संसद में सड़क नहीं! लोकसभा में हंगामे और संसदीय गरिमा का संकट: स्पीकर बिरला का कड़ा संदेश
चर्चा में क्यों? (Why in News?):
भारत की संसदीय प्रणाली, जो विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र का आधार स्तंभ है, हाल के दिनों में लगातार बढ़ते व्यवधानों और हंगामों के कारण सुर्खियों में रही है। इसी कड़ी में, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विपक्ष के लगातार हंगामे और असंसदीय व्यवहार पर गहरी नाराजगी व्यक्त की। उन्होंने कड़े शब्दों में चेतावनी देते हुए कहा, “यह संसद है, कोई सड़क नहीं… यहां सड़क जैसा व्यवहार नहीं चलेगा।” स्पीकर बिरला की यह टिप्पणी न केवल उस विशेष दिन के हंगामे पर एक तात्कालिक प्रतिक्रिया थी, बल्कि भारतीय संसद में संसदीय मर्यादा के क्षरण पर बढ़ती चिंता का प्रतीक भी है। यह घटना हमें इस महत्वपूर्ण विषय पर गहराई से विचार करने का अवसर देती है कि संसदीय बहस की पवित्रता क्यों आवश्यक है और इन व्यवधानों के लोकतंत्र पर क्या निहितार्थ हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटना संसदीय प्रक्रिया, अध्यक्ष की भूमिका, अनुशासन और भारतीय राजनीति में बढ़ते गतिरोध को समझने का एक महत्वपूर्ण बिंदु है।
संसदीय मर्यादा: क्या और क्यों? (Parliamentary Decorum: What and Why?)
भारत का संसद भवन सिर्फ एक इमारत नहीं, बल्कि यह ‘लोकतंत्र का मंदिर’ है। यह वह सर्वोच्च मंच है जहाँ राष्ट्र की नीतियों का निर्माण होता है, कानूनों पर बहस होती है, और जनता के चुने हुए प्रतिनिधि अपने मतदाताओं की आकांक्षाओं और चिंताओं को उठाते हैं। इस पवित्र स्थान पर होने वाली कार्यवाही की अपनी एक गरिमा, एक मर्यादा होती है, जिसे ‘संसदीय मर्यादा’ या ‘संसदीय शिष्टाचार’ कहते हैं।
संसदीय मर्यादा क्या है?
संसदीय मर्यादा से तात्पर्य उन स्थापित नियमों, परंपराओं, आचार संहिताओं और अपेक्षाओं से है जो संसद सदस्यों (सांसदों) को सदन के भीतर और बाहर अपने आचरण में बनाए रखनी होती हैं। इसका उद्देश्य सुनिश्चित करना है कि सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चले, बहस सार्थक हो, और हर सदस्य को अपनी बात रखने का उचित अवसर मिले। इसमें शामिल हैं:
- स्पीकर या पीठासीन अधिकारी का सम्मान।
- एक-दूसरे के प्रति सम्मानजनक भाषा और व्यवहार।
- सदन के नियमों और प्रक्रियाओं का पालन।
- व्यक्तिगत आक्षेपों या अमर्यादित टिप्पणियों से बचना।
- जब कोई सदस्य बोल रहा हो तो शांति बनाए रखना।
- सदन की संपत्ति का सम्मान करना।
संसदीय मर्यादा क्यों आवश्यक है?
संसदीय मर्यादा केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि लोकतंत्र के सुचारू संचालन के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:
- लोकतंत्र की नींव: मर्यादित व्यवहार यह सुनिश्चित करता है कि बहस तर्कसंगत हो, न कि शोर-शराबे वाली। यह विचारों के मुक्त आदान-प्रदान और सर्वसम्मति या निर्णय तक पहुंचने के लिए आवश्यक है।
- संस्थागत पवित्रता: संसद सर्वोच्च विधायी निकाय है। इसका सम्मान बनाए रखना आवश्यक है ताकि जनता का इसमें विश्वास बना रहे। अमर्यादित व्यवहार इसकी पवित्रता को कम करता है।
- प्रभावी कानून निर्माण: सार्थक बहस और चर्चा के बिना गुणवत्तापूर्ण कानून बनाना असंभव है। हंगामे से सदन का बहुमूल्य समय बर्बाद होता है, जिससे विधायी कार्य बाधित होता है।
- जनता के प्रति जवाबदेही: सांसद जनता के प्रतिनिधि होते हैं। जब वे बहस के बजाय हंगामा करते हैं, तो वे उन मुद्दों पर चर्चा करने से बचते हैं जिनके लिए उन्हें चुना गया है, जिससे उनकी जवाबदेही कम होती है।
- अध्यक्ष की भूमिका का सम्मान: स्पीकर सदन के संरक्षक होते हैं। उनके निर्देशों और फैसलों का सम्मान करना संसदीय व्यवस्था का मूल सिद्धांत है।
भारत के संविधान और लोकसभा व राज्यसभा की प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियमों में सदस्यों के आचरण से संबंधित प्रावधान हैं, जैसे लोकसभा के नियम 349 से 356, जो सदस्यों के आचरण और शिष्टाचार से संबंधित हैं। इन नियमों का पालन करना प्रत्येक सांसद का कर्तव्य है।
हंगामे की संस्कृति: एक गहरा विश्लेषण (Culture of Ruckus: A Deep Analysis)
लोकसभा या विधानसभाओं में हंगामा अब एक आम दृश्य बन गया है। यह सिर्फ एक सामयिक घटना नहीं, बल्कि भारतीय संसदीय राजनीति का एक ‘संस्कृति’ बन चुकी है, जिसके गहरे निहितार्थ हैं।
ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (Historical Perspective)
स्वतंत्रता के शुरुआती दशकों में, भारतीय संसद में बहस का स्तर उच्च कोटि का था। पंडित जवाहरलाल नेहरू, डॉ. बी.आर. अंबेडकर, अटल बिहारी वाजपेयी जैसे नेता अपनी विद्वत्तापूर्ण और तार्किक बहसों के लिए जाने जाते थे। विरोध भी तार्किक और नियमों के भीतर होता था। हालांकि, 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक की शुरुआत से, विशेषकर गठबंधन सरकारों के दौर में, संसदीय व्यवधानों की प्रवृत्ति बढ़ने लगी। यह प्रक्रिया धीरे-धीरे तेज हुई और आज यह एक विकराल रूप ले चुकी है।
हंगामे के कारण (Reasons for Ruckus)
हंगामे के कई कारण हो सकते हैं, जिनमें से कुछ वैध विरोध के रूप में शुरू होते हैं, लेकिन अक्सर नियंत्रण से बाहर हो जाते हैं:
- सरकार को जवाबदेह ठहराना: विपक्ष का मुख्य कार्य सरकार को उसकी नीतियों और कार्यों के लिए जवाबदेह ठहराना है। जब उन्हें लगता है कि उनकी बात नहीं सुनी जा रही है या उनके मुद्दों पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जा रहा है, तो वे विरोध दर्ज कराने के लिए हंगामा करते हैं।
- विरोध दर्ज कराना: किसी विधेयक या नीति पर असहमति या विरोध दर्ज कराने का यह एक तरीका हो सकता है, खासकर जब उन्हें लगता है कि उन्हें बोलने का पर्याप्त समय नहीं मिल रहा है या उनके संशोधनों पर विचार नहीं किया जा रहा है।
- जनता का ध्यान आकर्षित करना: संसद में किए गए हंगामे को अक्सर मीडिया में कवरेज मिलती है, जिससे संबंधित मुद्दे पर सार्वजनिक ध्यान आकर्षित होता है। यह एक राजनीतिक रणनीति हो सकती है।
- नियमों और परंपराओं का उल्लंघन: कई बार सांसद जानबूझकर सदन के नियमों और अध्यक्ष के निर्देशों का उल्लंघन करते हैं, जिससे सदन में अराजकता फैलती है।
- संसदीय समितियों की उपेक्षा: जब महत्वपूर्ण विधेयकों को संसदीय समितियों के पास गहन जांच के लिए नहीं भेजा जाता, तो विपक्ष सदन के पटल पर ही उनका विस्तृत विरोध करने का प्रयास करता है।
- सरकार की ओर से भी गतिरोध: कई बार सत्ता पक्ष भी महत्वपूर्ण विधेयकों पर बहस से बचने या विपक्ष को बोलने से रोकने के लिए अप्रत्यक्ष रूप से गतिरोध उत्पन्न करता है।
- राजनीतिक स्कोर-सेटिंग: आगामी चुनावों को ध्यान में रखते हुए, राजनीतिक दल सदन में खुद को मुखर दिखाने और विरोधी दल को कमजोर साबित करने के लिए भी हंगामे का सहारा लेते हैं।
सकारात्मक बनाम नकारात्मक पहलू (Positive vs. Negative Aspects)
यद्यपि कुछ लोग सीमित और रणनीतिक विरोध को ‘लोकतंत्र की जीवंतता’ का संकेत मानते हैं, लेकिन हंगामे के नकारात्मक पहलू कहीं अधिक गंभीर हैं:
सीमित सकारात्मक पहलू (Limited Positive Aspects):
- अंतिम उपाय: कभी-कभी, जब विपक्ष को लगता है कि उसे अन्य सभी संवैधानिक और संसदीय माध्यमों से चुप कराया जा रहा है, तो हंगामा अंतिम उपाय बन जाता है।
- मुद्दों को उजागर करना: हंगामा किसी महत्वपूर्ण मुद्दे को तत्काल सार्वजनिक ध्यान में ला सकता है, जिसे अन्यथा अनदेखा किया जा सकता है।
व्यापक नकारात्मक पहलू (Extensive Negative Aspects):
- विधायी समय की बर्बादी: हंगामा सदन के बहुमूल्य समय को बर्बाद करता है, जिससे महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा नहीं हो पाती या वे बिना बहस के पारित हो जाते हैं। इससे कानून की गुणवत्ता प्रभावित होती है।
- वित्तीय लागत: संसद सत्रों के प्रत्येक घंटे का करोड़ों रुपये का खर्च आता है। हंगामे से यह पैसा बर्बाद होता है, जो अंततः करदाताओं का पैसा है।
- संसदीय गरिमा का क्षरण: शोर-शराबा, नारेबाज़ी और अध्यक्ष की अवमानना संसद की प्रतिष्ठा को धूमिल करती है, जिससे जनता का उसमें विश्वास कम होता है।
- विधायी पक्षाघात: लगातार हंगामे से सदन का कार्य ठप पड़ जाता है, जिससे सरकार महत्वपूर्ण कानून पारित करने में असमर्थ हो जाती है।
- अध्यक्ष के अधिकार का क्षरण: जब सदस्य अध्यक्ष के निर्देशों की अवहेलना करते हैं, तो अध्यक्ष के पद का सम्मान कम होता है और उनकी कार्यवाही को नियंत्रित करने की क्षमता प्रभावित होती है।
- सार्वजनिक विश्वास में कमी: जब लोग संसद को एक बहस के मंच के बजाय एक ‘कुश्ती के मैदान’ के रूप में देखते हैं, तो उनका लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास कम होता है।
जैसा कि अक्सर कहा जाता है, संसद बहस करने का स्थान है, हंगामा करने का नहीं। सार्थक बहस ही लोकतंत्र को मजबूत बनाती है।
स्पीकर की भूमिका और शक्तियाँ (Role and Powers of the Speaker)
लोकसभा का अध्यक्ष (स्पीकर) सदन का सर्वोच्च पीठासीन अधिकारी होता है। अध्यक्ष न केवल सदन की कार्यवाही का संचालन करता है, बल्कि वह सदन की गरिमा और सदस्यों के अधिकारों का भी संरक्षक होता है।
अध्यक्ष की प्रमुख भूमिकाएँ:
- सदन का संरक्षक: अध्यक्ष पूरे सदन का प्रतिनिधित्व करता है और उसकी गरिमा व अधिकारों का संरक्षण करता है। वह सदन के मुखिया होते हैं।
- कार्यवाही का संचालन: अध्यक्ष यह सुनिश्चित करता है कि सदन की कार्यवाही नियमों और प्रक्रियाओं के अनुसार चले।
- अनुशासन बनाए रखना: सदन में अनुशासन और व्यवस्था बनाए रखने की प्राथमिक जिम्मेदारी अध्यक्ष की होती है।
- व्याख्याकार: अध्यक्ष सदन के नियमों और प्रक्रियाओं की व्याख्या करता है और उसके निर्णय अंतिम होते हैं।
- निष्पक्षता: अध्यक्ष से अपेक्षा की जाती है कि वह अपने पद पर रहते हुए निष्पक्ष रहे, भले ही वह किसी राजनीतिक दल से जुड़ा हो।
अध्यक्ष की शक्तियाँ (मुख्यतः व्यवस्था बनाए रखने के संदर्भ में):
सदन में व्यवस्था बनाए रखने के लिए अध्यक्ष के पास कई शक्तियाँ होती हैं:
- शब्दों को हटाना (Expunction): अध्यक्ष को लगता है कि किसी सदस्य द्वारा प्रयोग किए गए शब्द असंसदीय, मानहानिकारक या अभद्र हैं, तो उन्हें कार्यवाही से हटाने का आदेश दे सकता है (लोकसभा नियम 380)।
- अशांत सदस्यों को निर्देश (Naming a Member): यदि कोई सदस्य लगातार अध्यक्ष के अधिकार की अवहेलना करता है या सदन के नियमों का दुरुपयोग करता है, तो अध्यक्ष उसका नाम ले सकता है (लोकसभा नियम 373)। नाम लिए जाने के बाद, संबंधित सदस्य को सदन से बाहर जाना पड़ सकता है।
- निलंबन (Suspension): अध्यक्ष किसी सदस्य को कुछ समय के लिए सदन की कार्यवाही से निलंबित कर सकता है। यह आमतौर पर तब होता है जब कोई सदस्य अध्यक्ष द्वारा नाम लिए जाने के बाद भी सदन में अव्यवस्था फैलाना जारी रखता है (लोकसभा नियम 374)। नियम 374A के तहत, गंभीर मामलों में अध्यक्ष किसी सदस्य को लगातार पाँच बैठकों या सत्र के शेष दिनों के लिए निलंबित कर सकता है।
- स्थगन (Adjournment): यदि सदन में अत्यधिक अव्यवस्था हो, तो अध्यक्ष सदन की कार्यवाही को थोड़े समय (कुछ घंटों या दिनों) के लिए स्थगित कर सकता है।
- विधेयकों का प्रमाणीकरण: अध्यक्ष यह प्रमाणित करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, और उसका निर्णय अंतिम होता है।
- समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति: अध्यक्ष विभिन्न संसदीय समितियों के अध्यक्षों की नियुक्ति करता है।
अध्यक्ष के सामने चुनौतियाँ:
आजकल के राजनीतिक माहौल में अध्यक्ष के लिए अपनी भूमिका का निर्वहन करना अत्यंत चुनौतीपूर्ण हो गया है। लगातार बढ़ते हंगामे, नियमों की अवहेलना, और राजनीतिक ध्रुवीकरण ने अध्यक्ष के पद को दबाव में ला दिया है। ऐसे में अध्यक्ष की तटस्थता और अधिकार दोनों पर सवाल उठ सकते हैं, जिससे उनका कार्य और भी कठिन हो जाता है। स्पीकर बिरला का ‘सड़क जैसा व्यवहार’ पर दिया गया बयान इसी बढ़ती चुनौती और अध्यक्ष की निराशा को दर्शाता है।
लोकसभा में बिरला का बयान: महत्व और निहितार्थ (Birla’s Statement: Significance and Implications)
स्पीकर ओम बिरला का यह बयान कि ‘यह संसद है, कोई सड़क नहीं…’, भारतीय संसदीय इतिहास में एक महत्वपूर्ण टिप्पणी है, जो कई गहरे निहितार्थों को दर्शाती है।
बयान का महत्व:
- बढ़ती निराशा का संकेत: यह टिप्पणी केवल एक तात्कालिक प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि संसदीय कार्यवाही में लगातार हो रहे व्यवधानों से अध्यक्ष की बढ़ती निराशा को दर्शाती है। यह दिखाता है कि सदन को सुचारू रूप से चलाने में उन्हें कितनी कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है।
- संसदीय गरिमा का आह्वान: ‘सड़क जैसा व्यवहार’ की तुलना एक शक्तिशाली उपमा है, जो संसद और सड़क के बीच के मूलभूत अंतर को रेखांकित करती है। सड़क पर अराजकता, शोर-शराबा और अव्यवस्था स्वीकार्य हो सकती है, लेकिन संसद में, जहाँ कानून बनते हैं और नीतियों पर गंभीर बहस होती है, ऐसे व्यवहार की कोई जगह नहीं है। यह एक स्पष्ट आह्वान है कि सांसद संसदीय मर्यादा बनाए रखें।
- नैतिक जिम्मेदारी का स्मरण: यह बयान सांसदों को उनकी नैतिक और संवैधानिक जिम्मेदारी की याद दिलाता है। वे जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि हैं, और उनका प्राथमिक कर्तव्य अपने मतदाताओं के लिए काम करना और विधायी प्रक्रिया में भाग लेना है, न कि व्यवधान पैदा करना।
- जनता के प्रति संदेश: अध्यक्ष का यह बयान सीधे तौर पर जनता को भी एक संदेश देता है कि उनके प्रतिनिधि संसद में कैसा व्यवहार कर रहे हैं। यह सांसदों पर जनता के दबाव को बढ़ाने का भी एक प्रयास हो सकता है ताकि वे अपने आचरण में सुधार करें।
- एक चेतावनी: यह बयान भविष्य में ऐसे व्यवहार के प्रति अध्यक्ष के कड़े रुख का संकेत है। यह चेतावनी है कि अध्यक्ष व्यवस्था बनाए रखने के लिए अपनी शक्तियों का अधिक कड़ाई से उपयोग कर सकते हैं।
निहितार्थ:
- संसदीय गतिरोध में वृद्धि: यदि सांसदों ने इस चेतावनी पर ध्यान नहीं दिया, तो आने वाले समय में सदन में गतिरोध और बढ़ सकता है, जिससे महत्वपूर्ण विधायी कार्य और प्रभावित होंगे।
- दंडात्मक कार्रवाइयों की संभावना: स्पीकर भविष्य में अधिक सदस्यों को निलंबित करने या अन्य दंडात्मक कार्रवाइयाँ करने के लिए मजबूर हो सकते हैं, जिससे सदन में उपस्थिति और राजनीतिक प्रतिनिधित्व प्रभावित होगा।
- जनता के विश्वास में कमी: यदि संसद का कार्य लगातार बाधित होता रहा, तो जनता का लोकतांत्रिक संस्थाओं में विश्वास और कम हो सकता है, जिससे व्यवस्था के प्रति उदासीनता या निराशा बढ़ सकती है।
- लोकतंत्र के लिए खतरा: स्वस्थ बहस के बिना कानून बनाना और नीतियों पर चर्चा करना असंभव है। यदि संसद प्रभावी ढंग से कार्य नहीं कर पाती है, तो यह अंततः भारत के जीवंत लोकतंत्र के लिए खतरा बन सकती है।
स्पीकर बिरला का बयान एक ‘जागृति कॉल’ है, जो भारतीय लोकतंत्र के इस महत्वपूर्ण स्तंभ के समक्ष खड़ी गंभीर चुनौती को उजागर करता है। यह सभी हितधारकों – सरकार, विपक्ष और नागरिकों – के लिए विचार करने का समय है कि हम अपनी संसद की गरिमा और प्रभावशीलता को कैसे बहाल कर सकते हैं।
आगे की राह: समाधान के प्रयास (Way Forward: Solutions and Efforts)
भारतीय संसद में बढ़ते व्यवधानों और संसदीय मर्यादा के क्षरण को रोकना आज की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक चुनौतियों में से एक है। इसके लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जिसमें सभी हितधारकों – सरकार, विपक्ष, अध्यक्ष और नागरिक – की सक्रिय भागीदारी हो।
यहाँ कुछ संभावित समाधान और आगे की राह पर विचार किया गया है:
- सर्वदलीय बैठकें (All-Party Meetings):
- सत्र शुरू होने से पहले और सत्र के दौरान भी नियमित रूप से सर्वदलीय बैठकें आयोजित की जानी चाहिए।
- इन बैठकों में सरकार को महत्वपूर्ण विधायी एजेंडा साझा करना चाहिए और विपक्ष को अपने मुख्य मुद्दों को उठाने का अवसर मिलना चाहिए।
- गतिरोधों को हल करने और सदन के सुचारू संचालन के लिए एक आम सहमति बनाने का प्रयास किया जाना चाहिए।
- संसदीय समितियों का सुदृढीकरण (Strengthening Parliamentary Committees):
- अधिकांश विधेयकों को विस्तृत जांच के लिए संबंधित संसदीय स्थायी समितियों के पास भेजा जाना चाहिए। समितियाँ गैर-पक्षपातपूर्ण माहौल में विस्तृत विचार-विमर्श और विशेषज्ञ सलाह के साथ विधेयकों की गुणवत्ता में सुधार कर सकती हैं।
- इससे सदन का समय बचेगा और सार्थक बहस के लिए अधिक अवसर मिलेंगे।
- नियमों का कड़ाई से पालन और प्रवर्तन (Strict Adherence to and Enforcement of Rules):
- सांसदों को सदन के नियमों और अध्यक्ष के निर्देशों का पालन करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए।
- अध्यक्ष को नियम तोड़ने वाले सदस्यों के खिलाफ बिना किसी पक्षपात के अपनी शक्तियों (जैसे निलंबन) का प्रयोग करने में दृढ़ रहना चाहिए। हालांकि, इन शक्तियों का प्रयोग अत्यंत सावधानी और विवेक के साथ किया जाना चाहिए ताकि विपक्ष की आवाज़ को दबाने का आरोप न लगे।
- “ज़ीरो ऑवर” और “प्रश्न काल” का प्रभावी उपयोग (Effective Use of Zero Hour & Question Hour):
- ये संसदीय उपकरण सरकार से जवाबदेही मांगने के लिए महत्वपूर्ण हैं। इनके समय को संरक्षित किया जाना चाहिए और इनका उपयोग वास्तविक मुद्दों को उठाने के लिए किया जाना चाहिए, न कि हंगामे के लिए।
- सरकार को भी इन अवधियों में पूछे गए सवालों का सम्मानपूर्वक और समय पर जवाब देना चाहिए।
- नैतिक आचरण संहिता (Code of Conduct):
- सांसदों के लिए एक स्पष्ट और व्यापक नैतिक आचरण संहिता विकसित की जानी चाहिए, जिसमें सदन के भीतर और बाहर उनके व्यवहार के लिए दिशानिर्देश हों।
- इस संहिता के उल्लंघन के लिए उचित दंडात्मक प्रावधान होने चाहिए।
- मीडिया और जनता की भूमिका (Role of Media and Public):
- मीडिया को संसदीय कार्यवाही को अधिक जिम्मेदारी से कवर करना चाहिए, केवल हंगामे को नहीं बल्कि महत्वपूर्ण बहसों और कानून निर्माण को भी उजागर करना चाहिए।
- जनता को भी अपने प्रतिनिधियों से जवाबदेही मांगनी चाहिए और उनसे संसद में सार्थक योगदान की अपेक्षा करनी चाहिए। मतदाताओं को ऐसे प्रतिनिधियों को प्रोत्साहित करना चाहिए जो बहस और रचनात्मक कार्य में विश्वास रखते हों।
- अध्यक्ष की भूमिका का सम्मान (Respecting Speaker’s Role):
- सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों को अध्यक्ष के पद की गरिमा का सम्मान करना चाहिए और उनके निर्देशों का पालन करना चाहिए। अध्यक्ष के पद की निष्पक्षता सुनिश्चित करना और उसे बनाए रखना भी महत्वपूर्ण है।
- प्रोडक्टिविटी मैट्रिक्स (Productivity Metrics):
- संसद के कामकाज की प्रोडक्टिविटी को मापने के लिए स्पष्ट मैट्रिक्स विकसित किए जा सकते हैं, जिसमें बहस में बिताया गया समय, पारित विधेयक, और चर्चा की गुणवत्ता शामिल हो। इससे सांसदों पर बेहतर प्रदर्शन का दबाव बन सकता है।
भारत का लोकतंत्र तभी मजबूत होगा जब उसकी संसद एक प्रभावी और गरिमापूर्ण तरीके से कार्य करेगी। स्पीकर बिरला का बयान एक चेतावनी है, जिसे सभी को गंभीरता से लेना चाहिए। यह समय है जब सांसद अपने मतभेदों को बहस और तर्क के माध्यम से हल करें, न कि शोर-शराबे और व्यवधानों से, ताकि ‘लोकतंत्र का मंदिर’ अपनी पवित्रता और उद्देश्य को बनाए रख सके।
निष्कर्ष (Conclusion)
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की ‘संसद में सड़क नहीं’ वाली टिप्पणी भारतीय संसदीय लोकतंत्र के समक्ष एक गंभीर चुनौती को उजागर करती है – वह चुनौती है संसदीय मर्यादा का क्षरण और बढ़ते हंगामे की प्रवृत्ति। संसद, बहस, चर्चा और विचार-विमर्श का सर्वोच्च मंच है, जहाँ राष्ट्र के भाग्य का निर्धारण होता है। जब यह मंच अराजकता और व्यवधानों का अखाड़ा बन जाता है, तो न केवल विधायी कार्य बाधित होता है, बल्कि जनता का लोकतांत्रिक प्रक्रिया में विश्वास भी डगमगाता है।
संसदीय मर्यादा केवल औपचारिकता नहीं, बल्कि प्रभावी शासन, गुणवत्तापूर्ण कानून निर्माण और जनता के प्रति जवाबदेही सुनिश्चित करने के लिए अपरिहार्य है। स्पीकर की भूमिका सदन के संरक्षक की होती है, और उनके निर्देशों का सम्मान करना प्रत्येक सांसद का कर्तव्य है। हालांकि, आधुनिक राजनीति में बढ़ते ध्रुवीकरण और तात्कालिक राजनीतिक लाभ की होड़ ने इस पवित्र संस्था को गंभीर दबाव में डाल दिया है।
आगे की राह स्पष्ट है: सभी हितधारकों को सामूहिक जिम्मेदारी लेनी होगी। सरकार को विपक्ष को पर्याप्त अवसर प्रदान करने होंगे, विपक्ष को रचनात्मक विरोध और नियम-पालन को प्राथमिकता देनी होगी, और अध्यक्ष को अपने पद की गरिमा बनाए रखते हुए नियमों को दृढ़ता से लागू करना होगा। संसदीय समितियों को मजबूत करना, बहस और चर्चा के लिए अधिक समय आवंटित करना, और सांसदों के लिए नैतिक आचरण संहिता का पालन करना इस दिशा में महत्वपूर्ण कदम हो सकते हैं।
अंततः, संसद का प्रभावी कार्य संचालन भारत के लोकतंत्र की रीढ़ है। यदि हम इसे स्वस्थ और क्रियाशील बनाए रखना चाहते हैं, तो हमें ‘संसद में सड़क जैसा व्यवहार’ त्यागकर, ‘संसद में सार्थक बहस’ की संस्कृति को पुनः स्थापित करना होगा। यह केवल कानून निर्माताओं का ही नहीं, बल्कि हर जागरूक नागरिक का कर्तव्य है कि वह इस ‘लोकतंत्र के मंदिर’ की पवित्रता और प्रभावशीलता को बनाए रखने में अपना योगदान दे।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)
1. भारतीय संसद के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. लोकसभा अध्यक्ष का पद भारत के संविधान के अनुच्छेद 93 के तहत प्रदान किया गया है।
2. अध्यक्ष सदन की बैठक में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत से निर्वाचित होता है।
3. अध्यक्ष को केवल साधारण बहुमत से पारित एक प्रस्ताव द्वारा हटाया जा सकता है, बशर्ते हटाने के प्रस्ताव के आशय की कम से कम 14 दिन की पूर्व सूचना दी गई हो।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a)
व्याख्या:
कथन 1 सही है। संविधान का अनुच्छेद 93 लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के प्रावधान से संबंधित है।
कथन 2 सही है। अध्यक्ष सदन के सदस्यों के बीच से निर्वाचित होता है और उसके चुनाव के लिए सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का साधारण बहुमत आवश्यक होता है।
कथन 3 गलत है। अध्यक्ष को लोकसभा के तत्कालीन सभी सदस्यों के बहुमत से पारित प्रस्ताव द्वारा ही हटाया जा सकता है। ‘तत्कालीन सभी सदस्य’ का अर्थ है सदन की कुल सदस्य संख्या में से रिक्तियों को घटाने के बाद जो संख्या बचती है। यह साधारण बहुमत से अधिक है। प्रस्ताव लाने से पहले 14 दिन की पूर्व सूचना आवश्यक होती है।
2. लोकसभा अध्यक्ष की शक्तियों और कार्यों के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
(a) अध्यक्ष यह तय करता है कि कोई विधेयक धन विधेयक है या नहीं, और उसका निर्णय इस संबंध में अंतिम होता है।
(b) अध्यक्ष सदन की कार्यवाही को निलंबित या स्थगित कर सकता है।
(c) किसी सदस्य को सदन से निलंबित करने की शक्ति केवल अध्यक्ष के पास होती है और यह शक्ति नियम 374A के तहत उपयोग की जा सकती है।
(d) अध्यक्ष अपने मत का प्रयोग केवल उस स्थिति में कर सकता है जब किसी विषय पर पक्ष और विपक्ष में मत बराबर हों (निर्णायक मत)।
उत्तर: (c)
व्याख्या:
कथन (a), (b) और (d) सही हैं। अध्यक्ष धन विधेयक का प्रमाणन करता है, सदन को स्थगित कर सकता है, और केवल टाई होने पर निर्णायक मत देता है।
कथन (c) सही नहीं है। अध्यक्ष नियम 373 के तहत किसी सदस्य को सदन से ‘बाहर जाने का निर्देश’ दे सकता है। नियम 374 और 374A के तहत, अध्यक्ष किसी सदस्य को निलंबित करने का ‘नाम’ ले सकता है, जिसके बाद सदन को उस सदस्य को निलंबित करने का प्रस्ताव पारित करना होता है। हालांकि, अध्यक्ष सीधे तौर पर सदस्य को निलंबित नहीं करता है, बल्कि सदन उस पर प्रस्ताव के माध्यम से निर्णय लेता है, लेकिन व्यवहार में अध्यक्ष के नाम लेने के बाद निलंबन लगभग निश्चित होता है। फिर भी, ‘केवल अध्यक्ष के पास’ यह शक्ति सीधे तौर पर नहीं होती है, यह सदन के अनुमोदन से होती है।
3. भारतीय संसद में ‘ज़ीरो ऑवर’ के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. यह भारतीय संसदीय नवाचार है और प्रक्रिया के नियमों में इसका उल्लेख नहीं है।
2. सांसद बिना किसी पूर्व सूचना के तत्काल सार्वजनिक महत्व के मामलों को उठा सकते हैं।
3. यह ‘प्रश्न काल’ के तुरंत बाद आता है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या:
तीनों कथन सही हैं। ‘ज़ीरो ऑवर’ भारतीय संसदीय प्रक्रिया की एक अनूठी विशेषता है जो 1962 से प्रचलन में है और यह नियमों में लिखित रूप से शामिल नहीं है। यह प्रश्न काल के तुरंत बाद आता है, और सदस्य बिना पूर्व सूचना के महत्वपूर्ण मुद्दों को उठा सकते हैं।
4. लोकसभा में किसी सदस्य को अध्यक्ष द्वारा निलंबित करने से संबंधित प्रावधान भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में दिए गए हैं?
(a) अनुच्छेद 101
(b) अनुच्छेद 102
(c) अनुच्छेद 105
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं
उत्तर: (d)
व्याख्या:
सदस्यों के निलंबन से संबंधित प्रावधान संविधान में नहीं, बल्कि लोकसभा के प्रक्रिया तथा कार्य-संचालन नियमों में दिए गए हैं, विशेष रूप से नियम 373, 374 और 374A में। संविधान अनुच्छेद 105 में सांसदों के विशेषाधिकारों का उल्लेख करता है, लेकिन अनुशासन संबंधी विस्तृत नियम संसद स्वयं बनाती है।
5. निम्नलिखित में से कौन-सा संसदीय विशेषाधिकार का उल्लंघन माना जा सकता है?
1. संसद सदस्य द्वारा सदन में असंसदीय भाषा का प्रयोग।
2. किसी सदस्य के विरुद्ध सदन के बाहर मानहानिकारक बयान देना।
3. सदन में किसी सदस्य के बोलने के अधिकार में बाधा डालना।
4. किसी समिति की रिपोर्ट को उसके सदन में प्रस्तुत होने से पहले प्रकाशित करना।
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1, 2 और 3
(b) केवल 2, 3 और 4
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4
उत्तर: (d)
व्याख्या:
संसदीय विशेषाधिकार वे अधिकार और उन्मुक्तियाँ हैं जो सांसदों को उनके कर्तव्यों का प्रभावी ढंग से निर्वहन करने के लिए प्रदान किए जाते हैं। इन सभी स्थितियों में संसदीय विशेषाधिकारों का उल्लंघन हो सकता है। सदन में असंसदीय भाषा का प्रयोग सदन की गरिमा का उल्लंघन है, जबकि अन्य बिंदु सीधे तौर पर सदस्यों के अधिकारों या सदन की कार्यवाही की गोपनीयता का उल्लंघन करते हैं, जो विशेषाधिकारों के दायरे में आते हैं।
6. भारतीय संसद में ‘कौंसल ऑफ़ मिनिस्टर्स’ (मंत्रिपरिषद) किसके प्रति सामूहिक रूप से उत्तरदायी होती है?
(a) राष्ट्रपति
(b) प्रधानमंत्री
(c) लोकसभा
(d) संसद के दोनों सदन
उत्तर: (c)
व्याख्या:
भारतीय संविधान के अनुच्छेद 75(3) के अनुसार, मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इसका अर्थ है कि यदि लोकसभा मंत्रिपरिषद के प्रति अविश्वास प्रस्ताव पारित करती है, तो पूरी मंत्रिपरिषद को इस्तीफा देना पड़ता है।
7. ‘लैम्डक डक सेशन’ (Lame-duck Session) शब्द का क्या अर्थ है?
(a) उस सत्र से संबंधित जब संसद अपने सामान्य कार्यकाल से पहले भंग हो जाती है।
(b) नए लोकसभा के चुनाव के बाद आयोजित होने वाला पहला सत्र।
(c) वर्तमान लोकसभा का अंतिम सत्र जब नई लोकसभा का चुनाव हो चुका होता है।
(d) वह सत्र जब सरकार के पास बहुमत नहीं होता है।
उत्तर: (c)
व्याख्या:
‘लैम्डक सेशन’ का अर्थ है वर्तमान लोकसभा का अंतिम सत्र, जब नई लोकसभा का चुनाव हो चुका होता है। इस सत्र में ऐसे सदस्य (लैम्डक) भाग लेते हैं जो वर्तमान लोकसभा के सदस्य तो हैं, लेकिन नई लोकसभा के लिए फिर से निर्वाचित नहीं हुए हैं।
8. लोकसभा में विश्वास प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. विश्वास प्रस्ताव केवल सरकार द्वारा लाया जाता है, जबकि अविश्वास प्रस्ताव केवल विपक्ष द्वारा।
2. विश्वास प्रस्ताव पारित होने पर सरकार बनी रहती है, जबकि अविश्वास प्रस्ताव पारित होने पर सरकार को इस्तीफा देना पड़ता है।
3. दोनों प्रस्तावों को पारित करने के लिए उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d)
व्याख्या:
तीनों कथन सही हैं। विश्वास प्रस्ताव सरकार अपना बहुमत सिद्ध करने के लिए लाती है। अविश्वास प्रस्ताव विपक्ष सरकार के खिलाफ अपना बहुमत खोने का आरोप लगाने के लिए लाता है। दोनों ही साधारण बहुमत से पारित होते हैं।
9. संसदीय समितियों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
1. संसदीय समितियाँ सदन की बैठकों की तुलना में अधिक विस्तृत और गैर-पक्षपातपूर्ण तरीके से मुद्दों की जांच करती हैं।
2. स्थायी समितियाँ वे होती हैं जो समय-समय पर गठित की जाती हैं और उनका कार्यकाल निश्चित होता है।
3. तदर्थ समितियाँ किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए गठित की जाती हैं और उनका कार्य पूरा होने पर वे भंग हो जाती हैं।
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c)
व्याख्या:
कथन 1 और 3 सही हैं। समितियाँ विस्तृत जांच के लिए महत्वपूर्ण हैं और तदर्थ समितियाँ विशिष्ट उद्देश्य के लिए होती हैं।
कथन 2 गलत है। स्थायी समितियाँ वे होती हैं जो स्थायी प्रकृति की होती हैं और निरंतर कार्य करती रहती हैं (जैसे प्राक्कलन समिति, लोक लेखा समिति)। तदर्थ समितियाँ (ad-hoc committees) समय-समय पर विशिष्ट उद्देश्यों के लिए गठित की जाती हैं और उनका कार्य पूरा होने पर भंग हो जाती हैं।
10. भारतीय संसद में ‘पंगु सत्र’ (Lame-duck session) का क्या तात्पर्य है?
(a) वह सत्र जिसमें किसी विधेयक पर चर्चा के बिना उसे पारित कर दिया जाता है।
(b) वह सत्र जिसमें अध्यक्ष को हटाने का प्रस्ताव लाया जाता है।
(c) वर्तमान लोकसभा का अंतिम सत्र, जब नई लोकसभा के सदस्य चुने जा चुके होते हैं।
(d) वह सत्र जिसमें सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल नहीं होता है।
उत्तर: (c)
व्याख्या:
‘पंगु सत्र’ या ‘लैम्डक सेशन’ (Lame-duck session) उस अंतिम सत्र को संदर्भित करता है जो नई लोकसभा के लिए चुनाव होने के बाद वर्तमान लोकसभा द्वारा आयोजित किया जाता है। इस सत्र में वे सदस्य भाग लेते हैं जो वर्तमान लोकसभा के सदस्य तो हैं, लेकिन नई लोकसभा के लिए फिर से चुने नहीं गए हैं। इन सदस्यों को ‘लैम्डक’ कहा जाता है क्योंकि वे अब प्रभावी रूप से जनता का प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं।
मुख्य परीक्षा (Mains)
(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)
1. “संसद में बढ़ता गतिरोध और अध्यक्ष की बढ़ती निराशा भारतीय संसदीय लोकतंत्र के लिए एक गंभीर चुनौती है।” इस कथन के आलोक में, संसदीय कार्यवाही में व्यवधानों के कारणों का विश्लेषण कीजिए और इन व्यवधानों को कम करने के लिए प्रभावी उपाय सुझाइए।
2. भारतीय संसद में लोकसभा अध्यक्ष की भूमिका केवल कार्यवाही संचालित करने तक सीमित नहीं है, बल्कि वह सदन की गरिमा के संरक्षक भी होते हैं। इस भूमिका के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डालिए और अध्यक्ष के समक्ष आने वाली चुनौतियों का वर्णन कीजिए।
3. “लोकतंत्र का मंदिर बहस के लिए है, न कि हंगामे के लिए।” इस कथन के संदर्भ में, भारतीय संसद में बहस की गुणवत्ता के क्षरण के प्रभावों का मूल्यांकन कीजिए और सुझाव दीजिए कि एक मजबूत और सार्थक संसदीय संस्कृति को कैसे बढ़ावा दिया जा सकता है।
4. भारत में संसदीय मर्यादा के महत्व पर चर्चा कीजिए। क्या आपको लगता है कि संसदीय विशेषाधिकारों का उपयोग अक्सर हंगामे को जायज ठहराने के लिए किया जाता है? इस संदर्भ में, सांसदों के लिए आचार संहिता और नैतिक आचरण की आवश्यकता पर अपने विचार प्रस्तुत कीजिए।
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