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समाजशास्त्र की अवधारणाओं को सुलझाएं: आज की दैनिक चुनौती

समाजशास्त्र की अवधारणाओं को सुलझाएं: आज की दैनिक चुनौती

अपने समाजशास्त्रीय ज्ञान को परखने और अपनी तैयारी को एक नया आयाम देने के लिए तैयार हो जाइए! आज के इस विशेष क्विज में हम समाजशास्त्र के विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों से 25 चुनिंदा प्रश्न लेकर आए हैं। अपनी अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल का परीक्षण करें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘सांकेतिक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रस्तावक कौन हैं?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. कार्ल मार्क्स
  3. जॉर्ज हर्बर्ट मीड
  4. अगस्त कॉम्टे

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का एक प्रमुख संस्थापक माना जाता है। उनका कार्य इस बात पर केंद्रित है कि व्यक्ति समाज में प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से कैसे बातचीत करते हैं और अपने आत्म (self) का निर्माण करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड ने अपने व्याख्यानों में इस सिद्धांत को विकसित किया, जिन्हें उनके छात्रों ने मरणोपरांत ‘माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी’ (Mind, Self and Society) पुस्तक में संकलित किया। यह सिद्धांत समाज को व्यक्तियों के बीच निरंतर चलने वाली अंतःक्रियाओं का परिणाम मानता है।
  • गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम ने सामाजिक तथ्यों और सामूहिक चेतना पर जोर दिया; कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और ऐतिहासिक भौतिकवाद पर; और ऑगस्ट कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है जिन्होंने प्रत्यक्षवाद (positivism) का प्रतिपादन किया।

प्रश्न 2: एमिल दुर्खीम ने समाज में व्यवस्था बनाए रखने वाले प्राथमिक बल के रूप में किस अवधारणा का वर्णन किया?

  1. वर्ग संघर्ष
  2. सामाजिक तथ्य
  3. सामूहिक चेतना
  4. आत्मसात्करण (Assimilation)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम के अनुसार, ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) समाज में वह साझा विश्वासों, मूल्यों और मनोवृत्तियों का समुच्चय है जो व्यक्तियों को एक साथ बांधता है और सामाजिक एकता को बनाए रखता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ (The Division of Labour in Society) में यांत्रिक एकता (mechanical solidarity) और जैविक एकता (organic solidarity) के बीच अंतर किया, जहाँ प्राथमिक अवस्था में सामूहिक चेतना अधिक मजबूत होती है।
  • गलत विकल्प: ‘वर्ग संघर्ष’ कार्ल मार्क्स की केंद्रीय अवधारणा है। ‘सामाजिक तथ्य’ दुर्खीम द्वारा अध्ययन की जाने वाली बाहरी और बाध्यकारी सामाजिक संरचनाएँ हैं, न कि एकता का प्राथमिक बल। ‘आत्मसात्करण’ सामाजिक मनोविज्ञान का एक तत्व है।

प्रश्न 3: मैक्स वेबर ने नौकरशाही (Bureaucracy) के आदर्श प्रकार (Ideal Type) का वर्णन करते समय किन विशेषताओं पर बल दिया?

  1. व्यक्तिगत संबंध और अनौपचारिकता
  2. स्पष्ट पदानुक्रम, नियमों का पालन और अलगाव
  3. भावनात्मक जुड़ाव और अनियंत्रित नेतृत्व
  4. सहज निर्णय-निर्माण और परिवर्तनशीलता

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: मैक्स वेबर ने नौकरशाही को तर्कसंगत-कानूनी सत्ता (rational-legal authority) के आधार पर परिभाषित किया, जिसकी विशेषताएँ हैं: स्पष्ट श्रम विभाजन, पदानुक्रमित संरचना, लिखित नियम और प्रक्रियाएँ, और कार्य का अलगाव (impersonality)।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने अपनी पुस्तक ‘इकोनॉमी एंड सोसाइटी’ (Economy and Society) में नौकरशाही को आधुनिक समाज में सत्ता के तर्कसंगत संगठन के सबसे कुशल रूप के रूप में पहचाना, हालांकि उन्होंने इसके “लोहे के पिंजरे” (iron cage) के संभावित नकारात्मक प्रभावों की भी चेतावनी दी।
  • गलत विकल्प: व्यक्तिगत संबंध, भावनात्मक जुड़ाव और सहज निर्णय-निर्माण नौकरशाही के आदर्श प्रकार के विपरीत हैं, जो औपचारिकता, तर्कसंगतता और पूर्वानुमेयता पर आधारित है।

प्रश्न 4: किस समाजशास्त्री ने ‘एनिमी’ (Anomie) की अवधारणा को समझाया, जो सामाजिक मानदंडों की कमी या अस्पष्टता से उत्पन्न होने वाली एक अवस्था है?

  1. रॉबर्ट ई. पार्क
  2. एमिल दुर्खीम
  3. विलियम ग्राहम समनर
  4. चार्ल्स कूली

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनिमी’ (Anomie) की अवधारणा का उपयोग सामाजिक विघटन की स्थिति का वर्णन करने के लिए किया, जहाँ व्यक्ति की इच्छाएँ अनियंत्रित हो जाती हैं क्योंकि समाज के नियम या मानदंड अपर्याप्त या अस्पष्ट हो जाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने विशेष रूप से ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ और ‘सुसाइड’ (Suicide) जैसी रचनाओं में इस अवधारणा का उपयोग किया। उन्होंने दिखाया कि कैसे सामाजिक परिवर्तन या संकट के समय में एनिमी आत्महत्या की दर बढ़ सकती है।
  • गलत विकल्प: रॉबर्ट ई. पार्क शहरी समाजशास्त्र से जुड़े थे; विलियम ग्राहम समनर ने ‘फोल्कवेज’ (Folkways) और ‘मोरेज’ (Mores) जैसे शब्द गढ़े; और चार्ल्स कूली ने ‘लुकिंग-ग्लास सेल्फ’ (Looking-glass Self) की अवधारणा दी।

प्रश्न 5: भारतीय समाज में ‘जाति’ (Caste) व्यवस्था का मुख्य आधार क्या है?

  1. आय का स्तर
  2. पारिवारिक संबंध
  3. जन्म और वंशानुक्रम
  4. व्यवसाय की पसंद

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: भारतीय समाज में जाति व्यवस्था का मुख्य आधार जन्म और वंशानुक्रम है। किसी व्यक्ति की जाति जन्म से ही निर्धारित हो जाती है और यह उसकी सामाजिक स्थिति, व्यवसाय, विवाह और अन्य सामाजिक अंतःक्रियाओं को प्रभावित करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: जाति व्यवस्था एक बंद स्तरीकरण प्रणाली है जहाँ गतिशीलता (mobility) अत्यंत सीमित होती है। यह धार्मिक शुद्धता-अशुद्धता के विचारों से भी जुड़ी हुई है।
  • गलत विकल्प: आय का स्तर, पारिवारिक संबंध (सीमित अर्थ में), और व्यवसाय की पसंद (हालांकि पारंपरिक रूप से व्यवसाय जाति से जुड़ा था, अब यह स्वतंत्र हो गया है) जाति व्यवस्था के मुख्य आधार नहीं हैं, बल्कि उसके परिणाम या पहलू हो सकते हैं।

प्रश्न 6: एम. एन. श्रीनिवास ने किस अवधारणा को गढ़ा, जो निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाने की प्रक्रिया को दर्शाती है?

  1. पश्चिमीकरण (Westernization)
  2. आधुनिकीकरण (Modernization)
  3. संसक्कृतिकरण (Sanskritization)
  4. लोकप्रियकरण (Popularization)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: एम. एन. श्रीनिवास ने ‘संसक्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा विकसित की। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निम्न हिंदू जातियाँ या अन्य समूह, जनजातियाँ, या विचार, जो कि हिंदू समाज के पारंपरिक पदानुक्रम के भीतर किसी विशेष जाति से नीचे माने जाते हैं, उच्च जाति के अनुष्ठानों, परंपराओं, देवी-देवताओं और जीवन शैली को अपनाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा श्रीनिवास की पुस्तक ‘रिलिजन एंड सोसाइटी अमंग द कूर्ग्स ऑफ साउथ इंडिया’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) में प्रस्तुत की गई थी। इसका उद्देश्य सामाजिक और सांस्कृतिक गतिशीलता को समझना था।
  • गलत विकल्प: ‘पश्चिमीकरण’ पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को दर्शाता है। ‘आधुनिकीकरण’ एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक विकास शामिल है। ‘लोकप्रियकरण’ का समाजशास्त्र में यह विशिष्ट अर्थ नहीं है।

प्रश्न 7: किस समाजशास्त्री ने शक्ति (Power) को “किसी भी सामाजिक संबंध में अपनी इच्छा को लागू करने की क्षमता, भले ही प्रतिरोध हो” के रूप में परिभाषित किया?

  1. टालकोट पार्सन्स
  2. मैक्स वेबर
  3. सी. राइट मिल्स
  4. कार्ल मार्क्स

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: यह शक्ति की एक शास्त्रीय परिभाषा है जिसे मैक्स वेबर ने दिया है। उन्होंने शक्ति को किसी भी सामाजिक संबंध में अपनी इच्छा थोपने की क्षमता के रूप में परिभाषित किया, भले ही प्रतिरोध हो।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने शक्ति (power) और प्रभुत्व (domination) के बीच अंतर किया। शक्ति केवल किसी के कराने की क्षमता है, जबकि प्रभुत्व वह संभावना है कि कोई विशेष आज्ञा (या सभी प्रकार की आज्ञाएँ) एक निश्चित व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह द्वारा निश्चित सामग्री वाली आज्ञाओं के लिए दी जाती है, और यह कि ऐसी आज्ञाओं का एक महत्वपूर्ण अंश लोगों द्वारा वास्तव में उनका पालन करने के रूप में कार्य करता है।
  • गलत विकल्प: टालकोट पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था और कार्यवाद पर ध्यान केंद्रित किया। सी. राइट मिल्स ने ‘पावर एलीट’ (Power Elite) की अवधारणा दी। कार्ल मार्क्स ने शक्ति को वर्ग संघर्ष के संदर्भ में देखा।

प्रश्न 8: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की, जो सामाजिक परिवर्तन में प्रौद्योगिकी और गैर-भौतिक संस्कृति (जैसे मूल्य, मानदंड) के बीच अंतर को दर्शाती है?

  1. एलविन गोल्डनर
  2. विलियम एफ. ओग्बर्न
  3. कार्ल मैनहाइम
  4. अल्बर्ट बैण्डुरा

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: विलियम एफ. ओग्बर्न ने ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा दी। उनके अनुसार, भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अक्सर गैर-भौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक संस्थाएँ, मूल्य, नैतिक नियम) की तुलना में तेज़ी से बदलती है, जिससे समाज में एक अंतर या ‘विलंब’ पैदा होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: ओग्बर्न ने अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज’ (Social Change) में इस सिद्धांत का विस्तार से वर्णन किया। यह अवधारणा समझाती है कि कैसे नई तकनीकें सामाजिक समायोजन और सांस्कृतिक प्रतिक्रियाओं में देरी का कारण बन सकती हैं।
  • गलत विकल्प: एलविन गोल्डनर ने ‘सामाजिक विघटन’ (Social Disorganization) पर काम किया। कार्ल मैनहाइम ने ‘पीढ़ी’ (Generation) और ‘ज्ञान समाजशास्त्र’ (Sociology of Knowledge) पर काम किया। अल्बर्ट बैण्डुरा एक सामाजिक मनोवैज्ञानिक हैं जो सामाजिक शिक्षण सिद्धांत के लिए जाने जाते हैं।

प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक संस्था है जो विवाह, नातेदारी और वंशानुक्रम से संबंधित है?

  1. शिक्षा
  2. राजनीति
  3. अर्थव्यवस्था
  4. परिवार

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: परिवार वह प्राथमिक सामाजिक संस्था है जो विवाह, नातेदारी (kinship) और वंशानुक्रम (descent) के माध्यम से सामाजिक संरचना को बनाए रखती है। यह सदस्यों के बीच भावनात्मक, सामाजिक और आर्थिक सहायता भी प्रदान करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: समाजशास्त्र में परिवार को एक सार्वभौमिक संस्था माना जाता है, यद्यपि इसके स्वरूप और कार्य विभिन्न समाजों में भिन्न हो सकते हैं। यह प्रजनन, समाजीकरण और आर्थिक उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  • गलत विकल्प: शिक्षा, राजनीति और अर्थव्यवस्था अन्य प्रमुख सामाजिक संस्थाएँ हैं, लेकिन उनका प्राथमिक ध्यान विवाह, नातेदारी और वंशानुक्रम पर नहीं होता, हालांकि वे अप्रत्यक्ष रूप से इनसे प्रभावित हो सकते हैं।

प्रश्न 10: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का तात्पर्य समाज को विभिन्न स्तरों में विभाजन से है। इनमें से कौन सा स्तरीकरण का आधार हो सकता है?

  1. केवल आय
  2. केवल शिक्षा
  3. वर्ग, स्थिति और शक्ति
  4. पड़ोस का स्थान

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक स्तरीकरण केवल आय पर आधारित नहीं होता, बल्कि यह विभिन्न मानदंडों का एक जटिल संयोजन है। मैक्स वेबर ने स्तरीकरण के तीन प्रमुख आयामों – वर्ग (अर्थव्यवस्था), स्थिति (प्रतिष्ठा/सम्मान), और शक्ति (राजनीति) – की पहचान की, जो व्यक्तियों और समूहों की स्थिति को निर्धारित करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: ये आयाम अक्सर परस्पर जुड़े होते हैं, लेकिन स्वतंत्र रूप से भी कार्य कर सकते हैं। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति के पास बहुत पैसा (वर्ग) हो सकता है, लेकिन उच्च सामाजिक प्रतिष्ठा (स्थिति) नहीं हो सकती है, या इसके विपरीत।
  • गलत विकल्प: केवल आय या केवल शिक्षा स्तरीकरण के केवल एक पहलू को दर्शाते हैं। पड़ोस का स्थान स्थिति का सूचक हो सकता है, लेकिन यह स्वयं स्तरीकरण का आधार नहीं है।

प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन सी समाजशास्त्रीय पद्धति ‘क्यों’ और ‘कैसे’ प्रश्नों पर ध्यान केंद्रित करती है, और सामाजिक घटनाओं के पीछे के अर्थ और उद्देश्य को समझने का प्रयास करती है?

  1. मात्रात्मक (Quantitative)
  2. गुणात्मक (Qualitative)
  3. प्रत्यक्षवादी (Positivist)
  4. तुलनात्मक (Comparative)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: गुणात्मक (Qualitative) अनुसंधान विधियाँ अक्सर ‘क्यों’ और ‘कैसे’ जैसे प्रश्नों का उत्तर देने का प्रयास करती हैं। वे सामाजिक घटनाओं के गहन अर्थ, अनुभव और संदर्भ को समझने पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जैसे कि साक्षात्कार, अवलोकन और केस अध्ययन।
  • संदर्भ और विस्तार: यह तरीका अक्सर व्यक्तिपरक दृष्टिकोणों और सामाजिक दुनिया की जटिलताओं को पकड़ने के लिए प्रयोग किया जाता है, जो अक्सर मात्रात्मक विधियों से छूट जाते हैं।
  • गलत विकल्प: मात्रात्मक विधियाँ ‘कितना’ या ‘क्या’ जैसे सवालों पर केंद्रित होती हैं और सांख्यिकीय डेटा का उपयोग करती हैं। प्रत्यक्षवाद एक दार्शनिक दृष्टिकोण है जो प्राकृतिक विज्ञानों की विधियों को समाजशास्त्र पर लागू करने पर बल देता है। तुलनात्मक विधि विभिन्न समाजों या समूहों के बीच तुलना करती है।

प्रश्न 12: “सामाजिक परिवर्तन को मुख्य रूप से प्रौद्योगिकी और आर्थिक संरचनाओं में होने वाले परिवर्तनों से प्रेरित माना जाता है।” यह कथन किस समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से सबसे अधिक मेल खाता है?

  1. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
  2. संरचनात्मक प्रकार्यवाद
  3. कार्ल मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद
  4. आमंड और वर्बा का नागरिक संस्कृति सिद्धांत

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: कार्ल मार्क्स का ऐतिहासिक भौतिकवाद (Historical Materialism) यह मानता है कि समाज की आर्थिक संरचना (उत्पादन के साधन और संबंध) सामाजिक, राजनीतिक और बौद्धिक ऊपरी संरचना को निर्धारित करती है। प्रौद्योगिकी और उत्पादन के तरीके सामाजिक परिवर्तन के मुख्य चालक हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, उत्पादन के तरीकों में परिवर्तन से वर्ग संघर्ष उत्पन्न होता है, जो अंततः समाज के पुनर्गठन की ओर ले जाता है।
  • गलत विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तियों के बीच अर्थ और प्रतीकों पर ध्यान केंद्रित करता है। संरचनात्मक प्रकार्यवाद समाज को एक प्रणाली के रूप में देखता है जहाँ विभिन्न भाग संतुलन बनाए रखने के लिए कार्य करते हैं। आमंड और वर्बा ने राजनीतिक संस्कृति का अध्ययन किया।

प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था समाजीकरण, सांस्कृतिक संचरण और सामाजिक गतिशीलता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है?

  1. बाजार
  2. न्यायपालिका
  3. शिक्षा
  4. सेना

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: शिक्षा प्रणाली वह संस्था है जो ज्ञान, कौशल, मूल्यों और मानदंडों के माध्यम से व्यक्तियों के समाजीकरण और सांस्कृतिक संचरण का कार्य करती है। यह सामाजिक गतिशीलता (social mobility) के अवसरों को भी प्रदान कर सकती है।
  • संदर्भ और विस्तार: शिक्षा का उद्देश्य न केवल अकादमिक ज्ञान देना है, बल्कि व्यक्तियों को समाज का जिम्मेदार सदस्य बनाना भी है। यह सामाजिक वर्गों को जोड़ने या बनाए रखने में भी भूमिका निभा सकती है।
  • गलत विकल्प: बाजार मुख्य रूप से आर्थिक गतिविधियों से जुड़ा है। न्यायपालिका कानून व्यवस्था बनाए रखती है। सेना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए जिम्मेदार है, हालांकि वे भी समाजीकरण में भूमिका निभा सकते हैं।

प्रश्न 14: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा का संबंध मुख्य रूप से किससे है?

  1. व्यक्ति की आय और धन
  2. नेटवर्क, विश्वास और सामाजिक संबंध
  3. व्यक्तिगत कौशल और ज्ञान
  4. शारीरिक स्वास्थ्य और कल्याण

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सामाजिक पूंजी से तात्पर्य उन नेटवर्कों, सामाजिक संबंधों, विश्वास और आपसी सहयोग से है जो व्यक्तियों या समूहों को लाभ पहुंचाते हैं। इसे अक्सर “लोगों से लोगों तक” संसाधन के रूप में देखा जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: पियरे बॉर्डियू, जेम्स कोलमन और रॉबर्ट पुटनम जैसे समाजशास्त्रियों ने इस अवधारणा को विकसित किया है। यह सामाजिक जुड़ाव और सहयोग के माध्यम से व्यक्तिगत और सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती है।
  • गलत विकल्प: आय और धन भौतिक पूंजी है। व्यक्तिगत कौशल और ज्ञान मानव पूंजी है। शारीरिक स्वास्थ्य कल्याण का हिस्सा है, न कि सामाजिक पूंजी।

प्रश्न 15: भारतीय समाज में ‘धर्मांतरण’ (Conversion) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कारक अक्सर एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है?

  1. धार्मिक ग्रंथों का केवल बौद्धिक अध्ययन
  2. सामाजिक-आर्थिक उत्थान की आकांक्षा
  3. उच्च जाति की स्वीकार्यता
  4. व्यक्ति की भौगोलिक स्थिति

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: भारतीय समाज में, विशेष रूप से ऐतिहासिक रूप से, धर्मांतरण अक्सर उन व्यक्तियों द्वारा किया जाता रहा है जो सामाजिक, आर्थिक या राजनीतिक रूप से पिछड़े हुए हैं और वे अपने जीवन स्तर को सुधारने या उत्पीड़न से बचने की उम्मीद करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: कई अध्ययनों से पता चलता है कि सामाजिक-आर्थिक कारक, जैसे जातिगत भेदभाव से मुक्ति या बेहतर अवसर, धर्मांतरण के प्रमुख कारण हो सकते हैं।
  • गलत विकल्प: केवल बौद्धिक अध्ययन, उच्च जाति की स्वीकार्यता (जो अक्सर धर्मांतरण का लक्ष्य होता है, कारण नहीं), या भौगोलिक स्थिति (जब तक कि वह विशिष्ट अवसरों से न जुड़ी हो) धर्मांतरण के प्राथमिक या सबसे सामान्य कारण नहीं हैं।

प्रश्न 16: ‘अजनबी’ (The Stranger) की समाजशास्त्रीय अवधारणा, जो समाज से संबंधित लेकिन साथ ही उससे अलग भी है, किसने विकसित की?

  1. जॉर्ज सिमेल
  2. अल्फ्रेड शुट्ज़
  3. अर्नेस्ट बर्ग्रेस
  4. ई. सी. एच. हसबर्गर

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: जॉर्ज सिमेल (Georg Simmel) ने ‘अजनबी’ (The Stranger) की अवधारणा का गहन विश्लेषण किया। उन्होंने ‘अजनबी’ को समाज के सदस्य के रूप में परिभाषित किया जो बाहरी भी है, एक ऐसी स्थिति जो उसे एक अनूठा दृष्टिकोण प्रदान करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: सिमेल ने अपने निबंध ‘द स्ट्रेंजर’ में तर्क दिया कि अजनबी की समाज में एक विशेष स्थिति होती है – वह दूर होने के कारण निष्पक्ष होता है, लेकिन फिर भी उसके संबंध होते हैं। यह स्थिति उसे समाज का सबसे अच्छा विश्लेषक बना सकती है।
  • गलत विकल्प: अल्फ्रेड शुट्ज़ ने सिमेल के काम को फिनोमेनोलॉजी (phenomenology) के दृष्टिकोण से आगे बढ़ाया। बर्गेस और हसबर्गर शिकागो स्कूल के पारिस्थितिकीविदों में से थे।

प्रश्न 17: ‘संरचनात्मक हिंसा’ (Structural Violence) की अवधारणा का संबंध किससे है?

  1. शारीरिक बल का प्रत्यक्ष प्रयोग
  2. सामाजिक व्यवस्था की संरचनाओं द्वारा होने वाली हानि
  3. पारिवारिक कलह और घरेलू हिंसा
  4. राजनीतिक उत्पीड़न और अत्याचार

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: संरचनात्मक हिंसा, जिसे अक्सर जोहान गैल्टुंग (Johan Galtung) से जोड़ा जाता है, वह हिंसा है जो सामाजिक, राजनीतिक या आर्थिक संरचनाओं में निहित होती है, जिससे लोगों की क्षमताएं और जीवन संभवतः न्यूनतम स्तर तक कम हो जाती हैं। यह सीधे तौर पर किसी व्यक्ति द्वारा नहीं की जाती।
  • संदर्भ और विस्तार: इसमें गरीबी, अन्याय, असमानता, पूर्वाग्रह, और सामाजिक बहिष्कार जैसी स्थितियाँ शामिल हैं जो व्यक्तियों को नुकसान पहुँचाती हैं। यह प्रत्यक्ष हिंसा से भिन्न है क्योंकि इसका कोई कर्ता (agent) नहीं होता।
  • गलत विकल्प: शारीरिक बल का प्रत्यक्ष प्रयोग प्रत्यक्ष हिंसा है। पारिवारिक कलह और राजनीतिक उत्पीड़न भी प्रत्यक्ष या व्यक्तिगत हिंसा के रूप हैं, हालांकि ये संरचनात्मक कारणों से उत्पन्न हो सकते हैं।

प्रश्न 18: भारत में ‘हरित क्रांति’ (Green Revolution) का समाजशास्त्रीय प्रभाव क्या था?

  1. ग्रामीण क्षेत्रों में आय की समानता में वृद्धि
  2. कृषि में प्रौद्योगिकी का समावेश और छोटे किसानों पर प्रभाव
  3. शहरीकरण की प्रक्रिया का धीमा होना
  4. पारंपरिक कृषि पद्धतियों का सुदृढ़ीकरण

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: हरित क्रांति का मुख्य समाजशास्त्रीय प्रभाव कृषि में नई तकनीकों (जैसे उच्च-उपज देने वाली किस्में, उर्वरक, कीटनाशक) का व्यापक परिचय था। इसने कुछ क्षेत्रों और किसानों को दूसरों की तुलना में अधिक लाभ पहुँचाया, जिससे आय असमानताओं पर भी असर पड़ा।
  • संदर्भ और विस्तार: यह परिवर्तन विशेष रूप से पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में केंद्रित था। छोटे किसानों के लिए, नई तकनीकें अपनाने की लागत और जोखिम अधिक हो सकते थे, जिससे उनके सामाजिक-आर्थिक स्थिति पर मिश्रित प्रभाव पड़ा।
  • गलत विकल्प: आय की समानता में वृद्धि का दावा सामान्यीकरण से परे है, बल्कि असमानताएँ बढ़ी हैं। इसने शहरीकरण को धीमा नहीं किया, बल्कि अक्सर अप्रत्यक्ष रूप से बढ़ाया। इसने पारंपरिक पद्धतियों को मजबूत नहीं किया, बल्कि प्रतिस्थापित किया।

प्रश्न 19: ‘संस्कृति’ (Culture) की समाजशास्त्रीय परिभाषा में निम्नलिखित में से क्या शामिल है?

  1. केवल भौतिक वस्तुएँ (जैसे इमारतें, उपकरण)
  2. केवल गैर-भौतिक तत्व (जैसे विचार, विश्वास, मूल्य)
  3. मनुष्यों द्वारा अर्जित ज्ञान, विश्वास, कला, नैतिकता, कानून, रीति-रिवाज और अन्य क्षमताएँ व आदतें
  4. केवल भाषा और संचार के तरीके

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: यह संस्कृति की एक व्यापक समाजशास्त्रीय परिभाषा है, जो ई. बी. टायलर (E.B. Tylor) की परिभाषा से प्रेरित है। संस्कृति में न केवल भौतिक वस्तुएं (भौतिक संस्कृति) बल्कि विचार, विश्वास, मूल्य, भाषा, कला, और सामाजिक व्यवहार के पैटर्न (गैर-भौतिक संस्कृति) भी शामिल होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: संस्कृति वह सीखा हुआ व्यवहार है जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक हस्तांतरित होता है और समाज के सदस्यों को एक पहचान और साझा विश्वदृष्टि प्रदान करता है।
  • गलत विकल्प: केवल भौतिक या केवल गैर-भौतिक तत्वों को शामिल करना संस्कृति की अपूर्ण परिभाषा होगी। भाषा महत्वपूर्ण है, लेकिन संस्कृति का एक पहलू मात्र है।

प्रश्न 20: ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया को अक्सर किस बदलाव से जोड़ा जाता है?

  1. परंपरागत समाज से औद्योगिक और शहरी समाज की ओर
  2. ग्रामीण क्षेत्रों में कृषि उत्पादन में वृद्धि
  3. स्थानीय प्रथाओं का संरक्षण
  4. धार्मिक अनुष्ठानों का अधिक पालन

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: आधुनिकीकरण एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन शामिल होते हैं, जो परंपरागत, अक्सर कृषि-आधारित समाजों को औद्योगिक, शहरी और अधिक तर्कसंगत समाजों में बदलते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: इसमें औद्योगिकीकरण, नगरीकरण, लोकतंत्रीकरण, साक्षरता में वृद्धि और व्यक्तिवाद का उदय जैसी प्रक्रियाएं शामिल हैं।
  • गलत विकल्प: कृषि उत्पादन में वृद्धि आधुनिकीकरण का एक परिणाम हो सकती है, लेकिन यह स्वयं पूरी प्रक्रिया नहीं है। स्थानीय प्रथाओं का संरक्षण या धार्मिक अनुष्ठानों का अधिक पालन सामान्यतः आधुनिकीकरण की दिशा के विपरीत माने जाते हैं।

प्रश्न 21: भारतीय समाज में ‘आदिवासी’ (Tribal) समुदायों के अध्ययन में ‘अलगाव’ (Isolation) की अवधारणा का क्या महत्व है?

  1. उनका अन्य समाजों से संपर्क न होना
  2. उनकी अपनी विशिष्ट संस्कृति, पहचान और सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था का होना, भले ही वे संपर्क में हों
  3. उनकी आर्थिक आत्मनिर्भरता
  4. उनके भौगोलिक रूप से दुर्गम क्षेत्रों में निवास करना

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: समाजशास्त्र में ‘अलगाव’ की अवधारणा का अर्थ केवल भौगोलिक अलगाव नहीं है, बल्कि किसी समूह का अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक, सामाजिक और राजनीतिक पहचान बनाए रखना है, भले ही वह बाहरी दुनिया के संपर्क में हो। यह उन्हें मुख्यधारा के समाज से अलग पहचान देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: कई आदिवासी समुदाय बाहरी प्रभावों के बावजूद अपनी अनूठी भाषा, रीति-रिवाजों और सामाजिक संरचनाओं को बनाए रखते हैं। यह अलगाव उनकी सांस्कृतिक विशिष्टता को समझने के लिए महत्वपूर्ण है।
  • गलत विकल्प: पूर्ण संपर्क न होना (a) हमेशा सच नहीं होता। आर्थिक आत्मनिर्भरता (c) या दुर्गम भौगोलिक स्थिति (d) अलगाव के कारण या संकेत हो सकते हैं, लेकिन अलगाव का अर्थ स्वयं पहचान का संरक्षण है।

प्रश्न 22: ‘पैट्रियार्की’ (Patriarchy) या पितृसत्तात्मकता को समाजशास्त्र में कैसे समझा जाता है?

  1. एक व्यवस्था जिसमें पुरुषों और महिलाओं के बीच समानता होती है
  2. एक सामाजिक व्यवस्था जिसमें पुरुषों का महिलाओं पर प्रभुत्व होता है, और यह शक्ति पुरुषों को लाभ पहुँचाती है
  3. एक व्यवस्था जहाँ निर्णय केवल पुरुषों द्वारा लिए जाते हैं
  4. महिलाओं की स्वाभाविक नेतृत्व क्षमता

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: पितृसत्तात्मकता एक सामाजिक व्यवस्था है जिसमें पुरुष (विशेषकर पिता और पिता-जैसे अधिकार वाले पुरुष) महिलाओं पर प्रभुत्व रखते हैं। यह प्रभुत्व परिवार, समाज और राजनीतिक व्यवस्था के सभी स्तरों पर संरचनात्मक असमानता के रूप में प्रकट हो सकता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा लैंगिक असमानता और शक्ति संबंधों के विश्लेषण में केंद्रीय है, और यह दर्शाती है कि कैसे सामाजिक संरचनाएं महिलाओं के विरुद्ध पक्षपातपूर्ण हो सकती हैं।
  • गलत विकल्प: समानता (a) पितृसत्ता के विपरीत है। केवल पुरुषों द्वारा निर्णय लेना (c) इसका एक पहलू हो सकता है, लेकिन पितृसत्ता इससे कहीं अधिक व्यापक है। महिलाओं की नेतृत्व क्षमता (d) एक व्यक्तिगत गुण है, न कि व्यवस्था की परिभाषा।

प्रश्न 23: भारतीय गाँवों में ‘जाति-आधारित संबंध’ (Caste-based Relations) का एक मुख्य पहलू क्या रहा है?

  1. विवाह के लिए सभी जातियों में खुलापन
  2. व्यवसाय का पूर्ण रूप से जाति-निरपेक्ष होना
  3. जातिगत अंतर्विवाह (Endogamy) और पेशे का वंशानुक्रम
  4. जाति के आधार पर कोई सामाजिक भेदभाव न होना

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: भारतीय गांवों में, पारंपरिक रूप से जाति व्यवस्था ने विवाह को अपनी जाति के भीतर ही सीमित रखा (जातिगत अंतर्विवाह) और व्यवसाय अक्सर वंशानुगत होता था, जो एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित होता था।
  • संदर्भ और विस्तार: ये कारक ग्रामीण समाज की सामाजिक और आर्थिक संरचना को आकार देते थे, हालाँकि स्वतंत्रता के बाद से इन प्रवृत्तियों में परिवर्तन आ रहा है।
  • गलत विकल्प: विवाह में खुलापन (a) और व्यवसाय का जाति-निरपेक्ष होना (b) आधुनिक बदलाव हैं, पारंपरिक व्यवस्था के मुख्य पहलू नहीं। सामाजिक भेदभाव (d) जाति व्यवस्था का एक प्रमुख और दुखद पहलू रहा है।

प्रश्न 24: ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का सिद्धांत क्या बताता है?

  1. सभी संस्कृतियाँ समान रूप से उन्नत और विकसित हैं।
  2. किसी संस्कृति को उसके अपने मानकों और संदर्भ में समझा जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी संस्कृति के मानकों से।
  3. पश्चिमी संस्कृति को अन्य सभी संस्कृतियों से श्रेष्ठ माना जाना चाहिए।
  4. संस्कृति का विकास एक सीधी रेखा में होता है, जिसमें सभी समाज एक ही चरण से गुजरते हैं।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: सांस्कृतिक सापेक्षवाद इस विचार पर आधारित है कि किसी संस्कृति के विश्वासों, मूल्यों और प्रथाओं को उस संस्कृति के अपने संदर्भ में समझा जाना चाहिए, न कि किसी अन्य संस्कृति, विशेषकर अपनी संस्कृति के मानदंडों के आधार पर निर्णय लेना चाहिए।
  • संदर्भ और विस्तार: यह समाजशास्त्रियों को विभिन्न सांस्कृतिक प्रणालियों का निष्पक्ष अध्ययन करने में मदद करता है और सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों से बचने के लिए एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
  • गलत विकल्प: सभी संस्कृतियाँ समान रूप से उन्नत हैं (a) यह सांस्कृतिक सापेक्षवाद का परिणाम नहीं, बल्कि एक नैतिक कथन हो सकता है। पश्चिमी संस्कृति को श्रेष्ठ मानना (c) ‘जातिवाद’ (ethnocentrism) है। संस्कृति का एक सीधी रेखा में विकास (d) ‘विकासवाद’ (evolutionism) का विचार है।

प्रश्न 25: टालकोट पार्सन्स के ‘संरचनात्मक प्रकार्यवाद’ (Structural Functionalism) के अनुसार, समाज में ‘कार्य’ (Function) का क्या अर्थ है?

  1. समाज में होने वाली हर चीज का एक नकारात्मक उद्देश्य होता है।
  2. समाज की स्थिरता और निरंतरता में योगदान देने वाला परिणाम।
  3. समाज में होने वाला कोई भी अव्यवस्थित या विघटनकारी तत्व।
  4. व्यक्ति की व्यक्तिगत इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सटीकता: टालकोट पार्सन्स और अन्य संरचनात्मक प्रकार्यवादियों के अनुसार, समाज की किसी भी संस्था या सामाजिक पैटर्न का ‘कार्य’ वह परिणाम है जो सामाजिक व्यवस्था की स्थिरता और एकीकरण में योगदान देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने समाज को एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा, जहाँ प्रत्येक भाग (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म) एक विशिष्ट कार्य करता है जो पूरी प्रणाली के अस्तित्व और संतुलन के लिए आवश्यक है। उन्होंने ‘स्पष्ट कार्य’ (Manifest Function) और ‘छिपे हुए कार्य’ (Latent Function) के बीच भी अंतर किया।
  • गलत विकल्प: नकारात्मक उद्देश्य (a) या विघटनकारी तत्व (c) ‘अकार्य’ (dysfunction) कहलाते हैं। व्यक्तिगत इच्छाओं की पूर्ति (d) व्यक्तिगत मनोविज्ञान का हिस्सा हो सकती है, लेकिन समाजशास्त्रीय कार्य की परिभाषा में नहीं।

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