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समाजशास्त्र की कसौटी: आज के प्रश्न आपकी तैयारी को धार देंगे!

समाजशास्त्र की कसौटी: आज के प्रश्न आपकी तैयारी को धार देंगे!

तैयारी के इस महत्वपूर्ण सफर में, अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल का परीक्षण अत्यंत आवश्यक है। प्रतिदिन नए प्रश्नों के साथ अपने समाजशास्त्रीय ज्ञान को परखें और अपनी तैयारी को एक नई दिशा दें। यह श्रृंखला विशेष रूप से UPSC, State PSCs, UGC-NET और अन्य प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे अभ्यर्थियों के लिए डिज़ाइन की गई है।

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।


प्रश्न 1: “समाजशास्त्र का मुख्य उद्देश्य सामाजिक क्रियाओं को समझना है, जिसमें कर्ता अपने अर्थपूर्ण संबंधों के अनुसार व्यवहार करता है।” यह कथन किस समाजशास्त्री के विचारों से सर्वाधिक निकटता से जुड़ा है?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. कार्ल मार्क्स
  3. मैक्स वेबर
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: मैक्स वेबर ने अपनी ‘व्याख्यात्मक समाजशास्त्र’ (Interpretive Sociology) में ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) की अवधारणा पर बल दिया। इसका अर्थ है कि समाजशास्त्रियों को सामाजिक क्रियाओं के पीछे छिपे व्यक्तिपरक अर्थों और इरादों को समझना चाहिए। उन्होंने सामाजिक क्रिया को ऐसे व्यवहार के रूप में परिभाषित किया जिसका कर्ता व्यक्तिगत अर्थ संलग्न करता है और जिसके अनुसार वह दूसरों के व्यवहार से प्रेरित होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा वेबर के कार्य ‘इकॉनमी एंड सोसाइटी’ (Economy and Society) में प्रमुखता से पाई जाती है। यह दुर्खीम के प्रत्यक्षवादी (positivist) दृष्टिकोण के विपरीत है, जो सामाजिक तथ्यों के बाहरी, अवलोकन योग्य पैटर्न पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
  • गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों (social facts) को वस्तुओं की तरह अध्ययन करने की वकालत की, जबकि कार्ल मार्क्स का ध्यान वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर था। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक विकास के लिए जैविक विकासवादी सिद्धांतों का प्रयोग किया।

प्रश्न 2: एम. एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा मुख्य रूप से किस प्रक्रिया को दर्शाती है?

  1. पश्चिमीकरण का प्रभाव
  2. उच्च जातियों की जीवन शैली का अनुकरण
  3. औद्योगीकरण से उत्पन्न सामाजिक गतिशीलता
  4. ग्रामों से नगरों की ओर पलायन

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: एम. एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतिकरण’ की अवधारणा को प्रतिपादित किया, जिसके अनुसार निचली या मध्यम जातियों द्वारा उच्च जातियों, विशेषकर द्विजातियों (twice-born) की धार्मिक प्रथाओं, अनुष्ठानों, जीवन शैली और विचारों को अपनाना, ताकि सामाजिक पदानुक्रम में अपनी स्थिति को ऊंचा उठाया जा सके।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा श्रीनिवास की पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में विस्तृत है। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है, न कि संरचनात्मक गतिशीलता का।
  • गलत विकल्प: पश्चिमीकरण पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाना है। औद्योगीकरण और ग्रामों से नगरों की ओर पलायन सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रियाएं हैं, लेकिन ये सीधे तौर पर संस्स्कृतिकरण की परिभाषा में नहीं आतीं।

प्रश्न 3: समाजशास्त्र के किस प्रमुख सिद्धांत के अनुसार, समाज एक जटिल तंत्र है जिसके विभिन्न अंग एक-दूसरे से जुड़े होते हैं और समाज की स्थिरता और संतुलन में योगदान करते हैं?

  1. संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory)
  2. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
  3. संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism)
  4. नारीवादी सिद्धांत (Feminist Theory)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: संरचनात्मक प्रकार्यवाद, जिसे ताल्कॉट पार्सन्स और रॉबर्ट मर्टन जैसे विचारकों ने विकसित किया, समाज को एक जीवित जीव या एक जटिल तंत्र के रूप में देखता है। इसके अनुसार, समाज के प्रत्येक संरचना (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म) का एक विशिष्ट कार्य (function) होता है जो समाज के समग्र संतुलन और निरंतरता को बनाए रखने में योगदान देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के समाज के ‘सामायिकता’ (normal) और ‘असामयिकता’ (pathological) के अध्ययन में भी प्रकार्यवाद की झलक मिलती है। पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था (social order) बनाए रखने हेतु आवश्‍यकता-पूर्व (functional prerequisites) का विचार दिया।
  • गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत (मार्क्स, कॉलिन्स) समाज में शक्ति, असमानता और संघर्ष पर केंद्रित है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (मीड, ब्लूमर) व्यक्ति के बीच अर्थों के निर्माण और प्रतीकों के आदान-प्रदान पर जोर देता है। नारीवादी सिद्धांत लैंगिक असमानता और पितृसत्तात्मक संरचनाओं का विश्लेषण करता है।

प्रश्न 4: “अनॉमी” (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक विघटन की स्थिति को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से संबंधित है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. जॉर्ज सिमेल

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: एमिल दुर्खीम ने ‘अनॉमी’ की अवधारणा को सामाजिक मानदंडों (social norms) के ढीले पड़ने या अभाव की स्थिति के रूप में समझाया। जब समाज में तीव्र परिवर्तन होते हैं, या जब सामूहिक चेतना (collective conscience) कमजोर हो जाती है, तो व्यक्ति के व्यवहार को नियंत्रित करने वाले स्पष्ट नियम नहीं रह जाते, जिससे दिशाहीनता और अव्यवस्था की स्थिति उत्पन्न होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा दुर्खीम की पुस्तक ‘The Division of Labour in Society’ और ‘Suicide’ में महत्वपूर्ण है। आत्महत्या के संदर्भ में, उन्होंने ‘अनॉमिक आत्महत्या’ का वर्णन किया, जो तब होती है जब सामाजिक नियम व्यक्ति की आकांक्षाओं को नियंत्रित करने में विफल होते हैं।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स का केंद्रीय विचार वर्ग संघर्ष है। मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ और ‘सत्ता’ (authority) पर काम किया। जॉर्ज सिमेल ने सामाजिक अंतःक्रिया और नगर जीवन के प्रारूपों का अध्ययन किया।

प्रश्न 5: भारतीय समाज में जाति व्यवस्था के संबंध में, “शुद्धि आंदोलन” का मुख्य उद्देश्य क्या था?

  1. दलितों को हिंदू धर्म से अलग करना
  2. दलितों को हिंदू धर्म में वापस लाना और उनके बीच सामाजिक समानता को बढ़ावा देना
  3. ब्राह्मणों के वर्चस्व को चुनौती देना
  4. इस्लाम के बढ़ते प्रभाव को रोकना

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: उन्नीसवीं सदी में भारत में कई सामाजिक और धार्मिक सुधार आंदोलनों का उदय हुआ। आर्य समाज जैसे संगठनों द्वारा चलाए गए शुद्धि आंदोलन का एक प्रमुख उद्देश्य उन लोगों को, जो या तो धर्म परिवर्तन कर चुके थे (जैसे कि ईसाई या मुस्लिम बन गए थे) या जो कथित तौर पर निम्न माने जाते थे, उन्हें शुद्ध करके पुनः हिंदू धर्म में शामिल करना था। इसका एक लक्ष्य हिंदू धर्म के भीतर सामाजिक एकजुटता और समानता को भी बढ़ावा देना था, भले ही यह सीमित स्तर पर हो।
  • संदर्भ और विस्तार: इस आंदोलन का उद्देश्य कुछ हद तक हिंदू धर्म के विस्तार और सामाजिक आधार को मजबूत करना भी था। यह अस्पृश्यता जैसी बुराइयों को कम करने के प्रयासों से भी जुड़ा था।
  • गलत विकल्प: दलितों को हिंदू धर्म से अलग करना इसका उद्देश्य नहीं था, बल्कि उन्हें पुनः एकीकृत करना था। ब्राह्मण वर्चस्व को चुनौती देना अन्य सुधार आंदोलनों का लक्ष्य हो सकता था, लेकिन सीधे तौर पर शुद्धि आंदोलन का यह मुख्य उद्देश्य नहीं था। इस्लाम का प्रभाव रोकना एक पृष्ठभूमि कारक हो सकता है, पर प्राथमिक लक्ष्य नहीं।

प्रश्न 6: किस समाजशास्त्री ने “चेहरे की नैतिकता” (Face-work) और “नाटकीयता” (Dramaturgy) की अवधारणाएं प्रस्तुत कीं, जिन्होंने सामाजिक संपर्क को रंगमंच के प्रदर्शन के समान माना?

  1. इरविंग गॉफमैन
  2. हर्बर्ट ब्लूमर
  3. अल्फ्रेड शुट्ज़
  4. चार्ल्स हॉर्टन कूली

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: इरविंग गॉफमैन, जिन्होंने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया, ने सामाजिक जीवन का विश्लेषण रंगमंच की उपमा के माध्यम से किया। उन्होंने “नाटकीयता” (Dramaturgy) का विचार दिया, जिसमें व्यक्ति अपने सामाजिक इंटरैक्शन को एक मंच पर प्रदर्शन की तरह प्रस्तुत करता है। “चेहरे की नैतिकता” (Face-work) उन प्रयासों को संदर्भित करती है जो व्यक्ति अपने प्रदर्शन को बनाए रखने या दूसरों के चेहरे को बचाने के लिए करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: उनकी सबसे प्रसिद्ध पुस्तक ‘The Presentation of Self in Everyday Life’ (1959) में इन अवधारणाओं का विस्तृत वर्णन है। यह सामाजिक व्यवस्था को व्यक्ति द्वारा अपने “चेहरे” (छवि) को बनाए रखने के प्रबंधन के रूप में देखती है।
  • गलत विकल्प: हर्बर्ट ब्लूमर ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद को औपचारिक रूप दिया। अल्फ्रेड शुट्ज़ ने फेनोमेनोलॉजी (Phenomenology) का समाजशास्त्र में अनुप्रयोग किया। चार्ल्स हॉर्टन कूली ने “लुकिंग-ग्लास सेल्फ” (Looking-glass self) की अवधारणा दी।

प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सी व्यवस्था सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का आधार नहीं है?

  1. वर्ग (Class)
  2. प्रस्थिति (Status)
  3. शक्ति (Power)
  4. मित्रता (Friendship)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सामाजिक स्तरीकरण समाज के सदस्यों को उनकी अर्जित या प्रदत्त विशेषताओं के आधार पर विभिन्न स्तरों या सोपानों में व्यवस्थित करने की प्रक्रिया है। वर्ग (आर्थिक स्थिति), प्रस्थिति (सामाजिक सम्मान), और शक्ति (निर्णय लेने की क्षमता) ये तीनों ही विभिन्न समाजों में स्तरीकरण के प्रमुख आधार रहे हैं। मित्रता एक व्यक्तिगत संबंध है और स्तरीकरण की व्यापक प्रणाली का हिस्सा नहीं है।
  • संदर्भ और विस्तार: कार्ल मार्क्स ने वर्ग को उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व के आधार पर परिभाषित किया, जबकि मैक्स वेबर ने वर्ग, प्रस्थिति और शक्ति को स्तरीकरण के तीन अलग-अलग आयाम माना।
  • गलत विकल्प: वर्ग, प्रस्थिति और शक्ति, स्तरीकरण के सर्वव्यापी आधार हैं। मित्रता एक व्यक्तिगत संबंध है जो सामाजिक संरचना का प्रतिनिधित्व नहीं करता।

प्रश्न 8: रॉबर्ट मर्टन द्वारा प्रस्तुत “कार्यवादी विसंगति” (Functional Dysfuntion) का अर्थ क्या है?

  1. सामाजिक संरचना का वह हिस्सा जो समाज के लिए हानिकारक है
  2. सामाजिक व्यवस्था में अचानक होने वाला परिवर्तन
  3. मानदंडों का अभाव, जिससे सामाजिक अव्यवस्था फैलती है
  4. सामाजिक संस्थाओं का विकास रुक जाना

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: रॉबर्ट मर्टन ने प्रकार्य (function) की अवधारणा को विस्तार देते हुए ‘प्रकट प्रकार्य’ (Manifest Function) और ‘अव्यक्त प्रकार्य’ (Latent Function) के साथ-साथ ‘कार्यवादी विसंगति’ (Dysfunction) की भी चर्चा की। कार्यवादी विसंगति समाज की व्यवस्था, अनुकूलन या उत्तरजीविता के लिए हानिकारक या हानिकारक परिणाम देने वाली सामाजिक संरचनाओं या व्यवहारों को संदर्भित करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने मानव व्यवहार के उन पहलुओं का विश्लेषण किया जिनके अनपेक्षित और हानिकारक परिणाम हो सकते हैं, जैसे कि कुछ सरकारी नीतियां या सामाजिक संस्थाएं जो अपने घोषित उद्देश्यों को पूरा करने में विफल रहती हैं और नकारात्मक प्रभाव डालती हैं।
  • गलत विकल्प: ‘सामाजिक अव्यवस्था’ अनॉमी से संबंधित है। अन्य विकल्प मर्टन की ‘कार्यवादी विसंगति’ की विशिष्ट परिभाषा को पूरी तरह से नहीं दर्शाते।

प्रश्न 9: “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” (Symbolic Interactionism) का केंद्रीय सिद्धांत निम्नलिखित में से किस पर आधारित है?

  1. समाज को बड़े पैमाने पर संरचनाओं के रूप में समझना
  2. व्यक्तियों के बीच प्रतीकों (जैसे भाषा) के माध्यम से होने वाली अंतःक्रिया
  3. सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने में संस्थाओं की भूमिका
  4. सत्ता और संघर्ष से समाज का विकास

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जिसके प्रमुख प्रस्तावक जॉर्ज हर्बर्ट मीड, हर्बर्ट ब्लूमर और इरविंग गॉफमैन हैं, इस बात पर जोर देता है कि सामाजिक जीवन व्यक्ति-दर-व्यक्ति अंतःक्रियाओं पर आधारित है। ये अंतःक्रियाएं भाषा, हावभाव और अन्य प्रतीकों के आदान-प्रदान के माध्यम से होती हैं, जिनके द्वारा अर्थ निर्मित होते हैं और समाज की संरचना होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: ब्लूमर ने इस सिद्धांत के तीन मूल सिद्धांतों का प्रतिपादन किया: (1) व्यक्ति अन्य व्यक्तियों के प्रति उन व्यवहारों के आधार पर कार्य करते हैं जिन्हें वे उन लोगों के लिए मानते हैं, (2) ऐसे व्यवहारों का अर्थ उन तरीकों से प्राप्त होता है जो उस व्यक्ति द्वारा अपनी अंतःक्रियाओं में प्रयुक्त होते हैं, (3) ऐसे अर्थों को एक व्याख्यात्मक प्रक्रिया के माध्यम से संशोधित किया जाता है जब व्यक्ति इन अर्थों का उपयोग करता है।
  • गलत विकल्प: विकल्प (a) संरचनात्मक प्रकार्यवाद या संरचनावाद से संबंधित है। विकल्प (c) भी प्रकार्यवाद का सूचक है। विकल्प (d) संघर्ष सिद्धांत से मेल खाता है।

प्रश्न 10: भारतीय ग्रामीण समाज के अध्ययन में “सब-ऑल्टरन अध्ययन” (Subaltern Studies) का मुख्य सरोकार क्या रहा है?

  1. कृषि नीतियों का विश्लेषण
  2. भूमि सुधारों का प्रभाव
  3. वंचित, हाशिए पर पड़े और सत्ता से बाहर रखे गए लोगों का इतिहास और अनुभव
  4. ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सब-ऑल्टरन अध्ययन, एक महत्वपूर्ण अकादमिक आंदोलन रहा है, जिसने इतिहास और समाजशास्त्र में उन समूहों के अनुभवों पर ध्यान केंद्रित किया है जो पारंपरिक ऐतिहासिक आख्यानों में अक्सर अनदेखे रह जाते हैं। यह आंदोलन विशेष रूप से हाशिए पर पड़े समुदायों, किसानों, आदिवासियों और दलितों जैसे ‘सब-ऑल्टरन’ (अधीनस्थ) समूहों के प्रतिरोध, संस्कृति और राजनीति का विश्लेषण करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: इटली के दार्शनिक एंटोनियो ग्राम्शी (Antonio Gramsci) ने ‘सब-ऑल्टरन’ शब्द का प्रयोग उन लोगों के लिए किया था जो शोषित और अधीन थे। भारत में, यह आंदोलन मुख्य रूप से रणजीत गुहा जैसे इतिहासकारों द्वारा लोकप्रिय हुआ।
  • गलत विकल्प: अन्य विकल्प ग्रामीण समाज के महत्वपूर्ण पहलू हो सकते हैं, लेकिन सब-ऑल्टरन अध्ययन का केंद्रीय फोकस हमेशा से शोषित और हाशिए के समूहों का दृष्टिकोण रहा है।

प्रश्न 11: एमिल दुर्खीम के अनुसार, निम्न घनत्व वाले समाजों में सामाजिक एकजुटता (Social Solidarity) का आधार क्या है?

  1. सांत्रिक श्रम विभाजन (Mechanical Solidarity)
  2. सावयवी श्रम विभाजन (Organic Solidarity)
  3. साझा चेतना (Collective Consciousness)
  4. नवाचार (Innovation)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘The Division of Labour in Society’ में दो प्रकार की सामाजिक एकजुटता का वर्णन किया है। निम्न घनत्व वाले, कम श्रम विभाजन वाले समाजों (जैसे कि आदिम समाज) में, लोग बहुत हद तक समान होते हैं, समान विश्वास, मूल्य और भावनाएं साझा करते हैं। इसी ‘साझा चेतना’ के कारण उनमें एकता होती है, जिसे वे ‘सांत्रिक श्रम विभाजन’ (Mechanical Solidarity) कहते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: सांत्रिक श्रम विभाजन में, व्यक्ति का अपने समाज के प्रति एक मजबूत, प्रत्यक्ष और व्यक्तिगत लगाव होता है। नियम दमनकारी (repressive) होते हैं, और दंड का उद्देश्य आम सहमति को बहाल करना होता है।
  • गलत विकल्प: सावयवी श्रम विभाजन (Organic Solidarity) उच्च घनत्व, जटिल श्रम विभाजन वाले समाजों में पाया जाता है। ‘नवाचार’ स्तरीकरण या एकजुटता का आधार नहीं है।

प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता ‘आदिम साम्यवाद’ (Primitive Communism) की नहीं है, जैसा कि कार्ल मार्क्स ने वर्णित किया है?

  1. सामुदायिक स्वामित्व
  2. वर्ग रहित समाज
  3. निजी संपत्ति का पूर्ण अभाव
  4. राज्य का अस्तित्व

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: कार्ल मार्क्स के ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism) के अनुसार, आदिम साम्यवाद मानव समाज के विकास का पहला चरण था। इसमें उत्पादन के साधनों पर सामुदायिक स्वामित्व था, कोई वर्ग विभेद नहीं था, और निजी संपत्ति का विचार या तो अनुपस्थित था या नगण्य था। मार्क्स के सिद्धांत के अनुसार, राज्य (state) उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व के विकास और वर्गों के उदय के साथ ही अस्तित्व में आता है। इसलिए, आदिम साम्यवाद में राज्य का अस्तित्व नहीं था।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स ने माना कि आदिम समाजों में श्रम का बहुत सरल विभाजन था और वे उत्पादन के साधनों को सामूहिक रूप से नियंत्रित करते थे।
  • गलत विकल्प: सामुदायिक स्वामित्व, वर्ग रहित समाज और निजी संपत्ति का अभाव, ये सभी आदिम साम्यवाद की विशेषताएँ हैं। राज्य का अस्तित्व मार्क्स के अनुसार बाद के समाजों में उभरा।

प्रश्न 13: “प्रस्थिति” (Status) और “भूमिका” (Role) के बीच क्या संबंध है?

  1. प्रस्थिति भूमिका का निर्धारण करती है, और भूमिका प्रस्थिति का पालन करने का तरीका है।
  2. भूमिका प्रस्थिति का निर्धारण करती है, और प्रस्थिति भूमिका का परिणाम है।
  3. दोनों एक ही बात हैं, बस अलग-अलग शब्दों में कही गई हैं।
  4. दोनों एक-दूसरे से पूरी तरह स्वतंत्र हैं।

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: समाजशास्त्र में, प्रस्थिति (Status) किसी व्यक्ति का समाज में एक विशिष्ट स्थान या पद होता है (जैसे डॉक्टर, माता, छात्र)। भूमिका (Role) उस प्रस्थिति से जुड़े अपेक्षित व्यवहारों, कर्तव्यों और अधिकारों का समुच्चय है। अर्थात्, आप जिस प्रस्थिति में होते हैं, उसी के अनुसार आपसे कुछ भूमिकाएं निभाने की अपेक्षा की जाती है। इसलिए, प्रस्थिति भूमिका को निर्देशित करती है, और भूमिका उस प्रस्थिति को निभाने का तरीका है।
  • संदर्भ और विस्तार: राल्फ लिंटन (Ralph Linton) ने प्रस्थिति को ‘समाज में किसी व्यक्ति का पद’ और भूमिका को ‘उस पद से जुड़े व्यवहार’ के रूप में परिभाषित किया।
  • गलत विकल्प: भूमिका प्रस्थिति का निर्धारण नहीं करती, बल्कि प्रस्थिति ही भूमिका को जन्म देती है। दोनों पूरी तरह स्वतंत्र नहीं हैं, और वे समान अवधारणाएं नहीं हैं।

प्रश्न 14: किस समाजशास्त्री ने “पूंजीवाद की दोहरी प्रकृति” (Dual nature of capitalism) का विश्लेषण किया, जिसमें वह न केवल आर्थिक बल्कि सांस्कृतिक और वैचारिक पहलुओं को भी प्रभावित करता है?

  1. मैक्स वेबर
  2. कार्ल मार्क्स
  3. एंटोनियो ग्राम्शी
  4. सिगमंड फौकॉल्ट

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: एंटोनियो ग्राम्शी ने मार्क्सवादी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए पूंजीवाद के सांस्कृतिक और वैचारिक आयामों पर विशेष जोर दिया। उन्होंने “सांस्कृतिक प्रभुत्व” (Cultural Hegemony) की अवधारणा विकसित की, जिसके अनुसार शासक वर्ग अपनी सत्ता को न केवल बल प्रयोग से, बल्कि सांस्कृतिक और वैचारिक तरीकों से भी बनाए रखता है, जैसे कि शिक्षा, मीडिया और धर्म के माध्यम से। यह पूंजीवाद की दोहरी प्रकृति को दर्शाता है – आर्थिक और सांस्कृतिक।
  • संदर्भ और विस्तार: ग्राम्शी ने अपने ‘प्रिजन नोटबुक्स’ (Prison Notebooks) में इन विचारों को व्यक्त किया। उन्होंने यह भी तर्क दिया कि पूंजीवादी समाजों में, श्रमिकों को केवल आर्थिक रूप से शोषित नहीं किया जाता, बल्कि उन्हें वैचारिक रूप से भी नियंत्रित किया जाता है।
  • गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने प्रोटेस्टेंट नीतिशास्त्र और पूंजीवाद के संबंध का अध्ययन किया। कार्ल मार्क्स ने मुख्य रूप से आर्थिक आधार और वर्ग संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया। फौकॉल्ट ज्ञान, शक्ति और प्रवचन (discourse) के बीच संबंधों का विश्लेषण करते हैं।

प्रश्न 15: भारतीय संदर्भ में, “अल्पसंख्यकवाद” (Minorityism) की अवधारणा का उपयोग अक्सर किस संदर्भ में किया जाता है?

  1. सभी छोटे धार्मिक या भाषाई समूहों को दी जाने वाली विशेष सुविधाएँ।
  2. बहुसंख्यक आबादी की तुलना में कम संख्या वाले समूहों के राजनीतिक और सामाजिक अधिकार।
  3. किसी विशेष धर्म या जाति के प्रभुत्व की प्रवृत्ति।
  4. अल्पसंख्यकों द्वारा बहुसंख्यकों पर किया जाने वाला प्रभुत्व।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: समाजशास्त्र में, अल्पसंख्यक समूह (minority group) वह समूह होता है जो संख्या में कम होता है और जिसके सदस्य अक्सर बहुसंख्यक समूह के प्रभुत्व और भेदभाव का सामना करते हैं। अल्पसंख्यकवाद (minorityism) की अवधारणा उन राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी प्रावधानों को संदर्भित करती है जो इन अल्पसंख्यकों के अधिकारों, संस्कृति और पहचान की रक्षा के लिए बनाए जाते हैं। यह उनकी सापेक्षिक शक्तिहीनता और सुरक्षा की आवश्यकता को स्वीकार करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह आवश्यक नहीं है कि अल्पसंख्यक समूह केवल संख्या में ही कम हों; वे सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक रूप से भी शक्तिहीन हो सकते हैं। भारत जैसे विविधतापूर्ण समाज में, धार्मिक और भाषाई अल्पसंख्यकों की सुरक्षा एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है।
  • गलत विकल्प: विकल्प (a) सुविधाओं के उपयोग को एकतरफा प्रस्तुत करता है। विकल्प (c) और (d) बहुसंख्यक प्रभुत्व या अल्पसंख्यक प्रभुत्व की बात करते हैं, जो हमेशा अल्पसंख्यकवाद की मूल परिभाषा नहीं है, बल्कि इसके परिणाम हो सकते हैं।

प्रश्न 16: “सामाजिक गतिशीलता” (Social Mobility) का अर्थ क्या है?

  1. समाज में एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सांस्कृतिक मूल्यों का स्थानांतरण।
  2. किसी व्यक्ति या समूह का एक सामाजिक स्तर से दूसरे सामाजिक स्तर पर जाना।
  3. समाज में व्याप्त असमानता की संरचना।
  4. सामाजिक मानदंडों का पीढ़ी दर पीढ़ी बदलना।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सामाजिक गतिशीलता से तात्पर्य किसी व्यक्ति या समूह द्वारा एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में जाने से है। यह ऊर्ध्वाधर (vertical) हो सकती है (जैसे गरीबी से धनवान बनना) या क्षैतिज (horizontal) (जैसे एक नौकरी से दूसरी समान स्तर की नौकरी में जाना)। यह अंतर-पीढ़ीगत (intergenerational) या अंतरा-पीढ़ीगत (intragenerational) हो सकती है।
  • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक गतिशीलता का अध्ययन समाज में अवसर की समानता और सामाजिक न्याय के मूल्यांकन के लिए महत्वपूर्ण है।
  • गलत विकल्प: सांस्कृतिक मूल्यों का स्थानांतरण सांस्कृतिक प्रसारण है। समाज में असमानता की संरचना स्तरीकरण है। सामाजिक मानदंडों का बदलना सामाजिक परिवर्तन का हिस्सा है।

प्रश्न 17: निम्नलिखित में से कौन सा कथन “सामाजिक संरचना” (Social Structure) की सबसे अच्छी व्याख्या करता है?

  1. व्यक्तियों के बीच व्यक्तिगत संबंध।
  2. समाज के विभिन्न भागों के बीच अपेक्षाकृत स्थिर और स्थायी संबंध और पैटर्न।
  3. समाज में शक्ति और प्रभुत्व का वितरण।
  4. सामूहिक चेतना और सामाजिक भावनाएं।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सामाजिक संरचना समाज की एक अंतर्निहित व्यवस्था है जो व्यक्तियों, समूहों, संस्थाओं और उनके बीच के संबंधों को व्यवस्थित करती है। यह समाज को एक पैटर्न और स्थिरता प्रदान करती है, जिसमें लोग अपनी भूमिकाएं निभाते हैं। यह स्थायित्व सामाजिक संबंधों, अपेक्षाओं और प्रतिमानों से आता है।
  • संदर्भ और विस्तार: एमिल दुर्खीम, तालकॉट पार्सन्स और अन्य संरचनावादियों ने सामाजिक संरचना को समाज के मूलभूत ढांचे के रूप में देखा है जो सामाजिक व्यवहार को प्रभावित करता है।
  • गलत विकल्प: व्यक्तिगत संबंध सामाजिक संरचना का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन पूरी संरचना नहीं। शक्ति वितरण और सामूहिक चेतना संरचना को प्रभावित कर सकते हैं, लेकिन वे स्वयं संरचना नहीं हैं।

प्रश्न 18: “पैटर्न में भिन्नता” (Variation in Pattern) की अवधारणा, जो विभिन्न समाजों में सामाजिक नियंत्रण के तरीकों में भिन्नता को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?

  1. ए.आर. रेडक्लिफ-ब्राउन
  2. ई.ई. इवांस-प्रिचार्ड
  3. ट्रेवर-गेनिडेस
  4. मैक्स वेबर

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: ई.ई. इवांस-प्रिचार्ड, एक प्रमुख नृवंशविज्ञानी और समाजशास्त्री, ने विभिन्न समाजों, विशेष रूप से अफ्रीकी समाजों, में सामाजिक संगठन और सामाजिक नियंत्रण के तंत्रों का तुलनात्मक अध्ययन किया। उन्होंने दिखाया कि कैसे अलग-अलग समाजों में नियम-कानून, व्यवस्था और नियंत्रण के तरीके (जैसे कि न्यायेतर व्यवस्थाएं या रक्त-संबंध आधारित सामाजिक नियंत्रण) भिन्न-भिन्न पैटर्न में काम करते हैं, जो उनके सामाजिक संरचना और सांस्कृतिक मूल्यों से जुड़े होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: उनके काम ‘The Nuer’ में उन्होंने नूअर समाज के बिना राज्य (stateless society) के सामाजिक और राजनीतिक संगठन का गहरा विश्लेषण किया, जिसमें उन्होंने सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक तंत्रों पर प्रकाश डाला।
  • गलत विकल्प: रेडक्लिफ-ब्राउन संरचनात्मक प्रकार्यवाद के लिए जाने जाते हैं। ट्रेवर-गेनिडेस ने भारतीय समाज और ग्रामीण विकास पर काम किया। मैक्स वेबर ने नौकरशाही और सत्ता पर काम किया।

प्रश्न 19: भारतीय समाज में “विवाह” (Marriage) को समझने के लिए विभिन्न प्रकार के विवाहों (जैसे अनुलोम, प्रतिलोम, समगोत्र, समानगोत्र) का अध्ययन किस समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य में महत्वपूर्ण है?

  1. संरचनात्मक प्रकार्यवाद
  2. संघर्ष सिद्धांत
  3. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
  4. प्रारूपवादी/वर्णनात्मक (Descriptive/Typological) परिप्रेक्ष्य

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: भारतीय समाजशास्त्री, जैसे कि के. एम. कपाड़िया (K.M. Kapadia) और अन्य, ने विवाह की संस्था का अध्ययन करते समय विभिन्न प्रकारों, उनके उत्पत्ति, अर्थ और सामाजिक प्रभाव का वर्णन और वर्गीकरण किया है। अनुलोम (वर उच्च जाति, वधू निम्न जाति), प्रतिलोम (वर निम्न जाति, वधू उच्च जाति), समगोत्र (एक ही गोत्र में विवाह, वर्जित) और समानगोत्र (समान गोत्र में विवाह, अक्सर वर्जित) का अध्ययन समाज की संरचना, अंतर्विवाह (endogamy) के नियमों और सामाजिक स्तरीकरण को समझने के लिए आवश्यक है। यह अध्ययन मुख्य रूप से वर्णनात्मक और प्रकार्यात्मक (typological) है।
  • संदर्भ और विस्तार: भारतीय समाजशास्त्रीय अध्ययन पारंपरिक रूप से संरचनाओं, संस्थानों और उनके प्रकारों के विस्तृत वर्णन पर केंद्रित रहे हैं।
  • गलत विकल्प: संरचनात्मक प्रकार्यवाद समग्र समाज के कार्यों पर ध्यान केंद्रित करता है, संघर्ष सिद्धांत असमानता पर, और प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्ति-स्तर पर अर्थ निर्माण पर। ये सभी भारतीय विवाहों के विश्लेषण में सहायक हो सकते हैं, लेकिन विभिन्न विवाह प्रकारों का वर्गीकरण और वर्णन एक वर्णनात्मक/प्रारूपवादी परिप्रेक्ष्य का हिस्सा है।

प्रश्न 20: “ज्ञान का समाजशास्त्र” (Sociology of Knowledge) का मुख्य सरोकार क्या है?

  1. ज्ञान के निर्माण में सामाजिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक कारकों का प्रभाव।
  2. ज्ञान के विकास के लिए वैज्ञानिक विधियों का अध्ययन।
  3. दर्शनशास्त्र में ज्ञान की प्रकृति का विश्लेषण।
  4. व्यक्तिगत ज्ञान की मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं।

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: ज्ञान का समाजशास्त्र यह जांच करता है कि कैसे सामाजिक परिस्थितियाँ, जैसे कि वर्ग, जाति, धर्म, संस्कृति और शक्ति संरचनाएं, हमारे ज्ञान, विश्वासों और विचारों के निर्माण को प्रभावित करती हैं। यह मानता है कि ज्ञान कोई तटस्थ या वस्तुनिष्ठ निर्माण नहीं है, बल्कि सामाजिक रूप से निर्मित होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: कार्ल मार्क्स, कार्ल मैनहाइम (Karl Mannheim) और पीटर बर्जर (Peter Berger) इस क्षेत्र के महत्वपूर्ण विचारक रहे हैं। मैनहाइम ने ‘The Sociology of Knowledge’ में इस अवधारणा को विस्तृत किया।
  • गलत विकल्प: वैज्ञानिक विधियों का अध्ययन ज्ञानमीमांसा (epistemology) या विज्ञान के समाजशास्त्र (sociology of science) का हिस्सा हो सकता है। दार्शनिक विश्लेषण ज्ञानमीमांसा का है। मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाएं मनोविज्ञान का क्षेत्र हैं।

प्रश्न 21: भारतीय संदर्भ में, “जातिगत पंचायतें” (Caste Panchayats) मुख्य रूप से किस प्रकार के सामाजिक नियंत्रण का कार्य करती हैं?

  1. कानूनी और प्रशासनिक नियंत्रण
  2. अनौपचारिक और सामुदायिक नियंत्रण
  3. आर्थिक और भू-आधारित नियंत्रण
  4. धार्मिक और आध्यात्मिक नियंत्रण

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: जातिगत पंचायतें पारंपरिक रूप से किसी विशेष जाति के सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करने, विवादों को निपटाने और जातिगत नियमों और परंपराओं को बनाए रखने के लिए सामुदायिक स्तर पर कार्य करती रही हैं। ये पंचायतें राज्य के औपचारिक कानूनी ढांचे से बाहर रहकर, अनौपचारिक रूप से निर्णय लेती हैं और अपने सदस्यों पर सामाजिक दबाव या बहिष्कार जैसे दंड लागू करती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: ये पंचायते जाति के भीतर प्रतिष्ठा, विवाह, सामाजिक व्यवहार और नियमों के पालन पर विशेष ध्यान देती हैं।
  • गलत विकल्प: यद्यपि वे कभी-कभी स्थानीय कानूनी प्रणालियों से प्रभावित होती हैं, उनका प्राथमिक कार्य अनौपचारिक सामुदायिक नियंत्रण है। वे सीधे तौर पर राज्य की कानूनी या प्रशासनिक प्रणाली का हिस्सा नहीं होतीं। आर्थिक और धार्मिक नियंत्रण भी उनके कार्यों का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन उनका मुख्य औजार सामुदायिक/अनौपचारिक नियंत्रण है।

प्रश्न 22: “प्रौद्योगिकी का सामाजिक प्रभाव” (Social Impact of Technology) के अध्ययन में, “डिजिटल डिवाइड” (Digital Divide) की अवधारणा किसे संदर्भित करती है?

  1. विभिन्न देशों के बीच प्रौद्योगिकी के उपयोग में असमानता।
  2. समाज के विभिन्न वर्गों (जैसे अमीर-गरीब, शहरी-ग्रामीण) के बीच सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) तक पहुंच और उपयोग में असमानता।
  3. महिलाओं और पुरुषों के बीच प्रौद्योगिकी के उपयोग में अंतर।
  4. तकनीकी नवाचार की धीमी गति।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: डिजिटल डिवाइड एक व्यापक रूप से इस्तेमाल की जाने वाली अवधारणा है जो सूचना और संचार प्रौद्योगिकी (ICT) जैसे इंटरनेट, कंप्यूटर और मोबाइल फोन तक पहुंच और उपयोग में मौजूद सामाजिक असमानताओं को दर्शाती है। यह अक्सर आय, शिक्षा, भौगोलिक स्थिति (शहरी बनाम ग्रामीण) और अन्य सामाजिक कारकों से जुड़ी होती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह असमानता शिक्षा, रोजगार, सरकारी सेवाओं और सामाजिक भागीदारी के अवसरों को प्रभावित कर सकती है।
  • गलत विकल्प: विकल्प (a) राष्ट्रीय स्तर पर असमानता को बताता है, लेकिन डिजिटल डिवाइड मुख्य रूप से समाज के भीतर की असमानताओं पर केंद्रित है। विकल्प (c) एक विशिष्ट पहलू है, लेकिन डिजिटल डिवाइड उससे कहीं व्यापक है।

प्रश्न 23: “धर्म का समाजशास्त्र” (Sociology of Religion) में, एमिल दुर्खीम ने धर्म को किस रूप में परिभाषित किया?

  1. आत्माओं और अलौकिक शक्तियों में विश्वास।
  2. समाज के प्रति सामूहिक भावना और पवित्र व अपवित्र में भेद।
  3. नैतिक व्यवस्था और सामाजिक नियंत्रण का एक रूप।
  4. व्यक्तिगत मोक्ष की खोज।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘The Elementary Forms of Religious Life’ में धर्म को ‘पवित्र’ (sacred) और ‘अपवित्र’ (profane) के बीच एक भेद के रूप में परिभाषित किया। उन्होंने तर्क दिया कि धर्म व्यक्तियों को पवित्र वस्तुओं के इर्द-गिर्द एकजुट करता है, और यह वह ‘सामूहिक चेतना’ (collective consciousness) को मजबूत करता है जो समाज को एक साथ बांधती है। उनके लिए, धर्म अंततः समाज का ही एक रूप है, जो अपनी सामूहिक भावना को व्यक्त करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने आदिम समाजों के अध्ययन के माध्यम से धर्म की मूलभूत प्रकृति को समझने का प्रयास किया, और उन्होंने इसे सामाजिक एकता का एक महत्वपूर्ण स्रोत माना।
  • गलत विकल्प: आत्माओं में विश्वास (a) अक्सर धर्म का हिस्सा है, लेकिन दुर्खीम की परिभाषा इससे कहीं अधिक व्यापक है। नैतिक व्यवस्था (c) धर्म का परिणाम हो सकती है, लेकिन परिभाषा नहीं। व्यक्तिगत मोक्ष (d) व्यक्तिगत आध्यात्मिकता से संबंधित है, न कि दुर्खीम के समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से।

प्रश्न 24: “सामाजिक पूंजी” (Social Capital) की अवधारणा, जिसे अक्सर रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam) जैसे समाजशास्त्रियों द्वारा विस्तारित किया गया है, मुख्य रूप से किससे संबंधित है?

  1. किसी व्यक्ति या समूह के पास उपलब्ध वित्तीय संसाधन।
  2. किसी व्यक्ति या समूह के पास मौजूद भौतिक संपत्ति।
  3. लोगों के बीच भरोसे, नेटवर्क और सामाजिक संबंधों से उत्पन्न होने वाले लाभ।
  4. समाज में व्यक्ति का ज्ञान और कौशल।

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: सामाजिक पूंजी का तात्पर्य सामाजिक नेटवर्क (जैसे दोस्ती, परिवार, सहयोगियों के समूह) में निहित मूल्य से है, जो आपसी विश्वास, सहयोग और सामान्य मानदंडों के माध्यम से उत्पन्न होता है। यह लोगों को सूचना, समर्थन और अवसर प्रदान करता है, जिससे व्यक्तिगत और सामूहिक परिणाम बेहतर होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu) ने भी सामाजिक पूंजी का विश्लेषण किया था, इसे सामाजिक संबंधों तक पहुँच के रूप में देखा था। रॉबर्ट पुटनम ने अपनी पुस्तक ‘Bowling Alone’ में अमेरिकी समाज में सामाजिक पूंजी के क्षरण पर चिंता व्यक्त की।
  • गलत विकल्प: वित्तीय संसाधन (a) वित्तीय पूंजी है। भौतिक संपत्ति (b) भौतिक पूंजी है। ज्ञान और कौशल (d) मानव पूंजी है।

प्रश्न 25: भारतीय समाज में “आधुनिकीकरण” (Modernization) की प्रक्रिया का अध्ययन करते समय, अक्सर किस प्रमुख सामाजिक संस्था में बड़े बदलाव देखे गए हैं?

  1. परिवार और नातेदारी
  2. धर्म और नैतिकता
  3. राजनीतिक व्यवस्था
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सही होने का कारण: आधुनिकीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है जो समाज के लगभग सभी पहलुओं को प्रभावित करती है। भारतीय संदर्भ में, इसके कारण परिवार की संरचना में बदलाव (जैसे नाभिकीय परिवारों का उदय), पारंपरिक संयुक्त परिवार का क्षरण, विवाह के स्वरूपों में परिवर्तन, धर्म के प्रभाव में कमी या परिवर्तन (धर्मनिरपेक्षीकरण), और राजनीतिक क्षेत्र में अधिक भागीदारी, राष्ट्रवाद का उदय और लोकतांत्रिक संस्थाओं का विस्तार देखा गया है।
  • संदर्भ और विस्तार: एम.एन. श्रीनिवास, वाई. सिंह (Yogendra Singh) जैसे भारतीय समाजशास्त्रियों ने आधुनिकीकरण के प्रभावों पर महत्वपूर्ण काम किया है। उन्होंने बताया है कि कैसे पश्चिमीकरण, शहरीकरण और औद्योगीकरण के साथ-साथ भारतीय समाज में संस्थागत और सांस्कृतिक परिवर्तन हुए हैं।
  • गलत विकल्प: आधुनिकीकरण का प्रभाव केवल एक संस्था तक सीमित नहीं है, बल्कि यह समाज की सभी प्रमुख संस्थाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाता है।

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