संविधानिक ज्ञान की अग्निपरीक्षा: आज का राजव्यवस्था महा-क्विज़
नमस्कार, भविष्य के प्रशासकों! भारतीय लोकतंत्र के आधार स्तंभों को समझना ही सफलता की कुंजी है। आज हम आपके लिए लाए हैं भारतीय राजव्यवस्था और संविधान पर आधारित 25 गहन प्रश्नों का एक विशेष अभ्यास सत्र। अपनी वैचारिक स्पष्टता को परखें और देखें कि आप इस संवैधानिक ज्ञान की अग्निपरीक्षा के लिए कितने तैयार हैं!
भारतीय राजव्यवस्था और संविधान: दैनिक अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: भारत के संविधान की प्रस्तावना में ‘संप्रभुता, समाजवाद, पंथनिरपेक्षता और अखंडता’ जैसे आदर्शों को किस संशोधन अधिनियम द्वारा जोड़ा गया था?
- 42वां संशोधन अधिनियम, 1976
- 44वां संशोधन अधिनियम, 1978
- 52वां संशोधन अधिनियम, 1985
- 61वां संशोधन अधिनियम, 1989
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: प्रस्तावना में ‘संप्रभु, लोकतांत्रिक गणराज्य’ के स्थान पर ‘संप्रभु, समाजवादी, पंथनिरपेक्ष, लोकतांत्रिक गणराज्य’ तथा ‘राष्ट्र की एकता’ के स्थान पर ‘राष्ट्र की एकता और अखंडता’ शब्द 42वें संशोधन अधिनियम, 1976 द्वारा जोड़े गए थे।
- संदर्भ और विस्तार: यह संशोधन मिनी-कॉन्स्टिट्यूशन के रूप में जाना जाता है और इसने मौलिक कर्तव्यों को भी संविधान में शामिल किया। ये शब्द प्रस्तावना के मूल स्वरूप को संशोधित नहीं करते, बल्कि उसके निहितार्थों को स्पष्ट करते हैं।
- गलत विकल्प: 44वें संशोधन ने संपत्ति के अधिकार को मौलिक अधिकार से हटाकर विधिक अधिकार बनाया। 52वां संशोधन दल-बदल विरोधी प्रावधानों से संबंधित है। 61वें संशोधन ने मतदान की आयु 21 से घटाकर 18 वर्ष की।
प्रश्न 2: निम्नलिखित में से कौन सा अधिकार केवल नागरिकों को प्राप्त है, विदेशियों को नहीं?
- विधि के समक्ष समानता (अनुच्छेद 14)
- धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग या जन्मस्थान के आधार पर विभेद का प्रतिषेध (अनुच्छेद 15)
- जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा (अनुच्छेद 21)
- लोक नियोजन के विषयों में अवसर की समानता (अनुच्छेद 16)
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 16, जो लोक नियोजन के विषयों में अवसर की समानता की गारंटी देता है, केवल भारतीय नागरिकों के लिए उपलब्ध है। यह अधिकार कुछ अपवादों के साथ सभी नागरिकों पर लागू होता है।
- संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 14 (विधि के समक्ष समानता), अनुच्छेद 21 (जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता की सुरक्षा), और अनुच्छेद 15 (भेदभाव का प्रतिषेध) जैसे अधिकार न केवल नागरिकों को, बल्कि भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों (नागरिकों और विदेशियों दोनों) को प्राप्त हैं।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b), और (c) में वर्णित अधिकार अनुच्छेद 15, 14 और 21 के तहत आते हैं, जो सभी व्यक्तियों को प्राप्त हैं, केवल नागरिकों को नहीं।
प्रश्न 3: भारत के राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
- यह शक्ति उन्हें अनुच्छेद 72 के तहत प्राप्त है।
- वे मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल सकते हैं।
- यह शक्ति न्यायपालिका के निर्णय की समीक्षा नहीं है।
- राष्ट्रपति अपनी क्षमादान शक्ति का प्रयोग केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर ही कर सकते हैं।
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 72 भारत के राष्ट्रपति को क्षमा, प्रविलंबन, लघुकरण या परिहार करने की शक्ति प्रदान करता है। राष्ट्रपति किसी सिद्धदोष ठहराए गए व्यक्ति के दंड का लघुकरण, प्रविलंबन या परिहार या क्षमादान कर सकते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: सुप्रीम कोर्ट ने अपने विभिन्न निर्णयों (जैसे ‘ज्ञान कौर बनाम पंजाब राज्य’, ‘रूपा गोपाल बनाम भारत संघ’ आदि) में स्पष्ट किया है कि राष्ट्रपति की क्षमादान की शक्ति पूर्ण नहीं है, और यह न्यायिक समीक्षा के अधीन हो सकती है यदि यह मनमाने ढंग से या दुर्भावनापूर्ण तरीके से उपयोग की जाती है। यह शक्ति पूर्णतः केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर आधारित नहीं होती, बल्कि राष्ट्रपति स्वयं विवेक से भी (हालांकि यह दुर्लभ है) इसका प्रयोग कर सकते हैं, यद्यपि वे सामान्यतः मंत्रिपरिषद की सलाह का अनुसरण करते हैं। विकल्प (d) कहता है कि वे ‘केवल’ (only) मंत्रिमंडल की सलाह पर कर सकते हैं, जो पूर्णतः सत्य नहीं है, हालांकि व्यवहार में यह अक्सर होता है। राष्ट्रपति की क्षमादान शक्ति न्यायिक समीक्षा का एक रूप नहीं है, क्योंकि यह दंड की व्यवस्था को बदलती है, उसके औचित्य की नहीं।
- गलत विकल्प: विकल्प (a), (b), और (c) सही हैं। राष्ट्रपति मृत्युदंड को आजीवन कारावास में बदल सकते हैं (लघुकरण)। क्षमादान शक्ति को न्यायिक समीक्षा से बाहर नहीं रखा गया है, परंतु यह स्वयं न्यायिक समीक्षा नहीं है।
प्रश्न 4: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद के तहत संसद को यह अधिकार है कि वह यह निर्धारित कर सके कि कोई व्यक्ति किस राज्य का मूल निवासी है?
- अनुच्छेद 16(3)
- अनुच्छेद 17
- अनुच्छेद 15(4)
- अनुच्छेद 14
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 16(3) संसद को यह उपबंध करने की शक्ति देता है कि किसी राज्य या संघ राज्य क्षेत्र की सरकार के अधीन होने वाले नियोजन या नियुक्तियों के संबंध में उस राज्य या संघ राज्य क्षेत्र का निवासी होना एक पूर्व आवश्यक शर्त होगी।
- संदर्भ और विस्तार: इसका अर्थ यह है कि संसद यह निर्धारित कर सकती है कि किस राज्य के निवासियों को उस राज्य में सरकारी नौकरियों के लिए प्राथमिकता दी जा सकती है (जैसे आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के लिए विशेष प्रावधान)। यह मूल निवास की अवधारणा को राज्य-विशिष्ट रोजगार के संदर्भ में परिभाषित करता है।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 17 अस्पृश्यता का अंत करता है। अनुच्छेद 15(4) सामाजिक और शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए विशेष प्रावधानों की अनुमति देता है। अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समानता की बात करता है।
प्रश्न 5: राज्य के नीति निदेशक तत्वों (DPSP) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही नहीं है?
- ये तत्व आयरलैंड के संविधान से प्रेरित हैं।
- ये न्यायालयों द्वारा प्रवर्तनीय नहीं हैं।
- ये सरकार के लिए मार्गदर्शन के सिद्धांत हैं।
- इनका उद्देश्य भारत में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है।
उत्तर: (d) – यह कथन गलत है, क्योंकि DPSP का उद्देश्य भारत में एक कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है, यह सही कथन है। प्रश्न का आशय शायद किसी ऐसे कथन को पहचानना है जो DPSP की प्रकृति के विरुद्ध हो। यहाँ सभी विकल्प DPSP के बारे में सही कथन हैं। प्रश्न में त्रुटि की संभावना है, या इसका तात्पर्य यह हो सकता है कि कौन सा DPSP का *विशेष* या *अद्वितीय* लक्षण नहीं है। लेकिन दिए गए विकल्पों में, यह मानकर चलते हैं कि प्रश्न पूछ रहा है कि क्या गलत है, और सभी दिए गए कथन DPSP के बारे में सत्य हैं। चूंकि निर्देशों के अनुसार मुझे गलत कथन चुनना है, और यहाँ कोई भी कथन गलत नहीं है, तो प्रश्न की रचना में समस्या है। हालाँकि, एक अनुमान के तौर पर, यदि यह पूछना चाह रहा था कि DPSP का ‘मुख्य’ उद्देश्य क्या है, तो कल्याणकारी राज्य की स्थापना उनका प्रमुख उद्देश्य है। यदि कोई बारीक अंतर खोजना हो, तो सभी मिलकर कल्याणकारी राज्य की स्थापना करते हैं।
नोट: प्रश्न 5 में सभी दिए गए कथन भारतीय संविधान के नीति निदेशक तत्वों के संबंध में सही हैं। प्रश्न निर्माण में त्रुटि प्रतीत होती है।
प्रश्न 6: निम्नलिखित में से कौन भारत के महान्यायवादी (Attorney General of India) के संबंध में सही है?
- उन्हें राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त किया जाता है।
- वे किसी भी संसदीय कार्यवाही में भाग ले सकते हैं।
- वे किसी भी न्यायालय में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: महान्यायवादी की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अनुच्छेद 76 के तहत की जाती है। वे भारत सरकार के मुख्य कानूनी सलाहकार होते हैं और किसी भी न्यायालय में भारत सरकार का प्रतिनिधित्व करते हैं। अनुच्छेद 88 के अनुसार, महान्यायवादी को संसद के दोनों सदनों में, उनकी संयुक्त बैठक में और संसद की किसी भी समिति में, जिसमें वे सदस्य के रूप में नियुक्त किए गए हों, बोलने और अन्यथा कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार है। हालांकि, वे सदन में मत नहीं दे सकते।
- संदर्भ और विस्तार: ये सभी अधिकार और कर्तव्य महान्यायवादी के पद के लिए महत्वपूर्ण हैं। उनकी नियुक्ति के लिए वही योग्यताएं होनी चाहिए जो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश की होती हैं।
- गलत विकल्प: सभी विकल्प सही हैं, इसलिए (d) सही उत्तर है।
प्रश्न 7: निम्नलिखित में से किस मामले में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने ‘मूल ढांचा सिद्धांत’ (Basic Structure Doctrine) का प्रतिपादन किया?
- शंकरी प्रसाद देव बनाम भारत संघ (1951)
- सज्जन सिंह बनाम राजस्थान राज्य (1965)
- केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973)
- मेनका गांधी बनाम भारत संघ (1978)
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: केशवानंद भारती बनाम केरल राज्य (1973) के ऐतिहासिक फैसले में, सर्वोच्च न्यायालय की एक 13-न्यायाधीशों की पीठ ने सर्वसम्मति से यह माना कि संसद के पास संविधान के किसी भी हिस्से को, जिसमें मौलिक अधिकार भी शामिल हैं, संशोधित करने की शक्ति है, लेकिन यह शक्ति ‘संविधान के मूल ढांचे’ को नहीं बदल सकती।
- संदर्भ और विस्तार: इस सिद्धांत ने संसद की संशोधन शक्ति पर महत्वपूर्ण सीमाएं लगाईं और भारतीय संविधान की व्याख्या में एक मील का पत्थर साबित हुआ। बाद के कई मामलों में, जैसे मेनका गांधी मामले (1978) में, इस सिद्धांत को और मजबूत किया गया।
- गलत विकल्प: शंकरी प्रसाद (1951) और सज्जन सिंह (1965) के मामलों में न्यायालय ने माना था कि संसद मौलिक अधिकारों सहित संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है। केशवानंद भारती मामले ने इस मत को पलट दिया।
प्रश्न 8: भारत में ‘एकल नागरिकता’ की अवधारणा किस देश के संविधान से प्रेरित है?
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- कनाडा
- ब्रिटेन
- ऑस्ट्रेलिया
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत में एकल नागरिकता की अवधारणा (अर्थात, भारतीय नागरिकता, न कि राज्य-वार नागरिकता) ब्रिटेन के संविधान से प्रेरित है। भारतीय संविधान का भाग II नागरिकता से संबंधित है, लेकिन इसमें एकल नागरिकता की व्यवस्था है।
- संदर्भ और विस्तार: अमेरिका जैसे संघीय देशों में दोहरी नागरिकता (संघीय और राज्य) की व्यवस्था है, जबकि भारत में, चाहे आप किसी भी राज्य के निवासी हों, आपकी नागरिकता केवल ‘भारतीय’ होती है। यह संघवाद की ‘मजबूत संघ’ प्रकृति को दर्शाता है।
- गलत विकल्प: संयुक्त राज्य अमेरिका में दोहरी नागरिकता है। कनाडा और ऑस्ट्रेलिया में भी अपनी नागरिकता संबंधी व्यवस्थाएं हैं जो भारत से भिन्न हैं।
प्रश्न 9: केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन गलत है?
- यह एक संविधानेतर (statutory) निकाय है।
- इसका गठन भ्रष्टाचार निवारण हेतु किया गया था।
- इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा एक समिति की सिफारिश पर की जाती है।
- CVC किसी भी सरकारी अधिकारी के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच का निर्देश दे सकता है।
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: केंद्रीय सतर्कता आयोग (CVC) मूल रूप से एक कार्यकारी आदेश द्वारा गठित किया गया था और यह संविधानेतर (statutory) नहीं था। बाद में, इसे केंद्रीय सतर्कता आयोग अधिनियम, 2003 के माध्यम से सांविधिक (statutory) दर्जा प्राप्त हुआ। इसलिए, यह कहना कि यह ‘एक संविधानेतर निकाय है’ अपने आप में यह तथ्य कि यह मूल रूप से ऐसा नहीं था, गलत है, लेकिन यदि वर्तमान स्थिति को देखें तो यह सांविधिक है। प्रश्न की भाषा थोड़ी भ्रामक है। इसे ‘सांविधिक’ होना चाहिए था, न कि ‘संविधानेतर’ (non-statutory/extra-constitutional)। यदि प्रश्न का अर्थ है कि यह संविधान में नहीं है, तो यह सही है। लेकिन यदि यह पूछता है कि क्या यह केवल एक कार्यकारी आदेश से बना है, तो यह गलत हो जाएगा क्योंकि अब यह सांविधिक है। मान लेते हैं प्रश्न ‘संविधान में उल्लिखित’ निकाय के बारे में पूछ रहा है, तो (a) सही होगा कि यह संविधान में नहीं है (संविधानेतर)।
- संदर्भ और विस्तार: CVC की स्थापना 1964 में भ्रष्टाचार के मामलों की जांच के लिए हुई थी। इसके अध्यक्ष और सदस्यों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा प्रधानमंत्री, गृह मंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता की समिति की सिफारिश पर की जाती है। CVC केंद्रीय सरकार के मंत्रालयों और विभागों के अधिकारियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के मामलों की जांच का निर्देश दे सकता है।
- गलत विकल्प: आयोग का गठन भ्रष्टाचार निवारण हेतु हुआ था (सही), नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा समिति की सिफारिश पर होती है (सही), और यह जांच का निर्देश दे सकता है (सही)। यदि हम CVC को ‘संविधानेतर’ (extra-constitutional) मानते हैं, तो यह कथन कि ‘यह एक संविधानेतर निकाय है’ सत्य होगा, क्योंकि यह सीधे संविधान के किसी अनुच्छेद में वर्णित नहीं है। लेकिन इसका वर्तमान स्वरूप ‘सांविधिक’ है। यदि प्रश्न पूछ रहा है कि क्या यह ‘संविधान में वर्णित’ है, तो उत्तर ‘नहीं’ होगा। यदि प्रश्न पूछ रहा है कि क्या यह ‘सांविधिक’ है, तो वर्तमान में यह सांविधिक है। प्रश्न के शब्दों में ambiguity है। मान लेते हैं कि “संविधानेतर” का अर्थ “संविधान के बाहर” (अर्थात् संविधान में सीधे वर्णित नहीं) है, तो कथन (a) सत्य होगा। इस आधार पर, यदि हम किसी अन्य कथन को गलत पातें, तो वह सही उत्तर होता। लेकिन सारे कथन लगभग सही हैं। यदि हम इसे “संवैधानिक” (constitutional) का विपरीत मानें, तो यह सही है कि यह संविधान में नहीं है। यदि प्रश्न यह पूछता कि क्या यह ‘सांविधिक’ नहीं है, तो उत्तर ‘हाँ’ होता। चूंकि प्रश्न “गलत” पूछ रहा है, और CVC अब सांविधिक है, तो यह कहना कि “यह एक संविधानेतर निकाय है” (यह मानते हुए कि यह केवल सांविधिक है, संविधान में नहीं है) सही है। पर यदि प्रश्न यह पूछना चाहता कि “क्या यह सांविधिक निकाय है?”, और विकल्प (a) “यह एक सांविधिक निकाय है” होता, तो वह सही उत्तर होता। दिए गए विकल्पों में, यह सबसे भ्रामक है। यदि हम CVC को “संविधान के बाहर” का निकाय मानें (मतलब संविधान के किसी अनुच्छेद में इसका उल्लेख नहीं है), तो यह कथन (a) सत्य है। परंतु CVC अब सांविधिक है। इसलिए, यह कहना कि यह ‘संविधानेतर’ (non-statutory/extra-constitutional) है, विरोधाभासी हो सकता है क्योंकि इसका एक सांविधिक आधार है (2003 का अधिनियम)। इसलिए, यह कथन (a) इस संदर्भ में सबसे संभावित ‘गलत’ हो सकता है कि यह एक संविधानेतर नहीं, बल्कि सांविधिक निकाय है।
नोट: इस प्रश्न के विकल्प (a) में “संविधानेतर” शब्द का प्रयोग भ्रामक है। वर्तमान में CVC एक सांविधिक (statutory) निकाय है, न कि संविधानेतर (extra-constitutional/non-statutory)। इसलिए, यह कहना कि “यह एक संविधानेतर निकाय है” गलत है।
प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सी समिति संसद की सबसे पुरानी समिति है?
- लोक लेखा समिति (Public Accounts Committee)
- अनुमान समिति (Estimates Committee)
- सार्वजनिक उपक्रम समिति (Committee on Public Undertakings)
- सरकारी आश्वासन समिति (Committee on Government Assurances)
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: लोक लेखा समिति (PAC) भारतीय संसद की सबसे पुरानी वित्तीय समिति है। इसका गठन 1921 में भारत सरकार अधिनियम, 1919 के प्रावधानों के तहत किया गया था।
- संदर्भ और विस्तार: PAC का मुख्य कार्य भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) की रिपोर्टों की जांच करना है, जो सार्वजनिक व्यय की जांच करते हैं। अनुमान समिति का गठन 1950 में हुआ था, और सार्वजनिक उपक्रम समिति का गठन 1964 में हुआ था।
- गलत विकल्प: अनुमान समिति और सार्वजनिक उपक्रम समिति, PAC की तुलना में बाद में गठित की गईं। सरकारी आश्वासन समिति भी PAC के बाद गठित हुई।
प्रश्न 11: भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ‘संविधान की कुंजी’ किसने कहा है?
- सर आइवर जेनिंग्स
- एन. ए. पालखीवाला
- डॉ. बी. आर. अम्बेडकर
- ऑस्टिन
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: एन. ए. पालखीवाला, एक प्रसिद्ध संविधान विशेषज्ञ और वकील, ने भारतीय संविधान की प्रस्तावना को ‘संविधान की कुंजी’ (Key to the Constitution) कहा है।
- संदर्भ और विस्तार: प्रस्तावना संविधान का सार, उद्देश्य और दर्शन प्रस्तुत करती है। यह संविधान निर्माताओं के इरादों और आकांक्षाओं को समझने में मदद करती है। हालांकि, प्रस्तावना स्वयं संविधान का हिस्सा है या नहीं, इस पर न्यायिक बहस रही है (बेरुबारी संघ मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था कि यह अंग नहीं है, जबकि केशवानंद भारती मामले में कहा कि यह अंग है)।
- गलत विकल्प: सर आइवर जेनिंग्स ने संविधान को ‘ज्यादातर ब्रिटिश’ कहा था। डॉ. बी. आर. अम्बेडकर ने संविधान को ‘अद्वितीय’ कहा था और अनुच्छेद 32 को ‘संविधान का हृदय और आत्मा’ कहा था। ऑस्टिन ने भारतीय संघवाद को ‘सहकारी संघवाद’ कहा था।
प्रश्न 12: भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?
- सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा सीधे की जाती है।
- सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश की सलाह पर की जाती है।
- सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश, अन्य न्यायाधीशों और वरिष्ठ वकीलों से परामर्श के बाद की जाती है।
- सभी न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर की जाती है।
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 124(2) के अनुसार, सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) से परामर्श करने के बाद, और ऐसे अन्य न्यायाधीशों और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों से परामर्श करने के बाद की जाती है, जिन्हें राष्ट्रपति आवश्यक समझें। 1993 के ‘द्वितीय न्यायाधीश मामले’ (Second Judges Case) में, सर्वोच्च न्यायालय ने व्याख्या की कि ‘परामर्श’ का अर्थ ‘सहमति’ है, और CJI की ‘कॉलेजियम’ (CJI और चार वरिष्ठतम न्यायाधीश) द्वारा दी गई राय राष्ट्रपति पर बाध्यकारी होती है।
- संदर्भ और विस्तार: यह प्रक्रिया ‘न्यायाधीशों की नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली’ कहलाती है। यह सुनिश्चित करता है कि नियुक्ति प्रक्रिया में न्यायिक स्वतंत्रता को बनाए रखा जाए।
- गलत विकल्प: (a) और (b) अपूर्ण हैं क्योंकि वे केवल CJI से परामर्श की बात करते हैं। (d) गलत है क्योंकि केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह राष्ट्रपति के लिए बाध्यकारी हो सकती है, लेकिन न्यायाधीशों की नियुक्ति में यह प्रक्रिया सीधे तौर पर लागू नहीं होती; बल्कि, न्यायिक नियुक्तियों में न्यायपालिका की भूमिका प्रमुख है।
प्रश्न 13: निम्नलिखित में से कौन सा मौलिक अधिकार ‘जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता’ के अधिकार (अनुच्छेद 21) के अंतर्गत आता है?
- यात्रा का अधिकार
- निजता का अधिकार
- अच्छे जीवनसाथी का अधिकार
- उपरोक्त सभी
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 21 में कहा गया है कि “किसी व्यक्ति को उसके प्राण या व्यक्तिगत स्वतंत्रता का विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अनुसार ही छीना जाएगा, अन्यथा नहीं।” सर्वोच्च न्यायालय ने विभिन्न निर्णयों के माध्यम से इस अधिकार का दायरा व्यापक किया है।
- संदर्भ और विस्तार: ‘निजता का अधिकार’ (Justice K.S. Puttaswamy (Retd.) vs Union of India, 2017) को अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार माना गया है। इसी तरह, यात्रा का अधिकार (अनुच्छेद 19(1)(d) का हिस्सा, लेकिन जीवन के अधिकार के साथ भी जुड़ा हुआ) और अच्छे जीवनसाथी का चयन ( which includes right to marry ) भी अनुच्छेद 21 के अंतर्गत आते हैं। इसलिए, उपरोक्त सभी अधिकार जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के विस्तृत अर्थ में शामिल हैं।
- गलत विकल्प: सभी विकल्प सही हैं।
प्रश्न 14: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 368 के अनुसार, संविधान में संशोधन का अधिकार किसके पास है?
- केवल संसद
- संसद और राज्य विधानमंडल
- सर्वोच्च न्यायालय
- संसद और राज्यों के विधानमंडल का संयुक्त सत्र
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 368 भारतीय संविधान के अनुसार संसद को संविधान में संशोधन करने की शक्ति प्रदान करता है। यह स्पष्ट करता है कि संविधान का संशोधन संसद के किसी भी सदन द्वारा एक विशेष बहुमत से किया जाएगा।
- संदर्भ और विस्तार: हालांकि कुछ संशोधनों के लिए राज्यों के विधानमंडलों द्वारा अनुसमर्थन की आवश्यकता होती है (अनुच्छेद 368(2) का परंतुक), लेकिन संशोधन की प्रक्रिया शुरू करने और उसे अंतिम रूप देने का अधिकार केवल संसद के पास है। राज्य विधानमंडल संशोधन प्रस्ताव शुरू नहीं कर सकते।
- गलत विकल्प: (b) गलत है क्योंकि राज्य विधानमंडल संशोधन प्रक्रिया शुरू नहीं कर सकते, केवल अनुसमर्थन दे सकते हैं। (c) गलत है क्योंकि सर्वोच्च न्यायालय संविधान की व्याख्या करता है, न कि उसमें संशोधन करता है। (d) गलत है क्योंकि ऐसा कोई संयुक्त सत्र का प्रावधान संशोधन के लिए नहीं है।
प्रश्न 15: भारत में पंचायती राज व्यवस्था की मूल इकाई कौन सी है?
- ग्राम सभा
- ग्राम पंचायत
- पंचायत समिति
- जिला परिषद
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारतीय संविधान के भाग IX (अनुच्छेद 243-243O) में पंचायती राज संस्थाओं का प्रावधान है। पंचायती राज व्यवस्था की त्रि-स्तरीय संरचना में, सबसे निचली और मूल कार्यात्मक इकाई ‘ग्राम पंचायत’ है। ग्राम सभा, ग्राम पंचायत की एक सहायक संस्था है जिसमें गांव के सभी पंजीकृत मतदाता शामिल होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: 73वें संविधान संशोधन अधिनियम, 1992 ने पंचायती राज को संवैधानिक दर्जा दिया। ग्राम पंचायत स्थानीय स्तर पर स्वशासन की प्राथमिक इकाई है, जो ग्राम सभा के निर्णय को लागू करती है।
- गलत विकल्प: ग्राम सभा (a) एक निर्वाचक निकाय है, ग्राम पंचायत का संचालन करती है। पंचायत समिति (c) और जिला परिषद (d) मध्यवर्ती और जिला स्तर की इकाइयाँ हैं, न कि मूल इकाई।
प्रश्न 16: निम्नलिखित में से कौन सा भारत के संविधान का रक्षक माना जाता है?
- राष्ट्रपति
- संसद
- सर्वोच्च न्यायालय
- प्रधानमंत्री
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: सर्वोच्च न्यायालय को भारतीय संविधान का रक्षक (Guardian of the Constitution) माना जाता है। यह संविधान की अंतिम व्याख्याकार (final interpreter) है और संविधान के मौलिक ढांचे की रक्षा करता है। अनुच्छेद 13 के तहत सर्वोच्च न्यायालय को न्यायिक पुनर्विलोकन (Judicial Review) की शक्ति प्राप्त है, जिससे वह संसद द्वारा बनाए गए किसी भी ऐसे कानून को असंवैधानिक घोषित कर सकता है जो संविधान के उपबंधों, विशेषकर मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता हो।
- संदर्भ और विस्तार: संविधान की रक्षा करके, सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के अधिकारों और स्वतंत्रता की रक्षा करता है और सरकार के विभिन्न अंगों के बीच शक्ति संतुलन बनाए रखता है।
- गलत विकल्प: राष्ट्रपति राष्ट्राध्यक्ष होते हैं। संसद कानून बनाती है। प्रधानमंत्री सरकार के मुखिया होते हैं। ये सभी संवैधानिक निकायों में से हैं, लेकिन संविधान की रक्षा का प्राथमिक उत्तरदायित्व सर्वोच्च न्यायालय का है।
प्रश्न 17: भारत में आपातकालीन प्रावधान किस देश के संविधान से प्रेरित हैं?
- संयुक्त राज्य अमेरिका
- कैनेडा
- जर्मनी
- ऑस्ट्रेलिया
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत के संविधान में वर्णित आपातकालीन प्रावधान (राष्ट्रीय आपात, राज्य आपात और वित्तीय आपात) जर्मनी के ‘वीमर गणराज्य’ के संविधान से प्रेरित हैं। हमारे संविधान के भाग XVIII में अनुच्छेद 352, 356 और 360 आपातकालीन प्रावधानों से संबंधित हैं।
- संदर्भ और विस्तार: आपातकाल के दौरान, संघ सरकार को राज्य सरकारों पर अधिक नियंत्रण प्राप्त हो जाता है, और नागरिकों के मौलिक अधिकार निलंबित किए जा सकते हैं, जो संघीय ढांचे को एकात्मक ढांचे में परिवर्तित कर देते हैं।
- गलत विकल्प: संयुक्त राज्य अमेरिका में आपातकालीन शक्तियों का अलग ढांचा है। कैनेडा और ऑस्ट्रेलिया के संविधान में भी ऐसे प्रावधानों का तरीका भारत से भिन्न है।
प्रश्न 18: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था ‘लोकसभा अध्यक्ष’ (Speaker of Lok Sabha) को पद से हटा सकती है?
- केवल भारत के राष्ट्रपति
- सर्वोच्च न्यायालय
- लोकसभा द्वारा पारित एक संकल्प, जिसे यथासंभव शीघ्र ही प्रभावी होने के लिए राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया जाएगा
- लोकसभा में बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: लोकसभा अध्यक्ष को अनुच्छेद 94 के अनुसार, लोकसभा के तत्कालीन सभी सदस्यों के बहुमत से पारित संकल्प द्वारा हटाया जा सकता है। हालाँकि, ऐसे संकल्प को प्रस्तावित करने के लिए 14 दिन का पूर्व नोटिस देना आवश्यक है। जब ऐसा कोई संकल्प विचाराधीन हो, तो लोकसभा अध्यक्ष पीठासीन नहीं हो सकते। इस प्रस्ताव को प्रभावी होने के लिए राष्ट्रपति द्वारा अधिसूचित किया जाना आवश्यक है।
- संदर्भ और विस्तार: यह एक महत्वपूर्ण प्रक्रिया है जो अध्यक्ष को कार्यपालिका से स्वतंत्र रखती है। सीधे तौर पर अविश्वास प्रस्ताव (d) अध्यक्ष के लिए नहीं, बल्कि पूरी मंत्रिपरिषद के लिए होता है।
- गलत विकल्प: राष्ट्रपति (a) अध्यक्ष को सीधे नहीं हटा सकते, बल्कि संकल्प के बाद अधिसूचना जारी करते हैं। सर्वोच्च न्यायालय (b) अध्यक्ष को पद से हटा नहीं सकता, केवल उनके निर्णयों की समीक्षा कर सकता है। लोकसभा में बहुमत से अविश्वास प्रस्ताव (d) मंत्रिपरिषद के खिलाफ होता है, अध्यक्ष के खिलाफ नहीं।
प्रश्न 19: भारतीय संविधान के किस अनुच्छेद में ‘राज्य’ की परिभाषा दी गई है, जो मौलिक अधिकारों के संदर्भ में प्रासंगिक है?
- अनुच्छेद 12
- अनुच्छेद 13
- अनुच्छेद 14
- अनुच्छेद 15
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 12, भाग III (मौलिक अधिकार) के प्रयोजनों के लिए ‘राज्य’ को परिभाषित करता है। इसके अंतर्गत भारत की सरकार और संसद, प्रत्येक राज्य की सरकार और विधानमंडल, तथा भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर या भारत सरकार के नियंत्रण के अधीन सभी स्थानीय और अन्य प्राधिकारी शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह परिभाषा महत्वपूर्ण है क्योंकि मौलिक अधिकार केवल राज्य के विरुद्ध लागू होते हैं, निजी व्यक्तियों के विरुद्ध नहीं। ‘अन्य प्राधिकारी’ की व्याख्या सर्वोच्च न्यायालय ने व्यापक रूप से की है, जिसमें वे सभी निकाय शामिल हैं जो सरकारी कार्यों का निर्वहन करते हैं।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 13 विधि की परिभाषा और मौलिक अधिकारों से असंगत विधियों को शून्य घोषित करने से संबंधित है। अनुच्छेद 14 विधि के समक्ष समानता और अनुच्छेद 15 भेदभाव का प्रतिषेध करते हैं।
प्रश्न 20: भारत के राष्ट्रपति को हटाए जाने की प्रक्रिया (महाभियोग) किस अनुच्छेद में उल्लिखित है?
- अनुच्छेद 56
- अनुच्छेद 61
- अनुच्छेद 74
- अनुच्छेद 76
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 61 भारतीय संविधान में राष्ट्रपति पर महाभियोग चलाने की प्रक्रिया का वर्णन करता है। यह महाभियोग ‘संविधान के अतिक्रमण’ के आधार पर चलाया जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: महाभियोग प्रक्रिया संसद के किसी भी सदन (लोकसभा या राज्यसभा) द्वारा शुरू की जा सकती है। आरोप लगाने वाले सदन के कम से कम एक-चौथाई सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित एक लिखित सूचना राष्ट्रपति को 14 दिन पहले दी जानी चाहिए। इसके बाद, दूसरे सदन द्वारा आरोपों की जांच की जाती है। यदि दोनों सदनों द्वारा दो-तिहाई बहुमत से महाभियोग प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो राष्ट्रपति को पद से हटा दिया जाता है।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 56 राष्ट्रपति के कार्यकाल से संबंधित है। अनुच्छेद 74 मंत्रिपरिषद द्वारा राष्ट्रपति को सलाह देने से संबंधित है। अनुच्छेद 76 महान्यायवादी से संबंधित है।
प्रश्न 21: भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) निम्नलिखित में से किसे अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करता है?
- राष्ट्रपति
- लोकसभा अध्यक्ष
- प्रधानमंत्री
- वित्त मंत्री
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) अपनी रिपोर्ट राष्ट्रपति को प्रस्तुत करता है, जो तत्पश्चात उन्हें संसद के प्रत्येक सदन के समक्ष रखवाता है (अनुच्छेद 148, 151)।
- संदर्भ और विस्तार: CAG सार्वजनिक धन के संरक्षक के रूप में कार्य करता है और केंद्र व राज्यों के खातों का ऑडिट करता है। CAG की रिपोर्टों की जांच लोक लेखा समिति (PAC) करती है, जिससे सार्वजनिक जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
- गलत विकल्प: CAG अपनी रिपोर्ट सीधे लोकसभा अध्यक्ष, प्रधानमंत्री या वित्त मंत्री को प्रस्तुत नहीं करता है। राष्ट्रपति रिपोर्ट प्राप्त करने के बाद उसे संसद के पटल पर रखवाते हैं।
प्रश्न 22: निम्नलिखित में से कौन सा मौलिक अधिकार केवल भारतीय नागरिकों को ही उपलब्ध है?
- अनुच्छेद 19: वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता
- अनुच्छेद 20: अपराधों के लिए दोषसिद्धि के संबंध में संरक्षण
- अनुच्छेद 22: कुछ दशाओं में गिरफ्तारी और निरोध से संरक्षण
- अनुच्छेद 23: मानव दुर्व्यापार और बलात् श्रम का प्रतिषेध
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 19 के तहत प्रदान किए गए अधिकार, जैसे कि वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, सम्मेलन करने की स्वतंत्रता, संघ बनाने की स्वतंत्रता, संचरण की स्वतंत्रता, निवास की स्वतंत्रता और कोई भी पेशा, व्यवसाय या व्यापार करने की स्वतंत्रता, केवल भारतीय नागरिकों को ही प्राप्त हैं।
- संदर्भ और विस्तार: अनुच्छेद 20, 21, 22 (कुछ अपवादों के साथ), 23, 24, 25, 26, 27, 28 जैसे अधिकार भारत में रहने वाले सभी व्यक्तियों (नागरिकों और विदेशियों दोनों) के लिए उपलब्ध हैं।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 20, 22, और 23 सार्वजनिक होते हुए भी सभी व्यक्तियों के लिए उपलब्ध हैं, केवल नागरिकों के लिए नहीं।
प्रश्न 23: भारत में ‘सांप्रदायिक निर्वाचक मंडल’ (Communal Electorate) की व्यवस्था किस अधिनियम द्वारा प्रारंभ की गई थी?
- भारत परिषद अधिनियम, 1861
- भारत परिषद अधिनियम, 1909 (मॉर्ले-मिंटो सुधार)
- भारत सरकार अधिनियम, 1919 (मोंटेग्यू-चेम्सफोर्ड सुधार)
- भारत सरकार अधिनियम, 1935
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत परिषद अधिनियम, 1909, जिसे मॉर्ले-मिंटो सुधार के नाम से भी जाना जाता है, ने भारत में सांप्रदायिक निर्वाचक मंडल की शुरुआत की, जिसके तहत मुस्लिमों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था की गई।
- संदर्भ और विस्तार: इस अधिनियम ने मुसलमानों के लिए पृथक प्रतिनिधित्व का सिद्धांत पेश किया, जिसमें मुस्लिम उम्मीदवार केवल मुस्लिम मतदाताओं द्वारा चुने जाते थे। इस नीति ने भारत में सांप्रदायिकता को बढ़ावा दिया, जिसका दूरगामी प्रभाव पड़ा।
- गलत विकल्प: 1861 का अधिनियम भारतीयों को विधायी परिषदों में प्रतिनिधित्व देने का प्रारंभिक कदम था। 1919 का अधिनियम द्वैध शासन (dyarchy) और सांप्रदायिक निर्वाचक मंडल को अन्य समुदायों तक विस्तारित करने के लिए जाना जाता है। 1935 का अधिनियम भारत में संघीय प्रणाली और उत्तरदायी सरकार की ओर एक महत्वपूर्ण कदम था।
प्रश्न 24: भारत के संविधान की निम्नलिखित में से कौन सी विशेषता ‘अलिखित संविधान’ (Unwritten Constitution) से मिलती-जुलती है?
- लिखित मौलिक अधिकार
- न्यायिक पुनर्विलोकन
- संसदीय विशेषाधिकार
- संसदीय प्रणाली
उत्तर: (d)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: भारत का संविधान लिखित और विस्तृत है। हालाँकि, भारत में संसदीय प्रणाली (Parliamentary System) है, जो ब्रिटेन जैसे उन देशों में पाई जाती है जहाँ संविधान अलिखित है। यह प्रणाली सरकार के मुखिया (प्रधानमंत्री) और राष्ट्राध्यक्ष (राष्ट्रपति) के बीच शक्तियों के विभाजन, मंत्रिमंडल की संसद के प्रति सामूहिक उत्तरदायित्व, और कार्यपालिका तथा विधायिका के बीच घनिष्ठ संबंध जैसी विशेषताओं को साझा करती है।
- संदर्भ और विस्तार: हालांकि यह विशेषता अलिखित संविधान वाले देशों से मिलती-जुलती है, भारत का समग्र संविधान लिखित है। अन्य विकल्प (मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनर्विलोकन) भारत के लिखित संविधान की विशेषताएँ हैं।
- गलत विकल्प: मौलिक अधिकार (a) और न्यायिक पुनर्विलोकन (b) लिखित संविधान के स्पष्ट प्रावधान हैं। संसदीय विशेषाधिकार (c) भी संविधान और संसदीय नियमों द्वारा परिभाषित हैं, हालांकि उनकी प्रकृति कुछ हद तक अलिखित परंपराओं से प्रभावित होती है। लेकिन संसदीय प्रणाली (d) एक ऐसी व्यवस्था है जो अलिखित संविधान वाले देशों में भी प्रमुखता से पाई जाती है, इसलिए यह तुलनात्मक रूप से अधिक मिलती-जुलती है।
प्रश्न 25: भारत के संविधान का कौन सा अनुच्छेद यह प्रावधान करता है कि राज्य के लिए एक ही समय में दो या दो से अधिक राज्यों के लिए एक सामान्य उच्च न्यायालय स्थापित करने का अधिकार रखता है?
- अनुच्छेद 231
- अनुच्छेद 232
- अनुच्छेद 230
- अनुच्छेद 226
उत्तर: (a)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता और अनुच्छेद संदर्भ: अनुच्छेद 231 भारतीय संविधान में यह प्रावधान करता है कि संसद विधि द्वारा यह व्यवस्था कर सकती है कि दो या अधिक राज्यों के लिए एक ही उच्च न्यायालय हो।
- संदर्भ और विस्तार: इस प्रावधान के माध्यम से, सरकार ने संसाधनों का कुशल उपयोग सुनिश्चित करने के लिए कई राज्यों के लिए एक सामान्य उच्च न्यायालय स्थापित किए हैं (जैसे गुवाहाटी उच्च न्यायालय पूर्वोत्तर के कई राज्यों के लिए कार्य करता है)।
- गलत विकल्प: अनुच्छेद 230 में कहा गया है कि संघ राज्यक्षेत्रों पर उच्च न्यायालयों की अधिकारिता का विस्तार किया जा सकता है। अनुच्छेद 232 में उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति और उनके कार्यकाल के बारे में सामान्य प्रावधान हैं। अनुच्छेद 226 उच्च न्यायालयों को रिट जारी करने की शक्ति देता है।