समाजशास्त्र की गहन पड़ताल: आपकी दैनिक परीक्षा
तैयारी के इस सफ़र में, अवधारणाओं पर अपनी पकड़ मजबूत करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। आज का यह अभ्यास सत्र आपकी समाजशास्त्रीय समझ को परखने और नई ऊंचाइयों पर ले जाने का एक अनूठा अवसर प्रदान करता है। आइए, इन 25 चुनौतियों के साथ अपने ज्ञान का परीक्षण करें और प्रत्येक प्रश्न के गहन विश्लेषण से सीखें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और दिए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: “सामाजिक तथ्य” (social fact) की अवधारणा, जिसे व्यक्ति की चेतना से स्वतंत्र और उस पर बाहरी दबाव डालने वाली शक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है, किस समाजशास्त्री से संबंधित है?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- इमाइल दुर्खीम
- जी.एच. मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: इमाइल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाजशास्त्रीय पद्धति के नियम’ (The Rules of Sociological Method) में “सामाजिक तथ्य” की अवधारणा प्रस्तुत की। उनके अनुसार, सामाजिक तथ्य वे जीवन जीने के तरीके, सोचने के तरीके, अनुभव करने के तरीके हैं जो व्यक्ति के बाहर मौजूद हैं और उस पर बाहरी दबाव डालते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम का मानना था कि समाजशास्त्र को विज्ञान की तरह अनुभवजन्य (empirical) और सकारात्मक (positive) होना चाहिए, और सामाजिक तथ्यों का अध्ययन वस्तुनिष्ठ (objective) रूप से किया जाना चाहिए, जैसे प्राकृतिक विज्ञान में घटनाओं का।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का मुख्य ध्यान वर्ग संघर्ष और आर्थिकDeterminism पर था। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया (social action) और उसके व्यक्तिपरक अर्थों (subjective meanings) को समझने पर जोर दिया (Verstehen)। जी.एच. मीड ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के जनक माने जाते हैं।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सी संकल्पना सामाजिक व्यवस्था (social order) को बनाए रखने के लिए समाज के विभिन्न भागों के परस्पर एकीकरण और कार्य करने के तरीके का वर्णन करती है?
- संघर्ष (Conflict)
- सामाजिक विघटन (Social Disorganization)
- सामाजिक संरचना (Social Structure)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रिया (Symbolic Interaction)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक संरचना (Social Structure) समाज के उन अपेक्षाकृत स्थायी पैटर्नों को संदर्भित करती है जो व्यक्तियों और समूहों के बीच संबंधों, उनकी भूमिकाओं और स्थिति (status) से बने होते हैं, जो एक व्यवस्थित तरीके से कार्य करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा समाज के विभिन्न अंगों (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म) के बीच संबंधों और उनके सामूहिक रूप से समाज को बनाए रखने के तरीके पर जोर देती है। यह संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकतावाद (Structural-Functionalism) जैसे दृष्टिकोणों का एक मुख्य तत्व है।
- गलत विकल्प: संघर्ष (Conflict) सामाजिक व्यवस्था को बाधित करने वाला कारक है। सामाजिक विघटन (Social Disorganization) व्यवस्था की अनुपस्थिति या कमजोरी को दर्शाता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रिया (Symbolic Interaction) सामाजिक संबंधों के अर्थ निर्माण पर केंद्रित है, न कि पूरी व्यवस्था के एकीकरण पर।
प्रश्न 3: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की प्रक्रिया का अर्थ है:
- पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण
- निम्न जाति का उच्च जाति की रीति-रिवाजों, परंपराओं और जीवन शैली को अपनाना
- शहरीकरण की प्रक्रिया
- आधुनिक तकनीकी विकास
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संस्कृतिकरण (Sanskritization) वह प्रक्रिया है जिसमें निचली या मध्य जातियों के लोग किसी उच्च जाति के धार्मिक विचारों, रीति-रिवाजों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाते हैं ताकि समाज में अपनी स्थिति को ऊँचा उठा सकें। यह एम.एन. श्रीनिवास की एक महत्वपूर्ण संकल्पना है।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में इस अवधारणा को पहली बार प्रस्तुत किया। यह सांस्कृतिक गतिशीलता (cultural mobility) का एक रूप है, लेकिन जरूरी नहीं कि यह संरचनात्मक गतिशीलता (structural mobility) भी हो।
- गलत विकल्प: पश्चिमीकरण (Westernization) पश्चिमी देशों की जीवन शैली का अनुकरण है। शहरीकरण (Urbanization) गांवों से शहरों की ओर प्रवास है। आधुनिकीकरण (Modernization) व्यापक आर्थिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक परिवर्तन को दर्शाता है।
प्रश्न 4: कौन सा समाजशास्त्री “सामाजिक क्रिया” (Social Action) को व्यक्ति द्वारा किए गए ऐसे व्यवहार के रूप में परिभाषित करता है जिसका कर्ता उस व्यवहार में एक निश्चित अर्थ (meaning) जोड़ता है?
- इमाइल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- ए.आर. रैडक्लिफ-ब्राउन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया (Social Action) को समाजशास्त्र के अध्ययन का केंद्रीय बिंदु माना। उन्होंने इसे ऐसे व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जिसका कर्ता व्यक्ति उसे एक व्यक्तिपरक अर्थ (subjective meaning) संलग्न करता है, और यह व्यवहार दूसरों के व्यवहार से प्रभावित होता है या उसके प्रति निर्देशित होता है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर का मानना था कि समाजशास्त्र को न केवल सामाजिक व्यवहार के पैटर्न का अध्ययन करना चाहिए, बल्कि उन अंतर्निहित अर्थों और प्रेरणाओं को भी समझना चाहिए जो व्यक्तियों को ऐसे व्यवहार करने के लिए प्रेरित करते हैं। इसे ‘Verstehen’ (समझ) का दृष्टिकोण भी कहा जाता है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम सामाजिक तथ्यों के वस्तुनिष्ठ अध्ययन पर जोर देते थे। मार्क्स वर्ग संघर्ष और आर्थिक शक्तियों पर केंद्रित थे। रैडक्लिफ-ब्राउन एक संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकतावादी थे जिनका ध्यान सामाजिक संरचना और उसके कार्यों पर था।
प्रश्न 5: “अजनबी” (The Stranger) की समाजशास्त्रीय संकल्पना, जो एक समूह में बाहर से आया हुआ और उसी समय समूह का हिस्सा भी है, को किसने विकसित किया?
- जॉर्ज सिमेल
- एर्विंग गोफमैन
- चार्ल्स एच. कूली
- रॉबर्ट ई. पार्क
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जॉर्ज सिमेल (Georg Simmel) ने ‘अजनबी’ (The Stranger) की संकल्पना को विकसित किया। अजनबी वह व्यक्ति होता है जो समूह में प्रवेश करता है, लेकिन उसके पास समूह के सदस्यों के समान अंतर्निहित संबंध (embeddedness) नहीं होते। वह पास भी है और दूर भी।
- संदर्भ और विस्तार: सिमेल के अनुसार, अजनबी की स्थिति उसे एक अनोखी दृष्टि प्रदान करती है। वह समूह से जुड़ा होने के बावजूद अपेक्षाकृत स्वतंत्र होता है, जिससे वह समूह के बारे में निष्पक्ष आलोचनात्मक दृष्टिकोण अपना सकता है। यह विचार उनकी पुस्तक ‘Sociology’ में पाया जाता है।
- गलत विकल्प: गोफमैन ‘नाटकशास्त्र’ (Dramaturgy) से जुड़े हैं। कूली ‘दर्पण-आत्म’ (Looking-glass Self) की अवधारणा के लिए जाने जाते हैं। पार्क ‘शिकागो स्कूल’ के एक प्रमुख सदस्य थे जिन्होंने शहरी समाजशास्त्र और प्रवासन पर काम किया।
प्रश्न 6: जब किसी समाज में सामाजिक मानदंडों (social norms) और मूल्यों (values) के बीच एक गहरा अंतराल आ जाता है, जिससे लोगों के व्यवहार में अनिश्चितता और भटकाव उत्पन्न होता है, तो इस स्थिति को क्या कहा जाता है?
- विभेदी संसर्ग (Differential Association)
- संस्थानीकरण (Institutionalization)
- अराजकता (Anomie)
- अविभेदीकरण (De-differentiation)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 7: भारतीय समाज में जाति व्यवस्था (Caste System) के संदर्भ में, ‘जाति’ (Jati) और ‘वर्ण’ (Varna) के बीच मुख्य अंतर क्या है?
- वर्ण 2000 से अधिक उप-जातियों में विभाजित है, जबकि जाति एक व्यापक श्रेणी है।
- वर्ण जन्म पर आधारित है, जबकि जाति व्यवसाय पर आधारित है।
- वर्ण चार मुख्य वर्गों (ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र) में एक पदानुक्रमित व्यवस्था है, जबकि जाति व्यावसायिक या क्षेत्रीय आधार पर अधिक सूक्ष्म और स्थानीय समूह है।
- वर्ण धार्मिक शुद्धता पर आधारित है, जबकि जाति राजनीतिक शक्ति पर आधारित है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: वर्ण प्राचीन हिंदू धर्मग्रंथों में वर्णित चार मुख्य वर्गों का एक सैद्धांतिक ढांचा है, जो व्यवसाय, पवित्रता और वंशानुक्रम पर आधारित एक पदानुक्रमित व्यवस्था प्रदान करता है। जाति (Jati) वर्ण की तुलना में अधिक विस्तृत, व्यावहारिक और स्थानीयकृत विभाजन है, जो आमतौर पर अंतर्विवाह (endogamy) समूह होते हैं और अक्सर विशिष्ट व्यवसायों से जुड़े होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: वर्ण व्यवस्था एक आदर्श प्रकार (ideal type) है, जबकि जाति एक जटिल सामाजिक वास्तविकता है जिसमें हजारों अंतर्विवाह समूह शामिल हैं। एम.एन. श्रीनिवास ने जाति की अंतर्विवाह इकाई के रूप में परिभाषा दी।
- गलत विकल्प: दोनों ही मुख्य रूप से जन्म पर आधारित माने जाते हैं, हालांकि व्यवसाय भूमिका निभाता है। जाति अधिक सूक्ष्म और संख्या में अधिक है।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखता है, जिसके विभिन्न भाग (जैसे परिवार, शिक्षा, अर्थव्यवस्था) एक साथ मिलकर कार्य करते हैं ताकि स्थिरता और सामंजस्य बना रहे?
- संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकतावाद (Structural-Functionalism)
- फेमिनिस्ट सिद्धांत (Feminist Theory)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकतावाद (Structural-Functionalism) समाज को एक जैविक जीव के समान मानता है, जहाँ प्रत्येक अंग (संरचना) एक विशिष्ट कार्य (function) करता है जो पूरे शरीर (समाज) के अस्तित्व और स्थिरता के लिए आवश्यक है। दुर्खीम, पार्सन्स और मर्टन इस दृष्टिकोण के प्रमुख प्रस्तावक हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत समाज में व्यवस्था, एकीकरण और स्थिरता पर जोर देता है। यह बताता है कि सामाजिक संस्थाएँ समाज की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करती हैं।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत समाज में शक्ति, असमानता और परिवर्तन पर केंद्रित है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद छोटे पैमाने पर सामाजिक अंतःक्रियाओं और अर्थ निर्माण का अध्ययन करता है। फेमिनिस्ट सिद्धांत लैंगिक असमानता और पितृसत्ता पर केंद्रित है।
प्रश्न 9: चार्ल्स कूली (Charles Horton Cooley) ने “दर्पण-आत्म” (Looking-glass Self) की संकल्पना प्रस्तुत की। इसके अनुसार, व्यक्ति का आत्म-सम्मान (self-concept) किस पर निर्भर करता है?
- अपने व्यक्तिगत गुणों पर
- दूसरों की प्रतिक्रियाओं के बारे में अपनी धारणा पर
- सामाजिक मानदंडों के पालन पर
- अपनी क्षमताओं के वास्तविक मूल्यांकन पर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: चार्ल्स कूली के अनुसार, ‘दर्पण-आत्म’ तीन मुख्य चरणों से बनता है: (1) हम सोचते हैं कि दूसरे हमें कैसे देखते हैं, (2) हम सोचते हैं कि दूसरे हमारे बारे में क्या निर्णय लेते हैं, और (3) हम इन निर्णयों के आधार पर अपना आत्म-मूल्यांकन (self-evaluation) करते हैं, जिससे आत्म-सम्मान (self-esteem) उत्पन्न होता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा दर्शाती है कि हमारा आत्म-बोध (sense of self) एक सामाजिक उत्पाद है, जो दूसरों के साथ हमारी अंतःक्रियाओं से आकार लेता है।
- गलत विकल्प: जबकि व्यक्तिगत गुण और वास्तविक मूल्यांकन महत्वपूर्ण हो सकते हैं, कूली के अनुसार प्राथमिक कारक वह है जो हम दूसरों की प्रतिक्रियाओं के बारे में सोचते हैं। सामाजिक मानदंडों का पालन एक अलग प्रक्रिया है।
प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सी भारतीय सामाजिक संस्था, जिसे अक्सर ‘सभी संस्थाओं की जननी’ कहा जाता है, विवाह, वंशानुक्रम, संबंध और अधिकार से संबंधित है?
- जाति
- ग्राम पंचायत
- परिवार
- धर्म
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: परिवार (Family) भारतीय समाज में एक मौलिक और सार्वभौमिक संस्था है। यह न केवल जैविक पुनरुत्पादन और बच्चों का समाजीकरण (socialization) करती है, बल्कि विवाह, वंशानुक्रम, नातेदारी (kinship) और संपत्ति के अधिकारों जैसे सामाजिक संबंधों और संरचनाओं को भी परिभाषित और नियंत्रित करती है।
- संदर्भ और विस्तार: भारत में संयुक्त परिवार (joint family) की व्यवस्था परंपरागत रूप से अत्यधिक महत्वपूर्ण रही है, जो अर्थव्यवस्था, सामाजिक सुरक्षा और धार्मिक अनुष्ठानों में भी भूमिका निभाती है।
- गलत विकल्प: जाति सामाजिक स्तरीकरण का एक रूप है। ग्राम पंचायत स्थानीय शासन की इकाई है। धर्म विश्वासों और अनुष्ठानों का एक समुच्चय है, हालांकि परिवार अक्सर धार्मिक कार्यों से जुड़ा होता है।
प्रश्न 11: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवाद (Capitalism) के तहत श्रमिक का ‘अलगाव’ (Alienation) मुख्य रूप से किससे उत्पन्न होता है?
- अपने साथियों से प्रतिस्पर्धा
- उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव
- पूंजीपति वर्ग द्वारा अत्यधिक शोषण
- अराजकता (Anomie) की भावना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिक कई तरह से अलगाव (Alienation) का अनुभव करता है। इनमें से एक प्रमुख कारण उत्पादन की प्रक्रिया से अलगाव है। श्रमिक अपनी मेहनत के फल (उत्पाद) पर नियंत्रण नहीं रखता, बल्कि उसका उत्पाद उसके लिए पराया (alien) हो जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने अलगाव के चार मुख्य रूप बताए: उत्पाद से अलगाव, उत्पादन प्रक्रिया से अलगाव, स्वयं की प्रजाति-सार (species-essence) से अलगाव, और अन्य मनुष्यों से अलगाव। यह ‘Economic and Philosophic Manuscripts of 1844’ में प्रमुखता से चर्चा की गई है।
- गलत विकल्प: प्रतिस्पर्धा और शोषण अलगाव के कारक हो सकते हैं, लेकिन उत्पाद और प्रक्रिया से अलगाव मार्क्स के सिद्धांत का मूल है। अराजकता (Anomie) दुर्खीम की संकल्पना है।
प्रश्न 12: जब कोई समाजशास्त्री समाज के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन करने के लिए साक्षात्कार (Interviews), अवलोकन (Observation) और प्रश्नावली (Questionnaires) जैसी विधियों का उपयोग करता है, तो वह किस प्रकार के अनुसंधान (Research) की ओर संकेत कर रहा होता है?
- सैद्धांतिक अनुसंधान (Theoretical Research)
- अनुभवजन्य अनुसंधान (Empirical Research)
- विश्लेषणात्मक अनुसंधान (Analytical Research)
- मात्रात्मक अनुसंधान (Quantitative Research)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: अनुभवजन्य अनुसंधान (Empirical Research) वह है जो अवलोकन, प्रयोग और अनुभव से प्राप्त साक्ष्यों पर आधारित होता है। साक्षात्कार, अवलोकन और प्रश्नावली जैसी विधियाँ प्रत्यक्ष अनुभव से डेटा एकत्र करने के तरीके हैं।
- संदर्भ और विस्तार: अनुभवजन्य अनुसंधान का उद्देश्य वास्तविक दुनिया के बारे में तथ्यात्मक जानकारी एकत्र करना और सिद्धांतों का परीक्षण करना है। यह सकारात्मक (positivist) समाजशास्त्र का आधार है।
- गलत विकल्प: सैद्धांतिक अनुसंधान विचारों और सिद्धांतों के विकास पर केंद्रित है। विश्लेषणात्मक अनुसंधान डेटा का विश्लेषण करता है लेकिन अनुभवजन्य डेटा एकत्र करना इसका प्राथमिक कार्य नहीं है। मात्रात्मक अनुसंधान (Quantitative Research) डेटा को संख्याओं में मापता है, जो अनुभवजन्य अनुसंधान का एक उप-प्रकार हो सकता है, लेकिन अनुभवजन्य स्वयं व्यापक है।
प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन सी समाजशास्त्रीय अवधारणा “प्रतिष्ठा” (Prestige) और “शक्ति” (Power) के बजाय “सम्पत्ति” (Property) या “धन” (Wealth) को सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) के प्राथमिक आधार के रूप में देखती है?
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- ए.एच. हॉब्सन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स के अनुसार, समाज का स्तरीकरण मुख्य रूप से उत्पादन के साधनों (means of production) के स्वामित्व पर आधारित होता है। उन्होंने बुर्जुआ (पूंजीपति वर्ग) और सर्वहारा (श्रमिक वर्ग) जैसे वर्ग संघर्षों को धन और संपत्ति के वितरण से जोड़ा।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स का मानना था कि आर्थिक आधार (economic base) ही समाज की अधिरचना (superstructure) जैसे राजनीति, धर्म और संस्कृति को निर्धारित करता है।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने सामाजिक स्तरीकरण के तीन आयाम बताए: वर्ग (Class – आर्थिक), स्थिति (Status – प्रतिष्ठा), और दल (Party – शक्ति)। दुर्खीम ने श्रम विभाजन (division of labor) और सामाजिक एकजुटता (social solidarity) पर ध्यान केंद्रित किया।
प्रश्न 14: “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की संकल्पना, जो बताती है कि समाज के भौतिक या तकनीकी पहलू, अभौतिक (गैर-भौतिक) पहलुओं की तुलना में अधिक तेज़ी से बदलते हैं, जिससे सामाजिक समायोजन में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं, इसे किसने प्रस्तुत किया?
- ए.एल. क्रॉबर
- विलियम एफ. ऑग्बर्न
- रॉबर्ट ई. पार्क
- हावर्ड बेकर
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम एफ. ऑग्बर्न (William F. Ogburn) ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘Social Change with Respect to Culture and Original Nature’ में “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की संकल्पना प्रस्तुत की।
- संदर्भ और विस्तार: उनका तर्क था कि जब प्रौद्योगिकी या भौतिक संस्कृति में परिवर्तन होता है (जैसे इंटरनेट का आविष्कार), तो समाज की आदतें, कानून, नैतिकता, या सामाजिक संस्थाएँ (अभौतिक संस्कृति) उस गति से नहीं बदल पातीं, जिससे असंतुलन और संघर्ष पैदा होता है।
- गलत विकल्प: क्रॉबर और हॉवर्ड बेकर संस्कृति और सामाजिक परिवर्तन पर अन्य महत्वपूर्ण कार्य के लिए जाने जाते हैं, लेकिन यह विशिष्ट अवधारणा ऑग्बर्न से संबंधित है। पार्क शहरी समाजशास्त्र से जुड़े थे।
प्रश्न 15: भारतीय समाज में “धार्मिक पुनरुत्थानवाद” (Religious Revivalism) के संदर्भ में, जो पारंपरिक धार्मिक विश्वासों और प्रथाओं को पुनः बल देने का प्रयास करता है, यह अक्सर किससे जुड़ा होता है?
- आधुनिकीकरण की प्रक्रिया
- पश्चिमीकरण का प्रभाव
- पूंजीवादी विकास
- सामाजिक और आर्थिक परिवर्तन के प्रति प्रतिक्रिया
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: धार्मिक पुनरुत्थानवाद (Religious Revivalism) अक्सर आधुनिकता, औद्योगीकरण, शहरीकरण और वैश्वीकरण जैसी प्रक्रियाओं से उत्पन्न सामाजिक और आर्थिक अनिश्चितता, पहचान के संकट या पारंपरिक मूल्यों के क्षरण के प्रति एक प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है। लोग सुरक्षा और अर्थ के लिए स्थापित धार्मिक परंपराओं की ओर लौटते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह एक वैश्विक घटना है जहां लोग बदलते सामाजिक परिदृश्य में अपनी जड़ों और पहचान को पुनः स्थापित करने के लिए अपने धर्म की ओर मुड़ते हैं।
- गलत विकल्प: जबकि आधुनिकीकरण और पश्चिमीकरण अप्रत्यक्ष रूप से धार्मिक पुनरुत्थानवाद को ट्रिगर कर सकते हैं, यह स्वयं एक प्रतिक्रिया है, न कि सीधे तौर पर इन प्रक्रियाओं का परिणाम। पूंजीवादी विकास भी एक कारक हो सकता है।
प्रश्न 16: “सामाजिकरण” (Socialization) की प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- व्यक्ति को स्वतंत्र रूप से सोचना सिखाना
- समाज के मानदंडों, मूल्यों और विश्वासों को व्यक्ति में समाहित करना
- समाज में प्रतिस्पर्धा को बढ़ावा देना
- व्यक्तिगत प्रतिभाओं का विकास करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिकरण वह जीवनभर चलने वाली प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति समाज का एक सक्रिय और स्वीकार्य सदस्य बनता है। इसके माध्यम से, वह समाज के नियमों, मूल्यों, भाषा, कौशल और व्यवहार के पैटर्न को सीखता और आत्मसात करता है, जो उसे समाज में सफलतापूर्वक कार्य करने में सक्षम बनाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह समाज की निरंतरता और संस्कृति के हस्तांतरण को सुनिश्चित करता है। परिवार, विद्यालय, सहकर्मी समूह और जनसंचार माध्यम सामाजिकरण के महत्वपूर्ण अभिकर्ता (agencies) हैं।
- गलत विकल्प: स्वतंत्र सोच और व्यक्तिगत प्रतिभाएं सामाजिकरण के परिणाम हो सकती हैं, लेकिन यह प्रक्रिया का मुख्य उद्देश्य नहीं है। प्रतिस्पर्धा समाज का एक पहलू है, लेकिन सामाजिकरण का प्राथमिक लक्ष्य मानदंडों को आत्मसात करना है।
प्रश्न 17: मैक्स वेबर ने सत्ता (Authority) के तीन आदर्श प्रकार (ideal types) बताए हैं: करिश्माई, पारंपरिक और _____। तीसरा प्रकार कौन सा है?
- न्यायिक
- मनोवैज्ञानिक
- कानूनी-तर्कसंगत
- नौकरशाही
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने तीन आदर्श प्रकार की सत्ता का वर्णन किया: 1. पारंपरिक सत्ता (Traditional Authority) – जो परंपराओं और रीति-रिवाजों पर आधारित है (जैसे राजा); 2. करिश्माई सत्ता (Charismatic Authority) – जो नेता के असाधारण व्यक्तित्व और गुणों पर आधारित है (जैसे पैगंबर); और 3. कानूनी-तर्कसंगत सत्ता (Legal-Rational Authority) – जो नियमों, कानूनों और एक औपचारिक पद या पदनाम पर आधारित है (जैसे राष्ट्रपति, न्यायाधीश)।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर के अनुसार, आधुनिक समाजों में कानूनी-तर्कसंगत सत्ता का प्रभुत्व होता है, जो नौकरशाही (bureaucracy) के माध्यम से प्रकट होती है।
- गलत विकल्प: नौकरशाही कानूनी-तर्कसंगत सत्ता का एक रूप है, लेकिन वह स्वयं सत्ता का प्रकार नहीं है। न्यायिक और मनोवैज्ञानिक सत्ता वेबर द्वारा वर्णित मुख्य प्रकारों में शामिल नहीं हैं।
प्रश्न 18: “सांस्कृतिक सापेक्षवाद” (Cultural Relativism) का दृष्टिकोण यह मानता है कि:
- सभी संस्कृतियाँ समान रूप से उन्नत हैं।
- किसी संस्कृति को उसके अपने संदर्भ में ही समझा जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी मानक से।
- मानव व्यवहार के मूल में सार्वभौमिक सांस्कृतिक सिद्धांत हैं।
- पश्चिमी संस्कृति अन्य सभी संस्कृतियों से श्रेष्ठ है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सांस्कृतिक सापेक्षवाद (Cultural Relativism) यह सिद्धांत है कि किसी व्यक्ति की मान्यताओं, मूल्यों और प्रथाओं को उस व्यक्ति की अपनी संस्कृति के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। यह किसी भी संस्कृति को दूसरे से श्रेष्ठ या निम्न नहीं मानता।
- संदर्भ और विस्तार: यह समाजशास्त्रियों को अपनी पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर विभिन्न संस्कृतियों को समझने में मदद करता है। हालांकि, इसका चरम रूप ‘सांस्कृतिक असावधानी’ (cultural endangerment) की ओर ले जा सकता है।
- गलत विकल्प: पहली और चौथी विकल्प ‘सांस्कृतिक सार्वभौमिकतावाद’ (cultural universalism) और ‘सांस्कृतिक आधिपत्य’ (cultural ethnocentrism) के विपरीत हैं। तीसरी विकल्प ‘सांस्कृतिक सार्वभौमिकता’ (cultural universality) से संबंधित है।
प्रश्न 19: भारत में “आदिवासी समुदाय” (Tribal Communities) की पहचान मुख्य रूप से निम्नलिखित में से किस आधार पर की जाती है?
- उच्च सामाजिक स्तर
- पहाड़ी या वनाच्छादित क्षेत्रों में निवास और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान
- प्रगतिशील जीवन शैली
- औद्योगिक क्षेत्रों में सक्रिय भागीदारी
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय संविधान और समाजशास्त्र में, आदिवासी समुदायों की पहचान अक्सर उनके भौगोलिक अलगाव, जैसे पहाड़ों या वनों में निवास, विशेष रूप से संरक्षित सांस्कृतिक परंपराओं, भाषा, सामाजिक संरचनाओं और ऐतिहासिक रूप से मुख्यधारा के समाज से भिन्नता के आधार पर की जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: इन्हें अक्सर ‘शेड्यूल्ड ट्राइब्स’ (Scheduled Tribes) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और उनके संरक्षण और विकास के लिए विशेष प्रावधान किए जाते हैं।
- गलत विकल्प: वे अक्सर सामाजिक पदानुक्रम में निम्न या हाशिए पर होते हैं, जीवन शैली पारंपरिक और भिन्न होती है, और औद्योगिक क्षेत्रों में उनकी भागीदारी आमतौर पर कम होती है।
प्रश्न 20: “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” (Symbolic Interactionism) का केंद्रीय सिद्धांत क्या है?
- समाज सामाजिक संरचनाओं और संस्थाओं से बना है।
- समाज मुख्य रूप से वर्ग संघर्ष और असमानता से संचालित होता है।
- लोग उन चीजों को अर्थ देते हैं जो उनके लिए महत्वपूर्ण हैं, और ये अर्थ उनकी अंतःक्रियाओं से उत्पन्न होते हैं।
- सामाजिक परिवर्तन अनैच्छिक रूप से होता है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जिसे हर्बर्ट ब्लूमर ने गढ़ा था, इस बात पर जोर देता है कि व्यक्ति प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से एक-दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हैं। इन प्रतीकों को दिए गए अर्थ व्यक्तियों के व्यवहार और सामाजिक दुनिया के निर्माण को निर्देशित करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत व्यक्ति के आत्म-बोध (self-concept), सामाजिक भूमिकाओं और सामाजिक वास्तविकता के निर्माण में व्यक्तिपरक अर्थों की केंद्रीयता पर ध्यान केंद्रित करता है। जॉर्ज हर्बर्ट मीड इसके प्रमुख विचारकों में से हैं।
- गलत विकल्प: पहला विकल्प संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकतावाद से, दूसरा संघर्ष सिद्धांत से, और चौथा सामाजिक परिवर्तन के अवचेतन सिद्धांतों से संबंधित है।
प्रश्न 21: “विभेदित अवसर” (Differential Opportunity) की संकल्पना, जो बताती है कि व्यक्तियों की सफलता या असफलता उनके सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि द्वारा प्रदान किए गए अवसरों से प्रभावित होती है, किस समाजशास्त्रीय अध्ययन क्षेत्र से संबंधित है?
- शहरी समाजशास्त्र (Urban Sociology)
- शिक्षा का समाजशास्त्र (Sociology of Education)
- अपराधशास्त्र (Criminology)
- राजनीतिक समाजशास्त्र (Political Sociology)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विभेदित अवसर (Differential Opportunity) की संकल्पना, विशेष रूप से रिचर्ड क्लॉवर्ड और लॉयड ओहलिन के काम में, अपराधशास्त्र (Criminology) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण है। यह बताती है कि कैसे विभिन्न सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के युवाओं को अपराध में शामिल होने के लिए अलग-अलग अवसर (जैसे गिरोह, चोरी के अवसर) मिलते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत बताता है कि अपराध केवल गरीबी का परिणाम नहीं है, बल्कि उन विशिष्ट अवसरों का भी परिणाम है जो व्यक्तियों को अवैध व्यवहार में शामिल होने के लिए उपलब्ध होते हैं।
- गलत विकल्प: जबकि अवसर शिक्षा, शहरीकरण या राजनीति में भी भूमिका निभाते हैं, ‘विभेदित अवसर’ का यह विशिष्ट प्रयोग अक्सर अपराध के संदर्भ में किया जाता है।
प्रश्न 22: भारतीय समाज में “संरक्षण” (Reservation) की नीति का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
- जातिगत विभाजन को मजबूत करना
- ऐतिहासिक रूप से वंचित समुदायों (अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग) को शिक्षा, रोजगार और राजनीतिक प्रतिनिधित्व में अवसर प्रदान करना
- धार्मिक अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार देना
- सभी नागरिकों के लिए समान अवसर सुनिश्चित करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारत में आरक्षण की नीति का मूल उद्देश्य उन सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्गों को सकारात्मक कार्रवाई (affirmative action) प्रदान करना है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से भेदभाव और बहिष्करण का सामना करना पड़ा है, ताकि उन्हें समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जा सके और समान अवसर मिल सकें।
- संदर्भ और विस्तार: यह सामाजिक न्याय और समानता प्राप्त करने का एक साधन है।
- गलत विकल्प: आरक्षण का उद्देश्य जातिगत विभाजन को मजबूत करना नहीं है, बल्कि ऐतिहासिक अन्याय को दूर करना है। यह धार्मिक अल्पसंख्यकों को विशेषाधिकार नहीं देता (हालांकि कुछ विशिष्ट वर्ग हो सकते हैं)। यह ‘समान अवसर’ के सिद्धांत को लागू करने का एक तरीका है, न कि उसका विकल्प।
प्रश्न 23: “प्रकार्यवाद” (Functionalism) के अनुसार, समाज में “विचलन” (Deviance) भी एक प्रकार का कार्य (function) करता है। यह किस रूप में प्रकट हो सकता है?
- विचलन समाज के नियमों को और अधिक मजबूत करता है।
- विचलन सामाजिक परिवर्तन के लिए उत्प्रेरक का कार्य कर सकता है।
- विचलन सामाजिक नियंत्रण (social control) को बढ़ावा देता है।
- ऊपर दिए गए सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम और अन्य प्रकार्यवादियों ने तर्क दिया कि विचलन (Deviance) समाज के लिए पूरी तरह से नकारात्मक नहीं है। (a) जब लोग विचलित होते हैं, तो समाज उनकी निंदा करके अपने नियमों और मूल्यों को पुनः पुष्ट करता है। (b) विचलन नवाचार को जन्म दे सकता है और सामाजिक परिवर्तन को प्रोत्साहित कर सकता है, क्योंकि जो आज विचलन है वह कल सामान्य हो सकता है। (c) विचलन के प्रति समाज की प्रतिक्रिया (जैसे पुलिस, अदालतें) सामाजिक नियंत्रण तंत्र को मजबूत करती है।
- संदर्भ और विस्तार: इस प्रकार, विचलन सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने और विकसित करने में भी भूमिका निभाता है।
- गलत विकल्प: सभी विकल्प विचलन के प्रकार्यात्मक (functional) पहलुओं को दर्शाते हैं।
प्रश्न 24: “सामाजिक गतिशीलता” (Social Mobility) से तात्पर्य है:
- समाज में लोगों का स्थान परिवर्तन
- समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संबंध
- समाज में लोगों की स्थिति में ऊपर या नीचे की ओर परिवर्तन
- सामाजिक संरचना का अध्ययन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक गतिशीलता (Social Mobility) वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यक्ति या समूह अपने सामाजिक पदानुक्रम (social hierarchy) में अपनी स्थिति बदलते हैं। इसमें ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (vertical mobility – ऊपर या नीचे जाना) और क्षैतिज गतिशीलता (horizontal mobility – एक स्तर पर एक स्थिति से दूसरी स्थिति में जाना) शामिल है।
- संदर्भ और विस्तार: यह गतिशीलता अंतर-पीढ़ी (intergenerational – पिता से पुत्र तक) या अंतरा-पीढ़ी (intragenerational – एक ही जीवनकाल में) हो सकती है।
- गलत विकल्प: ‘लोगों का स्थान परिवर्तन’ बहुत व्यापक है; यह केवल सामाजिक स्थिति के संदर्भ में प्रासंगिक है। ‘समाज के विभिन्न वर्गों के बीच संबंध’ सामाजिक संरचना का हिस्सा है, लेकिन गतिशीलता नहीं। ‘सामाजिक संरचना का अध्ययन’ एक अलग विषय है।
प्रश्न 25: भारतीय समाज में “धोबी”, “नाई”, “लोहार” जैसी पारंपरिक व्यावसायिक जातियों का अध्ययन किस समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण के लिए महत्वपूर्ण है?
- संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकतावाद
- संघर्ष सिद्धांत
- जाति और वर्ग का विश्लेषण
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पारंपरिक व्यावसायिक जातियों का अध्ययन विभिन्न समाजशास्त्रीय दृष्टिकोणों के लिए महत्वपूर्ण है: (a) संरचनात्मक-प्रकार्यात्मकतावादी इन व्यवसायों को समाज की व्यवस्था और स्थिरता के लिए आवश्यक ‘कार्य’ के रूप में देख सकते हैं। (b) संघर्ष सिद्धांतकार इन समूहों के बीच शक्ति, विशेषाधिकार और शोषक संबंधों का विश्लेषण कर सकते हैं। (c) जाति और वर्ग का विश्लेषण इन समूहों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति, अंतर्विवाह पैटर्न और पदानुक्रम में उनकी स्थिति को समझने के लिए केंद्रीय है।
- संदर्भ और विस्तार: ये जातियाँ अक्सर “जजमानी प्रणाली” (Jajmani System) का हिस्सा होती हैं, जो सेवाओं के आदान-प्रदान पर आधारित एक पारंपरिक संबंध है, जिसका अध्ययन प्रकार्यवादियों और अन्य लोगों ने किया है।
- गलत विकल्प: तीनों प्रमुख दृष्टिकोण इन व्यावसायिक समूहों के अध्ययन में प्रासंगिक अंतर्दृष्टि प्रदान करते हैं।