समाजशास्त्रीय अवधारणाओं पर दैनिक प्रहार
नमस्कार, आगामी परीक्षाओं के योद्धाओं! अपनी समाजशास्त्रीय समझ को और पैना करने के लिए तैयार हो जाइए। आज का यह दैनिक अभ्यास सत्र आपकी अवधारणात्मक स्पष्टता और विश्लेषणात्मक कौशल को परखने का एक अनूठा अवसर है। आइए, इन 25 प्रश्नों के साथ ज्ञान की गहराइयों में उतरें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘अभिजात वर्ग के परिभ्रमण’ (Circulation of Elites) का सिद्धांत निम्नलिखित में से किस समाजशास्त्री द्वारा प्रतिपादित किया गया था?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- विलफ्रेडो परेटो
- सी. राइट मिल्स
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: विलफ्रेडो परेटो ने ‘अभिजात वर्ग के परिभ्रमण’ का सिद्धांत दिया। उनका तर्क था कि समाज हमेशा शासक और शासित वर्गों में विभाजित होता है, और ये अभिजात वर्ग (शासक वर्ग) समय के साथ बदलते रहते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: परेटो ने अपनी पुस्तक “The Mind and Society” (1916) में इस सिद्धांत को विस्तार से बताया। उन्होंने अभिजातों के दो प्रकार बताए: ‘लायन’ (शेर) और ‘फॉक्स’ (लोमड़ी)। उनके अनुसार, जब एक प्रकार का अभिजात वर्ग सड़ने लगता है, तो दूसरे प्रकार का अभिजात वर्ग उसका स्थान ले लेता है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने वर्ग संघर्ष और ऐतिहासिक भौतिकवाद पर ध्यान केंद्रित किया, जहाँ अभिजात वर्ग की अवधारणा भिन्न थी। मैक्स वेबर ने सत्ता, अधिकार और सामाजिक स्तरीकरण पर काम किया, लेकिन ‘अभिजात वर्ग का परिभ्रमण’ उनकी मुख्य अवधारणा नहीं थी। सी. राइट मिल्स ने ‘पावर एलिट’ (Power Elite) की अवधारणा दी, जो अमेरिकी समाज में शक्ति के केंद्रीकरण से संबंधित थी।
प्रश्न 2: भारत में ‘संवैधानिक समाजवाद’ (Constitutional Socialism) का क्या अर्थ है?
- बिना क्रांति के समाजवाद की स्थापना
- पूंजीवाद का उन्मूलन
- साम्यवाद का परिचय
- धार्मिक समाजों का विकास
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: भारत के संदर्भ में ‘संवैधानिक समाजवाद’ का अर्थ है कि समाजवाद के लक्ष्यों को लोकतांत्रिक और संवैधानिक माध्यमों से, यानी चुनाव, संसद और विधायी प्रक्रियाओं द्वारा प्राप्त करना, न कि बलपूर्वक या क्रांति द्वारा।
- संदर्भ और विस्तार: यह भारतीय संविधान की प्रस्तावना में उल्लिखित ‘समाजवादी’ शब्द की व्याख्या से जुड़ा है। इसका उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है, जो आय और अवसरों की असमानताओं को कम करे, लेकिन व्यक्तिगत स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक मूल्यों का हनन न हो।
- गलत विकल्प: ‘पूंजीवाद का उन्मूलन’ साम्यवाद का लक्ष्य है, न कि संवैधानिक समाजवाद का। ‘साम्यवाद का परिचय’ भी एक अलग राजनीतिक विचारधारा है। ‘धार्मिक समाजों का विकास’ का इससे कोई सीधा संबंध नहीं है।
प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) का घटक नहीं है?
- सामाजिक संस्थाएं
- समूह
- भूमिकाएं
- व्यक्तिगत भावनाएं
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: व्यक्तिगत भावनाएं सामाजिक संरचना का प्रत्यक्ष घटक नहीं हैं। सामाजिक संरचना व्यक्तियों के बीच संबंधों, संस्थाओं, समूहों और भूमिकाओं के अपेक्षाकृत स्थायी और व्यवस्थित पैटर्न को संदर्भित करती है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक संरचना समाज के ‘सामूहिक’ या ‘बाહ्य’ पहलुओं को दर्शाती है, जो व्यक्तिगत चेतना से स्वतंत्र होते हैं। सामाजिक संस्थाएं (जैसे परिवार, शिक्षा, धर्म), समूह (जैसे जाति, वर्ग) और भूमिकाएं (जैसे पिता, शिक्षक) इसके प्रमुख तत्व हैं।
- गलत विकल्प: सामाजिक संस्थाएं, समूह और भूमिकाएं, सभी सामाजिक संरचना के महत्वपूर्ण और अभिन्न अंग हैं। ये समाज को स्थिरता और व्यवस्था प्रदान करते हैं।
प्रश्न 4: आर. के. मर्टन (R. K. Merton) के अनुसार, सामाजिक मानदंडों के विचलन (deviance) के प्रति व्यक्ति की प्रतिक्रिया के संदर्भ में, ‘नवाचार’ (Innovation) का अर्थ है:
- सांस्कृतिक लक्ष्यों को अस्वीकार करना और संस्थागत साधनों को स्वीकार करना
- सांस्कृतिक लक्ष्यों को स्वीकार करना और संस्थागत साधनों को अस्वीकार करना
- सांस्कृतिक लक्ष्यों और संस्थागत साधनों दोनों को अस्वीकार करना
- सांस्कृतिक लक्ष्यों और संस्थागत साधनों दोनों को अस्वीकार करना और एक नया प्रतिमान स्थापित करना
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: रॉबर्ट मर्टन ने अपनी ‘विसंगति सिद्धांत’ (Strain Theory) में, ‘नवाचार’ को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया है जो सांस्कृतिक लक्ष्यों (जैसे धन, सफलता) को स्वीकार करता है, लेकिन उन्हें प्राप्त करने के लिए समाज द्वारा स्वीकृत संस्थागत साधनों (जैसे शिक्षा, कड़ी मेहनत) को अस्वीकार करता है और अवैध साधनों (जैसे अपराध) का उपयोग करता है।
- संदर्भ और विस्तार: मर्टन ने यह सिद्धांत सामाजिक संरचना और संस्कृति के बीच तनाव के परिणाम के रूप में विचलन की व्याख्या करने के लिए विकसित किया। उनके अनुसार, जब समाज सभी सदस्यों के लिए समान अवसर प्रदान नहीं करता है, तो वे इन साधनों को अपनाते हैं।
- गलत विकल्प: (a) ‘अस्वीकृति’ (Retreatism) का अर्थ है लक्ष्यों और साधनों दोनों को अस्वीकार करना। (c) ‘अनुष्ठानवाद’ (Ritualism) का अर्थ है लक्ष्यों को अस्वीकार करना लेकिन साधनों को बनाए रखना। (d) ‘विद्रोह’ (Rebellion) का अर्थ है लक्ष्यों और साधनों दोनों को अस्वीकार करना और उन्हें नए साधनों से बदलना।
प्रश्न 5: किस समाजशास्त्री ने ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ (Cultural Lag) की अवधारणा पेश की?
- ए. एल. क्रॉबर
- विलियम ग्राहम समनर
- ऑगस्ट कॉम्टे
- विलियम एफ. ओग्बर्न
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: विलियम एफ. ओग्बर्न (William F. Ogburn) ने 1922 में अपनी पुस्तक “Social Change with Respect to Culture and Original Nature” में ‘सांस्कृतिक विलम्ब’ की अवधारणा पेश की।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा बताती है कि समाज के विभिन्न हिस्से, विशेष रूप से भौतिक संस्कृति (तकनीक, आविष्कार) और अभौतिक संस्कृति (मान्यताएं, मूल्य, सामाजिक संस्थाएं), अलग-अलग दरों पर बदलते हैं। अक्सर, भौतिक संस्कृति में बदलाव अभौतिक संस्कृति में बदलाव से आगे निकल जाता है, जिससे सामाजिक सामंजस्य में समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- गलत विकल्प: ए. एल. क्रॉबर और विलियम ग्राहम समनर संस्कृति के अध्ययन में प्रमुख व्यक्ति थे, लेकिन उन्होंने यह विशिष्ट अवधारणा नहीं दी। ऑगस्ट कॉम्टे समाजशास्त्र के संस्थापक माने जाते हैं, जिन्होंने ‘प्रत्यक्षवाद’ (Positivism) की वकालत की।
प्रश्न 6: ‘अशाब्दिक संचार’ (Non-verbal Communication) के अध्ययन को समाजशास्त्र के किस उप-क्षेत्र में अधिक महत्व दिया जाता है?
- सामाजिक स्तरीकरण
- संस्कृति और समाज
- ज्ञान का समाजशास्त्र
- सामाजिक मनोविज्ञान
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: अशाब्दिक संचार, जैसे हाव-भाव, मुख-मुद्रा, शारीरिक भाषा, और स्वर का उतार-चढ़ाव, का अध्ययन मुख्य रूप से सामाजिक मनोविज्ञान (Social Psychology) के क्षेत्र में किया जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक मनोविज्ञान व्यक्तियों के व्यवहार, विचारों और भावनाओं का अध्ययन करता है जब वे दूसरों के साथ बातचीत करते हैं। अशाब्दिक संचार दूसरों के साथ अंतःक्रिया को समझने और सामाजिक संबंधों को स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) जैसे प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism) के समर्थकों ने अशाब्दिक संकेतों के महत्व पर जोर दिया।
- गलत विकल्प: सामाजिक स्तरीकरण, संस्कृति और समाज, और ज्ञान का समाजशास्त्र अपने-अपने विशिष्ट विषयों पर केंद्रित हैं, जबकि अशाब्दिक संचार इन क्षेत्रों में माध्यमिक या पूरक हो सकता है।
प्रश्न 7: जाति व्यवस्था में ‘अछुतोद्धार’ (Untouchability) का तात्पर्य है:
- सभी जातियों का समान दर्जा
- कुछ जातियों का बहिष्कृत और अपमानित व्यवहार
- जातिगत पहचान का अंत
- जातिगत अंतर-विवाह
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: भारतीय जाति व्यवस्था में ‘अछुतोद्धार’ का अर्थ उन जातियों से है जिन्हें ऐतिहासिक रूप से ‘अछूत’ माना जाता रहा है, जिन्हें सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक रूप से बहिष्कृत किया जाता था और उनके साथ अपमानजनक व्यवहार होता था।
- संदर्भ और विस्तार: यह व्यवस्था जन्म पर आधारित है और सामाजिक अलगाव, व्यावसायिक प्रतिबंध और निषेधों (जैसे स्पर्श, भोजन साझा न करना) की एक जटिल प्रणाली से जुड़ी है। बी. आर. अम्बेडकर ने जाति के उन्मूलन और अछूतों के उत्थान के लिए अथक प्रयास किए।
- गलत विकल्प: (a) और (c) जाति व्यवस्था के उन्मूलन के लक्ष्य हो सकते हैं, लेकिन ‘अछुतोद्धार’ उसकी वर्तमान या ऐतिहासिक स्थिति का वर्णन है। (d) जातिगत अंतर-विवाह (Endogamy) जाति व्यवस्था का एक नियम है, न कि अछुतोद्धार।
प्रश्न 8: ‘पारिवारिक संरचना’ (Family Structure) के अध्ययन में, ‘समरक्त परिवार’ (Consanguineal Family) से तात्पर्य है:
- विवाह पर आधारित परिवार
- रक्त संबंधियों पर आधारित परिवार
- दत्तक पुत्र-पुत्री वाला परिवार
- दो पीढ़ियों वाले परिवार
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: ‘समरक्त परिवार’ (Consanguineal Family) वह परिवार है जो मुख्य रूप से रक्त संबंधियों (जैसे माता-पिता, भाई-बहन, बच्चे) के बीच संबंधों पर आधारित होता है। इसमें पति-पत्नी के संबंध गौण हो सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह शब्द एल.एच. मॉर्गन (L.H. Morgan) जैसे नृविज्ञानियों के काम से जुड़ा है, जिन्होंने विभिन्न प्रकार के पारिवारिक और नातेदारी संरचनाओं का अध्ययन किया। यह उन समाजों में अधिक प्रचलित हो सकता है जहाँ पितृसत्ता या मातृसत्ता की जड़ें गहरी होती हैं और जहाँ वंशानुगत संबंध महत्वपूर्ण होते हैं।
- गलत विकल्प: (a) ‘विवाह पर आधारित परिवार’ को ‘कंजुगल परिवार’ (Conjugal Family) कहा जाता है। (c) और (d) परिवार की संरचना के अन्य प्रकार हो सकते हैं, लेकिन ‘समरक्त’ शब्द सीधे तौर पर रक्त संबंधियों को इंगित करता है।
प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) के बारे में सही है?
- यह केवल ऊर्ध्वाधर गतिशीलता को संदर्भित करता है।
- यह व्यक्तियों या समूहों का एक सामाजिक स्थिति से दूसरी सामाजिक स्थिति में जाना है।
- यह समाज में स्थिर सामाजिक पदानुक्रम को इंगित करता है।
- यह केवल अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता का अध्ययन करता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: ‘सामाजिक गतिशीलता’ एक व्यापक शब्द है जो व्यक्तियों या समूहों के समाज में एक सामाजिक स्थिति से दूसरी में जाने की प्रक्रिया को दर्शाता है।
- संदर्भ और विस्तार: सामाजिक गतिशीलता दो मुख्य प्रकार की हो सकती है: ऊर्ध्वाधर (Vertical) (ऊपर या नीचे की ओर) और क्षैतिज (Horizontal) (समान स्तर पर)। यह अंतर-पीढ़ीगत (Intergenerational) (एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक) या अंतः-पीढ़ीगत (Intragenerational) (एक ही व्यक्ति के जीवनकाल में) हो सकती है।
- गलत विकल्प: (a) यह केवल ऊर्ध्वाधर नहीं, बल्कि क्षैतिज गतिशीलता को भी शामिल करता है। (c) सामाजिक गतिशीलता समाज में परिवर्तनशीलता को इंगित करती है, न कि स्थिरता को। (d) यह केवल अंतर-पीढ़ीगत नहीं, बल्कि अंतः-पीढ़ीगत गतिशीलता का भी अध्ययन करता है।
प्रश्न 10: ‘पवित्र और अपवित्र’ (Sacred and Profane) के बीच अंतर करने का विचार किस समाजशास्त्री के धर्म के समाजशास्त्र से जुड़ा है?
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- सिगमंड फ्रायड
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एमिल दुर्खीम (Émile Durkheim) ने अपनी प्रभावशाली पुस्तक “The Elementary Forms of Religious Life” (1912) में धर्म की अपनी समझ के आधार के रूप में ‘पवित्र’ और ‘अपवित्र’ के बीच अंतर करने के विचार पर जोर दिया।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम के अनुसार, सभी धर्मों की एक सामान्य विशेषता यह है कि वे दुनिया को दो मौलिक रूप से भिन्न क्षेत्रों में विभाजित करते हैं: पवित्र (जो असाधारण, वर्जित और ईश्वर से संबंधित है) और अपवित्र (जो सामान्य, सांसारिक और रोजमर्रा की जिंदगी से संबंधित है)। सामूहिक चेतना (collective consciousness) के निर्माण में पवित्र का अनुभव महत्वपूर्ण है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने धर्म को ‘जनता की अफीम’ कहा और उसके आर्थिक आधार पर जोर दिया। मैक्स वेबर ने प्रोटेस्टेंट धर्म और पूंजीवाद के बीच संबंध का अध्ययन किया। सिगमंड फ्रायड ने धर्म को एक प्रकार का भ्रम या मनोवैज्ञानिक आवश्यकता के रूप में देखा।
प्रश्न 11: ग्रामीण समाजशास्त्र में, ‘प्रिस्मैटिक समाज’ (Prismatic Society) की अवधारणा किसने विकसित की?
- रॉबर्ट रेडफील्ड
- एफ. टी. बैंग्स
- डेविड एप्पलबाउम
- सैम्युएल पॉवर्स
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एफ. टी. बैंग्स (F. T. von der Mehden, अक्सर एफ. टी. बैंग्स के रूप में उद्धृत) ने ‘प्रिस्मैटिक समाज’ की अवधारणा को विकसित किया, जो विकासशील समाजों की एक ऐसी स्थिति का वर्णन करती है जहाँ पारंपरिक और आधुनिक संस्थाएं एक साथ सह-अस्तित्व में रहती हैं।
- संदर्भ और विस्तार: प्रिस्मैटिक समाज को एक ऐसे समाज के रूप में परिभाषित किया जाता है जो आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से गुजर रहा है, लेकिन इसमें पारंपरिक और आधुनिक सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक संस्थाएं स्पष्ट रूप से अलग-अलग नहीं होतीं। यह एक ‘कांच’ (prism) की तरह है जहाँ प्रकाश (आधुनिकीकरण) गुजरने पर विभिन्न रंगों (संस्थाओं) में विभाजित हो जाता है, लेकिन पूरी तरह से अलग नहीं होता।
- गलत विकल्प: रॉबर्ट रेडफील्ड ने ‘लोक संस्कृति’ (Folk Culture) और ‘शहर संस्कृति’ (Urban Culture) के बीच निरंतरता का अध्ययन किया। अन्य विकल्प इस अवधारणा से सीधे तौर पर नहीं जुड़े हैं।
प्रश्न 12: ‘अति-सामाजिकता’ (Over-socialization) की आलोचना निम्नलिखित में से किस प्रमुख समाजशास्त्रीय सिद्धांत के संदर्भ में की गई है?
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- संरचनात्मक-प्रकार्यवाद
- संघर्ष सिद्धांत
- सामाजिक विनिमय सिद्धांत
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: ‘अति-सामाजिकता’ की आलोचना मुख्य रूप से संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural-Functionalism) के संदर्भ में की गई है, विशेष रूप से टैल्कॉट पार्सन्स (Talcott Parsons) जैसे इसके प्रमुख प्रतिपादकों के काम की।
- संदर्भ और विस्तार: आलोचकों (विशेषकर प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद और नृविज्ञान के दृष्टिकोण से, जैसे एडवर्ड टायलर, इरविंग गॉफमैन) का तर्क था कि प्रकार्यावादी सिद्धांत समाज के अभिकर्ताओं (agents) की सक्रिय भूमिका, उनकी स्वतंत्र सोच और अनिश्चित व्यवहार को कम महत्व देते हैं। वे मानते थे कि प्रकार्यवादियों ने व्यक्तियों को सामाजिक मानदंडों और मूल्यों द्वारा पूरी तरह से ‘सामाजिकृत’ (socialized) या प्रोग्राम्ड मशीनें मान लिया है, जो उनकी स्वतंत्र इच्छा और अनुकूलन क्षमता को नजरअंदाज करता है।
- गलत विकल्प: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद व्यक्तियों के आत्म-निर्माण और सामाजिक अंतःक्रिया पर जोर देता है। संघर्ष सिद्धांत सामाजिक परिवर्तन और शक्ति संबंधों पर केंद्रित है। सामाजिक विनिमय सिद्धांत लाभ-हानि गणना पर आधारित व्यक्तिगत व्यवहार को देखता है।
प्रश्न 13: ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) का सिद्धांत क्या प्रतिपादित करता है?
- सभी संस्कृतियाँ समान रूप से श्रेष्ठ हैं।
- एक संस्कृति को केवल उसी संस्कृति के संदर्भ में समझा और मूल्यांकित किया जाना चाहिए।
- पश्चिमी संस्कृति सभी संस्कृतियों से श्रेष्ठ है।
- संस्कृति सार्वभौमिक सिद्धांतों पर आधारित होती है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सांस्कृतिक सापेक्षवाद का सिद्धांत कहता है कि किसी भी संस्कृति को उसके अपने सदस्यों के दृष्टिकोण से, उसके अपने मूल्यों, विश्वासों और संदर्भों के भीतर समझा और उसका मूल्यांकन किया जाना चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: इस सिद्धांत का उद्देश्य सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों (ethnocentrism) से बचना है, जहाँ एक व्यक्ति अपनी संस्कृति को अन्य संस्कृतियों को मापने के लिए एक मानक के रूप में उपयोग करता है। नृविज्ञानियों, जैसे एफ. बोआस (Franz Boas) ने इस दृष्टिकोण को बढ़ावा दिया।
- गलत विकल्प: (a) ‘श्रेष्ठता’ का विचार सांस्कृतिक सापेक्षवाद के विपरीत है। (c) यह नृजातीय-केंद्रवाद (ethnocentrism) का एक उदाहरण है। (d) सांस्कृतिक सापेक्षवाद मानता है कि संस्कृतियां भिन्न होती हैं, सार्वभौमिक सिद्धांत सीमित हो सकते हैं।
प्रश्न 14: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘विभेदक साहचर्य सिद्धांत’ (Differential Association Theory) के बारे में सही है?
- यह बताता है कि अपराध केवल गरीब और निम्न-वर्ग के लोगों द्वारा किया जाता है।
- यह कहता है कि व्यक्ति अपराध करना तब सीखते हैं जब वे दूसरों के साथ अंतःक्रिया करते हैं और अपराध के प्रति अनुकूल परिभाषाएँ सीखते हैं।
- यह अपराध को व्यक्तिगत मनोवैज्ञानिक विकृतियों का परिणाम मानता है।
- यह सामाजिक संरचना में असमानताओं को अपराध का मुख्य कारण बताता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एडविन सदरलैंड (Edwin Sutherland) द्वारा विकसित विभेदक साहचर्य सिद्धांत का तर्क है कि अपराध एक सीखा हुआ व्यवहार है। व्यक्ति अपने निकटतम संबंधियों (जैसे परिवार, दोस्त, सहकर्मी) से अपराध करना और अपराध के प्रति पक्षपाती दृष्टिकोण सीखना सीखते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: सिद्धांत के अनुसार, यदि किसी व्यक्ति के पास अपराध के पक्ष में अधिक ‘विभेदक साहचर्य’ (differential associations) हैं, तो उसके अपराध करने की संभावना अधिक होती है, और इसके विपरीत। यह एक सामाजिक सीखने की प्रक्रिया पर जोर देता है।
- गलत विकल्प: (a) यह सिद्धांत वर्ग-विशिष्ट नहीं है। (c) यह सिद्धांत अपराध को मनोवैज्ञानिक समस्या के बजाय एक सीखा हुआ सामाजिक व्यवहार मानता है। (d) यह सामाजिक संरचनात्मक सिद्धांतों से भिन्न है जो असमानताओं पर जोर देते हैं, यद्यपि यह भी सामाजिक संदर्भ को महत्व देता है।
प्रश्न 15: भारत में ‘जनजातीय समाजों’ (Tribal Societies) के अध्ययन में ‘प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉइड’ (Proto-Australoid) प्रजाति समूह का संबंध किससे है?
- उत्तर-पूर्वी भारत की जनजातियाँ
- मध्य भारत की अधिकांश जनजातियाँ
- दक्षिणी भारत की जनजातियाँ
- पश्चिम बंगाल और बिहार की जनजातियाँ
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: प्रजातीय वर्गीकरण के अनुसार, ‘प्रोटो-ऑस्ट्रेलॉइड’ प्रजाति समूह का संबंध मुख्य रूप से भारत के मध्य क्षेत्र में निवास करने वाली अधिकांश जनजातीय आबादी से जोड़ा जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह समूह छोटी कद-काठी, चौड़ी नाक, गहरे रंग की त्वचा और काले, घुंघराले बालों की विशेषताओं के लिए जाना जाता है। भारत की प्रमुख जनजातियाँ जैसे भील, गोंड, कोल, संथाल आदि को इस प्रजाति समूह से संबंधित माना गया है।
- गलत विकल्प: उत्तर-पूर्वी भारत में मंगोलॉइड (Mongoloid) विशेषताओं वाली जनजातियाँ प्रमुख हैं, जबकि दक्षिण और पश्चिम में अन्य समूह पाए जाते हैं।
प्रश्न 16: ‘प्रतिमान विचलन’ (Paradigm Shift) की अवधारणा निम्नलिखित में से किस वैज्ञानिक/समाजशास्त्री द्वारा पेश की गई?
- इर्विंग गॉफमैन
- मैक्स वेबर
- थॉमस कुह्न
- रॉबर्ट ई. पार्क
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: थॉमस कुह्न (Thomas Kuhn) ने अपनी पुस्तक “The Structure of Scientific Revolutions” (1962) में ‘प्रतिमान विचलन’ (Paradigm Shift) की अवधारणा प्रस्तुत की।
- संदर्भ और विस्तार: कुह्न के अनुसार, विज्ञान ‘सामान्य विज्ञान’ (normal science) के काल से गुजरता है, जहाँ एक स्थापित प्रतिमान (paradigm – सिद्धांतों, विधियों और मान्यताओं का एक समूह) का पालन किया जाता है। जब इस प्रतिमान के भीतर विसंगतियाँ (anomalies) इतनी बढ़ जाती हैं कि उन्हें समझाया नहीं जा सकता, तो एक ‘वैज्ञानिक क्रांति’ होती है और एक नया प्रतिमान उभरता है, जो एक ‘प्रतिमान विचलन’ है।
- गलत विकल्प: इर्विंग गॉफमैन ने नाटकीयता (dramaturgy) का सिद्धांत दिया। मैक्स वेबर ने सत्ता, नौकरशाही और अर्थशास्त्र पर काम किया। रॉबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल के समाजशास्त्री थे जिन्होंने शहरी समाजशास्त्र और पारिस्थितिकी पर काम किया।
प्रश्न 17: ‘आधुनिकीकरण सिद्धांत’ (Modernization Theory) के प्रमुख आलोचकों में से कौन से समाजशास्त्री ‘निर्भरता सिद्धांत’ (Dependency Theory) के समर्थक थे?
- डेविड एफ. लॉकवुड
- अल्बर्ट हीर
- आंद्रे गुंडर फ्रैंक
- सैमुअल क्लाइन
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: आंद्रे गुंडर फ्रैंक (Andre Gunder Frank) निर्भरता सिद्धांत के प्रमुख प्रतिपादकों में से एक थे। निर्भरता सिद्धांत आधुनिकीकरण सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण आलोचक है।
- संदर्भ और विस्तार: आधुनिकीकरण सिद्धांत मानता है कि अविकसित देश विकसित देशों के पथ का अनुसरण करके विकास कर सकते हैं। इसके विपरीत, निर्भरता सिद्धांत तर्क देता है कि वैश्विक पूंजीवादी व्यवस्था में, अविकसित (परिधीय) देश विकसित (केंद्रीय) देशों पर निर्भर होते हैं, और यह निर्भरता ही उनके अविकसित रहने का कारण है। फ्रैंक का तर्क था कि “अविकसितता” (underdevelopment) विकास का एक सक्रिय परिणाम है।
- गलत विकल्प: डेविड एफ. लॉकवुड और अल्बर्ट हीर जैसे अन्य समाजशास्त्रियों ने विभिन्न सिद्धांतों पर काम किया है, लेकिन फ्रैंक निर्भरता सिद्धांत से प्रमुख रूप से जुड़े हैं। सैमुअल क्लाइन से इस संदर्भ में कोई विशेष संबंध नहीं है।
प्रश्न 18: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा को किसने लोकप्रिय बनाया?
- पियरे बॉर्डियू
- जेम्स कोलमन
- रॉबर्ट पुटनम
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को कई प्रमुख समाजशास्त्रियों ने विकसित और लोकप्रिय बनाया है, जिनमें पियरे बॉर्डियू, जेम्स कोलमन और रॉबर्ट पुटनम शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार:
- पियरे बॉर्डियू ने सामाजिक पूंजी को एक संसाधन के रूप में देखा जो लोगों के सामाजिक नेटवर्क (संबंधों, सहयोग) से उत्पन्न होता है और उन्हें विभिन्न क्षेत्रों में लाभ प्राप्त करने में मदद करता है।
- जेम्स कोलमन ने इसे उन गुणों के रूप में परिभाषित किया जो सामाजिक संरचना में मौजूद होते हैं और व्यक्तियों को अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करते हैं, जैसे विश्वास, अपेक्षाएँ, और सामाजिक नेटवर्क।
- रॉबर्ट पुटनम ने नागरिक जुड़ाव, सामुदायिक भागीदारी और सामाजिक विश्वास के महत्व को रेखांकित करते हुए अमेरिकी समाज में सामाजिक पूंजी के क्षरण पर ध्यान केंद्रित किया।
यह अवधारणा व्यक्तियों और समुदायों के लिए सामाजिक संबंधों के महत्व पर जोर देती है।
- गलत विकल्प: चूँकि तीनों ने ही इस अवधारणा के विकास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है, इसलिए (d) सही उत्तर है।
प्रश्न 19: ‘प्रत्यक्षवाद’ (Positivism) का जनक किसे माना जाता है?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- अगस्त कॉम्टे
- कार्ल मार्क्स
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: ऑगस्ट कॉम्टे (Auguste Comte) को ‘प्रत्यक्षवाद’ का जनक माना जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: कॉम्टे ने समाजशास्त्र को एक विज्ञान के रूप में स्थापित करने का प्रयास किया, जो प्राकृतिक विज्ञानों के समान पद्धति का उपयोग करता है। उन्होंने तर्क दिया कि समाज को समझने के लिए केवल अनुभवजन्य (empirical) अवलोकन और व्यवस्थित विश्लेषण का उपयोग किया जाना चाहिए। उन्होंने ‘मानव जाति के विकास का तीन चरणों का नियम’ (Law of Three Stages) भी प्रतिपादित किया।
- गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम भी प्रत्यक्षवादी थे और उन्होंने समाजशास्त्र में प्रत्यक्षवादी पद्धति को और विकसित किया (जैसे आत्महत्या के अध्ययन में)। मैक्स वेबर ने व्याख्यात्मक समाजशास्त्र (Verstehen) पर जोर दिया, जो प्रत्यक्षवाद से भिन्न है। कार्ल मार्क्स का दृष्टिकोण ऐतिहासिक भौतिकवाद पर आधारित था।
प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सी सामाजिक समस्या ‘सांप्रदायिकता’ (Communalism) से सीधे तौर पर संबंधित है?
- गरीबी
- भ्रष्टाचार
- धर्म के आधार पर समाज का विभाजन और संघर्ष
- जातिगत भेदभाव
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सांप्रदायिकता का अर्थ है किसी धर्म या धार्मिक समूह के प्रति अत्यधिक निष्ठा या कट्टरता, जो अक्सर अन्य समुदायों के प्रति शत्रुता या अलगाव को बढ़ावा देती है। इसलिए, धर्म के आधार पर समाज का विभाजन और संघर्ष इससे सीधे तौर पर संबंधित है।
- संदर्भ और विस्तार: यह एक सामाजिक-राजनीतिक घटना है जो धार्मिक पहचान को प्राथमिक बनाती है और राजनीतिक लाभ के लिए इसका उपयोग करती है, जिससे सामाजिक एकता कमजोर होती है।
- गलत विकल्प: गरीबी, भ्रष्टाचार और जातिगत भेदभाव महत्वपूर्ण सामाजिक समस्याएं हैं, लेकिन सांप्रदायिकता विशेष रूप से धार्मिक विभाजन और संघर्ष से जुड़ी है। हालाँकि, ये समस्याएं कभी-कभी परस्पर जुड़ी हो सकती हैं।
प्रश्न 21: ‘आत्मसातकरण’ (Assimilation) की प्रक्रिया में क्या होता है?
- दो संस्कृतियाँ समान रूप से मिश्रित हो जाती हैं।
- एक समूह अपनी मूल पहचान खोकर प्रमुख समूह की संस्कृति को अपना लेता है।
- विभिन्न समूह अपनी अलग-अलग संस्कृतियाँ बनाए रखते हैं।
- सांस्कृतिक आदान-प्रदान होता है लेकिन पहचान बनी रहती है।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: आत्मसातकरण वह प्रक्रिया है जिसमें एक अल्पसंख्यक या अधीनस्थ समूह धीरे-धीरे अपनी विशिष्ट सांस्कृतिक पहचान, रीति-रिवाजों और मूल्यों को खो देता है और इसके बजाय प्रमुख समूह की संस्कृति को अपना लेता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह अक्सर प्रवास और सांस्कृतिक संपर्क के संदर्भ में चर्चा की जाती है। उदाहरण के लिए, एक आप्रवासी समूह का अपनी मातृभूमि की संस्कृति को छोड़कर नए देश की संस्कृति को पूरी तरह से अपना लेना।
- गलत विकल्प: (a) यह ‘सांस्कृतिक समावेशन’ (Acculturation) या ‘समेकन’ (Integration) से अधिक मिलता-जुलता है। (c) यह ‘सांस्कृतिक बहुलवाद’ (Cultural Pluralism) है। (d) यह ‘सांस्कृतिक आदान-प्रदान’ (Cultural Exchange) है, न कि आत्मसातकरण।
प्रश्न 22: ‘असंतुलन’ (Dysfunction) की अवधारणा, जो किसी सामाजिक व्यवस्था के अस्तित्व या स्थिरता के लिए हानिकारक है, का संबंध किस समाजशास्त्रीय सिद्धांत से है?
- संघर्ष सिद्धांत
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद
- संरचनात्मक-प्रकार्यवाद
- सामाजिक विनिमय सिद्धांत
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: ‘असंतुलन’ (Dysfunction) की अवधारणा संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural-Functionalism) से जुड़ी है।
- संदर्भ और विस्तार: प्रकार्यवादियों (जैसे रॉबर्ट मर्टन) के अनुसार, समाज की प्रत्येक संरचना या संस्था के कुछ ‘कार्य’ (functions) होते हैं जो समाज की स्थिरता और निरंतरता में योगदान करते हैं। इसके विपरीत, ‘असंतुलन’ उन परिणामों को संदर्भित करता है जो किसी सामाजिक व्यवस्था के अनुकूल नहीं होते और उसके अस्तित्व या स्थिरता के लिए खतरा पैदा करते हैं। मर्टन ने ‘प्रकट कार्य’ (Manifest Function) और ‘अप्रकट कार्य’ (Latent Function) के बीच भी अंतर किया, और उसी तरह ‘प्रकट असंतुलन’ (Manifest Dysfunction) और ‘अप्रकट असंतुलन’ (Latent Dysfunction) भी हो सकते हैं।
- गलत विकल्प: संघर्ष सिद्धांत, प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद और सामाजिक विनिमय सिद्धांत समाज और मानवीय व्यवहार को देखने के लिए भिन्न दृष्टिकोण प्रदान करते हैं।
प्रश्न 23: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) का मूल आधार क्या है?
- समाज में सत्ता और संघर्ष
- सामाजिक संरचनाएं और संस्थाएं
- व्यक्ति अपने वातावरण के साथ प्रतीकों के माध्यम से अंतःक्रिया करते हैं।
- सामाजिक व्यवहार का आर्थिक निर्धारण
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद का मूल आधार यह विचार है कि व्यक्ति अपने आसपास की दुनिया को प्रतीकों (जैसे भाषा, हाव-भाव, इशारे) के माध्यम से समझते हैं और अर्थ बनाते हैं, और ये प्रतीक उनके व्यवहार को निर्देशित करते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) को इस सिद्धांत का संस्थापक माना जाता है। उनका तर्क था कि ‘मैं’ (I) और ‘मी’ (Me) का विकास सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से होता है, और हम ‘अन्य’ (others) की भूमिका निभाकर (taking the role of the other) दुनिया को समझते हैं।
- गलत विकल्प: (a) संघर्ष सिद्धांत का आधार है। (b) संरचनात्मक-प्रकार्यवाद का आधार है। (d) मार्क्सवाद का आधार है।
प्रश्न 24: एम. एन. श्रीनिवास (M. N. Srinivas) द्वारा प्रस्तुत ‘संस.कृ.ती.करण’ (Sanskritization) की अवधारणा क्या बताती है?
- निम्न जाति का उच्च जाति के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और जीवन शैली को अपनाना
- उच्च जाति का निम्न जाति के रीति-रिवाजों को अपनाना
- सभी जातियों द्वारा पश्चिमी संस्कृति को अपनाना
- जाति व्यवस्था का समाप्त होना
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: एम. एन. श्रीनिवास ने ‘संस.कृ.ती.करण’ को उस प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जिसमें निम्न या मध्य जातियों के लोग उच्च, विशेष रूप से द्विजा (Brahminical) जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों, जीवन-शैली, creencias (मान्यताओं) और प्रतिष्ठा को अपनाते हैं ताकि वे सामाजिक पदानुक्रम में अपनी स्थिति को ऊपर उठा सकें।
- संदर्भ और विस्तार: उन्होंने यह अवधारणा अपनी पुस्तक “Religion and Society Among the Coorgs of South India” (1952) में प्रस्तुत की। यह सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है।
- गलत विकल्प: (b) विपरीत प्रक्रिया को ‘डी-संस.कृ.ती.करण’ (De-sanskritization) कहा जा सकता है। (c) यह ‘पश्चिमीकरण’ (Westernization) है। (d) यह जाति व्यवस्था के अंत का वर्णन है, न कि गतिशीलता का।
प्रश्न 25: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) के संदर्भ में, ‘विश्वास’ (Trust) का क्या महत्व है?
- यह सामाजिक संबंधों को कमजोर करता है।
- यह लेन-देन की लागत को बढ़ाता है।
- यह सहयोग को बढ़ावा देता है और लेन-देन को सुगम बनाता है।
- यह केवल औपचारिक समझौतों पर निर्भर करता है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सही उत्तर: सामाजिक पूंजी के निर्माण में विश्वास एक अत्यंत महत्वपूर्ण घटक है। जब लोगों के बीच विश्वास होता है, तो वे अधिक आसानी से सहयोग करते हैं, जानकारी साझा करते हैं, और एक-दूसरे पर भरोसा करते हैं, जिससे लेन-देन की लागत कम हो जाती है और विभिन्न सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक गतिविधियों को सुगम बनाया जा सकता है।
- संदर्भ और विस्तार: रॉबर्ट पुटनम जैसे समाजशास्त्रियों ने इस पर बहुत जोर दिया है कि उच्च स्तर का सामाजिक विश्वास नागरिक समाज और लोकतांत्रिक संस्थाओं की मजबूती के लिए आवश्यक है।
- गलत विकल्प: विश्वास सामाजिक संबंधों को मजबूत करता है, लागत को कम करता है (न कि बढ़ाता है), और यह अनौपचारिक (केवल औपचारिक नहीं) संबंधों और अपेक्षाओं पर भी निर्भर करता है।