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समाजशास्त्रीय समझ का दैनिक इम्तहान!

समाजशास्त्रीय समझ का दैनिक इम्तहान!

नमस्कार, भावी समाजशास्त्रियों! आपकी तैयारी को एक नई धार देने के लिए हाज़िर है समाजशास्त्र का आज का सबसे ताज़ा और गहन अभ्यास सत्र। आइए, अपनी अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को परखें और प्रत्येक प्रश्न के साथ अपने ज्ञान को और सुदृढ़ बनाएं!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।


प्रश्न 1: “प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद” (Symbolic Interactionism) के प्रमुख प्रवर्तकों में से किसे माना जाता है, जिन्होंने ‘स्व’ (self) के विकास में सामाजिक अंतःक्रिया की भूमिका पर बल दिया?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. जॉर्ज हर्बर्ट मीड
  4. एमील दुर्खीम

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड को प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का एक प्रमुख संस्थापक माना जाता है। उन्होंने तर्क दिया कि ‘स्व’ (self) का विकास सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से होता है, जहाँ व्यक्ति दूसरों की भूमिकाओं को ग्रहण करना (taking the role of the other) सीखता है और समाज द्वारा स्वीकृत प्रतीकों (जैसे भाषा) का उपयोग करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: मीड के विचार, विशेष रूप से उनकी मरणोपरांत प्रकाशित पुस्तक “दि माइंड, सेल्फ एंड सोसाइटी” में, समाजशास्त्र में व्यक्तिनिष्ठता और अर्थ-निर्माण पर ज़ोर देते हैं। यह उपागम सामाजिक संरचना के बजाय सामाजिक प्रक्रिया पर अधिक ध्यान केंद्रित करता है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स वर्ग संघर्ष और आर्थिक निर्धारणवाद पर केंद्रित थे। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया और नौकरशाही पर काम किया। एमील दुर्खीम ने सामाजिक यथार्थवाद और सामूहिक चेतना पर ज़ोर दिया।

प्रश्न 2: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा गढ़ा गया ‘संस्कृतिकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा, भारतीय समाज में किस प्रक्रिया का वर्णन करती है?

  1. पश्चिमी संस्कृति का अनुकरण
  2. निम्न जातियों या जनजातियों द्वारा उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाना
  3. शहरीकरण के कारण जीवन शैली में परिवर्तन
  4. आधुनिकीकरण के फलस्वरूप पारंपरिक मूल्यों का त्याग

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: संस्किृतिकरण, जैसा कि एम.एन. श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” में परिभाषित किया है, एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें निम्न या मध्य जातियों के सदस्य उच्च, विशेष रूप से द्विजातियों (Twice-born) के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, कर्मकांडों और जीवन शैली को अपनाते हैं ताकि सामाजिक पदानुक्रम में उनकी स्थिति ऊपर उठ सके।
  • संदर्भ और विस्तार: यह एक प्रकार की सांस्कृतिक गतिशीलता है, न कि संरचनात्मक गतिशीलता, और अक्सर उच्च जातियों के अनुकरण का प्रयास करती है। यह भारतीय जाति व्यवस्था में सामाजिक उत्थान का एक महत्वपूर्ण माध्यम रहा है।
  • गलत विकल्प: पश्चिमीकरण पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाना है। शहरीकरण ग्रामीण से शहरी क्षेत्रों में आबादी का स्थानांतरण है। आधुनिकीकरण व्यापक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन से संबंधित है।

प्रश्न 3: दुर्खीम के अनुसार, समाज में ‘एनोमी’ (Anomie) की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब:

  1. सामाजिक नियंत्रण प्रभावी होता है
  2. व्यक्ति अपनी इच्छाओं को नियंत्रित कर पाते हैं
  3. सामाजिक नियम और मानदंड कमज़ोर या अनुपस्थित हो जाते हैं
  4. समाज में अत्यधिक सामूहिकता (Collectivism) होती है

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: एमील दुर्खीम ने ‘एनोमी’ (Anomie) शब्द का प्रयोग एक ऐसी सामाजिक स्थिति का वर्णन करने के लिए किया जहाँ सामाजिक नियम और मानदंड अप्रचलित, कमज़ोर या पूरी तरह से अनुपस्थित हो जाते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्तियों को मार्गदर्शन की कमी महसूस होती है और वे दिशाहीन हो जाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी कृतियों जैसे “The Division of Labour in Society” और “Suicide” में इस अवधारणा का विस्तार से वर्णन किया है। एनोमी अक्सर तीव्र सामाजिक परिवर्तनों, आर्थिक संकटों या व्यक्तिगत त्रासदी के समय देखी जाती है।
  • गलत विकल्प: प्रभावी सामाजिक नियंत्रण और आत्म-नियंत्रण एनोमी के विपरीत हैं। अत्यधिक सामूहिकता (जैसे दुर्खीम की ‘यांत्रिक एकता’ में) आमतौर पर एनोमी को कम करती है, न कि बढ़ाती है।

प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा समाजशास्त्री ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) की अवधारणा को ‘सामाजिक संबंध के स्थायी पैटर्न’ के रूप में परिभाषित करता है?

  1. रॉबर्ट मर्टन
  2. इमाइल दुर्खीम
  3. टालकोट पार्सन्स
  4. एन्थनी गिडेंस

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: टालकोट पार्सन्स, एक प्रमुख संरचनात्मक-प्रकारवादी (Structural-Functionalist) समाजशास्त्री, ने सामाजिक संरचना को ‘सामाजिक क्रिया के प्रतिमानित (patterned) और अंतःसंबंधित (interrelated) संबंधों की समग्रता’ के रूप में परिभाषित किया। यह व्यवस्था व्यक्ति के व्यवहार को आकार देती है।
  • संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स का मानना था कि सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने के लिए विभिन्न उप-प्रणालियों (जैसे अर्थव्यवस्था, राजनीति, समुदाय, सामाजिक भूमिकाएँ) का एकीकरण आवश्यक है। सामाजिक संरचनाएँ समाज को स्थायित्व प्रदान करती हैं।
  • गलत विकल्प: रॉबर्ट मर्टन ने ‘प्रकार्य’ (function) और ‘प्रकार्यिक विकल्प’ (functional alternatives) जैसी अवधारणाएं दीं। दुर्खीम ने सामाजिक तथ्य (social facts) को बाहरी और बाध्यकारी माना। गिडेंस ने संरचनाकरण (structuration) का सिद्धांत दिया, जिसमें संरचना और एजेंसी (agency) को एक साथ देखा जाता है।

प्रश्न 5: भारतीय संदर्भ में, ‘प्रजाति’ (Race) की तुलना में ‘जाति’ (Caste) को सामाजिक स्तरीकरण का अधिक प्रासंगिक आधार मानने का मुख्य कारण क्या है?

  1. जाति पूर्णतः आनुवंशिक है, जबकि प्रजाति नहीं।
  2. जाति एक जन्म-आधारित, बंद व्यवस्था है जो सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक प्रतिबंध लगाती है।
  3. प्रजाति की अवधारणा भारतीय समाज में पूरी तरह अनुपस्थित है।
  4. जाति व्यवस्था का संबंध केवल खान-पान तक सीमित है।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: भारतीय जाति व्यवस्था जन्म पर आधारित एक अत्यंत जटिल और बंद स्तरीकरण प्रणाली है, जो कठोर अंतर्विवाह (endogamy), व्यवसायगत प्रतिबंधों, सामाजिक दूरी और जातीय बहिष्कार जैसे नियमों द्वारा परिभाषित होती है। यह व्यक्ति के जीवन के लगभग हर पहलू को नियंत्रित करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: जबकि प्रजाति भौतिक लक्षणों पर आधारित होती है, जाति सामाजिक, सांस्कृतिक और धार्मिक नियमों पर आधारित एक अधिक विस्तृत और प्रतिबंधात्मक व्यवस्था है। G.S. Ghurye, J.H. Hutton जैसे समाजशास्त्रियों ने इस पर विस्तार से लिखा है।
  • गलत विकल्प: कोई भी जाति प्रणाली पूरी तरह से आनुवंशिक नहीं हो सकती, क्योंकि यह सामाजिक संरचना का हिस्सा है। प्रजाति की अवधारणा का प्रयोग भारतीय समाज के अध्ययन में हुआ है, भले ही जाति अधिक प्रमुख कारक रही हो। जाति केवल खान-पान तक सीमित नहीं है, बल्कि पेशा, विवाह, निवास आदि पर भी गंभीर प्रतिबंध लगाती है।

प्रश्न 6: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) का वह कौन सा रूप है जहाँ एक व्यक्ति या समूह अपनी सामाजिक स्थिति को उसी पीढ़ी में बदलता है?

  1. ऊर्ध्वगामी गतिशीलता
  2. अनुप्रस्थ गतिशीलता
  3. अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता
  4. अंतः-पीढ़ीगत गतिशीलता

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: अंतः-पीढ़ीगत गतिशीलता (Intra-generational Mobility) से तात्पर्य एक ही व्यक्ति के जीवनकाल में सामाजिक स्थिति में होने वाले परिवर्तन से है। उदाहरण के लिए, एक व्यक्ति जो एक सामान्य परिवार में पैदा हुआ और बाद में एक सफल व्यवसायी या उच्च अधिकारी बना।
  • संदर्भ और विस्तार: यह ऊर्ध्वगामी (upward) या अधोगामी (downward) हो सकती है। यह सामाजिक संरचना में व्यक्ति के व्यक्तिगत प्रक्षेपवक्र (trajectory) को समझने में मदद करती है।
  • गलत विकल्प: ऊर्ध्वगामी गतिशीलता केवल स्थिति में वृद्धि है। अनुप्रस्थ गतिशीलता (Horizontal Mobility) में स्थिति के स्तर को बदले बिना एक भूमिका से दूसरी भूमिका में जाना शामिल है। अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता (Inter-generational Mobility) माता-पिता और बच्चों के बीच सामाजिक स्थिति में परिवर्तन को दर्शाती है।

प्रश्न 7: रॉबर्ट मर्टन के अनुसार, समाज में ‘कार्य’ (Function) के दो मुख्य प्रकार कौन से हैं?

  1. प्रकट कार्य और गुप्त कार्य
  2. सकारात्मक कार्य और नकारात्मक कार्य
  3. व्यक्तिगत कार्य और सामूहिक कार्य
  4. संरचनात्मक कार्य और सांस्कृतिक कार्य

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: रॉबर्ट मर्टन ने ‘प्रकट कार्य’ (Manifest Functions) और ‘गुप्त कार्य’ (Latent Functions) के बीच अंतर किया। प्रकट कार्य वे परिणाम होते हैं जिन्हें सामाजिक इकाई या व्यक्ति द्वारा इरादतन और पहचाना जाता है, जबकि गुप्त कार्य अनपेक्षित और अक्सर अनजाने परिणाम होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने अपनी पुस्तक “Social Theory and Social Structure” में इन अवधारणाओं को विकसित किया। उदाहरण के लिए, एक विश्वविद्यालय का प्रकट कार्य शिक्षित नागरिक तैयार करना है, जबकि उसका गुप्त कार्य जीवनसाथी ढूंढने के लिए एक मंच प्रदान करना हो सकता है।
  • गलत विकल्प: सकारात्मक/नकारात्मक कार्य, व्यक्तिगत/सामूहिक कार्य, और संरचनात्मक/सांस्कृतिक कार्य जैसी श्रेणियां मर्टन द्वारा सीधे तौर पर इन दो मुख्य प्रकारों के रूप में प्रस्तुत नहीं की गई हैं।

प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सी अवधारणा ‘सामाजीकरण’ (Socialization) के संदर्भ में ‘समाज के सांस्कृतिक मानदंडों और मूल्यों का व्यक्ति के मानस में समाजीकरण’ की प्रक्रिया को दर्शाती है?

  1. परायापन (Alienation)
  2. संस्कृति ग्रहण (Acculturation)
  3. आंतरिकीकरण (Internalization)
  4. अभिसरण (Assimilation)

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: ‘आंतरिकीकरण’ (Internalization) वह प्रक्रिया है जिसमें व्यक्ति समाज द्वारा स्वीकार किए गए मानदंडों, मूल्यों, विश्वासों और दृष्टिकोणों को अपनी व्यक्तिगत पहचान का हिस्सा बना लेता है। यह सीखने की वह अवस्था है जब बाहरी नियम व्यक्ति के आंतरिक विश्वास बन जाते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सामाजीकरण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो व्यक्तित्व के विकास और सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में योगदान देता है। पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन ने अपनी पुस्तक “The Social Construction of Reality” में इस पर जोर दिया है।
  • गलत विकल्प: परायापन (Alienation) अलगाव की भावना है। संस्कृति ग्रहण (Acculturation) दो संस्कृतियों के संपर्क में आने पर होने वाले परिवर्तन को बताता है। अभिसरण (Assimilation) अल्पसंख्यकों द्वारा प्रमुख संस्कृति को अपनाने की प्रक्रिया है।

प्रश्न 9: मैक्स वेबर ने ‘सत्ता’ (Authority) के तीन आदर्श प्रकार बताए हैं। इनमें से कौन सा प्रकार ‘व्यक्तिगत करिश्मे’ पर आधारित है?

  1. वैध-कानूनी सत्ता
  2. पारंपरिक सत्ता
  3. करिश्माई सत्ता
  4. नौकरशाही सत्ता

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: मैक्स वेबर ने ‘करिश्माई सत्ता’ (Charismatic Authority) को किसी व्यक्ति के असाधारण गुणों, जैसे कि नायकत्व, पवित्रता या उत्कृष्ट आदर्शों के प्रति असाधारण भक्ति के कारण उत्पन्न होने वाली सत्ता के रूप में परिभाषित किया। अनुयायी इन गुणों के प्रति निष्ठावान होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: वेबर ने ‘वैध-कानूनी सत्ता’ (Rational-legal Authority) जो नियमों और प्रक्रियाओं पर आधारित होती है, और ‘पारंपरिक सत्ता’ (Traditional Authority) जो रीति-रिवाजों और विरासत पर आधारित होती है, का भी वर्णन किया। करिश्माई सत्ता आमतौर पर अस्थिर होती है क्योंकि यह व्यक्ति पर निर्भर करती है।
  • गलत विकल्प: वैध-कानूनी सत्ता कानून और व्यवस्था पर आधारित है। पारंपरिक सत्ता पैतृक या ऐतिहासिक अधिकार पर निर्भर करती है। नौकरशाही सत्ता वैध-कानूनी सत्ता का एक रूप है।

प्रश्न 10: भारतीय समाज में, ‘समरूपता’ (Homogamy) से क्या तात्पर्य है?

  1. विवाह जो सामाजिक वर्ग, जाति, धर्म, शिक्षा या अन्य सामाजिक-आर्थिक विशेषताओं में समानता पर आधारित हो।
  2. विवाह जो इन विशेषताओं में भिन्नता पर आधारित हो।
  3. विवाह जो केवल आर्थिक लाभ के लिए किया जाए।
  4. विवाह जो प्रेम संबंधों से उत्पन्न हो।

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: समरूपता (Homogamy), जिसे सजातीय विवाह (Homophilous Marriage) भी कहते हैं, विवाह का एक ऐसा पैटर्न है जहाँ वर और वधू समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि, जाति, धर्म, शिक्षा स्तर, जातीयता आदि साझा करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: यह भारतीय समाज में विवाह का एक प्रमुख पैटर्न रहा है, खासकर जाति और समुदाय के भीतर विवाह (endogamy) के प्रचलन के कारण। इसके विपरीत, विषम विवाह (Heterogamy) या विषमजातीय विवाह (Heterogamy) में वर-वधू विभिन्न पृष्ठभूमि से आते हैं।
  • गलत विकल्प: भिन्नता पर आधारित विवाह विषम विवाह (Heterogamy) कहलाता है। आर्थिक लाभ के लिए विवाह या प्रेम विवाह भी समरूपता के विशेष प्रकार नहीं हैं, हालांकि वे समान पृष्ठभूमि के लोगों में भी हो सकते हैं।

प्रश्न 11: ‘प्रकार्य’ (Function) और ‘प्रकार्यिक विकृति’ (Dysfunction) की अवधारणा किसने विकसित की?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. रॉबर्ट मर्टन
  4. इमाइल दुर्खीम

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: रॉबर्ट मर्टन ने संरचनात्मक प्रकारवाद (Structural Functionalism) के भीतर कार्य (Function) और उसके विपरीत, ‘प्रकार्यिक विकृति’ (Dysfunction) की अवधारणा विकसित की। कार्य वे परिणाम हैं जो किसी सामाजिक संरचना के अनुकूलन या अस्तित्व में योगदान करते हैं, जबकि विकृति वे परिणाम हैं जो समाज के लिए अस्थिरता या प्रतिकूल प्रभाव उत्पन्न करते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने यह स्वीकार करके पार्सन्स जैसे शुरुआती प्रकारवादियों के कठोर दृष्टिकोण को संशोधित किया कि सामाजिक संस्थाएँ या प्रथाएँ समाज के लिए हानिकारक भी हो सकती हैं।
  • गलत विकल्प: मार्क्स, वेबर और दुर्खीम समाजशास्त्रीय विचार के संस्थापक थे, लेकिन मर्टन ने विशेष रूप से ‘प्रकार्यिक विकृति’ शब्द को विकसित किया।

प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘सामाजिक संस्थान’ (Social Institution) का उदाहरण नहीं है?

  1. परिवार
  2. शिक्षा
  3. राजनीति
  4. सामाजिक वर्ग

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: सामाजिक संस्थान वे स्थापित, स्थायी और व्यापक सामाजिक व्यवस्थाएं हैं जो समाज की बुनियादी आवश्यकताओं को पूरा करती हैं। परिवार, शिक्षा, राजनीति, धर्म, अर्थव्यवस्था प्रमुख सामाजिक संस्थान हैं। सामाजिक वर्ग (Social Class) समाज के स्तरीकरण का एक परिणाम है, न कि एक संरचित संस्थान।
  • संदर्भ और विस्तार: संस्थान समाज को स्थिरता और पूर्वानुमेयता प्रदान करते हैं। वे नियमों, भूमिकाओं और मानदंडों का एक समूह होते हैं। सामाजिक वर्ग लोगों के समूहों को उनकी आर्थिक स्थिति या शक्ति के आधार पर वर्गीकृत करता है, लेकिन यह स्वयं एक संस्थान नहीं है।
  • गलत विकल्प: परिवार, शिक्षा और राजनीति सभी प्रमुख सामाजिक संस्थान हैं जो विशिष्ट कार्यों को पूरा करते हैं।

प्रश्न 13: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) के ‘संघर्ष सिद्धांत’ (Conflict Theory) के अनुसार, समाज में असमानता का मुख्य कारण क्या है?

  1. व्यक्तिगत योग्यता और प्रयास
  2. सामाजिक मानदंडों का पालन
  3. संसाधनों और शक्ति के लिए प्रतिस्पर्धा
  4. पारंपरिक मूल्यों की प्रधानता

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: संघर्ष सिद्धांत, विशेष रूप से मार्क्सवादी परंपरा में, यह तर्क देता है कि समाज में असमानता उत्पादन के साधनों पर नियंत्रण और शक्ति के वितरण से उत्पन्न होती है। विभिन्न समूह (जैसे वर्ग) सीमित संसाधनों और शक्ति के लिए निरंतर प्रतिस्पर्धा में रहते हैं, जिससे सामाजिक स्तरीकरण बनता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत सामाजिक व्यवस्था को निरंतर संघर्ष और परिवर्तन की स्थिति में देखता है, जहाँ शासक वर्ग अपने हितों की रक्षा के लिए व्यवस्था बनाए रखता है।
  • गलत विकल्प: व्यक्तिगत योग्यता (प्रयोजनवादी सिद्धांत का तर्क) या सामाजिक मानदंडों का पालन (प्रकारवादी सिद्धांत का तर्क) संघर्ष सिद्धांतकारों के अनुसार असमानता के प्राथमिक कारण नहीं हैं। पारंपरिक मूल्यों की प्रधानता भी उनके लिए सामाजिक नियंत्रण का एक उपकरण हो सकती है।

प्रश्न 14: ‘सामाजिक अनुसंधान’ (Social Research) में ‘गुणात्मक विधि’ (Qualitative Method) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

  1. जनसंख्या के एक बड़े समूह का संख्यात्मक विश्लेषण करना।
  2. सामाजिक घटनाओं के पीछे के अर्थों, अनुभवों और संदर्भों को गहराई से समझना।
  3. सांख्यिकीय संबंधों की भविष्यवाणी करना।
  4. मानक परीक्षणों के माध्यम से परिकल्पनाओं का परीक्षण करना।

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: गुणात्मक अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य सामाजिक दुनिया की जटिलताओं, अनुभवों, दृष्टिकोणों और अर्थों को गहराई से खोजना और समझना है। यह ‘क्यों’ और ‘कैसे’ जैसे प्रश्नों पर केंद्रित होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: गुणात्मक विधियों में साक्षात्कार (interviews), अवलोकन (observation), फोकस समूह (focus groups) और केस स्टडी (case studies) शामिल हैं। यह अक्सर गहन अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, लेकिन सामान्यीकरण (generalization) मुश्किल हो सकता है।
  • गलत विकल्प: संख्यात्मक विश्लेषण, सांख्यिकीय भविष्यवाणी और मानक परीक्षण मात्रात्मक (Quantitative) अनुसंधान के उद्देश्य हैं।

प्रश्न 15: ‘सार्वभौमिकता’ (Universality) और ‘विशिष्टता’ (Particularism) के बीच वेबर के द्वंद्व (dichotomy) का संबंध किससे है?

  1. पारंपरिक समाज में सामाजिक क्रिया
  2. आधुनिक समाज में नौकरशाही के कार्य
  3. परिवार में नातेदारी व्यवस्था
  4. आदिम समाजों में श्रम विभाजन

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: मैक्स वेबर ने आधुनिक नौकरशाही (Bureaucracy) की विशेषता के रूप में ‘विशिष्टता’ (Particularism) के बजाय ‘सार्वभौमिकता’ (Universality) के सिद्धांत को प्रस्तुत किया। इसका अर्थ है कि नौकरशाही में नियम और निर्णय सभी के लिए समान रूप से लागू होते हैं, न कि व्यक्तिगत संबंधों या विशेष परिस्थितियों के आधार पर।
  • संदर्भ और विस्तार: पारंपरिक समाजों में, निर्णय अक्सर विशिष्टताओं (जैसे परिवार, जाति, मित्रता) पर आधारित होते थे। नौकरशाही निष्पक्षता और योग्यता पर आधारित होती है, जहाँ नियमों का पालन सार्वभौमिक रूप से होता है।
  • गलत विकल्प: पारंपरिक समाज, नातेदारी व्यवस्था और श्रम विभाजन वेबर के सार्वभौमिकता/विशिष्टता द्वंद्व के प्राथमिक संदर्भ नहीं हैं, बल्कि वे विभिन्न समाजों या संस्थाओं के विश्लेषण से संबंधित हैं।

प्रश्न 16: एल. कोज़र (L. Coser) ने ‘संघर्ष’ (Conflict) के किस प्रकार को समाज के लिए ‘रचनात्मक’ (Creative) या ‘सकारात्मक’ (Positive) माना है?

  1. अत्यधिक तीव्र और अतिव्याप्त संघर्ष
  2. अत्यंत गंभीर और अंतर्निहित संघर्ष
  3. छोटे, गैर-आक्रामक और हल होने योग्य संघर्ष
  4. संघर्ष का पूर्ण अभाव

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: लुई कोज़र (Lewis Coser), एक प्रमुख प्रकार्यवादी संघर्ष सिद्धांतकार, ने तर्क दिया कि कुछ प्रकार के संघर्ष, विशेष रूप से जो अतिरंजित या जीवन-धमकाने वाले नहीं होते, बल्कि विशिष्ट समस्याओं के समाधान की ओर ले जाते हैं, समाज के लिए रचनात्मक हो सकते हैं। ऐसे संघर्ष समूह की एकता को मज़बूत कर सकते हैं और परिवर्तन ला सकते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: कोज़र ने अपनी पुस्तक “The Functions of Social Conflict” में बताया कि जो संघर्ष समूहों के बीच महत्वपूर्ण ‘सीमाएं’ (boundaries) बनाते हैं, वे वास्तव में सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने में मदद कर सकते हैं।
  • गलत विकल्प: अत्यधिक तीव्र, गंभीर या सर्वव्यापी संघर्ष आमतौर पर समाज को अस्थिर करते हैं। संघर्ष का पूर्ण अभाव भी जड़ता और अवनति का कारण बन सकता है।

प्रश्न 17: ‘The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism’ नामक प्रसिद्ध कृति के लेखक कौन हैं?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. एमील दुर्खीम
  3. मैक्स वेबर
  4. जॉर्ज सिमेल

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: मैक्स वेबर ने अपनी इस प्रतिष्ठित पुस्तक में तर्क दिया कि प्रोटेस्टेंट धर्म, विशेष रूप से केल्विनवाद, ने आधुनिक पूंजीवाद की वृद्धि में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उन्होंने बताया कि कैसे प्रोटेस्टेंट नैतिकता, जैसे कि कड़ी मेहनत, तपस्या और सफलता को ईश्वरीय संकेत मानना, पूंजी संचय के लिए अनुकूल वातावरण बनाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह कार्य समाजशास्त्र में संस्कृति और अर्थव्यवस्था के बीच संबंध को समझने के लिए मौलिक है। वेबर ने दिखाया कि कैसे धार्मिक विचार गैर-धार्मिक, आर्थिक गतिविधियों को प्रभावित कर सकते हैं।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स आर्थिक आधार पर पूंजीवाद की व्याख्या करते थे। दुर्खीम ने श्रम विभाजन और सामाजिक एकजुटता पर ध्यान केंद्रित किया। सिमेल ने शहर और पैसे के समाजशास्त्र पर लिखा।

प्रश्न 18: भारत में ‘भूमि सुधार’ (Land Reforms) का मुख्य उद्देश्य क्या रहा है?

  1. कृषि उत्पादकता बढ़ाना
  2. भूमि का असमान वितरण कम करना और ग्रामीण असमानता को दूर करना
  3. किसानों को अधिक आधुनिक बीज उपलब्ध कराना
  4. कृषि में औद्योगिकीकरण को बढ़ावा देना

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: भारत में भूमि सुधारों का प्राथमिक लक्ष्य ऐतिहासिक रूप से भूमि के अत्यधिक असमान वितरण को संबोधित करना, बिचौलियों (जैसे जमींदार) को समाप्त करना, काश्तकारों को स्वामित्व प्रदान करना और ग्रामीण गरीबों के जीवन स्तर में सुधार करके सामाजिक न्याय स्थापित करना रहा है।
  • संदर्भ और विस्तार: हालांकि कृषि उत्पादकता और औद्योगिकीकरण जैसे अन्य कारक भी भूमि सुधारों से जुड़े हैं, लेकिन मुख्य सामाजिक-आर्थिक उद्देश्य असमानता को कम करना रहा है।
  • गलत विकल्प: आधुनिक बीज और औद्योगिकीकरण उत्पादकता वृद्धि के तरीके हैं, लेकिन भूमि सुधार का मूल उद्देश्य सीधे तौर पर वितरण और समानता को संबोधित करना है।

प्रश्न 19: ‘परिभाषा की सत्ता’ (The Power of Definition) की अवधारणा, जो सामाजिक यथार्थ के निर्माण में महत्वपूर्ण है, किस समाजशास्त्रीय उपागम से सर्वाधिक जुड़ी है?

  1. संरचनात्मक प्रकारवाद
  2. संघर्ष सिद्धांत
  3. प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
  4. नौकरशाही सिद्धांत

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: ‘परिभाषा की सत्ता’ या ‘यथार्थ की सामाजिक रचना’ (Social Construction of Reality) की अवधारणा प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का केंद्रीय विचार है। यह उपागम इस बात पर ज़ोर देता है कि लोग अपनी अंतःक्रियाओं के माध्यम से सामाजिक दुनिया को परिभाषित और अर्थ प्रदान करते हैं, और ये परिभाषाएँ स्वयं सामाजिक यथार्थ का हिस्सा बन जाती हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: पीटर बर्जर और थॉमस लकमैन की पुस्तक “The Social Construction of Reality” इस विचार को विस्तार से प्रस्तुत करती है। व्यक्तियों की परिभाषाएँ उनके व्यवहार को प्रभावित करती हैं, और ये परिभाषाएँ सामूहिक रूप से एक साझा यथार्थ का निर्माण करती हैं।
  • गलत विकल्प: संरचनात्मक प्रकारवाद और संघर्ष सिद्धांत बड़े पैमाने की सामाजिक संरचनाओं पर ध्यान केंद्रित करते हैं। नौकरशाही सिद्धांत संस्थागत संरचनाओं पर केंद्रित है, न कि व्यक्ति-स्तरीय अर्थ-निर्माण पर।

प्रश्न 20: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) से क्या तात्पर्य है?

  1. किसी व्यक्ति के वित्तीय संसाधन और संपत्ति।
  2. किसी व्यक्ति की शिक्षा और कौशल।
  3. नेटवर्क, विश्वास और पारस्परिक संबंधों से उत्पन्न लाभ।
  4. समाज में शक्ति और प्रभाव का स्तर।

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता: सामाजिक पूंजी उन संसाधनों को संदर्भित करती है जो किसी व्यक्ति या समूह के सामाजिक नेटवर्क, विश्वास, सहयोग और पारस्परिक संबंधों के माध्यम से सुलभ होते हैं। यह व्यक्तियों को जानकारी, समर्थन और अवसर प्रदान कर सकती है।
  • संदर्भ और विस्तार: पियरे बॉर्दियू (Pierre Bourdieu) और रॉबर्ट पुट्नैम (Robert Putnam) जैसे समाजशास्त्रियों ने सामाजिक पूंजी की अवधारणा पर विस्तार से काम किया है। यह व्यक्तिगत या सामूहिक कार्रवाई के लिए एक मूल्यवान संपत्ति है।
  • गलत विकल्प: वित्तीय संसाधन भौतिक पूंजी हैं। शिक्षा और कौशल मानवीय पूंजी हैं। शक्ति और प्रभाव सामाजिक पूंजी का परिणाम हो सकते हैं, लेकिन सामाजिक पूंजी स्वयं इन संबंधों का जाल है।

  • प्रश्न 21: भारतीय समाज में ‘जनजातीय विकास’ (Tribal Development) से संबंधित मुख्य चुनौतियों में से एक क्या है?

    1. जनजातियों का अत्यधिक शहरीकरण।
    2. बाज़ार अर्थव्यवस्था में उनका एकीकरण और संसाधनों पर नियंत्रण खोना।
    3. उनकी पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं को अत्यधिक बढ़ावा देना।
    4. सभी जनजातियों द्वारा एक समान सामाजिक-आर्थिक दर्ज़ा प्राप्त करना।

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सटीकता: भारत में जनजातीय समुदायों के विकास में एक प्रमुख चुनौती बाहरी दुनिया, विशेष रूप से बाज़ार अर्थव्यवस्था और गैर-जनजातीय लोगों के बढ़ते प्रभाव के कारण उनकी पारंपरिक आजीविका, संसाधनों (जैसे वन भूमि) पर नियंत्रण और विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान का क्षरण है।
    • संदर्भ और विस्तार: विस्थापन, वनों पर निर्भरता में कमी, और बाज़ार की ताकतों के कारण अक्सर उनका सामाजिक-आर्थिक पतन होता है। जनजातीय नीतियों को अक्सर इन जटिलताओं से जूझना पड़ता है।
    • गलत विकल्प: जनजातियों का अत्यधिक शहरीकरण एक सामान्य समस्या नहीं है, बल्कि इसका उल्टा (विस्थापन) अधिक है। पारंपरिक धार्मिक प्रथाओं को अत्यधिक बढ़ावा देना विकास की समस्या नहीं, बल्कि संरक्षण का एक पहलू है। सभी जनजातियों का समान दर्जा प्राप्त करना एक आदर्श है, समस्या नहीं।

    प्रश्न 22: ‘सामाजिक नियंत्रण’ (Social Control) की उन व्यवस्थाओं को क्या कहा जाता है जो अनौपचारिक होती हैं और मुख्य रूप से समूह के सदस्यों के बीच व्यक्तिगत अंतःक्रियाओं से उत्पन्न होती हैं, जैसे कि शर्म, उपहास या सामाजिक बहिष्कार?

    1. औपचारिक सामाजिक नियंत्रण
    2. अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण
    3. कानूनी नियंत्रण
    4. प्रशासनिक नियंत्रण

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सटीकता: अनौपचारिक सामाजिक नियंत्रण (Informal Social Control) वे तरीके हैं जिनसे समाज या उसके समूह अपने सदस्यों के व्यवहार को नियंत्रित करते हैं, बिना किसी लिखित नियम या संस्थागत शक्ति के। ये अक्सर व्यक्तिगत संबंधों, विश्वासों और अंतःक्रियाओं से जुड़े होते हैं, जैसे कि परिवार, पड़ोस या मित्र मंडली द्वारा।
    • संदर्भ और विस्तार: शर्म, निंदा, उपहास, प्रशंसा, सामाजिक स्वीकृति या बहिष्कार इसके उदाहरण हैं। यह व्यक्ति के व्यवहार को समाज के मानदंडों के अनुरूप ढालने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
    • गलत विकल्प: औपचारिक सामाजिक नियंत्रण में पुलिस, अदालतें, सरकार जैसे संस्थागत तंत्र शामिल होते हैं। कानूनी और प्रशासनिक नियंत्रण औपचारिक नियंत्रण के विशिष्ट रूप हैं।

    प्रश्न 23: ‘The Elementary Forms of Religious Life’ पुस्तक के लेखक कौन हैं, जिन्होंने धर्म को ‘समाज के लिए एक एकीकृत शक्ति’ के रूप में देखा?

    1. मैक्स वेबर
    2. कार्ल मार्क्स
    3. एमील दुर्खीम
    4. सिगमंड फ्रायड

    उत्तर: (c)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सटीकता: एमील दुर्खीम ने अपनी पुस्तक “The Elementary Forms of Religious Life” में धर्म का समाजशास्त्रीय विश्लेषण किया। उन्होंने तर्क दिया कि धर्म समाज को एकजुट करने वाली एक एकीकृत शक्ति है, जो सामूहिक चेतना (collective consciousness) को मज़बूत करता है और सामाजिक सामंजस्य (social cohesion) को बनाए रखता है।
    • संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, धर्म का मूल पवित्र (sacred) और अपवित्र (profane) के बीच भेद करना है, और धार्मिक अनुष्ठान लोगों को एक साथ लाकर उनकी समूह पहचान को दृढ़ करते हैं।
    • गलत विकल्प: वेबर ने प्रोटेस्टेंट नैतिकता और पूंजीवाद के बीच संबंध पर लिखा। मार्क्स ने धर्म को ‘जनता का अफीम’ कहा, जो यथास्थिति बनाए रखता है। फ्रायड ने धर्म को एक भ्रम (illusion) माना।

    प्रश्न 24: ‘आधुनिकीकरण सिद्धांत’ (Modernization Theory) के अनुसार, पारंपरिक समाजों का आधुनिकीकरण मुख्य रूप से किस पर निर्भर करता है?

    1. प्रौद्योगिकी और औद्योगीकरण को अपनाना
    2. सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन, जिसमें पश्चिमी मूल्यों और संस्थानों का अनुकरण शामिल हो सकता है।
    3. केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना
    4. बाहरी हस्तक्षेप और उपनिवेशवाद का विस्तार

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सटीकता: आधुनिकीकरण सिद्धांतकारों का मानना था कि पारंपरिक समाजों को आधुनिक बनने के लिए न केवल प्रौद्योगिकी और औद्योगीकरण को अपनाना होगा, बल्कि महत्वपूर्ण सामाजिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक परिवर्तन भी करने होंगे, जिसमें अक्सर पश्चिमी आधुनिकीकरण के प्रतिमानों का अनुकरण शामिल होता है।
    • संदर्भ और विस्तार: इस सिद्धांत की आलोचना भी हुई है कि यह पश्चिमी-केंद्रित है और यह मानता है कि आधुनिकीकरण एक रैखिक प्रक्रिया है। इसमें शहरीकरण, शिक्षा के प्रसार, धर्मनिरपेक्षीकरण और लोकतांत्रिक संस्थानों का विकास जैसे तत्व शामिल हैं।
    • गलत विकल्प: केवल प्रौद्योगिकी या केवल आर्थिक विकास पर्याप्त नहीं हैं, बल्कि सामाजिक-सांस्कृतिक बदलाव भी आवश्यक माने जाते हैं। बाहरी हस्तक्षेप (जैसे उपनिवेशवाद) को अक्सर आधुनिकीकरण के एक विशिष्ट चरण के रूप में देखा गया है, न कि उसकी मूल निर्भरता के रूप में।

    प्रश्न 25: ‘The Presentation of Self in Everyday Life’ (1959) पुस्तक के लेखक कौन हैं, जिन्होंने ‘नाटकशास्त्र’ (Dramaturgy) के उपागम का प्रयोग सामाजिक अंतःक्रियाओं को समझाने के लिए किया?

    1. हरबर्ट ब्लूमर
    2. इर्विंग गॉफमैन
    3. अल्फ्रेड शुट्ज़
    4. चार्ल्स हॉर्टन कूली

    उत्तर: (b)

    विस्तृत व्याख्या:

    • सटीकता: इर्विंग गॉफमैन ने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक “The Presentation of Self in Everyday Life” में ‘नाटकशास्त्र’ (Dramaturgy) का उपयोग किया। इस उपागम में, वे सामाजिक जीवन की तुलना एक मंच प्रदर्शन से करते हैं, जहाँ व्यक्ति ‘अभिनय’ करते हैं, ‘मुखौटे’ पहनते हैं, और दूसरों के सामने अपनी ‘छवि’ (impression) का प्रबंधन करते हैं।
    • संदर्भ और विस्तार: गॉफमैन ने व्यक्तियों के दैनिक जीवन में सामाजिक अंतःक्रियाओं के सूक्ष्म विश्लेषण पर ज़ोर दिया, जहाँ लोग अपनी भूमिकाओं को निभाने के लिए प्रतीकों और रणनीतियों का उपयोग करते हैं।
    • गलत विकल्प: ब्लूमर ने प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद को परिभाषित किया। शुट्ज़ ने ‘जीवन-जगत’ (lifeworld) की अवधारणा दी। कूली ने ‘दर्पण-स्व’ (looking-glass self) का सिद्धांत प्रतिपादित किया।

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