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शुभांशु का अंतरिक्ष में 18 दिन: ISS पर पहले भारतीय की ऐतिहासिक लैंडिंग

शुभांशु का अंतरिक्ष में 18 दिन: ISS पर पहले भारतीय की ऐतिहासिक लैंडिंग

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में, एक ऐतिहासिक घटनाक्रम में, भारतीय मूल के शुभांशु अंतरिक्ष में 18 दिन बिताने के बाद सफलतापूर्वक पृथ्वी पर लौट आए हैं। उनके स्पेसक्राफ्ट की लैंडिंग कैलिफोर्निया के तट पर हुई, जिसने एक नया मील का पत्थर स्थापित किया है क्योंकि वे अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) का दौरा करने वाले पहले भारतीय नागरिक बन गए हैं। यह उपलब्धि न केवल व्यक्तिगत रूप से शुभांशु के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि भारत के तेजी से बढ़ते अंतरिक्ष क्षेत्र और वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में इसकी बढ़ती भूमिका के लिए भी एक बड़ा प्रतीक है।

यह वापसी, एक नए युग की शुरुआत का संकेत देती है, जहाँ निजी अंतरिक्ष यात्रा और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का महत्व बढ़ रहा है। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए, यह घटना विज्ञान और प्रौद्योगिकी, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों, अर्थव्यवस्था और समसामयिक घटनाओं के कई पहलुओं को समझने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करती है। आइए, इस ऐतिहासिक मिशन के विभिन्न आयामों, इसके महत्व और भारत के अंतरिक्ष भविष्य पर इसके संभावित प्रभावों का विस्तार से विश्लेषण करें।

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS): मानवता का आकाशीय घर

अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) पृथ्वी की निचली कक्षा में स्थापित एक विशाल और जटिल वैज्ञानिक अनुसंधान सुविधा है। यह मानव इतिहास में सबसे महत्वाकांक्षी अंतर्राष्ट्रीय सहयोग परियोजनाओं में से एक है, जिसमें 15 देशों की 5 अंतरिक्ष एजेंसियां (NASA – अमेरिका, Roscosmos – रूस, JAXA – जापान, ESA – यूरोप, CSA – कनाडा) शामिल हैं। इसे 1998 में असेंबल करना शुरू किया गया था, और तब से यह लगातार मानव उपस्थिति बनाए हुए है, जिससे यह मानव जाति का सबसे लंबा लगातार रहने वाला ऑफ-वर्ल्ड निवास स्थान बन गया है।

ISS का उद्देश्य और कार्यप्रणाली:

  • वैज्ञानिक अनुसंधान: ISS एक अनूठी माइक्रोग्रैविटी (सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण) वातावरण प्रदान करता है जहाँ वैज्ञानिक जीव विज्ञान, भौतिकी, खगोल विज्ञान, मौसम विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्रों में प्रयोग कर सकते हैं। ये प्रयोग पृथ्वी पर संभव नहीं हैं और मानव शरीर पर लंबे समय तक अंतरिक्ष में रहने के प्रभावों को समझने के लिए महत्वपूर्ण हैं, जो भविष्य के चंद्रमा और मंगल मिशनों के लिए आवश्यक है।
  • तकनीकी विकास: यह नई अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों, जीवन समर्थन प्रणालियों और रोबोटिक्स का परीक्षण करने के लिए एक मंच के रूप में कार्य करता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: ISS विभिन्न देशों के बीच शांतिपूर्ण सहयोग और वैज्ञानिक आदान-प्रदान का प्रतीक है, जो भू-राजनीतिक तनावों से परे एकजुटता का प्रदर्शन करता है।
  • शैक्षिक आउटरीच: यह दुनिया भर के छात्रों और जनता को अंतरिक्ष अन्वेषण के बारे में प्रेरित और शिक्षित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

ISS पर जीवन: एक अनूठा अनुभव

ISS पर रहने वाले अंतरिक्ष यात्री पृथ्वी से लगभग 400 किलोमीटर ऊपर, 28,000 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से यात्रा करते हैं, जिससे वे हर 90 मिनट में पृथ्वी का एक चक्कर पूरा करते हैं। इसका मतलब है कि वे हर दिन लगभग 16 सूर्योदय और सूर्यास्त देखते हैं।

“अंतरिक्ष में जीवन एक सूक्ष्म ब्रह्मांड में रहने जैसा है, जहाँ हर दिन विज्ञान और इंजीनियरिंग की सीमाओं को चुनौती दी जाती है।”

अंतरिक्ष यात्रियों को कठोर प्रशिक्षण से गुजरना पड़ता है और वे विभिन्न प्रकार के कर्तव्यों का पालन करते हैं, जिनमें वैज्ञानिक प्रयोग करना, स्टेशन का रखरखाव करना, व्यायाम करना (हड्डी और मांसपेशियों के घनत्व के नुकसान से बचने के लिए) और पृथ्वी पर मिशन नियंत्रण के साथ संवाद करना शामिल है। गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण दैनिक कार्य जैसे खाना, सोना और व्यक्तिगत स्वच्छता भी विशेष चुनौतियों का सामना करती है।

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम: मील के पत्थर और महत्व

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम, भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) द्वारा संचालित, 1960 के दशक की शुरुआत में अपनी विनम्र शुरुआत के बाद से एक लंबा सफर तय कर चुका है। यह ‘आत्मनिर्भरता’ और ‘कम लागत वाले नवाचार’ के सिद्धांतों पर आधारित है, जिसने भारत को वैश्विक अंतरिक्ष शक्ति के रूप में स्थापित किया है।

ISRO के प्रमुख मील के पत्थर:

  • शुरुआती दौर (1960-70 के दशक): डॉ. विक्रम साराभाई और डॉ. सतीश धवन जैसे दूरदर्शी नेताओं के मार्गदर्शन में थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन (TERLS) की स्थापना और आर्यभट्ट (भारत का पहला उपग्रह, 1975) का प्रक्षेपण।
  • उपग्रह विकास (1980-90 के दशक): INSAT (भारतीय राष्ट्रीय उपग्रह प्रणाली) और IRS (भारतीय रिमोट सेंसिंग उपग्रह) श्रृंखला का विकास, जिसने संचार, मौसम विज्ञान और पृथ्वी अवलोकन में क्रांति ला दी।
  • लॉन्च वाहन क्षमता (1990 के दशक के बाद): PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) और GSLV (जियोसिंक्रोनस सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) का सफल विकास, जिसने भारत को उपग्रहों को विभिन्न कक्षाओं में लॉन्च करने की क्षमता प्रदान की। PSLV को “वर्कहॉर्स” के रूप में जाना जाता है, जिसने कई सफल मिशनों को अंजाम दिया है।
  • चंद्रमा और मंगल मिशन:
    • चंद्रयान-1 (2008): चंद्रमा पर पानी के अणुओं की उपस्थिति की पुष्टि करने वाला पहला भारतीय मिशन।
    • मंगलयान (मंगल ऑर्बिटर मिशन – MOM, 2013): मंगल ग्रह पर अपने पहले प्रयास में पहुंचने वाला दुनिया का चौथा और एशिया का पहला देश बना भारत। यह मिशन अपनी लागत-प्रभावशीलता के लिए विश्व स्तर पर सराहा गया।
    • चंद्रयान-2 (2019): चंद्र सतह पर सॉफ्ट लैंडिंग का प्रयास, ऑर्बिटर अभी भी सक्रिय है और डेटा भेज रहा है।
    • चंद्रयान-3 (2023): चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला भारत दुनिया का चौथा और दक्षिणी ध्रुव पर पहुंचने वाला पहला देश बना।
  • मानव अंतरिक्ष उड़ान: गगनयान मिशन: भारत की महत्वाकांक्षी मानव अंतरिक्ष उड़ान परियोजना, जिसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से वापस लाना है। यह मिशन भारत को मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता रखने वाले चुनिंदा देशों के समूह में शामिल करेगा।

भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम का महत्व:

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम केवल वैज्ञानिक उपलब्धियों तक ही सीमित नहीं है; इसका सामाजिक-आर्थिक विकास पर भी गहरा प्रभाव पड़ा है। यह आपदा प्रबंधन, कृषि, शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा, नेविगेशन और संचार जैसे क्षेत्रों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। इसके अलावा, यह राष्ट्रीय गौरव का स्रोत है और युवाओं को विज्ञान और प्रौद्योगिकी में करियर बनाने के लिए प्रेरित करता है।

शुभांशु का मिशन: भारत के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक

शुभांशु की ISS यात्रा और सफल वापसी भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए कई मायनों में ऐतिहासिक और महत्वपूर्ण है। यद्यपि भारत का अपना मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम (गगनयान) अभी विकास के अधीन है, किसी भारतीय नागरिक का ISS का दौरा करना एक प्रतीकात्मक और व्यावहारिक जीत है।

महत्व के बिंदु:

  • निजी अंतरिक्ष यात्रा का बढ़ता महत्व: यह घटना विश्व स्तर पर निजी क्षेत्र की बढ़ती भागीदारी और अंतरिक्ष अन्वेषण के लोकतंत्रीकरण का संकेत देती है। शुभांशु की यात्रा भारत में निजी अंतरिक्ष उद्यमों के लिए एक प्रेरणा का काम कर सकती है।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग का विस्तार: यह दर्शाता है कि भारतीय नागरिक अब वैश्विक अंतरिक्ष पारिस्थितिकी तंत्र का एक अभिन्न अंग बन रहे हैं, जिससे भविष्य में अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष मिशनों और सहयोगों के लिए द्वार खुलेंगे।
  • तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन: भले ही शुभांशु ने किसी अन्य देश के स्पेसक्राफ्ट का उपयोग किया हो, उनकी सफल वापसी भारत की क्षमता को उजागर करती है कि वह अपने नागरिकों को ऐसे जटिल मिशनों के लिए तैयार कर सके और ऐसी यात्राओं के लिए आवश्यक वैश्विक बुनियादी ढांचे का लाभ उठा सके।
  • सॉफ्ट पावर और कूटनीति: अंतरिक्ष में एक भारतीय नागरिक की उपस्थिति भारत की बढ़ती वैश्विक सॉफ्ट पावर और अंतरिक्ष कूटनीति में उसकी बढ़ती भूमिका को मजबूत करती है। यह अन्य देशों के साथ वैज्ञानिक और तकनीकी आदान-प्रदान को बढ़ावा दे सकता है।
  • युवाओं के लिए प्रेरणा: शुभांशु की कहानी लाखों भारतीय युवाओं को विज्ञान, प्रौद्योगिकी, इंजीनियरिंग और गणित (STEM) के क्षेत्रों में करियर बनाने और अंतरिक्ष अन्वेषण के अपने सपनों को पूरा करने के लिए प्रेरित करेगी।

“शुभांशु की अंतरिक्ष यात्रा केवल एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष भविष्य के लिए एक शक्तिशाली संदेश है – ‘आकाश की कोई सीमा नहीं है’।”

अंतरिक्ष यात्रा की चुनौतियाँ और जोखिम

अंतरिक्ष में जाना और रहना कोई आसान उपलब्धि नहीं है। यह जबरदस्त तकनीकी चुनौतियों और मानव शरीर के लिए अद्वितीय शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक जोखिमों से भरा है।

1. शारीरिक चुनौतियाँ:

  • माइक्रोग्रैविटी के प्रभाव: अंतरिक्ष में गुरुत्वाकर्षण की कमी से कई शारीरिक परिवर्तन होते हैं:
    • हड्डी और मांसपेशियों का नुकसान: अंतरिक्ष यात्री अपनी हड्डी के घनत्व का 1-2% प्रति माह और महत्वपूर्ण मांसपेशियों के द्रव्यमान को खो सकते हैं।
    • द्रव स्थानांतरण: शरीर के तरल पदार्थ सिर की ओर बढ़ते हैं, जिससे “फुला हुआ चेहरा” सिंड्रोम और पैरों का पतला होना होता है।
    • हृदय प्रणाली: हृदय को गुरुत्वाकर्षण के विरुद्ध काम करने की आवश्यकता नहीं होती, जिससे यह कमजोर हो सकता है।
    • दृष्टि समस्याएं: कुछ अंतरिक्ष यात्रियों को दृष्टि हानि या ऑप्टिक तंत्रिका में सूजन का अनुभव होता है।
  • विकिरण: पृथ्वी के सुरक्षात्मक चुंबकीय क्षेत्र और वायुमंडल के बाहर, अंतरिक्ष यात्री ब्रह्मांडीय किरणों और सौर कणों से अत्यधिक विकिरण के संपर्क में आते हैं, जिससे कैंसर, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की क्षति और अन्य बीमारियां हो सकती हैं।
  • अलगाव और सीमित स्थान: लंबे समय तक एक छोटे से स्थान पर अन्य व्यक्तियों के साथ रहना मनोवैज्ञानिक तनाव पैदा कर सकता है।
  • नींद की समस्या: दिन और रात के चक्र की कमी और बाहरी शोर के कारण नींद में खलल पड़ सकता है।

2. तकनीकी चुनौतियाँ:

  • लॉन्च और पुनः प्रवेश: ये मिशन के सबसे जोखिम भरे चरण हैं। लॉन्च के दौरान विशाल ऊर्जा और कंपन, तथा पुनः प्रवेश के दौरान वायुमंडलीय घर्षण से उत्पन्न अत्यधिक गर्मी को सहन करने के लिए अंतरिक्ष यान को अत्यधिक मजबूत होना चाहिए।
  • जीवन समर्थन प्रणाली: अंतरिक्ष में जीवित रहने के लिए ऑक्सीजन, पानी, भोजन और अपशिष्ट निपटान की विश्वसनीय प्रणालियों की आवश्यकता होती है।
  • बाह्य वातावरण: अंतरिक्ष का निर्वात, अत्यधिक तापमान और सूक्ष्म उल्कापिंडों का खतरा अंतरिक्ष यान और अंतरिक्ष यात्रियों के लिए लगातार चुनौती पेश करता है।
  • संचार: पृथ्वी से हजारों किलोमीटर दूर अंतरिक्ष यान के साथ लगातार और विश्वसनीय संचार बनाए रखना महत्वपूर्ण है।

इन चुनौतियों के बावजूद, वैज्ञानिक और इंजीनियर इन जोखिमों को कम करने और अंतरिक्ष यात्रा को सुरक्षित बनाने के लिए लगातार काम कर रहे हैं। शुभांशु की सफल वापसी इन प्रणालियों और प्रोटोकॉल की दक्षता का प्रमाण है।

पुनः प्रवेश और लैंडिंग प्रक्रिया: एक जटिल नृत्य

अंतरिक्ष मिशन का अंत उतना ही जटिल और महत्वपूर्ण होता है जितना कि उसका प्रारंभ। शुभांशु के स्पेसक्राफ्ट की कैलिफोर्निया के तट पर सफल लैंडिंग कई चरणों वाली एक सटीक प्रक्रिया का परिणाम थी।

पुनः प्रवेश के मुख्य चरण:

  1. डी-ऑर्बिट बर्न (De-orbit Burn): स्पेसक्राफ्ट अपनी कक्षा से बाहर निकलने के लिए छोटे थ्रस्टर फायर करता है। यह यान को धीमा करता है, जिससे वह पृथ्वी के वायुमंडल में गिरने लगता है। यह एक सूक्ष्म लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण युद्धाभ्यास है जो लैंडिंग बिंदु को निर्धारित करता है।
  2. वायुमंडलीय प्रवेश (Atmospheric Re-entry): स्पेसक्राफ्ट पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल में लगभग 28,000 किलोमीटर प्रति घंटा की गति से प्रवेश करता है। इस गति पर, यान के सामने की हवा संपीड़ित और गर्म हो जाती है, जिससे प्लाज्मा का एक लिफाफा बन जाता है। इस चरण के दौरान तापमान 1,600 डिग्री सेल्सियस तक पहुंच सकता है। यान को इस अत्यधिक गर्मी से बचाने के लिए विशेष हीट शील्ड (ऊष्मा ढाल) का उपयोग किया जाता है।

    “अंतरिक्ष से धरती पर लौटना एक नियंत्रित पतन है, जहाँ घर्षण आपका दुश्मन भी है और आपका दोस्त भी – यह आपको धीमा करता है, लेकिन इसे बुद्धिमानी से नियंत्रित न किया जाए तो यह आपको जला भी सकता है।”

  3. पैराशूट परिनियोजन (Parachute Deployment): जैसे ही यान धीमा होता है और वायुमंडल के निचले, घने हिस्सों में पहुंचता है, कई पैराशूट तैनात किए जाते हैं। ये पैराशूट पहले छोटे होते हैं (ड्रोग पैराशूट) जो यान को और धीमा करते हैं और उसे स्थिर करते हैं, उसके बाद बड़े मुख्य पैराशूट खुलते हैं जो उतरने की गति को सुरक्षित स्तर तक कम कर देते हैं।
  4. स्प्लैशडाउन/लैंडिंग (Splashdown/Landing): शुभांशु के मामले में, लैंडिंग कैलिफोर्निया के तट पर पानी में हुई, जिसे स्प्लैशडाउन कहा जाता है। यह लैंडिंग का एक आम तरीका है, खासकर अमेरिकी अंतरिक्ष यान जैसे अपोलो या स्पेसएक्स के ड्रैगन कैप्सूल के लिए। पानी का उपयोग झटके को अवशोषित करने के लिए एक प्राकृतिक कुशन के रूप में होता है। जमीनी लैंडिंग (जैसे रूसी सोयुज कैप्सूल) के लिए, रॉकेट थ्रस्टर या एयरबैग का उपयोग अंतिम प्रभाव को कम करने के लिए किया जाता है।
  5. रिकवरी (Recovery): लैंडिंग के बाद, त्वरित प्रतिक्रिया दल (आमतौर पर नौसेना या तटरक्षक बल) अंतरिक्ष यात्रियों और कैप्सूल को सुरक्षित रूप से निकालने के लिए पहुंचते हैं। इसमें गोताखोर, चिकित्सा दल और इंजीनियर शामिल होते हैं।

पूरी पुनः प्रवेश और लैंडिंग प्रक्रिया में जटिल गणना, त्रुटिहीन इंजीनियरिंग और सैकड़ों कर्मियों के बीच सटीक समन्वय शामिल होता है। शुभांशु की सुरक्षित वापसी इस प्रक्रिया की सफलता और इसमें शामिल टीमों की विशेषज्ञता का प्रमाण है।

भारत का भविष्य: मानव अंतरिक्ष उड़ान और अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था

शुभांशु की ISS यात्रा भले ही एक निजी पहल के माध्यम से हुई हो, लेकिन यह भारत के लिए मानव अंतरिक्ष उड़ान और उभरती अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के संदर्भ में एक महत्वपूर्ण पृष्ठभूमि तैयार करती है।

गगनयान मिशन: भारत की अपनी मानव अंतरिक्ष उड़ान

गगनयान मिशन भारत का पहला स्वदेशी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम है, जिसका उद्देश्य 2025 तक तीन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा में भेजना और उन्हें सुरक्षित रूप से वापस लाना है।

  • उद्देश्य:
    • स्वदेशी मानव अंतरिक्ष उड़ान क्षमता का प्रदर्शन करना।
    • भारत के भीतर नए अंतरिक्ष उद्योग और रोजगार के अवसर पैदा करना।
    • अंतरिक्ष में सूक्ष्म गुरुत्वाकर्षण पर वैज्ञानिक प्रयोग करना।
    • राष्ट्रीय गौरव और युवाओं के बीच वैज्ञानिक जिज्ञासा को बढ़ावा देना।
  • प्रगति: ISRO ने कई महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों जैसे क्रू मॉड्यूल, सर्विस मॉड्यूल, लॉन्च एस्केप सिस्टम, और GSLV Mk-III (जिसे अब LVM3 कहा जाता है) रॉकेट के मानव-रेटेड संस्करण का सफल परीक्षण किया है। अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण भी जारी है।

भारत की उभरती अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था:

वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था खरबों डॉलर का उद्योग बनने की राह पर है, और भारत इस विकास का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनने की क्षमता रखता है। सरकार ने निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए कई सुधार किए हैं:

  • IN-SPACe (Indian National Space Promotion and Authorization Centre): यह एक एकल खिड़की एजेंसी है जो निजी कंपनियों को ISRO की सुविधाओं और विशेषज्ञता का उपयोग करने की अनुमति देती है, साथ ही उन्हें अंतरिक्ष गतिविधियों को शुरू करने के लिए प्राधिकरण भी प्रदान करती है।
  • NewSpace India Limited (NSIL): ISRO की वाणिज्यिक शाखा, जो भारतीय उद्योगों को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण और ISRO के उत्पादों एवं सेवाओं के विपणन की सुविधा प्रदान करती है।
  • स्टार्ट-अप पारिस्थितिकी तंत्र: अंतरिक्ष क्षेत्र में कई भारतीय स्टार्ट-अप (जैसे स्काईरूट एयरोस्पेस, अग्निकुल कॉस्मॉस, ध्रुव स्पेस) रॉकेटरी, उपग्रह निर्माण और अंतरिक्ष अनुप्रयोगों में नवाचार कर रहे हैं।

यह निजी भागीदारी उपग्रह निर्माण, लॉन्च सेवाओं, डेटा विश्लेषण, अंतरिक्ष पर्यटन और पृथ्वी अवलोकन अनुप्रयोगों जैसे क्षेत्रों में नए रास्ते खोलेगी। भारत का लक्ष्य वैश्विक लॉन्च बाजार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनना और अंतरिक्ष-आधारित सेवाओं का एक प्रमुख प्रदाता बनना है।

आगे की राह: चुनौतियाँ और अवसर

भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए आगे की राह चुनौतियों और अवसरों दोनों से भरी है।

चुनौतियाँ:

  • वित्तपोषण: अंतरिक्ष मिशन पूंजी-गहन होते हैं। सरकारी बजट के अलावा, निजी निवेश को आकर्षित करना महत्वपूर्ण होगा।
  • प्रौद्योगिकी अधिग्रहण: उन्नत प्रौद्योगिकियों के विकास और अधिग्रहण में लगातार निवेश की आवश्यकता है।
  • अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा: वैश्विक अंतरिक्ष बाजार में तीव्र प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें स्थापित और उभरते दोनों खिलाड़ी शामिल हैं।
  • कौशल विकास: अंतरिक्ष क्षेत्र की बढ़ती आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए कुशल जनशक्ति का विकास आवश्यक है।
  • अंतरिक्ष मलबे: अंतरिक्ष में बढ़ते मलबे का खतरा मिशनों के लिए एक गंभीर चुनौती है।

अवसर:

  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: अन्य अंतरिक्ष शक्तियों के साथ सहयोग से ज्ञान, संसाधन और विशेषज्ञता साझा करने में मदद मिलेगी। शुभांशु की यात्रा ऐसे सहयोगों की संभावना को बढ़ाती है।
  • अनुसंधान और विकास: गहरे अंतरिक्ष अन्वेषण, पुनः प्रयोज्य रॉकेट प्रौद्योगिकी और उन्नत प्रणोदन प्रणालियों में अनुसंधान के अवसर।
  • अंतरिक्ष-आधारित अनुप्रयोग: कृषि, शहरी नियोजन, आपदा प्रबंधन, रक्षा और जलवायु निगरानी के लिए नए और बेहतर अनुप्रयोग विकसित करना।
  • अंतरिक्ष पर्यटन: भारत की बढ़ती अर्थव्यवस्था और तकनीकी क्षमताओं के साथ, भविष्य में अंतरिक्ष पर्यटन के लिए भी अवसर पैदा हो सकते हैं।

भारत का अंतरिक्ष कार्यक्रम न केवल वैज्ञानिक प्रगति का प्रतीक है, बल्कि राष्ट्रीय आकांक्षा और तकनीकी कौशल का भी प्रतीक है। शुभांशु की ISS यात्रा इस बात का प्रमाण है कि भारतीय अब अंतरिक्ष में भी अपनी छाप छोड़ रहे हैं, और यह भविष्य की उन असंख्य संभावनाओं को इंगित करता है जो हमारे सामने हैं।

निष्कर्ष

शुभांशु की अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन से 18 दिवसीय सफल वापसी और कैलिफोर्निया तट पर ऐतिहासिक लैंडिंग, भारत के अंतरिक्ष इतिहास में एक नए अध्याय का प्रतीक है। यह घटना सिर्फ एक व्यक्तिगत उपलब्धि नहीं है, बल्कि भारत के अंतरिक्ष में बढ़ते कद, निजी अंतरिक्ष यात्रा के वैश्विक रुझान और भविष्य में अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था के लिए अपार संभावनाओं को रेखांकित करती है। यह घटना भारत के लिए “अंतरिक्ष में भी आत्मनिर्भरता” और वैश्विक अंतरिक्ष अन्वेषण में एक सक्रिय भागीदार बनने के स्वप्न को साकार करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जैसे-जैसे गगनयान मिशन आगे बढ़ेगा और निजी क्षेत्र की भागीदारी बढ़ेगी, भारत निस्संदेह वैश्विक अंतरिक्ष मानचित्र पर एक प्रमुख शक्ति के रूप में उभरेगा, जो मानवता के भविष्य के लिए नई ऊंचाइयों को प्राप्त करेगा।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. प्रश्न 1: अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. यह पृथ्वी की भू-स्थिर कक्षा (Geostationary Orbit) में स्थित है।
    2. इसमें 5 से अधिक प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियां शामिल हैं जो इसके संचालन में सहयोग करती हैं।
    3. इसका प्राथमिक उद्देश्य माइक्रोग्रैविटी वातावरण में वैज्ञानिक अनुसंधान करना है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल (i) और (ii)

    (b) केवल (ii) और (iii)

    (c) केवल (i) और (iii)

    (d) (i), (ii) और (iii)

    उत्तर: (b)

    व्याख्या:

    1. कथन (i) गलत है। ISS पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit – LEO) में स्थित है, भू-स्थिर कक्षा में नहीं।
    2. कथन (ii) सही है। इसमें NASA, Roscosmos, JAXA, ESA और CSA सहित 5 प्रमुख अंतरिक्ष एजेंसियां शामिल हैं।
    3. कथन (iii) सही है। ISS का प्राथमिक उद्देश्य माइक्रोग्रैविटी में वैज्ञानिक अनुसंधान, तकनीकी विकास और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ावा देना है।
  2. प्रश्न 2: भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के संदर्भ में, निम्नलिखित मिशनों को उनके प्रक्षेपण के कालानुक्रमिक क्रम में व्यवस्थित कीजिए:

    1. चंद्रयान-1
    2. मंगलयान (MOM)
    3. आर्यभट्ट
    4. चंद्रयान-3

    सही क्रम चुनिए:

    (a) (iii) – (i) – (ii) – (iv)

    (b) (i) – (iii) – (ii) – (iv)

    (c) (iii) – (ii) – (i) – (iv)

    (d) (i) – (ii) – (iii) – (iv)

    उत्तर: (a)

    व्याख्या:

    • आर्यभट्ट: 1975
    • चंद्रयान-1: 2008
    • मंगलयान (MOM): 2013
    • चंद्रयान-3: 2023
  3. प्रश्न 3: भारत के गगनयान मिशन के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:

    1. इसका उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को मंगल ग्रह पर भेजना है।
    2. यह ISRO का पहला पूरी तरह से स्वदेशी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम होगा।
    3. मिशन के लिए अंतरिक्ष यात्रियों को रूस में प्रशिक्षण दिया जा रहा है।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल (ii) और (iii)

    (b) केवल (ii)

    (c) केवल (i) और (iii)

    (d) (i), (ii) और (iii)

    उत्तर: (b)

    व्याख्या:

    • कथन (i) गलत है। गगनयान का उद्देश्य भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को पृथ्वी की निचली कक्षा (Low Earth Orbit) में भेजना है, मंगल पर नहीं।
    • कथन (ii) सही है। यह भारत का पहला पूरी तरह से स्वदेशी मानव अंतरिक्ष उड़ान कार्यक्रम है।
    • कथन (iii) गलत है। गगनयान अंतरिक्ष यात्रियों का प्रशिक्षण भारत में ही हो रहा है, हालांकि प्रारंभिक चरण में कुछ प्रशिक्षण रूस में भी दिया गया था। मुख्य प्रशिक्षण सुविधा बेंगलुरु में स्थापित की गई है।
  4. प्रश्न 4: अंतरिक्ष में मानव शरीर पर माइक्रोग्रैविटी के संभावित प्रभावों में शामिल हैं:

    1. हड्डी और मांसपेशियों के घनत्व में वृद्धि।
    2. शरीर के तरल पदार्थों का सिर की ओर स्थानांतरण।
    3. दृष्टि समस्याओं का अनुभव।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल (i) और (ii)

    (b) केवल (ii) और (iii)

    (c) केवल (i) और (iii)

    (d) (i), (ii) और (iii)

    उत्तर: (b)

    व्याख्या:

    • कथन (i) गलत है। माइक्रोग्रैविटी में हड्डी और मांसपेशियों के घनत्व में कमी आती है, वृद्धि नहीं।
    • कथन (ii) सही है। गुरुत्वाकर्षण की कमी के कारण शरीर के तरल पदार्थ पैरों से सिर की ओर स्थानांतरित होते हैं।
    • कथन (iii) सही है। कुछ अंतरिक्ष यात्रियों को दृष्टि हानि या ऑप्टिक तंत्रिका में सूजन का अनुभव होता है।
  5. प्रश्न 5: भारत में निजी क्षेत्र की अंतरिक्ष गतिविधियों को बढ़ावा देने वाली प्रमुख संस्था/संस्थाएँ कौन-सी हैं?

    1. IN-SPACe
    2. NewSpace India Limited (NSIL)
    3. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)

    सही विकल्प चुनें:

    (a) केवल (i)

    (b) केवल (ii) और (iii)

    (c) केवल (i) और (ii)

    (d) (i), (ii) और (iii)

    उत्तर: (c)

    व्याख्या:

    • कथन (i) सही है। IN-SPACe एक स्वतंत्र नोडल एजेंसी है जो निजी क्षेत्र को ISRO की सुविधाओं तक पहुंच प्रदान करती है और अंतरिक्ष गतिविधियों को अधिकृत करती है।
    • कथन (ii) सही है। NSIL ISRO की वाणिज्यिक शाखा है जो भारतीय उद्योगों को अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के हस्तांतरण और ISRO के उत्पादों एवं सेवाओं के विपणन की सुविधा प्रदान करती है।
    • कथन (iii) गलत है। ISRO भारत की प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान और विकास संगठन है, लेकिन निजी क्षेत्र को बढ़ावा देने के लिए IN-SPACe और NSIL जैसी संस्थाएँ स्थापित की गई हैं ताकि ISRO का ध्यान मुख्य रूप से अनुसंधान और विकास पर बना रहे।
  6. प्रश्न 6: अंतरिक्ष यान के पुनः प्रवेश (Re-entry) प्रक्रिया के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं?

    1. पुनः प्रवेश के दौरान स्पेसक्राफ्ट वायुमंडल के घर्षण के कारण अत्यधिक गर्म हो जाता है।
    2. डी-ऑर्बिट बर्न अंतरिक्ष यान को धीमा करके उसे कक्षा से बाहर निकलने में मदद करता है।
    3. लैंडिंग के लिए हमेशा पैराशूट का उपयोग किया जाता है, चाहे वह पानी में हो या जमीन पर।

    सही विकल्प चुनें:

    (a) केवल (i) और (ii)

    (b) केवल (ii) और (iii)

    (c) केवल (i) और (iii)

    (d) (i), (ii) और (iii)

    उत्तर: (a)

    व्याख्या:

    • कथन (i) सही है। वायुमंडलीय घर्षण के कारण अत्यधिक गर्मी उत्पन्न होती है, जिसके लिए हीट शील्ड की आवश्यकता होती है।
    • कथन (ii) सही है। डी-ऑर्बिट बर्न वह युद्धाभ्यास है जो अंतरिक्ष यान को अपनी कक्षा से बाहर निकलने के लिए धीमा करता है।
    • कथन (iii) गलत है। पैराशूट का उपयोग अक्सर किया जाता है, लेकिन सभी लैंडिंग में नहीं। उदाहरण के लिए, स्पेस शटल जैसी प्रणालियाँ ग्लाइड करके रनवे पर उतरती थीं, और कुछ लैंडर (जैसे अपोलो लूनर मॉड्यूल) में लैंडिंग रॉकेट का उपयोग होता था। जमीनी लैंडिंग के लिए अक्सर पैराशूट के साथ-साथ छोटे थ्रस्टर या एयरबैग का भी उपयोग होता है, लेकिन “हमेशा” शब्द इसे गलत बनाता है।
  7. प्रश्न 7: भारत के चंद्रयान-3 मिशन के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन-सा कथन सही नहीं है?

    (a) यह चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला पहला मिशन था।

    (b) इसने चंद्रमा की सतह पर ‘विक्रम’ रोवर को उतारा।

    (c) इस मिशन में एक ऑर्बिटर, एक लैंडर और एक रोवर शामिल था।

    (d) इसने चंद्रमा की सतह पर विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग किए।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या:

    • कथन (a) सही है। चंद्रयान-3 चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर सफलतापूर्वक सॉफ्ट लैंडिंग करने वाला दुनिया का पहला मिशन था।
    • कथन (b) गलत है। चंद्रयान-3 में ‘प्रज्ञान’ रोवर (रोवर) और ‘विक्रम’ लैंडर (लैंडर) था। लैंडर का नाम ‘विक्रम’ था, रोवर का नाम ‘प्रज्ञान’। प्रश्न में ‘विक्रम’ को रोवर कहा गया है, जो गलत है।
    • कथन (c) गलत है। चंद्रयान-3 में एक प्रोपल्शन मॉड्यूल (जो ऑर्बिटर की तरह कार्य करता था लेकिन पूरी तरह से ऑर्बिटर नहीं था), एक लैंडर (‘विक्रम’) और एक रोवर (‘प्रज्ञान’) शामिल था। इसमें अलग से समर्पित ऑर्बिटर नहीं था जैसा कि चंद्रयान-2 में था, बल्कि प्रोपल्शन मॉड्यूल ने ऑर्बिटर के कुछ कार्य किए।
    • कथन (d) सही है। लैंडर और रोवर ने चंद्रमा की सतह पर विभिन्न वैज्ञानिक प्रयोग किए।
  8. प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन-सा/से कथन PSLV (पोलर सैटेलाइट लॉन्च व्हीकल) के संबंध में सही है/हैं?

    1. इसे ISRO का “वर्कहॉर्स” रॉकेट माना जाता है।
    2. इसका उपयोग मुख्य रूप से भू-स्थिर उपग्रहों (Geostationary Satellites) के प्रक्षेपण के लिए किया जाता है।
    3. इसने चंद्रयान-1 और मंगलयान जैसे महत्वपूर्ण मिशनों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।

    सही विकल्प चुनें:

    (a) केवल (i) और (ii)

    (b) केवल (ii) और (iii)

    (c) केवल (i) और (iii)

    (d) (i), (ii) और (iii)

    उत्तर: (c)

    व्याख्या:

    • कथन (i) सही है। PSLV अपनी विश्वसनीयता और सफलता दर के लिए ISRO का “वर्कहॉर्स” माना जाता है।
    • कथन (ii) गलत है। PSLV मुख्य रूप से ध्रुवीय कक्षाओं और पृथ्वी की निचली कक्षाओं में उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए उपयोग किया जाता है। GSLV का उपयोग भू-स्थिर उपग्रहों के लिए किया जाता है।
    • कथन (iii) सही है। PSLV ने चंद्रयान-1 और मंगलयान सहित कई महत्वपूर्ण भारतीय और विदेशी मिशनों को सफलतापूर्वक लॉन्च किया है।
  9. प्रश्न 9: अंतरिक्ष में विकिरण के संपर्क में आने के संभावित स्वास्थ्य प्रभावों में शामिल हैं:

    1. हृदय रोग का खतरा बढ़ना।
    2. केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की क्षति।
    3. कुछ प्रकार के कैंसर का खतरा।

    उपरोक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (a) केवल (i) और (ii)

    (b) केवल (ii) और (iii)

    (c) केवल (i) और (iii)

    (d) (i), (ii) और (iii)

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: अंतरिक्ष में उच्च-ऊर्जा विकिरण (कॉस्मिक किरणें, सौर कण) के लंबे समय तक संपर्क में रहने से कई गंभीर स्वास्थ्य प्रभाव हो सकते हैं, जिनमें कैंसर का बढ़ा हुआ जोखिम, केंद्रीय तंत्रिका तंत्र की क्षति और हृदय प्रणाली के साथ-साथ अन्य अंगों पर प्रतिकूल प्रभाव शामिल हैं। इसलिए, सभी कथन सही हैं।

  10. प्रश्न 10: हाल ही में स्थापित भारतीय राष्ट्रीय अंतरिक्ष संवर्धन और प्राधिकरण केंद्र (IN-SPACe) का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    (a) ISRO के भीतर सभी वैज्ञानिक अनुसंधान गतिविधियों का समन्वय करना।

    (b) भारत के रक्षा अंतरिक्ष कार्यक्रमों का प्रबंधन करना।

    (c) निजी क्षेत्र की संस्थाओं को अंतरिक्ष गतिविधियों में भाग लेने के लिए एकल-खिड़की इंटरफ़ेस प्रदान करना।

    (d) भारत के सभी मानव अंतरिक्ष उड़ान मिशनों का संचालन और प्रशिक्षण करना।

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: IN-SPACe की स्थापना भारतीय अंतरिक्ष क्षेत्र में निजी क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा देने के लिए की गई है। यह एक नोडल एजेंसी है जो निजी कंपनियों को अंतरिक्ष गतिविधियों को शुरू करने और ISRO की सुविधाओं और विशेषज्ञता का उपयोग करने के लिए आवश्यक प्राधिकरण और सुविधाएँ प्रदान करती है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. “शुभांशु की अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन की यात्रा भारत के अंतरिक्ष क्षेत्र के लिए एक महत्वपूर्ण प्रतीक है।” इस कथन के आलोक में, भारत के निजी अंतरिक्ष क्षेत्र के बढ़ते महत्व और वैश्विक अंतरिक्ष अर्थव्यवस्था में इसकी संभावित भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
  2. अंतर्राष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) मानवता के वैज्ञानिक और तकनीकी सहयोग का एक अनूठा उदाहरण है। ISS के प्रमुख उद्देश्यों और मानव जाति के लिए इसके महत्व पर चर्चा कीजिए। अंतरिक्ष में लंबे समय तक रहने वाले अंतरिक्ष यात्रियों के सामने आने वाली प्रमुख शारीरिक और मनोवैज्ञानिक चुनौतियों का भी वर्णन कीजिए।
  3. भारत के गगनयान मिशन के लक्ष्यों और इसकी वर्तमान प्रगति का विस्तार से वर्णन कीजिए। यह मिशन भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम को कैसे नया आयाम देगा और भविष्य के गहरे अंतरिक्ष अन्वेषणों के लिए क्या आधार तैयार करेगा?
  4. अंतरिक्ष यात्रा के पुनः प्रवेश और लैंडिंग की प्रक्रिया अत्यंत जटिल और जोखिम भरी होती है। इस प्रक्रिया के विभिन्न चरणों की व्याख्या कीजिए और उन तकनीकी नवाचारों पर प्रकाश डालिए जो इसे सुरक्षित बनाने में मदद करते हैं। भारत के लिए इस क्षेत्र में आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के क्या मायने हैं?

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