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संसद का अपमान या रणनीतिक चाल? राज्यसभा गतिरोध को समझें

संसद का अपमान या रणनीतिक चाल? राज्यसभा गतिरोध को समझें

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, संसद के उच्च सदन, राज्यसभा, में एक अभूतपूर्व घटनाक्रम देखने को मिला जहाँ प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी सदन में उपस्थित नहीं हुए। इस अनुपस्थिति ने एक जोरदार राजनीतिक बहस छेड़ दी, जिसमें कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे “सदन का अपमान” करार दिया। वहीं, केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने बचाव करते हुए कहा कि जब वे (शाह) जवाब दे रहे थे तो प्रधान मंत्री को क्यों बुलाया जाना चाहिए था। इस तीखी नोकझोंक के बाद, विपक्षी दलों ने विरोध स्वरूप सदन से वॉकआउट कर दिया। यह घटनाक्रम न केवल संसदीय प्रक्रियाओं और गरिमा पर सवाल उठाता है, बल्कि भारत की शासन व्यवस्था में प्रधान मंत्री की भूमिका और जवाबदेही के महत्वपूर्ण आयामों को भी उजागर करता है। यह ब्लॉग पोस्ट इस घटना के विभिन्न पहलुओं, इसके ऐतिहासिक संदर्भ, संवैधानिक निहितार्थों और UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इसके महत्व का गहराई से विश्लेषण करेगा।

संसदीय गरिमा और प्रधान मंत्री की उपस्थिति: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

भारतीय संसद, दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का हृदय है। यह न केवल कानून बनाने का मंच है, बल्कि सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करने और जनता की आवाज को बुलंद करने का भी एक महत्वपूर्ण माध्यम है। प्रधान मंत्री, सरकार के मुखिया के तौर पर, सदन में अपनी उपस्थिति और अपने मंत्रालयों के प्रति जवाबदेही के माध्यम से इस प्रणाली का एक केंद्रीय स्तंभ होते हैं।

ऐतिहासिक रूप से, प्रधान मंत्रियों ने संसदीय बहसों में सक्रिय रूप से भाग लिया है, चाहे वह महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा हो, राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर बयान देना हो, या अविश्वास प्रस्तावों का सामना करना हो। प्रधान मंत्री की उपस्थिति को अक्सर सदन के लिए एक सम्मान और सरकार की ओर से पारदर्शिता और जवाबदेही का प्रतीक माना जाता है।

हालांकि, कभी-कभी ऐसी परिस्थितियाँ उत्पन्न हुई हैं जब प्रधान मंत्री संसद में उपस्थित नहीं हुए। इसके पीछे कई कारण हो सकते हैं – व्यस्त कार्यक्रम, स्वास्थ्य संबंधी कारण, या स्वयं निर्णय कि किसी विशेष मुद्दे पर कोई अन्य मंत्री अधिक उपयुक्त रूप से जवाब दे सकता है। लेकिन महत्वपूर्ण यह है कि इन अनुपस्थितियों का सामना हमेशा राजनीतिक सरगर्मी और सार्वजनिक जाँच से हुआ है।

क्या हुआ था? घटना का विस्तृत विश्लेषण

यह घटना तब हुई जब राज्यसभा में एक महत्वपूर्ण बहस चल रही थी। घटना के मूल में प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति थी, जिसके कारण एक तीखी तकरार हुई:

* **विपक्ष का आरोप:** कांग्रेस नेता मल्लिकार्जुन खड़गे और अन्य विपक्षी नेताओं ने प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति को “सदन का घोर अपमान” बताया। उनका तर्क था कि प्रधान मंत्री को, विशेष रूप से जब राष्ट्रीय महत्व के मुद्दे विचाराधीन हों, सदन में उपस्थित होना चाहिए और सीधे सवालों के जवाब देने चाहिए। उनकी अनुपस्थिति को उन्होंने विपक्ष के प्रति और सदन की प्रक्रिया के प्रति असम्मान के रूप में देखा।
* **सरकार का बचाव:** केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने विपक्ष के आरोपों का जोरदार खंडन किया। उन्होंने स्पष्ट किया कि प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति में, संबंधित मंत्रालय के मंत्री (इस मामले में, संभवतः वे स्वयं या कोई अन्य नामित मंत्री) सदन में जवाब देने के लिए अधिकृत हैं। उनका तर्क था कि जब एक सक्षम मंत्री सदन में उपस्थित होकर जवाबदेही निभा रहा हो, तो प्रधान मंत्री को बुलाने का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने इसे विपक्ष द्वारा कार्यवाही को बाधित करने का एक प्रयास बताया।
* **विपक्ष का वॉकआउट:** इस जवाबी बयानबाजी और तकरार के बाद, विपक्षी दलों ने विरोध स्वरूप सदन से वॉकआउट कर दिया। वॉकआउट संसदीय विरोध का एक रूप है, जिसका उद्देश्य किसी मुद्दे पर अपनी असहमति और विरोध को प्रभावी ढंग से व्यक्त करना होता है।

यह घटनाक्रम संसदीय राजनीति में एक पुरानी बहस को फिर से जीवित करता है: क्या प्रधान मंत्री की व्यक्तिगत उपस्थिति हमेशा आवश्यक है, या क्या उनके प्रतिनिधियों द्वारा प्रभावी ढंग से जवाब देना पर्याप्त है?

संवैधानिक ढाँचा और संसदीय प्रक्रियाएँ

भारतीय संविधान मंत्रियों को सदन के प्रति जवाबदेह बनाता है, न कि केवल व्यक्तिगत रूप से प्रधान मंत्री को। संविधान के अनुच्छेद 75(3) के अनुसार, मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है। इसका अर्थ है कि सरकार तब तक सत्ता में रह सकती है जब तक उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त है।

हालांकि, यह सामूहिक जिम्मेदारी ही प्रधान मंत्री की केंद्रीय भूमिका को रेखांकित करती है। वे मंत्रियों के विभागों का आवंटन करते हैं, नीतियों के निर्माण का नेतृत्व करते हैं, और देश की दिशा तय करते हैं। इसलिए, जब राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर सदन में चर्चा होती है, तो प्रधान मंत्री से अपेक्षा की जाती है कि वे अपनी उपस्थिति से महत्वपूर्ण योगदान दें।

राज्यसभा में, जो कि राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है, प्रधान मंत्री की उपस्थिति विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो सकती है, खासकर जब राज्यों से संबंधित या राष्ट्रीय नीतियों पर चर्चा हो रही हो।

यहां कुछ प्रमुख संसदीय प्रक्रियाएं हैं जो इस संदर्भ में प्रासंगिक हैं:

* **प्रश्न काल (Question Hour):** यह वह समय होता है जब सदस्य मंत्रियों से प्रश्न पूछते हैं। प्रधान मंत्री भी प्रश्न काल में अपने प्रश्नों का उत्तर दे सकते हैं, हालांकि वे सभी मंत्रालयों के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए बाध्य नहीं होते।
* **शून्य काल (Zero Hour):** यह वह समय है जब सदस्य अत्यंत महत्वपूर्ण और तात्कालिक मुद्दों को बिना पूर्व सूचना के उठाते हैं।
* **विशेषाधिकार प्रस्ताव (Privilege Motion):** यदि किसी सदस्य को लगता है कि सदन या उसके किसी सदस्य के विशेषाधिकारों का हनन हुआ है, तो वे विशेषाधिकार प्रस्ताव ला सकते हैं।
* **अविश्वास प्रस्ताव (No-Confidence Motion):** लोकसभा में सरकार के खिलाफ लाया जाने वाला यह सबसे शक्तिशाली उपकरण है।

इस विशेष मामले में, विपक्षी दलों की नाराजगी इस बात से थी कि वे प्रधान मंत्री से सीधे सुनना चाहते थे, बजाय इसके कि वे किसी अन्य मंत्री के जवाब से संतुष्ट हों। यह इस भावना से उत्पन्न हुआ कि प्रधान मंत्री ही अंतिम जवाबदेही रखते हैं।

प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति: क्या यह वास्तव में ‘अपमान’ है?

“सदन का अपमान” एक मजबूत आरोप है। यह आरोप अक्सर तब लगाया जाता है जब कोई सदस्य या मंत्री सदन की गरिमा, प्रक्रियाओं या सदस्यों के प्रति अनुचित व्यवहार करता है।

**विपक्ष के दृष्टिकोण से:**

* **जवाबदेही का क्षरण:** प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति को जवाबदेही के क्षरण के रूप में देखा जा सकता है। यदि प्रधान मंत्री स्वयं महत्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करने या स्पष्टीकरण देने से बचते हैं, तो यह एक खतरनाक मिसाल कायम कर सकता है।
* **सम्मान की कमी:** यह सदन के सदस्यों के प्रति, और अप्रत्यक्ष रूप से, जनता के प्रति सम्मान की कमी को दर्शाता है, जिन्होंने अपने प्रतिनिधियों को सदन में भेजा है।
* **महत्वपूर्ण मुद्दों का अवमूल्यन:** यदि प्रधान मंत्री उपस्थित नहीं होते हैं, तो यह संदेश जा सकता है कि विचाराधीन मुद्दा उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि विपक्ष उसे मानता है।

**सरकार के दृष्टिकोण से (अमित शाह के जवाब के आधार पर):**

* **प्रतिनिधित्व का सिद्धांत:** सरकार के भीतर, मंत्री प्रधान मंत्री के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करते हैं। यदि कोई मंत्री, जो उस विभाग का प्रभारी है या जिसे जिम्मेदारी सौंपी गई है, सदन में मौजूद है और जवाब दे रहा है, तो यह संसदीय मानदंडों के अनुसार स्वीकार्य है।
* **कार्यकुशलता और प्राथमिकता:** प्रधान मंत्री अत्यधिक व्यस्त व्यक्ति होते हैं। वे देश भर में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई जिम्मेदारियां निभाते हैं। कभी-कभी, व्यस्त कार्यक्रम या अन्य अत्यावश्यक कार्य उनकी संसदीय उपस्थिति को सीमित कर सकते हैं। यह आवश्यक नहीं कि यह जानबूझकर की गई अवहेलना हो।
* **रणनीतिक निर्णय:** यह भी संभव है कि सरकार रणनीतिक रूप से यह निर्णय लेती है कि किसी विशेष मुद्दे पर प्रधान मंत्री की तुलना में कोई अन्य मंत्री अधिक प्रभावी ढंग से जवाब दे सकता है, या वह प्रधान मंत्री को अन्य महत्वपूर्ण कार्यों से मुक्त रखना चाहती है।

यह तर्क कि “मैं जवाब दे रहा हूं, उन्हें क्यों बुलाना?” एक यांत्रिक दृष्टिकोण को दर्शाता है। संसदीय बहसों में, प्रधान मंत्री की उपस्थिति मात्र सूचना प्रदान करने से कहीं अधिक है; यह एक राजनीतिक और प्रतीकात्मक महत्व रखती है।

## वॉकआउट का अर्थ और प्रभाव

विपक्षी दलों द्वारा किया गया वॉकआउट एक शक्तिशाली विरोध का प्रतीक है। इसके कई उद्देश्य हो सकते हैं:

1. **ध्यान आकर्षित करना:** यह मीडिया और जनता का ध्यान उस मुद्दे की ओर आकर्षित करता है जिसके कारण वॉकआउट हुआ।
2. **अपनी स्थिति को मजबूत करना:** यह विपक्षी एकता को प्रदर्शित करता है और सरकार पर दबाव बनाने का एक तरीका है।
3. **अस्वीकृति व्यक्त करना:** यह स्पष्ट रूप से दर्शाता है कि विपक्ष वर्तमान स्थिति या सरकारी प्रतिक्रिया से संतुष्ट नहीं है।
4. **संसदीय कार्यवाही में व्यवधान:** यह सरकार के एजेंडे को बाधित कर सकता है, जिससे उसे अपनी योजनाओं को आगे बढ़ाने में कठिनाई हो सकती है।

हालांकि, वॉकआउट के अपने नुकसान भी हैं:

* **अवसर का नुकसान:** वॉकआउट करने वाले दल सदन में बहस में भाग लेने, अपने तर्कों को प्रस्तुत करने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर मतदान करने का अवसर खो देते हैं।
* **जवाबदेही से पलायन:** कभी-कभी, इसे विपक्ष द्वारा मुश्किल सवालों से बचने के तरीके के रूप में भी देखा जा सकता है।

इस मामले में, विपक्षी दलों ने वॉकआउट करके अपनी असहमति को तीखे ढंग से व्यक्त किया, लेकिन साथ ही उन्होंने सदन के भीतर रहकर सरकार पर दबाव बनाने का एक मौका गंवा दिया।

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: शासन, लोकतंत्र और संसद

यह घटनाक्रम UPSC परीक्षा के विभिन्न पहलुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:

1. शासन (Governance)

* **जवाबदेही (Accountability):** सरकार की जवाबदेही, विशेष रूप से प्रधान मंत्री और मंत्रिपरिषद की, भारतीय शासन का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है। यह घटना इस बात की पड़ताल करती है कि जवाबदेही कैसे सुनिश्चित की जाती है – क्या यह व्यक्तिगत उपस्थिति से जुड़ी है या मंत्रालय के सामूहिक उत्तरदायित्व से।
* **पारदर्शिता (Transparency):** प्रधान मंत्री और सरकार के कार्यों में पारदर्शिता की आवश्यकता पर प्रकाश डालती है।
* **निर्णय लेना (Decision Making):** प्रधान मंत्री के कार्यभार और उनकी संसदीय उपस्थिति के बीच संतुलन।

2. लोकतंत्र (Democracy)

* **संसदीय लोकतंत्र (Parliamentary Democracy):** भारत एक संसदीय लोकतंत्र है, जहाँ संसद सरकार पर नियंत्रण रखती है। प्रधान मंत्री की भूमिका और संसद के प्रति उनकी जवाबदेही इस प्रणाली की सफलता के लिए केंद्रीय है।
* **विपक्ष की भूमिका (Role of Opposition):** एक स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। यह घटना दिखाती है कि विपक्ष कैसे सरकार की कार्रवाई पर सवाल उठाता है और अपनी असहमति व्यक्त करता है।
* **नागरिक भागीदारी (Citizen Participation):** संसद में होने वाली बहसें और निर्णय नागरिकों को सूचित करते हैं और उन्हें प्रभावित करते हैं। प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति इस प्रक्रिया को कैसे प्रभावित कर सकती है?

3. संसद और उसकी प्रक्रियाएँ

* **संसदीय शिष्टाचार (Parliamentary Etiquette):** प्रधान मंत्री की उपस्थिति या अनुपस्थिति को कैसे देखा जाना चाहिए? क्या इसे “अपमान” के रूप में वर्गीकृत किया जा सकता है?
* **विभिन्न विधायी उपकरण:** प्रश्न काल, शून्य काल, वॉकआउट, स्थगन प्रस्ताव – इन सभी का उपयोग संसदीय बहसों और विरोध के लिए कैसे किया जाता है।
* **विधायी बाधा (Legislative Gridlock):** जब विरोध के कारण सदन की कार्यवाही बाधित होती है।

4. वर्तमान घटनाक्रम (Current Affairs)

UPSC सिविल सेवा परीक्षा के लिए वर्तमान घटनाओं का सीधा संबंध है। इस प्रकार की घटनाओं का विश्लेषण करना, इसके पीछे के कारणों को समझना और इसके दीर्घकालिक प्रभावों का अनुमान लगाना परीक्षा में सफलता के लिए महत्वपूर्ण है।

माध्यमिक और तृतीयक स्तर की सामग्री (Secondary and Tertiary Content)

यह घटना भारत की राजनीतिक संस्कृति और संसदीय प्रथाओं के बारे में भी बहुत कुछ बताती है।

* **राजनीतिक ध्रुवीकरण:** अक्सर, ऐसे मुद्दे राजनीतिक ध्रुवीकरण को बढ़ाते हैं, जहाँ सरकार और विपक्ष एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाते हैं।
* **जनता की राय:** जनता ऐसे मुद्दों पर क्या सोचती है? क्या वे प्रधान मंत्री की व्यक्तिगत उपस्थिति को अधिक महत्व देते हैं, या वे संतुष्ट हैं यदि कोई अन्य मंत्री प्रभावी ढंग से जवाब दे रहा है?
* **मीडिया की भूमिका:** मीडिया इन घटनाओं को कैसे प्रस्तुत करता है और यह जनता की राय को कैसे प्रभावित करता है।

समान ऐतिहासिक घटनाएँ (Similar Historical Incidents)

क्या अतीत में भी ऐसे अवसर आए हैं जब प्रधान मंत्रियों की अनुपस्थिति ने राजनीतिक विवादों को जन्म दिया हो? हाँ।

* कई प्रधानमंत्रियों पर व्यस्त कार्यक्रम के कारण संसद में कम उपस्थिति के आरोप लगे हैं।
* कुछ मामलों में, प्रधान मंत्री ने स्वयं निर्णय लिया कि वे किसी विशेष बहस में भाग नहीं लेंगे, या उन्होंने अपनी अनुपस्थिति के लिए तर्क दिए।
* अविश्वास प्रस्तावों के दौरान प्रधान मंत्री की उपस्थिति अत्यंत महत्वपूर्ण मानी जाती है, और उनकी अनुपस्थिति को गंभीर राजनीतिक चूक के रूप में देखा जाता है।

यह समझना महत्वपूर्ण है कि प्रत्येक घटना अपने विशिष्ट संदर्भ और राजनीतिक माहौल में अद्वितीय होती है।

आगे की राह और निष्कर्ष

यह घटना संसदीय लोकतंत्र के लिए एक महत्वपूर्ण सीख प्रदान करती है।

* **स्पष्ट संवाद:** सरकार और विपक्ष के बीच संसदीय प्रक्रियाओं और प्रधान मंत्री की उपस्थिति को लेकर अधिक स्पष्ट संवाद की आवश्यकता है।
* **संसदीय नियमों का पालन:** सभी हितधारकों को संसदीय नियमों और शिष्टाचार का पालन करना चाहिए ताकि सदन की गरिमा बनी रहे।
* **संतुलित दृष्टिकोण:** प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति को केवल “अपमान” या “रणनीतिक चाल” के रूप में देखने के बजाय, इसके पीछे के कारणों और इसके व्यापक प्रभावों को समझने का प्रयास किया जाना चाहिए।
* **जवाबदेही का सुदृढ़ीकरण:** यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि जवाबदेही का तंत्र मजबूत रहे, भले ही प्रधान मंत्री व्यक्तिगत रूप से हर बहस में उपस्थित न हों।

संक्षेप में, राज्यसभा में प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति और उसके बाद का गतिरोध, भारतीय संसदीय प्रणाली में जवाबदेही, सम्मान और राजनीतिक आदान-प्रदान के जटिल संतुलन को रेखांकित करता है। यह केवल एक घटना नहीं है, बल्कि एक अवसर है जो हमें अपनी लोकतांत्रिक संस्थाओं के कामकाज पर विचार करने और उन्हें मजबूत करने के लिए प्रेरित करता है।

UPSC परीक्षा की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए, इस तरह की घटनाओं का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है। यह न केवल वर्तमान घटनाओं की समझ प्रदान करता है, बल्कि शासन, राजनीति और लोकतंत्र के मौलिक सिद्धांतों के बारे में भी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होती है?
(a) अनुच्छेद 74(1)
(b) अनुच्छेद 75(2)
(c) अनुच्छेद 75(3)
(d) अनुच्छेद 77(1)
उत्तर: (c) अनुच्छेद 75(3)
व्याख्या: अनुच्छेद 75(3) स्पष्ट रूप से कहता है कि मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होगी, जिसका अर्थ है कि सरकार तब तक सत्ता में रह सकती है जब तक उसे लोकसभा का विश्वास प्राप्त है।

2. राज्यसभा में प्रधान मंत्री की उपस्थिति के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
1. प्रधान मंत्री के लिए राज्यसभा में उपस्थित होना संवैधानिक रूप से अनिवार्य है, भले ही वे उस सदन के सदस्य न हों।
2. प्रधान मंत्री, एक मंत्री के रूप में, किसी भी सदन में बोल सकते हैं, लेकिन मतदान केवल उस सदन में कर सकते हैं जिसके वे सदस्य हैं।
3. किसी महत्वपूर्ण मुद्दे पर प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति को संसदीय शिष्टाचार का उल्लंघन माना जा सकता है।
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (c) 2 और 3
व्याख्या: अनुच्छेद 75(2) के अनुसार, मंत्रियों को राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करना होता है। अनुच्छेद 88 प्रधान मंत्री सहित सभी मंत्रियों को संसद के किसी भी सदन में बोलने और भाग लेने का अधिकार देता है, लेकिन मतदान केवल उसी सदन में कर सकते हैं जिसके वे सदस्य हैं। प्रधान मंत्री के लिए राज्यसभा में उपस्थित होना संवैधानिक रूप से अनिवार्य नहीं है यदि वे लोकसभा के सदस्य हैं, लेकिन महत्वपूर्ण मुद्दों पर उनकी अनुपस्थिति को शिष्टाचार का उल्लंघन माना जा सकता है।

3. संसदीय विरोध का एक रूप जिसमें सदस्य सदन की कार्यवाही से बाहर चले जाते हैं, क्या कहलाता है?
(a) स्थगन (Adjournment)
(b) वॉकआउट (Walkout)
(c) बहिष्कार (Boycott)
(d) हंगामा (Disruption)
उत्तर: (b) वॉकआउट (Walkout)
व्याख्या: वॉकआउट वह प्रक्रिया है जिसमें विपक्षी या अन्य सदस्य किसी मुद्दे पर विरोध जताने के लिए सदन की कार्यवाही को बीच में छोड़कर चले जाते हैं।

4. भारतीय संसद में ‘प्रश्न काल’ का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) महत्वपूर्ण विधेयकों पर बहस करना।
(b) मंत्रियों से प्रश्न पूछना और सरकार की नीतियों पर स्पष्टीकरण प्राप्त करना।
(c) संसद के सदस्यों के विशेषाधिकारों पर चर्चा करना।
(d) वित्तीय मामलों पर निर्णय लेना।
उत्तर: (b) मंत्रियों से प्रश्न पूछना और सरकार की नीतियों पर स्पष्टीकरण प्राप्त करना।
व्याख्या: प्रश्न काल वह समय होता है जब सदस्य मंत्रियों से उनके संबंधित मंत्रालयों के कामकाज से संबंधित प्रश्न पूछते हैं, जिससे सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित होती है।

5. राज्यसभा की क्या भूमिका है, विशेषकर राज्यों के प्रतिनिधित्व के संदर्भ में?
(a) यह केंद्र सरकार की कार्यकारी शक्ति को नियंत्रित करती है।
(b) यह राज्यों के हितों की रक्षा करती है और संघवाद को मजबूत करती है।
(c) यह केवल विधायी प्रस्तावों को पारित करती है।
(d) यह प्रधान मंत्री के चयन के लिए जिम्मेदार है।
उत्तर: (b) यह राज्यों के हितों की रक्षा करती है और संघवाद को मजबूत करती है।
व्याख्या: राज्यसभा को राज्यों का परिषद कहा जाता है और यह राज्यों के विधायी प्रतिनिधित्व के रूप में कार्य करती है, जिससे संघवाद की भावना को बढ़ावा मिलता है।

6. यदि कोई मंत्री प्रधान मंत्री के अनुपस्थित होने पर सदन में जवाब दे रहा है, तो यह संसदीय प्रणाली में किस सिद्धांत को दर्शाता है?
(a) व्यक्तिगत जवाबदेही (Individual Accountability)
(b) प्रधान मंत्री की सर्वोच्चता (Supremacy of Prime Minister)
(c) सामूहिक जिम्मेदारी (Collective Responsibility)
(d) शक्तियों का पृथक्करण (Separation of Powers)
उत्तर: (c) सामूहिक जिम्मेदारी (Collective Responsibility)
व्याख्या: मंत्रिपरिषद सामूहिक रूप से सदन के प्रति उत्तरदायी होती है। इसका मतलब है कि किसी एक मंत्री के कार्य या अनुपस्थिति को पूरी मंत्रिपरिषद के कार्य के रूप में देखा जा सकता है, और एक मंत्री दूसरे के उत्तरदायित्व को पूरा कर सकता है।

7. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. प्रधान मंत्री भारत गणराज्य का प्रमुख होता है।
2. भारत में, सरकार का प्रमुख प्रधान मंत्री होता है, न कि राष्ट्रपति।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) दोनों 1 और 2
(d) न तो 1 और न ही 2
उत्तर: (b) केवल 2
व्याख्या: भारत में, राष्ट्रपति राज्य का प्रमुख (Head of State) होता है, जबकि प्रधान मंत्री सरकार का प्रमुख (Head of Government) होता है। कथन 1 गलत है, कथन 2 सही है।

8. संसदीय प्रणाली में ‘वॉकआउट’ का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
(a) सरकार के खिलाफ अविश्वास व्यक्त करना।
(b) सदन की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाना।
(c) विधायी प्रस्तावों पर मतदान में भाग लेना।
(d) राष्ट्रपति को धन्यवाद प्रस्ताव पारित करना।
उत्तर: (a) सरकार के खिलाफ अविश्वास व्यक्त करना।
व्याख्या: वॉकआउट आमतौर पर किसी मुद्दे पर घोर असहमति या विरोध जताने के लिए किया जाता है, जो अक्सर सरकार की नीतियों या कार्यों के खिलाफ होता है।

9. निम्नलिखित में से कौन सा विषय संसद के दोनों सदनों द्वारा विचार-विमर्श किया जाता है?
(a) धन विधेयक (Money Bill)
(b) सरकारी कार्य
(c) अविश्वास प्रस्ताव
(d) उपरोक्त सभी
उत्तर: (d) उपरोक्त सभी
व्याख्या: जबकि धन विधेयक केवल लोकसभा में पेश किया जाता है और राज्यसभा उसमें संशोधन नहीं कर सकती, सरकारी कार्य और अविश्वास प्रस्ताव जैसे महत्वपूर्ण संसदीय मुद्दे दोनों सदनों में चर्चा का विषय बन सकते हैं (हालांकि अविश्वास प्रस्ताव केवल लोकसभा में पेश किया जा सकता है)। प्रधान मंत्री की उपस्थिति का मुद्दा भी चर्चा के लिए दोनों सदनों में उठाया जा सकता है।

10. प्रधान मंत्री की संसदीय उपस्थिति पर विवाद, भारतीय शासन में किस प्रमुख पहलू पर प्रकाश डालता है?
(a) केवल संसदीय प्रक्रियाएँ।
(b) केवल राजनीतिक दल।
(c) जवाबदेही, पारदर्शिता और सरकार का कामकाज।
(d) केवल अंतर्राष्ट्रीय संबंध।
उत्तर: (c) जवाबदेही, पारदर्शिता और सरकार का कामकाज।
व्याख्या: प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति से जुड़े विवाद सीधे तौर पर सरकार की जवाबदेही, जनता के प्रति पारदर्शिता और प्रधान मंत्री सहित सरकार के कामकाज के तरीके से जुड़े हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. “भारतीय संसदीय लोकतंत्र में, प्रधान मंत्री की उपस्थिति को केवल एक औपचारिकता नहीं, बल्कि जवाबदेही और पारदर्शिता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण स्तंभ माना जाना चाहिए।” इस कथन के आलोक में, हाल की राज्यसभा घटना पर चर्चा करें और बताएं कि इस तरह की अनुपस्थिति संसदीय गरिमा को कैसे प्रभावित कर सकती है।
2. भारतीय संविधान के तहत मंत्रिपरिषद की सामूहिक जिम्मेदारी के सिद्धांत की व्याख्या करें। क्या प्रधान मंत्री की व्यक्तिगत अनुपस्थिति इस सिद्धांत को कमजोर करती है, या यह स्वयं में मंत्रालय की सामूहिक जिम्मेदारी का हिस्सा है? विश्लेषण करें।
3. एक स्वस्थ लोकतंत्र में विपक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। प्रधान मंत्री की अनुपस्थिति के विरोध में विपक्षी दलों द्वारा किए गए ‘वॉकआउट’ जैसे साधनों की प्रभावशीलता और सीमाओं का मूल्यांकन करें।
4. संसदीय प्रणाली में, विधायी निकायों के प्रति कार्यकारी की जवाबदेही सुनिश्चित करने हेतु किन तंत्रों का प्रावधान है? प्रधान मंत्री की राज्यसभा में अनुपस्थिति के संदर्भ में इन तंत्रों की प्रभावशीलता पर प्रकाश डालें।

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