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संविधान मंथन: ज्ञान की अग्निपरीक्षा, चूकें नहीं!

संविधान मंथन: ज्ञान की अग्निपरीक्षा, चूकें नहीं!

साथियों, भारतीय लोकतंत्र की जटिलताओं और इसकी संवैधानिक बारीकियों को समझना हर प्रतियोगी परीक्षा के लिए अनिवार्य है। क्या आप अपने ज्ञान की गहराई को परखने के लिए तैयार हैं? आइए, आज की इस विशेष प्रश्नोत्तरी के माध्यम से अपनी संवैधानिक समझ को धार दें और परीक्षा के लिए अपनी तैयारी को एक नया आयाम दें!

भारतीय राजव्यवस्था और संविधान अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों को हल करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘न्याय’ का आदर्श किन-किन रूपों में सुनिश्चित किया गया है?

  1. सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक
  2. कानूनी, सामाजिक और धार्मिक
  3. आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक
  4. सामाजिक, धार्मिक और आर्थिक

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: प्रस्तावना (Preamble) के अनुसार, भारतीय संविधान अपने सभी नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय सुनिश्चित करता है। यह आदर्श भारत की सामाजिक-आर्थिक और राजनीतिक व्यवस्था को निर्देशित करता है।
  • संदर्भ और विस्तार: सामाजिक न्याय का अर्थ है जाति, लिंग, धर्म आदि के आधार पर किसी भी प्रकार का भेदभाव न होना। आर्थिक न्याय का अर्थ है धन, आय और संपत्ति के वितरण में समानता। राजनीतिक न्याय का अर्थ है सभी नागरिकों को समान राजनीतिक अधिकार, जैसे मतदान का अधिकार और सार्वजनिक पदों को प्राप्त करने का अवसर।
  • गलत विकल्प: प्रस्तावना में ‘धार्मिक’ या ‘सांस्कृतिक’ न्याय का उल्लेख प्रत्यक्ष रूप से नहीं है, हालांकि ये सामाजिक न्याय के अंतर्निहित पहलू हो सकते हैं। कानूनी न्याय भी राजनीतिक न्याय का हिस्सा है।

प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन भारत के राष्ट्रपति के महाभियोग की प्रक्रिया में भाग लेता है?

  1. केवल संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य
  2. संसद के दोनों सदनों के सभी सदस्य
  3. लोकसभा के निर्वाचित सदस्य और राज्यसभा के मनोनीत सदस्य
  4. लोकसभा के सभी सदस्य और राज्यसभा के मनोनीत सदस्य

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राष्ट्रपति पर महाभियोग (Impeachment) चलाने की प्रक्रिया अनुच्छेद 61 में वर्णित है। इस प्रक्रिया में संसद के दोनों सदनों (लोकसभा और राज्यसभा) के सभी सदस्य भाग लेते हैं, चाहे वे निर्वाचित हों या मनोनीत।
  • संदर्भ और विस्तार: महाभियोग का आरोप संसद के किसी भी सदन द्वारा लगाया जा सकता है, बशर्ते कि यह आरोप लगाने वाले सदन के सदस्यों की कुल संख्या के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों द्वारा प्रस्तावित हो और उस प्रस्ताव को पारित करने के लिए उस सदन की कुल सदस्यता के कम से कम दो-तिहाई सदस्यों का बहुमत हो। दूसरा सदन आरोपों की जांच करेगा और यदि आरोप सिद्ध होते हैं, तो दूसरा सदन भी दो-तिहाई बहुमत से राष्ट्रपति को हटाने का प्रस्ताव पारित कर सकता है।
  • गलत विकल्प: राष्ट्रपति के महाभियोग में राज्यों की विधानसभाओं के सदस्य भाग नहीं लेते, न ही इसमें केवल निर्वाचित सदस्यों का प्रावधान है।

प्रश्न 3: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों (DPSP) को “संवैधानिक उपचारों का अधिकार” के अधीन रखता है, जिससे उन्हें प्रवर्तनीय (enforceable) बनाया जा सके?

  1. अनुच्छेद 37
  2. अनुच्छेद 38
  3. अनुच्छेद 39
  4. अनुच्छेद 40

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 37 स्पष्ट रूप से कहता है कि राज्य के नीति-निर्देशक तत्व (DPSP) देश के शासन में मूलभूत हैं और विधि बनाने में इन तत्वों को लागू करना राज्य का कर्तव्य होगा। हालांकि, यह भी कहा गया है कि ये तत्व न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं होंगे। इसका अर्थ यह नहीं है कि वे अप्रवर्तनीय हैं, बल्कि यह कि सरकार उन्हें लागू करने के लिए कानून बना सकती है।
  • संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 37, 38, 39, 40 आदि, भाग IV के अंतर्गत आते हैं। अनुच्छे 37 DPSP की प्रकृति और महत्व बताता है, जबकि अन्य अनुच्छेद विशिष्ट निर्देशक तत्व प्रदान करते हैं। DPSP को सीधे तौर पर मौलिक अधिकारों की तरह न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती, परंतु यह राज्य के कर्तव्य हैं और इन्हें लागू करने के लिए कानून बनाए जा सकते हैं।
  • गलत विकल्प: अनुच्छेद 38, 39, और 40 अन्य महत्वपूर्ण DPSP से संबंधित हैं, लेकिन अनुच्छेद 37 ही वह अनुच्छेद है जो DPSP की प्रवर्तनीयता (या गैर-प्रवर्तनीयता) की प्रकृति को परिभाषित करता है और उन्हें शासन का आधार बताता है।

प्रश्न 4: संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संसद को यह शक्ति प्राप्त है कि वह नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना कर सकती है?

  1. अनुच्छेद 1
  2. अनुच्छेद 2
  3. अनुच्छेद 3
  4. अनुच्छेद 4

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 2 भारतीय संसद को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह ऐसे निबंधनों और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, भारत के संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सके। यह उन राज्यों के लिए है जो भारत के राज्यक्षेत्र का भाग नहीं हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 1 भारत के राज्यक्षेत्र का वर्णन करता है। अनुच्छेद 3 संसद को भारत के भीतर मौजूदा राज्यों के पुनर्गठन, नए राज्यों के निर्माण, या राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों को बदलने की शक्ति देता है। अनुच्छेद 4 यह स्पष्ट करता है कि अनुच्छेद 2 और 3 के तहत बनाए गए कानून साधारण बहुमत से पारित हो सकते हैं और उन्हें संविधान संशोधन नहीं माना जाएगा।
  • गलत विकल्प: अनुच्छेद 1, 3 और 4 अन्य संबंधित प्रावधानों से जुड़े हैं, लेकिन नए राज्यों के प्रवेश या स्थापना की शक्ति विशेष रूप से अनुच्छेद 2 में निहित है।

प्रश्न 5: ‘संसदीय विशेषाधिकार’ (Parliamentary Privileges) का उद्देश्य क्या है?

  1. संसद सदस्यों को उनके कार्यों के लिए अतिरिक्त अधिकार देना
  2. संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने और उसके सदस्यों को स्वतंत्र रूप से कार्य करने में सक्षम बनाना
  3. संसद सदस्यों को सामान्य नागरिकों से ऊपर उठाना
  4. संसद को न्यायपालिका के नियंत्रण से मुक्त करना

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संसदीय विशेषाधिकार (अनुच्छेद 105) का मुख्य उद्देश्य संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने, उसके सदस्यों को बिना किसी भय या दबाव के अपने कर्तव्यों का निर्वहन करने और संसद की प्रामाणिकता और प्रतिष्ठा को बनाए रखने के लिए आवश्यक शक्तियों और छूटों को प्रदान करना है।
  • संदर्भ और विस्तार: इसमें व्यक्तिगत विशेषाधिकार (जैसे सदन में बोलने की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से छूट) और सामूहिक विशेषाधिकार (जैसे सदन के बाहर कार्यवाही की रिपोर्टिंग का अधिकार, सदन को अवमानना करने वालों को दंडित करने का अधिकार) शामिल हैं। ये विशेषाधिकार भारत में किसी विशिष्ट कानून द्वारा परिभाषित नहीं हैं, बल्कि मुख्य रूप से भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105, 194 (राज्यों के लिए), और ब्रिटिश संसद के प्रथाओं और संहिताओं से विकसित हुए हैं।
  • गलत विकल्प: विशेषाधिकार सदस्यों को अतिरिक्त अधिकार देने या उन्हें सामान्य नागरिकों से ऊपर उठाने के लिए नहीं हैं, बल्कि यह संसद की स्वायत्तता और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए हैं।

प्रश्न 6: भारत में ‘कठोर संविधान’ (Rigid Constitution) की विशेषता निम्नलिखित में से किस संविधान के तत्व से अधिक मेल खाती है?

  1. एकल नागरिकता
  2. स्वतंत्र न्यायपालिका
  3. लचीली संशोधन प्रक्रिया
  4. लिखित संविधान

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: एक ‘कठोर संविधान’ वह होता है जिसमें संशोधन की प्रक्रिया जटिल होती है, और आमतौर पर इसके लिए विशेष बहुमत या विशेष प्रक्रियाओं की आवश्यकता होती है। जबकि भारत का संविधान कठोर और लचीला दोनों का मिश्रण है, ‘लिखित संविधान’ होना कठोरता का एक प्रमुख संकेतक है क्योंकि यह स्पष्ट रूप से परिभाषित करता है कि क्या बदला जा सकता है और कैसे। एक संशोधन प्रक्रिया (जैसे अनुच्छेद 368) जो विशेष बहुमत की मांग करती है, वास्तव में कठोरता को दर्शाती है। (हालांकि विकल्प में सीधे संशोधन प्रक्रिया नहीं है, लिखित संविधान कठोरता का आधार है)।
  • संदर्भ और विस्तार: कठोर संविधान के विपरीत, लचीला संविधान (जैसे ब्रिटिश संविधान) को साधारण कानून की तरह संशोधित किया जा सकता है। अमेरिका का संविधान कठोरता का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। भारत का संविधान, अनुच्छेद 368 के तहत, कुछ प्रावधानों को विशेष बहुमत से और कुछ को विशेष बहुमत के साथ-साथ आधे राज्यों के अनुसमर्थन से संशोधित करने की अनुमति देता है, जो इसे कठोर बनाता है।
  • गलत विकल्प: एकल नागरिकता (लचीलेपन का प्रतीक), स्वतंत्र न्यायपालिका (शक्ति पृथक्करण का प्रतीक), और लचीली संशोधन प्रक्रिया (कठोरता के विपरीत) कठोर संविधान की प्रत्यक्ष विशेषताएँ नहीं हैं।

प्रश्न 7: निम्नलिखित में से कौन सी रीट (Writ) का अर्थ है “तुम्हें आदेश है”?

  1. बंदी प्रत्यक्षीकरण (Habeas Corpus)
  2. परमादेश (Mandamus)
  3. प्रतिषेध (Prohibition)
  4. उत्प्रेषण (Certiorari)

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: परमादेश (Mandamus) का लैटिन अर्थ है “हम आदेश देते हैं”। यह एक उच्च न्यायालय द्वारा किसी निचली अदालत, न्यायाधिकरण, या सार्वजनिक प्राधिकारी को सार्वजनिक या सांविधिक कर्तव्य को करने का आदेश देने वाली रीट है। यह शक्ति संविधान के अनुच्छेद 32 (सर्वोच्च न्यायालय) और अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालय) के तहत प्राप्त है।
  • संदर्भ और विस्तार: परमादेश का प्रयोग केवल उन सार्वजनिक कर्तव्यों के लिए किया जा सकता है जो कानून द्वारा अनिवार्य हों। यह किसी निजी व्यक्ति या संस्था के खिलाफ जारी नहीं किया जा सकता।
  • गलत विकल्प: बंदी प्रत्यक्षीकरण का अर्थ है ‘शरीर प्रस्तुत करो’ (अवैध हिरासत से मुक्ति हेतु)। प्रतिषेध का अर्थ है ‘रोकना’ (निचली अदालत को कार्यवाही रोकने का आदेश)। उत्प्रेषण का अर्थ है ‘अधिसूचना’ या ‘प्रमाणित करो’ (निचली अदालत से मामले को उच्च न्यायालय में स्थानांतरित करने का आदेश)।

प्रश्न 8: भारत में ‘अंतर-राज्यीय परिषद’ (Inter-State Council) की स्थापना का प्रावधान संविधान के किस अनुच्छेद में किया गया है?

  1. अनुच्छेद 262
  2. अनुच्छेद 263
  3. अनुच्छेद 270
  4. अनुच्छेद 275

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 263 के अनुसार, राष्ट्रपति एक अंतर-राज्यीय परिषद की स्थापना कर सकते हैं यदि उन्हें यह प्रतीत हो कि ऐसी परिषद की स्थापना लोकहित में होगी। यह परिषद राज्यों के बीच उत्पन्न होने वाले विवादों पर सलाह देने, सार्वजनिक महत्व के विषयों पर नीति-निर्माण में चर्चा करने और बेहतर समन्वय स्थापित करने के लिए कार्य करती है।
  • संदर्भ और विस्तार: अंतर-राज्यीय परिषद का गठन 1990 में सरकारी आयोग की सिफारिशों के आधार पर किया गया था। यह एक सलाहकार निकाय है।
  • गलत विकल्प: अनुच्छेद 262 जल विवादों से संबंधित है, जबकि अनुच्छेद 270 और 275 संघ और राज्यों के बीच वित्तीय संबंधों से संबंधित हैं।

प्रश्न 9: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘बंधुत्व’ (Fraternity) का आदर्श क्यों महत्वपूर्ण है?

  1. यह सभी नागरिकों के बीच भाईचारे को बढ़ावा देता है, जो राष्ट्रीय एकता और अखंडता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
  2. यह सुनिश्चित करता है कि सरकार सभी के लिए समान कानून लागू करे।
  3. यह गारंटी देता है कि प्रत्येक नागरिक को आजीविका का अवसर मिलेगा।
  4. यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सर्वोच्चता को स्थापित करता है।

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: प्रस्तावना में ‘बंधुत्व’ शब्द का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि सभी नागरिक एक-दूसरे के साथ भाईचारे के भाव से रहें। यह आदर्श ‘व्यक्ति की गरिमा’ (Dignity of the individual) को बनाए रखने के लिए महत्वपूर्ण है, और यह राष्ट्रीय एकता और अखंडता (Unity and Integrity of the Nation) को बढ़ावा देता है।
  • संदर्भ और विस्तार: बंधुत्व का भाव नागरिकों को यह महसूस कराता है कि वे एक राष्ट्र के सदस्य हैं और उन्हें मिलकर देश की प्रगति में योगदान देना चाहिए। यह विभिन्न समुदायों और क्षेत्रों के लोगों के बीच सामंजस्य स्थापित करने में सहायक है।
  • गलत विकल्प: समान कानून लागू करना न्याय (Justice) का हिस्सा है। आजीविका का अवसर आर्थिक न्याय या निर्देशक तत्वों से संबंधित हो सकता है। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का आदर्श स्वतंत्रता (Liberty) से अधिक संबंधित है।

प्रश्न 10: किस अनुच्छेद के तहत संसद को यह शक्ति दी गई है कि वह विधि द्वारा, नागरिकता के अर्जन और समाप्ति तथा नागरिकता से संबंधित अन्य सभी विषयों के बारे में प्रावधान कर सके?

  1. अनुच्छेद 5
  2. अनुच्छेद 7
  3. अनुच्छेद 9
  4. अनुच्छेद 11

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 11 स्पष्ट रूप से कहता है कि नागरिकता संबंधी अधिकारों पर विधि बनाने की शक्ति संसद में निहित है। इसका अर्थ है कि संसद नागरिकता से संबंधित किसी भी मामले पर कानून बना सकती है, जैसे कि उसका अर्जन (acquisition) और समाप्ति (termination)।
  • संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 5 से 10 नागरिकता के बारे में प्रारंभिक प्रावधान करते हैं, जो संविधान के लागू होने के समय (26 जनवरी 1950) की स्थिति बताते हैं। लेकिन उसके बाद नागरिकता को नियंत्रित करने का पूरा अधिकार संसद को अनुच्छेद 11 के तहत दिया गया है। इसी अधिकार का प्रयोग करके संसद ने नागरिकता अधिनियम, 1955 और उसके बाद के संशोधनों के माध्यम से नागरिकता के नियमों को विनियमित किया है।
  • गलत विकल्प: अनुच्छेद 5, 7 और 9 संविधान लागू होने के समय नागरिकता की परिभाषा देते हैं, न कि भविष्य में नागरिकता को नियंत्रित करने की संसद की शक्ति को।

प्रश्न 11: वित्तीय आपातकाल (Financial Emergency) की उद्घोषणा को संसद के समक्ष प्रस्तुत करना होता है। इसे कितनी अवधि के भीतर अनुमोदित (approved) किया जाना चाहिए, अन्यथा यह स्वतः समाप्त हो जाती है?

  1. एक माह
  2. दो माह
  3. छह माह
  4. बारह माह

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संविधान के अनुच्छेद 360 के तहत वित्तीय आपातकाल की घोषणा को संसद के दोनों सदनों द्वारा अनुमोदित किया जाना आवश्यक है। यह अनुमोदन घोषणा की तारीख से दो महीने की अवधि के भीतर किया जाना चाहिए। यदि इस अवधि के भीतर संसद द्वारा इसका अनुमोदन नहीं किया जाता है, तो यह स्वतः समाप्त हो जाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352) और राज्य आपातकाल (राष्ट्रपति शासन, अनुच्छेद 356) के विपरीत, वित्तीय आपातकाल की घोषणा को एक बार संसद द्वारा अनुमोदित किए जाने के बाद, इसे जारी रखने के लिए हर छह महीने में पुनः अनुमोदन की आवश्यकता नहीं होती है। इसे रद्द करने के लिए केवल साधारण बहुमत की आवश्यकता होती है।
  • गलत विकल्प: राष्ट्रीय आपातकाल के लिए एक महीने की अवधि होती है, लेकिन वित्तीय आपातकाल के लिए दो महीने की अवधि निर्धारित है। छह और बारह माह की अवधि यहाँ लागू नहीं होती।

प्रश्न 12: निम्नलिखित में से कौन सा ‘संवैधानिक निकाय’ (Constitutional Body) नहीं है?

  1. भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
  2. संघ लोक सेवा आयोग (UPSC)
  3. राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC)
  4. भारत का निर्वाचन आयोग (ECI)

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) एक ‘वैधानिक निकाय’ (Statutory Body) है, न कि संवैधानिक निकाय। इसका गठन संसद द्वारा पारित एक अधिनियम, ‘मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993’ के तहत किया गया था।
  • संदर्भ और विस्तार: संवैधानिक निकायों की स्थापना सीधे संविधान द्वारा की जाती है और उनका उल्लेख संविधान में होता है। भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) अनुच्छेद 148, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) अनुच्छेद 315, और भारत का निर्वाचन आयोग (ECI) अनुच्छेद 324 के तहत संवैधानिक निकाय हैं।
  • गलत विकल्प: CAG, UPSC और ECI तीनों ही संविधान में विशिष्ट अनुच्छेदों द्वारा स्थापित संवैधानिक निकाय हैं।

प्रश्न 13: भारत के राष्ट्रपति को पद से हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया संविधान के किस भाग में वर्णित है?

  1. भाग V (संघ)
  2. भाग IV (राज्य के नीति-निर्देशक तत्व)
  3. भाग III (मौलिक अधिकार)
  4. भाग II (नागरिकता)

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राष्ट्रपति पर महाभियोग (Impeachment) की प्रक्रिया संविधान के भाग V, जो ‘संघ’ (The Union) से संबंधित है, के अंतर्गत अनुच्छेद 61 में वर्णित है।
  • संदर्भ और विस्तार: भाग V संघ की कार्यपालिका, संसद, संघ की न्यायपालिका और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक से संबंधित है। राष्ट्रपति संघ की कार्यपालिका के प्रमुख हैं, इसलिए उनकी पदच्युति (removal) से संबंधित प्रक्रिया इसी भाग में आती है।
  • गलत विकल्प: भाग IV नीति-निर्देशक तत्वों, भाग III मौलिक अधिकारों और भाग II नागरिकता से संबंधित है, जो राष्ट्रपति के महाभियोग से सीधे तौर पर जुड़े हुए नहीं हैं।

प्रश्न 14: ‘ग्राम सभा’ का क्या अर्थ है?

  1. पंचायत का सदस्य
  2. ग्राम पंचायत का मुखिया
  3. गाँव के सभी पंजीकृत मतदाता
  4. गाँव की एक विशेष समिति

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 द्वारा संविधान में भाग IX जोड़ा गया, जिसने पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। अनुच्छेद 243(b) के अनुसार, ‘ग्राम सभा’ से अभिप्रेत है कि वह एक ऐसे गाँव के संबंध में, जहाँ पंचायती राज संस्थाएँ त्रि-स्तरीय प्रणाली के अनुसार स्थापित की गई हैं, एक ऐसा निकाय है जिसमें उस गाँव की मतदाता सूची में पंजीकृत व्यक्ति शामिल होते हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: ग्राम सभा पंचायती राज व्यवस्था की नींव है। यह सीधे लोगों की भागीदारी सुनिश्चित करती है और ग्राम पंचायत के कामकाज की निगरानी करती है।
  • गलत विकल्प: ग्राम पंचायत का सदस्य या मुखिया ग्राम सभा का हिस्सा होता है, लेकिन ग्राम सभा स्वयं केवल वे व्यक्ति होते हैं जो उस गाँव की मतदाता सूची में पंजीकृत होते हैं। यह कोई विशेष समिति नहीं है, बल्कि एक प्रत्यक्ष लोकतांत्रिक निकाय है।

प्रश्न 15: भारत में ‘सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व’ (Communal Representation) को समाप्त कर दिया गया था:

  1. भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 के द्वारा
  2. भारतीय संविधान द्वारा
  3. संविधान सभा द्वारा
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान ने सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था को पूरी तरह से समाप्त कर दिया। भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम, 1947 ने भी इस दिशा में कदम उठाए। संविधान के अनुच्छेद 325 और 326 ने यह सुनिश्चित किया कि धर्म, जाति, लिंग आदि के आधार पर किसी भी व्यक्ति को चुनावी सूची में शामिल होने या चुनावी सूची में शामिल किए जाने के लिए अयोग्य नहीं ठहराया जाएगा, और वयस्क मताधिकार के आधार पर चुनाव होंगे।
  • संदर्भ और विस्तार: सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व की व्यवस्था, जो ब्रिटिश काल में लागू थी, विभिन्न धार्मिक समुदायों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र प्रदान करती थी। भारतीय संविधान निर्माताओं ने इसे राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए हानिकारक माना और इसे समाप्त कर दिया। संविधान सभा ने इस पर गहन विचार-विमर्श के बाद यह निर्णय लिया।
  • गलत विकल्प: ये सभी विकल्प यथोचित रूप से सत्य हैं, क्योंकि स्वतंत्रता अधिनियम ने शुरुआत की, संविधान ने इसे पूर्ण रूप से समाप्त कर दिया, और संविधान सभा ने इस पर अंतिम निर्णय लिया।

प्रश्न 16: निम्नलिखित में से कौन सी शक्ति भारत के राष्ट्रपति के पास नहीं है?

  1. निलंबनकारी वीटो (Suspensive Veto)
  2. पूर्ण वीटो (Absolute Veto)
  3. पॉकेट वीटो (Pocket Veto)
  4. अध्यादेश जारी करने की शक्ति (Power to promulgate Ordinances)

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत के राष्ट्रपति के पास तीन प्रकार के वीटो अधिकार होते हैं: पूर्ण वीटो (अनुच्छेद 111), पॉकेट वीटो (अनुच्छेद 111), और निलंबनकारी वीटो (अनुच्छेद 111)। राष्ट्रपति अध्यादेश जारी करने की शक्ति (अनुच्छेद 123) भी रखते हैं। हालाँकि, “निलंबनकारी वीटो” शब्द गलत है; वास्तव में, राष्ट्रपति किसी विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेज सकते हैं, जिसे ‘निलंबनकारी’ कहा जा सकता है, लेकिन यह वीटो का एक विशेष प्रकार नहीं है जैसा कि अन्य दो हैं। राष्ट्रपति का अधिकार यह है कि वे पुनर्विचार के बाद, यदि संसद विधेयक को पुनः पारित कर दे, तो उसे अपनी सहमति देने के लिए बाध्य हैं।
  • संदर्भ और विस्तार:
    * पूर्ण वीटो: गैर-सरकारी विधेयकों पर या निजी सदस्य विधेयकों पर लागू होता है।
    * पॉकेट वीटो: राष्ट्रपति विधेयक पर कोई निर्णय नहीं लेते और अनिश्चित काल तक उसे रोके रखते हैं।
    * निलंबनकारी वीटो: राष्ट्रपति विधेयक को संसद के पुनर्विचार के लिए वापस भेजते हैं (यदि विधेयक को साधारण बहुमत से पारित किया गया हो)। यदि संसद उसे पुनः पारित कर दे, तो राष्ट्रपति को सहमति देनी पड़ती है।
    * अध्यादेश: अनुच्छेद 123 के तहत, राष्ट्रपति संसद के विश्रामकाल में अध्यादेश जारी कर सकते हैं।
  • गलत विकल्प: राष्ट्रपति के पास पूर्ण वीटो, पॉकेट वीटो और अध्यादेश जारी करने की शक्ति निश्चित रूप से है। ‘निलंबनकारी वीटो’ शब्द भ्रामक है, क्योंकि राष्ट्रपति पुनर्विचार हेतु वापस भेज सकते हैं, लेकिन यह अमेरिका के राष्ट्रपति के वीटो के समान बाध्यकारी नहीं होता। यहाँ प्रश्न यह नहीं पूछ रहा कि ‘कौन सा वीटो’ है, बल्कि ‘कौन सी शक्ति’ नहीं है। राष्ट्रपति के पास ‘अनुच्छेद 111 के तहत विधायी शक्ति के हिस्से के रूप में विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापस भेजने की शक्ति’ है, जिसे कभी-कभी निलंबनकारी वीटो के रूप में गलत समझा जाता है। हालाँकि, ‘निलंबनकारी वीटो’ के रूप में इसका वर्णन तकनीकी रूप से सटीक नहीं है, जब अन्य विकल्पों में स्पष्टतः राष्ट्रपति के अधिकार शामिल हैं। यदि हम ‘निलंबनकारी वीटो’ को राष्ट्रपति के पुनर्विचार हेतु भेजने की शक्ति के रूप में लें, तो वह शक्ति है। लेकिन अगर हम इसे अमेरिकी मॉडल के अनुसार एक स्वतंत्र वीटो मानें, तो वह शक्ति भारत में नहीं है। अन्य सभी विकल्प राष्ट्रपति के पास स्पष्ट रूप से हैं। **यह प्रश्न थोड़ा भ्रामक है, लेकिन संदर्भ को देखते हुए, सबसे सटीक उत्तर वह होगा जो स्पष्ट रूप से राष्ट्रपति के अधिकार में न हो। राष्ट्रपति के पास ‘निलंबनकारी वीटो’ (जैसा कि अमेरिकी मॉडल में है) नहीं है।**

प्रश्न 17: ‘विधि का शासन’ (Rule of Law) की अवधारणा भारतीय संविधान में कहाँ से प्रेरित है?

  1. ब्रिटिश संविधान
  2. अमेरिकी संविधान
  3. फ्रांसीसी क्रांति
  4. आयरिश संविधान

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘विधि का शासन’ (Rule of Law) की अवधारणा का मुख्य स्रोत ब्रिटिश संवैधानिक परंपरा है। यद्यपि भारतीय संविधान में यह शब्द सीधे तौर पर कहीं नहीं लिखा गया है, यह मौलिक अधिकारों (विशेषकर अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समानता) और अन्य कई प्रावधानों में निहित है।
  • संदर्भ और विस्तार: विधि का शासन का अर्थ है कि सभी कानून के अधीन हैं, कोई भी व्यक्ति या सरकार कानून से ऊपर नहीं है, और सभी नागरिकों को समान कानूनी अधिकार और सुरक्षा मिलनी चाहिए। यह तानाशाही या मनमानी सत्ता के विपरीत है।
  • गलत विकल्प: अमेरिकी संविधान न्यायिक समीक्षा और मौलिक अधिकारों (Bill of Rights) के लिए महत्वपूर्ण है, फ्रांसीसी क्रांति समानता और बंधुत्व के आदर्शों के लिए, और आयरिश संविधान निर्देशक तत्वों के लिए।

प्रश्न 18: भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाए जाने की प्रक्रिया, भारत के राष्ट्रपति को हटाए जाने की प्रक्रिया से ___________ है।

  1. समान
  2. अधिक जटिल
  3. कम जटिल
  4. कम कठोर

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को कदाचार या अक्षमता के आधार पर केवल संसद के दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से पारित संकल्प द्वारा ही हटाया जा सकता है (अनुच्छेद 124(4))। राष्ट्रपति को महाभियोग (अनुच्छेद 61) द्वारा हटाया जाता है, जिसमें दोनों सदनों के सभी सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है। न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया, जिसमें कदाचार साबित करना और जाँच समिति की रिपोर्ट शामिल है, राष्ट्रपति के महाभियोग से कम जटिल मानी जाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया में एक आरोप पत्र, जाँच समिति का गठन, आरोपों की जाँच, और फिर दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करना शामिल है। यह राष्ट्रपति के महाभियोग के समान ही गंभीर है, लेकिन प्रक्रियात्मक रूप से कुछ चरणों में यह थोड़ी कम जटिल हो सकती है।
  • गलत विकल्प: दोनों प्रक्रियाएँ जटिल हैं, लेकिन न्यायाधीशों को हटाने के लिए ‘गंभीर कदाचार’ या ‘अक्षमता’ का प्रमाण अधिक आवश्यक होता है, और जाँच की एक लंबी प्रक्रिया होती है। राष्ट्रपति के मामले में, आरोप का आधार ‘संविधान का उल्लंघन’ है, जो अधिक व्यापक हो सकता है।

प्रश्न 19: केंद्र शासित प्रदेशों (Union Territories) पर किसका शासन होता है?

  1. प्रत्यक्ष राष्ट्रपति का शासन
  2. संबंधित राज्य के राज्यपाल का शासन
  3. संसद द्वारा नियुक्त प्रशासक का शासन
  4. उपराष्ट्रपति का शासन

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: संविधान के भाग VIII में केंद्र शासित प्रदेशों का उल्लेख है। अनुच्छेद 239 के अनुसार, केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक (Administrator) या उपराज्यपाल (Lieutenant Governor) या मुख्य आयुक्त (Chief Commissioner) द्वारा किया जाता है।
  • संदर्भ और विस्तार: दिल्ली जैसे कुछ केंद्र शासित प्रदेशों में निर्वाचित विधानसभा और मुख्यमंत्री होते हैं, जहाँ प्रशासक (उपराज्यपाल) की भूमिका काफी हद तक औपचारिक होती है। अन्य केंद्र शासित प्रदेशों का सीधा प्रशासन राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त प्रशासक ही करता है।
  • गलत विकल्प: केंद्र शासित प्रदेशों पर सीधे राष्ट्रपति का शासन (जैसे राष्ट्रपति शासन) नहीं होता, बल्कि वे राष्ट्रपति के एजेंट के रूप में कार्य करने वाले प्रशासकों द्वारा शासित होते हैं। उनका शासन संबंधित राज्य के राज्यपाल द्वारा नहीं किया जाता। उपराष्ट्रपति का शासन का कोई प्रावधान नहीं है।

प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद उपाधियों के अंत (Abolition of Titles) से संबंधित है?

  1. अनुच्छेद 15
  2. अनुच्छेद 16
  3. अनुच्छेद 17
  4. अनुच्छेद 18

उत्तर: (d)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 18 उपाधियों के अंत से संबंधित है। यह कहता है कि राज्य किसी भी प्रकार की उपाधि प्रदान नहीं करेगा, सिवाय शैक्षणिक या सैन्य उपाधियों के। भारत का कोई भी नागरिक विदेशी उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता।
  • संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 18 ने उन उपाधियों का अंत कर दिया जो ब्रिटिश शासन के दौरान दी जाती थीं (जैसे सर, राय बहादुर, राय साहब)। केवल परमवीर चक्र जैसे सैन्य सम्मान या भारत रत्न जैसे नागरिक पुरस्कार (जो अनुच्छेद 18(2) के तहत उपाधि नहीं माने जाते) दिए जा सकते हैं।
  • गलत विकल्प: अनुच्छेद 15 धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध करता है। अनुच्छेद 16 लोक नियोजन के विषयों में अवसर की समानता प्रदान करता है। अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत करता है।

प्रश्न 21: पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने वाला संविधान संशोधन अधिनियम कौन सा था?

  1. 70वां संविधान संशोधन अधिनियम
  2. 71वां संविधान संशोधन अधिनियम
  3. 73वां संविधान संशोधन अधिनियम
  4. 74वां संविधान संशोधन अधिनियम

उत्तर: (c)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने भारतीय संविधान में भाग IX जोड़ा और पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा प्रदान किया। इसने अनुसूची 11 भी जोड़ी, जिसमें पंचायती राज संस्थाओं के 29 विषय शामिल हैं।
  • संदर्भ और विस्तार: इस अधिनियम का उद्देश्य पंचायती राज संस्थाओं को अधिक शक्तिशाली, जवाबदेह और प्रभावी बनाना था। इसने ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तर पर पंचायती राज की त्रि-स्तरीय संरचना का प्रावधान किया।
  • गलत विकल्प: 70वां संशोधन दिल्ली के संबंध में था, 71वां संशोधन कोंकणी, मणिपुरी और नेपाली भाषाओं को आठवीं अनुसूची में जोड़ा, और 74वां संशोधन शहरी स्थानीय निकायों (नगरपालिकाएँ) से संबंधित था।

प्रश्न 22: निम्नलिखित में से कौन भारत के महान्यायवादी (Attorney General for India) की नियुक्ति करता है?

  1. भारत के राष्ट्रपति
  2. भारत के मुख्य न्यायाधीश
  3. केंद्रीय विधि मंत्री
  4. प्रधानमंत्री

उत्तर: (a)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत के महान्यायवादी (Attorney General) की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा संविधान के अनुच्छेद 76(1) के तहत की जाती है।
  • संदर्भ और विस्तार: महान्यायवादी भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार होता है और सर्वोच्च न्यायालय में सरकार का प्रतिनिधित्व करता है। वह वह व्यक्ति होता है जिसे सर्वोच्च न्यायालय का न्यायाधीश नियुक्त होने के योग्य होना चाहिए।
  • गलत विकल्प: मुख्य न्यायाधीश, विधि मंत्री या प्रधानमंत्री नियुक्ति प्रक्रिया में शामिल हो सकते हैं, लेकिन अंतिम नियुक्ति का अधिकार केवल राष्ट्रपति के पास है।

प्रश्न 23: संविधान की प्रस्तावना में ‘गणराज्य’ (Republic) शब्द क्या दर्शाता है?

  1. भारत में राजशाही है
  2. भारत का राष्ट्राध्यक्ष वंशानुगत नहीं है, बल्कि निर्वाचित होता है
  3. भारत एक संघीय राज्य है
  4. भारत एक अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली वाला देश है

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘गणराज्य’ (Republic) शब्द का अर्थ है कि राज्य का प्रमुख (जो भारत में राष्ट्रपति है) वंशानुगत नहीं होता, बल्कि प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से एक निश्चित अवधि के लिए निर्वाचित होता है। भारत में राष्ट्रपति का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होता है।
  • संदर्भ और विस्तार: यह राजशाही (Monarchy) के विपरीत है, जहाँ राज्य का प्रमुख वंशानुगत होता है (जैसे ब्रिटेन की रानी)। यह सुनिश्चित करता है कि राष्ट्र का प्रमुख जनता द्वारा या जनता के प्रतिनिधियों द्वारा चुना जाता है, जिससे पूर्ण संप्रभुता जनता में निहित होती है।
  • गलत विकल्प: राजशाही भारत में नहीं है। भारत एक संघीय राज्य है, लेकिन यह ‘गणराज्य’ शब्द का प्रत्यक्ष अर्थ नहीं है। अर्ध-राष्ट्रपति प्रणाली भी भारत में नहीं है।

प्रश्न 24: निम्नलिखित में से कौन सा विधानमंडल (Legislature) की ‘अवमानना’ (Contempt of Legislature) से संबंधित है?

  1. अनुच्छेद 105(2)
  2. अनुच्छेद 105(3)
  3. अनुच्छेद 105(4)
  4. अनुच्छेद 194(3)

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 105(3) संसद (और उसके सदस्यों) को वह शक्ति प्रदान करता है जो ब्रिटिश हाउस ऑफ कॉमन्स के सदस्यों के पास ‘सदन की अवमानना’ (Contempt of the House) के समय थी। यह अवमानना का अधिकार ही विधानमंडल की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए आवश्यक है।
  • संदर्भ और विस्तार: सदन की अवमानना को दंडित करने की शक्ति संसद को अपने विशेषाधिकारों (Privileges) का प्रयोग करने में मदद करती है। जब कोई व्यक्ति सदन के सदस्यों या उसकी कार्यवाही के प्रति अनादरपूर्ण व्यवहार करता है, तो संसद उसे अवमानना का दोषी ठहराकर दंडित कर सकती है। अनुच्छेद 194(3) राज्यों के विधानमंडलों के लिए समान प्रावधान करता है।
  • गलत विकल्प: अनुच्छेद 105(2) संसद के सदस्यों द्वारा सदन में या किसी समिति में कही गई बातों या दिए गए मतों के संबंध में विशेषाधिकारों की बात करता है। अनुच्छेद 105(4) विशेषाधिकारों को स्पष्ट करने के लिए कानून बनाने की संसद की शक्ति की बात करता है, लेकिन सीधे अवमानना के अधिकार को नहीं। अनुच्छेद 194(3) राज्यों के विधानमंडलों के लिए है।

प्रश्न 25: भारतीय संविधान के किस भाग में ‘राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों’ (Directive Principles of State Policy) का उल्लेख है?

  1. भाग III
  2. भाग IV
  3. भाग V
  4. भाग VI

उत्तर: (b)

विस्तृत व्याख्या:

  • सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राज्य के नीति-निर्देशक तत्वों (DPSP) का उल्लेख भारतीय संविधान के भाग IV में अनुच्छेद 36 से 51 तक किया गया है।
  • संदर्भ और विस्तार: ये तत्व राज्य को मार्गदर्शन प्रदान करते हैं कि उसे शासन करते समय किन सिद्धांतों का पालन करना चाहिए ताकि सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र की स्थापना की जा सके। यद्यपि ये न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, फिर भी देश के शासन में ये मूलभूत हैं।
  • गलत विकल्प: भाग III मौलिक अधिकारों (अनुच्छेद 12-35) से संबंधित है। भाग V संघ (Union) से संबंधित है। भाग VI राज्यों (States) से संबंधित है।

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