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समाजशास्त्र की गहराई में उतरें: आपकी दैनिक अवधारणात्मक शक्ति का परीक्षण!

समाजशास्त्र की गहराई में उतरें: आपकी दैनिक अवधारणात्मक शक्ति का परीक्षण!

अपने समाजशास्त्रीय ज्ञान को तेज करने के लिए तैयार हो जाइए! आज का यह विशेष सत्र आपकी समझ को परखने और आपको एक कदम आगे ले जाने के लिए डिज़ाइन किया गया है। अपनी विश्लेषणात्मक क्षमता को निखारें और इन चुनौतीपूर्ण प्रश्नों के माध्यम से अपनी वैचारिक स्पष्टता का प्रदर्शन करें।

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरण के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) की अवधारणा को किसने समाजशास्त्र के अध्ययन का केंद्रीय बिंदु बनाया?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमाइल दुर्खीम
  4. ताल्कोट पार्सन्स

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: एमाइल दुर्खीम ने सामाजिक संरचना को समाज के स्थायित्व और व्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण माना। उन्होंने सामाजिक तथ्यों (Social Facts) पर जोर दिया जो व्यक्तियों पर बाह्य दबाव डालते हैं और सामाजिक संरचना का निर्माण करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम की कृति ‘समाज में श्रम विभाजन’ (The Division of Labour in Society) में सामाजिक एकता (Social Solidarity) और समाज के प्रकारों के संदर्भ में सामाजिक संरचना के महत्व पर प्रकाश डाला गया है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का ध्यान वर्ग संघर्ष और आर्थिक संरचना पर था। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया और सत्ता पर जोर दिया। ताल्कोट पार्सन्स ने बाद में संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural-Functionalism) के विकास में योगदान दिया, लेकिन दुर्खीम पहले व्यक्ति थे जिन्होंने इसे केंद्रीय बनाया।

प्रश्न 2: किसने ‘अअलगाव’ (Alienation) की अवधारणा को औद्योगिक समाज में श्रमिक वर्ग की स्थिति का वर्णन करने के लिए प्रयोग किया?

  1. मैक्स वेबर
  2. कार्ल मार्क्स
  3. सिगमंड फ्रायड
  4. जॉर्ज हर्बर्ट मीड

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: कार्ल मार्क्स ने अपनी प्रारंभिक कृतियों, विशेष रूप से ‘आर्थिक और दार्शनिक पांडुलिपियाँ 1844’ (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844) में अअलगाव की अवधारणा का विस्तृत विश्लेषण किया। उन्होंने पूंजीवादी उत्पादन प्रक्रिया में श्रमिकों के अपने श्रम, उत्पाद, साथी श्रमिकों और स्वयं से अलगाव का वर्णन किया।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, अलगाव का मूल कारण निजी संपत्ति और उत्पादन के साधनों पर पूंजीपतियों का स्वामित्व है, जिससे श्रमिक अपने श्रम के फल का आनंद नहीं ले पाता।
  • गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता पर ध्यान केंद्रित किया। सिगमंड फ्रायड एक मनोविश्लेषक थे। जॉर्ज हर्बर्ट मीड ने ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) विकसित किया।

प्रश्न 3: ‘मैक्स वेबर’ के अनुसार, शक्ति (Power) का वह रूप जिसमें व्यक्ति बिना किसी विरोध के आज्ञा का पालन करते हैं, क्या कहलाता है?

  1. प्रभुत्व (Dominance)
  2. सत्ता (Authority)
  3. बल (Force)
  4. प्रतिष्ठा (Prestige)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: मैक्स वेबर ने ‘सत्ता’ (Authority) को उस शक्ति के रूप में परिभाषित किया है जिसे वैध (Legitimate) माना जाता है, जिसके तहत लोग स्वेच्छा से आदेशों का पालन करते हैं। उन्होंने सत्ता के तीन मुख्य प्रकार बताए: पारंपरिक, करिश्माई और कानूनी-तर्कसंगत।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर के लिए, सत्ता शक्ति से भिन्न है क्योंकि यह सहमति पर आधारित है। शक्ति वह है जहां किसी भी कीमत पर आज्ञा का पालन करवाया जा सकता है, जबकि सत्ता में आज्ञाकारिता स्वाभाविक लगती है।
  • गलत विकल्प: प्रभुत्व एक व्यापक शब्द है। बल बिना सहमति के नियंत्रण है। प्रतिष्ठा सामाजिक सम्मान है।

प्रश्न 4: ‘भूमिका संघर्ष’ (Role Conflict) तब उत्पन्न होता है जब एक व्यक्ति की विभिन्न भूमिकाओं की अपेक्षाएँ आपस में टकराती हैं। यह किस अवधारणा से संबंधित है?

  1. भूमिका दूरी (Role Distance)
  2. भूमिका प्रतिमान (Role Set)
  3. भूमिका प्रतिस्थापन (Role Substitution)
  4. भूमिका प्रतिमान (Role Set)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: ‘भूमिका प्रतिमान’ (Role Set) वह स्थिति है जहाँ एक व्यक्ति एक ही सामाजिक स्थिति में कई भूमिकाएँ निभाता है, और इन विभिन्न भूमिकाओं से जुड़ी अपेक्षाएँ कभी-कभी परस्पर विरोधी हो सकती हैं, जिससे भूमिका संघर्ष उत्पन्न होता है। यह शब्द रॉबर्ट मर्टन से जुड़ा है।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, एक प्रोफेसर को छात्रों के लिए मार्गदर्शक, प्रशासकों के लिए एक कर्मचारी और परिवार के लिए पति/पिता जैसी भूमिकाएँ निभानी पड़ सकती हैं, जिनमें से प्रत्येक की अपनी-अपनी अपेक्षाएँ होती हैं।
  • गलत विकल्प: भूमिका दूरी (Goffman) भूमिका से अलगाव है। भूमिका प्रतिस्थापन एक भूमिका को दूसरी से बदलना है। (विकल्प d, b के समान है, इसलिए यह त्रुटि है)।

प्रश्न 5: ‘एमिल दुर्खीम’ के अनुसार, समाजशास्त्र का प्राथमिक विषय क्या है?

  1. व्यक्तिगत चेतना
  2. सामाजिक तथ्य (Social Facts)
  3. सामाजिक क्रिया (Social Action)
  4. आर्थिक उत्पादन

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: दुर्खीम ने समाजशास्त्र को “सामाजिक तथ्यों के अध्ययन” के रूप में परिभाषित किया। सामाजिक तथ्य वे तरीके हैं जिनसे सोचने, महसूस करने और कार्य करने की क्षमता समाज के भीतर आम होती है, और ये व्यक्तियों पर बाह्य दबाव डालते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में इस विचार को विकसित किया। उदाहरणों में कानून, नैतिकता, विश्वास, रीति-रिवाज और फैशन शामिल हैं।
  • गलत विकल्प: व्यक्तिगत चेतना मनोविज्ञान का विषय है। सामाजिक क्रिया मैक्स वेबर का केंद्रीय विषय थी। आर्थिक उत्पादन कार्ल मार्क्स के विश्लेषण का मुख्य बिंदु था।

प्रश्न 6: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का प्रमुख प्रवर्तक कौन माना जाता है?

  1. ताल्कोट पार्सन्स
  2. जी.एच. मीड
  3. ई. डी. किपफ (एल्किन सिफ्स)
  4. हर्बर्ट ब्लूमर

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का संस्थापक माना जाता है। यद्यपि उन्होंने स्वयं इस शब्द का प्रयोग नहीं किया, उनके दर्शन और सामाजिक मनोविज्ञान के विचारों ने इस सिद्धांत की नींव रखी, जिसमें ‘मैं’ (I) और ‘मी’ (Me) की अवधारणाएं शामिल हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड के छात्रों, विशेषकर हर्बर्ट ब्लूमर ने मीड के विचारों को व्यवस्थित किया और ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ शब्द गढ़ा, और इसे एक अलग समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य के रूप में स्थापित किया।
  • गलत विकल्प: ताल्कोट पार्सन्स संरचनात्मक-प्रकार्यवाद से जुड़े हैं। ई. डी. किपफ (एल्किन सिफ्स) हास्य और व्यंग्य के लेखक थे, समाजशास्त्री नहीं।

  • प्रश्न 7: ‘जाति व्यवस्था’ (Caste System) के संदर्भ में, ‘सकर्मणता’ (Sanskritization) की अवधारणा किसने विकसित की?

    1. इरावती कर्वे
    2. एम. एन. श्रीनिवास
    3. आंद्रे बेतेई
    4. गुलाम अहमद

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: एम. एन. श्रीनिवास, एक प्रसिद्ध भारतीय समाजशास्त्री, ने ‘सकर्मणता’ (Sanskritization) की अवधारणा को परिभाषित किया। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निचली या मध्य जातियों के सदस्य उच्च जातियों की प्रथाओं, अनुष्ठानों, विश्वासों और जीवनशैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी पुस्तक ‘दक्षिण भारत के कूर्गों के बीच धर्म और समाज’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) में पहली बार प्रस्तुत की गई थी।
    • गलत विकल्प: इरावती कर्वे ने भारत में नातेदारी व्यवस्था पर काम किया। आंद्रे बेतेई ने भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण काम किया है लेकिन यह अवधारणा उनकी नहीं है।

    प्रश्न 8: ‘समाज में प्रत्येक भाग का एक कार्य होता है जो संपूर्ण समाज के संतुलन और स्थिरता में योगदान देता है।’ यह विचार किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत का मूल है?

    1. संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
    2. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
    3. संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural-Functionalism)
    4. फेमिनिस्ट सिद्धांत (Feminist Theory)

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: संरचनात्मक-प्रकार्यवाद इस विचार पर आधारित है कि समाज विभिन्न परस्पर संबंधित भागों (संरचनाओं) से बना है, जिनमें से प्रत्येक एक विशिष्ट कार्य (Function) करता है जो सामाजिक व्यवस्था और स्थिरता बनाए रखने में मदद करता है। ताल्कोट पार्सन्स और रॉबर्ट मर्टन इसके प्रमुख समर्थक हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के कार्यों में भी इसके बीज मिलते हैं, जैसे कि सामाजिक एकता के विभिन्न प्रकारों का विश्लेषण। मर्टन ने ‘प्रकट कार्य’ (Manifest Function) और ‘अप्रकट कार्य’ (Latent Function) तथा ‘दुष्कार्य’ (Dysfunction) जैसी अवधारणाएं जोड़ीं।
    • गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत समाज को शक्ति और असमानता के संघर्ष के रूप में देखता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तिगत अंतःक्रियाओं और प्रतीकों पर केंद्रित है। फेमिनिस्ट सिद्धांत लैंगिक असमानता पर केंद्रित है।

    प्रश्न 9: ‘प्रक्रियात्मक समाजशास्त्र’ (Processual Sociology) का मुख्य ध्यान किस पर होता है?

    1. स्थायी सामाजिक संरचनाएँ
    2. सामाजिक परिवर्तन की गतिशीलता
    3. व्यक्तिगत मनोवृत्तियाँ
    4. स्थानीय समुदाय

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: प्रक्रियात्मक समाजशास्त्र सामाजिक व्यवस्था को स्थिर अवस्था के बजाय गतिशील प्रक्रिया के रूप में देखता है। यह सामाजिक परिवर्तन, विकास और अनुकूलन की प्रक्रियाओं के अध्ययन पर जोर देता है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह अक्सर सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के बजाय परिवर्तन को समझने पर केंद्रित होता है, और इसमें अक्सर प्रणालीगत और जटिल परिप्रेक्ष्य शामिल होते हैं।
    • गलत विकल्प: स्थायी संरचनाएँ प्रकार्यवाद का मुख्य ध्यान हैं। व्यक्तिगत मनोवृत्तियाँ मनोविज्ञान का विषय हैं। स्थानीय समुदाय का अध्ययन ग्रामीण या शहरी समाजशास्त्र में हो सकता है।

    प्रश्न 10: ‘नियमों या मानदंडों का अभाव’ (Lack of norms or rules) जिसके कारण व्यक्ति अनिश्चितता महसूस करते हैं, समाजशास्त्रीय शब्दावली में क्या कहलाता है?

    1. अअलगाव (Alienation)
    2. विसंगति (Deviance)
    3. अनोमी (Anomie)
    4. वर्ग संघर्ष (Class Struggle)

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: ‘अनोमी’ (Anomie) की अवधारणा एमाइल दुर्खीम ने विकसित की। यह एक ऐसी सामाजिक स्थिति है जहाँ पारंपरिक नैतिकता और सामाजिक नियम कमजोर हो जाते हैं या उनका अभाव हो जाता है, जिससे व्यक्ति को दिशाहीनता और अनिश्चितता महसूस होती है।
    • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाज में आत्महत्या’ (Suicide) में पाया कि समाज में अचानक होने वाले बड़े परिवर्तन (जैसे आर्थिक मंदी या तेज़ी) अनोमी की स्थिति पैदा कर सकते हैं, जिससे आत्महत्या की दर बढ़ जाती है।
    • गलत विकल्प: अअलगाव (Alienation) उत्पादन प्रक्रिया से अलगाव है। विसंगति (Deviance) सामाजिक मानदंडों का उल्लंघन है। वर्ग संघर्ष मार्क्स का विचार है।

    प्रश्न 11: ‘जाति’ (Caste) को केवल जन्म पर आधारित एक बंद स्तरीकरण व्यवस्था (Closed Stratification System) के रूप में किसने परिभाषित किया?

    1. एम. एन. श्रीनिवास
    2. जी. एस. घुरिये
    3. इरावती कर्वे
    4. टी. बी. बटलर

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: इरावती कर्वे, एक प्रमुख मानवविज्ञानी और समाजशास्त्री, ने भारत में जाति व्यवस्था पर गहराई से काम किया। उन्होंने इसे ‘जन्म पर आधारित एक बंद स्तरीकरण व्यवस्था’ के रूप में परिभाषित किया, जिसमें सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) की गुंजाइश बहुत कम होती है।
    • संदर्भ और विस्तार: कर्वे ने जाति को न केवल व्यवसाय तक सीमित बल्कि विवाह (Endogamy) और खान-पान के प्रतिबंधों से भी जोड़ा।
    • गलत विकल्प: एम. एन. श्रीनिवास और जी. एस. घुरिये ने भी भारतीय जाति पर महत्वपूर्ण काम किया, लेकिन कर्वे की परिभाषा विशेष रूप से ‘बंद व्यवस्था’ पर केंद्रित थी। टी. बी. बटलर का नाम प्रमुख भारतीय समाजशास्त्रीय अध्ययनों में नहीं आता।

    प्रश्न 12: ‘प्रकार्यों’ (Functions) के बारे में रॉबर्ट मर्टन का क्या दृष्टिकोण था?

    1. उन्होंने केवल प्रकट प्रकार्यों (Manifest Functions) को मान्यता दी।
    2. उन्होंने केवल अप्रकट प्रकार्यों (Latent Functions) को मान्यता दी।
    3. उन्होंने प्रकट और अप्रकट प्रकार्यों, तथा दुष्कार्यों (Dysfunctions) में अंतर किया।
    4. उन्होंने प्रकार्यों की अवधारणा को अनावश्यक माना।

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: रॉबर्ट मर्टन ने प्रकार्यों की अवधारणा को परिष्कृत किया। उन्होंने ‘प्रकट प्रकार्यों’ (वे परिणाम जो किसी सामाजिक प्रथा के लिए स्पष्ट रूप से इच्छित और मान्यता प्राप्त होते हैं) और ‘अप्रकट प्रकार्यों’ (वे परिणाम जो अनपेक्षित और अमान्य होते हैं) के बीच अंतर किया। उन्होंने ‘दुष्कार्यों’ (वे परिणाम जो सामाजिक व्यवस्था या अनुकूलन को बाधित करते हैं) की अवधारणा भी पेश की।
    • संदर्भ और विस्तार: मर्टन का यह परिष्करण प्रकार्यवाद को अधिक सूक्ष्म और विश्लेषणात्मक बनाता है, जो सामाजिक घटनाओं के अप्रत्यक्ष प्रभावों को भी समझने में मदद करता है।
    • गलत विकल्प: अन्य विकल्प मर्टन के योगदान को पूरी तरह से व्यक्त नहीं करते हैं।

    प्रश्न 13: ‘भारतीय ग्रामीण समाज’ (Indian Rural Society) के संदर्भ में, ‘जजमानी प्रणाली’ (Jajmani System) से क्या तात्पर्य है?

    1. सभी जातियों के लिए समान आर्थिक अवसर
    2. ग्रामीण समुदायों में सेवा-विनिमय की एक पारंपरिक व्यवस्था
    3. जाति आधारित विवाह व्यवस्था
    4. भूमि सुधार का एक कार्यक्रम

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: जजमानी प्रणाली एक पारंपरिक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था है जिसमें गांवों में विभिन्न जातियों के बीच सेवाओं और वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है। इसमें एक जाति (जजमान) दूसरी जातियों (कुलिन्स या प्रजा) को सेवाएं प्रदान करती है और बदले में उन्हें वस्तुएं और आजीविका मिलती है।
    • संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था अक्सर वंशानुगत होती है और जाति-आधारित श्रम विभाजन से जुड़ी होती है, जो ग्रामीण समुदायों की आत्मनिर्भरता को सुनिश्चित करती थी।
    • गलत विकल्प: यह समान अवसर नहीं है, बल्कि एक पदानुक्रमित व्यवस्था है। यह सीधे तौर पर विवाह या भूमि सुधार से संबंधित नहीं है।

    प्रश्न 14: ‘संरचनात्मक विभेदन’ (Structural Differentiation) का क्या अर्थ है?

    1. समाज में विभिन्न वर्गों के बीच असमानता।
    2. समाज में विभिन्न सामाजिक कार्यों के लिए विभिन्न संस्थाओं का विकास।
    3. व्यक्तिगत भूमिकाओं के बीच संघर्ष।
    4. सांस्कृतिक मूल्यों में भिन्नता।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: संरचनात्मक विभेदन वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज में विभिन्न कार्यों को करने के लिए विशेषीकृत संस्थाओं का विकास होता है। उदाहरण के लिए, पहले परिवार अक्सर शिक्षा, धर्म और उत्पादन जैसे कई कार्य करता था, लेकिन आधुनिक समाजों में, शिक्षा के लिए स्कूल, धर्म के लिए चर्च और उत्पादन के लिए कारखाने जैसी अलग-अलग संस्थाएं विकसित हुई हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: यह आधुनिकीकरण और जटिलता की प्रक्रिया का एक महत्वपूर्ण पहलू है, जो समाजशास्त्रियों जैसे दुर्खीम (श्रम विभाजन) और लुहमान (सामाजिक प्रणालियाँ) द्वारा अध्ययन किया गया है।
    • गलत विकल्प: असमानता स्तरीकरण का हिस्सा है। भूमिका संघर्ष व्यक्तिगत है। सांस्कृतिक भिन्नता सांस्कृतिक समाजशास्त्र का विषय है।

    प्रश्न 15: ‘समूह कोहोर्ट’ (Cohort Group) से क्या तात्पर्य है?

    1. एक ही जाति के सदस्य।
    2. एक ही क्षेत्र के निवासी।
    3. एक निश्चित समयावधि में एक साझा अनुभव या घटना से गुजरने वाले व्यक्तियों का समूह।
    4. एक ही पेशे के लोग।

    उत्तर: (c)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: ‘समूह कोहोर्ट’ (Cohort Group) उन व्यक्तियों का एक समूह है जो किसी विशिष्ट अवधि के दौरान एक ही घटना का अनुभव करते हैं या एक ही महत्वपूर्ण परिवर्तन से गुजरते हैं। समाजशास्त्र और जनसांख्यिकी में, यह अक्सर एक विशेष वर्ष या अवधि में पैदा हुए लोगों (जन्म कोहोर्ट) के अध्ययन के लिए प्रयोग किया जाता है।
    • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद पैदा हुए ‘बेबी बूमर्स’ एक महत्वपूर्ण कोहोर्ट का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनके साझा अनुभव उनके जीवनकाल में सामाजिक और आर्थिक पैटर्न को प्रभावित करते हैं।
    • गलत विकल्प: अन्य विकल्प व्यक्तियों को साझा अनुभव के बजाय अन्य मानदंडों के आधार पर वर्गीकृत करते हैं।

    प्रश्न 16: ‘नृजाति विज्ञान’ (Ethnography) अनुसंधान की कौन सी पद्धति है?

    1. मात्रात्मक (Quantitative)
    2. गुणात्मक (Qualitative)
    3. मिश्रित (Mixed Methods)
    4. प्रायोगिक (Experimental)

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: नृजाति विज्ञान एक गुणात्मक (Qualitative) अनुसंधान पद्धति है जिसमें शोधकर्ता किसी विशेष संस्कृति या सामाजिक समूह का गहन अध्ययन करने के लिए लंबे समय तक उस समूह के बीच रहता है (फील्डवर्क), उनकी भाषा, रीति-रिवाजों और सामाजिक जीवन का अवलोकन और साक्षात्कार करता है।
    • संदर्भ और विस्तार: इसका उद्देश्य उस समूह के सदस्यों के दृष्टिकोण से उनकी दुनिया को समझना है। यह अक्सर गहन साक्षात्कार, अवलोकन और दस्तावेज़ विश्लेषण का उपयोग करता है।
    • गलत विकल्प: मात्रात्मक विधियाँ संख्याओं और सांख्यिकी पर आधारित होती हैं। मिश्रित विधियाँ दोनों का उपयोग करती हैं। प्रायोगिक विधियाँ नियंत्रित वातावरण में कारणों का पता लगाने की कोशिश करती हैं।

    प्रश्न 17: ‘मैक्स वेबर’ ने समाज को मुख्य रूप से किस आधार पर स्तरीकृत (Stratified) माना?

    1. केवल आर्थिक वर्ग
    2. वर्ग (Class), दर्जा (Status) और शक्ति (Party)
    3. केवल जन्म और वंश
    4. ज्ञान और शिक्षा

    उत्तर: (b)

    विस्तृत स्पष्टीकरण:

    • सत्यता: वेबर ने कार्ल मार्क्स के एकल-आयामी (केवल आर्थिक) दृष्टिकोण के विपरीत, सामाजिक स्तरीकरण को बहु-आयामी माना। उन्होंने तीन प्रमुख आयामों की पहचान की: वर्ग (Class) – आर्थिक स्थिति पर आधारित; दर्जा (Status) – सामाजिक सम्मान और प्रतिष्ठा पर आधारित; और शक्ति (Party) – राजनीतिक प्रभाव या शक्ति पर आधारित।
    • संदर्भ और विस्तार: वेबर के अनुसार, ये तीनों आयाम व्यक्ति की सामाजिक स्थिति को निर्धारित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, और ये हमेशा एक दूसरे से मेल नहीं खाते।
    • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने मुख्य रूप से आर्थिक वर्ग पर ध्यान केंद्रित किया।

    प्रश्न 18: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?

    1. विलियम ओगबर्न
    2. ए.एल. क्रॉबर
    3. रॉबर्ट पार्क
    4. चार्ल्स कूली
    5. उत्तर: (a)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: विलियम ओगबर्न ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा प्रस्तुत की। यह तब उत्पन्न होता है जब समाज के भौतिक या तकनीकी पहलू (जैसे नई तकनीक) गैर-भौतिक या अनुकूलनशील पहलू (जैसे सामाजिक नियम, मूल्य, संस्थाएं) से तेजी से आगे बढ़ जाते हैं, जिससे असंतुलन और संघर्ष पैदा होता है।
      • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, नई संचार तकनीकें (जैसे इंटरनेट) तेजी से विकसित होती हैं, लेकिन समाज को गोपनीयता, सुरक्षा और ऑनलाइन व्यवहार से संबंधित नियमों और नैतिकता को विकसित करने में समय लगता है।
      • गलत विकल्प: क्रॉबर और पार्क शिकागो स्कूल के महत्वपूर्ण समाजशास्त्री थे। कूली ने ‘मैं-आईना’ (Looking-Glass Self) की अवधारणा दी।

      प्रश्न 19: ‘सबलीकरण’ (Empowerment) की समाजशास्त्रीय अवधारणा मुख्य रूप से किस पर केंद्रित है?

      1. व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा
      2. शक्तिहीन समूहों को अधिक नियंत्रण और प्रभाव प्राप्त करने की प्रक्रिया
      3. सरकार द्वारा प्रदान की जाने वाली वित्तीय सहायता
      4. पारंपरिक सत्ता संरचनाओं को बनाए रखना

      उत्तर: (b)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: समाजशास्त्र में सबलीकरण (Empowerment) उन व्यक्तियों या समूहों की प्रक्रिया को संदर्भित करता है जो ऐतिहासिक रूप से शक्तिहीन या हाशिए पर रहे हैं, और जो अपने जीवन, समुदाय और समाज पर अधिक नियंत्रण और प्रभाव प्राप्त करते हैं। यह अक्सर सामाजिक न्याय और परिवर्तन के संदर्भ में देखा जाता है।
      • संदर्भ और विस्तार: यह अक्सर राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं को शामिल करता है, जिससे व्यक्ति या समूह अपनी आवाज़ उठा सकें और निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग ले सकें।
      • गलत विकल्प: व्यक्तिगत महत्वाकांक्षा एक अलग अवधारणा है। वित्तीय सहायता एक साधन हो सकती है, लक्ष्य नहीं। पारंपरिक सत्ता बनाए रखना सबलीकरण के विपरीत है।

      प्रश्न 20: ‘जैव-समाजशास्त्र’ (Biosociology) समाजशास्त्र में किस दृष्टिकोण का प्रतिनिधित्व करता है?

      1. मानव व्यवहार की व्याख्या के लिए केवल सामाजिक कारकों पर जोर देना।
      2. मानव व्यवहार और सामाजिक घटनाओं को समझने के लिए जैविक और सामाजिक दोनों कारकों के परस्पर प्रभाव पर जोर देना।
      3. समाज को केवल जैविक प्रक्रियाओं से निर्मित मानना।
      4. सामाजिक समस्याओं का समाधान केवल जैविक हस्तक्षेप से करना।

      उत्तर: (b)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: जैव-समाजशास्त्र (Biosociology) एक ऐसा दृष्टिकोण है जो सामाजिक व्यवहार और संरचनाओं की व्याख्या के लिए जैविक और सामाजिक दोनों कारकों के अंतर्संबंध को स्वीकार करता है। यह मानता है कि आनुवंशिकी, तंत्रिका विज्ञान, और अन्य जैविक कारक सामाजिक व्यवहार को प्रभावित कर सकते हैं, और सामाजिक कारक जैविक प्रक्रियाओं को प्रभावित कर सकते हैं।
      • संदर्भ और विस्तार: यह मानव स्वभाव की जटिलता को स्वीकार करता है और ‘प्रकृति बनाम पोषण’ (Nature vs Nurture) की बहस में एक संतुलित दृष्टिकोण प्रदान करता है।
      • गलत विकल्प: केवल सामाजिक या केवल जैविक कारकों पर जोर देना इस दृष्टिकोण के विपरीत है।

      प्रश्न 21: ‘भारतीय समाज में आधुनिकता’ (Modernity in Indian Society) के संदर्भ में, ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा को किसने पेश किया?

      1. एम. एन. श्रीनिवास
      2. एस. सी. दुबे
      3. योगेन्द्र सिंह
      4. रंजीत गुहा

      उत्तर: (a)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: एम. एन. श्रीनिवास ने ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा का प्रयोग विशेष रूप से भारतीय समाज के संदर्भ में ब्रिटिश शासन के प्रभाव के कारण हुए सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों को समझाने के लिए किया। इसमें पश्चिमी शिक्षा, कानून, औद्योगीकरण, संस्थाओं और जीवनशैली को अपनाना शामिल था।
      • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने ‘सकर्मणता’ की अवधारणा के साथ-साथ ‘पश्चिमीकरण’ का भी उल्लेख किया, यह दिखाते हुए कि कैसे भारतीय समाज ने बाहरी और आंतरिक दोनों तरह के प्रभावों के प्रति प्रतिक्रिया व्यक्त की है।
      • गलत विकल्प: एस. सी. दुबे और योगेन्द्र सिंह ने भी आधुनिकता और परिवर्तन पर काम किया, लेकिन पश्चिमीकरण को इस रूप में प्रस्तुत करने का श्रेय श्रीनिवास को जाता है।

      प्रश्न 22: ‘संरचनात्मक हिंसा’ (Structural Violence) की अवधारणा किससे जुड़ी है?

      1. शारीरिक हमला
      2. संस्थाओं या सामाजिक संरचनाओं के कारण होने वाली हानि
      3. व्यक्तिगत संघर्ष
      4. गलतफहमी

      उत्तर: (b)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: ‘संरचनात्मक हिंसा’ (Structural Violence) की अवधारणा अक्सर जोहान गैल्टंग (Johan Galtung) जैसे विद्वानों से जुड़ी है। यह वह स्थिति है जहाँ सामाजिक संरचनाएं या संस्थाएं (जैसे आर्थिक, राजनीतिक, कानूनी प्रणालियाँ) समाज के कुछ सदस्यों को व्यवस्थित रूप से नुकसान पहुँचाती हैं, उन्हें अवसरों से वंचित करती हैं, या उनके कल्याण को कम करती हैं, भले ही कोई प्रत्यक्ष हिंसक कृत्य न हो।
      • संदर्भ और विस्तार: गरीबी, असमानता, भेदभाव और संसाधनों तक असमान पहुँच को संरचनात्मक हिंसा के उदाहरण माना जा सकता है।
      • गलत विकल्प: शारीरिक हमला प्रत्यक्ष हिंसा है। व्यक्तिगत संघर्ष और गलतफहमी संरचनात्मक हिंसा के कारण हो सकते हैं, लेकिन स्वयं वे संरचनात्मक हिंसा नहीं हैं।

      प्रश्न 23: ‘नेटिविज़्म’ (Nativism) का समाजशास्त्रीय अर्थ क्या है?

      1. स्थानीय संस्कृति को बढ़ावा देना और बाहरी प्रभाव का विरोध करना।
      2. आप्रवासियों का स्वागत करना।
      3. संस्कृति का वैश्विकरण।
      4. अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का समर्थन करना।

      उत्तर: (a)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: नेटिविज़्म (Nativism) एक सामाजिक और राजनीतिक विचारधारा है जो किसी देश के स्वदेशी निवासियों (natives) के हितों की रक्षा के नाम पर अप्रवासियों (immigrants) या विदेशी प्रभावों का विरोध करती है। यह अक्सर सांस्कृतिक, आर्थिक और राष्ट्रीय पहचान के संरक्षण पर जोर देती है।
      • संदर्भ और विस्तार: यह राष्ट्रीयता और विदेशी विरोधी भावना से गहराई से जुड़ा हुआ है।
      • गलत विकल्प: आप्रवासियों का स्वागत करना इसके विपरीत है। संस्कृति का वैश्विकरण या अंतर्राष्ट्रीय व्यापार इसके अर्थ में शामिल नहीं हैं।

      प्रश्न 24: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा क्या है?

      1. किसी व्यक्ति की वित्तीय संपत्ति।
      2. नेटवर्क, विश्वास, और पारस्परिक संबंधों से उत्पन्न होने वाली क्षमताएँ जो व्यक्तियों को सामूहिक रूप से कार्य करने में मदद करती हैं।
      3. शिक्षा और कौशल का स्तर।
      4. भौतिक संपदा का स्वामित्व।

      उत्तर: (b)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: सामाजिक पूंजी (Social Capital) का अर्थ है व्यक्तियों या समूहों के सामाजिक नेटवर्क, विश्वास, आपसी सहयोग और जुड़ाव से प्राप्त लाभ। यह उन्हें जानकारी, संसाधन और समर्थन तक पहुँच प्रदान करता है, जिससे वे अपने लक्ष्यों को प्राप्त कर पाते हैं। पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) और रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam) जैसे समाजशास्त्रियों ने इस अवधारणा पर विस्तार से काम किया है।
      • संदर्भ और विस्तार: मजबूत सामाजिक संबंध और सामुदायिक जुड़ाव अक्सर बेहतर स्वास्थ्य, शिक्षा और आर्थिक सफलता से जुड़े होते हैं।
      • गलत विकल्प: वित्तीय संपत्ति, शिक्षा और भौतिक संपदा व्यक्तिगत या आर्थिक पूंजी के रूप हैं, सामाजिक पूंजी के नहीं।

      प्रश्न 25: ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का मूल सिद्धांत क्या है?

      1. सभी संस्कृतियाँ समान रूप से अच्छी हैं।
      2. किसी संस्कृति को उसके अपने संदर्भ में समझा जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी सांस्कृतिक मानकों के आधार पर।
      3. पश्चिमी संस्कृति अन्य सभी संस्कृतियों से श्रेष्ठ है।
      4. संस्कृतियाँ हमेशा बदलती रहती हैं।

      उत्तर: (b)

      विस्तृत स्पष्टीकरण:

      • सत्यता: सांस्कृतिक सापेक्षवाद का सिद्धांत कहता है कि किसी संस्कृति के विश्वासों, मूल्यों और प्रथाओं को उस संस्कृति के संदर्भ में ही समझा और मूल्यांकित किया जाना चाहिए, न कि किसी अन्य संस्कृति (अक्सर अपनी संस्कृति) के मानकों के आधार पर। इसका उद्देश्य पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर विभिन्न संस्कृतियों को समझना है।
      • संदर्भ और विस्तार: यह मानवविज्ञानी फ्रांस बोआस (Franz Boas) से जुड़ा हुआ है। यह ‘नृजातीय केंद्रवाद’ (Ethnocentrism) का विरोधी है, जो अपनी संस्कृति को श्रेष्ठ मानता है।
      • गलत विकल्प: यह नहीं कहता कि सभी संस्कृतियाँ ‘समान रूप से अच्छी’ हैं, बल्कि यह कि उन्हें उनके अपने मानकों पर आंका जाना चाहिए। यह पश्चिम की श्रेष्ठता को भी नहीं मानता।

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