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संकल्पनाओं को कसें: समाजशास्त्र का आज का चैलेंज

संकल्पनाओं को कसें: समाजशास्त्र का आज का चैलेंज

नमस्ते, भावी समाजशास्त्रियों! आज के इस विशेष अभ्यास सत्र में आपका स्वागत है। अपनी विश्लेषणात्मक क्षमताओं और अवधारणात्मक स्पष्टता को परखने के लिए तैयार हो जाइए। ये 25 प्रश्न आपके ज्ञान को चुनौती देंगे और समाजशास्त्र की दुनिया में आपकी पकड़ को और मजबूत करेंगे। आइए, आज के सफर की शुरुआत करें!

समाजशास्त्र अभ्यास प्रश्न

निर्देश: निम्नलिखित 25 प्रश्नों का प्रयास करें और प्रदान किए गए विस्तृत स्पष्टीकरणों के साथ अपनी समझ का विश्लेषण करें।

प्रश्न 1: ‘सामूहिक चेतना’ (Collective Consciousness) की अवधारणा किस समाजशास्त्री से संबंधित है?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. मैक्स वेबर
  3. एमिल दुर्खीम
  4. हरबर्ट स्पेंसर

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: एमिल दुर्खीम ने ‘सामूहिक चेतना’ की अवधारणा प्रस्तुत की। यह समाज के सदस्यों द्वारा साझा की जाने वाली विश्वासों, मनोवृत्तियों और ज्ञान का कुल योग है, जो सामाजिक एकता को बनाए रखता है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: दुर्खीम ने अपनी पुस्तक ‘समाज में श्रम विभाजन’ (The Division of Labour in Society) में इस अवधारणा का विस्तार से वर्णन किया है। यह यांत्रिक एकजुटता (mechanical solidarity) वाले समाजों में अधिक मजबूत होती है।
  • गलत विकल्प: कार्ल मार्क्स सामाजिक वर्ग और संघर्ष पर केंद्रित थे, मैक्स वेबर ने ‘वेरस्टेहेन’ (Verstehen) और ‘आदर्श प्रकार’ (Ideal Type) जैसी अवधारणाएं दीं, और हरबर्ट स्पेंसर ने सामाजिक डार्विनवाद की बात की।

प्रश्न 2: मैक्स वेबर के अनुसार, शक्ति (Power) का वह रूप क्या है जो अनुयायियों के बीच ‘वैध’ (legitimate) माना जाता है?

  1. आर्थिक शक्ति
  2. पारंपरिक अधिकार (Traditional Authority)
  3. प्रतीकात्मक शक्ति
  4. अधिकार (Authority)

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: मैक्स वेबर ने शक्ति के तीन मुख्य प्रकार बताए: करिश्माई अधिकार (Charismatic Authority), पारंपरिक अधिकार (Traditional Authority), और कानूनी-तर्कसंगत अधिकार (Legal-Rational Authority)। इन सभी में ‘अधिकार’ (Authority) वह शक्ति है जिसे वैध माना जाता है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: वेबर के अनुसार, अधिकार वह शक्ति है जो लोगों द्वारा उचित और बाध्यकारी मानी जाती है। शक्ति अपने आप में जबरदस्ती का प्रयोग हो सकता है, लेकिन अधिकार में सहमति निहित होती है।
  • गलत विकल्प: आर्थिक शक्ति एक प्रकार की शक्ति है लेकिन वह हमेशा वैध न हो। पारंपरिक अधिकार और करिश्माई अधिकार अधिकार के विशेष रूप हैं, लेकिन ‘अधिकार’ सामान्य और व्यापक शब्द है जो वैधता को दर्शाता है।

प्रश्न 3: किस समाजशास्त्री ने ‘अनुकूलन’ (Adaptation) को समाज की चार प्रमुख कार्यात्मक आवश्यकताओं (Functional Prerequisites) में से एक माना है, जैसा कि उनके AGIL मॉडल में वर्णित है?

  1. रॉबर्ट मर्टन
  2. टैल्कॉट पार्सन्स
  3. सी. राइट मिल्स
  4. इर्विंग गॉफमैन

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: टैल्कॉट पार्सन्स ने अपने AGIL (Adaptation, Goal Attainment, Integration, Latency/Pattern Maintenance) मॉडल में समाज की चार कार्यात्मक आवश्यकताओं का वर्णन किया है। ‘अनुकूलन’ (Adaptation) पर्यावरण के साथ समाज की अंतःक्रिया को दर्शाता है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: पार्सन्स का मानना था कि किसी भी सामाजिक व्यवस्था को जीवित रहने के लिए इन चार कार्यों को पूरा करना आवश्यक है। अनुकूलन बाहरी वातावरण से संसाधनों को प्राप्त करने और उनसे निपटने से संबंधित है।
  • गलत विकल्प: रॉबर्ट मर्टन ने ‘अनुकूलन’ को विचलन (Deviance) के संदर्भ में अपनी उप-सिद्धांत (Mid-range Theory) में उपयोग किया। सी. राइट मिल्स ने ‘समाजशास्त्रीय कल्पना’ (Sociological Imagination) पर जोर दिया, और इर्विंग गॉफमैन ने ‘नाटकीयता’ (Dramaturgy) का सिद्धांत दिया।

प्रश्न 4: ‘भूमिका संघर्ष’ (Role Conflict) तब उत्पन्न होता है जब एक व्यक्ति को एक ही समय में दो या दो से अधिक भूमिकाओं को पूरा करना होता है, जिनके बीच असंगत अपेक्षाएँ होती हैं। यह अवधारणा किससे संबंधित है?

  1. सामाजिक स्तरीकरण
  2. भूमिका दूरी (Role Distance)
  3. भूमिका प्रतिमान (Role Set)
  4. भूमिका प्रतिस्थापन (Role Substitution)

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: ‘भूमिका प्रतिमान’ (Role Set) की अवधारणा रॉबर्ट मर्टन द्वारा दी गई है। यह किसी विशेष स्थिति में एक व्यक्ति द्वारा निभाई जाने वाली सभी भूमिकाओं का समूह है। जब इन भूमिकाओं से जुड़ी अपेक्षाएँ असंगत होती हैं, तो ‘भूमिका संघर्ष’ उत्पन्न होता है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: उदाहरण के लिए, एक प्रोफेसर को एक साथ एक शिक्षक, शोधकर्ता, प्रशासक और एक सहकर्मी की भूमिका निभानी पड़ती है। इन भूमिकाओं की परस्पर विरोधी माँगें भूमिका संघर्ष पैदा कर सकती हैं।
  • गलत विकल्प: ‘भूमिका दूरी’ (इर्विंग गॉफमैन) वह अलगाव है जो व्यक्ति अपनी भूमिका से महसूस करता है। ‘सामाजिक स्तरीकरण’ समाज को विभिन्न वर्गों में बाँटने की प्रक्रिया है। ‘भूमिका प्रतिस्थापन’ किसी भूमिका को दूसरी से बदलने की बात है।

प्रश्न 5: ‘अलगाव’ (Alienation) की अवधारणा, जो श्रम की प्रक्रिया और उसके उत्पाद से श्रमिक के अलगाव पर जोर देती है, किस समाजशास्त्री का केंद्रीय विचार है?

  1. एमिल दुर्खीम
  2. मैक्स वेबर
  3. कार्ल मार्क्स
  4. जॉर्ज सिमेल

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: कार्ल मार्क्स ने पूंजीवादी उत्पादन व्यवस्था में श्रमिकों के ‘अलगाव’ (Alienation) की महत्वपूर्ण अवधारणा का विश्लेषण किया। उन्होंने चार प्रकार के अलगाव बताए: उत्पादन के उत्पाद से, उत्पादन की प्रक्रिया से, स्वयं की प्रजाति-सार (species-essence) से, और अन्य मनुष्यों से।
  • संदर्भ एवं विस्तार: मार्क्स के अनुसार, स्व-उत्पादक श्रम के बजाय, पूंजीवाद में श्रमिक एक वस्तु बन जाता है, जो अपने श्रम के उत्पाद पर नियंत्रण खो देता है और एक यंत्रवत भूमिका निभाता है।
  • गलत विकल्प: दुर्खीम ने ‘अनमी’ (Anomie) पर काम किया। वेबर ने नौकरशाही और तर्कसंगतता पर ध्यान केंद्रित किया। सिमेल ने सामाजिक स्वरूपों और व्यक्तिवाद पर चर्चा की।

प्रश्न 6: भारतीय समाज में, ‘जजमानी व्यवस्था’ (Jajmani System) का संबंध मुख्य रूप से किससे है?

  1. भूमि का वितरण
  2. जाति-आधारित पारंपरिक सेवा विनिमय
  3. औपचारिक शिक्षा प्रणाली
  4. शहरीकरण की प्रक्रिया

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: जजमानी व्यवस्था एक पारंपरिक सामाजिक-आर्थिक व्यवस्था है जिसमें विभिन्न जातियों के बीच सेवाओं और वस्तुओं का आदान-प्रदान होता है। ‘जजमान’ (आमतौर पर उच्च जाति का) ‘कमाइन’ (सेवा प्रदाता, अक्सर निम्न जाति का) को सेवाएँ प्रदान करने के बदले में, वर्ष भर में निश्चित मात्रा में वस्तुएँ (जैसे अनाज) प्रदान करता है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: यह व्यवस्था ग्रामीण भारत में सामाजिक और आर्थिक संरचना का आधार रही है और यह जाति व्यवस्था के साथ गहराई से जुड़ी हुई है। इसे अक्सर एक ‘पारस्परिक’ (reciprocal) संबंध के रूप में देखा जाता है।
  • गलत विकल्प: जजमानी व्यवस्था सीधे तौर पर भूमि वितरण, औपचारिक शिक्षा, या शहरीकरण की प्रक्रियाओं से संबंधित नहीं है, हालांकि यह इन पर अप्रत्यक्ष प्रभाव डाल सकती है।

प्रश्न 7: एम.एन. श्रीनिवास द्वारा प्रस्तुत ‘संस्कृतीकरण’ (Sanskritization) की अवधारणा किस सामाजिक परिवर्तन की प्रक्रिया का वर्णन करती है?

  1. पश्चिमीकरण के प्रभाव से सांस्कृतिक बदलाव
  2. निम्न जातियों द्वारा उच्च जातियों की प्रथाओं को अपनाना
  3. आधुनिकीकरण के कारण पारंपरिक मूल्यों का क्षरण
  4. शहरी जीवन शैली का ग्रामीण क्षेत्रों में प्रसार

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: एम.एन. श्रीनिवास ने ‘संस्कृतीकरण’ शब्द को गढ़ा, जिसका अर्थ है कि निम्न या मध्य जातियों द्वारा जीवन शैली, अनुष्ठानों, विश्वासों और कर्मकांडों को अपनाना जो परंपरागत रूप से उच्च (आमतौर पर द्विजातियों) जातियों से जुड़े होते हैं, ताकि जाति पदानुक्रम में अपनी स्थिति को ऊपर उठाया जा सके।
  • संदर्भ एवं विस्तार: यह प्रक्रिया सांस्कृतिक गतिशीलता का एक रूप है, जो मुख्य रूप से ग्रामीण और अर्ध-शहरी संदर्भों में देखी जाती है। इसे श्रीनिवास ने अपनी पुस्तक ‘Religion and Society Among the Coorgs of South India’ में पहली बार प्रस्तुत किया था।
  • गलत विकल्प: पश्चिमीकरण पश्चिमी देशों की संस्कृति को अपनाने से संबंधित है। आधुनिकीकरण एक व्यापक प्रक्रिया है जिसमें औद्योगीकरण, शहरीकरण और तकनीकी विकास शामिल हैं। शहरी जीवन शैली का प्रसार एक अलग घटना है।

प्रश्न 8: समाजशास्त्रीय शोध में ‘प्रत्याशाहीन अवलोकन’ (Unbiased Observation) प्राप्त करने के लिए किस विधि का उपयोग सबसे उपयुक्त माना जाता है?

  1. साक्षात्कार (Interview)
  2. भागीदार अवलोकन (Participant Observation)
  3. नृवंशविज्ञान (Ethnography)
  4. प्रक्षेपी परीक्षण (Projective Tests)

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: भागीदार अवलोकन में शोधकर्ता उस सामाजिक समूह के भीतर रहकर, उसके दैनिक जीवन का अनुभव करते हुए और उसमें भाग लेते हुए अवलोकन करता है। यह ‘अंदरूनी दृष्टिकोण’ (emic perspective) प्रदान करता है और यह सुनिश्चित करने का प्रयास करता है कि अवलोकन यथासंभव अप्रत्यक्ष और वस्तुनिष्ठ हो।
  • संदर्भ एवं विस्तार: नृवंशविज्ञान (Ethnography) एक व्यापक शोध पद्धति है जिसमें अक्सर भागीदार अवलोकन एक मुख्य तकनीक के रूप में शामिल होता है। प्रत्यक्ष अवलोकन (Direct Observation) भी महत्वपूर्ण है।
  • गलत विकल्प: साक्षात्कार में शोधकर्ता की पूर्वाग्रह की संभावना अधिक होती है। प्रक्षेपी परीक्षण व्यक्ति के अवचेतन विचारों को जानने के लिए होते हैं, न कि वस्तुनिष्ठ अवलोकन के लिए।

प्रश्न 9: ‘रैडक्लिफ-ब्राउन’ (A.R. Radcliffe-Brown) के संरचनात्मक-प्रकार्यवाद (Structural-Functionalism) में, समाज को एक ऐसी व्यवस्था के रूप में देखा जाता है जिसकी विभिन्न इकाइयाँ (संरचनाएँ) समाज के अस्तित्व और निरंतरता के लिए कुछ ‘कार्य’ (Functions) करती हैं। यह दृष्टिकोण किससे प्रेरित था?

  1. जैविक सजीवता (Biological Organism)
  2. मनोविश्लेषण (Psychoanalysis)
  3. वर्ग संघर्ष सिद्धांत (Class Struggle Theory)
  4. अस्तित्ववाद (Existentialism)

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: ए.आर. रैडक्लिफ-ब्राउन, एमिल दुर्खीम की तरह, समाज को एक जैविक सजीवता (Biological Organism) के समान मानते थे। जिस प्रकार शरीर के विभिन्न अंग (हृदय, फेफड़े) मिलकर सजीवता को जीवित रखते हैं, उसी प्रकार समाज की विभिन्न संरचनाएँ (परिवार, धर्म, शिक्षा) सामूहिक कल्याण के लिए कार्य करती हैं।
  • संदर्भ एवं विस्तार: इस दृष्टिकोण में, प्रत्येक सामाजिक प्रथा का एक कार्य होता है जो सामाजिक व्यवस्था की स्थिरता में योगदान देता है। इसका मुख्य ध्यान ‘संरचना’ और उसके ‘कार्य’ पर था।
  • गलत विकल्प: मनोविश्लेषण फ्रायड से संबंधित है, वर्ग संघर्ष मार्क्स से, और अस्तित्ववाद सार्त्र जैसे विचारकों से। ये समाजशास्त्रीय कार्यों के मूल से भिन्न हैं।

प्रश्न 10: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) की अवधारणा, जो सामाजिक नेटवर्क, साझा समझ और विश्वास पर आधारित संसाधनों को संदर्भित करती है, का उल्लेख प्रमुखता से किसके कार्यों में किया गया है?

  1. पियरे बॉर्डियू
  2. रॉबर्ट पटनम
  3. जेम्स कॉलमैन
  4. उपरोक्त सभी

उत्तर: (d)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: सामाजिक पूंजी की अवधारणा को पियरे बॉर्डियू, जेम्स कॉलमैन और रॉबर्ट पटनम जैसे कई समाजशास्त्रियों ने विकसित किया है, हालाँकि प्रत्येक ने इस पर थोड़ा अलग दृष्टिकोण रखा है। बॉर्डियू ने इसे सामाजिक संबंधों के माध्यम से अर्जित संसाधन के रूप में देखा, कॉलमैन ने इसे एक कार्यात्मक अवधारणा के रूप में इस्तेमाल किया, और पटनम ने इसे सामुदायिक स्तर पर नागरिक जुड़ाव के लिए महत्वपूर्ण माना।
  • संदर्भ एवं विस्तार: संक्षेप में, सामाजिक पूंजी उन लाभों को संदर्भित करती है जो व्यक्ति या समूह अपने सामाजिक संबंधों के माध्यम से प्राप्त करते हैं।
  • गलत विकल्प: चूंकि यह अवधारणा तीनों के कार्यों में प्रमुखता से है, इसलिए ‘उपरोक्त सभी’ सही उत्तर है।

प्रश्न 11: भारतीय समाज में ‘आधुनिकीकरण’ (Modernization) की प्रक्रिया का अध्ययन करते समय, निम्नलिखित में से किसे एक महत्वपूर्ण सामाजिक संस्था के रूप में पहचाना जाता है जो परंपरागत से आधुनिक की ओर परिवर्तन में भूमिका निभाती है?

  1. संयुक्त परिवार
  2. पंचायती राज व्यवस्था
  3. जाति व्यवस्था
  4. धार्मिक अनुष्ठान

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: पंचायती राज व्यवस्था, विशेषकर स्वतंत्रता के बाद, भारत में स्थानीय स्वशासन को मजबूत करने और राजनीतिक आधुनिकीकरण को बढ़ावा देने में एक महत्वपूर्ण संस्था रही है। इसने लोकतांत्रिक भागीदारी और निर्णय लेने की प्रक्रिया में पारंपरिक संरचनाओं को आधुनिक बनाने का प्रयास किया है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: यद्यपि संयुक्त परिवार, जाति व्यवस्था और धार्मिक अनुष्ठान भारतीय समाज के महत्वपूर्ण अंग हैं, आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में उनकी भूमिका अक्सर परिवर्तन या अनुकूलन की होती है, जबकि पंचायती राज संस्थाएं सीधे तौर पर राजनीतिक आधुनिकीकरण के एजेंडे का हिस्सा रही हैं।
  • गलत विकल्प: संयुक्त परिवार और जाति व्यवस्था जैसी संस्थाएं अक्सर आधुनिकीकरण के साथ संघर्ष में देखी जाती हैं या परिवर्तित होती हैं, जबकि पंचायती राज संस्थाएं आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में सक्रिय भूमिका निभाती हैं।

प्रश्न 12: किस समाजशास्त्री ने ‘कुलीन वर्ग के पलायन’ (Circulation of Elites) का सिद्धांत प्रतिपादित किया, जिसमें तर्क दिया गया है कि अभिजात वर्ग हमेशा स्थिर नहीं रहता बल्कि बदलता रहता है?

  1. गैतानो मोस्का
  2. विल्फ्रेडो पारेतो
  3. सी. राइट मिल्स
  4. रॉबर्ट मिशेल

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: विल्फ्रेडो पारेतो ने ‘कुलीन वर्ग के पलायन’ (Circulation of Elites) का सिद्धांत दिया। उनके अनुसार, समाज में हमेशा एक शासक वर्ग (elite) होता है, लेकिन सत्ता और नेतृत्व का हस्तांतरण एक वर्ग से दूसरे वर्ग में होता रहता है, जिसे वे ‘कुलीन वर्ग का पलायन’ कहते हैं।
  • संदर्भ एवं विस्तार: पारेतो ने दो प्रकार के कुलीन वर्ग बताए: शासक कुलीन (governing elite) और गैर-शासक कुलीन (non-governing elite)। उन्होंने “शेरों” (शेर की तरह साहसी और प्रभुत्वशाली) और “लोमड़ियों” (लोमड़ी की तरह धूर्त और जोड़-तोड़ करने वाले) के बीच चक्रीयता का भी उल्लेख किया।
  • गलत विकल्प: गैतानो मोस्का ने ‘राजनीतिक वर्ग’ (Political Class) की बात की। सी. राइट मिल्स ने ‘शक्ति अभिजात वर्ग’ (Power Elite) की अवधारणा दी। रॉबर्ट मिशेल ने ‘लघुगणित का लौह नियम’ (Iron Law of Oligarchy) प्रतिपादित किया।

प्रश्न 13: ‘प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद’ (Symbolic Interactionism) के दृष्टिकोण से, ‘स्व’ (Self) का विकास कैसे होता है?

  1. जन्मजात जैविक प्रवृत्ति से
  2. समाज से अलगाव की प्रक्रिया से
  3. दूसरों के साथ अंतःक्रिया और उनके दृष्टिकोण को आंतरिक बनाने से
  4. सत्तावादी संरचनाओं के अनुपालन से

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: प्रतीकात्मक अंतःक्रियावाद, विशेषकर जॉर्ज हर्बर्ट मीड (George Herbert Mead) के विचारों के अनुसार, ‘स्व’ (Self) सामाजिक अंतःक्रिया का एक उत्पाद है। व्यक्ति दूसरों की प्रतिक्रियाओं और दृष्टिकोणों को आत्मसात (internalize) करके अपना ‘स्व’ विकसित करता है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: मीड ने ‘मैं’ (I) और ‘मुझे’ (Me) के बीच अंतर किया। ‘मुझे’ वह सामाजिक ‘स्व’ है जो दूसरों के दृष्टिकोणों को दर्शाता है, जबकि ‘मैं’ तत्काल प्रतिक्रियाएँ हैं। ‘स्व’ का विकास ‘खेल’ (Play) और ‘खेलकूद’ (Game) चरणों के माध्यम से होता है।
  • गलत विकल्प: ‘स्व’ जन्मजात जैविक प्रवृत्ति नहीं है। यह समाज से अलगाव के बजाय जुड़ाव से विकसित होता है, और सत्तावादी संरचनाओं का अनुपालन ‘स्व’ के विकास का प्रमुख कारक नहीं है।

प्रश्न 14: ‘अज्ञात कारणों से विचलन’ (Deviance from Unknown Causes) नामक शब्द का प्रयोग किस समाजशास्त्री ने अपने ‘तर्कसंगतता की प्रक्रिया’ (Process of Rationalization) के विश्लेषण में किया?

  1. कार्ल मार्क्स
  2. एमिल दुर्खीम
  3. मैक्स वेबर
  4. इर्विंग गॉफमैन

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: मैक्स वेबर ने अपनी ‘तर्कसंगतता की प्रक्रिया’ के संदर्भ में कहा कि जैसे-जैसे समाज अधिक तर्कसंगत (rational) और नौकरशाही (bureaucratic) होता जाता है, वैसे-वैसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अनिश्चितता के लिए जगह कम होती जाती है। उन्होंने कुछ सामाजिक घटनाओं या व्यक्तिगत कृत्यों को “अज्ञात कारणों से विचलन” के रूप में वर्णित किया, जिन्हें तर्कसंगत ढाँचे में पूरी तरह से नहीं समझा जा सकता।
  • संदर्भ एवं विस्तार: यह वेबर की पश्चिमी समाज में ‘लोहे के पिंजरे’ (Iron Cage) के बढ़ते तर्कसंगतता के भय से संबंधित है।
  • गलत विकल्प: मार्क्स ने आर्थिक निर्धारणवाद पर जोर दिया, दुर्खीम ने सामाजिक एकता और अनमी पर, और गॉफमैन ने रोजमर्रा की बातचीत और स्वयं के प्रदर्शन पर।

प्रश्न 15: भारतीय समाज में ‘धर्मनिरपेक्षता’ (Secularism) की बहस में, ‘सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता’ (Positive Secularism) का विचार किससे जुड़ा है?

  1. राज्य का सभी धर्मों से पूर्ण अलगाव
  2. राज्य द्वारा सभी धर्मों के प्रति समान सम्मान और समर्थन
  3. धर्म का सार्वजनिक क्षेत्र से पूर्ण निष्कासन
  4. धर्मों के बीच संघर्ष को बढ़ावा देना

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: भारत में ‘सकारात्मक धर्मनिरपेक्षता’ का अर्थ है कि राज्य सभी धर्मों को समान सम्मान देता है और उनका समर्थन करता है, न कि उन्हें सार्वजनिक जीवन से पूरी तरह अलग कर देता है (जैसा कि पश्चिमी ‘नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता’ में होता है, जहाँ राज्य धर्म से अलग रहता है)।
  • संदर्भ एवं विस्तार: भारतीय संदर्भ में, राज्य धार्मिक गतिविधियों में हस्तक्षेप कर सकता है (उदाहरण के लिए, सामाजिक सुधार के लिए) और सभी समुदायों के विकास में समान रूप से योगदान देने का प्रयास करता है।
  • गलत विकल्प: ‘नकारात्मक धर्मनिरपेक्षता’ राज्य के पूर्ण अलगाव पर जोर देती है। धर्म का निष्कासन या संघर्ष को बढ़ावा देना धर्मनिरपेक्षता के मूल सिद्धांतों के विपरीत है।

प्रश्न 16: ‘डेविड एपस्टीन’ (David Epstein) की अवधारणा ‘पैटर्न कोडिंग’ (Pattern Coding) का समाजशास्त्रीय शोध में क्या महत्व है?

  1. गुणात्मक डेटा का वर्गीकरण
  2. सांख्यिकीय डेटा का विश्लेषण
  3. प्रतिभागियों की पहचान
  4. नैतिक अनुपालन सुनिश्चित करना

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: पैटर्न कोडिंग (Pattern Coding) गुणात्मक डेटा विश्लेषण की एक विधि है, जिसमें शोधकर्ता डेटा (जैसे साक्षात्कार प्रतिलेख, क्षेत्र नोट्स) में आवर्ती विषयों, विचारों या व्यवहारों के पैटर्न की पहचान करता है और उन्हें कोड (लेबल) करता है। डेविड एपस्टीन जैसे सामाजिक वैज्ञानिक इस तकनीक का उपयोग अपने निष्कर्षों को व्यवस्थित करने के लिए करते हैं।
  • संदर्भ एवं विस्तार: यह मात्रात्मक (quantitative) के बजाय गुणात्मक (qualitative) शोध में अधिक प्रासंगिक है, जहाँ डेटा को संख्याओं में व्यक्त नहीं किया जाता है।
  • गलत विकल्प: पैटर्न कोडिंग सीधे तौर पर सांख्यिकीय विश्लेषण, प्रतिभागियों की पहचान या नैतिक अनुपालन से संबंधित नहीं है, हालांकि यह अंततः शोध की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है।

प्रश्न 17: ‘सामाजिक गतिशीलता’ (Social Mobility) के संदर्भ में, ‘अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता’ (Intergenerational Mobility) का क्या अर्थ है?

  1. एक ही पीढ़ी के भीतर व्यक्ति की स्थिति में बदलाव
  2. माता-पिता की सामाजिक स्थिति की तुलना में बच्चों की सामाजिक स्थिति में बदलाव
  3. एक सामाजिक वर्ग से दूसरे में संक्रमण
  4. एक ही वर्ष में सामाजिक स्थिति का परिवर्तन

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: अंतर-पीढ़ीगत गतिशीलता से तात्पर्य एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी तक सामाजिक स्थिति में परिवर्तन से है। सरल शब्दों में, यह बच्चों की सामाजिक स्थिति का उनके माता-पिता की सामाजिक स्थिति से तुलनात्मक अध्ययन है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: यह अध्ययन करने के लिए एक महत्वपूर्ण आयाम है कि समाज कितनी हद तक अपनी सामाजिक व्यवस्था को बनाए रखता है या बदलता है, और अवसर कितने समान रूप से वितरित हैं।
  • गलत विकल्प: ‘अंतरा-पीढ़ीगत गतिशीलता’ (Intra-generational mobility) एक ही पीढ़ी के भीतर व्यक्ति की स्थिति में बदलाव को संदर्भित करती है। ‘सामाजिक वर्ग’ से ‘सामाजिक वर्ग’ में संक्रमण एक व्यापक वर्णन है, जबकि ‘अंतर-पीढ़ीगत’ विशेष रूप से पीढ़ियों के बीच की तुलना है।

प्रश्न 18: ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा, जो समाज के कुछ हिस्सों (जैसे प्रौद्योगिकी) के तेज़ी से बदलने और अन्य हिस्सों (जैसे संस्थाएँ, मूल्य) के धीमे गति से बदलने के बीच के अंतर को बताती है, किसने प्रस्तुत की?

  1. विलियम एफ. ओगबर्न
  2. ए.एच. स्ट्रॉसबर्ग
  3. मैनन हाईम
  4. जॉर्ज एल. मर्डोक

उत्तर: (a)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: विलियम एफ. ओगबर्न ने 1922 में अपनी पुस्तक ‘सोशल चेंज’ में ‘सांस्कृतिक विलंब’ (Cultural Lag) की अवधारणा पेश की। उन्होंने तर्क दिया कि भौतिक संस्कृति (जैसे प्रौद्योगिकी) अभौतिक संस्कृति (जैसे मूल्य, कानून, संस्थाएँ) की तुलना में तेज़ी से बदलती है, जिससे समाज में असंतुलन और समस्याएँ पैदा होती हैं।
  • संदर्भ एवं विस्तार: उदाहरण के लिए, इंटरनेट और सोशल मीडिया जैसी नई प्रौद्योगिकियों के आगमन ने मौजूदा कानूनों, सामाजिक मानदंडों और पारिवारिक संरचनाओं को अनुकूलित करने में समय लिया।
  • गलत विकल्प: ए.एच. स्ट्रॉसबर्ग ने सामाजिक पदानुक्रम पर काम किया। मैनन हाईम ने ‘पीढ़ी’ (Generation) के सिद्धांत को विकसित किया। जॉर्ज एल. मर्डोक ने सार्वभौमिक सांस्कृतिक विशेषताओं (Universal Cultural Traits) का अध्ययन किया।

प्रश्न 19: ‘एस्केपिज्म’ (Escapism) या पलायनवाद, समाजशास्त्र में, अक्सर किस रूप में देखा जाता है?

  1. सामाजिक प्रगति का एक रूप
  2. नकारात्मक या निष्क्रिय प्रतिक्रिया
  3. सकारात्मक सामाजिक परिवर्तन का उत्प्रेरक
  4. व्यक्तिगत उपलब्धि की अभिव्यक्ति

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: पलायनवाद, जिसमें व्यक्ति अपनी समस्याओं या कठोर वास्तविकताओं से बचने के लिए काल्पनिक दुनिया, मनोरंजन, या अन्य सुखद अनुभवों का सहारा लेता है, को अक्सर समाजशास्त्र में एक ‘नकारात्मक’ या ‘निष्क्रिय’ प्रतिक्रिया के रूप में देखा जाता है। यह उन सामाजिक समस्याओं को हल करने के बजाय उनसे भागने का एक तरीका है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: उदाहरणों में अत्यधिक टीवी देखना, मादक द्रव्यों का सेवन, या फंतासी साहित्य में खो जाना शामिल हो सकता है। यह अक्सर समाज में व्याप्त असंतोष या हताशा का परिणाम होता है।
  • गलत विकल्प: यह सीधे तौर पर सामाजिक प्रगति, सकारात्मक परिवर्तन, या व्यक्तिगत उपलब्धि से जुड़ा नहीं है, हालांकि कुछ मामलों में ये अतिव्यापी हो सकते हैं।

प्रश्न 20: ‘प्रतिभा का योग्यता’ (Meritocracy) की अवधारणा, जिसमें सामाजिक स्थिति मुख्य रूप से व्यक्तिगत योग्यता, प्रयास और प्रतिभा पर आधारित होती है, का संबंध किस प्रकार के समाज से है?

  1. सामंतवादी समाज
  2. आधुनिक औद्योगिक समाज
  3. आदिम साम्यवादी समाज
  4. पारंपरिक समाज

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: योग्यता (Meritocracy) की अवधारणा आधुनिक औद्योगिक समाजों से जुड़ी हुई है, जहाँ शिक्षा, कौशल और कड़ी मेहनत को सामाजिक गतिशीलता और सफलता का मुख्य आधार माना जाता है। यह जन्म या वंशानुक्रम के बजाय व्यक्तिगत उपलब्धि पर जोर देता है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: हालांकि, व्यवहार में, कई आधुनिक समाजों में भी असमानताएँ मौजूद रहती हैं और जन्म, पृष्ठभूमि और सामाजिक पूंजी का प्रभाव अभी भी महत्वपूर्ण हो सकता है।
  • गलत विकल्प: सामंतवादी, आदिम साम्यवादी और पारंपरिक समाज योग्यता के बजाय जन्म, वंश, या पदानुक्रमित संरचनाओं पर अधिक निर्भर करते हैं।

प्रश्न 21: ‘सामाजिक स्तरीकरण’ (Social Stratification) के अध्ययन में, ‘संवैधानिक सिद्धांत’ (Functionalist Theory) के अनुसार, स्तरीकरण क्यों आवश्यक है?

  1. यह समाज के सदस्यों को दंडित करने का एक तरीका है।
  2. यह सुनिश्चित करता है कि सबसे महत्वपूर्ण पदों के लिए सबसे योग्य व्यक्ति चुने जाएँ।
  3. यह सामाजिक संघर्ष को बढ़ावा देता है।
  4. यह सामाजिक समानता का मार्ग प्रशस्त करता है।

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: संरचनात्मक-प्रकार्यवादियों (जैसे डेविस और मूर) का तर्क है कि सामाजिक स्तरीकरण समाज के लिए कार्यात्मक (functional) है क्योंकि यह यह सुनिश्चित करने के लिए एक प्रेरणा (incentive) के रूप में कार्य करता है कि समाज में सबसे महत्वपूर्ण पदों (जैसे डॉक्टर, इंजीनियर) के लिए सबसे योग्य और प्रतिभाशाली व्यक्तियों को आकर्षित किया जाए और उन्हें उन भूमिकाओं को निभाने के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
  • संदर्भ एवं विस्तार: उनका मानना था कि इन महत्वपूर्ण भूमिकाओं के लिए उच्च स्तर के प्रशिक्षण, क्षमता और समर्पण की आवश्यकता होती है, और इसलिए उन्हें उच्च पुरस्कार (जैसे वेतन, प्रतिष्ठा) मिलने चाहिए।
  • गलत विकल्प: यह दंडित करने, संघर्ष को बढ़ावा देने या सीधे तौर पर समानता का मार्ग प्रशस्त करने के बजाय, समाज की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कार्यात्मक संतुलन बनाए रखने का एक तरीका है।

प्रश्न 22: ‘अस्पृश्यता’ (Untouchability) भारतीय जाति व्यवस्था में किस प्रकार की सामाजिक असमानता का प्रतिनिधित्व करती है?

  1. आर्थिक असमानता
  2. राजनीतिक असमानता
  3. पदानुक्रमित अलगाव और अशुद्धता का नियम
  4. सांस्कृतिक बहिष्कार

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: अस्पृश्यता, जिसे दलित समुदायों द्वारा अनुभव किया जाता है, जाति व्यवस्था के भीतर एक चरम रूप है जहाँ कुछ जातियों को ‘अशुद्ध’ माना जाता है और सामाजिक, धार्मिक और भौतिक संपर्क से बहिष्कृत किया जाता है। यह एक पदानुक्रमित अलगाव और अशुद्धता के नियम पर आधारित है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: यह केवल आर्थिक या राजनीतिक असमानता नहीं है, बल्कि एक गहरे सांस्कृतिक और धार्मिक भेदभाव का प्रतीक है जो सदियों से चला आ रहा है।
  • गलत विकल्प: यद्यपि अस्पृश्यता के आर्थिक और राजनीतिक परिणाम होते हैं, इसकी मूल प्रकृति पदानुक्रमित अलगाव और अशुद्धता के नियमों में निहित है। सांस्कृतिक बहिष्कार इसका एक पहलू है, लेकिन ‘पदानुक्रमित अलगाव और अशुद्धता का नियम’ इसे अधिक सटीक रूप से परिभाषित करता है।

प्रश्न 23: ‘सामाजिक पूंजी’ (Social Capital) के संदर्भ में, ‘विश्वास’ (Trust) की भूमिका के बारे में किसने लिखा है कि यह ‘सक्रियता का ईंधन’ (Fuel for Action) है?

  1. पियरे बॉर्डियू
  2. रॉबर्ट पटनम
  3. जेम्स कॉलमैन
  4. फ्रांसिस फुकुयामा

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: रॉबर्ट पटनम ने अपनी पुस्तक ‘मेकिंग डेमोक्रेसी वर्क’ में ‘सामाजिक पूंजी’ के महत्व पर जोर दिया और विशेष रूप से यह तर्क दिया कि नागरिक समाज में ‘विश्वास’ की उच्च स्तर की उपस्थिति सहयोग को बढ़ावा देती है और सामूहिक कार्रवाई को संभव बनाती है। उन्होंने इसे ‘सक्रियता का ईंधन’ (fuel for action) के रूप में वर्णित किया।
  • संदर्भ एवं विस्तार: उनके अनुसार, विश्वास सामाजिक पूंजी का एक महत्वपूर्ण घटक है जो सामाजिक नेटवर्क को अधिक कुशल बनाता है।
  • गलत विकल्प: बॉर्डियू और कॉलमैन ने भी सामाजिक पूंजी पर लिखा, लेकिन ‘सक्रियता का ईंधन’ जैसी वाक्यांश और विश्वास के महत्व पर पटनम का जोर अधिक प्रमुख है। फुकुयामा ने भी विश्वास पर काम किया है, लेकिन पटनम के संदर्भ में सामाजिक पूंजी के साथ इसका जुड़ाव अधिक प्रत्यक्ष है।

प्रश्न 24: ‘औद्योगीकरण’ (Industrialization) के परिणामस्वरूप भारतीय समाज में किस प्रकार के परिवर्तन देखे गए हैं?

  1. संयुक्त परिवारों में वृद्धि
  2. ग्रामीण से शहरी प्रवास में कमी
  3. पारंपरिक व्यवसायों में बदलाव और नए रोजगार सृजन
  4. जाति आधारित पदानुक्रम का सुदृढ़ीकरण

उत्तर: (c)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: औद्योगीकरण ने भारतीय समाज में बड़े पैमाने पर परिवर्तन लाए हैं। इसने पारंपरिक ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को बदल दिया है, लोगों को ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर प्रवास करने के लिए प्रेरित किया है (शहरीकरण), और नए प्रकार के रोजगार सृजित किए हैं, जिससे पारंपरिक व्यवसायों में बदलाव आया है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: इसने संयुक्त परिवारों के आकार और संरचना को भी प्रभावित किया है (आमतौर पर उन्हें छोटा किया है) और जाति व्यवस्था की गतिशीलता को जटिल बनाया है।
  • गलत विकल्प: औद्योगीकरण ने संयुक्त परिवारों में कमी, शहरी प्रवास में वृद्धि और जाति आधारित पदानुक्रमों में जटिलता (कभी-कभी कमजोर, कभी-कभी मजबूत) को जन्म दिया है। इसलिए, विकल्प (c) सबसे प्रत्यक्ष और व्यापक प्रभाव है।

प्रश्न 25: ‘नृवंशविज्ञान’ (Ethnography) पद्धति में, शोधकर्ता समूह के दैनिक जीवन में ‘गहराई से डूबने’ (Deep Immersion) का प्रयास क्यों करता है?

  1. केवल बाहरी व्यवहारों का दस्तावेजीकरण करने के लिए
  2. समूह के सदस्यों के जीवन के ‘आंतरिक अर्थ’ (Inner Meaning) को समझने के लिए
  3. डेटा को जल्दी से एकत्र करने के लिए
  4. समूह को प्रयोग के रूप में उपयोग करने के लिए

उत्तर: (b)

विस्तृत स्पष्टीकरण:

  • सत्यता: नृवंशविज्ञान का मुख्य उद्देश्य किसी विशेष संस्कृति या सामाजिक समूह के दृष्टिकोण से उनके जीवन के तरीके, विश्वासों, मूल्यों और सामाजिक संरचनाओं को गहराई से समझना है। ‘गहराई से डूबना’ या ‘सहभागी अवलोकन’ (participant observation) शोधकर्ता को उस समूह के ‘आंतरिक अर्थ’ (inner meaning) और उनकी अपनी दुनिया को समझने में मदद करता है।
  • संदर्भ एवं विस्तार: यह मात्रात्मक अध्ययनों के विपरीत, गुणात्मक समझ पर केंद्रित है।
  • गलत विकल्प: बाहरी व्यवहारों का दस्तावेजीकरण एक परिणाम हो सकता है, लेकिन यह मुख्य उद्देश्य नहीं है। गहराई से डूबना डेटा एकत्र करने में अधिक समय लेता है, न कि कम। समूह को प्रयोग के रूप में उपयोग करना अनैतिक होगा और नृवंशविज्ञान का उद्देश्य नहीं है।

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