समाजशास्त्र
समाजशास्त्र का अर्थ परिभाषा
(Meaning and Definition of Sociology )
एक विषय के रूप में ‘ समाजशास्त्र ‘ नवीन शब्द है जबकि समाज प्राचीन है । जैसा कि बीरस्टीड ने अपनी पुस्तक ‘ The Social Order ‘ ( 1970 ) में लिखा है कि ‘ एक विषय के रूप में समाजशास्त्र नवीन है जबकि इसका अतीत काफी प्राचीन है । इस प्रकार समाजशास्त्र का व्यावहारिक रूप उतना ही पुराना है जितना कि समाज । किन्तु सामाजिक विज्ञानी के विकास के क्रम में समाजशास्त्र एक विशेष विज्ञान के रूप में काफी देर से विकसित हुआ । अर्थात् विकसित सामाजिक विज्ञानों की श्रृंखला में समाजशास्त्र अन्तिम कड़ियों में से एक है ।
दूसरे शब्दों में कह सकते है कि समाजशास्त्र का इतिहास अधिक पुराना नहीं है । यह एक नवीन विज्ञान है । समाजशास्त्र ( Sociology ) शब्द का प्रयोग सर्वप्रथम सन् 1838 में प्रसिद्ध समाजशास्त्री अगस्त कॉम्टे ( August Comte ) ने किया । ये फ्रांस के रहने वाले थे । चूंकि सबसे पहले अगस्त कॉस्टे ने इस शब्द का वैज्ञानिक अर्थ में प्रयोग किया इसलिए इन्हें ‘ समाजशास्त्र का पिता ‘ ( Father of sociology ) कहा जाता है । इस प्रकार इस नवीन विज्ञान को जन्म देने का श्रेय अगस्त कॉम्टे को जाता है । करीब 182 वर्ष पहले इस विज्ञान का जन्म हुआ ।
अंग्रेजी का यह ‘ Sociology ‘ शब्द दो विभिन्न स्थानों के शब्दों के योग से बना है । वह है – Socius | + Logus ” Socius पहला शब्द है जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा से है तथा Logus ‘ दूसरा शब्द है . जिसकी उत्पत्ति ग्रीक भाषा से हुई है । ‘ Socius ‘ का अर्थ है समाज और ‘ Logus ‘ का अर्थ है विज्ञान अर्थात् समाज का विज्ञान । इस प्रकार समाजशास्त्र ( Sociology ) शब्द का शाब्दिक अर्थ ‘ समाज ‘ के ‘ विज्ञान ‘ से है ।
किसी भी विषय के अध्ययन के पहले उसकी स्पष्ट परिभाषा जानना जरूरी है । समाजशास्त्र के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशाखियों ने अपने अपने दृष्टिकोण से परिभाषा दी है । विभिन्न समाजशास्त्रियों भिन्नता देखने को मिलती है । इसका प्रमुख कारण यह है कि इसका अध्ययन – क्षेत्र समाज स्वयं परिवर्तनशील है । इस प्रकार हम देखते है कि समाज का अध्ययन करनेवाले विज्ञान को परिभाषित करना अत्यधिक कठिन है । फिर भी विभिन्न समाजशास्त्रियों ने इसकी परिभाषा देने की कोशिश की है :
(i ) समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन है – कुछ समाजशास्त्री ने समाजशास्त्र को सामाजिक सम्बन्धों का अध्ययन करनेवाला विज्ञान माना है और समाज को सामाजिक सम्बन्धों का जाल बताया । इस विचार के प्रमुख समर्थकों में से मेकाइवर एवं पेज ( Maclver and Page ) , ग्रीन ( Green ) तथा जॉर्ज सिमेल ( G . Simmel ) के नाम विशेष उल्लेखनीय है । ।
मेकाइवर एवं पेज ने इसकी परिभाषा देते हुए लिखा है , ” . . . समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के विषय में है , सम्बन्धों के इसी जाल को हम समाज कहते है
जॉर्ज सिमेल के शब्दों में , ” समाजशास्त्र मानव के अन्तःसम्बन्धों के स्वरूपों का विज्ञान है । इन परिभाषाओं से स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों का व्यवस्थित अध्ययन करने वाला विज्ञान है । समाजशास्त्र की वास्तविक विषय – वस्तु सामाजिक सम्बन्ध ही है । समाज में बहुत तरह के सम्बन्ध पाये जाते है । सम्बन्ध की इसी व्यवस्था को हम समाज कहते है और समाज के अध्ययन करनेवाले विज्ञान को समाजशास्त्र ।
( ii ) समाजशास्त्र समाज का अध्ययन है – कुछ समाजशास्त्री समाजशास्त्र को समाज का अध्ययन बताते है । इनके अनुसार समाजशास्त्र पूरे समाज का अध्ययन करता है । इस दृष्टिकोण के मानने वालों में वार्ड ( Ward ) . गिडिंग्स ( Giddings ) , आदि के नाम प्रमुख है ।
वार्ड के अनुसार , ” समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है ।
” गिर्डिग्स के अनुसार , ‘ ‘ समग्र रूप से समाजशास्त्र समाज का क्रमबद्ध वर्णन और व्याख्या करता है ।
इन परिभाषाओं के आधार पर यह स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है । समाज का विज्ञान होने के नाते वह पूरे समाज का अध्ययन करता है ।
(iii) समाजशास्त्र सामाजिक समहों का अध्ययन है – कुछ समाजशास्त्रियों ने समाजशास्त्र को सामाजिक समूहों का अध्ययन मानकर इसकी परिभाषा देने का प्रयास किया है । समाजशास्त्र को सामाजिक समूहों का अध्ययन करने वाला विज्ञान समझने वाले समाजशास्त्रियों में जॉनसन ( Johnson ) का नाम प्रमुख है ।
जॉनसन ने समाजशास्त्र को सामाजिक समूहों का विज्ञान माना है ,अपनी इस परिभाषा में जॉनसन ने यह स्पष्ट किया है कि समाजशास्त्र सामाजिक समूहों का विज्ञान है । किन्तु यह समूह सिर्फ व्यक्तियों का संकलन मात्र ही नहीं होगा बल्कि सामाजिक अन्त : क्रियाओं के आधार पर बनने वाले सामाजिक समूहों का अध्ययन करेगा । अर्थात् सामाजिक अन्तःक्रियाओं की व्यवस्था से उत्पन्न होनेवाले समूहो का अध्ययन समाजशास्त्र करता है । यहाँ अप्रत्यक्ष रूप से समाजशास्त्र को सामाजिक अन्त : क्रियाओं का ही अध्ययन माना गया है ।
( iv ) समाजशास्त्र सामाजिक जीवन , घटनाओं , व्यवहारों एवं कार्यों का अध्ययन है — समाजशास्त्र को सामाजिक जीवन , घटनाओ , व्यवहारो एवं कार्यों का अध्ययन मानने वाले समाजशास्त्रियों में ऑगबर्न एवं निमकॉफ ( Ogbum Nimkot ) , सोरोकिन ( Sorokin ) , बेनेट तथा ट्यूमिन ( Bennet & Tumin ) इत्यादि के नाम विशेष उल्लेखनीय है । इन लोगों के अनुसार समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का अध्ययन करता है ।
ऑगवर्न एवं निमकॉफ के अनुसार , ” समाजशास्त्र सामाजिक जीवन का वैज्ञानिक अध्ययन है ।
सोरोकिन ने समाजशास्त्र की परिभाषा देते हए लिखा है – ” समाजशास्त्र सामाजिक सांस्कृतिक घटनाआ । के सामान्य स्वरूपो , प्रारूपों और विभिन्न प्रकार के अन्त सम्बन्धों का सामान्य विज्ञान है । ‘ ‘
बेनेट तथा ट्यूमिन ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दी है ” समाजशास्त्र सामाजिक जीवन के ढाँचे और प्रकायों का विज्ञान है । “
इन परिभाषाओं के आधार पर स्पष्ट हो रहा है कि समाजशास्त्र सामाजिक जीवन , घटनाओं , व्यवहारों एवं कायों का अध्ययन है । दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि वह विज्ञान जो सामाजिक जीवन की गतिविधियों का अध्ययन करता है उसे समाजशास्त्र कहते हैं ।
( v ) समाजशास्त्र सामाजिक अन्त : क्रियाओं का अध्ययन है — पहले दिये गये दृष्टिकोणों की भाँति एक और दृष्टिकोण है । इस दृष्टिकोण के अनुसार , समाजशास्त्र को सामाजिक अन्त : क्रियाओं का अध्ययन माना गया है । इसकी परिभाषा देनेवालों में गिलिन और गिलिन ( Gillin and Gillin ) , जॉर्ज सिमेल ( George Simmel ) , मैक्स वेबर ( Max Weber ) तथा जिन्सबर्ग ( Ginsberg ) प्रसिद्ध हैं । इनके अनुसार समाज का वास्तविक आधार सामाजिक सम्बन्ध न होकर सामाजिक अन्तःक्रिया है । मानव समाज में सामाजिक सम्बन्धों की संख्या इतनी अधिक है कि उनका ठीक से अध्ययन करना कठिन कार्य है । इसलिए समाजशास्त्र में सामाजिक अन्त : क्रियाओं का अध्ययन किया जाना चाहिए । सामाजिक अन्त : क्रिया ( Social Interaction ) का अर्थ है दो या दो से अधिक व्यक्तियों या समूह अपने विचारों व व्यवहारो से एक – दूसरे को प्रभावित करते हैं तथा प्रभावित होते भी हैं । अर्थात् दो या दो से अधिक व्यक्तियों व समूहों को एक – दूसरे के सम्पर्क में आना तथा एक – दूसरे के व्यवहारों को प्रभावित करना ही सामाजिक अन्तःक्रिया है । सामाजिक सम्बन्धों का वास्तविक आधार भी सामाजिक अन्त : क्रिया ही है । अत समाजशाख को सामाजिक अन्त : क्रियाओं का विज्ञान माना गया है ।
जॉर्ज सिमेल के अनुसार , “ समाजशास्त्र मानव के अन्तःसम्बन्धों के स्वरूपों का विज्ञान है
मैक्स वेवर ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दी है – ” समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रिया ( Social Action ) का विश्लेषणात्मक बोध कराने का प्रयत्न करता है । “
जिन्सबर्ग के अनुसार , ” समाजशास्त्र मानव की अन्त : क्रियाओं , अन्तःसम्बन्धों और उनकी दशाओं एवं परिणामो का अध्ययन है । “
गिलिन और गिलिन के अनुसार , ” विस्तृत अर्थ में समाजशास्त्र को व्यक्तियों के एक – दूसरे के सम्पर्क में आने के परिणामस्वरूप उत्पन्न होनेवाली अन्तःक्रियाओं का अध्ययन कहा जा सकता है । ‘ ‘
परिभाषाओं की विभिन्नता को देखते हुए अलेक्स इंकल्स ने अपनी पुस्तक ‘ What is Sociology ‘ में समाजशास्त्र की परिभाषाओं को तीन भागों में विभाजित करते हैं :
( 1 ) समाजशास्त्र समाज के अध्ययन के रूप में : – इस श्रेणी में हम वार्ड , गिडिंग्स , समनर आदि समाजशास्त्रियों की परिभाषाओं को रख सकते हैं ।
( 2 ) समाजशास्त्र संस्थाओं के अध्ययन के रूप में : – दुखीम ।
( 3 ) समाजशास्त्र सामाजिक सम्बन्धों के अध्ययन के रूप में : – इस श्रेणी में मैकाइवर व पेज , क्यूबर आदि का नाम उल्लेखनीय है ।
इसके आधार पर कहा जा सकता है कि समाजशास्त्र सम्पूर्ण समाज का एक इकाई के रूप में अध्ययन करने वाला विज्ञान है । उपर्युक्त समाजशास्त्रियों ने अपने – अपने ढंग एवं दृष्टिकोण के आधार पर अपनी परिभाषा को व्यक्त किया है । इन परिभाषाओं पर हम ध्यान देंगे तो पता चलेगा कि सभी ने किसी – न – किसी रूप में सामाजिक साबन्धों को ही अध्ययन की विषय – वस्तु माना है । इसलिए मेकाइवर एवं पेज की ही परिभाषा को सबसे अधिक मान्यता मिली है ।