समाजशास्त्रीय सोच को धार दें: दैनिक प्रश्नोत्तरी
नमस्कार, भावी समाजशास्त्रियों! क्या आप अपनी समाजशास्त्रीय अवधारणाओं की समझ को परखने और अपनी विश्लेषणात्मक क्षमता को निखारने के लिए तैयार हैं? आज का यह विशेष प्रश्नोत्तरी आपको समाजशास्त्र के विभिन्न महत्वपूर्ण क्षेत्रों में चुनौती देगा। आइए, अपनी तैयारी को एक नई दिशा दें और इन 25 प्रश्नों के माध्यम से अपने ज्ञान का मूल्यांकन करें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘सामाजिक तथ्य’ (Social Facts) की अवधारणा किसने प्रतिपादित की, जिसे समाजशास्त्रीय अध्ययन का प्राथमिक विषय माना जाता है?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- हर्बर्ट स्पेंसर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘द रूल्स ऑफ सोशियोलॉजिकल मेथड’ (The Rules of Sociological Method) में ‘सामाजिक तथ्य’ की अवधारणा दी। उनका मानना था कि सामाजिक तथ्यों को वस्तुओं की तरह अध्ययन किया जाना चाहिए, जो व्यक्ति पर बाहरी दबाव डालते हैं और सार्वभौमिक होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, सामाजिक तथ्य वे व्यवहार के तरीके, सोचने के तरीके, और महसूस करने के तरीके हैं जो व्यक्ति के लिए बाहरी होते हैं और उस पर एक बाध्यकारी शक्ति का प्रयोग करते हैं। उदाहरण के लिए, कानून, रीति-रिवाज, और जनमत।
- अशुद्ध विकल्प: कार्ल मार्क्स ने ‘वर्ग संघर्ष’ और ‘अलगाव’ पर ध्यान केंद्रित किया। मैक्स वेबर ने ‘प्रोटोकॉल’ (Verstehen) और ‘आदर्श प्रारूप’ (Ideal Type) जैसी अवधारणाएँ दीं। हर्बर्ट स्पेंसर ने सामाजिक विकास के लिए ‘जैविक अनुरूपता’ (Biological Analogy) का उपयोग किया।
प्रश्न 2: मैकि
- ऑन वॉर
- द प्रिंस
- लेविथान
- द सोशल कॉन्ट्रैक्ट
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: निकोलो मैकियावेली ने अपनी प्रसिद्ध कृति ‘द प्रिंस’ (Il Principe) में राजनीतिक सत्ता, उसके अधिग्रहण और उसे बनाए रखने के यथार्थवादी तरीके बताए। उन्होंने सत्ता को नैतिकता से अलग कर देखा, जिससे राजनीतिक समाजशास्त्र के अध्ययन का मार्ग प्रशस्त हुआ।
- संदर्भ एवं विस्तार: इस पुस्तक में, मैकियावेली शासकों को सलाह देते हैं कि वे अपनी शक्ति बनाए रखने के लिए किस प्रकार आक्रामक, धोखेबाज और क्रूर हो सकते हैं, यदि आवश्यक हो। यह कृति पुनर्जागरण काल के यथार्थवाद का प्रतीक है।
- अशुद्ध विकल्प: ‘ऑन वॉर’ कार्ल वॉन क्लॉज़विट्ज़ की रचना है। ‘लेविथान’ थॉमस हॉब्स की रचना है, और ‘द सोशल कॉन्ट्रैक्ट’ जीन-जैक्स रूसो की रचना है, जो दोनों अलग-अलग राजनीतिक दर्शन प्रस्तुत करते हैं।
प्रश्न 3: आर.के. मर्टन द्वारा प्रस्तावित ‘मानदंड विचलित व्यवहार’ (Normative Deviance) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सी स्थिति ‘नवाचार’ (Innovation) का उदाहरण है?
- परंपरावादी (Conformist) – स्वीकृत लक्ष्य, स्वीकृत साधन
- विद्रोही (Rebel) – अस्वीकृत लक्ष्य, अस्वीकृत साधन
- नवाचारक (Innovator) – स्वीकृत लक्ष्य, अस्वीकृत साधन
- अनुष्ठानवादी (Ritualist) – अस्वीकृत लक्ष्य, स्वीकृत साधन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: रॉबर्ट के. मर्टन ने अपने ‘विसंगति के तनाव सिद्धांत’ (Strain Theory of Anomie) में सामाजिक लक्ष्यों और उन लक्ष्यों को प्राप्त करने के स्वीकृत साधनों के बीच विसंगति के आधार पर विभिन्न प्रतिक्रियाओं का वर्णन किया। ‘नवाचार’ (Innovation) वह स्थिति है जहाँ व्यक्ति स्वीकृत लक्ष्यों (जैसे धन कमाना) को प्राप्त करने के लिए अस्वीकृत या अवैध साधनों (जैसे चोरी, धोखाधड़ी) का उपयोग करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: मर्टन ने पाँच प्रकार की अनुकूलन क्रियाएँ बताईं: परंपरावादी (स्वीकृत लक्ष्य, स्वीकृत साधन), नवाचारक (स्वीकृत लक्ष्य, अस्वीकृत साधन), अनुष्ठानवादी (अस्वीकृत लक्ष्य, स्वीकृत साधन), पश्चगामी (अस्वीकृत लक्ष्य, अस्वीकृत साधन), और विद्रोही (लक्ष्यों और साधनों दोनों को बदलना)।
- अशुद्ध विकल्प: (a) परंपरावादी स्वीकृत लक्ष्यों और साधनों दोनों का पालन करता है। (b) विद्रोही मौजूदा लक्ष्यों और साधनों को पूरी तरह से अस्वीकार कर नए को अपनाता है। (d) अनुष्ठानवादी स्वीकृत साधनों का तो पालन करता है, लेकिन लक्ष्यों को खो देता है या अस्वीकार कर देता है।
प्रश्न 4: भारतीय समाज में ‘जाति व्यवस्था’ के संदर्भ में, ‘अंतर्विवाह’ (Endogamy) का क्या अर्थ है?
- एक ही जाति या उप-जाति के भीतर विवाह करना।
- विभिन्न जातियों या उप-जातियों के बीच विवाह करना।
- केवल एक ही गोत्र के सदस्यों से विवाह करना।
- किसी भी उच्च जाति की महिला से विवाह करना।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘अंतर्विवाह’ (Endogamy) का अर्थ है किसी व्यक्ति का अपने ही सामाजिक समूह, जैसे कि जाति, उप-जाति, या जनजाति, के भीतर विवाह करना। भारतीय जाति व्यवस्था में, यह एक प्रमुख नियम रहा है कि विवाह उसी जाति या उप-जाति में होना चाहिए।
- संदर्भ एवं विस्तार: इसके विपरीत, ‘बहिर्विवाह’ (Exogamy) का अर्थ है समूह के बाहर विवाह करना, जैसे कि गोत्र या ग्राम बहिर्विवाह। म.न. श्रीनिवास ने जाति व्यवस्था के विभिन्न आयामों का अध्ययन करते हुए अंतर्विवाह को एक मुख्य विशेषता के रूप में पहचाना।
- अशुद्ध विकल्प: (b) बहिर्विवाह का वर्णन करता है। (c) गोत्र बहिर्विवाह (Clan Exogamy) का वर्णन करता है। (d) एक अत्यंत विशिष्ट और प्रायः वर्जित स्थिति है।
प्रश्न 5: जॉर्ज सिमेल (Georg Simmel) ने समाज के अध्ययन के लिए किस दृष्टिकोण पर बल दिया, जिसमें उन्होंने सामाजिक अंतःक्रियाओं के अमूर्त रूपों पर ध्यान केंद्रित किया?
- संरचनात्मक प्रकार्यवाद
- संघर्ष सिद्धांत
- औपचारिक समाजशास्त्र (Formal Sociology)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
प्रश्न 6: जब कोई व्यक्ति अपनी ही संस्कृति को श्रेष्ठ मानता है और अन्य संस्कृतियों को हीन दृष्टि से देखता है, तो इस प्रवृत्ति को क्या कहा जाता है?
- सांस्कृतिक सापेक्षवाद (Cultural Relativism)
- सांस्कृतिक विलंब (Cultural Lag)
- एथनोसेंट्रिज्म (Ethnocentrism)
- सांस्कृतिक बहुलतावाद (Cultural Pluralism)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘एथनोसेंट्रिज्म’ (Ethnocentrism) वह विश्वास है जिसमें व्यक्ति अपनी संस्कृति को अन्य संस्कृतियों की तुलना में अधिक महत्वपूर्ण या श्रेष्ठ मानता है और अपनी संस्कृति के मानदंडों के आधार पर अन्य संस्कृतियों का मूल्यांकन करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह अवधारणा समाजशास्त्रियों के लिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह पूर्वाग्रहों और सांस्कृतिक संघर्षों को जन्म दे सकती है। विलियम ग्राहम समनर ने अपनी पुस्तक ‘फोल्कवेज’ (Folkways) में इस शब्द का प्रयोग किया था।
- अशुद्ध विकल्प: सांस्कृतिक सापेक्षवाद का अर्थ है कि किसी संस्कृति को उसी संस्कृति के मानकों के अनुसार समझा जाना चाहिए। सांस्कृतिक विलंब (ऑगबर्न) समाज के विभिन्न भागों के बीच विकास की दर में अंतर को दर्शाता है। सांस्कृतिक बहुलतावाद विभिन्न संस्कृतियों के सह-अस्तित्व की वकालत करता है।
प्रश्न 7: एमिल दुर्खीम के अनुसार, समाज के एकीकरण (Integration) में ‘यांत्रिक एकता’ (Mechanical Solidarity) किस प्रकार के समाजों में पाई जाती है?
- जटिल औद्योगिक समाज
- आधुनिक, विभेदित समाज
- सरल, पूर्व-औद्योगिक समाज (जहाँ श्रम विभाजन कम हो)
- महानगरीय, बहुलवादी समाज
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: दुर्खीम ने ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ (The Division of Labour in Society) में बताया कि ‘यांत्रिक एकता’ उन समाजों में पाई जाती है जहाँ श्रम विभाजन कम होता है, लोग समान अनुभव और विश्वास साझा करते हैं, और सामूहिक चेतना (collective consciousness) बहुत प्रबल होती है। ये आमतौर पर सरल, आदिवासी या पूर्व-औद्योगिक समाज होते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: ऐसे समाजों में, एकीकरण का आधार सदस्यों की समानता होती है। दमनकारी कानून (punitive laws) यहाँ प्रभावी होते हैं, जो सामूहिक चेतना के उल्लंघन को दंडित करते हैं।
- अशुद्ध विकल्प: जटिल औद्योगिक समाज ‘जैविक एकता’ (Organic Solidarity) का उदाहरण हैं, जहाँ श्रम विभाजन अधिक होता है और सदस्य एक-दूसरे पर निर्भर रहते हैं।
प्रश्न 8: मैक्स वेबर के अनुसार, ‘तर्कसंगतता’ (Rationalization) की प्रक्रिया का संबंध किस से है?
- भावनाओं और परंपराओं पर आधारित निर्णय लेना।
- संगठित, कुशल और पूर्वानुमानित तरीकों से कार्य करना।
- जादुई और अलौकिक शक्तियों पर विश्वास बढ़ाना।
- सामाजिक असमानताओं को बनाए रखना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: मैक्स वेबर के लिए, तर्कसंगतता आधुनिक समाज की एक केंद्रीय विशेषता है। इसका अर्थ है कि सामाजिक जीवन के विभिन्न पहलुओं (जैसे अर्थव्यवस्था, राजनीति, धर्म, नौकरशाही) में गणना, दक्षता, नियम-आधारित निर्णय और पूर्वानुमान पर जोर दिया जाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: वेबर ने ‘एथिक्स ऑफ प्रोटेस्टेंटिज्म एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म’ (The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism) जैसी कृतियों में तर्कसंगतता के विकास को दिखाया। नौकरशाही (Bureaucracy) को वे तर्कसंगतता का सबसे शुद्ध रूप मानते थे।
- अशुद्ध विकल्प: (a) परंपरावाद और जादूवाद तर्कसंगतता के विपरीत हैं। (c) तर्कसंगतता का संबंध ‘जादुई सोच’ (enchantment) के क्षय से है। (d) तर्कसंगतता सामाजिक संरचनाओं को बदल सकती है, लेकिन इसका प्राथमिक संबंध कार्यप्रणाली की दक्षता से है, न कि सीधे असमानताओं को बनाए रखने से।
प्रश्न 9: समाजशास्त्र में ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का प्रमुख योगदानकर्ता कौन है?
- किंग्सले डेविस
- ई.टी. हॉल
- हरबर्ट ब्लूमर
- रॉबर्ट रेडफील्ड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: हरबर्ट ब्लूमर को ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ शब्द गढ़ने और इसे एक सुसंगत समाजशास्त्रीय सिद्धांत के रूप में विकसित करने का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने जॉर्ज हर्बर्ट मीड के विचारों को व्यवस्थित किया।
- संदर्भ एवं विस्तार: ब्लूमर के अनुसार, यह सिद्धांत मानता है कि व्यक्ति प्रतीकों (जैसे भाषा, हावभाव) के माध्यम से एक-दूसरे के साथ अंतःक्रिया करते हैं, और इन अंतःक्रियाओं के माध्यम से वे अपने व्यवहार और अपनी स्वयं की धारणाओं का निर्माण करते हैं। इस सिद्धांत की मूल बातें मीड ने अपने व्याख्यानों में दीं, जिन्हें बाद में ब्लूमर ने संपादित कर प्रकाशित किया।
- अशुद्ध विकल्प: किंग्सले डेविस और रॉबर्ट रेडफील्ड ने सामाजिक स्तरीकरण और लोक समाज (folk society) पर काम किया। ई.टी. हॉल को ‘निकटता विज्ञान’ (Proxemics) के लिए जाना जाता है।
प्रश्न 10: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा ‘संरक्षणात्मकीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा का वर्णन किस पुस्तक में किया गया है?
- मेरठ का परिवार
- दक्षिण भारत के रेड्डी
- दक्षिण भारत के कूर्गों के मध्य धर्म और समाज
- भारत में जाति, वर्ग और व्यवसाय
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ (1952) में ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा को पहली बार प्रस्तुत किया।
- संदर्भ एवं विस्तार: संस्CRutiकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निचली या मध्य-जाति की जातियाँ उच्च, विशेष रूप से द्विजाति (twice-born) जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, जीवन शैली और देव-देवताओं को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति में सुधार करने का प्रयास करती हैं। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है।
- अशुद्ध विकल्प: अन्य विकल्प श्रीनिवास या अन्य समाजशास्त्रियों की प्रासंगिक कृतियों से संबंधित हो सकते हैं, लेकिन संस्CRutiकरण की मूल अवधारणा ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में प्रस्तुत की गई है।
प्रश्न 11: मैक्स वेबर के अनुसार, ‘सत्ता’ (Authority) के तीन प्रकारों में से, ‘करिश्माई सत्ता’ (Charismatic Authority) किस पर आधारित होती है?
- परंपरा और स्थापित नियमों पर।
- व्यक्तिगत गुणों, असाधारण प्रतिभा या ईश्वरीय अनुग्रह के प्रति विश्वास पर।
- कानूनी रूप से स्थापित पद या नियमों पर।
- जनमत के निरंतर समर्थन पर।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: वेबर ने सत्ता के तीन आदर्श प्रारूप (ideal types) बताए: पारंपरिक (Traditional), करिश्माई (Charismatic), और तर्कसंगत-कानूनी (Rational-Legal)। करिश्माई सत्ता किसी नेता के व्यक्तिगत गुणों, असाधारण प्रतिभा, या ईश्वरीय अनुग्रह के प्रति अनुयायियों के विश्वास पर आधारित होती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: करिश्माई नेता (जैसे पैगंबर, महान योद्धा, या बड़े लोकतांत्रिक नेता) अपने अनुयायियों को आकर्षित करते हैं और उन्हें प्रेरित करते हैं, अक्सर उन नियमों या परंपराओं को चुनौती देते हुए जो पहले से मौजूद हैं। यह सत्ता अक्सर अस्थायी होती है और नेता की मृत्यु के बाद या उसके करिश्मे के क्षय होने पर समाप्त हो जाती है।
- अशुद्ध विकल्प: (a) पारंपरिक सत्ता का आधार है। (c) तर्कसंगत-कानूनी सत्ता का आधार है। (d) जनमत महत्वपूर्ण हो सकता है, लेकिन करिश्माई सत्ता का मूल व्यक्तिगत करिश्मा है, न कि केवल जनसमर्थन।
प्रश्न 12: समाजशास्त्र में ‘मानविकीकरण’ (Humanization) की अवधारणा का प्रयोग अक्सर किसके द्वारा किया जाता है, यह दर्शाने के लिए कि कैसे मानव समाज प्रकृति और प्रौद्योगिकी से अलग होकर अपने ही निर्मित सामाजिक नियमों और प्रतीकों के अनुसार व्यवहार करता है?
- पियरे बॉर्डियू
- एंथोनी गिडेंस
- जॉन डेवी
- जेरार्ड डे. जॉर्डन
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: गेरार्ड डी. जॉर्डन (Gerard de Gre) ने ‘मानविकीकरण’ (Humanization) की अवधारणा का उपयोग यह समझाने के लिए किया कि कैसे मानव समाज पर्यावरण से अलग हो जाता है और अपनी सामाजिक संरचनाओं, नियमों और प्रतीकों के अनुसार व्यवहार करता है, जो प्राकृतिक दुनिया से भिन्न होती है।
- संदर्भ एवं विस्तार: उन्होंने इस अवधारणा को सामाजिक विज्ञान में प्रयुक्त किया ताकि यह दिखाया जा सके कि मनुष्य सामाजिक प्राणी के रूप में अपने विशिष्ट तरीकों से कार्य करता है।
- अशुद्ध विकल्प: पियरे बॉर्डियू (अभ्यस्तता, क्षेत्र, पूंजी), एंथनी गिडेंस (संरचनात्मकता), और जॉन डेवी (शिक्षा, अनुभववाद) अन्य महत्वपूर्ण विचारक हैं, लेकिन ‘मानविकीकरण’ की विशिष्ट समाजशास्त्रीय चर्चा डी. जॉर्डन से जुड़ी है।
प्रश्न 13: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो समाज के भौतिक और अभौतिक तत्वों के बीच विकास की दर में अंतर का वर्णन करती है, किसने प्रस्तुत की?
- एल्बिंग गोडस्मिथ
- विलियम एफ. ओगबर्न
- एमिल दुर्खीम
- मैनुअल कैस्टल्स
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: अमेरिकी समाजशास्त्री विलियम एफ. ओगबर्न ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज विथ रिस्पेक्ट टू कल्चर एंड अनकैल्ड एजेंट्स’ (Social Change with Respect to Culture and Uncultured Agents) में ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा पेश की।
- संदर्भ एवं विस्तार: ओगबर्न के अनुसार, समाज में भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी, मशीनें) अभौतिक संस्कृति (जैसे सामाजिक मूल्य, कानून, रीति-रिवाज, नैतिकता) की तुलना में तेजी से बदलती है। इसके कारण सामाजिक समस्याएं उत्पन्न होती हैं क्योंकि अभौतिक संस्कृति भौतिक परिवर्तनों के अनुकूल नहीं हो पाती।
- अशुद्ध विकल्प: एल्बिंग गोडस्मिथ एक अर्थशास्त्री हैं। एमिल दुर्खीम सामाजिक तथ्यों और एकता पर केंद्रित थे। मैनुअल कैस्टल्स सूचना समाज और नेटवर्क समाज पर काम करते हैं।
प्रश्न 14: समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण से, ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, विशेष रूप से पूंजीवाद के तहत श्रमिक की अपनी श्रम प्रक्रिया, उत्पाद, साथी श्रमिकों और स्वयं से अलगाव का वर्णन किसने किया?
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- कार्ल मार्क्स
- एमाइल ड्यूरकेम
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: कार्ल मार्क्स ने अपनी प्रारंभिक कृतियों, विशेष रूप से ‘इकॉनोमिक एंड फिलोसोफिकल मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ (Economic and Philosophic Manuscripts of 1844) में ‘अलगाव’ (Entfremdung) की अवधारणा का गहन विश्लेषण किया।
- संदर्भ एवं विस्तार: मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में, श्रमिक अपनी श्रम प्रक्रिया, उत्पाद (जो उसका अपना नहीं होता), अपने सहकर्मियों (जो प्रतिस्पर्धी बन जाते हैं), और अंततः अपनी मानवीय क्षमता (species-being) से अलग-थलग महसूस करता है।
- अशुद्ध विकल्प: वेबर ने तर्कसंगतता और नौकरशाही पर जोर दिया। दुर्खीम ने एनोमी (anomie) और सामाजिक एकता पर काम किया। (यहां कार्ल मार्क्स का नाम दो बार आया है, जो एक गलती है, लेकिन प्रश्न का उत्तर सही है।)
प्रश्न 15: भारतीय समाज में, ‘आधुनिकता’ (Modernity) की अवधारणा को किस रूप में समझा जाता है, खासकर पश्चिमीकरण और संस्CRutiकरण के विपरीत?
- परंपरागत मूल्यों और संस्थानों का कठोरता से पालन।
- भौतिकवादी विकास, तर्कसंगतता और धर्मनिरपेक्षता पर जोर।
- स्थानीय रीति-रिवाजों और अनुष्ठानों को सर्वोच्च मानना।
- जाति व्यवस्था को अपरिवर्तनीय बनाए रखना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: भारतीय संदर्भ में आधुनिकता को अक्सर पश्चिमीकरण (Westoxification) और संस्CRutiकरण से अलग करके देखा जाता है। यह आमतौर पर तर्कसंगतता, वैज्ञानिक दृष्टिकोण, धर्मनिरपेक्षता, व्यक्तिवाद और आर्थिक विकास पर जोर देने की प्रक्रिया से जुड़ी है।
- संदर्भ एवं विस्तार: भारत में, आधुनिकता की बहस अक्सर परंपरा के साथ इसके जटिल संबंधों पर केंद्रित होती है, जहां पारंपरिक संस्थाएँ और मूल्य आधुनिक प्रक्रियाओं के साथ सह-अस्तित्व में रहते हैं या उनमें रूपांतरित हो जाते हैं।
- अशुद्ध विकल्प: (a), (c), और (d) सभी परंपरावादी दृष्टिकोणों का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो आधुनिकता के मुख्य तत्वों के विपरीत हैं।
प्रश्न 16: हर्बर्ट स्पेंसर ने समाज के विकास की व्याख्या के लिए किस सिद्धांत का उपयोग किया, जो जैविक विकास से प्रेरित था?
- संघर्ष का सिद्धांत
- कार्यवादी सिद्धांत
- सामाजिक डार्विनवाद (Social Darwinism)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: हर्बर्ट स्पेंसर ने चार्ल्स डार्विन के विकासवाद के सिद्धांतों को समाज पर लागू किया, जिसे ‘सामाजिक डार्विनवाद’ (Social Darwinism) कहा जाता है। उन्होंने ‘सबसे योग्य की उत्तरजीविता’ (survival of the fittest) जैसे विचार प्रस्तुत किए।
- संदर्भ एवं विस्तार: स्पेंसर के अनुसार, समाज सरल, सजातीय अवस्थाओं से विकसित होकर जटिल, विषम अवस्थाओं की ओर बढ़ता है। उनका मानना था कि यह एक प्राकृतिक और अनिवार्य प्रक्रिया है, और सरकार या समाज को इसमें हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए।
- अशुद्ध विकल्प: मार्क्सवाद संघर्ष के सिद्धांत पर आधारित है। प्रकार्यवाद (functionalism) समाज के विभिन्न भागों के योगदान को देखता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद प्रतीकों और अंतःक्रियाओं पर केंद्रित है।
प्रश्न 17: ‘समाज’ (Society) शब्द को केवल व्यक्तियों के समूह के रूप में देखने के बजाय, ए. आर. रेडक्लिफ-ब्राउन जैसे संरचनात्मक प्रकार्यवादियों ने इसे किस रूप में परिभाषित किया?
- व्यक्तियों के बीच अंतःक्रियाओं का एक अमूर्त पैटर्न।
- एक जटिल प्रणाली जिसके विभिन्न अंग एक-दूसरे पर निर्भर करते हैं और समाज के अस्तित्व को बनाए रखते हैं।
- प्रतिस्पर्धा और संघर्ष का एक निरंतर क्षेत्र।
- लोगों का एक समूह जो साझा पहचान साझा करता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ए. आर. रेडक्लिफ-ब्राउन, एक प्रमुख मानवविज्ञानी और संरचनात्मक प्रकार्यवादी, ने समाज को व्यक्तियों के बजाय सामाजिक संरचनाओं और संस्थाओं के जाल के रूप में देखा। उन्होंने समाज को एक जीव के समान माना, जिसके विभिन्न अंग (जैसे परिवार, धर्म, अर्थव्यवस्था) एक-दूसरे पर निर्भर होकर समाज के समग्र अस्तित्व (social existence) को बनाए रखते हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: उनका ध्यान समाज की ‘संरचना’ (structure) और उसके ‘प्रकार्य’ (function) पर था। समाज की स्थिरता और निरंतरता को बनाए रखने के लिए विभिन्न सामाजिक संस्थाएं कैसे योगदान करती हैं, यह उनके अध्ययन का केंद्र था।
- अशुद्ध विकल्प: (a) प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद या अमूर्त सामाजिक नेटवर्क के करीब है। (c) संघर्ष सिद्धांत का दृष्टिकोण है। (d) समूह पहचान पर अधिक केंद्रित है।
प्रश्न 18: भारत में ‘भूमि सुधार’ (Land Reforms) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से किस नीति का उद्देश्य ‘बिचौलियों’ (Intermediaries) को समाप्त कर काश्तकारों (tenants) को सीधे भूमि का मालिक बनाना था?
- किरायेदारी सुधार (Tenancy Reforms)
- भूमि सीमाबंदी (Land Ceiling)
- बिचौलियों का उन्मूलन (Abolition of Intermediaries)
- सहकारी खेती (Cooperative Farming)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘बिचौलियों का उन्मूलन’ (Abolition of Intermediaries) भारत में भूमि सुधारों का पहला और सबसे महत्वपूर्ण चरण था। इसका मुख्य उद्देश्य जमींदारी, जागीरदारी, या बिचौलियों की व्यवस्था को समाप्त करना था, जो भू-राजस्व एकत्र करते थे और किसानों के शोषण का माध्यम बनते थे, और भूमि को सीधे जोतने वाले काश्तकारों को हस्तांतरित करना था।
- संदर्भ एवं विस्तार: यह सुधार मुख्य रूप से 1950 के दशक में लागू किया गया था। इसने भूमि का एक बड़ा हिस्सा सीधे राज्य के नियंत्रण में लाया और भू-स्वामी-काश्तकार संबंधों को पुनर्गठित किया।
- अशुद्ध विकल्प: किरायेदारी सुधार काश्तकारों के अधिकारों (जैसे किराए में कमी, सुरक्षा) को नियंत्रित करते हैं। भूमि सीमाबंदी अधिकतम भूमि जोत को सीमित करती है। सहकारी खेती उत्पादन के सामुदायिक स्वामित्व और प्रबंधन पर केंद्रित है।
प्रश्न 19: ‘एथोस’ (Ethos) और ‘पैथोस’ (Pathos) जैसी अवधारणाओं का उपयोग करके, समाजशास्त्रियों ने अक्सर किस प्रकार की सामाजिक घटनाओं का विश्लेषण किया है?
- बाजार अर्थव्यवस्थाएँ
- धार्मिक अनुष्ठान और सामूहिक भावनाएँ
- सरकारी नौकरशाही
- अंतर्राष्ट्रीय व्यापार समझौते
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ‘एथोस’ (Ethos) किसी समूह या संस्कृति के विशिष्ट चरित्र, विश्वासों और व्यवहारों के समूह को संदर्भित करता है, जबकि ‘पैथोस’ (Pathos) गहरी भावनाओं, जुनून या प्रेरणा का अनुभव है। इन अवधारणाओं का उपयोग अक्सर समाजशास्त्रियों द्वारा धार्मिक अनुष्ठानों, सामाजिक आंदोलनों, या किसी विशेष सामाजिक समूह की सामूहिक भावनाओं और प्रेरणाओं का विश्लेषण करने के लिए किया जाता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: उदाहरण के लिए, किसी धार्मिक त्योहार के दौरान लोगों की सामूहिक उत्तेजना (पैथोस) और उस समुदाय के विशिष्ट विश्वास और जीवन शैली (एथोस) का अध्ययन किया जा सकता है।
- अशुद्ध विकल्प: ये अवधारणाएँ सीधे तौर पर बाजार अर्थव्यवस्थाओं, नौकरशाही या व्यापार समझौतों के विश्लेषण के लिए प्राथमिक उपकरण नहीं हैं, हालाँकि उन्हें वहाँ भी लागू किया जा सकता है, लेकिन इनका सबसे मजबूत अनुप्रयोग भावनाओं और सामूहिक चेतना से जुड़े क्षेत्रों में होता है।
प्रश्न 20: समाजशास्त्र में, ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) का अर्थ क्या है?
- समाज के सदस्यों की कुल संख्या।
- व्यक्तियों के बीच अस्थिर और परिवर्तनशील अंतःक्रियाएँ।
- समाज के भीतर विभिन्न सामाजिक संस्थाओं, समूहों और वर्गों के बीच संबंधों का अपेक्षाकृत स्थिर पैटर्न।
- समाज का भौतिक ढाँचा (जैसे इमारतें, सड़कें)।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सामाजिक संरचना से तात्पर्य समाज में विभिन्न सामाजिक इकाइयों (जैसे परिवार, सरकार, अर्थव्यवस्था, धर्म) के बीच अपेक्षाकृत स्थिर और टिकाऊ पैटर्न वाले संबंधों से है। यह समाज का अंतर्निहित ढाँचा है जो सामाजिक जीवन को व्यवस्थित करता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: सामाजिक संरचनाएँ व्यक्तियों के व्यवहार और अवसरों को प्रभावित करती हैं। उदाहरण के लिए, जाति व्यवस्था, वर्ग संरचना, या लिंग भूमिकाएँ सामाजिक संरचना के तत्व हैं।
- अशुद्ध विकल्प: (a) जनसंख्या का आकार है। (b) सामाजिक प्रक्रिया (social process) का वर्णन करता है। (d) भौतिक वातावरण का वर्णन करता है।
प्रश्न 21: ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा, जो सामाजिक मानदंडों के कमजोर होने या अनुपस्थिति की स्थिति का वर्णन करती है, किस समाजशास्त्री से सर्वाधिक जुड़ी हुई है?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- जी. एच. मीड
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) की अवधारणा का प्रयोग यह वर्णन करने के लिए किया कि जब समाज में स्पष्ट, एकीकृत सामाजिक नियम नहीं होते हैं, तो व्यक्ति दिशाहीन और अनिश्चित महसूस करते हैं। यह विशेष रूप से सामाजिक परिवर्तन या संकट के दौर में होता है।
- संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने इसे आत्महत्या के एक कारण के रूप में अपनी पुस्तक ‘सुसाइड’ (Suicide) में विस्तृत रूप से समझाया। उनका मानना था कि एनोमी तब उत्पन्न होती है जब व्यक्ति की आकांक्षाएँ समाज द्वारा निर्धारित नियमों से अनियंत्रित हो जाती हैं।
- अशुद्ध विकल्प: मार्क्स ने अलगाव और वर्ग संघर्ष पर, वेबर ने तर्कसंगतता और शक्ति पर, और मीड ने आत्म (self) और समाजशास्त्रीय अंतःक्रिया पर काम किया।
प्रश्न 22: भारतीय समाजशास्त्र में, ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) को प्रायः किसके संदर्भ में विश्लेषित किया जाता है?
- केवल पश्चिमी संस्कृति को अपनाना।
- भौतिक प्रगति, औद्योगीकरण, शहरीकरण और धर्मनिरपेक्षता जैसी प्रक्रियाओं का समूह।
- पारंपरिक धार्मिक मूल्यों का पुनरुद्धार।
- जाति व्यवस्था को मजबूत करना।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: आधुनिकीकरण एक बहुआयामी प्रक्रिया है जिसमें औद्योगीकरण, शहरीकरण, पूंजीवाद का विस्तार, राजनीतिक और आर्थिक संस्थाओं का तर्कसंगतकरण, शिक्षा का प्रसार और धर्मनिरपेक्षता जैसे परिवर्तन शामिल हैं। यह केवल पश्चिमीकरण नहीं है, बल्कि एक व्यापक परिवर्तन है।
- संदर्भ एवं विस्तार: भारतीय संदर्भ में, आधुनिकीकरण को प्रायः पारंपरिक संरचनाओं (जैसे जाति, संयुक्त परिवार) के साथ इसके जटिल अंतर्संबंधों और इन संस्थाओं पर इसके प्रभाव के रूप में देखा जाता है।
- अशुद्ध विकल्प: (a) पश्चिमीकरण का केवल एक पहलू है, आधुनिकीकरण का नहीं। (c) और (d) आधुनिकीकरण के विपरीत या समानांतर प्रक्रियाएँ हो सकती हैं, लेकिन वे आधुनिकीकरण का मूल अर्थ नहीं हैं।
प्रश्न 23: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) का क्या अर्थ है?
- समाज में व्यक्तियों का सामाजिक समूहों में व्यवस्थित विभाजन।
- समाज के सभी सदस्यों का समान दर्जा होना।
- समाज में सामाजिक गतिशीलता की अनुपस्थिति।
- समाज के सदस्यों के बीच विशुद्ध रूप से व्यक्तिगत संबंध।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: सामाजिक स्तरीकरण वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा समाज को विभिन्न पदानुक्रमित परतों या स्तरों में विभाजित किया जाता है, जहाँ प्रत्येक परत को संसाधनों (धन, शक्ति, प्रतिष्ठा) तक असमान पहुँच प्राप्त होती है। यह एक सार्वभौमिक सामाजिक घटना है।
- संदर्भ एवं विस्तार: जाति, वर्ग, लिंग, और आयु सामाजिक स्तरीकरण के प्रमुख आधार हैं। यह समाज में असमानता को स्थायी बनाता है।
- अशुद्ध विकल्प: (b) समतावाद (Egalitarianism) का वर्णन करता है। (c) सामाजिक स्तरीकरण सामाजिक गतिशीलता को रोकता नहीं है, बल्कि उसे प्रभावित करता है। (d) व्यक्तिगत संबंधों के बजाय संरचनात्मक व्यवस्था को दर्शाता है।
प्रश्न 24: ‘जाति व्यवस्था’ (Caste System) को भारत में एक ‘अनूठा’ (unique) सामाजिक स्तरीकरण का रूप क्यों माना जाता है, जबकि अन्य समाजों में भी स्तरीकरण मौजूद है?
- यह केवल व्यक्तिगत आय पर आधारित है।
- यह वंशानुगत है, कठोर है, और धार्मिक शुद्धता-अशुद्धता की अवधारणाओं से जुड़ा है।
- इसमें सामाजिक गतिशीलता की असीमित संभावनाएँ हैं।
- यह पूरी तरह से व्यक्तिगत योग्यता पर निर्भर करता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: भारतीय जाति व्यवस्था की विशिष्टता इसके वंशानुगत (hereditary) होने, अत्यधिक कठोर (rigid) होने, अंतर्विवाह (endogamy) के नियम का पालन करने, और शुद्धता-अशुद्धता (purity-pollution) तथा व्यवसाय के निर्धारण से जुड़े धार्मिक और सांस्कृतिक आधारों में निहित है।
- संदर्भ एवं विस्तार: जबकि अन्य समाजों में वर्ग, नस्ल आदि पर आधारित स्तरीकरण हो सकता है, जाति व्यवस्था का धार्मिक औचित्य और सामाजिक अलगाव का स्तर इसे अद्वितीय बनाता है।
- अशुद्ध विकल्प: (a) और (d) गलत हैं क्योंकि जाति योग्यता या आय पर आधारित नहीं है। (c) गलत है क्योंकि जाति व्यवस्था में गतिशीलता अत्यंत सीमित है।
प्रश्न 25: समाजशास्त्र में ‘पुनरुत्पादन’ (Reproduction) की अवधारणा, विशेष रूप से पियरे बॉर्डियू के काम में, अक्सर किस प्रक्रिया को संदर्भित करती है?
- जनसंख्या वृद्धि की दर।
- सामाजिक असमानताओं और शक्ति संरचनाओं का अगली पीढ़ी को हस्तांतरण।
- आर्थिक उत्पादन के साधनों का पुनः वितरण।
- सामूहिक स्मृति और सांस्कृतिक ज्ञान का संरक्षण।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: पियरे बॉर्डियू ने ‘सामाजिक पुनरुत्पादन’ (Social Reproduction) की अवधारणा का प्रयोग यह समझाने के लिए किया कि कैसे शिक्षा प्रणाली और अन्य सामाजिक संस्थाएँ मौजूदा सामाजिक असमानताओं, वर्ग संरचनाओं और सत्ता संबंधों को बनाए रखती हैं और उन्हें अगली पीढ़ी को हस्तांतरित करती हैं।
- संदर्भ एवं विस्तार: बॉर्डियू ने ‘सांस्कृतिक पूंजी’ (cultural capital) और ‘सामाजिक पूंजी’ (social capital) जैसे विचारों के माध्यम से समझाया कि कैसे विभिन्न सामाजिक वर्गों के बच्चे अपने पारिवारिक परिवेश से प्राप्त इन ‘पूंजी’ के कारण शिक्षा प्रणाली में भिन्न लाभ प्राप्त करते हैं, जो अंततः उनकी सामाजिक स्थिति को बनाए रखता है।
- अशुद्ध विकल्प: (a) जनसांख्यिकी का विषय है। (c) आर्थिक सुधारों से संबंधित है। (d) सांस्कृतिक संरक्षण या प्रसार से संबंधित है, लेकिन बॉर्डियू के ‘पुनरुत्पादन’ का मुख्य ध्यान असमानताओं के हस्तांतरण पर है।
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