संविधान के प्रहरी: प्रतिदिन 25 प्रश्नों का महासंग्राम
भारतीय लोकतंत्र के मजबूत स्तंभों को समझना, प्रत्येक जागरूक नागरिक और विशेष रूप से प्रतियोगी परीक्षाओं के अभ्यार्थियों के लिए अनिवार्य है। अपनी संवैधानिक समझ को पैना करने और अपनी तैयारी के स्तर को जांचने का यह सबसे बेहतर अवसर है। आइए, आज के 25 बहुविकल्पीय प्रश्नों के इस गहन अभ्यास से अपनी राजव्यवस्था की पकड़ को और मजबूत करें!
भारतीय राजव्यवस्था एवं संविधान अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान की गई विस्तृत व्याख्याओं के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: निम्नलिखित में से कौन सा कथन ‘प्रस्तावना’ के संबंध में सत्य नहीं है?
- यह संविधान का एक भाग है।
- यह न्यायोचित (Justiciable) नहीं है।
- यह संशोधन योग्य (Amendable) नहीं है।
- इसमें उल्लिखित उद्देश्य संविधान के अन्य भागों के अर्थ को स्पष्ट करने में सहायक होते हैं।
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: प्रस्तावना भारतीय संविधान का भाग है (केशवानंद भारती मामले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित) और इसके उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिए इसमें संशोधन किया जा सकता है, जैसा कि 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा किया गया था। यह न्यायोचित नहीं है, जिसका अर्थ है कि यदि इसके प्रावधानों का उल्लंघन होता है तो कोई भी अदालत जाने के लिए बाध्य नहीं कर सकता।
- संदर्भ और विस्तार: प्रस्तावना संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा है और संविधान के अन्य प्रावधानों की व्याख्या के लिए महत्वपूर्ण है। यह स्वतंत्रता, समानता, बंधुत्व, संप्रभुता, समाजवाद और पंथनिरपेक्षता जैसे गणराज्य के मूल आदर्शों को रेखांकित करती है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a) और (b) सत्य हैं। विकल्प (c) गलत है क्योंकि प्रस्तावना को 42वें संशोधन द्वारा संशोधित किया गया था, जिसमें ‘समाजवादी’, ‘पंथनिरपेक्ष’ और ‘अखंडता’ शब्द जोड़े गए थे।
प्रश्न 2: भारतीय संविधान में ‘समान काम के लिए समान वेतन’ का सिद्धांत किस भाग में निहित है?
- मौलिक अधिकार (Fundamental Rights)
- राज्य के नीति निदेशक तत्व (Directive Principles of State Policy)
- मौलिक कर्तव्य (Fundamental Duties)
- प्रस्तावना (Preamble)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: ‘समान काम के लिए समान वेतन’ का सिद्धांत भारतीय संविधान के अनुच्छेद 39(घ) में राज्य के नीति निदेशक तत्वों के तहत निहित है। यह सुनिश्चित करता है कि राज्य, विशेष रूप से, यह सुनिश्चित करने के लिए प्रयास करेगा कि पुरुषों और महिलाओं दोनों को समान काम के लिए समान मजदूरी मिले।
- संदर्भ और विस्तार: राज्य के नीति निदेशक तत्व नागरिकों के प्रति राज्य के कर्तव्यों को परिभाषित करते हैं और देश के शासन के लिए मूलभूत हैं। हालांकि ये न्यायालय द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं, लेकिन देश के कानून बनाने में ये मौलिक हैं। इस सिद्धांत को विभिन्न न्यायिक निर्णयों के माध्यम से भी बल मिला है।
- गलत विकल्प: मौलिक अधिकार (भाग III) नागरिकों को कुछ गारंटीकृत अधिकार प्रदान करते हैं, लेकिन यह विशिष्ट सिद्धांत नीति निदेशक तत्वों में आता है। मौलिक कर्तव्य (भाग IV-क) नागरिकों के लिए कर्तव्य हैं। प्रस्तावना संविधान के आदर्शों को दर्शाती है।
प्रश्न 3: राष्ट्रपति का चुनाव लड़ने के लिए न्यूनतम आयु कितनी होनी चाहिए?
- 25 वर्ष
- 30 वर्ष
- 35 वर्ष
- 40 वर्ष
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अनुच्छेद 58(1)(ख) के अनुसार, भारत का राष्ट्रपति निर्वाचित होने का पात्र होने के लिए, व्यक्ति की आयु कम से कम 35 वर्ष होनी चाहिए।
- संदर्भ और विस्तार: राष्ट्रपति भारत का राष्ट्राध्यक्ष होता है और उसके पद की गरिमा और जिम्मेदारियों को देखते हुए, न्यूनतम आयु 35 वर्ष निर्धारित की गई है, जो राज्यपाल और उपराष्ट्रपति के पद के लिए भी समान है।
- गलत विकल्प: 25 वर्ष लोकसभा सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु है (अनुच्छेद 84)। 30 वर्ष राज्यसभा सदस्य बनने के लिए न्यूनतम आयु है (अनुच्छेद 84)। 40 वर्ष कोई विशिष्ट संवैधानिक पद धारण करने के लिए न्यूनतम आयु नहीं है।
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के सदस्यों की नियुक्ति करता है?
- भारत के राष्ट्रपति
- भारत के प्रधानमंत्री
- लोकसभा अध्यक्ष
- गृह मंत्री
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अनुच्छेद 316(1) के अनुसार, संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) के अध्यक्ष और अन्य सदस्यों की नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: UPSC भारत की केंद्रीय एजेंसी है जो सिविल सेवाओं, रक्षा सेवाओं और भारतीय विदेश सेवा आदि के लिए अधिकारियों की भर्ती के लिए परीक्षाएं आयोजित करती है। सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं, जो उनकी निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करता है।
- गलत विकल्प: प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष और गृह मंत्री की नियुक्ति की प्रक्रिया में सीधे तौर पर UPSC सदस्यों की नियुक्ति में भूमिका नहीं होती है।
प्रश्न 5: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संसद को नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना करने की शक्ति प्राप्त है?
- अनुच्छेद 1
- अनुच्छेद 2
- अनुच्छेद 3
- अनुच्छेद 4
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अनुच्छेद 2 संसद को यह शक्ति प्रदान करता है कि वह ऐसे निबंधन और शर्तों पर, जो वह ठीक समझे, संघ में नए राज्यों का प्रवेश या उनकी स्थापना कर सके।
- संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 2 भारत के क्षेत्र से बाहर के क्षेत्रों को भारतीय संघ में शामिल करने से संबंधित है, जबकि अनुच्छेद 3 भारतीय संघ के भीतर मौजूदा राज्यों के पुनर्गठन (जैसे नाम बदलना, सीमा बदलना, क्षेत्रफल बदलना) से संबंधित है।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 1 संघ और उसके राज्य क्षेत्रों का वर्णन करता है। अनुच्छेद 3 राज्यों के पुनर्गठन से संबंधित है, न कि नए राज्यों के प्रवेश से। अनुच्छेद 4 बताता है कि अनुच्छेद 2 और 3 के तहत बनाए गए कानून अनुच्छेद 368 के तहत संशोधन नहीं माने जाएंगे।
प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन भारत के संविधान के ‘मूल ढांचे’ (Basic Structure) का हिस्सा नहीं है?
- संसदीय प्रणाली
- संप्रभुता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और लोकतंत्र
- मौलिक अधिकारों का कल्याणकारी राज्य के सिद्धांतों के साथ संतुलन
- न्यायिक पुनर्विलोकन (Judicial Review)
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘मूल ढांचे’ का सिद्धांत प्रतिपादित किया। इसके अनुसार, संसद संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है, लेकिन संविधान के मूल ढांचे में नहीं। सर्वोच्च न्यायालय ने मूल ढांचे के कई तत्वों को समय-समय पर स्पष्ट किया है, जिनमें संप्रभुता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता, लोकतंत्र, गणराज्य की प्रकृति, स्वतंत्रता और एकता, सामाजिक न्याय, न्यायिक पुनर्विलोकन, कानून का शासन, स्वतंत्रता का अधिकार और जीवन का अधिकार (अनुच्छेद 21), आदि शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: संसदीय प्रणाली (Parliamentary System) यद्यपि भारतीय शासन की एक महत्वपूर्ण विशेषता है, लेकिन इसे सीधे तौर पर सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ‘मूल ढांचे’ के एक अलग और विशिष्ट तत्व के रूप में सूचीबद्ध नहीं किया गया है, जबकि लोकतंत्र, पंथनिरपेक्षता, न्याय आदि को प्रमुखता दी गई है।
- गलत विकल्प: संप्रभुता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता, लोकतंत्र (विकल्प b), मौलिक अधिकारों का कल्याणकारी राज्य के सिद्धांतों के साथ संतुलन (विकल्प c), और न्यायिक पुनर्विलोकन (विकल्प d) सभी को विभिन्न न्यायिक निर्णयों में संविधान के मूल ढांचे का हिस्सा माना गया है।
प्रश्न 7: पंचायती राज संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा किस संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा प्रदान किया गया?
- 73वां संशोधन अधिनियम, 1992
- 74वां संशोधन अधिनियम, 1992
- 65वां संशोधन अधिनियम, 1990
- 42वां संशोधन अधिनियम, 1976
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने संविधान में भाग IX जोड़ा, जिसमें अनुच्छेद 243 से 243-O तक पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) को संवैधानिक दर्जा दिया गया। इसने संविधान में ग्यारहवीं अनुसूची भी जोड़ी।
- संदर्भ और विस्तार: इस संशोधन ने पंचायती राज को त्रि-स्तरीय प्रणाली (ग्राम, मध्यवर्ती और जिला स्तर) के रूप में संवैधानिक मान्यता दी और उनके चुनाव, शक्तियों, उत्तरदायित्वों और वित्तपोषण के लिए प्रावधान किए, जिससे वे अधिक प्रभावी और जवाबदेह बन सकें।
- गलत विकल्प: 74वां संशोधन शहरी स्थानीय निकायों (नगरपालिकाएँ) से संबंधित है। 65वां संशोधन पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा देने के लिए एक असफल प्रयास था। 42वां संशोधन प्रस्तावना, निर्देशक तत्वों और मौलिक कर्तव्यों से संबंधित है।
प्रश्न 8: भारतीय संविधान का कौन सा भाग ‘राज्यों के लिए विधानमंडल’ (Legislature for States) से संबंधित है?
- भाग VI
- भाग VII
- भाग VIII
- भाग IX
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: भारतीय संविधान का भाग VI, अनुच्छेद 152 से 237 तक, राज्यों के कार्यपालिका और विधानमंडल से संबंधित है। इसमें प्रत्येक राज्य के लिए विधानमंडल की संरचना, शक्तियाँ और प्रक्रियाएं शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: राज्यों के विधानमंडल या तो एकसदनीय (राज्यपाल और विधान सभा) या द्विसदनीय (राज्यपाल, विधान परिषद और विधान सभा) हो सकते हैं, जैसा कि अनुच्छेद 168 में प्रावधान है।
- गलत विकल्प: भाग VII को सातवें संशोधन अधिनियम, 1956 द्वारा निरस्त कर दिया गया था। भाग VIII संघ शासित प्रदेशों से संबंधित है। भाग IX पंचायती राज से संबंधित है।
प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन सा ‘ the writ of Prohibition’ (प्रतिषेध रिट) का सही अर्थ है?
- यह किसी व्यक्ति को गैरकानूनी ढंग से बंदी बनाने पर जारी किया जाता है।
- यह किसी अधीनस्थ न्यायालय को उसकी अधिकारिता से अधिक कार्य करने से रोकने के लिए जारी किया जाता है।
- यह किसी सार्वजनिक प्राधिकारी को उसका सार्वजनिक कर्तव्य करने का आदेश देने के लिए जारी किया जाता है।
- यह किसी निचली अदालत या न्यायाधिकरण द्वारा पारित किसी आदेश को रद्द करने के लिए जारी किया जाता है।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: ‘प्रतिषेध’ (Prohibition) का अर्थ है ‘रोकना’। यह एक न्यायिक रिट है जिसे उच्च न्यायालय द्वारा किसी अधीनस्थ न्यायालय या न्यायाधिकरण को उनकी अधिकारिता से बाहर कार्य करने से रोकने के लिए जारी किया जाता है। यह अनुच्छेद 32 (सर्वोच्च न्यायालय) और अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालय) के तहत जारी की जा सकती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह रिट केवल न्यायिक या अर्ध-न्यायिक निकायों पर लागू होती है, प्रशासनिक निकायों पर नहीं। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि अधीनस्थ अदालतें अपनी अधिकारिता के भीतर ही कार्य करें।
- गलत विकल्प: (a) Habeas Corpus (बंदी प्रत्यक्षीकरण) है। (c) Mandamus (परमादेश) है। (d) Certiorari (उत्प्रेषण) है।
प्रश्न 10: भारत के राष्ट्रपति को महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा हटाए जाने की सूचना कितने दिन पहले दी जानी चाहिए?
- 7 दिन
- 14 दिन
- 21 दिन
- 30 दिन
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अनुच्छेद 61(2)(क) के अनुसार, जब राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने का आरोप लगाया जाता है, तो आरोप का एक लिखित नोटिस राष्ट्रपति को दिया जाएगा, जो उस सदन के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित होगा जिसने आरोप लगाया है। राष्ट्रपति को इस प्रकार के नोटिस की प्राप्ति पर 14 दिन की अवधि के बाद ही इस तरह के आरोप पर आगे की कार्यवाही की जा सकेगी।
- संदर्भ और विस्तार: महाभियोग प्रक्रिया राष्ट्रपति को ‘संविधान के उल्लंघन’ के आधार पर हटाने के लिए है। यह एक अर्ध-न्यायिक प्रक्रिया है जिसे संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में शुरू किया जा सकता है।
- गलत विकल्प: 7 दिन, 21 दिन और 30 दिन कोई विशिष्ट संवैधानिक समय-सीमा नहीं है जो राष्ट्रपति के महाभियोग की सूचना से संबंधित हो। 14 दिन की अवधि नोटिस की तामील और कार्रवाई के बीच न्यूनतम आवश्यक समय है।
प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘संवैधानिक निकाय’ (Constitutional Body) नहीं है?
- चुनाव आयोग (Election Commission of India)
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (Comptroller and Auditor General of India – CAG)
- राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission – NHRC)
- संघ लोक सेवा आयोग (Union Public Service Commission – UPSC)
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: संवैधानिक निकाय वे होते हैं जिनका उल्लेख सीधे संविधान में होता है और जिनके लिए विशेष अनुच्छेद समर्पित होते हैं। चुनाव आयोग (अनुच्छेद 324), CAG (अनुच्छेद 148), और UPSC (अनुच्छेद 315) सभी संवैधानिक निकाय हैं। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) का गठन मानवाधिकार संरक्षण अधिनियम, 1993 के तहत एक वैधानिक निकाय (Statutory Body) के रूप में किया गया था, न कि संविधान के तहत।
- संदर्भ और विस्तार: संवैधानिक निकायों की स्वतंत्रता और निष्पक्षता को संविधान द्वारा सुनिश्चित किया जाता है, जबकि वैधानिक निकायों की शक्तियां और कार्य उस अधिनियम द्वारा परिभाषित होते हैं जिसके तहत उनका गठन किया गया है।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b), और (d) सभी संवैधानिक निकाय हैं क्योंकि उनके लिए संविधान में विशिष्ट प्रावधान हैं। NHRC एक वैधानिक निकाय है।
प्रश्न 12: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के अनुसार, संसद राष्ट्रपति की सहमति से कोई भी विधि बना सकती है, जो मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए आवश्यक हो?
- अनुच्छेद 19
- अनुच्छेद 20
- अनुच्छेद 32
- अनुच्छेद 33
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अनुच्छेद 32 ‘संवैधानिक उपचारों का अधिकार’ प्रदान करता है और यह स्वयं में एक मौलिक अधिकार है। यह सर्वोच्च न्यायालय को मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिए रिट जारी करने की शक्ति देता है। संसद को भी राष्ट्रपति की सहमति से, इन अधिकारों के प्रवर्तन के लिए कानून बनाने की शक्ति है।
- संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 32, मौलिक अधिकारों के प्रभावी कार्यान्वयन का आधार है। यह नागरिकों को अपने मौलिक अधिकारों के हनन की स्थिति में सीधे सर्वोच्च न्यायालय जाने का अधिकार देता है।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 19 अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता आदि से संबंधित है। अनुच्छेद 20 दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण देता है। अनुच्छेद 33 संसद को सशस्त्र बलों आदि के संबंध में मौलिक अधिकारों को प्रतिबंधित करने की शक्ति देता है।
प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन भारत में ‘नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक’ (CAG) के पद के बारे में सत्य नहीं है?
- इनकी नियुक्ति भारत के राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- इनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक होता है।
- यह संसद की लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee) के मित्र, मार्गदर्शक और दार्शनिक के रूप में कार्य करता है।
- इनकी अनुपस्थिति में, इनके कार्य को करने के लिए कोई प्रावधान नहीं है।
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 148 के तहत की जाती है। उनका कार्यकाल 6 वर्ष या 65 वर्ष की आयु तक, जो भी पहले हो, होता है (अनुच्छेद 148(3))। CAG अपनी रिपोर्ट संसद के पटल पर रखता है, जिसे लोक लेखा समिति (PAC) द्वारा जाँचा जाता है, जिससे यह PAC के मार्गदर्शक के रूप में कार्य करता है।
- संदर्भ और विस्तार: CAG भारत के सार्वजनिक वित्त का संरक्षक होता है। CAG की अनुपस्थिति में, राष्ट्रपति किसी अन्य व्यक्ति को CAG के कार्यों के निर्वहन के लिए नियुक्त कर सकते हैं, यदि कोई ऐसा व्यक्ति पद पर न हो (अनुच्छेद 148(4) के प्रयोजन के लिए, हालांकि प्रत्यक्ष प्रावधान न होने पर भी सामान्य कार्यकारी शक्ति से यह संभव है)। प्रश्न का विकल्प (d) गलत है क्योंकि CAG की अनुपस्थिति के लिए सामान्य प्रशासनिक और कार्यकारी प्रावधान मौजूद हो सकते हैं।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b), और (c) CAG के बारे में सत्य हैं। विकल्प (d) गलत है क्योंकि CAG के कार्यों को निर्वहन करने के लिए राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किसी व्यक्ति की व्यवस्था की जा सकती है।
प्रश्न 14: भारत की संसद में निम्नलिखित में से कौन शामिल हैं?
- केवल लोकसभा
- लोकसभा और राज्यसभा
- राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा
- राष्ट्रपति, लोकसभा, राज्यसभा और उप-राष्ट्रपति
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अनुच्छेद 79 के अनुसार, भारत की संसद में राष्ट्रपति, राज्यों की परिषद (राज्यसभा) और लोक सभा (लोकसभा) होगी।
- संदर्भ और विस्तार: राष्ट्रपति संसद का एक अभिन्न अंग है, भले ही वह संसद के किसी भी सदन का सदस्य न हो। वह विधायी प्रक्रिया को पूरा करने और कानूनों को लागू करने के लिए आवश्यक है।
- गलत विकल्प: केवल लोकसभा (a) या केवल लोकसभा और राज्यसभा (b) संसद का गठन नहीं करते। उप-राष्ट्रपति (d) राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं, लेकिन वे संसद के सदस्य के रूप में नहीं, बल्कि एक अलग भूमिका में होते हैं, और संसद के गठन में सीधे तौर पर शामिल नहीं हैं।
प्रश्न 15: राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति के संबंध में कौन सा कथन असत्य है?
- यह अनुच्छेद 72 के तहत वर्णित है।
- यह राष्ट्रपति के विवेक पर आधारित है।
- यह न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है।
- राष्ट्रपति, मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल सकते हैं।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति अनुच्छेद 72 में दी गई है। यह शक्ति राष्ट्रपति के विवेक पर आधारित होने के साथ-साथ संविधान के प्रावधानों के अधीन है, और न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है, विशेषकर यदि क्षमादान दुर्भावनापूर्ण तरीके से या अनुचित कारणों से दिया गया हो (जैसे, ‘मरुराम’ बनाम भारत संघ का मामला)। राष्ट्रपति मृत्युदंड को भी क्षमा कर सकते हैं, उसे निलंबित कर सकते हैं, लघु कर सकते हैं या माफ कर सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति में क्षमा (Pardon), लघुकरण (Commutation), विराम (Respite), परिहार (Remission) और प्रविलंबन (Reprieve) शामिल हैं। यह शक्ति न्यायिक निर्णयों को निरस्त करने के लिए नहीं, बल्कि अत्यंत दुर्लभ और विशेष परिस्थितियों में मानवीय आधार पर दी जाती है।
- गलत विकल्प: जबकि यह शक्ति राष्ट्रपति के विवेक पर आधारित है, यह अनियंत्रित नहीं है और न्यायिक समीक्षा के अधीन है। इसलिए, यह कहना कि यह केवल ‘विवेक पर आधारित है’ इसे अपूर्ण बनाता है, और इसे असत्य माना जा सकता है यदि हम अन्य विकल्पों को भी देखें। हालांकि, सबसे स्पष्ट रूप से असत्य कथन यदि ऐसा हो जिसमें पूरी तरह से असत्यता हो, तो वह सबसे अच्छा उत्तर होगा। यहाँ, विकल्प (b) को अन्य विकल्पों की तुलना में ‘असत्य’ मानने की बजाय ‘अधिक विवेकपूर्ण’ या ‘अपर्याप्त’ माना जा सकता है। लेकिन, प्रश्न की प्रकृति को देखते हुए, ‘न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है’ (c) और ‘मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल सकते हैं’ (d) दोनों ही सत्य हैं। क्षमादान पूरी तरह से विवेक पर नहीं होता, बल्कि मार्गदर्शन के लिए नियमों का पालन करना होता है। फिर भी, भारतीय न्यायपालिका ने माना है कि क्षमादान शक्ति को ‘सुसंगत’ आधार पर इस्तेमाल किया जाना चाहिए। सबसे सटीक उत्तर यह होगा कि इसे अनियंत्रित विवेक पर नहीं, बल्कि नियमों और दिशानिर्देशों के अनुसार प्रयोग किया जाना चाहिए। विकल्पों में, (b) को सबसे कमजोर कथन माना जा सकता है यदि हम यह देखें कि यह न्यायिक समीक्षा के अधीन है। परम्परागत रूप से, इसे विवेक पर माना जाता है। सबसे स्पष्ट रूप से असत्य यह है कि यह न्यायिक समीक्षा के अधीन नहीं है (अगर ऐसा विकल्प होता)। दिए गए विकल्पों में, (b) को सबसे सही ‘असत्य’ माना जा सकता है क्योंकि यह शक्ति पूरी तरह से अनियंत्रित या पूर्ण विवेक पर नहीं होती, बल्कि कुछ सैद्धांतिक सीमाओं के अधीन होती है।
प्रश्न 16: निम्नलिखित में से कौन सी भाषा भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में शामिल नहीं है?
- कश्मीरी
- डोगरी
- राजस्थानी
- बोडो
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची में 22 आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध किया गया है। कश्मीरी, डोगरी और बोडो इस सूची में शामिल हैं। राजस्थानी भाषा को आधिकारिक तौर पर 22 भाषाओं में शामिल नहीं किया गया है, हालांकि यह भारत में व्यापक रूप से बोली जाती है।
- संदर्भ और विस्तार: डोगरी को 92वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2003 द्वारा जोड़ा गया था, साथ ही बोडो, मैथिली और संथाली को भी। कश्मीरी शुरुआत से ही सूची में थी।
- गलत विकल्प: कश्मीरी, डोगरी और बोडो सभी आठवीं अनुसूची में शामिल हैं। राजस्थानी को इस अनुसूची में शामिल नहीं किया गया है।
प्रश्न 17: भारत में ‘आपातकाल’ (Emergency) की उद्घोषणा राष्ट्रपति द्वारा केवल__________ की लिखित सलाह पर ही की जा सकती है।
- प्रधानमंत्री
- केंद्रीय मंत्रिमंडल
- सुरक्षा परिषद
- उप-प्रधानमंत्री
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा के लिए, यह आवश्यक है कि राष्ट्रपति को केंद्रीय मंत्रिमंडल (Union Cabinet) की लिखित सलाह मिले। यह प्रावधान 44वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1978 द्वारा जोड़ा गया था।
- संदर्भ और विस्तार: इस संशोधन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि आपातकाल की घोषणा प्रधानमंत्री की व्यक्तिगत सलाह पर नहीं, बल्कि मंत्रिमंडल की सामूहिक और लिखित सलाह पर ही हो, जिससे इसके दुरुपयोग को रोका जा सके।
- गलत विकल्प: केवल प्रधानमंत्री (a) की सलाह पर्याप्त नहीं है। सुरक्षा परिषद (c) या उप-प्रधानमंत्री (d) का कोई संवैधानिक प्रावधान नहीं है।
प्रश्न 18: निम्नलिखित में से कौन सी शक्ति केवल लोकसभा को प्राप्त है, राज्यसभा को नहीं?
- संविधान में संशोधन करना
- अविश्वास प्रस्ताव पारित करना
- राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाना
- सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाना
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अविश्वास प्रस्ताव (No-confidence motion) केवल लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है और पारित किया जा सकता है (अनुच्छेद 75(3) के निहितार्थ)। यदि सरकार लोकसभा में बहुमत खो देती है, तो उसे इस्तीफा देना पड़ता है।
- संदर्भ और विस्तार: संविधान संशोधन (a) दोनों सदनों द्वारा विशेष बहुमत से होता है। राष्ट्रपति पर महाभियोग (c) किसी भी सदन में शुरू किया जा सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाना (d) भी किसी भी सदन में महाभियोग की प्रक्रिया से होता है।
- गलत विकल्प: संविधान संशोधन, राष्ट्रपति पर महाभियोग और न्यायाधीशों को हटाना, ये ऐसी प्रक्रियाएं हैं जिनमें राज्यसभा की भी भूमिका होती है। केवल अविश्वास प्रस्ताव ही वह शक्ति है जो विशुद्ध रूप से लोकसभा को प्राप्त है।
प्रश्न 19: ‘संवैधानिक संशोधन’ (Constitutional Amendment) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
- सभी संशोधन केवल साधारण बहुमत (Simple Majority) से किए जा सकते हैं।
- कुछ संशोधनों के लिए विशेष बहुमत (Special Majority) की आवश्यकता होती है।
- संविधान का कोई भी भाग अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित नहीं किया जा सकता।
- संविधान संशोधन विधेयक पर राष्ट्रपति की सहमति अनिवार्य नहीं है।
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अनुच्छेद 368 संविधान संशोधन की प्रक्रिया से संबंधित है। यह दो प्रकार के बहुमत का प्रावधान करता है: विशेष बहुमत (अनुच्छेद 368(2)) और विशेष बहुमत के साथ-साथ आधे से अधिक राज्यों के विधानमंडलों द्वारा अनुसमर्थन (अनुच्छेद 368(2) का परंतुक)। कुछ संशोधनों के लिए साधारण बहुमत (अनुच्छेद 368(1) का स्पष्टीकरण) की भी आवश्यकता होती है।
- संदर्भ और विस्तार: संविधान संशोधन के विभिन्न तरीके होते हैं: कुछ साधारण बहुमत से, कुछ विशेष बहुमत से, और कुछ विशेष बहुमत के साथ-साथ आधे राज्यों के अनुसमर्थन से। मौलिक अधिकारों में संशोधन के लिए विशेष बहुमत आवश्यक है (केशवानंद भारती मामले के बाद)।
- गलत विकल्प: सभी संशोधन साधारण बहुमत से नहीं होते (a)। संविधान का कोई भी भाग संशोधित किया जा सकता है, जब तक कि वह मूल ढांचे को प्रभावित न करे (c)। राष्ट्रपति की सहमति संविधान संशोधन विधेयक के लिए अनिवार्य है (d)।
प्रश्न 20: भारत का एक नागरिक, अपनी नागरिकता खो सकता है, यदि वह:
- किसी विदेशी राष्ट्र के साथ युद्ध में भाग लेता है।
- किसी विदेशी राष्ट्र के लिए स्वेच्छा से नागरिकता प्राप्त कर लेता है।
- भारत सरकार के विरुद्ध शस्त्र उठाता है।
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: नागरिकता अधिनियम, 1955, नागरिकता के अधिग्रहण और समाप्ति से संबंधित है। नागरिकता समाप्ति (Renunciation), समापन (Termination) और वंचना (Forfeiture) के माध्यम से हो सकती है। यदि कोई भारतीय नागरिक स्वेच्छा से किसी विदेशी राज्य की नागरिकता प्राप्त कर लेता है, तो उसकी भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है (समापन)। यदि कोई व्यक्ति स्वेच्छा से अपनी नागरिकता का त्याग करता है, तो वह भी नागरिकता का परित्याग है। इसके अलावा, असाधारण परिस्थितियों में, सरकार कुछ आधारों पर नागरिकता छीन सकती है, जैसे कि युद्ध के दौरान शत्रु की सहायता करना या नागरिकता प्राप्त करने में धोखेबाजी करना।
- संदर्भ और विस्तार: तीनों ही स्थितियाँ (a, b, c) अप्रत्यक्ष या प्रत्यक्ष रूप से नागरिकता के परित्याग या वंचना के अधीन आ सकती हैं। विशेष रूप से, विकल्प (b) ‘समापन’ का सीधा उदाहरण है। विकल्प (a) और (c) को ‘वंचना’ के तहत या राष्ट्रीय सुरक्षा के उल्लंघन के तहत नागरिकता समाप्त करने के आधार के रूप में माना जा सकता है।
- गलत विकल्प: चूंकि तीनों ही स्थितियां नागरिकता खोने के संभावित कारण हैं, इसलिए (d) सही उत्तर है।
प्रश्न 21: निम्नलिखित में से कौन सा मूल कर्तव्य भारतीय संविधान में बाद में जोड़ा गया?
- राष्ट्रगान का सम्मान करना
- राज्य के प्रति निष्ठावान रहना
- बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना
- सभी नागरिकों में भाईचारा बढ़ावा देना
उत्तर: (c)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: मूल रूप से संविधान में मौलिक कर्तव्यों का कोई उल्लेख नहीं था। इन्हें 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा भाग IV-क (अनुच्छेद 51-क) के तहत जोड़ा गया था, जिसमें 10 मौलिक कर्तव्य शामिल थे। 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा एक और मौलिक कर्तव्य जोड़ा गया, जो 11वां मौलिक कर्तव्य है, जो 6 से 14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए शिक्षा के अवसर प्रदान करने से संबंधित है।
- संदर्भ और विस्तार: राष्ट्रगान का सम्मान करना, राज्य के प्रति निष्ठावान रहना और भाईचारा बढ़ावा देना, ये सभी 42वें संशोधन द्वारा जोड़े गए शुरुआती 10 मौलिक कर्तव्यों में शामिल थे। बच्चों को शिक्षा के अवसर प्रदान करना (11वां मौलिक कर्तव्य) बाद में जोड़ा गया।
- गलत विकल्प: (a), (b) और (d) 42वें संशोधन का हिस्सा थे। (c) 86वें संशोधन का हिस्सा था, इसलिए यह बाद में जोड़ा गया।
प्रश्न 22: भारतीय संविधान की प्रस्तावना में ‘समाजवाद’ और ‘पंथनिरपेक्ष’ शब्द किस संविधान संशोधन द्वारा जोड़े गए?
- 42वां संशोधन, 1976
- 44वां संशोधन, 1978
- 52वां संशोधन, 1985
- 61वां संशोधन, 1989
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा, भारतीय संविधान की प्रस्तावना में तीन महत्वपूर्ण शब्द जोड़े गए: ‘समाजवादी’ (Socialist), ‘पंथनिरपेक्ष’ (Secular) और ‘अखंडता’ (Integrity)।
- संदर्भ और विस्तार: ये संशोधन भारतीय राज्य की प्रकृति को और स्पष्ट करते हैं और सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय, स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए राष्ट्र की प्रतिबद्धता को मजबूत करते हैं।
- गलत विकल्प: 44वां संशोधन संपत्ति के अधिकार से संबंधित था। 52वां संशोधन दलबदल विरोधी प्रावधानों से संबंधित था। 61वां संशोधन मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष करने से संबंधित था।
प्रश्न 23: निम्नलिखित में से किस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने पहली बार कहा था कि प्रस्तावना संविधान का भाग है?
- बेरुबारी संघ मामला
- केशवानंद भारती मामला
- गोलकनाथ मामला
- एस. आर. बोम्मई मामला
उत्तर: (a)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: 1960 में, ‘बेरुबारी संघ’ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया था कि प्रस्तावना संविधान का भाग नहीं है, बल्कि संविधान निर्माताओं के इरादों को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण मार्गदर्शक है। हालांकि, 1967 में ‘गोलकनाथ’ मामले में, न्यायालय ने कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक महत्वपूर्ण भाग है। परंतु, 1973 में ‘केशवानंद भारती’ मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि प्रस्तावना संविधान का एक अभिन्न अंग है और इसके मूल ढांचे का हिस्सा है।
- संदर्भ और विस्तार: प्रस्तावना को संविधान का भाग मानना महत्वपूर्ण है क्योंकि यदि यह भाग है, तो इसे अनुच्छेद 368 के तहत संशोधित किया जा सकता है (जैसा कि 42वें संशोधन द्वारा किया गया)।
- गलत विकल्प: गोलकनाथ मामले में प्रस्तावना को महत्वपूर्ण भाग माना गया, लेकिन ‘अभिन्न अंग’ नहीं। केशवानंद भारती मामले ने इस सिद्धांत को स्थापित किया। एस. आर. बोम्मई मामला मुख्य रूप से राष्ट्रपति शासन (अनुच्छेद 356) से संबंधित है।
प्रश्न 24: निम्नलिखित में से कौन एक ‘संवैधानिक संशोधन’ के माध्यम से जोड़ा गया मौलिक अधिकार है?
- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21)
- शिक्षा का अधिकार (अनुच्छेद 21-A)
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25-28)
- समानता का अधिकार (अनुच्छेद 14-18)
उत्तर: (b)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: शिक्षा का अधिकार (Right to Education) को 86वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2002 द्वारा संविधान के भाग III में अनुच्छेद 21-A के रूप में जोड़ा गया था, जो 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए मुफ्त और अनिवार्य शिक्षा का अधिकार प्रदान करता है।
- संदर्भ और विस्तार: यह संशोधन स्वतंत्रता के अधिकार (भाग III) के तहत एक नया मौलिक अधिकार है, जिसे विशेष रूप से शिक्षा को सभी बच्चों के लिए सुलभ और मौलिक बनाने के उद्देश्य से जोड़ा गया था।
- गलत विकल्प: जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (a), धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार (c), और समानता का अधिकार (d) मूल संविधान का हिस्सा थे, न कि किसी बाद के संवैधानिक संशोधन द्वारा जोड़े गए।
प्रश्न 25: निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद ‘राज्य के नीति निदेशक तत्वों’ (DPSP) से संबंधित नहीं है?
- अनुच्छेद 38
- अनुच्छेद 40
- अनुच्छेद 44
- अनुच्छेद 32
उत्तर: (d)
विस्तृत व्याख्या:
- सत्यता और अनुच्छेद/संशोधन संदर्भ: अनुच्छेद 38 (लोक कल्याण को बढ़ावा देना), अनुच्छेद 40 (ग्राम पंचायतों का गठन) और अनुच्छेद 44 (नागरिकों के लिए समान सिविल संहिता) सभी भारतीय संविधान के भाग IV (राज्य के नीति निदेशक तत्व) में शामिल हैं। अनुच्छेद 32 ‘संवैधानिक उपचारों का अधिकार’ से संबंधित है, जो भाग III (मौलिक अधिकार) का हिस्सा है।
- संदर्भ और विस्तार: DPSP राज्य को सामाजिक और आर्थिक लोकतंत्र को बढ़ावा देने के लिए कुछ सिद्धांतों का पालन करने का निर्देश देते हैं। मौलिक अधिकार न्यायोचित (Justiciable) होते हैं, जबकि DPSP गैर-न्यायोचित (Non-justiciable) होते हैं।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 38, 40 और 44 DPSP से संबंधित हैं। अनुच्छेद 32 मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन से संबंधित है, जो DPSP का हिस्सा नहीं है।