संविधान की रक्षा: दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला और संसद की सर्वोच्चता

संविधान की रक्षा: दिल्ली हाई कोर्ट का फैसला और संसद की सर्वोच्चता

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में दिल्ली उच्च न्यायालय ने एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है जिसमें उसने भारतीय न्यायपालिका की सीमाओं और संसद की कानून बनाने की सर्वोच्च शक्ति को रेखांकित किया है। यह फैसला BNS (एक कानून, संभवतः बच्चों के यौन शोषण से संबंधित) की कुछ धाराओं को हटाने की याचिका को खारिज करने से जुड़ा है। न्यायालय ने स्पष्ट रूप से कहा कि वह संसद को कानून बनाने या उनमें संशोधन करने के लिए निर्देश नहीं दे सकता। यह निर्णय संविधान की व्याख्या और संसदीय प्रभुत्व के सिद्धांत पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालता है और UPSC परीक्षा के लिए संवैधानिक कानून की गहरी समझ की आवश्यकता पर जोर देता है।

यह फैसला संविधान के मूल ढांचे और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को समझने के लिए बेहद महत्वपूर्ण है। इस लेख में हम इस फैसले के निहितार्थों, संसद की शक्तियों, न्यायपालिका की भूमिका और इस मामले से जुड़े संवैधानिक पहलुओं पर विस्तृत चर्चा करेंगे।

संविधान और संसद की सर्वोच्चता:

भारतीय संविधान एक संसदीय लोकतंत्र है, जहाँ संसद सर्वोच्च विधायी संस्था है। अनुच्छेद 245 संसद को पूरे भारत या उसके किसी भी भाग में कानून बनाने का अधिकार प्रदान करता है। यह अधिकार व्यापक है और संसद को विभिन्न विषयों पर कानून बनाने की शक्ति देता है, बशर्ते कि वे संविधान के अनुरूप हों। इस शक्ति का उपयोग करते हुए, संसद ने विभिन्न कानून बनाए हैं, जिनमें से कुछ अत्यंत महत्वपूर्ण सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन लाए हैं।

हालांकि, संसद की सर्वोच्चता का अर्थ यह नहीं है कि वह मनमाना कानून बना सकती है। संविधान में मौलिक अधिकारों और निर्देशक सिद्धांतों की धाराएं हैं जो संसद की विधायी शक्तियों को सीमित करती हैं। न्यायपालिका की भूमिका यही है कि वह सुनिश्चित करे कि संसद द्वारा बनाये गये कानून संविधान के अनुरूप हैं। यदि कोई कानून संविधान के विपरीत पाया जाता है, तो न्यायपालिका उसे रद्द कर सकती है।

दिल्ली उच्च न्यायालय का फैसला:

दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले में न्यायालय ने स्पष्ट किया कि वह संसद को कानून बनाने या उनमें संशोधन करने के लिए निर्देश नहीं दे सकता। न्यायालय का मानना ​​है कि कानून बनाना और उनमें बदलाव करना संसद का काम है, और न्यायपालिका की भूमिका केवल उन कानूनों की संवैधानिक वैधता की जांच करना है। यह फैसला शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को मजबूत करता है, जो यह सुनिश्चित करता है कि राज्य की विभिन्न शाखाएँ अपनी-अपनी सीमाओं के भीतर कार्य करें।

न्यायपालिका की भूमिका कानून की व्याख्या करना और संविधान की रक्षा करना है, न कि संसद के लिए कानून बनाने का निर्णय लेना।

शक्तियों का पृथक्करण: एक संतुलन

भारतीय संविधान शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत पर आधारित है, जो विधायिका (संसद), कार्यपालिका (सरकार) और न्यायपालिका (न्यायालय) को अलग-अलग और स्वतंत्र शक्तियों के साथ काम करने की अनुमति देता है। यह सिद्धांत तानाशाही को रोकने और सरकार के दुरूपयोग को रोकने के लिए महत्वपूर्ण है। हालांकि, यह एक पूर्ण पृथक्करण नहीं है, बल्कि एक गतिशील संतुलन है, जहाँ प्रत्येक शाखा अन्य शाखाओं के कार्यों पर एक नियंत्रण रखती है।

  • विधायिका: कानून बनाना
  • कार्यपालिका: कानून का क्रियान्वयन
  • न्यायपालिका: कानून की व्याख्या और न्याय प्रदान करना

याचिका और उसके निहितार्थ:

याचिका में BNS की कुछ धाराओं को हटाने की मांग की गई थी। हालांकि, न्यायालय ने इस तर्क को खारिज कर दिया कि संसद को कानून बनाने और संशोधन करने का अधिकार है। इस फैसले के व्यापक निहितार्थ हैं। यह स्पष्ट करता है कि न्यायपालिका संसद के विधायी अधिकार में हस्तक्षेप नहीं कर सकती, सिवाय तब जब कोई कानून संविधान का उल्लंघन करता हो। यह संविधान की सर्वोच्चता को मजबूत करता है और शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को पुनः पुष्ट करता है।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह:

इस फैसले के बावजूद, कानून निर्माण प्रक्रिया में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया गया है। सार्वजनिक राय और हितधारकों की भागीदारी को सुनिश्चित करने के लिए अधिक पारदर्शिता और जवाबदेही की आवश्यकता है। यह सुनिश्चित करना भी आवश्यक है कि कानून समाज के सभी वर्गों के लिए न्यायसंगत और निष्पक्ष हों।

भविष्य में, न्यायपालिका को संविधान की रक्षा करने और कानूनों की संवैधानिक वैधता सुनिश्चित करने में अपनी भूमिका निभाते रहना चाहिए। संसद को भी यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि उसके द्वारा बनाए गए कानून जनता के हित में हों और संविधान के सिद्धांतों का पालन करें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. **कथन 1:** भारतीय संविधान संसदीय प्रणाली पर आधारित है। **कथन 2:** संसद को कानून बनाने का सर्वोच्च अधिकार प्राप्त है।
a) केवल कथन 1 सही है
b) केवल कथन 2 सही है
c) दोनों कथन सही हैं
d) दोनों कथन गलत हैं
**उत्तर:** c) दोनों कथन सही हैं

2. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था संसद द्वारा बनाए गए कानूनों की संवैधानिक वैधता की जांच करती है?
a) कार्यपालिका
b) विधायिका
c) न्यायपालिका
d) निर्वाचन आयोग
**उत्तर:** c) न्यायपालिका

3. शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत किस बात को सुनिश्चित करता है?
a) एक शाखा की दूसरी शाखा पर पूर्ण नियंत्रण
b) राज्य की विभिन्न शाखाओं का स्वतंत्र कार्य
c) विधायिका का सर्वोच्चता
d) कार्यपालिका का सर्वोच्चता
**उत्तर:** b) राज्य की विभिन्न शाखाओं का स्वतंत्र कार्य

4. दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया फैसले ने किस सिद्धांत को रेखांकित किया है?
a) न्यायिक सक्रियता
b) शक्तियों का पृथक्करण
c) संवैधानिक सर्वोच्चता
d) उपरोक्त सभी
**उत्तर:** b) शक्तियों का पृथक्करण

5. संविधान के किस अनुच्छेद में संसद को कानून बनाने का अधिकार दिया गया है?
a) अनुच्छेद 245
b) अनुच्छेद 32
c) अनुच्छेद 141
d) अनुच्छेद 76
**उत्तर:** a) अनुच्छेद 245

6. संसद द्वारा बनाया गया कोई कानून संविधान के विरुद्ध पाए जाने पर क्या होता है?
a) उसे स्वतः ही रद्द कर दिया जाता है
b) न्यायपालिका उसे रद्द कर सकती है
c) कार्यपालिका उसे रद्द कर सकती है
d) उसे संसद स्वयं रद्द कर सकती है
**उत्तर:** b) न्यायपालिका उसे रद्द कर सकती है

7. क्या न्यायपालिका संसद को कानून बनाने के लिए निर्देश दे सकती है?
a) हाँ, सभी मामलों में
b) हाँ, केवल संवैधानिक उल्लंघन के मामलों में
c) नहीं, किसी भी मामले में नहीं
d) केवल संसद की अनुमति से
**उत्तर:** c) नहीं, किसी भी मामले में नहीं

8. शक्तियों के पृथक्करण का सिद्धांत किस प्रकार के लोकतंत्र में महत्वपूर्ण है?
a) प्रत्यक्ष लोकतंत्र
b) अप्रत्यक्ष लोकतंत्र
c) संसदीय लोकतंत्र
d) उपरोक्त सभी
**उत्तर:** d) उपरोक्त सभी

9. दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया फैसले का क्या निहितार्थ है?
a) संसद की सर्वोच्चता का पुष्टिकरण
b) न्यायपालिका की सीमाओं का निर्धारण
c) शक्तियों के पृथक्करण का पुनः पुष्टिकरण
d) उपरोक्त सभी
**उत्तर:** d) उपरोक्त सभी

10. भारतीय संविधान में मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करने वाले कानूनों के संदर्भ में न्यायपालिका की क्या भूमिका है?
a) उन्हें स्वीकार करना
b) उन्हें चुनौती देना और रद्द करने की सिफारिश करना
c) संसद को संशोधन के लिए निर्देश देना
d) कार्यपालिका को कानून को लागू करने से रोकना
**उत्तर:** b) उन्हें चुनौती देना और रद्द करने की सिफारिश करना

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. दिल्ली उच्च न्यायालय के हालिया फैसले के संदर्भ में, संसद की सर्वोच्चता और न्यायपालिका की भूमिका पर चर्चा कीजिए। क्या इस फैसले से शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत को मजबूती मिली है? तर्क सहित व्याख्या कीजिए।

2. भारतीय संविधान में शक्तियों के पृथक्करण के सिद्धांत की व्याख्या कीजिए। इस सिद्धांत की सीमाओं और चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए, विशेष रूप से न्यायिक समीक्षा के संदर्भ में।

3. संविधान के मूल ढाँचे के सिद्धांत का वर्णन करें और यह कैसे संसद की विधायी शक्तियों को सीमित करता है। दिल्ली उच्च न्यायालय के फैसले की इस सिद्धांत से क्या संगति है?

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