संकल्पनाओं को परखें: समाजशास्त्र का दैनिक रण
प्रतिष्ठित प्रतिस्पर्धी परीक्षाओं के उम्मीदवारों, अपनी समाजशास्त्रीय यात्रा को एक नई ऊँचाई दें! हर दिन अपने संकल्पनाओं की सटीकता और विश्लेषणात्मक कौशल का परीक्षण करने के लिए तैयार हो जाइए। यह आपके समाजशास्त्र के ज्ञान को पैना करने का एक अनूठा अवसर है। आइए, आज के प्रश्नों के साथ अपनी तैयारी को और भी मजबूत करें!
समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न
निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।
प्रश्न 1: ‘मैजिक, साइंस एंड रिलीजन’ पुस्तक के लेखक कौन हैं, जिसमें उन्होंने जादू और धर्म के बीच अंतर को स्पष्ट किया है?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- मालिनोवस्की
- सर एडवर्ड बर्नेट टायलर
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ब्रॉनिस्लॉ मैलिनोवस्की, एक प्रसिद्ध मानवविज्ञानी, ने अपनी पुस्तक ‘मैजिक, साइंस एंड रिलीजन’ (Magic, Science and Religion) में जादू, विज्ञान और धर्म के बीच समाजशास्त्रीय और मानवशास्त्रीय अंतर पर विस्तार से चर्चा की है। उन्होंने तर्क दिया कि जादू संकट की स्थितियों में प्रकट होता है जहाँ विज्ञान की पहुँच नहीं होती।
- संदर्भ और विस्तार: मैलिनोवस्की ने आदिम समाजों के अपने नृवंशविज्ञान संबंधी अध्ययनों के आधार पर यह सिद्धांत दिया। उन्होंने ‘वैज्ञानिक’ सोच के बजाय ‘जादुई’ सोच को तर्कसंगत (rational) बताया, जो अनिश्चितता का सामना करने के लिए एक मनोवैज्ञानिक तंत्र के रूप में कार्य करती है।
- गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम ने ‘सामाजिक तथ्यों’ और ‘सामूहिक चेतना’ पर जोर दिया, मैक्स वेबर ने ‘तर्कसंगतता’ और ‘विर्थेन’ (Verstehen) की बात की, और टायलर ने ‘जीववाद’ (Animism) के सिद्धांत को प्रतिपादित किया, जो धर्म की उत्पत्ति की व्याख्या करता है।
प्रश्न 2: ‘सामाजिक संरचना’ (Social Structure) की अवधारणा को समाजशास्त्र में किसने मुख्य रूप से विकसित किया?
- कार्ल मार्क्स
- ताлкоट पार्सन्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: ताлкоट पार्सन्स को आधुनिक समाजशास्त्र में ‘सामाजिक संरचना’ की अवधारणा के विकास का श्रेय दिया जाता है। उन्होंने सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखने वाले पैटर्न और संस्थानों पर ध्यान केंद्रित किया।
- संदर्भ और विस्तार: पार्सन्स ने ‘ए स्ट्रक्चरल-फंक्शनल’ (Structural-Functional) परिप्रेक्ष्य से सामाजिक संरचना का विश्लेषण किया, जिसमें समाज को विभिन्न परस्पर संबंधित भागों (संस्थाओं) के एक जटिल तंत्र के रूप में देखा जाता है, जो स्थिरता और व्यवस्था बनाए रखते हैं। उनकी प्रमुख कृतियों में ‘द स्ट्रक्चर ऑफ सोशल एक्शन’ शामिल है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स आर्थिक आधार और वर्ग संघर्ष पर ध्यान केंद्रित करते थे। मैक्स वेबर ने सामाजिक क्रिया और शक्ति के आयामों को महत्वपूर्ण माना। एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता और सामूहिक चेतना पर जोर दिया।
प्रश्न 3: भारत में जाति व्यवस्था को समझने के लिए ‘संसृकृतता’ (Sanskritization) की अवधारणा किसने दी?
- जी.एस. घुरिये
- एम.एन. श्रीनिवास
- इरावती कर्वे
- आंद्रे बेतेई
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एम.एन. श्रीनिवास, एक प्रमुख भारतीय समाजशास्त्री, ने ‘संसृकृतता’ (Sanskritization) की अवधारणा पेश की, जो भारतीय समाज में जातिगत गतिशीलता को समझने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है।
- संदर्भ और विस्तार: श्रीनिवास ने इस शब्द का प्रयोग पहली बार अपनी पुस्तक ‘रिलिजन एंड सोसाइटी अमंग द कूर्ग्स ऑफ साउथ इंडिया’ (Religion and Society Among the Coorgs of South India) में किया था। यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा निम्न जातियाँ या जनजातियाँ उच्च जातियों के रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और विश्वासों को अपनाकर अपनी सामाजिक स्थिति में सुधार करने का प्रयास करती हैं।
- गलत विकल्प: जी.एस. घुरिये ने जाति के विभिन्न पहलुओं पर लिखा लेकिन संसृकृतता शब्द का प्रयोग नहीं किया। इरावती कर्वे ने नातेदारी व्यवस्था पर काम किया। आंद्रे बेतेई ने भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण नृवंशविज्ञान संबंधी अध्ययन किए।
प्रश्न 4: ‘समूह’ (Group) को ‘प्राथमिक समूह’ (Primary Group) और ‘द्वितीयक समूह’ (Secondary Group) में वर्गीकृत किसने किया?
- मैक्स वेबर
- सी.एच. कूली
- जॉर्ज सिमेल
- रॉबर्ट ई. पार्क
उत्तर: (b)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: चार्ल्स हॉर्टन कूली (Charles Horton Cooley) ने 1909 में अपनी पुस्तक ‘सोशल ऑर्गनाइजेशन’ (Social Organization) में ‘प्राथमिक समूह’ और ‘द्वितीयक समूह’ की अवधारणा को प्रस्तुत किया।
- संदर्भ और विस्तार: प्राथमिक समूह वे होते हैं जहाँ आमने-सामने का संबंध (face-to-face association) और सहयोग होता है, जैसे परिवार, बचपन के दोस्त और पड़ोस। ये समूह व्यक्ति के व्यक्तित्व के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। द्वितीयक समूह बड़े, अवैयक्तिक और उद्देश्य-उन्मुख होते हैं, जैसे कार्यस्थल या राजनीतिक दल।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने ‘सामाजिक क्रिया’ और ‘शक्ति’ पर काम किया। जॉर्ज सिमेल ने ‘सामाजिक स्वरूपिकी’ (Social Morphology) और ‘अजनबी’ (Stranger) की अवधारणा पर ध्यान केंद्रित किया। रॉबर्ट ई. पार्क शिकागो स्कूल के प्रमुख सदस्य थे जिन्होंने शहरी समाजशास्त्र में योगदान दिया।
प्रश्न 5: ‘एनामिक’ (Anomie) की अवधारणा, जो समाज में नियंत्रण के साधनों के टूटने से उत्पन्न होती है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?
- कार्ल मार्क्स
- मैक्स वेबर
- एमिल दुर्खीम
- ऑगस्ट कॉम्टे
उत्तर: (c)
विस्तृत स्पष्टीकरण:
- सटीकता: एमिल दुर्खीम (Émile Durkheim) ने ‘एनामिक’ (Anomie) की अवधारणा को विकसित किया, जिसका अर्थ है नियमों और सामाजिक नियंत्रण की कमी की स्थिति।
- संदर्भ और विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘द डिविजन ऑफ लेबर इन सोसाइटी’ (The Division of Labour in Society) और ‘सुसाइड’ (Suicide) में इस अवधारणा का विस्तार से वर्णन किया है। उन्होंने बताया कि जब सामाजिक मानदंड कमजोर पड़ जाते हैं या अनुपस्थित होते हैं, तो व्यक्ति दिशाहीन और भ्रमित महसूस करता है, जिससे आत्महत्या की दर बढ़ सकती है।
- गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स ने ‘अलगाव’ (Alienation) और ‘वर्ग संघर्ष’ की बात की। मैक्स वेबर ने ‘तर्कसंगतता’ और ‘नौकरशाही’ का विश्लेषण किया। ऑगस्ट कॉम्टे को समाजशास्त्र का जनक माना जाता है और उन्होंने ‘प्रत्यक्षवाद’ (Positivism) की वकालत की।
प्रश्न 6: ‘The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक के लेखक कौन हैं?
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- जॉर्ज सिमेल
- रॉबर्ट मर्टन
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- जॉर्ज सिमेल
- रॉबर्ट मर्टन
- सटीकता: मैक्स वेबर (Max Weber) ने अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक ‘द प्रोटेस्टेंट एथिक एंड द स्पिरिट ऑफ कैपिटलिज्म’ (The Protestant Ethic and the Spirit of Capitalism) में यह तर्क दिया कि प्रोटेस्टेंट धर्म, विशेष रूप से कैल्विनवाद, ने आधुनिक पूंजीवाद के उदय में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- संदर्भ और विस्तार: वेबर ने दिखाया कि कैसे प्रोटेस्टेंट नैतिकता, जिसमें कड़ी मेहनत, मितव्ययिता और ईश्वर की सेवा के रूप में व्यवसाय का विचार शामिल था, ने पूंजी संचय और निवेश को प्रोत्साहित किया। यह कार्य समाजशास्त्र में धर्म और अर्थशास्त्र के बीच संबंधों को समझने के लिए एक मौलिक योगदान है।
- गलत विकल्प: एमिल दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता पर काम किया। जॉर्ज सिमेल ने सामाजिक स्वरूपिकी और व्यक्तिगत संबंधों पर ध्यान केंद्रित किया। रॉबर्ट मर्टन ने ‘तनाव सिद्धांत’ (Strain Theory) और ‘मध्य-श्रेणी के सिद्धांत’ (Middle-Range Theories) का विकास किया।
- धन
- जन्म
- कर्म
- शिक्षा
- सटीकता: भारतीय समाज में ‘वर्ण’ व्यवस्था का आधार ‘जन्म’ है। व्यक्ति जिस वर्ण में जन्म लेता है, उसी के अनुसार उसकी सामाजिक स्थिति, व्यवसाय और कर्तव्य निर्धारित होते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: वर्ण व्यवस्था को प्राचीन भारतीय ग्रंथों, जैसे ‘भगवद गीता’ में भी उल्लेखित किया गया है, जहाँ इसे कर्म के आधार पर विभाजन के रूप में प्रस्तुत किया गया है, लेकिन व्यवहार में यह एक जन्म-आधारित व्यवस्था बन गई। यह व्यवस्था ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र चार मुख्य वर्णों में विभाजित है।
- गलत विकल्प: धन, कर्म (व्यवहार में), या शिक्षा वर्ण व्यवस्था के प्राथमिक निर्धारक नहीं थे, यद्यपि ये अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित कर सकते थे।
- एमिल दुर्खीम
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- हरबर्ट स्पेंसर
- सटीकता: कार्ल मार्क्स (Karl Marx) ने ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा को अपनी प्रारंभिक कृतियों, विशेषकर ‘इकोनॉमिक एंड फिलॉसॉफिकल मैन्युस्क्रिप्ट्स ऑफ 1844’ (Economic and Philosophical Manuscripts of 1844) में विकसित किया।
- संदर्भ और विस्तार: मार्क्स के अनुसार, पूंजीवादी उत्पादन प्रणाली में श्रमिक अपने श्रम के उत्पाद, श्रम की प्रक्रिया, अपनी प्रजाति-सार (species-being) और अन्य मनुष्यों से अलग-थलग महसूस करता है। यह अलगाव श्रमिक को उसकी मानवीय क्षमता से वंचित करता है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘एनामिक’ पर ध्यान केंद्रित किया, वेबर ने ‘तर्कसंगतता’ पर, और स्पेंसर ने ‘सामाजिक विकास’ और ‘डार्विनवाद’ पर कार्य किया।
- एम.एन. श्रीनिवास
- टी.बी. नाईक
- डी.एन. मजूमदार
- वी.एम. दांडेकर और एन. रथ
- सटीकता: वी.एम. दांडेकर (V.M. Dandekar) और एन. रथ (N. Rath) ने 1971 में ‘पावर्टी इन इंडिया’ (Poverty in India) शीर्षक से एक अत्यंत प्रभावशाली अध्ययन प्रकाशित किया, जिसने भारत में गरीबी और असमानता के विश्लेषण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। हालाँकि, सटीक शीर्षक ‘Poverty and Unequalness in India’ नहीं है, लेकिन वे इस क्षेत्र के अग्रणी अध्ययनों में से एक हैं। (यह प्रश्न शीर्षक पर थोड़ा भ्रमित कर सकता है, लेकिन संदर्भ दांडेकर-रथ के काम को इंगित करता है)।
- संदर्भ और विस्तार: उनके अध्ययन ने पहली बार भारत में गरीबी रेखा को परिभाषित करने का प्रयास किया और गरीबी के पैमाने और वितरण का व्यवस्थित विश्लेषण प्रस्तुत किया।
- गलत विकल्प: एम.एन. श्रीनिवास, टी.बी. नाईक और डी.एन. मजूमदार अन्य महत्वपूर्ण भारतीय समाजशास्त्री हैं जिन्होंने जाति, जनजाति और भारतीय समाज पर महत्वपूर्ण काम किया है, लेकिन गरीबी पर उनका मुख्य ध्यान नहीं था।
- मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स
- एमिल दुर्खीम
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड
- सटीकता: एमिल दुर्खीम (Émile Durkheim) ने ‘कलेक्टिव रिप्रेजेन्टेशन’ (Collective Representation) की अवधारणा का उपयोग किया, जिसे उन्होंने ‘कलेक्टिव कॉन्शसाइंस’ (Collective Conscience) से भिन्न किया। यह समाज के सदस्यों द्वारा साझा किए गए विश्वासों, विचारों और भावनाओं का समूह है जो सामाजिक एकजुटता को बनाए रखते हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह अवधारणा दुर्खीम के सामाजिक सामंजस्य (social solidarity) के विश्लेषण का एक प्रमुख हिस्सा है, खासकर ‘द एलिमेंट्री फॉर्म्स ऑफ रेलिजियस लाइफ’ (The Elementary Forms of Religious Life) में। उन्होंने तर्क दिया कि सामूहिक प्रतिनिधित्व सामाजिक व्यवस्था का आधार बनते हैं।
- गलत विकल्प: वेबर ने ‘सत्ता’ और ‘वैधता’ पर ध्यान केंद्रित किया। मार्क्स ने ‘वर्ग चेतना’ पर जोर दिया। मीड ने ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) और ‘स्व’ (Self) के विकास पर काम किया।
- इरावती कर्वे
- एम.एन. श्रीनिवास
- जी.एस. घुरिये
- राधा कमल मुखर्जी
- सटीकता: जी.एस. घुरिये (G.S. Ghurye) भारतीय समाजशास्त्र के एक प्रमुख स्तंभ थे और उन्होंने ‘कास्ट एंड रेस इन इंडिया’ (Cast and Race in India) और ‘मुंबई: ए स्टडी इन अर्बन (Mumbai: A Study in Urban Social Dynamics) जैसी कई महत्वपूर्ण पुस्तकों में भारतीय समाज की संरचना का गहन विश्लेषण किया। (यह प्रश्न प्रसिद्ध पुस्तक के शीर्षक के बजाय योगदानकर्ता पर अधिक केंद्रित है)।
- संदर्भ और विस्तार: घुरिये ने जाति, नातेदारी, जनजाति, शहरीकरण और धर्म सहित भारतीय समाज के विभिन्न पहलुओं पर महत्वपूर्ण काम किया। उन्होंने भारत में सामाजिक अनुसंधान की नींव रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- गलत विकल्प: इरावती कर्वे नातेदारी और परिवार पर केंद्रित थीं। एम.एन. श्रीनिवास संसृकृतता और दक्षिण भारत के समाजों पर केंद्रित थे। राधा कमल मुखर्जी ने सामाजिक अर्थशास्त्र और ग्रामीण समाज पर काम किया।
- एडवर्ड सपीर
- रॉबर्ट पार्क
- लुई वर्थ
- एमिल दुर्खीम
- सटीकता: रॉबर्ट पार्क (Robert Park) और उनके सहयोगी, शिकागो स्कूल के सदस्य, ‘सामाजिक दूरी’ (Social Distance) की अवधारणा के विकास से जुड़े हैं। उन्होंने विभिन्न जातियों, नृजातीय समूहों और अन्य सामाजिक श्रेणियों के बीच अंतःक्रिया और संबंधों का अध्ययन किया।
- संदर्भ और विस्तार: पार्क ने ‘द अमरीकन सिटी’ (The City) जैसी अपनी रचनाओं में शहरी जीवन में विभिन्न समूहों के बीच सामाजिक दूरी के गठन और प्रभाव का विश्लेषण किया। यह अवधारणा यह समझने में मदद करती है कि कैसे समूह एक-दूसरे को स्वीकार या अस्वीकार करते हैं।
- गलत विकल्प: एडवर्ड सपीर भाषा और संस्कृति के संबंध पर केंद्रित थे। लुई वर्थ ने ‘शहरीवाद एक जीवन शैली के रूप में’ (Urbanism as a Way of Life) पर काम किया। दुर्खीम ने सामाजिक एकजुटता और एनामिक पर ध्यान केंद्रित किया।
- अल्फ्रेड क्रोएबर
- मेलिनोवस्की
- फ्रैंज बोआस
- रूट बेनेडिक्ट
- सटीकता: फ्रैंज बोआस (Franz Boas), जिन्हें अक्सर ‘अमेरिकी मानवविज्ञान का जनक’ कहा जाता है, ने ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) के सिद्धांत को विकसित किया।
- संदर्भ और विस्तार: बोआस का मानना था कि किसी संस्कृति का मूल्यांकन उसके अपने मानदंडों और मूल्यों के आधार पर किया जाना चाहिए, न कि किसी बाहरी, चाहे वह पश्चिमी हो, सांस्कृतिक मानक के आधार पर। उन्होंने विभिन्न जनजातियों के विस्तृत नृवंशविज्ञान संबंधी अध्ययन किए और संस्कृति की विविधता को समझा।
- गलत विकल्प: अल्फ्रेड क्रोएबर बोआस के छात्र थे और उन्होंने संस्कृति पर काम किया। मेलिनोवस्की ने सांस्कृतिक प्रकार्यों (cultural functions) पर जोर दिया। रूट बेनेडिक्ट ने ‘पैटर्न इन कल्चर’ (Patterns in Culture) में सांस्कृतिक पैटर्न का विश्लेषण किया, जो बोआस के विचारों से प्रभावित था।
- रॉबर्ट मर्टन
- एडविन लेमर्ट
- हावर्ड बेकर
- ट्रैविक शिलिंग्स
- सटीकता: एडविन लेमर्ट (Edwin Lemert) ने ‘लेबलिंग सिद्धांत’ (Labeling Theory) के अपने कार्य में ‘द्वितीयक विचलन’ (Secondary Deviation) की अवधारणा पेश की।
- संदर्भ और विस्तार: लेमर्ट के अनुसार, प्राथमिक विचलन (primary deviation) वह प्रारंभिक कृत्य है जो समाज के मानदंडों का उल्लंघन करता है। जब समाज इस कृत्य को ‘विचलित’ के रूप में लेबल करता है और व्यक्ति को तदनुसार व्यवहार करने के लिए मजबूर करता है, तो यह द्वितीयक विचलन की ओर ले जाता है, जहाँ व्यक्ति उस लेबल को आत्मसात कर लेता है और स्थायी रूप से विचलित हो जाता है।
- गलत विकल्प: रॉबर्ट मर्टन ने ‘तनाव सिद्धांत’ दिया। हावर्ड बेकर ‘लेबलिंग सिद्धांत’ के एक प्रमुख प्रस्तावक थे, विशेषकर ‘आउटसाइडर्स’ (Outsiders) में, लेकिन लेमर्ट ने द्वितीयक विचलन को विशेष रूप से परिभाषित किया।
- जेम्स मैक्ग्रेगर बर्न्स
- मैक्स वेबर
- टॉल्कोट पार्सन्स
- डगलस मैकग्रेगर
- सटीकता: जेम्स मैक्ग्रेगर बर्न्स (James MacGregor Burns) ने अपनी 1978 की पुस्तक ‘लीडरशिप’ (Leadership) में ‘परिवर्तनकारी नेतृत्व’ (Transformational Leadership) की अवधारणा पेश की।
- संदर्भ और विस्तार: बर्न्स ने परिवर्तनकारी नेतृत्व को एक ऐसी प्रक्रिया के रूप में परिभाषित किया जहाँ नेता और अनुयायी एक-दूसरे को उच्च स्तर की प्रेरणा और नैतिकता तक उठाते हैं। यह नेतृत्व शैली अनुयायियों के विश्वासों, मूल्यों और आवश्यकताओं को प्रभावित करने पर केंद्रित है।
- गलत विकल्प: मैक्स वेबर ने नौकरशाही और सत्ता के प्रकारों का विश्लेषण किया। टॉल्कोट पार्सन्स ने सामाजिक व्यवस्था और क्रिया सिद्धांत पर काम किया। डगलस मैकग्रेगर ने ‘एक्स’ और ‘वाई’ सिद्धांत (Theory X and Theory Y) का विकास किया, जो प्रबंधन शैलियों से संबंधित है।
- एस. सी. रॉय
- एल.पी. विद्यार्थी
- एन.के. बोस
- ए. आर. देसाई
- सटीकता: एस. सी. रॉय (S.C. Roy) को भारत में नृवंशविज्ञान (Anthropology) का जनक माना जाता है। उन्होंने मुंडा और उरांव जैसी प्रमुख आदिवासी समुदायों पर गहन और ‘संक्षिप्त नृवंशविज्ञान’ (Short Ethnography) के रूप में कई महत्वपूर्ण अध्ययन किए।
- संदर्भ और विस्तार: रॉय के कार्यों ने भारतीय आदिवासी समुदायों की संस्कृति, सामाजिक संरचना, धर्म और जीवन शैली का विस्तृत विवरण प्रदान किया। उन्होंने आदिवासी मुद्दों पर सरकारी नीतियों को भी प्रभावित किया।
- गलत विकल्प: एल.पी. विद्यार्थी और एन.के. बोस भी भारतीय नृवंशविज्ञान में महत्वपूर्ण थे, लेकिन रॉय को पद्धतियों के प्रारंभिक विकास का श्रेय अधिक जाता है। ए. आर. देसाई एक मार्क्सवादी समाजशास्त्री थे जिन्होंने सामाजिक परिवर्तन और भारतीय राष्ट्रवाद पर काम किया।
- पियरे बॉर्डियू
- जेम्स कोलमैन
- रॉबर्ट पुटनम
- उपरोक्त सभी
- सटीकता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा का विकास पियरे बॉर्डियू (Pierre Bourdieu), जेम्स कोलमैन (James Coleman) और रॉबर्ट पुटनम (Robert Putnam) जैसे समाजशास्त्रियों द्वारा विभिन्न संदर्भों और परिप्रेक्ष्यों में किया गया है।
- संदर्भ और विस्तार: बॉर्डियू ने इसे व्यक्तिगत और सामूहिक क्षमता के रूप में देखा जो सामाजिक संबंधों से उत्पन्न होती है। कोलमैन ने इसे सामाजिक संरचना के एक रूप के रूप में वर्णित किया जो सामाजिक क्रिया को सुविधाजनक बनाता है। पुटनम ने इसे नागरिक समाज और लोकतंत्र के लिए महत्वपूर्ण माना। इन तीनों के योगदानों ने सामाजिक पूंजी को एक प्रमुख समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में स्थापित किया है।
- गलत विकल्प: जबकि प्रत्येक ने महत्वपूर्ण योगदान दिया, ‘उपरोक्त सभी’ सही उत्तर है क्योंकि सभी ने इस अवधारणा को विकसित करने में योगदान दिया है।
- औद्योगीकरण और शहरीकरण
- लोकतांत्रिक संस्थाओं का विकास
- धर्मनिरपेक्षीकरण (Secularization)
- उपरोक्त सभी
- सटीकता: आधुनिकीकरण सिद्धांत पारंपरिक समाजों को आधुनिक, विकसित समाजों में बदलने की बहुआयामी प्रक्रिया का वर्णन करता है, जिसमें औद्योगीकरण, शहरीकरण, लोकतांत्रिकरण, धर्मनिरपेक्षीकरण, शिक्षा का प्रसार, और व्यक्तिगत स्वायत्तता जैसी कई विशेषताएँ शामिल हैं।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत 20वीं सदी के मध्य में लोकप्रिय हुआ, जो विकासशील देशों को पश्चिमी देशों के पैटर्न का अनुसरण करने के लिए प्रोत्साहित करता था। इसमें तकनीकी प्रगति, तर्कसंगतता और मानकीकरण को बढ़ावा देना शामिल है।
- गलत विकल्प: उपरोक्त सभी विकल्प आधुनिकीकरण के सिद्धांत के मुख्य घटक हैं।
- एक ही सामाजिक स्थिति में रहते हुए व्यवसाय बदलना
- समाज में ऊपर या नीचे की ओर स्थान परिवर्तन
- एक समाज से दूसरे समाज में जाना
- सामाजिक संरचना में कोई बदलाव नहीं
- सटीकता: ऊर्ध्वाधर गतिशीलता (Vertical Mobility) का अर्थ है किसी व्यक्ति या समूह का सामाजिक पदानुक्रम (social hierarchy) में ऊपर (ऊर्ध्वगामी) या नीचे (निम्नगामी) की ओर स्थान परिवर्तन।
- संदर्भ और विस्तार: यह सामाजिक स्तरीकरण के अध्ययन का एक महत्वपूर्ण पहलू है। उदाहरण के लिए, एक मजदूर का मालिक बनना ऊर्ध्वगामी गतिशीलता है, जबकि एक व्यवसायी का दिवालिया होना निम्नगामी गतिशीलता है। ‘क्षैतिज गतिशीलता’ (Horizontal Mobility) तब होती है जब व्यक्ति एक ही स्तर पर स्थिति बदलता है, जैसे एक शिक्षक का दूसरे स्कूल में जाना।
- गलत विकल्प: (a) क्षैतिज गतिशीलता का वर्णन करता है। (c) प्रवासन (Migration) है। (d) स्थिर सामाजिक संरचना को दर्शाता है।
- संघर्ष उपागम (Conflict Approach)
- प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद (Symbolic Interactionism)
- कार्यात्मक उपागम (Functional Approach)
- नारीवादी उपागम (Feminist Approach)
- सटीकता: ‘सहमति’ (Consensus) की अवधारणा मुख्य रूप से ‘कार्यात्मक उपागम’ (Functional Approach) का केंद्रीय बिंदु है, जिसे संरचनात्मक-कार्यात्मकता (Structural-Functionalism) के रूप में भी जाना जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: इस उपागम के अनुसार, समाज विभिन्न परस्पर संबंधित भागों (संस्थाओं) से बना है जो समाज की स्थिरता और व्यवस्था बनाए रखने के लिए मिलकर काम करते हैं। यह स्थिरता साझा मूल्यों, विश्वासों और मानदंडों (सहमति) से उत्पन्न होती है। दुर्खीम और पार्सन्स इस उपागम के प्रमुख प्रस्तावक हैं।
- गलत विकल्प: संघर्ष उपागम समाज को शक्ति और असमानता के संघर्ष के रूप में देखता है। प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद सूक्ष्म-स्तरीय अंतःक्रियाओं और अर्थों पर केंद्रित है। नारीवादी उपागम लैंगिक असमानता पर केंद्रित है।
- ई.वी. रामासामी पेरियार
- राम मनोहर लोहिया
- एम.एन. श्रीनिवास
- उपरोक्त सभी
- सटीकता: ई.वी. रामासामी पेरियार, राम मनोहर लोहिया और एम.एन. श्रीनिवास – ये तीनों ही भारतीय समाज में हुए महत्वपूर्ण सामाजिक परिवर्तनों के अध्येता और प्रस्तावक रहे हैं।
- संदर्भ और विस्तार: पेरियार ने आत्म-सम्मान आंदोलन और जाति-विरोधी आंदोलनों पर जोर दिया। लोहिया ने पिछड़ी जातियों के उत्थान और सामाजिक न्याय की बात की। श्रीनिवास ने संसृकृतता, पश्चिमीकरण और भारतीय समाज में परिवर्तन पर व्यापक शोध किया। तीनों ने मिलकर भारत में सामाजिक परिवर्तन की जटिलताओं को समझने में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
- गलत विकल्प: प्रत्येक के अपने विशिष्ट योगदान हैं, लेकिन तीनों ने भारतीय समाज के परिवर्तनकारी पहलुओं पर महत्वपूर्ण कार्य किया है।
- ऑगस्ट कॉम्टे और हरबर्ट स्पेंसर
- एमिल दुर्खीम और मैक्स वेबर
- कार्ल मार्क्स और मैक्स वेबर
- जॉर्ज हर्बर्ट मीड और चार्ल्स कूली
- सटीकता: ऑगस्ट कॉम्टे (Auguste Comte) और हरबर्ट स्पेंसर (Herbert Spencer) जैसे प्रारंभिक समाजशास्त्रियों ने ‘रैखिक सामाजिक परिवर्तन’ (Linear Social Change) के सिद्धांत का समर्थन किया, जिसमें समाज को एक निश्चित दिशा में, जैसे कि चरणों के माध्यम से, विकसित होते हुए देखा जाता है।
- संदर्भ और विस्तार: कॉम्टे ने ‘तीन अवस्थाओं का नियम’ (Law of Three Stages) प्रस्तुत किया (धार्मिक, आध्यात्मिक, और प्रत्यक्षवादी), और स्पेंसर ने ‘सामाजिक डार्विनवाद’ (Social Darwinism) के माध्यम से सरल समाजों से जटिल समाजों की ओर विकास का सिद्धांत दिया। यह विचार कि समाज एक पूर्वनिर्धारित पथ पर प्रगति करता है, आधुनिक समाजशास्त्रीय विचारों से भिन्न है।
- गलत विकल्प: दुर्खीम ने सामाजिक एकता के प्रकारों पर, वेबर ने तर्कसंगतता और शक्ति पर, मार्क्स ने वर्ग संघर्ष पर, और मीड/कूली ने अंतःक्रियावाद पर ध्यान केंद्रित किया, जो मुख्य रूप से रैखिक प्रगतिवादी नहीं थे।
- शहरी समाजशास्त्र
- ग्रामीण समाजशास्त्र
- जनसंख्या अध्ययन (Demography)
- आर्थिक समाजशास्त्र
- सटीकता: जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत (Demographic Transition Theory) मुख्य रूप से ‘जनसंख्या अध्ययन’ (Demography) के क्षेत्र से संबंधित है, जो समाजशास्त्र के महत्वपूर्ण उप-क्षेत्रों में से एक है।
- संदर्भ और विस्तार: यह सिद्धांत बताता है कि जैसे-जैसे कोई समाज औद्योगीकरण और आधुनिकीकरण की ओर बढ़ता है, जन्म दर और मृत्यु दर में परिवर्तन आता है, जिससे जनसंख्या वृद्धि दर में भी बदलाव होता है। यह आमतौर पर तीन या चार चरणों से गुजरता है, जो उच्च जन्म और मृत्यु दर से शुरू होकर निम्न जन्म और मृत्यु दर पर समाप्त होता है।
- गलत विकल्प: जबकि जनसंख्या परिवर्तन शहरीकरण, ग्रामीणकरण और आर्थिक विकास को प्रभावित करता है, सिद्धांत का मूल क्षेत्र जनसांख्यिकी है।
- ब्रह्म समाज
- आर्य समाज
- दलित पैंथर आंदोलन
- परमहंस मंडली
- सटीकता: ‘दलित पैंथर आंदोलन’ (Dalit Panther Movement) भारत में सामाजिक न्याय के लिए, विशेष रूप से दलितों के अधिकारों और समानता के लिए, संघर्ष करने वाले सबसे प्रमुख आंदोलनों में से एक था।
- संदर्भ और विस्तार: 1970 के दशक में स्थापित, इस आंदोलन ने जातिगत भेदभाव, हिंसा और उत्पीड़न के खिलाफ मुखर विरोध किया और सामाजिक न्याय की स्थापना की मांग की। इसने दलितों के बीच चेतना जागृत करने और उनके अधिकारों के लिए संगठित होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- गलत विकल्प: ब्रह्म समाज और आर्य समाज ने सामाजिक सुधारों (जैसे सती प्रथा का उन्मूलन, विधवा विवाह) में भूमिका निभाई, लेकिन दलितों के विशिष्ट अधिकारों पर उनका ध्यान दलित पैंथर आंदोलन जितना केंद्रित नहीं था। परमहंस मंडली भी सुधारवादी संस्था थी।
- ‘मी’ व्यक्तित्व का आंतरिक, सामाजिक हिस्सा है, जबकि ‘मैं’ उस पर प्रतिक्रिया करने वाला, अप्रत्याशित हिस्सा है।
- ‘मैं’ समाज द्वारा निर्धारित भूमिका है, जबकि ‘मी’ व्यक्तिगत भावना है।
- दोनों केवल समाज की रचनाएं हैं जिनका कोई वास्तविक अर्थ नहीं है।
- ‘मैं’ जन्मजात प्रवृत्तियाँ हैं और ‘मी’ सीखी हुई आदतें हैं।
- सटीकता: जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) द्वारा विकसित प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के अनुसार, ‘मैं’ (I) व्यक्तित्व का वह हिस्सा है जो तत्काल, अप्रत्याशित प्रतिक्रिया करता है, जबकि ‘मी’ (Me) वह हिस्सा है जो समाज द्वारा आंतरिक मूल्यों, व्यवहारों और अपेक्षाओं को आत्मसात करने से बनता है।
- संदर्भ और विस्तार: ‘मी’ समाज का नजरिया है जो हम अपने भीतर रखते हैं, जबकि ‘मैं’ वह स्वतंत्र, रचनात्मक पक्ष है जो ‘मी’ के नियमों पर प्रतिक्रिया करता है। ये दोनों मिलकर व्यक्ति के ‘स्व’ (Self) का निर्माण करते हैं, जो सामाजिक अंतःक्रिया के माध्यम से विकसित होता है।
- गलत विकल्प: (b) ‘मी’ को समाज की भूमिका और ‘मैं’ को व्यक्तिगत भावना के रूप में गलत बताता है। (c) प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद के विपरीत है। (d) ‘मैं’ और ‘मी’ की भूमिकाओं को गलत तरीके से परिभाषित करता है।
उत्तर: (b)
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प्रश्न 7: भारतीय समाज में ‘वर्ण’ व्यवस्था का आधार क्या है?
उत्तर: (b)
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प्रश्न 8: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, विशेष रूप से उत्पादन की प्रक्रिया से, किसने प्रस्तुत की?
उत्तर: (c)
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प्रश्न 9: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) के अध्ययन में ‘पॉवर्टी एंड अनइक्वलनेस इन इंडिया’ (Poverty and Unequalness in India) पुस्तक किसने लिखी?
उत्तर: (d)
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प्रश्न 10: ‘कलेक्टिव रिप्रेजेन्टेशन’ (Collective Representation) की अवधारणा, जो समाज के सामूहिक प्रतीकों और विश्वासों को दर्शाती है, किस समाजशास्त्री से जुड़ी है?
उत्तर: (c)
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प्रश्न 11: ‘द सोशल स्ट्रक्चर ऑफ इंडिया’ (The Social Structure of India) जैसी पुस्तकों के लेखक कौन हैं, जिन्होंने भारतीय समाज के संरचनात्मक विश्लेषण पर काम किया?
उत्तर: (c)
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प्रश्न 12: ‘सामाजिक दूरी’ (Social Distance) की अवधारणा को किसने विकसित किया, जिसका उपयोग विभिन्न सामाजिक समूहों के बीच संबंधों को मापने के लिए किया जाता है?
उत्तर: (b)
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प्रश्न 13: ‘संस्कृति’ (Culture) की परिभाषा को ‘सांस्कृतिक सापेक्षवाद’ (Cultural Relativism) के दृष्टिकोण से किसने सबसे अधिक बढ़ावा दिया?
उत्तर: (c)
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प्रश्न 14: ‘द्वितीयक विचलन’ (Secondary Deviation) की अवधारणा, जो एक व्यक्ति के ‘विचलन’ (Deviance) को उसके सामाजिक लेबल से जोड़ती है, किस समाजशास्त्री ने पेश की?
उत्तर: (b)
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प्रश्न 15: ‘परिवर्तनकारी नेतृत्व’ (Transformational Leadership) की अवधारणा, जो नेतृत्व के एक रूप का वर्णन करती है जहाँ नेता अनुयायियों को प्रेरित करते हैं, किस समाजशास्त्री/अर्थशास्त्री से जुड़ी है?
उत्तर: (a)
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प्रश्न 16: भारत में ‘आदिवासी समाज’ (Tribal Society) के अध्ययन में ‘संक्षिप्त नृवंशविज्ञान’ (Short Ethnography) जैसी पद्धतियों का उपयोग किसने किया?
उत्तर: (a)
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प्रश्न 17: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जो सामाजिक नेटवर्क, सामाजिक विश्वास और सहयोग पर आधारित है, को व्यापक रूप से किसने विकसित किया?
उत्तर: (d)
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प्रश्न 18: ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) के सिद्धांत के अनुसार, पारंपरिक समाजों को आधुनिक समाजों में बदलने की प्रक्रिया में कौन सी विशेषताएँ महत्वपूर्ण हैं?
उत्तर: (d)
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प्रश्न 19: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) के संदर्भ में, ‘ऊर्ध्वाधर गतिशीलता’ (Vertical Mobility) का क्या अर्थ है?
उत्तर: (b)
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प्रश्न 20: ‘सहमति’ (Consensus) की अवधारणा, जो समाज में साझा मूल्यों और मानदंडों पर आधारित होती है, किस समाजशास्त्रीय उपागम (sociological approach) का मुख्य आधार है?
उत्तर: (c)
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प्रश्न 21: भारत में, ‘दशकों का सामाजिक परिवर्तन’ (Decades of Social Change) पर लिखने वाले प्रमुख समाजशास्त्रियों में से कौन थे?
उत्तर: (d)
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प्रश्न 22: ‘रैखिक सामाजिक परिवर्तन’ (Linear Social Change) का सिद्धांत, जो समाज को एक चरण से दूसरे चरण में व्यवस्थित प्रगति के रूप में देखता है, किन प्रारंभिक समाजशास्त्रियों से जुड़ा है?
उत्तर: (a)
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प्रश्न 23: ‘जनसांख्यिकीय संक्रमण सिद्धांत’ (Demographic Transition Theory) किस प्रकार के समाजशास्त्रीय अध्ययन से संबंधित है?
उत्तर: (c)
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प्रश्न 24: ‘सामाजिक न्याय’ (Social Justice) की अवधारणा भारत में किस सामाजिक सुधार आंदोलन के साथ सबसे अधिक जुड़ी हुई है?
उत्तर: (c)
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प्रश्न 25: ‘सिम्बोलिक इंटरेक्शनलिज्म’ (Symbolic Interactionism) के अनुसार, ‘मैं’ (I) और ‘मी’ (Me) के बीच संबंध का क्या महत्व है?
उत्तर: (a)
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