोकतांत्रिक क्यों न हो, एक छोटा, शक्तिशाली अभिजन वर्ग होता है जो समाज पर शासन करता है और शक्ति का आनंद लेता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मोस्का ने ‘शासक वर्ग’ की बात की, परेटो ने ‘शासक और गैर-शासक अभिजन’ के चक्रीय सिद्धांत को प्रस्तुत किया, और मिल्स ने अमेरिकी समाज में ‘शक्ति अभिजन’ (Power Elite) की अवधारणा का विकास किया।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम और वेबर (कुछ हद तक) अभिजन की बात करते हैं, लेकिन मिल्स जैसे प्रत्यक्ष प्रतिपादक नहीं। मार्क्स और एंगेल्स वर्ग संघर्ष पर बल देते हैं, लेकिन उनका ध्यान श्रमिक वर्ग के प्रभुत्व पर है। मीड और कूली प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से जुड़े हैं।

  • प्रश्न 14: भारत में ‘जनजाति’ (Tribe) शब्द का प्रयोग किन सामाजिक समूहों के लिए किया जाता है, जिनकी सामान्यतः विशेषताएँ क्या होती हैं?

    1. शहरीकरण, उच्च शिक्षा, और औद्योगिकरण
    2. विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र, अलग संस्कृति, और पारंपरिक जीवन शैली
    3. उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति, राजनीतिक प्रभुत्व, और कृषि आधारित अर्थव्यवस्था
    4. जाति व्यवस्था में उच्च स्थान, ब्राह्मणवादी अनुष्ठान, और संस्कृतिकरण

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: जनजाति शब्द का प्रयोग सामान्यतः उन सामाजिक समूहों के लिए किया जाता है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्र में रहते हैं, जिनकी अपनी एक अलग संस्कृति, भाषा, सामाजिक संरचना और राजनीतिक व्यवस्था होती है, और जो अक्सर पारंपरिक जीवन शैली अपनाते हैं। वे आधुनिक समाज की मुख्यधारा से कुछ हद तक अलग-थलग रह सकते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: भारत में अनेक जनजातियाँ हैं, जिनके सामाजिक-आर्थिक और सांस्कृतिक स्वरूपों में विविधता है। सरकार इन समूहों के विकास और संरक्षण के लिए विशेष प्रयास करती है।
    • गलत विकल्प: अन्य विकल्प जनजातियों की सामान्य विशेषताओं के विपरीत हैं। शहरीकरण, उच्च शिक्षा, उच्च सामाजिक-आर्थिक स्थिति, जाति व्यवस्था में उच्च स्थान, आदि जनजातियों की परिभाषित विशेषताएँ नहीं हैं।

    प्रश्न 15: सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) की विभिन्न व्याख्याओं में, ‘संकार्यवादी दृष्टिकोण’ (Functionalist Perspective) के अनुसार, स्तरीकरण क्यों आवश्यक है?

    1. यह समाज में समानता को बढ़ावा देता है।
    2. यह सुनिश्चित करता है कि सबसे महत्वपूर्ण पदों पर सबसे योग्य व्यक्ति हों।
    3. यह सामाजिक संघर्ष को समाप्त करता है।
    4. यह सामाजिक गतिशीलता को पूरी तरह से समाप्त कर देता है।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: डेविस और मूर (Davis and Moore) जैसे संकार्यवादी समाजशास्त्रियों के अनुसार, सामाजिक स्तरीकरण समाज के लिए कार्यात्मक (functional) है क्योंकि यह यह सुनिश्चित करता है कि सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक पदों पर सबसे अधिक योग्य और सक्षम व्यक्तियों को नियुक्त किया जाए, और उन्हें इन भूमिकाओं को निभाने के लिए प्रेरित किया जाए। वे मानते हैं कि विभिन्न पदों के लिए अलग-अलग योग्यता और प्रशिक्षण की आवश्यकता होती है, और अधिक महत्वपूर्ण पदों के लिए अधिक पुरस्कार (जैसे, धन, प्रतिष्ठा) आवश्यक हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह दृष्टिकोण स्तरीकरण को समाज के एक आवश्यक और अपरिहार्य पहलू के रूप में देखता है।
    • गलत विकल्प: संकार्यवादी दृष्टिकोण समानता को बढ़ावा देने या सामाजिक संघर्ष को समाप्त करने का दावा नहीं करता, बल्कि यह मानता है कि स्तरीकरण समाज के सुचारू संचालन के लिए आवश्यक है। यह सामाजिक गतिशीलता को पूरी तरह से समाप्त नहीं करता, बल्कि योग्य लोगों को ऊपर जाने के लिए प्रोत्साहित करता है।

    प्रश्न 16: मैकियावेली की ‘सावधानी’ (Circumspection) की अवधारणा, जो उनके प्रसिद्ध ग्रंथ ‘द प्रिंस’ में वर्णित है, किस प्रकार के व्यवहार का सुझाव देती है?

    1. नैतिक और आदर्शवादी व्यवहार
    2. अपनी शक्ति को बनाए रखने और बढ़ाने के लिए व्यावहारिक और अक्सर क्रूर व्यवहार
    3. परोपकार और सामुदायिक कल्याण पर ध्यान केंद्रित करना
    4. लोकप्रिय समर्थन प्राप्त करने के लिए सार्वजनिक वादे करना

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: निकोलो मैकियावेली की ‘सावधानी’ (Circumspection) या ‘प्रूडेंस’ (Prudence) का अर्थ केवल सामान्य सावधानी नहीं है, बल्कि राज्य के प्रमुख (Prince) को अपनी शक्ति बनाए रखने और शासन के लिए आवश्यक राजनीतिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए सभी आवश्यक साधन (नैतिक या अनैतिक) अपनाने की सलाह देना है। यह यथार्थवादी राजनीति का एक रूप है।
    • संदर्भ और विस्तार: मैकियावेली ने सलाह दी कि शासक को एक ही समय में शेर (ताकत) और लोमड़ी (धूर्तता) दोनों होना चाहिए। उनकी पुस्तक ‘द प्रिंस’ राजनीतिक दर्शन में एक महत्वपूर्ण कृति है।
    • गलत विकल्प: मैकियावेली नैतिक या आदर्शवादी होने की सलाह नहीं देते, बल्कि यथार्थवादी और प्रभावी होने की।

    प्रश्न 17: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा का सबसे अच्छा वर्णन करता है?

    1. किसी व्यक्ति की वित्तीय संपत्ति और निवेश।
    2. किसी व्यक्ति की शिक्षा और कौशल का स्तर।
    3. सामाजिक नेटवर्क, संबंध और उनसे प्राप्त होने वाले लाभ।
    4. किसी समाज का कुल भौतिक धन और संसाधन।

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: सामाजिक पूंजी (Social Capital) उन सामाजिक संबंधों, नेटवर्कों, विश्वासों और पारस्परिकताओं को संदर्भित करती है जो व्यक्तियों या समूहों को उनके लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं। यह लोगों के बीच संबंधों से उत्पन्न होने वाली संसाधनों की एक प्रणाली है। पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) और जेम्स कोलमेन (James Coleman) इस अवधारणा के प्रमुख प्रतिपादक हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: अच्छी सामाजिक पूंजी वाले लोग सूचना, सहायता और अवसरों तक आसानी से पहुँच बना सकते हैं।
    • गलत विकल्प: (a) वित्तीय पूंजी, (b) मानव पूंजी, और (d) भौतिक पूंजी से संबंधित हैं, न कि सामाजिक पूंजी से।

    प्रश्न 18: भारत में “भूमि सुधार” (Land Reforms) का मुख्य उद्देश्य क्या रहा है?

    1. कृषि उत्पादन बढ़ाना
    2. भूमि का पुनर्वितरण और कृषि श्रमिकों की स्थिति में सुधार
    3. किसानों को उच्च ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना
    4. ग्रामीण क्षेत्रों में शहरीकरण को बढ़ावा देना

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: भारत में भूमि सुधारों का प्राथमिक उद्देश्य ऐतिहासिक रूप से भूमि का अधिक न्यायसंगत पुनर्वितरण सुनिश्चित करना, जमींदारी प्रथा को समाप्त करना, बिचौलियों को हटाना, और काश्तकारों को जमीन पर अधिकार प्रदान करना रहा है, ताकि कृषि श्रमिकों और छोटे किसानों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हो सके।
    • संदर्भ और विस्तार: ये सुधार भारत में स्वतंत्रता के बाद सामाजिक न्याय और आर्थिक समानता को बढ़ावा देने के प्रयासों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रहे हैं।
    • गलत विकल्प: हालांकि कृषि उत्पादन में वृद्धि एक परिणाम हो सकता है, मुख्य उद्देश्य सामाजिक न्याय रहा है। किसानों को उच्च ब्याज दर पर ऋण उपलब्ध कराना या ग्रामीण शहरीकरण को बढ़ावा देना भूमि सुधारों का सीधा उद्देश्य नहीं रहा है।

    प्रश्न 19: निम्नांकित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का प्रमुख प्रतिपादक माना जाता है, जो प्रत्येक संस्कृति को उसकी अपनी विशिष्टता के संदर्भ में समझने पर बल देता है?

    1. राल्फ लिंटन
    2. मेलिनोव्स्की
    3. ए.एल. क्रोएबर
    4. फ्रांज बोआस

    उत्तर: (d)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: फ्रांज बोआस (Franz Boas) को अक्सर ‘अमेरिकी मानवविज्ञान का जनक’ कहा जाता है और वे सांस्कृतिक सापेक्षवाद के सबसे प्रमुख समर्थकों में से एक थे। उन्होंने जोर दिया कि संस्कृतियों को उनकी अपनी ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संदर्भ में समझा जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी मानक (जैसे, पश्चिमी संस्कृति) के आधार पर।
    • संदर्भ और विस्तार: बोआस ने ‘सांस्कृतिक सार्वभौमिकता’ (Cultural Universalism) और ‘जातीय केंद्रवाद’ (Ethnocentrism) की आलोचना की।
    • गलत विकल्प: राल्फ लिंटन, मेलिनोव्स्की और क्रोएबर भी सांस्कृतिक अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदानकर्ता थे, लेकिन बोआस को सांस्कृतिक सापेक्षवाद के साथ सबसे मजबूती से जोड़ा जाता है।

    प्रश्न 20: समाजशास्त्र में, ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मुख्य जोर किस पर होता है?

    1. बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचनाओं और संस्थाओं का विश्लेषण
    2. व्यक्तियों के बीच अर्थों के निर्माण और संचार के माध्यम से सामाजिक वास्तविकता का निर्माण
    3. सामाजिक व्यवस्था और स्थिरता बनाए रखने वाले कार्यों का अध्ययन
    4. सामाजिक असमानता और संघर्ष के स्रोत

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) एक सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य है जो इस बात पर केंद्रित है कि व्यक्ति कैसे प्रतीकों (जैसे, भाषा, हाव-भाव) का उपयोग करके एक-दूसरे के साथ संवाद करते हैं और कैसे इस अंतःक्रिया से सामाजिक अर्थ और वास्तविकता का निर्माण होता है। जॉर्ज हर्बर्ट मीड, हरबर्ट ब्लूमर और इरविंग गोफमैन इसके प्रमुख विचारक हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह परिप्रेक्ष्य इस बात पर जोर देता है कि समाज व्यक्तियों के आपस में बातचीत करने और अर्थ साझा करने के तरीके से बनता है।
    • गलत विकल्प: (a) संरचनात्मक-कार्यवादी या मार्क्सवादी परिप्रेक्ष्य से संबंधित है। (c) संरचनात्मक-कार्यवादी परिप्रेक्ष्य से संबंधित है। (d) मार्क्सवादी या संघर्ष सिद्धांत से संबंधित है।

    प्रश्न 21: “ध्रुवीकरण” (Polarization) शब्द, जब समाजशास्त्रीय संदर्भ में प्रयोग किया जाता है, तो आमतौर पर क्या इंगित करता है?

    1. समाज के सदस्यों के बीच बढ़ती समानता
    2. विचारों, विश्वासों या स्थितियों का चरम ध्रुवों पर विभाजन
    3. सामाजिक गतिशीलता में वृद्धि
    4. सांस्कृतिक एकीकरण की प्रक्रिया

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: समाजशास्त्र में ध्रुवीकरण (Polarization) का अर्थ है किसी समाज, समूह या आबादी का दो विरोधी गुटों या चरम छोरों में विभाजित हो जाना, जहाँ मध्य मैदान लगभग गायब हो जाता है। यह राजनीतिक, आर्थिक या सामाजिक मुद्दों पर तीव्र मतभेद को दर्शाता है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह अक्सर सामाजिक तनाव, विभाजन और संघर्ष को बढ़ाता है।
    • गलत विकल्प: ध्रुवीकरण समानता, सामाजिक गतिशीलता या सांस्कृतिक एकीकरण का प्रतीक नहीं है, बल्कि इसके विपरीत है।

    प्रश्न 22: मैक्स वेबर ने नौकरशाही (Bureaucracy) को किस प्रकार के प्राधिकार (Authority) के रूप में वर्गीकृत किया?

    1. पारंपरिक प्राधिकार (Traditional Authority)
    2. करिश्माई प्राधिकार (Charismatic Authority)
    3. वैध-तर्कसंगत प्राधिकार (Legal-Rational Authority)
    4. आध्यात्मिक प्राधिकार (Spiritual Authority)

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: मैक्स वेबर ने शक्ति और प्राधिकार को तीन मुख्य प्रकारों में वर्गीकृत किया: पारंपरिक (जैसे, राजाओं का शासन), करिश्माई (जैसे, एक असाधारण नेता), और वैध-तर्कसंगत (Legal-Rational)। नौकरशाही, जो नियमों, विनियमों और पदानुक्रम पर आधारित होती है, वैध-तर्कसंगत प्राधिकार का एक आदर्श उदाहरण है।
    • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने आधुनिक समाज में नौकरशाही की दक्षता और व्यापकता का विश्लेषण किया, हालांकि उन्होंने इसके संभावित नकारात्मक पहलुओं (जैसे, लोहे का पिंजरा – iron cage) पर भी प्रकाश डाला।
    • गलत विकल्प: पारंपरिक प्राधिकार वंशानुगत या रीति-रिवाजों पर आधारित होता है। करिश्माई प्राधिकार किसी व्यक्ति के असाधारण गुणों पर आधारित होता है। आध्यात्मिक प्राधिकार उनके वर्गीकरण में शामिल नहीं है।

    प्रश्न 23: भारत में, “वर्ग” (Class) और “जाति” (Caste) के बीच एक महत्वपूर्ण अंतर क्या है?

    1. वर्ग जन्म पर आधारित होता है, जबकि जाति अर्जित की जाती है।
    2. जाति कठोर पदानुक्रमित और जन्म-आधारित है, जबकि वर्ग अधिक खुला और अर्जित स्थिति पर आधारित हो सकता है।
    3. वर्ग में कभी भी सामाजिक गतिशीलता नहीं होती, जबकि जाति में होती है।
    4. जाति पवित्रता और प्रदूषण पर आधारित है, जबकि वर्ग केवल आर्थिक स्थिति पर।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: जाति व्यवस्था भारत में एक अत्यंत कठोर, जन्म-आधारित और पदानुक्रमित व्यवस्था है, जहाँ व्यक्ति की सामाजिक स्थिति उसके जन्म से निर्धारित होती है और इसमें गतिशीलता बहुत सीमित होती है। इसके विपरीत, सामाजिक वर्ग (मुख्य रूप से पश्चिमी समाजों में अध्ययन किया गया) मुख्य रूप से आर्थिक स्थिति, व्यवसाय और शिक्षा जैसे कारकों पर आधारित होता है और इसमें अधिक लचीलापन व सामाजिक गतिशीलता की संभावना होती है।
    • संदर्भ और विस्तार: हालांकि भारतीय समाज में आर्थिक वर्ग का भी महत्व बढ़ रहा है, जाति अभी भी एक प्रमुख निर्धारक कारक बनी हुई है।
    • गलत विकल्प: (a) यह उल्टा है। (c) यह गलत है, वर्ग में अधिक गतिशीलता होती है। (d) जबकि जाति में पवित्रता/प्रदूषण का तत्व महत्वपूर्ण है, वर्ग भी केवल आर्थिक नहीं, बल्कि शिक्षा, व्यवसाय आदि का मिश्रण है।

    प्रश्न 24: “असंरेखण” (Disjuncture) का विचार, जिसका प्रयोग कुछ सामाजिक सिद्धांतों में किया जाता है, प्रायः क्या दर्शाता है?

    1. सामाजिक व्यवस्था और स्थिरता
    2. संस्थाओं, मानदंडों या प्रथाओं के बीच तालमेल की कमी या असंगति
    3. समूह के सदस्यों के बीच बढ़ी हुई एकता
    4. समान सांस्कृतिक मूल्यों का प्रसार

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: सामाजिक सिद्धांतों में “असंरेखण” (Disjuncture) का अर्थ अक्सर समाज के विभिन्न घटकों, जैसे कि सामाजिक संस्थाओं, सांस्कृतिक मूल्यों, राजनीतिक संरचनाओं या आर्थिक प्रणालियों के बीच सामंजस्य या तालमेल की कमी को दर्शाता है। यह असंगति या फांक को उजागर करता है।
    • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, जब कोई समाज तकनीकी रूप से प्रगति करता है लेकिन उसके नैतिक या कानूनी ढांचे पीछे रह जाते हैं, तो इसे एक प्रकार का असंरेखण कहा जा सकता है।
    • गलत विकल्प: यह सामाजिक व्यवस्था, एकता या समान मूल्यों के प्रसार के बजाय विभाजन या असंगति का सूचक है।

    प्रश्न 25: भारत में, “धर्मनिरपेक्षता” (Secularism) की भारतीय अवधारणा पश्चिमी अवधारणा से कैसे भिन्न है?

    1. भारतीय धर्मनिरपेक्षता राज्य और धर्म को पूरी तरह से अलग करती है।
    2. भारतीय धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और राज्य द्वारा सभी धर्मों को समान समर्थन (सर्व-धर्म समभाव) पर जोर देती है।
    3. पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान पर जोर देती है।
    4. भारतीय धर्मनिरपेक्षता केवल हिंदू धर्म को बढ़ावा देती है।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सटीकता: पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता (विशेषकर फ्रांसीसी मॉडल) अक्सर राज्य और धर्म के पूर्ण अलगाव (strict separation) पर जोर देती है। इसके विपरीत, भारतीय धर्मनिरपेक्षता (जिसे ‘सर्व-धर्म समभाव’ भी कहा जाता है) राज्य और धर्म के पूर्ण अलगाव के बजाय सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और समर्थन पर आधारित है। राज्य किसी भी धर्म को विशेष दर्जा नहीं देता, बल्कि सभी को समान अवसर और सुरक्षा प्रदान करता है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा भारत की बहुधार्मिक प्रकृति को प्रतिबिंबित करती है।
    • गलत विकल्प: (a) यह पश्चिमी धर्मनिरपेक्षता का वर्णन करता है, भारतीय का नहीं। (c) यह भारतीय का वर्णन है, पश्चिमी का नहीं। (d) यह पूरी तरह से गलत है; भारतीय धर्मनिरपेक्षता का लक्ष्य किसी एक धर्म को बढ़ावा देना नहीं है।

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