संविधान की पकड़ मज़बूत करें: आज के 25 चुनौतीपूर्ण प्रश्न
भारतीय लोकतंत्र के आधार स्तंभों को समझना हर जागरूक नागरिक और प्रतियोगी परीक्षा के अभ्यर्थी के लिए अनिवार्य है। अपनी संवैधानिक समझ को धार देने और अवधारणाओं को स्पष्ट करने के लिए तैयार हो जाइए। आज हम आपके लिए लाए हैं भारतीय राजव्यवस्था और संविधान पर आधारित 25 अति महत्वपूर्ण प्रश्न, जो आपकी तैयारी को एक नई दिशा देंगे। आइए, इस ज्ञानवर्धक यात्रा पर निकल पड़ें!
भारतीय राजव्यवस्था और संविधान अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: निम्नलिखित में से किस वाद में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यवस्था दी कि ‘न्यायिक सक्रियता’ (Judicial Activism) संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करती?
- एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981)
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)
- इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ (1992)
- शंकरी प्रसाद देव बनाम भारत संघ (1951)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: एस. पी. गुप्ता बनाम भारत संघ (1981) के मामले में, जिसे ‘प्रथम न्यायाधीश वाद’ (First Judges Case) के नाम से भी जाना जाता है, सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि न्यायिक सक्रियता, विशेष रूप से लोकहित वाद (PIL) के माध्यम से, संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करती। इसमें न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर भी निर्णय दिया गया था।
- संदर्भ और विस्तार: इस वाद ने लोकहित वादों को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे न्यायपालिका आम जनता के अधिकारों की रक्षा के लिए अधिक सक्रिय हो सकी।
- अमान्य विकल्प: मेनका गांधी वाद (1978) ने ‘प्रक्रिया विधि’ के साथ-साथ ‘सारभूत विधि’ (Substantive Law) पर भी ‘जीवन के अधिकार’ (अनुच्छेद 21) के विस्तार को परिभाषित किया। इंदिरा साहनी वाद (1992) आरक्षण से संबंधित है, और शंकरी प्रसाद वाद (1951) संविधान संशोधन की संसद की शक्ति से संबंधित है।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सा अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को प्राप्त है, विदेशियों को नहीं?
- विधि के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)
- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 21)
- धर्म की स्वतंत्रता का अधिकार (अनुच्छेद 25)
- लोक नियोजन के विषयों में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान का अनुच्छेद 16 केवल भारतीय नागरिकों को “लोक नियोजन के विषयों में अवसर की समानता” का अधिकार प्रदान करता है। यह एक महत्वपूर्ण अधिकार है जो सुनिश्चित करता है कि सरकारी नौकरियों में सभी नागरिकों को समान अवसर मिलें।
- संदर्भ और विस्तार: यह अधिकार भारत को एक संप्रभु, समाजवादी, धर्मनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य बनाने के हमारे संवैधानिक लक्ष्यों को दर्शाता है।
- अमान्य विकल्प: अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता), और अनुच्छेद 25 (धर्म की स्वतंत्रता) भारत में निवास करने वाले सभी व्यक्तियों, चाहे वे नागरिक हों या विदेशी, को प्राप्त हैं।
प्रश्न 3: संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का प्रावधान किस देश के संविधान से लिया गया है?
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- ब्रिटेन
- ऑस्ट्रेलिया
- कनाडा
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान में, संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक का प्रावधान (अनुच्छेद 108) ऑस्ट्रेलिया के संविधान से प्रेरित है। यह प्रावधान तब बुलाया जाता है जब किसी विधेयक पर दोनों सदनों में गतिरोध उत्पन्न हो जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: इस संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है, और विधेयक को साधारण बहुमत से पारित किया जाता है। यह विधेयक पारित करने की प्रक्रिया में एक महत्वपूर्ण तंत्र है।
- अमान्य विकल्प: संयुक्त राज्य अमेरिका से संघात्मक व्यवस्था, न्यायिक पुनर्विलोकन लिया गया है। ब्रिटेन से संसदीय शासन प्रणाली, विधि का शासन लिया गया है। कनाडा से अर्ध-संघात्मक स्वरूप और अवशिष्ट शक्तियां ली गई हैं।
प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सी ‘प्रयोजन’ (Purpose) की शब्दावली प्रस्तावना में शामिल नहीं है?
- न्याय
- बंधुत्व
- व्यक्ति की गरिमा
- स्वतंत्रता
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत की प्रस्तावना में न्याय (सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक), स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म, उपासना), समानता (प्रतिष्ठा और अवसर) और बंधुत्व (व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता और अखंडता) का उल्लेख है। ‘व्यक्ति की गरिमा’ एक परिणाम है जिसे बंधुत्व के माध्यम से प्राप्त किया जाता है, न कि स्वयं में एक अलग प्रयोजन के रूप में सूचीबद्ध।
- संदर्भ और विस्तार: प्रस्तावना भारत के संविधान का परिचय और सार प्रस्तुत करती है। यह संविधान के उद्देश्यों को दर्शाती है।
- अमान्य विकल्प: न्याय, स्वतंत्रता और बंधुत्व प्रस्तावना में उल्लिखित प्रमुख उद्देश्य हैं। व्यक्ति की गरिमा बंधुत्व का एक महत्वपूर्ण पहलू है, न कि एक अलग प्रयोजन।
प्रश्न 5: अनुच्छेद 32 के तहत सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जारी किए जाने वाले रिटों में कौन सी रिट किसी व्यक्ति को लोक पद धारण करने की वैधता को चुनौती देने के लिए जारी की जाती है?
- परमादेश (Mandamus)
- उत्प्रेषण (Certiorari)
- अधिकार पृच्छा (Quo Warranto)
- प्रतिषेध (Prohibition)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘अधिकार पृच्छा’ (Quo Warranto) रिट किसी व्यक्ति द्वारा अवैध रूप से लोक पद धारण करने पर प्रश्न उठाने के लिए जारी की जाती है। यह पूछता है कि ‘आप किस अधिकार से पद पर हैं’।
- संदर्भ और विस्तार: यह रिट सुनिश्चित करती है कि कोई व्यक्ति गैर-कानूनी तरीके से सरकारी पद पर न बैठा रहे। यह अनुच्छेद 32 (सर्वोच्च न्यायालय) और अनुच्छेद 226 (उच्च न्यायालय) के तहत उपलब्ध है।
- अमान्य विकल्प: परमादेश किसी लोक प्राधिकारी को उसका कर्तव्य करने का आदेश है। उत्प्रेषण किसी निचली अदालत के निर्णय को रद्द करने के लिए है, और प्रतिषेध किसी निचली अदालत को अपने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाने से रोकने के लिए है।
प्रश्न 6: भारत के महान्यायवादी (Attorney General) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
- वह केवल सर्वोच्च न्यायालय में भारत सरकार की ओर से पैरवी करता है।
- उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री की सलाह पर की जाती है।
- वह सदन की कार्यवाही में भाग ले सकता है लेकिन मत नहीं दे सकता।
- वह संसद का सदस्य होता है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत के महान्यायवादी (Attorney General) का उल्लेख अनुच्छेद 76 में है। वह भारत सरकार का मुख्य कानूनी सलाहकार होता है और किसी भी न्यायालय में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करता है, साथ ही वह किसी भी सदन की कार्यवाही में भाग ले सकता है लेकिन मत नहीं दे सकता (अनुच्छेद 88)।
- संदर्भ और विस्तार: महान्यायवादी संसद का सदस्य नहीं होता, लेकिन उसे संसदीय विशेषाधिकार प्राप्त होते हैं। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- अमान्य विकल्प: महान्यायवादी सभी भारतीय अदालतों में सरकार का प्रतिनिधित्व करता है, वह केवल सर्वोच्च न्यायालय तक सीमित नहीं है। उसकी नियुक्ति सीधे प्रधानमंत्री की सलाह पर नहीं, बल्कि राष्ट्रपति द्वारा की जाती है, हालांकि व्यवहार में यह सरकार की सलाह पर होती है। वह संसद का सदस्य नहीं होता।
प्रश्न 7: पंचायती राज व्यवस्था को संवैधानिक दर्जा प्रदान करने वाला 73वां संविधान संशोधन अधिनियम किस वर्ष पारित हुआ?
- 1990
- 1991
- 1992
- 1993
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 73वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने भारतीय संविधान में भाग IX जोड़ा, जिसमें अनुच्छेद 243 से 243-O तक पंचायती राज संस्थाओं (PRIs) से संबंधित प्रावधान हैं, और ग्यारहवीं अनुसूची जोड़ी गई।
- संदर्भ और विस्तार: यह संशोधन पंचायती राज संस्थाओं को एक संवैधानिक दर्जा प्रदान करता है, जिससे वे अधिक शक्तिशाली और जवाबदेह बनी हैं।
- अमान्य विकल्प: संशोधन 1992 में अधिनियमित हुआ और 24 अप्रैल 1993 को लागू हुआ। इसलिए, वर्ष 1992 को अधिनियमन के वर्ष के रूप में स्वीकार किया जाता है।
प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सी आपातकालीन स्थिति के लिए भारतीय संविधान में कोई विशेष प्रावधान नहीं है?
- राष्ट्रीय आपातकाल
- राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता
- वित्तीय आपातकाल
- आंतरिक अशांति के आधार पर आपातकाल
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान में राष्ट्रीय आपातकाल (अनुच्छेद 352), राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता (जिसे आमतौर पर राष्ट्रपति शासन कहते हैं, अनुच्छेद 356), और वित्तीय आपातकाल (अनुच्छेद 360) के प्रावधान हैं। ‘आंतरिक अशांति’ (Internal Disturbance) के आधार पर आपातकाल घोषित करने का प्रावधान 44वें संविधान संशोधन, 1978 द्वारा ‘आंतरिक अशांति’ को ‘सशस्त्र विद्रोह’ (Armed Rebellion) से बदल दिया गया था, ताकि इसका दुरुपयोग रोका जा सके। इसलिए, केवल ‘आंतरिक अशांति’ के आधार पर आपातकाल का कोई सीधा प्रावधान अब नहीं है, बल्कि ‘सशस्त्र विद्रोह’ का है।
- संदर्भ और विस्तार: 44वें संशोधन का उद्देश्य राष्ट्रीय आपातकाल के दुरुपयोग को रोकना था, जो कि 1975-77 के दौरान हुआ था।
- अमान्य विकल्प: राष्ट्रीय आपातकाल (352), राष्ट्रपति शासन (356) और वित्तीय आपातकाल (360) के स्पष्ट प्रावधान हैं।
प्रश्न 9: ‘धर्मनिरपेक्ष’ (Secular) शब्द को भारतीय संविधान की प्रस्तावना में किस संविधान संशोधन द्वारा जोड़ा गया?
- 42वां संशोधन, 1976
- 44वां संशोधन, 1978
- 52वां संशोधन, 1985
- 73वां संशोधन, 1992
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘समाजवादी’, ‘धर्मनिरपेक्ष’, और ‘अखंडता’ शब्दों को 42वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा प्रस्तावना में जोड़ा गया था।
- संदर्भ और विस्तार: इन शब्दों को जोड़ने से भारत की पहचान एक धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र के रूप में और मजबूत हुई, जहाँ राज्य का अपना कोई धर्म नहीं है और वह सभी धर्मों का समान आदर करता है।
- अमान्य विकल्प: 44वें संशोधन ने संपत्ति के अधिकार से संबंधित प्रावधानों को बदला। 52वें संशोधन ने दल-बदल विरोधी प्रावधानों को जोड़ा। 73वें संशोधन ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया।
प्रश्न 10: भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
- CAG की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है।
- CAG को संसद के दोनों सदनों द्वारा महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है।
- CAG अपना वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को सौंपता है, जो इसे संसद के समक्ष रखता है।
- CAG अपने कार्यकाल के बाद भारत सरकार के अधीन कोई भी पद धारण कर सकता है।
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है (अनुच्छेद 148)। CAG को केवल सिद्ध कदाचार या असमर्थता के आधार पर, संसद के दोनों सदनों द्वारा पारित प्रस्ताव के आधार पर हटाया जा सकता है, जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की प्रक्रिया के समान है (अनुच्छेद 148(1) और 124(4))। CAG अपना वार्षिक प्रतिवेदन राष्ट्रपति को सौंपता है, जो इसे संसद के समक्ष रखता है (अनुच्छेद 151)। CAG अपने कार्यकाल के बाद भारत सरकार या किसी राज्य सरकार के अधीन कोई भी पद धारण करने के लिए पात्र नहीं होता, जिससे उसकी स्वतंत्रता सुनिश्चित होती है।
- संदर्भ और विस्तार: CAG भारत के सार्वजनिक धन का संरक्षक है और उसकी स्वतंत्रता उसकी निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
- अमान्य विकल्प: उपरोक्त सभी कथन सत्य हैं सिवाय चौथे के, क्योंकि CAG अपने कार्यकाल के बाद कोई भी सरकारी पद धारण नहीं कर सकता।
प्रश्न 11: निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद राष्ट्रपति की अध्यादेश जारी करने की शक्ति से संबंधित है?
- अनुच्छेद 123
- अनुच्छेद 111
- अनुच्छेद 110
- अनुच्छेद 109
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 123 राष्ट्रपति को संसद के अवकाश काल में अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है। ये अध्यादेश संसद के पुनःसत्र में आने के छह सप्ताह के भीतर अनुमोदित होने चाहिए, अन्यथा वे स्वतः निष्प्रभावी हो जाते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: अध्यादेशों को जारी करने की शक्ति न्यायपालिका के लिए एक अपवाद है, यह मानते हुए कि यह केवल उन परिस्थितियों में उपयोग किया जाना चाहिए जब संसद का सत्र न हो और तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता हो।
- अमान्य विकल्प: अनुच्छेद 111 राष्ट्रपति की विधायी शक्ति (विधेयकों पर सहमति) से संबंधित है। अनुच्छेद 110 धन विधेयकों की परिभाषा से संबंधित है, और अनुच्छेद 109 धन विधेयकों के संबंध में विशेष प्रक्रियाओं से।
प्रश्न 12: सर्वोच्च न्यायालय की ‘सलाहकारी अधिकारिता’ (Advisory Jurisdiction) का उल्लेख संविधान के किस अनुच्छेद में है?
- अनुच्छेद 131
- अनुच्छेद 132
- अनुच्छेद 143
- अनुच्छेद 145
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 143 राष्ट्रपति को सार्वजनिक महत्व के प्रश्नों पर या किसी संधि, आदि से उत्पन्न होने वाले या उससे संबंधित किसी भी प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने की अनुमति देता है।
- संदर्भ और विस्तार: हालांकि सर्वोच्च न्यायालय की राय राष्ट्रपति पर बाध्यकारी नहीं होती, यह निर्णय लेने की प्रक्रिया में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
- अमान्य विकल्प: अनुच्छेद 131 मूल अधिकारिता से, अनुच्छेद 132 अपीलीय अधिकारिता (कुछ मामलों में) से, और अनुच्छेद 145 सर्वोच्च न्यायालय के नियमों से संबंधित हैं।
प्रश्न 13: ‘संसद के स्थगन’ (Adjournment of the House) का क्या अर्थ है?
- सत्र का अंत
- संसद की बैठक को अनिश्चित काल के लिए स्थगित करना
- संसद की बैठक को कुछ घंटों या दिनों के लिए स्थगित करना
- संसद का भंग होना
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘संसद का स्थगन’ (Adjournment of the House) का अर्थ है कि सदन की बैठक को कुछ घंटों, दिनों या हफ्तों के लिए स्थगित किया जा रहा है। यह सत्र के अंत (Prorogation) या सदन के भंग (Dissolution) होने से भिन्न है।
- संदर्भ और विस्तार: स्थगन की घोषणा पीठासीन अधिकारी (अध्यक्ष/सभापति) द्वारा की जाती है। यह सदन के कामकाज को कुछ समय के लिए रोक देता है।
- अमान्य विकल्प: सत्र का अंत (Prorogation) राष्ट्रपति द्वारा किया जाता है और सभी लंबित विधायी कार्यों को समाप्त कर देता है। सदन का भंग (Dissolution) लोकसभा के संदर्भ में होता है, जो आम तौर पर चुनाव के बाद होता है।
प्रश्न 14: निम्नलिखित में से कौन सी स्थिति में राष्ट्रपति को अपना पद छोड़ना पड़ सकता है?
- महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा हटाए जाने पर
- त्यागपत्र देने पर
- उपरोक्त दोनों
- इनमें से कोई नहीं
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: राष्ट्रपति अपना पद निम्नलिखित दो मुख्य तरीकों से छोड़ सकते हैं:
1. महाभियोग (Impeachment): अनुच्छेद 61 के तहत, संविधान के उल्लंघन के आरोप में उन्हें महाभियोग की प्रक्रिया द्वारा हटाया जा सकता है।
2. त्यागपत्र (Resignation): राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को संबोधित करते हैं, जो यह त्यागपत्र उपराष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति पद रिक्त होने की सूचना देने के बाद ही प्रभावी होता है। - संदर्भ और विस्तार: ये दोनों ही राष्ट्रपति के पद से हटने के संवैधानिक तरीके हैं।
- अमान्य विकल्प: ये दोनों ही पद से हटने के तरीके हैं, इसलिए ‘उपरोक्त दोनों’ सही है।
प्रश्न 15: भारत में ‘सार्वजनिक ऋण’ (Public Debt) के प्रबंधन के लिए कौन जिम्मेदार है?
- भारतीय रिजर्व बैंक
- वित्त मंत्रालय
- नीति आयोग
- नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत में सार्वजनिक ऋण का प्रबंधन मुख्य रूप से वित्त मंत्रालय, विशेष रूप से व्यय विभाग और आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा किया जाता है। भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) सरकार के बैंकर के रूप में ऋण के निर्गम (issuance) और प्रबंधन में सहायता करता है, लेकिन अंतिम जिम्मेदारी वित्त मंत्रालय की होती है।
- संदर्भ और विस्तार: सार्वजनिक ऋण में सरकार द्वारा आंतरिक और बाहरी स्रोतों से लिया गया ऋण शामिल है, जो देश के वित्तीय स्वास्थ्य को सीधे प्रभावित करता है।
- अमान्य विकल्प: नीति आयोग एक थिंक टैंक है, ऋण प्रबंधन नहीं करता। CAG लेखा-परीक्षा (audit) करता है, ऋण प्रबंधन नहीं। RBI मौद्रिक नीति और बैंकिंग प्रणाली का पर्यवेक्षण करता है, लेकिन सार्वजनिक ऋण का अंतिम प्रबंधन सरकार के पास होता है।
प्रश्न 16: भारतीय संविधान में ‘संघवाद’ (Federalism) की अवधारणा किस देश के मॉडल से काफी हद तक प्रभावित है?
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- कनाडा
- ऑस्ट्रेलिया
- ग्रेट ब्रिटेन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संघवाद की प्रणाली, जिसमें एक मजबूत केंद्र के साथ राज्यों का संघ शामिल है, कनाडा के मॉडल से अत्यधिक प्रभावित है। कनाडा में भी केंद्र सरकार अधिक शक्तिशाली है, और राज्यों को केंद्र की तुलना में कम स्वायत्तता प्राप्त है।
- संदर्भ और विस्तार: भारतीय संविधान में ‘संघ’ (Union) शब्द का प्रयोग ‘संघराज्य’ (Federation) के स्थान पर किया गया है, जो इस मजबूत केंद्रीकृत प्रवृत्ति को दर्शाता है। अनुच्छेद 1(1) भारत को “राज्यों का एक संघ” घोषित करता है।
- अमान्य विकल्प: अमेरिका का संघवाद राज्यों को अधिक स्वायत्तता देता है। ऑस्ट्रेलिया से संयुक्त बैठक, समवर्ती सूची ली गई है। ब्रिटेन से संसदीय प्रणाली ली गई है।
प्रश्न 17: राज्य के विधानमंडल में ‘धन विधेयक’ (Money Bill) की परिभाषा किस अनुच्छेद में दी गई है?
- अनुच्छेद 199
- अनुच्छेद 110
- अनुच्छेद 207
- अनुच्छेद 245
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 199 राज्य विधानमंडलों के संदर्भ में धन विधेयकों को परिभाषित करता है। यह अनुच्छेद 110 के समान ही है, जो संसद के संदर्भ में धन विधेयकों को परिभाषित करता है।
- संदर्भ और विस्तार: धन विधेयकों को पारित करने की प्रक्रिया संसद और राज्य विधानमंडलों दोनों में विशेष होती है, जिसमें विधानसभा (या लोकसभा) का अधिकार अधिक होता है।
- अमान्य विकल्प: अनुच्छेद 110 धन विधेयकों की राष्ट्रीय परिभाषा है। अनुच्छेद 207 वित्तीय विधेयकों से संबंधित प्रावधानों का वर्णन करता है, और अनुच्छेद 245 संसद की विधायी शक्तियों के विस्तार से संबंधित है।
प्रश्न 18: यदि किसी राज्य के विधानमंडल में कोई विधेयक पारित होने के बाद राज्यपाल उसे राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित (Reserve) कर देता है, तो राष्ट्रपति उस पर क्या निर्णय ले सकते हैं?
- तत्काल अपनी सहमति दे दे।
- अपनी सहमति रोकने के लिए लौटा दे।
- अपनी सहमति रोके रखे।
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 201 के अनुसार, जब कोई विधेयक जिसे राज्यपाल ने राष्ट्रपति के विचार के लिए आरक्षित किया है, राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है, तो राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति दे सकते हैं, या अपनी सहमति को रोक सकते हैं, या यदि वह विधेयक (धन विधेयक के सिवाय) लोक सभा या विधान सभा के पुनर्विचार के लिए लौटाते हैं, और यदि वह विधेयक फिर से उस रूप में पारित हो जाता है (संशोधनों सहित या बिना संशोधनों के), तो राष्ट्रपति उस पर अपनी सहमति देने के लिए बाध्य नहीं होते।
- संदर्भ और विस्तार: यह राष्ट्रपति को ऐसे विधेयकों पर वीटो (veto) शक्ति का प्रयोग करने का अवसर देता है, जो राज्य के विधायी मामलों में केंद्र के महत्व को दर्शाता है।
- अमान्य विकल्प: राष्ट्रपति के पास सहमति देने, रोकने या लौटाने (पुनर्विचार हेतु) तीनों विकल्प हैं, इसलिए उपरोक्त सभी सही हैं।
प्रश्न 19: भारत के प्रथम आम चुनावों में, कितने दल राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त थे?
- 2
- 3
- 4
- 5
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत के पहले आम चुनावों (1952) में, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस, कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (CPI), सोशलिस्ट पार्टी और प्रजा सोशलिस्ट पार्टी जैसे चार दलों को राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता प्राप्त थी।
- संदर्भ और विस्तार: यह भारतीय लोकतांत्रिक व्यवस्था के शुरुआती चरण को दर्शाता है जब कई दल राजनीतिक परिदृश्य में सक्रिय थे।
- अमान्य विकल्प: पहले आम चुनावों में मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय दलों की संख्या चार थी।
प्रश्न 20: निम्नलिखित में से कौन सा राज्य किसी भी राजनीतिक दल को ‘राष्ट्रीय दल’ का दर्जा प्राप्त करने के लिए आवश्यक शर्तों में से एक को पूरा करता है?
- लोकसभा चुनावों में प्राप्त मतों का 4% वोट शेयर, 3 राज्यों में।
- लोकसभा चुनावों में कम से कम 10% सीटें जीतना, 4 राज्यों में।
- लोकसभा चुनावों में प्राप्त मतों का 6% वोट शेयर, 2 राज्यों में, और 4 लोकसभा सीटें जीतना।
- विधानसभा चुनावों में 15% सीटें जीतना, 4 राज्यों में।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: ‘राष्ट्रीय दल’ का दर्जा चुनाव आयोग द्वारा निर्धारित मानदंडों के आधार पर दिया जाता है। एक शर्त यह है कि दल को आम चुनाव में 4 राज्यों में कुल वैध मतों का कम से कम 6% वोट प्राप्त हुआ हो, और उसने 4 लोकसभा सीटें जीती हों। अन्य शर्तों में लोकसभा में कम से कम 2% सीटें जीतना (3 राज्यों से) और कम से कम 11 सीटें जीतना, तथा 4 राज्यों में राज्य दल का दर्जा प्राप्त करना शामिल है।
- संदर्भ और विस्तार: यह राष्ट्रीय दल का दर्जा एक दल को राष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बनाने और अधिक संसाधन आवंटित करने में मदद करता है।
- अमान्य विकल्प: दिए गए अन्य विकल्प राष्ट्रीय दल के दर्जे के लिए निर्धारित मान्य शर्तों से मेल नहीं खाते।
प्रश्न 21: 1992 में संविधान में 74वें संशोधन द्वारा शहरी स्थानीय निकायों (Municipalities) के लिए क्या जोड़ा गया?
- भाग IX-A
- भाग IX
- भाग VIII
- भाग X
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 74वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1992, भारतीय संविधान में भाग IX-A को जोड़ा, जो नगर पालिकाओं (Municipalities) से संबंधित है, जिसमें अनुच्छेद 243-P से 243-ZG तक के प्रावधान शामिल हैं, और बारहवीं अनुसूची जोड़ी गई।
- संदर्भ और विस्तार: इस संशोधन ने शहरी स्थानीय निकायों को संवैधानिक दर्जा और कानूनी आधार प्रदान किया, जिससे स्थानीय स्वशासन को मजबूत किया गया।
- अमान्य विकल्प: भाग IX पंचायती राज से संबंधित है। भाग VIII संघ राज्य क्षेत्रों से, और भाग X अनुसूचित और जनजाति क्षेत्रों से संबंधित है।
प्रश्न 22: किस संविधान संशोधन ने भारत में ‘दसवीं अनुसूची’ (Tenth Schedule) को जोड़ा, जो दलबदल विरोधी प्रावधानों से संबंधित है?
- 42वां संशोधन, 1976
- 44वां संशोधन, 1978
- 52वां संशोधन, 1985
- 61वां संशोधन, 1989
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: 52वां संविधान संशोधन अधिनियम, 1985 ने भारतीय संविधान में दसवीं अनुसूची को जोड़ा, जो सांसदों और विधायकों को दल-बदल के आधार पर अयोग्य ठहराए जाने के प्रावधानों से संबंधित है।
- संदर्भ और विस्तार: इस संशोधन का उद्देश्य राजनीतिक स्थिरता बनाए रखना और सांसदों/विधायकों को एक दल से दूसरे दल में अनैतिक रूप से जाने से रोकना था।
- अमान्य विकल्प: 42वां संशोधन प्रस्तावना में शब्द जोड़ता है, 44वां संशोधन संपत्ति के अधिकार से संबंधित है, और 61वां संशोधन मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष करता है।
प्रश्न 23: भारत के संविधान का कौन सा भाग राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (DPSP) से संबंधित है?
- भाग III
- भाग IV
- भाग V
- भाग VI
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान का भाग IV, जिसमें अनुच्छेद 36 से 51 तक शामिल हैं, राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों (Directive Principles of State Policy – DPSP) का वर्णन करता है।
- संदर्भ और विस्तार: ये सिद्धांत देश के शासन में मूलभूत हैं और कानून बनाने में राज्य द्वारा इन सिद्धांतों को लागू करना राज्य का कर्तव्य है, यद्यपि ये किसी भी न्यायालय में प्रवर्तनीय नहीं हैं।
- अमान्य विकल्प: भाग III मौलिक अधिकारों (Fundamental Rights) से, भाग V संघ की कार्यपालिका और विधायिका से, और भाग VI राज्यों की कार्यपालिका और विधायिका से संबंधित है।
प्रश्न 24: निम्नलिखित में से कौन सी अभिव्यक्ति भारतीय संविधान की प्रस्तावना में नहीं पाई जाती?
- सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न
- समाजवादी
- आर्थिक सुरक्षा
- लोकतंत्रात्मक गणराज्य
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: प्रस्तावना “सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न समाजवादी पंथनिरपेक्ष लोकतंत्रात्मक गणराज्य” की बात करती है और नागरिकों को “सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक न्याय” सुनिश्चित करती है। इसमें स्वतंत्रता (विचार, अभिव्यक्ति, विश्वास, धर्म और उपासना की) और समानता (प्रतिष्ठा और अवसर की) भी शामिल है। ‘आर्थिक सुरक्षा’ एक महत्वपूर्ण लक्ष्य हो सकता है, लेकिन यह प्रस्तावना में सीधे तौर पर इस रूप में उल्लिखित एक मौलिक लक्ष्य नहीं है, बल्कि ‘आर्थिक न्याय’ एक लक्ष्य के रूप में है।
- संदर्भ और विस्तार: प्रस्तावना संविधान के मूल उद्देश्यों और आदर्शों को दर्शाती है।
- अमान्य विकल्प: सम्पूर्ण प्रभुत्व-सम्पन्न, समाजवादी और लोकतंत्रात्मक गणराज्य सभी प्रस्तावना में उल्लिखित हैं। आर्थिक सुरक्षा एक परिणाम हो सकती है, लेकिन प्रस्तावना का सीधा उल्लेख ‘आर्थिक न्याय’ है।
प्रश्न 25: भारत में ‘अर्ध-न्यायिक’ (Quasi-Judicial) संस्थाओं के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
- वे पूरी तरह से निष्पक्ष होती हैं और अपने निर्णयों को लागू करने के लिए बाध्यकारी अधिकार रखती हैं।
- उनके पास एक न्यायाधीश की तरह निर्णय लेने का अधिकार होता है, लेकिन वे पूर्णतः न्यायिक संस्थाएं नहीं होतीं।
- वे केवल सलाहकारी भूमिका निभाती हैं और उनके निर्णय बाध्यकारी नहीं होते।
- वे केवल प्रशासनिक निर्णय लेती हैं, न्यायिक या अर्ध-न्यायिक नहीं।
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अर्ध-न्यायिक संस्थाएँ वे होती हैं जिनके पास निर्णय लेने की शक्तियाँ होती हैं जो न्यायिक निर्णयों के समान होती हैं, जैसे कि साक्ष्य प्रस्तुत करना, सुनवाई करना और निर्णय देना। हालांकि, वे पूर्ण रूप से न्यायिक संस्थाएं नहीं होतीं और उनके अधिकार क्षेत्र और प्रक्रियाएं विभिन्न अधिनियमों द्वारा परिभाषित होती हैं। उदाहरण के लिए, आयकर अपीलीय न्यायाधिकरण, उपभोक्ता फोरम आदि।
- संदर्भ और विस्तार: इन संस्थाओं का उद्देश्य मामलों का त्वरित और विशेषज्ञतापूर्ण निपटारा करना होता है, लेकिन उनके निर्णयों के खिलाफ अक्सर उच्च अदालतों में अपील की जा सकती है।
- अमान्य विकल्प: ये संस्थाएं पूरी तरह से निष्पक्ष या पूर्णतः न्यायिक नहीं होतीं। वे सलाहकारी से अधिक होती हैं और उनके निर्णय कुछ हद तक बाध्यकारी हो सकते हैं, हालांकि वे पूर्णतः न्यायिक नहीं होतीं। वे प्रशासनिक के अलावा अर्ध-न्यायिक कार्य करती हैं।