समाजशास्त्र का दैनिक मंथन: अवधारणाओं पर गहरी पकड़
समाजशास्त्र के जिज्ञासु अभ्यर्थियों, अपनी विश्लेषणात्मक क्षमता और वैचारिक स्पष्टता को तराशने के लिए तैयार हो जाइए! आज के इस विशेष अभ्यास सत्र में, हम समाजशास्त्र के विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों से 25 बहुविकल्पीय प्रश्न लेकर आए हैं। आइए, अपनी तैयारी को एक नई ऊँचाई दें और प्रतिस्पर्धा में आगे बढ़ें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘वर्स्टेहेन’ (Verstehen) की अवधारणा, जो किसी सामाजिक क्रिया में व्यक्ति द्वारा दिए जाने वाले व्यक्तिपरक अर्थों को समझने पर बल देती है, किस प्रमुख समाजशास्त्री से संबंधित है?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने ‘वर्स्टेहेन’ की अवधारणा पेश की। इसका अर्थ है ‘समझना’ या ‘व्याख्यात्मक समझ’। वेबर के अनुसार, समाजशास्त्र का लक्ष्य सामाजिक क्रियाओं के पीछे छिपे व्यक्तिपरक अर्थों और इरादों को समझना है, न कि केवल बाहरी व्यवहार का अवलोकन करना।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा उनकी व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Interpretive Sociology) का केंद्र है और इसे उनकी कृति ‘इकॉनमी एंड सोसाइटी’ (Economy and Society) में विस्तार से बताया गया है। यह दुर्खीम के प्रत्यक्षवाद (Positivism) के विपरीत है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स द्वंद्वात्मक भौतिकवाद और वर्ग संघर्ष पर केंद्रित थे। एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) और सामाजिक एकता (Social Solidarity) जैसे विचारों को विकसित किया। जॉर्ज हर्बर्ट मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) के जनक माने जाते हैं।
प्रश्न 2: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा का अर्थ क्या है?
- आधुनिक पश्चिमी जीवन शैली को अपनाना।
- किसी निम्न जाति या जनजाति द्वारा उच्च जाति के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और विश्वासों को अपनाकर उच्चतर सामाजिक स्थिति प्राप्त करने की प्रक्रिया।
- औद्योगीकरण और शहरीकरण के कारण सामाजिक संरचना में परिवर्तन।
- वैज्ञानिक और तकनीकी ज्ञान का प्रसार।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संस्कृतिकरण, एम.एन. श्रीनिवास द्वारा गढ़ी गई एक प्रमुख अवधारणा है, जो भारतीय समाज में जाति व्यवस्था के भीतर होने वाले सांस्कृतिक परिवर्तन की ओर संकेत करती है। इसके तहत निम्न जातियाँ उच्च जातियों के व्यवहार प्रतिमानों को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति सुधारने का प्रयास करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने यह अवधारणा अपनी पुस्तक ‘रिलीजन एंड सोसाइटी अमंग द कूर्ग्स ऑफ साउथ इंडिया’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) में प्रस्तुत की थी। यह सांस्कृतिक गतिशीलता (Cultural Mobility) का एक रूप है।
- गलत विकल्प: ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) पश्चिमी संस्कृति के प्रभाव को दर्शाता है। ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) तकनीकी, आर्थिक और राजनीतिक संस्थानों में परिवर्तन से संबंधित है। ‘औद्योगीकरण’ (Industrialization) उत्पादन के तरीकों में परिवर्तन है।
प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था सामाजिक स्तरीकरण (Social Stratification) का सबसे आम और स्थायी रूप है?
- वर्ग (Class)
- व्यवस्था (Estate)
- दासता (Slavery)
- जाति (Caste)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जाति व्यवस्था (Caste System) सामाजिक स्तरीकरण का सबसे कठोर, स्थायी और अनुवंशिक (hereditary) रूप मानी जाती है। इसमें सामाजिक स्थिति जन्म पर आधारित होती है और इसमें गतिशीलता (mobility) लगभग नगण्य होती है।
- संदर्भ और विस्तार: भारतीय उपमहाद्वीप में प्रचलित जाति व्यवस्था, हिन्दू धर्मग्रंथों और सामाजिक परंपराओं से गहराई से जुड़ी हुई है। यह जन्म, व्यवसाय, खान-पान और सामाजिक संपर्क पर सख्त नियम लागू करती है।
- गलत विकल्प: वर्ग (Class) आमतौर पर आर्थिक स्थिति पर आधारित होता है और इसमें कुछ हद तक गतिशीलता संभव है। व्यवस्था (Estate) सामंती समाजों में पाई जाती थी, जहाँ पदानुक्रम जन्म और भूमि स्वामित्व पर आधारित होता था (जैसे लॉर्ड, पादरी, किसान)। दासता (Slavery) एक ऐसी प्रणाली है जहाँ व्यक्ति को संपत्ति के रूप में खरीदा या बेचा जाता है। ये सभी स्तरीकरण के रूप हैं, लेकिन जाति को अक्सर सबसे स्थायी माना जाता है।
प्रश्न 4: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक मानदंडों के क्षरण या कमजोर पड़ने की स्थिति को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?
- ऑगस्ट कॉम्ते
- हरबर्ट स्पेंसर
- एमिल दुर्खीम
- ताल्कोट पार्सन्स
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ की अवधारणा को अपनी कृतियों, विशेषकर ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ (The Division of Labour in Society) और ‘सुसाइड’ (Suicide) में विकसित किया। यह एक ऐसी सामाजिक स्थिति है जहाँ व्यक्ति के लिए कोई स्पष्ट नियम या मानक नहीं रह जाते, जिससे वह दिशाहीन और अशांत महसूस करता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, तीव्र सामाजिक परिवर्तन, आर्थिक संकट या व्यक्तिवाद का अतिरेक एनोमी की स्थिति को जन्म दे सकता है। यह अपराध और आत्महत्या जैसी सामाजिक समस्याओं का एक कारण हो सकता है।
- गलत विकल्प: ऑगस्ट कॉम्ते को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है और उन्होंने ‘प्रत्यक्षवाद’ (Positivism) का सिद्धांत दिया। हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक विकास के लिए ‘जैविक विकासवाद’ (Organic Evolution) की उपमा का प्रयोग किया। ताल्कोट पार्सन्स ने संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) को विकसित किया।
प्रश्न 5: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के बारे में सही नहीं है?
- यह सामाजिक संरचना की तुलना में व्यक्ति-से-व्यक्ति अंतःक्रिया पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
- यह मानता है कि समाज का निर्माण प्रतीकों के माध्यम से निरंतर सामाजिक अंतःक्रिया से होता है।
- यह मानता है कि व्यक्ति अपनी अंतःक्रियाओं में शब्दों, हाव-भाव और अन्य प्रतीकों का प्रयोग करके अर्थ पैदा करते हैं।
- यह मुख्य रूप से बड़े पैमाने की सामाजिक संस्थाओं और संरचनाओं के अध्ययन पर जोर देता है।
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, जिसका श्रेय जॉर्ज हर्बर्ट मीड, चार्ल्स कूली और हरबर्ट ब्लूमर जैसे विचारकों को जाता है, सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) समाजशास्त्र का एक महत्वपूर्ण उपागम है। यह व्यक्तियों के बीच होने वाली आमने-सामने की अंतःक्रियाओं, प्रतीकों के प्रयोग और उनसे उत्पन्न अर्थों पर केंद्रित है।
- संदर्भ और विस्तार: यह उपागम मानता है कि सामाजिक वास्तविकता व्यक्तिपरक अर्थों के निर्माण से उत्पन्न होती है, जो प्रतीकों (जैसे भाषा, हाव-भाव) के माध्यम से होता है। यह किसी भी प्रकार के संस्थागत या संरचनात्मक निर्धारणवाद का खंडन करता है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b) और (c) प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के मूल सिद्धांतों को सटीक रूप से दर्शाते हैं। विकल्प (d) गलत है क्योंकि यह उपागम बड़े पैमाने की संस्थाओं (macro-level) के बजाय व्यक्तिगत अंतःक्रियाओं और छोटे समूहों पर अधिक ध्यान देता है, जो इसे प्रकार्यवाद (Functionalism) या संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) से अलग करता है।
प्रश्न 6: ‘पोटलच’ (Potlatch) जैसी उपहार-देने की प्रथाएँ, जो प्रतिद्वंद्वी समुदायों के बीच धन और प्रतिष्ठा के हस्तांतरण को दर्शाती हैं, किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत से जुड़ी हैं?
- कार्ल मार्क्स (संघर्ष सिद्धांत)
- मार्सेल मॉस (उपहार का सिद्धांत)
- मैक्स वेबर (बुर्जुआ समाज)
- अल्बर्ट बंडुरा (सामाजिक शिक्षण सिद्धांत)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मार्सेल मॉस, फ्रांसीसी समाजशास्त्री, ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘द गिव्स’ (The Gift) में उपहार-देने, आदान-प्रदान और इसके सामाजिक-सांस्कृतिक महत्व का विश्लेषण किया। ‘पोटलच’ जैसी प्रथाएं, जो उत्तर-पश्चिमी प्रशांत तट के स्वदेशी लोगों में प्रचलित थी, मॉस के ‘परोपकारी प्रतिद्वंद्विता’ (agonistic reciprocity) के विचार का एक प्रमुख उदाहरण हैं।
- संदर्भ और विस्तार: मॉस के अनुसार, उपहार केवल वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि सामाजिक संबंधों, प्रतिष्ठा और शक्ति को बनाए रखने और स्थानांतरित करने के जटिल साधन हैं। यह केवल ‘देना’, ‘स्वीकार करना’ और ‘वापस देना’ की त्रिपक्षीय प्रकृति से जुड़ा है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स आर्थिक असमानता और वर्ग संघर्ष पर केंद्रित थे। मैक्स वेबर नौकरशाही और सत्ता की प्रकृति का विश्लेषण करते थे। अल्बर्ट बंडुरा सामाजिक शिक्षण सिद्धांत के लिए जाने जाते हैं, जो अधिगम (learning) पर केंद्रित है।
प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘प्राथमिक समूह’ (Primary Group) का उदाहरण है?
- एक कॉलेज की कक्षा
- एक फुटबॉल टीम
- एक व्यक्ति का परिवार
- एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: चार्ल्स कूली ने ‘प्राथमिक समूह’ की अवधारणा विकसित की, जो आमने-सामने की घनिष्ठता, सहयोग और ‘हम’ की भावना (we-feeling) की विशेषता है। परिवार प्राथमिक समूह का सबसे उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ भावनात्मक संबंध और व्यक्तिगत पहचान का विकास होता है।
- संदर्भ और विस्तार: प्राथमिक समूहों में अक्सर स्थायी और गहरे भावनात्मक बंधन होते हैं। ये व्यक्ति के सामाजिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- गलत विकल्प: एक कॉलेज की कक्षा, एक फुटबॉल टीम और एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल, ये सभी ‘द्वितीयक समूह’ (Secondary Group) के उदाहरण हैं। द्वितीयक समूह बड़े, अधिक औपचारिक और कम व्यक्तिगत होते हैं, जिनका उद्देश्य एक विशिष्ट लक्ष्य प्राप्त करना होता है।
प्रश्न 8: भारतीय समाज में ‘धर्मांतरण’ (Religious Conversion) का अध्ययन अक्सर किस समाजशास्त्रीय अवधारणा से जोड़ा जाता है?
- पाखंड (Hypocrisy)
- संस्कृतिकरण (Sanskritization)
- राजनीतिकरण (Politicization)
- पृथक्करण (Segregation)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: यद्यपि धर्मांतरण एक धार्मिक और सामाजिक प्रक्रिया है, भारतीय संदर्भ में अक्सर इसे जाति व्यवस्था से जुड़े गतिशीलता के प्रयासों के रूप में देखा जाता है। एम.एन. श्रीनिवास की ‘संस्कृतिकरण’ की अवधारणा, जिसमें निम्न जातियाँ उच्च जातियों के आचरण को अपनाती हैं, अप्रत्यक्ष रूप से उन समूहों पर भी लागू हो सकती है जो बेहतर सामाजिक स्थिति की तलाश में धर्मांतरण करते हैं। धर्मांतरण जातिगत उत्पीड़न से मुक्ति का एक साधन भी हो सकता है, जिससे सामाजिक स्थिति में परिवर्तन की आकांक्षा जुड़ी होती है।
- संदर्भ और विस्तार: दलितों का बौद्ध धर्म में धर्मांतरण (डॉ. बी.आर. अम्बेडकर के नेतृत्व में) सामाजिक और धार्मिक मुक्ति की एक शक्तिशाली अभिव्यक्ति थी, जिसे संस्कारीकरण के व्यापक ढांचे के भीतर भी समझा जा सकता है।
- गलत विकल्प: ‘पाखंड’ धर्म या नैतिकता में असंगति है। ‘राजनीतिकरण’ किसी मुद्दे को राजनीतिक रंग देना है। ‘पृथक्करण’ अलग करना है। ये सीधे तौर पर धर्मांतरण के सामाजिक-आर्थिक कारणों से नहीं जुड़ते, जैसा कि संस्कारीकरण के संदर्भ में हो सकता है।
प्रश्न 9: रॉबर्ट मर्टन द्वारा प्रतिपादित ‘प्रकट कार्य’ (Manifest Function) और ‘प्रच्छन्न कार्य’ (Latent Function) की अवधारणाएँ किस समाजशास्त्रीय उपागम से संबंधित हैं?
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- समाजशास्त्र का मार्क्सवादी विश्लेषण
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- नारीवाद (Feminism)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट मर्टन, ताल्कोट पार्सन्स के उत्तराधिकारी के रूप में, संरचनात्मक प्रकार्यवाद (Structural Functionalism) के क्षेत्र में एक प्रमुख व्यक्ति हैं। उन्होंने दुर्खीम और वेबर के विचारों को विकसित करते हुए सामाजिक संस्थाओं और संरचनाओं के कार्यों का विश्लेषण किया।
- संदर्भ और विस्तार: ‘प्रकट कार्य’ वे परिणाम हैं जिन्हें किसी सामाजिक प्रथा का उद्देश्य माना जाता है (जैसे, शिक्षा का प्रकट कार्य ज्ञान प्रदान करना है)। ‘प्रच्छन्न कार्य’ वे अनपेक्षित और अक्सर अनभिज्ञ परिणाम होते हैं (जैसे, शिक्षा का प्रच्छन्न कार्य सामाजिक नेटवर्क बनाना हो सकता है)।
- गलत विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्ति-से-व्यक्ति संपर्क पर केंद्रित है। मार्क्सवाद वर्ग संघर्ष और आर्थिक उत्पादन पर जोर देता है। नारीवाद लैंगिक असमानताओं का विश्लेषण करता है।
प्रश्न 10: किस समाजशास्त्री ने ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया, जिसमें नेटवर्क, सामाजिक मानदंड और विश्वासों को व्यक्तिगत और सामूहिक लाभ के स्रोतों के रूप में देखा जाता है?
- पियरे बॉर्दियू
- जेम्स कॉलमैन
- रॉबर्ट पुटनम
- सभी उपरोक्त
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा का श्रेय तीन प्रमुख समाजशास्त्रियों को जाता है: पियरे बॉर्दियू (Pierre Bourdieu), जेम्स कॉलमैन (James Coleman) और रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam)। तीनों ने अपने-अपने तरीके से इसे परिभाषित और विश्लेषित किया है।
- संदर्भ और विस्तार: बॉर्दियू ने इसे सामाजिक संबंधों के माध्यम से प्राप्त होने वाली प्रतिष्ठा और संसाधनों के रूप में देखा। कॉलमैन ने इसे सामाजिक संरचनाओं में मौजूद विश्वास, आशाओं और साझा अपेक्षाओं के रूप में परिभाषित किया, जो किसी क्रिया को सुगम बनाती हैं। पुटनम ने इसे नागरिक जुड़ाव, विश्वास और सामाजिक नेटवर्क से जोड़ा, जो लोकतांत्रिक समाज के लिए आवश्यक है।
- गलत विकल्प: चूँकि तीनों ने महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इसलिए केवल एक को चुनना गलत होगा।
प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन सी भारतीय समाज की विशेषता ‘अखंडित अखंडितता’ (Segmentary Opposition) से संबंधित है?
- एकजुट ग्राम समुदाय
- जाति व्यवस्था में विभिन्न इकाइयों के बीच संबंध
- परिवार के भीतर सत्ता की संरचना
- आर्थिक विकास का मॉडल
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘अखंडित अखंडितता’ (Segmentary Opposition) की अवधारणा को मुख्य रूप से एम.एन. श्रीनिवास ने भारतीय जाति व्यवस्था के संदर्भ में प्रयोग किया। यह उन विभिन्न इकाइयों (जातियों, उप-जातियों) के बीच संबंध को दर्शाता है जो एक-दूसरे के सापेक्ष (जैसे, मैं तुमसे ऊपर हूँ, लेकिन वह मुझसे ऊपर है) परिभाषित होती हैं, लेकिन एक समग्र इकाई का निर्माण करती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: इस मॉडल में, प्रत्येक उप-इकाई (segment) को एक विशेष संदर्भ में अपने से ऊपर और नीचे की इकाइयों के संबंध में परिभाषित किया जाता है, जिससे एक पदानुक्रमित लेकिन परस्पर संबंधित व्यवस्था बनती है।
- गलत विकल्प: ग्राम समुदाय, परिवार और आर्थिक विकास के मॉडल इस विशेष अवधारणा से सीधे तौर पर नहीं जुड़े हैं।
प्रश्न 12: ‘भूमंडलीकरण’ (Globalization) का संबंध निम्नलिखित में से किससे नहीं है?
- पूंजी और वस्तुओं का सीमा पार प्रवाह
- दूरसंचार और सूचना प्रौद्योगिकी में क्रांति
- स्थानीय संस्कृतियों का संवर्द्धन
- प्रवास और सांस्कृतिक आदान-प्रदान में वृद्धि
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भूमंडलीकरण, अर्थात् दुनिया भर में आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक रूप से एक-दूसरे से जुड़ना, अक्सर स्थानीय संस्कृतियों के समरूपीकरण (homogenization) या पश्चिमीकरण की ओर ले जाता है, न कि उनके संवर्द्धन (enhancement) की ओर। यह एक जटिल प्रक्रिया है जिसके सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव हो सकते हैं, लेकिन ‘स्थानीय संस्कृतियों का संवर्द्धन’ इसका मुख्य या प्रत्यक्ष परिणाम नहीं माना जाता।
- संदर्भ और विस्तार: भूमंडलीकरण से पूंजी, वस्तुओं, सेवाओं, सूचनाओं और लोगों की वैश्विक गति में वृद्धि हुई है। इसने दूरियों को कम किया है और विभिन्न संस्कृतियों के बीच संपर्क बढ़ाया है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b) और (d) भूमंडलीकरण के प्रत्यक्ष और महत्वपूर्ण आयाम हैं।
प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘प्रकार्यवाद’ (Functionalism) के मूल सिद्धांत के विपरीत है?
- समाज को विभिन्न अंतर्संबंधित भागों से बनी एक जटिल प्रणाली के रूप में देखा जाता है।
- प्रत्येक भाग (जैसे संस्थाएँ, समूह) समाज के सुचारू संचालन में एक विशिष्ट कार्य करता है।
- सामाजिक परिवर्तन अक्सर संघर्ष या क्रांति का परिणाम होता है।
- सामाजिक व्यवस्था स्थिरता और सामंजस्य पर आधारित होती है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रकार्यवाद, विशेष रूप से दुर्खीम और पार्सन्स जैसे विचारकों के कार्यों में, समाज को स्थिरता (stability), सामंजस्य (cohesion) और अंतर्संबंधित कार्यों (interdependent functions) के एक तंत्र के रूप में देखता है। यह मानता है कि प्रत्येक सामाजिक संस्था समाज के समग्र संतुलन में योगदान करती है।
- संदर्भ और विस्तार: जहाँ प्रकार्यवाद सामाजिक व्यवस्था और एकीकरण पर जोर देता है, वहीं संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory), जो मार्क्सवाद से प्रभावित है, मानता है कि सामाजिक परिवर्तन मुख्य रूप से सत्ता, संसाधनों और हितों के टकराव से उत्पन्न होता है। इसलिए, विकल्प (c) प्रकार्यवाद के मूल सिद्धांत के विपरीत है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b) और (d) प्रकार्यवाद के मुख्य विचारों को दर्शाते हैं।
प्रश्न 14: ‘अभिजन सिद्धांत’ (Elite Theory) के प्रमुख प्रस्तावक कौन थे, जिन्होंने समाज को शासक अल्पसंख्यकों (elites) और शासित बहुसंख्यकों (masses) में विभाजित होने की बात कही?
- विलफ्रेडो पारेतो
- सी. राइट मिल्स
- गैतानो मोस्का
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलफ्रेडो पारेतो, गैतानो मोस्का और सी. राइट मिल्स सभी अभिजन सिद्धांत के महत्वपूर्ण प्रस्तावक हैं। उन्होंने विभिन्न समाजों में शक्ति संरचनाओं का विश्लेषण करते हुए यह तर्क दिया कि अल्पसंख्यकों का एक समूह हमेशा सत्ता पर काबिज रहता है।
- संदर्भ और विस्तार: पारेतो ने ‘शेरों’ (lions) और ‘लोमड़ियों’ (foxes) की चक्रीय गतिशीलता का वर्णन किया। मोस्का ने कहा कि हर समाज में एक ‘शासक वर्ग’ होता है। सी. राइट मिल्स ने अमेरिकी समाज में ‘सत्ता अभिजन’ (Power Elite) की अवधारणा दी।
- गलत विकल्प: चूँकि तीनों ने इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इसलिए सभी विकल्प सही हैं।
प्रश्न 15: ग्रामीण समाजशास्त्र में, ‘सामुदायिक संगठन’ (Community Organization) के संबंध में ‘जन स्मृतियों’ (Folkways) की क्या भूमिका होती है?
- ये औपचारिक कानूनी नियम हैं।
- ये समुदाय के भीतर अनौपचारिक, सामान्य रूप से स्वीकृत व्यवहार के पैटर्न हैं।
- ये शक्ति की संरचना को परिभाषित करते हैं।
- ये आर्थिक विनिमय के साधन हैं।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम ग्राहम समनर ने ‘जन स्मृतियों’ (Folkways) को अनौपचारिक, सामान्य रूप से स्वीकृत व्यवहार के तरीकों के रूप में परिभाषित किया, जिनका पालन लोग आदत या सामाजिक दबाव के कारण करते हैं, न कि किसी कानून के डर से। ये समुदाय के सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: ग्रामीण समुदायों में, जन स्मृतियों का पालन अक्सर सामाजिक स्वीकृति और सद्भाव बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण होता है। इनमें अभिवादन के तरीके, सामाजिक शिष्टाचार, या पारंपरिक प्रथाएँ शामिल हो सकती हैं।
- गलत विकल्प: जन स्मृतियाँ अनौपचारिक होती हैं, औपचारिक कानूनी नियम नहीं (विकल्प a)। वे सीधे तौर पर शक्ति की संरचना को परिभाषित नहीं करतीं (विकल्प c)। वे आर्थिक विनिमय का प्राथमिक साधन नहीं हैं, हालांकि वे आर्थिक व्यवहार को प्रभावित कर सकती हैं (विकल्प d)।
प्रश्न 16: निम्नलिखित में से किस अवधारणा का संबंध ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) से है?
- सांस्कृतिक विलंब (Cultural Lag)
- समूह चेतना (Group Consciousness)
- वर्ग चेतना (Class Consciousness)
- ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (Vertical Mobility)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (Vertical Mobility) सामाजिक गतिशीलता का एक प्रकार है, जिसमें व्यक्ति या समूह अपनी सामाजिक स्थिति में ऊपर या नीचे की ओर बढ़ते हैं (जैसे, आर्थिक स्थिति में वृद्धि या गिरावट)।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक गतिशीलता एक समाज में व्यक्तियों या समूहों के विभिन्न सामाजिक स्तरों के बीच संचलन को संदर्भित करती है। इसमें ऊर्ध्वाधर (ऊपर/नीचे) और क्षैतिज (समान स्तर पर एक समूह से दूसरे में) गतिशीलता शामिल है।
- गलत विकल्प: सांस्कृतिक विलंब (Cultural Lag) सामाजिक परिवर्तन की गति में असमानता से संबंधित है (समर एक बार में आगे बढ़ता है, लेकिन संस्कृति का दूसरा हिस्सा पीछे छूट जाता है)। समूह चेतना (Group Consciousness) किसी समूह के सदस्यों की अपनी साझा पहचान और हितों के प्रति जागरूकता है। वर्ग चेतना (Class Consciousness), मार्क्स के अनुसार, सर्वहारा वर्ग की अपने उत्पीड़न और एक वर्ग के रूप में अपनी भूमिका के प्रति जागरूकता है।
प्रश्न 17: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) को मोटे तौर पर निम्नलिखित में से किस रूप में परिभाषित किया जा सकता है?
- समाज के भीतर व्यक्तियों का योग।
- समाज के भीतर स्थिर और टिकाऊ सामाजिक संबंधों, भूमिकाओं और पदानुक्रमों का एक पैटर्न।
- समाज के सांस्कृतिक मूल्यों और विश्वासों का संग्रह।
- समाज की आर्थिक प्रणाली।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक संरचना समाज के अपेक्षाकृत स्थायी और व्यवस्थित पहलुओं को संदर्भित करती है, जिसमें विभिन्न संस्थाएँ, भूमिकाएँ, स्थिति समूह और उनके बीच संबंध शामिल हैं। यह समाज के “ढांचे” की तरह है।
- संदर्भ और विस्तार: संरचना किसी भी समाज के संगठन और स्थिरता के लिए आवश्यक है। यह व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करती है और अवसर प्रदान करती है या उन्हें सीमित करती है।
- गलत विकल्प: (a) व्यक्तियों का योग ‘सामाजिक व्यवस्था’ (social order) या ‘जनसंख्या’ (population) हो सकता है, संरचना नहीं। (c) यह ‘संस्कृति’ (culture) को परिभाषित करता है। (d) यह ‘आर्थिक संरचना’ (economic structure) या ‘व्यवस्था’ (system) है, न कि समग्र सामाजिक संरचना।
प्रश्न 18: भारत में, ‘पंचायती राज’ व्यवस्था को मजबूत करने का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- केंद्रीकृत शासन को मजबूत करना।
- स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देना और सामुदायिक भागीदारी बढ़ाना।
- शहरीकरण की प्रक्रिया को तेज करना।
- पारंपरिक जातीय पदानुक्रम को बढ़ावा देना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पंचायती राज, विशेष रूप से 73वें संविधान संशोधन के बाद, भारत में स्थानीय स्वशासन (local self-governance) की एक त्रि-स्तरीय प्रणाली है। इसका प्राथमिक उद्देश्य शक्तियों का विकेंद्रीकरण (decentralization) करना, स्थानीय समुदायों को अपने विकास के निर्णय लेने में सशक्त बनाना और लोकतांत्रिक भागीदारी को जमीनी स्तर तक ले जाना है।
- संदर्भ और विस्तार: यह ग्रामीण भारत में सामाजिक और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तथा स्थानीय नेतृत्व को विकसित करने के लिए एक महत्वपूर्ण संस्थागत तंत्र है।
- गलत विकल्प: यह केंद्रीकरण (a) के बजाय विकेंद्रीकरण को बढ़ावा देता है। यह शहरीकरण (c) को सीधे तेज नहीं करता, बल्कि ग्रामीण विकास पर केंद्रित है। यह पारंपरिक जातीय पदानुक्रम (d) को मजबूत करने के बजाय लोकतांत्रिक समावेशिता को बढ़ावा देता है।
प्रश्न 19: ‘सामाजिक समावेशन’ (Social Inclusion) की अवधारणा निम्नलिखित में से किस पर सबसे अधिक ध्यान केंद्रित करती है?
- सभी नागरिकों को शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सेवाएं प्रदान करना।
- किसी समाज के सभी सदस्यों को गरिमापूर्ण जीवन जीने, समान अवसर प्राप्त करने और सामाजिक, आर्थिक व राजनीतिक जीवन में पूरी तरह से भाग लेने में सक्षम बनाना।
- गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले लोगों की संख्या कम करना।
- सभी के लिए समान आय सुनिश्चित करना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक समावेशन एक व्यापक अवधारणा है जिसमें यह सुनिश्चित किया जाता है कि समाज का कोई भी सदस्य बहिष्कार (exclusion) या हाशिए पर (marginalized) न रहे। इसका तात्पर्य है कि सभी को अपनी पूरी क्षमता हासिल करने, निर्णय लेने की प्रक्रियाओं में भाग लेने और संसाधनों तक समान पहुंच प्राप्त करने के अवसर मिलें।
- संदर्भ और विस्तार: इसमें केवल बुनियादी सेवाएं प्रदान करना (a) ही नहीं, बल्कि यह सुनिश्चित करना शामिल है कि वे सेवाएं सुलभ हों और उनके उपयोग से व्यक्ति सशक्त हो। गरीबी कम करना (c) और समान आय (d) इसके महत्वपूर्ण घटक हो सकते हैं, लेकिन वे सामाजिक समावेशन का पूरा सार नहीं हैं।
- गलत विकल्प: विकल्प (b) सामाजिक समावेशन के सभी प्रमुख आयामों को शामिल करता है, जबकि अन्य केवल आंशिक पहलुओं पर केंद्रित हैं।
प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्रीय उपागम ‘ज्ञान का समाज’ (Knowledge Society) और ‘सूचना क्रांति’ (Information Revolution) के अध्ययन के लिए अधिक प्रासंगिक है?
- मार्क्सवाद
- प्रकारवाद
- उत्तर-आधुनिकतावाद
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: उत्तर-आधुनिकतावादी विचारक, जैसे जीन बॉड्रिलार्ड (Jean Baudrillard) और जुरगेन हेबरमास (Jürgen Habermas), अक्सर सूचना, मीडिया, प्रौद्योगिकी और समकालीन समाज की जटिलताओं का विश्लेषण करते हैं। ‘ज्ञान का समाज’ और ‘सूचना क्रांति’ जैसी अवधारणाएँ उत्तर-आधुनिकतावादी विमर्श से गहराई से जुड़ी हुई हैं, जो ज्ञान, शक्ति और आधुनिक समाज के परिवर्तनकारी स्वरूपों पर सवाल उठाती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: उत्तर-आधुनिकतावाद का मानना है कि आधुनिकता की ग्रैंड नैरिटिव्स (grand narratives) का अंत हो गया है और समाज तरल, खंडित और सूचना-आधारित हो गया है।
- गलत विकल्प: मार्क्सवाद मुख्य रूप से आर्थिक उत्पादन और वर्ग संघर्ष पर केंद्रित है। प्रकार्यवाद सामाजिक व्यवस्था और स्थिरता का विश्लेषण करता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है। ये उपागम सीधे तौर पर ‘ज्ञान का समाज’ जैसी समकालीन अवधारणाओं के मूल विश्लेषण में उतने प्रभावी नहीं हैं जितने उत्तर-आधुनिकतावाद।
प्रश्न 21: ‘संस्थागत विभेदीकरण’ (Institutional Differentiation) से आप क्या समझते हैं?
- समाज में विभिन्न प्रकार की संस्थाओं का उदय और विकास।
- किसी संस्था के भीतर विभिन्न कार्यों या विभागों का निर्माण।
- परिवार और विवाह जैसी संस्थाओं का पतन।
- सामाजिक वर्गों के बीच बढ़ती असमानता।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संस्थागत विभेदीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज में विभिन्न सामाजिक कार्यों (जैसे शिक्षा, स्वास्थ्य, धर्म, राजनीति, अर्थव्यवस्था) के लिए विशेषीकृत और स्वतंत्र संस्थाएँ विकसित होती हैं। यह अक्सर समाजों के आधुनिकीकरण और जटिलता बढ़ने के साथ होता है।
- संदर्भ और विस्तार: उदाहरण के लिए, पहले शिक्षा का कार्य परिवार या धार्मिक संस्थाओं द्वारा किया जाता था, लेकिन आधुनिकीकरण के साथ एक स्वतंत्र ‘शिक्षा प्रणाली’ या ‘स्कूल’ जैसी संस्था विकसित हुई।
- गलत विकल्प: (b) किसी संस्था के भीतर कार्यों का विभाजन ‘विशेषज्ञता’ (specialization) हो सकता है। (c) संस्थाओं का पतन ‘अवनति’ (decline) या ‘विघटन’ (disintegration) का हिस्सा हो सकता है, न कि विभेदीकरण का। (d) यह वर्ग संरचना से संबंधित है।
प्रश्न 22: निम्नलिखित में से कौन सा ‘आधुनिकीकरण सिद्धांत’ (Modernization Theory) का एक आलोचनात्मक बिंदु है?
- यह पश्चिमी समाजों को विकास का एक मॉडल मानता है।
- यह पारंपरिक समाजों को पिछड़े हुए मानता है।
- यह सामाजिक परिवर्तनों के लिए आंतरिक कारकों पर अधिक जोर देता है।
- उपरोक्त सभी।
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: आधुनिकीकरण सिद्धांत, विशेष रूप से अपने शुरुआती रूपों में, यह तर्क देता है कि अविकसित देश पश्चिमी देशों के मार्ग का अनुसरण करके विकसित हो सकते हैं। इसने पारंपरिक समाजों को आधुनिकीकरण के मार्ग में बाधा माना और अक्सर बाहरी कारकों (जैसे निवेश, प्रौद्योगिकी) के बजाय आंतरिक सांस्कृतिक और संस्थागत परिवर्तनों पर अधिक ध्यान केंद्रित किया। इन बिंदुओं की अक्सर आलोचना की जाती रही है।
- संदर्भ और विस्तार: इस सिद्धांत पर निर्भरता सिद्धांत (Dependency Theory) जैसे अन्य सिद्धांतों से सवाल उठाए गए हैं, जो वैश्विक आर्थिक व्यवस्था में असमान शक्ति संबंधों को आधुनिकता में बाधा का मुख्य कारण मानते हैं।
- गलत विकल्प: चूंकि सिद्धांत की ये सभी विशेषताएँ आलोचनात्मक मानी जाती हैं, इसलिए ‘उपरोक्त सभी’ सही उत्तर है।
प्रश्न 23: ‘अनुष्ठान’ (Ritual) का समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से क्या महत्व है?
- यह केवल अंधविश्वासों का प्रदर्शन है।
- यह सामाजिक एकता, मूल्यों के सुदृढ़ीकरण और पहचान निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- यह व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक समस्याओं का समाधान है।
- यह आर्थिक गतिविधियों का एक रूप है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम जैसे समाजशास्त्रियों ने अनुष्ठानों (विशेषकर धार्मिक अनुष्ठानों) के महत्व पर जोर दिया। उनके अनुसार, अनुष्ठान सामूहिक भावना (collective effervescence) को उत्पन्न करते हैं, जिससे सदस्यों के बीच सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं, साझा मूल्यों और विश्वासों को सुदृढ़ किया जाता है, और सामूहिक पहचान को बढ़ावा मिलता है।
- संदर्भ और विस्तार: अनुष्ठान समाज के सांस्कृतिक और सामाजिक ताने-बाने को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
- गलत विकल्प: (a) यह अनुष्ठानों को केवल नकारात्मक रूप से देखता है, जो गलत है। (c) अनुष्ठान व्यक्तिगत मनोविज्ञान से परे सामाजिक कार्य भी करते हैं। (d) यद्यपि कुछ अनुष्ठानों में आर्थिक पहलू हो सकते हैं, यह उनका प्राथमिक समाजशास्त्रीय महत्व नहीं है।
प्रश्न 24: ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) की अवधारणा क्या सिखाती है?
- सभी संस्कृतियाँ समान रूप से महत्वपूर्ण हैं और उन्हें उनके अपने संदर्भ में समझा जाना चाहिए।
- पश्चिमी संस्कृति सभी संस्कृतियों का मानक है।
- कुछ संस्कृतियाँ दूसरों की तुलना में स्वाभाविक रूप से श्रेष्ठ हैं।
- सभी संस्कृतियों को एक समान बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सांस्कृतिक सापेक्षवाद एक दृष्टिकोण है जो मानता है कि किसी व्यक्ति के विश्वासों, मूल्यों और प्रथाओं को उनके अपने सांस्कृतिक संदर्भ के भीतर ही समझा जाना चाहिए। यह किसी भी संस्कृति को सार्वभौमिक मानकों के आधार पर श्रेष्ठ या निम्नतर आंकने के प्रयास का खंडन करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह समाजशास्त्रीय अनुसंधान में एक महत्वपूर्ण उपागम है ताकि किसी संस्कृति को उसके अपने दृष्टिकोण से समझा जा सके, न कि बाहरी पूर्वाग्रहों से।
- गलत विकल्प: विकल्प (b) और (c) ‘सांस्कृतिक यूरोकेंद्रवाद’ (cultural ethnocentrism) के उदाहरण हैं। विकल्प (d) ‘सांस्कृतिक समरूपीकरण’ (cultural homogenization) की ओर ले जा सकता है।
प्रश्न 25: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक समस्या ‘गरीबी’ (Poverty) से प्रत्यक्ष रूप से संबंधित नहीं है?
- अपराध दर में वृद्धि
- निम्न जीवन प्रत्याशा
- उच्च साक्षरता दर
- बाल श्रम
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: उच्च साक्षरता दर (High Literacy Rate) को सामान्यतः सामाजिक और आर्थिक विकास के सकारात्मक संकेतक के रूप में देखा जाता है, जो गरीबी से लड़ने में सहायक हो सकता है। गरीबी अक्सर शिक्षा के अवसरों की कमी से जुड़ी होती है, जिससे साक्षरता दर कम हो सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: गरीबी अक्सर जीवन की गुणवत्ता को विभिन्न तरीकों से नकारात्मक रूप से प्रभावित करती है, जैसे कि बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुँच का अभाव (निम्न जीवन प्रत्याशा), आर्थिक हताशा के कारण अपराध में वृद्धि, और परिवारों को आय के लिए बाल श्रम जैसे उपायों का सहारा लेना।
- गलत विकल्प: (a), (b) और (d) सभी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से गरीबी से जुड़े हुए हैं।
सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।
[कोर्स और फ्री नोट्स के लिए यहाँ क्लिक करें]