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समाजशास्त्र की गहराइयों में उतरें: आज का मॉक टेस्ट

समाजशास्त्र की गहराइयों में उतरें: आज का मॉक टेस्ट

नमस्कार, भावी समाजशास्त्रियों! आज हम समाजशास्त्र के आपके ज्ञान को और गहरा करने के लिए एक विशेष दैनिक अभ्यास सत्र लेकर आए हैं। अपनी अवधारणाओं को परखें, अपने विश्लेषणात्मक कौशल को निखारें और प्रतिस्पर्धा परीक्षाओं के लिए अपनी तैयारी को एक नई धार दें। आइए, इस बौद्धिक यात्रा पर निकल पड़ें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की अवधारणा किस समाजशास्त्री ने प्रस्तुत की?

  1. इमाइल दुर्खीम
  2. विलियम एफ. ओग्बर्न
  3. रॉबर्ट मर्टन
  4. सी. राइट मिल्स

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: विलियम एफ. ओग्बर्न ने अपनी पुस्तक “Social Change with Respect to Culture and Original Nature” (1922) में “सांस्कृतिक विलंब” की अवधारणा पेश की। इसके अनुसार, भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मूल्य, रीति-रिवाज) की तुलना में तेजी से बदलती है, जिससे समाज में असंतुलन और विलंब पैदा होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा सामाजिक परिवर्तन के अध्ययन में महत्वपूर्ण है, यह बताती है कि कैसे नई प्रौद्योगिकियों को अपनाने में समाज को अक्सर समायोजन की समस्या का सामना करना पड़ता है, क्योंकि सामाजिक मूल्य और संस्थाएं उतनी तेज़ी से नहीं बदल पातीं।
  • गलत विकल्प: इमाइल दुर्खीम ने “एकात्मकता” (Anomie) जैसी अवधारणाओं पर काम किया। रॉबर्ट मर्टन ने “अनुकूलनकारी व्यवहार” (Modes of Adaptation) और “विभेदित साहचर्य” (Differential Association) पर काम किया। सी. राइट मिल्स “साहित्यिक कल्पना” (Sociological Imagination) के लिए जाने जाते हैं।

प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा मैक्स वेबर के अनुसार “आदर्श प्रारूप” (Ideal Type) का हिस्सा नहीं है?

  1. अतिशयोक्ति (Exaggeration)
  2. तर्कसंगत संगति (Logical Consistency)
  3. ऐतिहासिक विशिष्टता (Historical Specificity)
  4. व्यावहारिक औचित्य (Practical Justification)

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: मैक्स वेबर ने “आदर्श प्रारूप” को एक वैचारिक उपकरण के रूप में परिभाषित किया, जिसका उपयोग वास्तविकता का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है। यह वास्तविकता का सटीक प्रतिबिंब नहीं है, बल्कि एक ऐसी रचना है जो किसी घटना के विशिष्ट, अतिरंजित और तार्किक रूप से सुसंगत पहलुओं को पकड़ती है। आदर्श प्रारूप ऐतिहासिक रूप से विशिष्ट हो सकता है, लेकिन इसका उद्देश्य “व्यावहारिक औचित्य” प्रदान करना नहीं है, बल्कि यह एक विश्लेषणात्मक उपकरण है।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने नौकरशाही, पूंजीवाद और सत्ता के विभिन्न रूपों के आदर्श प्रारूप विकसित किए। आदर्श प्रारूप में अतिशयोक्ति (सुविधा के लिए प्रमुख विशेषताओं को बढ़ाना) और तार्किक संगति (एक सुसंगत ढांचा बनाना) शामिल है, और यह ऐतिहासिक विशिष्टता को भी दर्शा सकता है, लेकिन इसका मुख्य कार्य विश्लेषण है, औचित्य नहीं।
  • गलत विकल्प: अतिशयोक्ति, तार्किक संगति और ऐतिहासिक विशिष्टता सभी आदर्श प्रारूप के निर्माण में प्रासंगिक तत्व हैं, जबकि व्यावहारिक औचित्य इसका उद्देश्य नहीं है।

प्रश्न 3: समाजशास्त्र में “एकीकरण” (Integration) का सिद्धांत किसने प्रतिपादित किया, जो समाज को एक जैविक जीव के समान देखता है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. एमाइल दुर्खीम
  3. हरबर्ट स्पेंसर
  4. टैल्कॉट पार्सन्स

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: हरबर्ट स्पेंसर, एक विक्टोरियन युग के समाजशास्त्री, ने समाज को एक जटिल, जैविक प्रणाली के रूप में देखा। उन्होंने तर्क दिया कि समाज के विभिन्न अंग (जैसे परिवार, सरकार, अर्थव्यवस्था) एक दूसरे पर निर्भर करते हैं और समाज के अस्तित्व और कार्यप्रणाली को बनाए रखने के लिए मिलकर काम करते हैं, ठीक उसी तरह जैसे मानव शरीर के अंग।
  • संदर्भ और विस्तार: स्पेंसर ने “सामाजिक डार्विनवाद” के सिद्धांतों को भी लागू किया, जिसमें “सबसे योग्य का उत्तरजीविता” (survival of the fittest) शामिल है, जो उनकी समाज की “जैविक” समझ को दर्शाता है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने “वर्ग संघर्ष” पर ध्यान केंद्रित किया। एमाइल दुर्खीम ने “सामाजिक एकजुटता” (Social Solidarity) और “एकात्मकता” (Anomie) पर जोर दिया। टैल्कॉट पार्सन्स ने “संरचनात्मक-कार्यात्मकता” (Structural-Functionalism) का एक अधिक परिष्कृत रूप विकसित किया, लेकिन स्पेंसर को अक्सर इस जैविक सादृश्य का अग्रदूत माना जाता है।

प्रश्न 4: भारतीय समाज में “समानयन” (Sanskritization) की प्रक्रिया का वर्णन सर्वप्रथम किसने किया?

  1. जी. एस. घुरिये
  2. इरावती कर्वे
  3. एम. एन. श्रीनिवास
  4. वाई. बी. दामले

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: एम. एन. श्रीनिवास, एक प्रमुख भारतीय समाजशास्त्री, ने “समानयन” (Sanskritization) शब्द का प्रयोग उस प्रक्रिया को समझाने के लिए किया जिसके द्वारा निचली या मध्य जातियों के लोग उच्च, विशेष रूप से ब्राह्मणवादी, जातियों के रीति-रिवाजों, कर्मकांडों, विश्वासों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उन्होंने अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” (1952) में इस अवधारणा को पहली बार प्रस्तुत किया। यह सामाजिक गतिशीलता का एक महत्वपूर्ण पहलू है, विशेष रूप से जाति व्यवस्था के संदर्भ में।
  • गलत विकल्प: जी. एस. घुरिये ने भारत में जाति व्यवस्था पर महत्वपूर्ण काम किया, लेकिन “समानयन” शब्द उनका नहीं है। इरावती कर्वे ने भारतीय समाज और नातेदारी व्यवस्था पर काम किया। वाई. बी. दामले भी समाजशास्त्र में योगदान देने वाले विद्वान रहे हैं।

प्रश्न 5: “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” (Symbolic Interactionism) का मुख्य जोर किस पर होता है?

  1. बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचनाएं
  2. व्यक्तियों के बीच सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाएं और प्रतीकों का अर्थ
  3. औद्योगीकरण के प्रभाव
  4. राज्य की भूमिका

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद एक सूक्ष्म-समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य है जो इस बात पर केंद्रित है कि व्यक्ति सामाजिक दुनिया का निर्माण और अर्थ कैसे करते हैं। यह इस बात पर जोर देता है कि संचार, प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) और एक-दूसरे के साथ अंतःक्रिया के माध्यम से व्यक्ति अपनी पहचान और सामाजिक वास्तविकता को आकार देते हैं। जॉर्ज हर्बर्ट मीड को इसका एक प्रमुख संस्थापक माना जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह दृष्टिकोण मानता है कि सामाजिक व्यवस्था व्यक्तियों की साझा समझ और व्याख्याओं से उत्पन्न होती है।
  • गलत विकल्प: बड़े पैमाने पर सामाजिक संरचनाओं पर “संरचनात्मक-कार्यात्मकता” या “संघर्ष सिद्धांत” जैसे मैक्रो-स्तरीय दृष्टिकोण ध्यान केंद्रित करते हैं। औद्योगीकरण और राज्य की भूमिका भी मैक्रो-स्तरीय मुद्दे हैं, जबकि प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) पर काम करता है।

प्रश्न 6: कार्ल मार्क्स के अनुसार, “अलगाव” (Alienation) की सबसे प्रमुख अभिव्यक्ति किस उत्पादन प्रणाली में होती है?

  1. सामंतवाद (Feudalism)
  2. पूंजीवाद (Capitalism)
  3. साम्यवाद (Communism)
  4. गुलाम प्रथा (Slavery)

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली के तहत श्रमिकों में अलगाव की चार मुख्य अभिव्यक्तियों का वर्णन किया: उत्पाद से अलगाव, उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव, स्वयं की प्रजाति-प्रकृति से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव। उनका मानना ​​था कि पूंजीवाद श्रमिकों को उनके श्रम के उत्पाद, उत्पादन प्रक्रिया, उनकी मानवीय क्षमता और उनके साथियों से अलग करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने अपनी रचना “Economic and Philosophic Manuscripts of 1844” में अलगाव की अवधारणा पर विस्तार से चर्चा की। उन्होंने तर्क दिया कि निजी संपत्ति और श्रम का विभाजन अलगाव के मूल कारण हैं।
  • गलत विकल्प: सामंतवाद, साम्यवाद और गुलाम प्रथा में अलगाव के भिन्न रूप हो सकते हैं, लेकिन मार्क्स के विश्लेषण के अनुसार, पूंजीवाद अलगाव का सबसे तीव्र और व्यापक रूप प्रस्तुत करता है।

प्रश्न 7: “सामाजिक स्तरीकरण” (Social Stratification) का तात्पर्य समाज के सदस्यों का ________ के आधार पर पदानुक्रमित समूहों में विभाजन है।

  1. जन्म और विरासत
  2. शक्ति, धन और प्रतिष्ठा
  3. सांस्कृतिक प्रथाएं
  4. भौगोलिक स्थिति

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: सामाजिक स्तरीकरण एक सार्वभौमिक सामाजिक प्रक्रिया है जिसमें समाज के सदस्यों को उनके संसाधनों (जैसे धन), शक्ति और प्रतिष्ठा के आधार पर विभिन्न स्तरों या परतों में व्यवस्थित किया जाता है। यह एक पदानुक्रमित प्रणाली है जहाँ कुछ समूहों के पास दूसरों की तुलना में अधिक विशेषाधिकार और अवसर होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: स्तरीकरण के विभिन्न रूप हैं, जैसे वर्ग, जाति, लिंग, और नस्ल, जो समाज के अनुसार भिन्न हो सकते हैं। मैक्स वेबर ने शक्ति, धन और प्रतिष्ठा को सामाजिक स्तरीकरण के तीन मुख्य आयामों के रूप में पहचाना।
  • गलत विकल्प: जबकि जन्म और विरासत (जैसे जाति व्यवस्था में) स्तरीकरण का एक कारण हो सकता है, यह परिभाषा का पूर्ण विवरण नहीं है। सांस्कृतिक प्रथाएं और भौगोलिक स्थिति स्तरीकरण को प्रभावित कर सकती हैं, लेकिन वे स्तरीकरण के आधारभूत आयाम नहीं हैं।

प्रश्न 8: इमाइल दुर्खीम के अनुसार, “एकात्मकता” (Anomie) की स्थिति कब उत्पन्न होती है?

  1. जब समाज के सदस्य एक-दूसरे से बहुत अधिक जुड़े होते हैं
  2. जब सामाजिक नियम और मूल्य अस्पष्ट या शिथिल हो जाते हैं
  3. जब समाज में बहुत अधिक प्रतिस्पर्धा होती है
  4. जब व्यक्ति अकेलेपन महसूस करते हैं

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: दुर्खीम ने “एकात्मकता” को एक ऐसी सामाजिक स्थिति के रूप में परिभाषित किया है जहाँ समाज के सदस्यों के लिए कोई स्पष्ट नियम, मानक या दिशा-निर्देश नहीं होते हैं। यह तब होता है जब पारंपरिक सामाजिक नियम अप्रचलित हो जाते हैं और नए नियमों की जगह नहीं ले पाते, जिससे समाज में अनिश्चितता और दिशाहीनता की भावना पैदा होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने आत्महत्या के प्रकारों पर अपने अध्ययन में एकात्मकता का वर्णन किया, विशेष रूप से “एकात्मक आत्महत्या” (anomic suicide) के संबंध में, जो सामाजिक या आर्थिक संकटों के दौरान बढ़ जाती है।
  • गलत विकल्प: समाज के सदस्यों का बहुत अधिक जुड़ाव (अत्यधिक समेकन) “एगोइस्टिक आत्महत्या” (egoistic suicide) या “फेटलिस्टिक आत्महत्या” (fatalistic suicide) से जुड़ा हो सकता है, लेकिन एकात्मकता का संबंध नियमों की कमी से है। अत्यधिक प्रतिस्पर्धा स्वयं एकात्मकता का कारण बन सकती है यदि यह अनियंत्रित हो। अकेलेपन की भावना “एगोइस्टिक आत्महत्या” से अधिक संबंधित है।

प्रश्न 9: भारतीय समाज में “आधुनिकता” (Modernity) से जुड़ा सबसे महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन कौन सा है?

  1. जाति व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण
  2. धार्मिक अनुष्ठानों का बढ़ना
  3. धर्मनिरपेक्षता, युक्तिकरण और व्यक्तिवाद का उदय
  4. पारंपरिक पंचायत प्रणालियों का पुनरुद्धार

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: आधुनिकता पश्चिमी समाजों से उत्पन्न होने वाली एक ऐतिहासिक प्रक्रिया है, जिसमें धर्मनिरपेक्षता (धार्मिक प्रभाव में कमी), युक्तिकरण (तर्क और विज्ञान पर जोर), व्यक्तिवाद (व्यक्ति के महत्व पर जोर) और औद्योगीकरण जैसे परिवर्तन शामिल हैं। भारतीय समाज में भी ये परिवर्तन देखे गए हैं, भले ही वे विशिष्ट संदर्भों में प्रकट हुए हों।
  • संदर्भ और विस्तार: औपनिवेशिक काल और उसके बाद के आर्थिक विकास ने भारतीय समाज में इन आधुनिकतावादी प्रवृत्तियों को बढ़ावा दिया है।
  • गलत विकल्प: जाति व्यवस्था का सुदृढ़ीकरण आधुनिकता के विपरीत एक पारंपरिक विशेषता है, हालांकि इसके नए रूप भी देखे जा सकते हैं। धार्मिक अनुष्ठानों में वृद्धि या पारंपरिक प्रणालियों का पुनरुद्धार आधुनिकता से हमेशा सीधे तौर पर नहीं जुड़ता, बल्कि यह प्रतिक्रिया या अनुकूलन भी हो सकता है।

प्रश्न 10: “सांस्कृतिक सापेक्षवाद” (Cultural Relativism) का सिद्धांत किस विचार पर आधारित है?

  1. सभी संस्कृतियां समान रूप से विकसित हैं।
  2. प्रत्येक संस्कृति को उसके अपने संदर्भ में समझा जाना चाहिए, न कि किसी अन्य संस्कृति के मानकों से।
  3. पश्चिमी संस्कृति सबसे श्रेष्ठ है।
  4. सांस्कृतिक परिवर्तन हमेशा प्रगतिशील होता है।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: सांस्कृतिक सापेक्षवाद एक दृष्टिकोण है जो मानता है कि किसी व्यक्ति की मान्यताओं, मूल्यों और प्रथाओं को उसी व्यक्ति की संस्कृति के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। यह किसी भी संस्कृति को दूसरों पर श्रेष्ठ या निम्न मानने के बजाय, सांस्कृतिक भिन्नताओं को स्वीकार करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह नृविज्ञान (anthropology) में एक महत्वपूर्ण सिद्धांत है, जो मानवविज्ञानी को पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर अध्ययन करने में मदद करता है।
  • गलत विकल्प: विकल्प (a) सांस्कृतिक सार्वभौमिकता (cultural universalism) की ओर इशारा करता है, जबकि (c) प्रजातिवाद (ethnocentrism) है, और (d) सांस्कृतिक विकास की एक विशेष दिशा की वकालत करता है। सांस्कृतिक सापेक्षवाद इन सभी से भिन्न है।

प्रश्न 11: एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय समाज में “प्रभुत्वशाली जाति” (Dominant Caste) की अवधारणा को किस आधार पर परिभाषित किया?

  1. केवल संख्यात्मक बहुलता
  2. भूमि स्वामित्व, राजनीतिक शक्ति और अनुष्ठानिक शुद्धता
  3. शिक्षा और शहरीकरण का स्तर
  4. पारंपरिक शिल्प कौशल

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: एम.एन. श्रीनिवास ने “प्रभुत्वशाली जाति” को ग्रामीण भारतीय समाज में ऐसी जाति के रूप में परिभाषित किया जो न केवल संख्यात्मक रूप से बड़ी हो, बल्कि महत्वपूर्ण भूमि स्वामित्व रखती हो, स्थानीय राजनीति पर नियंत्रण रखती हो, और कुछ स्तर की अनुष्ठानिक शुद्धता (traditional ritual status) भी रखती हो।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा गांव में शक्ति संरचनाओं और सामाजिक-राजनीतिक संबंधों को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। प्रभुत्वशाली जाति अक्सर स्थानीय स्तर पर निर्णय लेने में प्रमुख भूमिका निभाती है।
  • गलत विकल्प: केवल संख्यात्मकता पर्याप्त नहीं है; अन्य कारक जैसे भूमि स्वामित्व, राजनीतिक शक्ति और अनुष्ठानिक स्थिति महत्वपूर्ण हैं। शिक्षा और शहरीकरण आधुनिक प्रभाव हैं, जबकि प्रभुत्वशाली जाति पारंपरिक शक्ति संरचनाओं से जुड़ी है। शिल्प कौशल भी एक कारक हो सकता है, लेकिन यह प्रभुत्व का मुख्य निर्धारक नहीं है।

प्रश्न 12: “संरचनात्मक-कार्यात्मकता” (Structural-Functionalism) का मुख्य तर्क क्या है?

  1. समाज संघर्ष और प्रतिस्पर्धा से बना है।
  2. समाज विभिन्न भागों से बना है जो सामूहिक कल्याण के लिए एक साथ काम करते हैं।
  3. सामाजिक परिवर्तन हमेशा क्रांति द्वारा होता है।
  4. व्यक्ति समाज पर हावी होते हैं।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: संरचनात्मक-कार्यात्मकता एक व्यापक समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य है जो समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखता है जिसके विभिन्न भाग (संरचनाएं) एक साथ मिलकर काम करते हैं ताकि समाज की स्थिरता और सामंजस्य सुनिश्चित हो सके। प्रत्येक संरचना (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म) एक विशिष्ट कार्य (function) करती है जो पूरे समाज के अस्तित्व और सुचारू कामकाज में योगदान देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: एमाइल दुर्खीम, हरबर्ट स्पेंसर और टैल्कॉट पार्सन्स इस दृष्टिकोण के प्रमुख प्रतिपादक हैं।
  • गलत विकल्प: विकल्प (a) “संघर्ष सिद्धांत” का प्रतिनिधित्व करता है। विकल्प (c) क्रांति को सामाजिक परिवर्तन के प्राथमिक चालक के रूप में देखता है, जो अक्सर मार्क्सवादी विचारों से जुड़ा होता है। विकल्प (d) व्यक्तिवाद या एजेंट (agent) पर अत्यधिक जोर देता है, जो मैक्रो-स्तरीय संरचनात्मक दृष्टिकोण के विपरीत है।

प्रश्न 13: “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” का एक महत्वपूर्ण समर्थक कौन है, जिसने “मैं” (I) और “मुझे” (Me) की अवधारणा विकसित की?

  1. इमाइल दुर्खीम
  2. कार्ल मार्क्स
  3. हरबर्ट ब्लूमर
  4. जॉर्ज हर्बर्ट मीड

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के संस्थापकों में से एक माना जाता है। उन्होंने “स्व” (Self) के विकास को समझाने के लिए “मैं” (I) और “मुझे” (Me) की अवधारणा प्रस्तुत की। “मैं” व्यक्ति की तात्कालिक, अनियोजित प्रतिक्रिया है, जबकि “मुझे” वह सामाजिककृत स्व है जो दूसरों के दृष्टिकोण को आत्मसात करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड के विचारों को उनके मरणोपरांत प्रकाशित पुस्तक “Mind, Self, and Society” (1934) में संकलित किया गया था।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम और मार्क्स मैक्रो-स्तरीय सिद्धांतकार थे। हरबर्ट ब्लूमर ने मीड के विचारों को व्यवस्थित और लोकप्रिय बनाया और “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” शब्द गढ़ा, लेकिन “मैं” और “मुझे” की अवधारणा मीड की थी।

प्रश्न 14: भारत में “सामाजिक पूंजी” (Social Capital) के अध्ययन में निम्नलिखित में से किसने महत्वपूर्ण योगदान दिया है?

  1. अमर्त्य सेन
  2. एम.एन. श्रीनिवास
  3. पैट्रिक गेड्डीस
  4. जी.एस. घुरिये

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: अर्थशास्त्री और दार्शनिक अमर्त्य सेन ने सामाजिक पूंजी की अवधारणा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील देशों के संदर्भ में। सामाजिक पूंजी से तात्पर्य सामाजिक नेटवर्क, सामाजिक मानदंडों और विश्वास से है जो सहयोग और आपसी लाभ को बढ़ावा देते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: सेन ने अपने काम में इस बात पर जोर दिया कि कैसे सामाजिक नेटवर्क और विश्वास आर्थिक और सामाजिक विकास के लिए महत्वपूर्ण हैं। रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam) भी सामाजिक पूंजी के एक प्रमुख सिद्धांतकार हैं।
  • गलत विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास ने जाति और सामाजिक परिवर्तन पर काम किया। पैट्रिक गेड्डीस एक शहर योजनाकार थे। जी.एस. घुरिये भारतीय समाज और जाति पर एक क्लासिक विद्वान थे।

प्रश्न 15: “विभेदित साहचर्य” (Differential Association) का सिद्धांत निम्नलिखित में से किस क्षेत्र से संबंधित है?

  1. गरीबी का चक्र
  2. सामाजिक गतिशीलता
  3. अपराध विज्ञान और विचलन (Deviance)
  4. सांस्कृतिक विलक्षणता

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: एडविन सदरलैंड (Edwin Sutherland) द्वारा विकसित विभेदित साहचर्य का सिद्धांत बताता है कि व्यक्ति दूसरों के साथ बातचीत के माध्यम से आपराधिक व्यवहार सीखते हैं, विशेष रूप से उन लोगों के साथ जो उनके करीब हैं। यह सिद्धांत विचलन के सामाजिक सीखने के पहलू पर जोर देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: सिद्धांत के अनुसार, व्यक्ति चोरी या धोखाधड़ी जैसे अपराधों को करने के लिए अनुकूल या प्रतिकूल परिभाषाएँ सीखते हैं, यह इस बात पर निर्भर करता है कि उन्हें ऐसी क्रियाओं के प्रति अधिक अनुभव प्राप्त होता है या नहीं।
  • गलत विकल्प: गरीबी का चक्र, सामाजिक गतिशीलता और सांस्कृतिक विलक्षणता समाजशास्त्र के अन्य महत्वपूर्ण विषय हैं, लेकिन विभेदित साहचर्य विशेष रूप से विचलन और अपराध के सीखने के व्यवहार से संबंधित है।

प्रश्न 16: टैल्कॉट पार्सन्स की “ए.जी.आई.एल. (AGIL) प्रतिमान” (AGIL Scheme) का क्या उद्देश्य है?

  1. समाज के चार प्रमुख प्रकारों का वर्णन करना।
  2. समाज के सभी सामाजिक प्रणालियों के लिए चार मूलभूत कार्यात्मक उप-प्रणालियों की पहचान करना।
  3. पूंजीवाद के विकास की व्याख्या करना।
  4. आधुनिकता के चरणों का विश्लेषण करना।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: टैल्कॉट पार्सन्स ने अपने संरचनात्मक-कार्यात्मक सिद्धांत में “ए.जी.आई.एल. प्रतिमान” को विकसित किया। यह प्रतिमान बताता है कि किसी भी सामाजिक प्रणाली को जीवित रहने और कार्य करने के लिए चार आवश्यक कार्यों को पूरा करना होता है: अनुकूलीकरण (Adaptation), लक्ष्य प्राप्ति (Goal Attainment), एकीकरण (Integration), और अव्यवस्था सहनशीलता (Latency/Pattern Maintenance)।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स का मानना ​​था कि ये चार कार्य समाज की स्थिरता और निरंतरता के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  • गलत विकल्प: यह समाज के प्रकारों, पूंजीवाद के विकास या आधुनिकता के चरणों का प्रत्यक्ष रूप से वर्णन नहीं करता है, बल्कि यह उन आवश्यक कार्यात्मकताओं पर केंद्रित है जो किसी भी सामाजिक प्रणाली को चाहिए।

प्रश्न 17: भारत में “आदिवासी समुदाय” (Tribal Communities) के संदर्भ में “अलगाव” (Isolation) और “एकता” (Integration) पर किस समाजशास्त्री ने प्रमुखता से लिखा है?

  1. आंद्रे बेतेई (Andre Beteille)
  2. सुरजीत सिन्हा (Surajit Sinha)
  3. एन. के. बोस (N. K. Bose)
  4. कृष्णा अय्यर (Krishna Iyer)

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: एन. के. बोस, एक प्रमुख भारतीय मानवविज्ञानी और समाजशास्त्री, ने भारतीय आदिवासी समुदायों के साथ मुख्यधारा की भारतीय संस्कृति के संबंध के बारे में लिखा, विशेष रूप से अलगाव और एकीकरण की प्रक्रियाओं पर। उन्होंने तर्क दिया कि किस प्रकार आदिवासी समुदायों ने मुख्यधारा की संस्कृति के साथ बातचीत की है।
  • संदर्भ और विस्तार: बोस ने अक्सर “हिंदूकरण” (Hinduization) की प्रक्रिया पर भी चर्चा की, जहाँ आदिवासी समुदाय हिंदू धर्म और सामाजिक संरचनाओं को अपनाते हैं।
  • गलत विकल्प: आंद्रे बेतेई ने जाति, वर्ग और राष्ट्रवाद पर काम किया। सुरजीत सिन्हा ने भारतीय मानव विज्ञान और आदिवासी अध्ययन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। कृष्णा अय्यर भी एक प्रसिद्ध मानवविज्ञानी थे जिन्होंने आदिवासियों का अध्ययन किया, लेकिन एन. के. बोस अलगाव और एकीकरण की द्वंद्वात्मकता पर अपने प्रमुख कार्यों के लिए जाने जाते हैं।

प्रश्न 18: “सामाजिक पूंजी” (Social Capital) का अर्थ है:

  1. व्यक्ति का धन और संपत्ति।
  2. एक व्यक्ति या समूह की सामाजिक नेटवर्क, विश्वास और संबंधों के माध्यम से प्राप्त क्षमता।
  3. समाज में व्यक्ति की अनुष्ठानिक स्थिति।
  4. प्रौद्योगिकी और नवाचार का स्तर।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: जैसा कि पहले बताया गया है, सामाजिक पूंजी उन लाभों को संदर्भित करती है जो व्यक्ति या समूह अपने सामाजिक संबंधों, नेटवर्क और उनमें निहित विश्वास के माध्यम से प्राप्त करते हैं। यह सहयोग, सूचना के आदान-प्रदान और सामूहिक कार्रवाई को सुविधाजनक बनाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा व्यक्तियों और समुदायों को उनके सामाजिक संबंधों से प्राप्त होने वाले संसाधनों और अवसरों का विश्लेषण करने में मदद करती है।
  • गलत विकल्प: विकल्प (a) वित्तीय पूंजी है। विकल्प (c) सामाजिक स्तरीकरण से संबंधित है। विकल्प (d) तकनीकी प्रगति से संबंधित है।

प्रश्न 19: “साहित्यिक कल्पना” (Sociological Imagination) की अवधारणा का प्रस्ताव किसने दिया?

  1. एमाइल दुर्खीम
  2. मैक्स वेबर
  3. सी. राइट मिल्स
  4. इरविंग गॉफमैन

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: सी. राइट मिल्स ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक “The Sociological Imagination” (1959) में इस अवधारणा को पेश किया। यह व्यक्तिगत अनुभवों को व्यापक सामाजिक संरचनाओं और ऐतिहासिक संदर्भों से जोड़ने की क्षमता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मिल्स ने सुझाव दिया कि समाजशास्त्री को “निजी मामले” (personal troubles) और “सार्वजनिक मुद्दे” (public issues) के बीच संबंध को समझने की आवश्यकता है। साहित्यिक कल्पना हमें व्यक्तिगत समस्याओं को बड़े सामाजिक पैटर्न से जोड़ने में मदद करती है।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम और वेबर शास्त्रीय समाजशास्त्री थे। इरविंग गॉफमैन प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद और “नाटकशास्त्र” (dramaturgy) से जुड़े थे।

प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक संस्था (Social Institution) समाज के सदस्यों को सामाजिक नियम, मूल्य और विश्वास सिखाने के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है?

  1. परिवार
  2. सरकार
  3. अर्थव्यवस्था
  4. धर्म

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: परिवार को समाज की प्राथमिक समाजीकरण (primary socialization) की एजेंसी माना जाता है। यह वह पहली संस्था है जहाँ व्यक्ति भाषा, मूल्य, विश्वास, व्यवहार के मानदंड और सामाजिक भूमिकाएँ सीखते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: परिवार बच्चों को समाज का सदस्य बनने के लिए तैयार करता है। हालाँकि, शिक्षा, धर्म और अन्य संस्थाएं भी समाजीकरण में भूमिका निभाती हैं, लेकिन परिवार इसे मौलिक रूप से शुरू करता है।
  • गलत विकल्प: सरकार कानून लागू करती है, अर्थव्यवस्था उत्पादन और वितरण से संबंधित है, और धर्म आध्यात्मिक और नैतिक मार्गदर्शन प्रदान करता है, लेकिन समाजीकरण का प्राथमिक स्थल परिवार है।

प्रश्न 21: “जाति व्यवस्था” (Caste System) की सबसे विशिष्ट विशेषता क्या है?

  1. खुली सामाजिक गतिशीलता
  2. जन्म पर आधारित सदस्यता और अंतर्विवाह (Endogamy)
  3. आर्थिक वर्ग पर आधारित संगठन
  4. व्यवसाय का चुनाव करने की स्वतंत्रता

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: भारतीय जाति व्यवस्था की केंद्रीय विशेषता यह है कि सदस्यता जन्म से तय होती है और विवाह केवल अपनी जाति के भीतर ही स्वीकार्य है (अंतर्विवाह)। यह एक अत्यंत स्तरीकृत और प्रतिबंधित व्यवस्था है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था पवित्रता और प्रदूषण की धारणाओं, पारंपरिक व्यवसायों के आधार पर समूहों में विभाजन, और प्रतिबंधात्मक सामाजिक अंतःक्रियाओं से जुड़ी है।
  • गलत विकल्प: जाति व्यवस्था में सामाजिक गतिशीलता अत्यंत सीमित होती है (खुली गतिशीलता नहीं)। यह आर्थिक वर्ग पर आधारित नहीं है, बल्कि जन्म और अनुष्ठानिक स्थिति पर आधारित है। व्यवसाय चुनने की स्वतंत्रता अक्सर प्रतिबंधित होती है।

प्रश्न 22: “संस्कृति” (Culture) शब्द का समाजशास्त्र में क्या अर्थ है?

  1. केवल कला और साहित्य।
  2. समाज द्वारा साझा किए गए ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, कानून, रीति-रिवाज और अन्य क्षमताएं और आदतें।
  3. व्यक्ति की व्यक्तिगत रुचियां।
  4. सरकार द्वारा निर्धारित नियम।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: समाजशास्त्र में, संस्कृति एक व्यापक अवधारणा है जिसमें एक समाज या समूह के सदस्यों द्वारा साझा किए गए सभी सीखे हुए व्यवहार और परिणाम शामिल हैं। इसमें न केवल भौतिक वस्तुएं (जैसे औजार, भवन) बल्कि अभौतिक तत्व (जैसे मूल्य, भाषा, विचार) भी शामिल हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह मानव व्यवहार का वह हिस्सा है जो जैविक या सहज ज्ञान युक्त नहीं है, बल्कि सीखा हुआ है।
  • गलत विकल्प: संस्कृति केवल कला और साहित्य तक सीमित नहीं है। यह व्यक्तिगत रुचियों या सरकारी नियमों से कहीं अधिक व्यापक है।

प्रश्न 23: “यंत्रवत समाज” (Mechanical Solidarity) की अवधारणा, जो समानता और समान विश्वासों पर आधारित सामाजिक एकजुटता को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमाइल दुर्खीम
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: एमाइल दुर्खीम ने “The Division of Labour in Society” (1893) में “यंत्रवत समाज” और “कार्बनिक समाज” (Organic Solidarity) के बीच अंतर किया। यंत्रवत समाज, जो पारंपरिक समाजों की विशेषता है, में सदस्य अत्यधिक समान होते हैं और सामूहिक चेतना (collective consciousness) मजबूत होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: इस प्रकार के समाज में, लोग समान विश्वासों, मूल्यों और गतिविधियों के कारण एक-दूसरे से जुड़े होते हैं। एकता समानता से उत्पन्न होती है।
  • गलत विकल्प: मार्क्स ने “वर्ग संघर्ष” पर, वेबर ने “तर्कसंगतता” और “सत्ता” पर, और स्पेंसर ने “जैविक सादृश्य” पर जोर दिया। दुर्खीम ने “सामाजिक एकजुटता” के प्रकारों का विश्लेषण किया।

प्रश्न 24: “सामाजिक परिवर्तन” (Social Change) का तात्पर्य समाज की _______ में दीर्घकालिक परिवर्तन से है।

  1. आर्थिक स्थिति
  2. सांस्कृतिक प्रथाएं
  3. संरचना और कार्यप्रणाली
  4. जनसंख्या का घनत्व

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: सामाजिक परिवर्तन एक व्यापक शब्द है जो समय के साथ समाज की संरचना (जैसे सामाजिक स्तरीकरण, संस्थाएं) और कार्यप्रणाली (जैसे सामाजिक संबंध, प्रक्रियाएं) में होने वाले किसी भी महत्वपूर्ण और दीर्घकालिक परिवर्तन को संदर्भित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: इसमें राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक, तकनीकी और जनसांख्यिकीय परिवर्तन शामिल हो सकते हैं।
  • गलत विकल्प: जबकि आर्थिक स्थिति, सांस्कृतिक प्रथाएं और जनसंख्या घनत्व सामाजिक परिवर्तन के घटक या परिणाम हो सकते हैं, सामाजिक परिवर्तन की परिभाषा इन सभी को समाहित करती है, जो समाज की समग्र संरचना और कार्यप्रणाली में परिवर्तन को दर्शाती है।

प्रश्न 25: “अर्ध-विशिष्टता” (Glocalization) की अवधारणा, जो वैश्विक और स्थानीय कारकों के मिश्रण को दर्शाती है, ________ के अध्ययन में प्रासंगिक है।

  1. ग्रामीण समाजशास्त्र
  2. शहरी समाजशास्त्र
  3. सांस्कृतिक समाजशास्त्र
  4. पर्यावरण समाजशास्त्र

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सही होने का कारण: “अर्ध-विशिष्टता” (Glocalization) एक ऐसी प्रक्रिया है जहाँ वैश्विक उत्पादों, विचारों या प्रथाओं को स्थानीय संदर्भों और संस्कृतियों के अनुकूल बनाया जाता है। यह सांस्कृतिक समाजशास्त्र में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है, जो यह विश्लेषण करता है कि कैसे वैश्विक सांस्कृतिक प्रवाह स्थानीय संस्कृतियों के साथ परस्पर क्रिया करते हैं और उन्हें रूपांतरित करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, मैकडॉनल्ड्स का विभिन्न देशों में स्थानीय स्वाद के अनुसार अपने मेनू को बदलना अर्ध-विशिष्टता का एक क्लासिक उदाहरण है।
  • गलत विकल्प: हालांकि अर्ध-विशिष्टता का प्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ सकता है, इसका मूल संबंध संस्कृति के साथ है कि कैसे वैश्विक और स्थानीय सांस्कृतिक तत्व मिश्रित होते हैं।

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