समाजशास्त्र का दैनिक अभ्यास: अपनी पकड़ मजबूत करें
सभी समाजशास्त्र के जिज्ञासुओं और प्रतियोगी परीक्षा के गंभीर परीक्षार्थियों, आपके लिए आ गया है आज का विशेष समाजशास्त्र क्विज़! अपनी अवधारणाओं की स्पष्टता को जांचें, अपने विश्लेषणात्मक कौशल को तेज करें और समाज की जटिलताओं को गहराई से समझने की अपनी यात्रा को मजबूत करें। आइए, आज के इस बौद्धिक मुकाबले के लिए तैयार हो जाएं!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: “सांस्कृतिक विलंब” (Cultural Lag) की अवधारणा निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्री ने दी है?
- ए. आर. रैडक्लिफ-ब्राउन
- विलियम एफ. ऑग्बर्न
- कैरल ज. लूस
- टी. पार्सन्स
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: विलियम एफ. ऑग्बर्न ने अपनी पुस्तक “सोशल चेंज” (1922) में “सांस्कृतिक विलंब” की अवधारणा प्रस्तुत की। उनका तर्क था कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे रीति-रिवाज, कानून, नैतिकता) की तुलना में अधिक तेज़ी से बदलती है, जिससे समाज में असंतुलन या विलंब पैदा होता है।
- संदर्भ और विस्तार: ऑग्बर्न ने इस अवधारणा को समझाते हुए कहा कि समाज में परिवर्तन की गति असमान होती है। जब एक क्षेत्र में परिवर्तन दूसरे की तुलना में धीमा होता है, तो यह सामाजिक समस्याओं को जन्म दे सकता है।
- गलत विकल्प: ए. आर. रैडक्लिफ-ब्राउन संरचनात्मक प्रकार्यवाद (structural functionalism) और मानव विज्ञान में अपने काम के लिए जाने जाते हैं। कैरल ज. लूस और टी. पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था और क्रिया के सिद्धांतों में योगदान दिया, लेकिन “सांस्कृतिक विलंब” उनकी प्रमुख अवधारणा नहीं है।
प्रश्न 2: कार्ल मार्क्स के अनुसार, समाज के विकास का मुख्य चालक निम्नलिखित में से कौन सा है?
- विचारों का विकास
- वर्ग संघर्ष
- धार्मिक विश्वास
- राजनीतिक शक्ति
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: कार्ल मार्क्स ने द्वंद्वात्मक भौतिकवाद (dialectical materialism) का सिद्धांत दिया, जिसके अनुसार समाज का इतिहास वर्ग संघर्ष का इतिहास रहा है। उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण को लेकर शासक वर्ग और शोषित वर्ग के बीच निरंतर संघर्ष ही सामाजिक परिवर्तन और विकास का मूल कारण है।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, प्रत्येक समाज का आधार उसकी आर्थिक संरचना (production relations) होती है, और इसी से राजनीतिक, कानूनी और सांस्कृतिक अधिरचना (superstructure) निर्धारित होती है। बुर्जुआजी (पूंजीपति) और सर्वहारा (मजदूर) के बीच संघर्ष का अंतिम परिणाम साम्यवाद होगा।
- गलत विकल्प: जबकि विचार, धर्म और राजनीति मार्क्सवादी विश्लेषण में भूमिका निभाते हैं, वे स्वयं समाज के विकास के ‘मुख्य चालक’ नहीं हैं। मार्क्स के लिए, ये सभी आर्थिक आधार की अभिव्यक्ति या परिणाम हैं।
प्रश्न 3: मैक्स वेबर के अनुसार, नौकरशाही (Bureaucracy) की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता क्या है?
- व्यक्तिगत संबंध
- मनोवैज्ञानिक प्रेरणा
- तर्कसंगत-कानूनी अधिकार (Rational-Legal Authority)
- अनौपचारिक संचार
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने ‘आदर्श प्रकार’ (ideal type) के रूप में नौकरशाही का विश्लेषण किया और तर्कसंगत-कानूनी अधिकार को इसकी केंद्रीय विशेषता माना। इसका अर्थ है कि अधिकार कानून, नियमों और प्रक्रियाओं पर आधारित होता है, न कि व्यक्तिगत करिश्मे या परंपरा पर।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर की आदर्श नौकरशाही में पदानुक्रम, लिखित नियम, विशेषज्ञता, अलगाव (impersonality) और योग्यता-आधारित नियुक्ति जैसी विशेषताएं शामिल हैं। यह आधुनिक समाजों में शक्ति के प्रभुत्व का सबसे कुशल रूप है।
- गलत विकल्प: व्यक्तिगत संबंध, मनोवैज्ञानिक प्रेरणा और अनौपचारिक संचार नौकरशाही की आदर्श विशेषताओं के विपरीत हैं, जो ‘अलगाव’ और ‘नियम-आधारित’ व्यवस्था पर जोर देती है।
प्रश्न 4: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज में किस कारण से ‘एनोमी’ (Anomie) उत्पन्न होती है?
- औद्योगीकरण में वृद्धि
- सामाजिक नियमों और मानदंडों का कमजोर पड़ना
- धार्मिक संस्थानों का पतन
- वर्ग चेतना का अभाव
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ को एक ऐसी सामाजिक स्थिति के रूप में परिभाषित किया है जहाँ सामाजिक नियम और मूल्य कमजोर पड़ जाते हैं या उनका अभाव होता है, जिससे व्यक्तियों में दिशाहीनता और अनिश्चितता की भावना पैदा होती है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी” में एनोमी को श्रम के बढ़ते विभाजन के संदर्भ में भी समझाया, जहाँ पारंपरिक सामाजिक बंधन कमजोर पड़ जाते हैं। उन्होंने आत्महत्या के अध्ययन में भी एनोमी को एक महत्वपूर्ण कारण बताया।
- गलत विकल्प: औद्योगीकरण, धार्मिक पतन या वर्ग चेतना के अभाव में एनोमी के कारक हो सकते हैं, लेकिन एनोमी की मूल परिभाषा सामाजिक नियमों और मानदंडों का कमजोर पड़ना ही है।
प्रश्न 5: प्रारंभिक समाजशास्त्र में ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Fact) की अवधारणा किसने विकसित की?
- ऑगस्ट कॉम्टे
- एमिल दुर्खीम
- हरबर्ट स्पेंसर
- कार्ल मार्क्स
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम को ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा विकसित करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने समाजशास्त्र को एक स्वतंत्र विज्ञान के रूप में स्थापित करने के लिए इस अवधारणा का उपयोग किया, जिसे ‘बाहरी और बाध्यकारी’ (external and coercive) घटनाओं के रूप में परिभाषित किया गया।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम की पहली प्रमुख पुस्तक “समाजशास्त्रीय विधि के नियम” (The Rules of Sociological Method) में उन्होंने समझाया कि सामाजिक तथ्यों को वस्तुओं की तरह अध्ययन किया जाना चाहिए। उदाहरण के लिए, कानून, रीति-रिवाज, नैतिकता, सामाजिक मान्यताएं।
- गलत विकल्प: कॉम्टे ने ‘समाजशास्त्र’ शब्द गढ़ा, स्पेंसर ने विकासवाद का सिद्धांत दिया, और मार्क्स ने वर्ग संघर्ष पर ध्यान केंद्रित किया। ये सभी महत्वपूर्ण विचारक थे, लेकिन ‘सामाजिक तथ्य’ दुर्खीम की विशिष्ट अवधारणा है।
प्रश्न 6: भारतीय समाज में, ‘संसंस्कृति’ (Sanskritization) की अवधारणा किसने प्रस्तुत की?
- ई. के. नागराज
- जी. एस. घुरिये
- एम. एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम. एन. श्रीनिवास, एक प्रमुख भारतीय समाजशास्त्री, ने “संसंस्कृति” (Sanskritization) की अवधारणा दी। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निम्न जातियां या समूह उच्च, अक्सर द्विजातियों, के रीति-रिवाजों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति को ऊपर उठाने का प्रयास करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने यह अवधारणा अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” में प्रस्तुत की। यह एक प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता है जो सामाजिक स्तरीकरण की कठोरता को चुनौती देती है।
- गलत विकल्प: जी. एस. घुरिये ने भारतीय जाति व्यवस्था पर विस्तार से लिखा, इरावती कर्वे ने नातेदारी और संस्कृति पर काम किया, और ई. के. नागराज ने भी भारतीय समाज पर अध्ययन किया, लेकिन संसंसंस्कृति की अवधारणा विशेष रूप से श्रीनिवास से जुड़ी है।
प्रश्न 7: आर. के. मर्टन द्वारा प्रस्तावित ‘मध्यम-श्रेणी सिद्धांत’ (Middle-Range Theory) का मुख्य उद्देश्य क्या है?
- समाज के व्यापक सिद्धांत का निर्माण
- एकल सामाजिक घटनाओं का संपूर्ण विश्लेषण
- समाज की समग्रता को समझने के लिए सैद्धांतिक ढाँचा
- अनुभवजन्य अवलोकन से प्राप्त मध्यवर्ती स्तर के सामान्यीकरण
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट के. मर्टन ने ‘मध्यम-श्रेणी सिद्धांत’ का प्रस्ताव रखा, जो अत्यधिक सामान्य (जैसे परेटो या मार्क्स के सिद्धांत) और अत्यंत विशिष्ट (एकल सामाजिक घटना) के बीच का एक स्तर है। यह सिद्धांत अनुभवजन्य अध्ययनों के माध्यम से प्राप्त मध्यवर्ती स्तर के सामान्यीकरणों पर केंद्रित है।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन का मानना था कि समाजशास्त्र को बहुत व्यापक सिद्धांतों (जो अनुभवजन्य रूप से परीक्षण योग्य नहीं हो सकते) या बहुत संकीर्ण विवरणों के बजाय, विशिष्ट सामाजिक संस्थाओं या प्रक्रियाओं से संबंधित सिद्धांतों पर काम करना चाहिए। जैसे, संदर्भ समूह (reference group) का सिद्धांत।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b), और (c) क्रमशः अत्यधिक सामान्य, अत्यधिक विशिष्ट या व्यापक सिद्धांतों का वर्णन करते हैं, जबकि मर्टन का सिद्धांत इन दोनों चरम सीमाओं के बीच एक व्यावहारिक दृष्टिकोण है।
प्रश्न 8: हर्बर्ट मीड के अनुसार, ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) की द्वंद्वात्मकता किस प्रक्रिया का निर्माण करती है?
- सामाजिक स्तरीकरण
- आत्म (Self) का विकास
- सामुदायिक भावना
- सांस्कृतिक संक्रमण
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड, एक प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (symbolic interactionism) के प्रमुख विचारक, ने समझाया कि ‘मैं’ (I) व्यक्ति की तात्कालिक, सहज प्रतिक्रियाओं को दर्शाता है, जबकि ‘मुझे’ (Me) समाज द्वारा आत्मसात किए गए सामाजिक दृष्टिकोणों और अपेक्षाओं का प्रतिनिधित्व करता है। इन दोनों के बीच निरंतर अंतःक्रिया से ‘आत्म’ (Self) का विकास होता है।
- संदर्भ और विस्तार: मीड की पुस्तक “माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी” में, वह बताते हैं कि बच्चा समाज के ‘अन्य’ (others) के दृष्टिकोण को आंतरिक करके ‘मुझे’ विकसित करता है, और फिर उस ‘मुझे’ पर प्रतिक्रिया करके ‘मैं’ को व्यक्त करता है, जिससे आत्म-जागरूकता और सामाजिक व्यवहार का निर्माण होता है।
- गलत विकल्प: ये अवधारणाएं सामाजिक स्तरीकरण, सामुदायिक भावना या सांस्कृतिक संक्रमण से सीधे संबंधित नहीं हैं, बल्कि व्यक्तिगत सामाजिककरण और आत्म-चेतना के निर्माण से संबंधित हैं।
प्रश्न 9: निम्न में से कौन सा संबंध ‘जाति’ (Caste) व्यवस्था की विशेषता नहीं है?
- अंतर्विवाही समूह (Endogamous Groups)
- पेशागत विशिष्टता
- अशुद्धता-पवित्रता की अवधारणा
- खुला सामाजिक गतिशीलता (Open Social Mobility)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय जाति व्यवस्था की एक मुख्य विशेषता इसकी कठोर प्रकृति और ‘बंद सामाजिक गतिशीलता’ (closed social mobility) है। इसका अर्थ है कि एक व्यक्ति की सामाजिक स्थिति जन्म से निर्धारित होती है और उसे बदलना अत्यंत कठिन या असंभव होता है। विकल्प (d) ‘खुला सामाजिक गतिशीलता’ का उल्लेख करता है, जो जाति की विशेषता नहीं है।
- संदर्भ और विस्तार: जाति व्यवस्था में अंतर्विवाह (endogamy), पेशागत प्रतिबंध (जैसे परंपरागत व्यवसाय), और पवित्रता-अशुद्धता (purity-pollution) की एक जटिल पदानुक्रमित प्रणाली शामिल है, जो सामाजिक अलगाव को बढ़ावा देती है।
- गलत विकल्प: (a), (b), और (c) जाति व्यवस्था की परिभाषित विशेषताएं हैं। अंतर्विवाह का अर्थ है कि विवाह अपनी ही जाति के भीतर होता है। पेशागत विशिष्टता का अर्थ है कि जातियां अक्सर विशेष व्यवसायों से जुड़ी होती हैं। पवित्रता-अशुद्धता की अवधारणा सामाजिक संपर्क और खान-पान पर प्रतिबंधों को निर्धारित करती है।
प्रश्न 10: टी. पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए किन चार प्रकार्यात्मक (functional) आवश्यकताओं की पहचान की, जिसे ‘ए.जी.आई.एल. मॉडल’ (AGIL Model) के नाम से जाना जाता है?
- अनुकूलन, लक्ष्य प्राप्ति, एकीकरण, व्यवस्था संधारण
- अभिवृद्धि, नियंत्रण, अंतःक्रिया, प्रभुत्व
- अधिकार, भूमिका, संरचना, असंतुलन
- संसाधन, प्रबंधन, नवाचार, प्रसार
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: टैल्कॉट पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था को स्थिर और कार्यात्मक बनाए रखने के लिए चार आवश्यक प्रकार्यात्मक आवश्यकताओं का प्रस्ताव दिया, जिन्हें ‘ए.जी.आई.एल. मॉडल’ के रूप में जाना जाता है: (A) Adaptation (अनुकूलन), (G) Goal Attainment (लक्ष्य प्राप्ति), (I) Integration (एकीकरण), और (L) Latency/Pattern Maintenance (व्यवस्था संधारण/प्रारूप संधारण)।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स के अनुसार, किसी भी सामाजिक प्रणाली को जीवित रहने के लिए पर्यावरण के साथ अनुकूलन करना होता है, अपने सामूहिक लक्ष्यों को प्राप्त करना होता है, अपने विभिन्न भागों को एकीकृत रखना होता है, और अपनी संरचनात्मक पैटर्न को बनाए रखना होता है।
- गलत विकल्प: अन्य विकल्प में ऐसे शब्द शामिल हैं जो या तो इन चार मुख्य आवश्यकताओं से मेल नहीं खाते या पार्सन्स के मॉडल के लिए सही क्रम या अर्थ में नहीं हैं।
प्रश्न 11: भारतीय समाज में ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा किसने दी, जो ब्रिटिश शासन के दौरान सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तनों से संबंधित है?
- अमिताभ घोष
- रामकृष्ण मुखर्जी
- एम. एन. श्रीनिवास
- आशीष नंदी
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एम. एन. श्रीनिवास ने ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) की अवधारणा भी दी। यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें भारतीय समाज, विशेष रूप से ब्रिटिश शासन के दौरान, पश्चिमी जीवन शैली, रीति-रिवाज, संस्थाएं, विचार और मूल्य अपनाता है।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने पश्चिमीकरण को ‘संसंस्कृतिक’ (Sanskritization) के विपरीत एक महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तन के रूप में देखा। उन्होंने इसे शिक्षा, कानून, परिवहन, प्रौद्योगिकी और पश्चिमी विचारों के प्रभाव से जोड़ा।
- गलत विकल्प: अमिताभ घोष एक साहित्यकार हैं। रामकृष्ण मुखर्जी और आशीष नंदी ने भी भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण कार्य किया है, लेकिन पश्चिमीकरण की अवधारणा को व्यापक रूप से एम. एन. श्रीनिवास से जोड़ा जाता है।
प्रश्न 12: ई. दुर्खीम के अनुसार, ‘धर्म’ समाज में कौन सा महत्वपूर्ण कार्य करता है?
- व्यक्तिगत मुक्ति प्रदान करना
- सामाजिक एकता और सामूहिक चेतना को बढ़ावा देना
- वैज्ञानिक अन्वेषण को प्रोत्साहित करना
- वर्ग संघर्ष को कम करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “द एलिमेंट्री फॉर्म्स ऑफ द रिलीजियस लाइफ” में तर्क दिया कि धर्म समाज में एक एकीकृत शक्ति के रूप में कार्य करता है। यह पवित्र और अपवित्र के बीच भेद पैदा करके, साझा विश्वासों और अनुष्ठानों के माध्यम से सामाजिक एकता और सामूहिक चेतना (collective consciousness) को मजबूत करता है।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, धार्मिक अनुष्ठान व्यक्तियों को एक साथ लाते हैं, जिससे समुदाय की भावना बढ़ती है और सामाजिक बंधन मजबूत होते हैं। यह समाज की एक प्रकार की ‘आत्म-पुनर्निर्माण’ (self-reproduction) प्रक्रिया है।
- गलत विकल्प: व्यक्तिगत मुक्ति, वैज्ञानिक अन्वेषण को प्रोत्साहन या वर्ग संघर्ष को कम करना धर्म के कार्य हो सकते हैं, लेकिन दुर्खीम के अनुसार धर्म का प्राथमिक और सार्वभौमिक कार्य सामाजिक एकता और सामूहिक चेतना को बढ़ावा देना है।
प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा ‘समाजशास्त्र में महिलावादी परिप्रेक्ष्य’ (Feminist Perspective) से संबंधित है?
- पूंजीवाद का संकट
- पितृसत्ता (Patriarchy)
- नस्लीय अलगाव
- औद्योगीकरण का प्रभाव
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘पितृसत्ता’ (Patriarchy) एक केंद्रीय अवधारणा है जो महिलावादी समाजशास्त्र के भीतर लिंग आधारित शक्ति असमानताओं, सामाजिक संरचनाओं और व्यवहारों का वर्णन करती है, जहाँ पुरुष प्रभुत्व रखते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: महिलावादी सिद्धांतकारों का तर्क है कि पितृसत्तात्मक संरचनाएं सामाजिक जीवन के लगभग हर पहलू को प्रभावित करती हैं, जिसमें परिवार, कार्यस्थल, राजनीति और संस्कृति शामिल हैं, और यह महिलाओं के अनुभवों और अवसरों को व्यवस्थित रूप से सीमित करती है।
- गलत विकल्प: पूंजीवाद का संकट मार्क्सवादी सिद्धांत से, नस्लीय अलगाव नागरिक अधिकार आंदोलनों और नस्लीय अध्ययन से, और औद्योगीकरण का प्रभाव विभिन्न समाजशास्त्रीय सिद्धांतों से संबंधित है, लेकिन पितृसत्ता विशेष रूप से लिंग असमानता के विश्लेषण के लिए महिलावादी परिप्रेक्ष्य की मुख्य अवधारणा है।
प्रश्न 14: भारतीय ग्रामीण समाज में, भूमि सुधारों के बाद भी किस संस्था ने अपनी प्रासंगिकता बनाए रखी है?
- पंचायती राज
- जाति व्यवस्था
- सहकारी समितियाँ
- ग्राम सभा
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: हालांकि भूमि सुधारों का उद्देश्य सामाजिक-आर्थिक समानता लाना था, लेकिन भारतीय ग्रामीण समाज में जाति व्यवस्था ने अपनी सामाजिक शक्ति और प्रभाव को विभिन्न रूपों में बनाए रखा है। यह अभी भी सामाजिक संबंधों, विवाह, और कभी-कभी आर्थिक अवसरों को प्रभावित करती है।
- संदर्भ और विस्तार: जातिगत पहचान और अंतःक्रियाएं ग्रामीण सामाजिक संरचना का एक अभिन्न अंग बनी हुई हैं, भले ही पारंपरिक पेशों में बदलाव आया हो या भूमि के स्वामित्व में कुछ पुनर्वितरण हुआ हो।
- गलत विकल्प: पंचायती राज और ग्राम सभा लोकतांत्रिक संस्थाएं हैं, और सहकारी समितियाँ आर्थिक संस्थाएं हैं। ये सभी सामाजिक परिवर्तन के परिणाम या साधन हैं, लेकिन जाति व्यवस्था ग्रामीण सामाजिक जीवन की एक अधिक स्थायी और प्रभावशाली संस्था बनी हुई है।
प्रश्न 15: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मुख्य ध्यान किस पर होता है?
- सामाजिक संरचनाओं का विश्लेषण
- वर्ग संघर्ष का अध्ययन
- लोगों के बीच अर्थ निर्माण की प्रक्रिया
- आर्थिक व्यवस्था का अध्ययन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद एक सूक्ष्म-स्तरीय (micro-level) समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण है जो इस बात पर केंद्रित है कि कैसे व्यक्ति प्रतीकों (जैसे भाषा, हाव-भाव) का उपयोग करके एक-दूसरे के साथ बातचीत करते हैं और अपने आसपास की दुनिया के लिए अर्थ (meaning) का निर्माण करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: हर्बर्ट मीड, चार्ल्स कूले और इरविंग गॉफमैन इस दृष्टिकोण के प्रमुख विचारक हैं। उनका मानना है कि समाज प्रतीकों के माध्यम से होने वाली निरंतर अंतःक्रियाओं का परिणाम है, और यही अंतःक्रियाएं सामाजिक यथार्थ का निर्माण करती हैं।
- गलत विकल्प: सामाजिक संरचनाओं का विश्लेषण मुख्य रूप से प्रकार्यवादियों और मार्क्सवादियों का काम है। वर्ग संघर्ष मार्क्सवादी सिद्धांत का केंद्र है, और आर्थिक व्यवस्था का अध्ययन विभिन्न आर्थिक या मार्क्सवादी दृष्टिकोणों में होता है।
प्रश्न 16: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा से कौन सा विचारक सबसे अधिक जुड़ा है?
- पियरे बॉर्डियू
- जी. एच. मीड
- इरावती कर्वे
- आंद्रे बेतेय
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: पियरे बॉर्डियू, एक फ्रांसीसी समाजशास्त्री, ने ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा को विकसित किया। यह उन संसाधनों का कुल योग है जो किसी व्यक्ति को अपने सामाजिक नेटवर्क (संबंधों, पहचान, विश्वास) के माध्यम से प्राप्त होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: बॉर्डियू ने सामाजिक पूंजी को सांस्कृतिक पूंजी और आर्थिक पूंजी के साथ एक प्रकार की पूंजी के रूप में देखा। उनका तर्क है कि ये विभिन्न प्रकार की पूंजी व्यक्तियों और समूहों को विभिन्न सामाजिक क्षेत्रों में शक्ति और लाभ प्राप्त करने में मदद करती हैं।
- गलत विकल्प: जी. एच. मीड प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद से जुड़े हैं। इरावती कर्वे ने नातेदारी और संस्कृति पर काम किया। आंद्रे बेतेय ने समानता पर महत्वपूर्ण काम किया, लेकिन सामाजिक पूंजी की अवधारणा मुख्य रूप से बॉर्डियू से जुड़ी है।
प्रश्न 17: भारत में ‘आदिवासियों’ (Tribes) के अध्ययन में, ‘आदिवासीकरण’ (Tribalization) का क्या अर्थ है?
- आदिवासियों का शहरीकरण
- आदिवासी समुदायों द्वारा गैर-आदिवासी संस्कृति को अपनाना
- किसी गैर-आदिवासी समूह का आदिवासी संस्कृति में समाहित होना
- आदिवासी समुदायों का विकास और आधुनिकीकरण
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: ‘आदिवासीकरण’ (Tribalization) का अर्थ है जब कोई गैर-आदिवासी समूह, विशेष रूप से जो आर्थिक या सामाजिक रूप से कमजोर हो, स्वयं को किसी आदिवासी समूह के हिस्से के रूप में पहचानना शुरू कर देता है या आदिवासी रीति-रिवाजों, पहचान या सामाजिक व्यवस्था में समाहित हो जाता है। यह अक्सर एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में देखा जाता है जहाँ वे आदिवासी समुदायों के संरक्षण या पहचान का हिस्सा बनना चाहते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा आदिवासी अध्ययन में तब प्रासंगिक होती है जब ऐतिहासिक या सामाजिक-आर्थिक दबावों के कारण संस्कृतियों का मिश्रण होता है।
- गलत विकल्प: (a) शहरीकरण आदिवासियों के लिए एक अलग प्रक्रिया है। (b) गैर-आदिवासी संस्कृति को अपनाना ‘संसंस्कृतिक’ (Sanskritization) या पश्चिमीकरण जैसा कुछ हो सकता है, न कि आदिवासीकरण। (d) आधुनिकीकरण एक व्यापक प्रक्रिया है।
प्रश्न 18: समाजशास्त्र में ‘आदर्श प्रकार’ (Ideal Type) की विश्लेषणात्मक पद्धति किसने विकसित की?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- ए. आर. रैडक्लिफ-ब्राउन
- इरावती कर्वे
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: मैक्स वेबर ने ‘आदर्श प्रकार’ (Ideal Type) की अवधारणा को विकसित किया। यह एक वैचारिक उपकरण है जो किसी विशेष सामाजिक घटना के तार्किक रूप से सुसंगत, अतिरंजित और पूर्ण विशेषताओं का वर्णन करता है, जिसका उपयोग वास्तविक दुनिया के अनुभवों का विश्लेषण और तुलना करने के लिए किया जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने नौकरशाही, पूंजीवाद, और विभिन्न प्रकार के प्रभुत्व (authority) जैसे विषयों के विश्लेषण के लिए आदर्श प्रकारों का उपयोग किया। यह अनुभवजन्य वास्तविकता का दर्पण नहीं है, बल्कि एक व्यवस्थित तुलना के लिए एक मार्गदर्शक है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने ऐतिहासिक भौतिकवाद का उपयोग किया। ए. आर. रैडक्लिफ-ब्राउन संरचनात्मक प्रकार्यवाद पर केंद्रित थे। इरावती कर्वे ने भारतीय संस्कृति और नातेदारी पर काम किया।
प्रश्न 19: ‘संदर्भ समूह’ (Reference Group) की अवधारणा, जो व्यक्ति के विचारों, विश्वासों और व्यवहारों को प्रभावित करती है, किसने विकसित की?
- रॉबर्ट ई. पार्क
- हरबर्ट ब्लूमर
- रॉबर्ट के. मर्टन
- जॉर्ज सिमेल
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: रॉबर्ट के. मर्टन ने ‘संदर्भ समूह’ (Reference Group) की अवधारणा को लोकप्रिय बनाया। यह वह समूह है जिससे एक व्यक्ति तुलना करता है और जिसके मानदंडों, मूल्यों और अपेक्षाओं को वह अपने व्यवहार को निर्देशित करने के लिए अपनाता है, भले ही वह उस समूह का सदस्य हो या न हो।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने अपनी पुस्तक “Social Theory and Social Structure” में इस अवधारणा पर विस्तार से चर्चा की, जिसमें उन्होंने ‘समावेशी संदर्भ समूह’ (membership reference group) और ‘असमावेशी संदर्भ समूह’ (non-membership reference group) के बीच अंतर बताया।
- गलत विकल्प: रॉबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल के प्रमुख सदस्य थे, हरबर्ट ब्लूमर ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद को गढ़ा, और जॉर्ज सिमेल ने सामाजिक अंतरंगता (sociability) और सामाजिक रूपों पर काम किया।
प्रश्न 20: इरावती कर्वे के अनुसार, भारत में नातेदारी (Kinship) व्यवस्था की सबसे महत्वपूर्ण विशेषता क्या है?
- एकल परिवार का प्रभुत्व
- मातृवंशीयता का व्यापक प्रचलन
- रक्त संबंध की जटिलता और विविधता
- बिरादरी (Brotherhood) का महत्व
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: इरावती कर्वे, अपनी पुस्तक “Kinship Organisation in India” में, भारतीय नातेदारी व्यवस्था की असाधारण जटिलता और विविधता पर प्रकाश डालती हैं। वह बताती हैं कि भारत के विभिन्न क्षेत्रों में पितृसत्तात्मक और कुछ क्षेत्रों में मातृसत्तात्मक (जैसे केरल के नायर) दोनों प्रकार की प्रणालियाँ पाई जाती हैं, और रक्त संबंधों को परिभाषित करने और वर्गीकृत करने के तरीके अत्यधिक भिन्न होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: कर्वे ने विभिन्न भाषा-भाषी क्षेत्रों के बीच नातेदारी शब्दावली और संरचनाओं की तुलना करके इस जटिलता को उजागर किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति में परिवार, विवाह और नातेदारी के बीच घनिष्ठ संबंध की भी पड़ताल की।
- गलत विकल्प: भारत में एकल परिवार का प्रभुत्व उतना नहीं है जितना संयुक्त परिवार का। मातृवंशीयता केवल कुछ समुदायों तक सीमित है, पूरे भारत में नहीं। बिरादरी का महत्व है, लेकिन कर्वे के अनुसार सबसे परिभाषित विशेषता रक्त संबंधों की जटिलता और विविधता है।
प्रश्न 21: निम्न में से कौन सी ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का एक रूप नहीं है?
- ऊर्ध्वगामी गतिशीलता (Upward Mobility)
- क्षैतिज गतिशीलता (Horizontal Mobility)
- अवनतिगामी गतिशीलता (Downward Mobility)
- आंतरिक गतिशीलता (Internal Mobility)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: सामाजिक गतिशीलता का अर्थ है समाज के भीतर व्यक्तियों या समूहों की स्थिति में परिवर्तन। इसके मुख्य रूप हैं: ऊर्ध्वगामी (निम्न से उच्च स्थिति), अवनतिगामी (उच्च से निम्न स्थिति), और क्षैतिज (समान स्तर पर स्थिति परिवर्तन, जैसे एक पेशे से दूसरे में जाना)। ‘आंतरिक गतिशीलता’ (Internal Mobility) सामाजिक गतिशीलता का एक मानक वर्गीकरण नहीं है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक गतिशीलता का अध्ययन सामाजिक स्तरीकरण को समझने के लिए महत्वपूर्ण है। यह दिखाता है कि क्या समाज बंद है (जैसे जाति व्यवस्था) या खुला है (जैसे वर्ग व्यवस्था)।
- गलत विकल्प: (a), (b), और (c) सामाजिक गतिशीलता के स्थापित रूप हैं। ‘आंतरिक गतिशीलता’ एक अस्पष्ट शब्द है और समाजशास्त्रीय वर्गीकरण में सामान्यतः उपयोग नहीं किया जाता है।
प्रश्न 22: ‘लोकतंत्र’ (Democracy) के अध्ययन में, ‘अभिजन सिद्धांत’ (Elite Theory) का मुख्य तर्क क्या है?
- लोकतंत्र जनता द्वारा जनता का शासन है।
- कुछ चुनिंदा और शक्तिशाली लोगों का एक छोटा समूह हमेशा समाज पर शासन करता है।
- सभी नागरिकों को समान राजनीतिक शक्ति प्राप्त होनी चाहिए।
- राजनीतिक शक्ति विकेन्द्रीकृत होनी चाहिए।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: अभिजन सिद्धांत (Elite Theory), जैसा कि विल्फ्रेडो परेटो, गैटानो मोस्का और रॉबर्ट मिशेल्स जैसे विचारकों द्वारा विकसित किया गया है, तर्क देता है कि हर समाज में, चाहे उसकी शासन प्रणाली कुछ भी हो, एक अल्पसंख्यक अभिजन वर्ग सत्ता पर एकाधिकार रखता है और अधिकांश निर्णय लेता है। लोकतंत्र में भी, यह अभिजन एक चुनी हुई या गैर-चुनी हुई छोटी सी समूह होती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत मानता है कि भले ही चुनाव हों, असली शक्ति कुछ सक्षम और संगठित लोगों के हाथ में होती है। यह ‘लोहे का कानून’ (iron law of oligarchy) जैसे विचारों की ओर ले जाता है।
- गलत विकल्प: (a) यह बहुसंख्यकवाद (majoritarianism) का विचार है। (c) और (d) लोकतंत्र के अन्य पहलुओं को छूते हैं, लेकिन अभिजन सिद्धांत का केंद्रीय तर्क सत्ता का अल्पसंख्यकों के हाथों में केंद्रित होना है।
प्रश्न 23: भारतीय समाज में ‘सांप्रदायिकता’ (Communalism) का क्या अर्थ है?
- धर्म के आधार पर सामाजिक एकता
- धार्मिक समूहों के बीच प्रतिद्वंद्विता और संघर्ष
- सभी धर्मों का सह-अस्तित्व
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय संदर्भ में, ‘सांप्रदायिकता’ का तात्पर्य अक्सर धार्मिक पहचान पर आधारित समूहों के बीच अविश्वास, प्रतिद्वंद्विता, शत्रुता और कभी-कभी हिंसक संघर्ष से होता है। यह एक समुदाय के दूसरे समुदाय के प्रति पूर्वाग्रह और अलगाव को दर्शाता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह एक सामाजिक-राजनीतिक घटना है जो राष्ट्रीय एकता और सामाजिक सद्भाव को बाधित करती है। यह धार्मिक राष्ट्रवाद या धार्मिक असहिष्णुता के रूपों से जुड़ा हो सकता है।
- गलत विकल्प: (a) और (c) सहिष्णुता या एकता के सकारात्मक पहलू हैं। (d) धार्मिक स्वतंत्रता एक संवैधानिक अधिकार है। सांप्रदायिकता इन सकारात्मकताओं के विपरीत, विभाजनकारी और संघर्षपूर्ण है।
प्रश्न 24: ‘संरचनात्मक प्रकारवाद’ (Structural Functionalism) के अनुसार, समाज को किस रूप में देखा जाता है?
- संघर्ष और प्रभुत्व का क्षेत्र
- आपसी सहयोग और सहमति पर आधारित एक एकीकृत प्रणाली
- व्यक्तिगत क्रियाओं का अनियंत्रित संगम
- वर्गों के बीच स्थायी टकराव
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: संरचनात्मक प्रकार्यवाद, जिसे एमिल दुर्खीम और टैल्कॉट पार्सन्स जैसे समाजशास्त्रियों ने विकसित किया, समाज को विभिन्न परस्पर जुड़े भागों (संरचनाओं) की एक जटिल प्रणाली के रूप में देखता है, जिनमें से प्रत्येक समाज के समग्र संतुलन और स्थिरता को बनाए रखने में योगदान देता है। यह सहयोग, सहमति और साझा मूल्यों पर जोर देता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह दृष्टिकोण समाज को एक जीवित जीव के समान मानता है, जहाँ विभिन्न अंग (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म, राजनीति) एक साथ मिलकर कार्य करते हैं ताकि व्यवस्था बनी रहे।
- गलत विकल्प: (a) और (d) संघर्ष सिद्धांत (Conflict Theory) के विचारों को दर्शाते हैं। (c) व्यक्तिगत क्रियाओं पर अत्यधिक ध्यान केंद्रित करता है, जो सूक्ष्म-स्तरीय दृष्टिकोणों से अधिक मेल खाता है, न कि संरचनात्मक प्रकारवाद से।
प्रश्न 25: भारतीय समाजशास्त्र में ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) के अध्ययन से कौन सी चुनौती जुड़ी है?
- पारंपरिक संस्थाओं का मजबूत होना
- ग्रामीण-शहरी विभाजन का कम होना
- आधुनिकीकरण और परंपरा के बीच तनाव
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी का पूर्ण अभाव
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सत्यता: भारतीय समाज में आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को अक्सर पारंपरिक संस्थाओं, मूल्यों और व्यवहारों के साथ इसके तनाव और संघर्ष द्वारा चिह्नित किया जाता है। जहां प्रौद्योगिकी, शिक्षा और शहरीकरण जैसे आधुनिक तत्व प्रवेश करते हैं, वहीं पुरानी सामाजिक संरचनाएं और विश्वास पूरी तरह से समाप्त नहीं होते, जिससे एक जटिल गतिशील स्थिति बनती है।
- संदर्भ और विस्तार: एम. एन. श्रीनिवास और अन्य समाजशास्त्रियों ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि कैसे भारतीय समाज ‘संसंस्कृतिक’ (traditionalizing tradition) और ‘आधुनिकीकृत’ (modernizing) दोनों हो सकता है, और यह द्वंद्व सामाजिक परिवर्तन का एक प्रमुख स्रोत है।
- गलत विकल्प: पारंपरिक संस्थाएं अक्सर मजबूत बनी रहती हैं या अनुकूलित हो जाती हैं, वे कमजोर नहीं होतीं (a)। ग्रामीण-शहरी विभाजन अभी भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है (b)। विज्ञान और प्रौद्योगिकी का अभाव नहीं, बल्कि उनका समावेश आधुनिकीकरण है (d)।
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