शिक्षा और संस्कृति
SOCIOLOGY – SAMAJSHASTRA- 2022 https://studypoint24.com/sociology-samajshastra-2022
समाजशास्त्र Complete solution / हिन्दी में
संस्कृति
( Culture )
सामान्यतः संस्कृति शब्द का प्रयोग हम दिन – प्रतिदिन के जीवन में ( अकरार ) निरन्तर करते रहते हैं । साथ ही संस्कृति शब्द का प्रयोग भिन्न – भिन्न अर्थों में भी करते हैं । उदाहरण के तौर पर हमारी संस्कृति में यह नहीं होता तथा पश्चिमी संस्कृति में इसकी स्वीकृति है । समाजशास्त्र विज्ञान के रूप में किसी भी अवधारणा का स्पष्ट अर्थ होता है जो कि वैज्ञानिक बोध को दर्शाता है । अतः संस्कृति का अर्थ समाजशास्त्रीय अवधारणा के रूप में ” सीखा हुआ व्यवहार ” होता है । अर्थात् कोई भी व्यक्ति बचपन से अब तक जो कुछ भी सीखता है , उदाहरण के तौरे पर खाने का तरीका , बात करने का तरीका , भाषा का ज्ञान , लिखना – पढना तथा अन्य योग्यताएँ , यह संस्कृति है ।
मनुष्य का कौन सा व्यवहार संस्कृति है ? मनुष्य के व्यवहार के कई पक्ष हैं
( अ ) जैविक व्यवहार ( Biological behaviour ) जैसे – मूख , नींद , चलना , दौड़ना ।
( ब ) मनोवैज्ञानिक व्यवाहार ( Psychological behaviour ) जैसे – सोचना , डरना , हँसना आदि ।
( स ) सामाजिक व्यवहार ( Social behaviour ) जैसे – नमस्कार करना , पढ़ना – लिखना , बातें करना आदि ।
संस्कृति के अन्तर्गत हम जैविकीय व्यवहार अथवा मनोवैज्ञानिक व्यवहार का नहीं लेते । संस्कृति मानव व्यवहार का वह पक्ष है जिसे व्यक्ति समाज क सदस्य के रूप में सीखता है जैसे – वस्त्र पहनना , धर्म , ज्ञान आदि । मानव एवं पशु समाज में एक महत्वपूर्ण अन्तर यही है कि मानव संस्कृति का निर्माण कर सका जबकि पशु समाज क पास इसका अभाव है ।
क्या आप जानते हैं कि मानव संस्कृति का निर्माण कैसे कर पाया ?
लेस्ली ए व्हाईट ( Leslie A White ) ने मानव में पाँच विशिष्ट क्षमताओं का उल्लेख किया है , जिसे मनुष्य ने प्रकृति से पाया है और जिसके फलस्वरुप वह संस्कृति का निर्माण कर सका है :
पहली विशेषता है – मानव के खड़े रहने की क्षमता , इससे व्यक्ति दोनों हाथों द्वारा उपयोगी कार्य करता है ।
दूसरा – मनुष्य के हाथों की बनावट है , जिसके फलस्वरुप वह अपने हाथों का स्वतन्त्रतापूर्वक किसी भी दिशा में घुमा पाता है और उसके द्वारा तरह – तरह की वस्तुओं का निर्माण करता है ।
तीसरा – मानव की तीक्ष्ण दृष्टि , जिसके कारण वह प्रकृति तथा घटनाओं का निरीक्षण एवं अवलोकन कर पाता है और तरह – तरह की खोज एवं अविष्कार करता है ।
चौथा – विकसित मस्तिष्क , जिसकी सहायता से मनुष्य अन्य प्राणियों से अधिक अच्दी तरह सोच सकता है । इस मस्तिष्क के कारण ही वह तर्क प्रस्तुत करता है तथा कार्य – कारण सम्बन्ध स्थापित कर पाता है ।
पाँचवौं – प्रतीकों के निर्माण की क्षमता । इन प्रतीकों के माध्यम से व्यक्ति अपने ज्ञान व अनुभवों को एक पीढ़ी से दूसरी पीढी में हस्तांतरित कर पाता है । प्रतीकों के द्वारा ही भाषा का विकास सम्भव हुआ और लोग अपने ज्ञान तथा विचारों के आदान – प्रदान में समर्थ हो पाये हैं । इस प्रकार यह स्पष्ट होता है कि प्रतीकों का संस्कृति के निर्माण , विकास , परिवर्तन तथा विस्तार में बहुत बड़ा योगदान है ।
क्या आप जानते हैं ?
प्रसिद्ध मानवशास्त्री एडवर्ड बनार्ट टायलर ( 1832 – 1917 ) के द्वारा सन् 1871 में प्रकाशित पुस्तक Primitive Culture में संस्कृति के संबंध में सर्वप्रथम उल्लेख किया गया है । टायलर मुख्य रूप से संस्कृति की अपनी परिभाषा के लिए जाने जाते हैं , इनके अनुसार , ” संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान , विश्वास , कला आचार , कानून , प्रथा और अन्य सभी क्षमताओं तथा आदतों का समावेश होता है जिन्हें मनुष्य समाज के नाते प्राप्त कराता है । टायलर ने संस्कृति का प्रयोग व्यापक अर्थ में किया है । इनके अनुसार सामाजिक प्राणी होने के नाते व्यक्ति अपने पास जो कुछ भी रखता है तथा सीखता है वह सब संस्कृति है । इस परिभाषा में सिर्फ अभौतिक तत्वों को ही सम्मिलित किया गया है ।
संस्कृति का अर्थ एवं परिभाषा
राबर्ट बीरस्टीड ( The Social Order ) द्वारा संस्कृति की दी गयी परिभाषा है कि ” संस्कृति वह संपूर्ण जटिलता है , जिसमें वे सभी वस्तुएँ सम्मिलित हैं , जिन पर हम विचार करते हैं , कार्य करते हैं और समाज के सदस्य होने के नाते अपने पास रखते इस परिभाषा में संस्कृति दोनों पक्षों भौतिक एवं अभौतिक को सम्मिलित किया गया है ।
हर्षकोविट्स ( Man and His Work ) के शब्दों में ” संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भाग है । इस परिभाषा से स्पष्ट होता है कि पर्यावरण के दो भाग होते हैं पहला – प्राकृतिक और दूसरा – सामाजिक । सासाजिक पर्यावरण में सारी भौमिक और अभौतिक चीजें आती हैं , जिनका निर्माण मानव के द्वारा हुआ है । उदाहरण के जिए कुर्सी , टेबुल , कलम , रजिस्टर , धर्म , शिक्षा , ज्ञान , नैतिकता आदि । हर्षकोविट्स ने इसी सामाजिक पर्यावरण , जो मानव द्वारा निर्मित है , को संस्कृति कहा है ।
बोगार्डस के अनुसार , ” किसी समूह के कार्य करने और विचार करने के सभी तरीकों का नाम संस्कृति है । ” इस पर आप ध्यान दें कि , बोगार्डस ने भी बीयरस्टीड की तरह ही अपनी भौतिक एवं अभौतिक दोनों पक्षों पर बल दिया है ।
मैलिनोस्की – संस्कृति मनुष्य की कृति है तथा एक साधन है , जिसके द्वारा वह अपने लक्ष्यों की प्राप्ति करता है । आपका कहना है कि ” संस्कृति जीवन व्यतीत करने की एक संपूर्ण विधि ( Total Way of Life ) है जो व्यक्ति के शारीरिक , मानसिक एवं अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करती है । ”
रेडफिल्ड ने संस्कृति को परिभाषित करते हुए कहा कि ” संस्कृति किसी भी समाज के सदस्यों की जीवन – शैली ( Style of Life )
उपयुक्त परिभाषाओं को देखने से स्पष्ट होता है कि विभिन्न समाजशास्त्रियों एवं मानवशास्त्रियों ने अपने – अपने दृष्टिकोण के आधार पर संस्कृति की परिभाषा दी है । वास्तव में संस्कृति समाज की जीवन विधि है ( Way of Life ) और इस रूप में यह आवश्यक परिवर्तन व परिमार्जन के बाद पीढ़ी – दर पीढी हस्तांतरित होती रहती है । संस्कृति के अन्तर्गत विचार तथा व्यवहार के सभी प्रकार आ जाते हैं । अतः यह स्पष्ट होता है कि संस्कृति में भौतिक एवं अमौतिक तत्वों की वह जटिल संपूर्णता , जिसे व्यक्ति समाज के सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है तथा जिसके माध्यम से अपनी जिन्दगी गुजारता है ।
संस्कृति की प्रकृति या विशेषताँए ( Nature or Characteristics of Culture )
संस्कृति के सम्बन्ध में विभिन्न समाजशास्त्रियों के विचारों को जानने के बाद उसकी कुछ विशेषताए स्पष्ट होती है , जो उसकी प्रकृति को जानने और समझने में भी सहायक होती है । यहाँ कुछ प्रमुख विशेषताओं का विवेचन किया जा रहा
1 . संस्कृति सीखा हुआ व्यवहार है ( Culture is learned behaviour ) – संस्कृति एक सीखा हुआ व्यवहार है । इसे व्यक्ति अपने पूर्वजों के वंशानुक्रम के माध्यम से नहीं प्राप्त करता , बल्कि समाज में समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा सीखता है । यह सीखना जीवन पर्यन्त अर्थात् जन्म से मृत्यु तक अनवरत चलता रहता है । आपको जानना आवश्यक है कि संस्कृति सीख हुआ व्यवहार है , किन्तु सभी सीखे हुए व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता है । पशुओं द्वारा सीखे गये व्यवहार को संस्कृतिनहीं कहा जा सकता , क्योंकि पशु जो कुछ भी सीखते हैं उसे किसी अन्य पशु को नहीं सीखा सकते । संस्कृति के अंतर्गत वै आदतें और व्यवहार के तरीके आते है , जिन्हें सामान्य रूप से समाज के सभी सदस्यों द्वारा सीखा जाता है । इस सन्दर्भ में लुन्डबर्ग ( Lundbarg ) ने कहा है कि , ” संस्कृति व्यक्ति की जन्मजात प्रवृत्तियों अथवा प्राणीशास्त्रीय विरासत से सम्बन्धित नहीं होती , वरन् यह सामाजिक सीख एवं अनुभवों पर आधरित रहती है ।
ii . संस्कृति सामाजिक होती है ( Culture is Social ) – संस्कृति में सामाजिकता का गुण पाया जाता है । संस्कृति के अन्तर्गत पूरे समाज एवं सामाजिक सम्बन्धों का प्रतिनिधित्व होता है । इसलिए यह कहा जा सकता है कि किसी एक या दो – चार व्यक्तियों द्वारा सीखे गये व्यवहार को संस्कृति नहीं कहा जा सकता । कोई भी व्यवहार जब तक समाज के अधिकतर व्यक्तियों द्वारा नहीं सीखा जाता है तब तक वह संस्कृति नहीं कहला सकता । संस्कृति एक समाज की संपूर्ण जीवन विधि ( Way of Life ) का प्रतिनिधित्व करती है । यही कारण है कि समाज का प्रत्येक सदस्यं संस्कृति को अपनाता है । संस्कृति सामाजिक इस अर्थ में भी है कि यह किसी व्यक्ति विशेष या दो या चार व्यक्तियों की सम्पत्ति नहीं है । यह समाज के प्रत्येक सदस्य के लिए होता है । अतः इसका विस्तार व्यापक और सामाजिक होता है ।
iii . संस्कृति हस्तान्तरित होती है ( Culture is Transmissive ) – संस्कृति के इसी गुण के कारण ही संस्कृति एक पीढी से दूसरी पीढी में जाती है तो उसमें पीढ़ी – दर – पीढ़ी के अनुभव एवं सूझ जुड़ते जाते हैं । इससे संस्कृति में थोड़ा – बहुत परिवर्तन एवं परिमार्जन होता रहता है । संस्कृति के इसी गुण के कारण मानव अपने पिछले ज्ञान एवं अनुभव के आधार पर आगे नई – नई चीजों का अविष्कार करता है । आपको यह समझना होगा कि – पशुओं में भी कुछ – कुछ सीखने की क्षमता होती है । लेकिन वे अपने सीखे हुए को अपने बच्चों और दूसरे पशुओं को नहीं सिखा पाते । यही कारण है कि बहुत कुछ सीखने की क्षमता रहने के बाद भी उनमें संस्कृति का विकास नहीं हुआ है । मानव भाषा एवं प्रतीकों के माध्यम से बहुत ही आसानी से अपनी संस्कृति का विकास एवं विस्तार करता है तथा एक पीढी से दूसरे पीढी में हस्तान्तरित भी करता है । इससे संस्कृति की निरन्तरता भी बनी रहती है ।
iv . संस्कृति मनुष्य द्वारा निर्मित है ( Culture is Man – Made ) – संस्कृति का तात्पर्य उन सभी तत्वों से होता है , जिनका निर्माण स्वंय मनुष्य ने किया है । उदाहरण के तौर पर हमारा धर्म , विश्वास , ज्ञान , आचार , व्यवहार के तरीके एवं तरह – तरह के आवश्यकताओं के साधन अर्थात् कुर्सी , टेबुल आदि का निर्माण मनुष्य द्वारा किया गया है । इस तरह यह सभी संस्कृति हर्षकाविट्स का कहना है कि ” संस्कृति पर्यावरण का मानव – निर्मित भाग है । ।
संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती है ( Culture Satisfies Human Needs ) – संस्कृति में मानव आवश्यकता पूर्ति करने का गुण होता है । संस्कृति की छोटी – से – छोटी इकाई भी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मनुष्य की आवश्यकता पूर्ति करती है या पूर्ति करने में मदद करती है । कभी – कभी संस्कृति की कोई इकाई बाहरी तौर पर निरर्थक या अप्रकार्य प्रतीत होती है , लेकिन सम्पूर्ण डोंचे से उसका महत्वपूर्ण स्थान होता है ।
मैलिनोस्की के विचार : – प्रसिद्ध मानवशास्त्री मैलिनोस्की का कथन है कि संस्कृति के छोटे – से – छोट तत्व का अस्तित्व उसके आवश्यकता पूर्ति करने के गुण पर निर्भर करता है । जब संस्कृति के किसी भी तत्व में आवश्यकतापूर्ति करनेका गुण नहीं रह जाता तो उसका अस्तित्व भी समाप्त हो जाता है । उदाहरण के तौर पर प्राचीनकाल में जो संस्कृति के तत्व थे वे समाप्त हो गए क्योंकि वे आवश्यकता पूति में असमर्थ रहे , इसमें सतीप्रथा को उदाहरण के रूप में देखा जा सकता है । इसी प्रकार , व्यवस्था में कोई इकाई कभी – कभी बहुत छोटी प्रतीत होती है मगर व्यवस्था के लिए वह इकाई भी काफी महत्वपूर्ण होती है । इस प्रकार , संस्कृति का कोई भी तत्व अप्रकार्यात्मक नहीं होता है बल्कि किसी भी रूप में मानव की आवश्यकता की पूर्ति । करती है । i
.vi प्रत्येक समाज की अपनी विशिष्ट संस्कृति होती है ( Culture is Distinctive in every Society ) – प्रत्येक समाज की एक विशिष्ट संस्कृति होती है । हम जानते हैं कि कोई भी समाज एक विशिष्ट भौगोलिक एवं प्राकृतिक वातावरण लिये होता है । इसी के अनुरूप सामाजिक वातावरण एवं संस्कृति का निर्माण होता है । उदाहरण के तौर पर पहाड़ों पर जीवन यापन करने वाले लोगों का भौगोलिक पर्यावरण , मैदानी लोगों के भौगोलिक पर्यावरण से अलग होता है । इसी प्रकार , इन दोनों स्थानों में रहने वाले लोगों की आवश्यकताएं अलग – अलग होती है । जैसे – खाना , रहने – सहने का तरीका , नृत्य , गायन , धर्म आदि । अतः दोनों की संस्कृति भौगोलिक पर्यावरण के सापेक्ष में आवश्यकता के अनुरूप विकसित होती है । जब समाज के व्यवहारों एवं आवश्यकताओं में परिवर्तन होते हैं तो संस्कृति में भी परिवर्तन होता है । विभिन्न समाज के लोगों के व्यवहार में परिवर्तन की दर एवं दिशा भिन्न होती है . जिसके कारण संस्कृति में परिवर्तन की दर एवं दिशा में भी भिन्नता पायी जाती है ।
vii . संस्कृति में अनुकूलन का गुण होता है ( Culture has Adoptive Quality ) – संस्कृति की एक महत्वपूर्ण विशेषता होती है कि यह समय के साथ – साथ आवश्यकताओं के अनुरूप अनुकूलित हो जाती है । संस्कृति समाज के वातावरण एवं परिस्थिति के अनुसार होती है । जब वातावरण एवं परिस्थिति में परिवर्तन होता है तो संस्कृति भी उसके अनुसार अपने का ढालती है । यदि यह विशेषता एवं गुण न रहे तो संस्कृति का अस्तित्व ही नहीं रह जायेगा । संस्कृति में समय एवं परिस्थिति के अनुसार परिवर्तन होने से उराकी उपयोगिता समाप्त नहीं हो पाती । प्रत्येक संस्कृति का प्रमुख उद्देश्य तथा कार्य गानव की शारीरिक , मानसिक तथा सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति करना होता है । इन आवश्यकताओं के अनुसार ही संस्कृति को ढालना पड़ता है क्या आप जानते हैं – प्रत्येक युग में लोगों की आवश्यकताएँ भिन्न – भिन्न रही है । पुरानी आवश्यकताओं के स्थान के स्थान पर नई आवश्यकताओं का जन्म हुआ है तथा समय – समय पर इनमें परिवर्तन भी होते हैं । इनके साथ अनुकूलन का गुण संस्कृति में होता है । यही कारण है कि संस्कृति में परिवर्तन होता है , लेकिन संस्कृति में परिवर्तन बहुत ही धीमी गति से होता है ।
viii . संस्कृति अधि – सावयवी ह ( Culture is Super – organic ) – मानव ने अपनी मानसिक एवं शारीरिक क्षमताओं के प्रयोग द्वारा संस्कृति का निर्माण किया , जो सावयव से ऊपर है । संस्कृति में रहकर व्यक्ति का विकास होता है और फिर मानव संस्कृति का निर्माण करता है जो मानव से ऊपर हो जाता है । मानव की समस्त क्षमताओं का आधार सावयवी होता है , किन्त इस संस्कृति को अघि – सावयवी से ऊपर हो जाती है । इसी अर्थ में संस्कृति को अधि – सावयवी ( Super – Organic ) कहा गया है ।
ix . संस्कृति अधि – वैयक्तिक है ( Culture is Super – individual ) – संस्कृति की रचना और निरन्तरता दोनों ही किसी व्यक्ति विशेष पर निर्भर नहीं है । इसलिए यह अधि – वैयक्तिक ( Super – individual ) है । संस्कृति का निर्माण किसी व्यक्ति विशेष द्वारा नहीं किया गया है बल्कि संस्कृति का निर्माण सम्पूर्ण समूह द्वारा होता है । प्रत्येक सांस्कृतिक इकाई का अपना एक इतिहास होता है , जो किसी एक व्यक्ति से परे होता है । संस्कृति सामाजिक अविष्कार का फल है , किन्तु यह अविष्कार किसी एक व्यक्ति के मस्तिष्क की उपज नहीं है । इस प्रकार कोई भी व्यक्ति सम्पूर्ण संस्कृति का निर्माता नहीं हो सकता । इसमें परिवर्तन एवं परिमार्जन करने की भी क्षमता किसी व्यक्ति विशेष के वश की बात नहीं है । इस प्रकार संस्कृति अधि – वैयक्तिक है ।
x संस्कृति में संतुलन तथा संगठन होता है ( Culture has The Integrative ) – संस्कृति के अन्तर्गत अनेक तत्व एवं खण्ड होते हैं किन्तु ये आपस में पृथक नहीं होते , बल्कि इनमें अन्तः सम्बन्ध तथा अन्तः निर्भरता पायी जाती है । संस्कृति की । प्रत्येक इकाई एक – दूसरे से अनग हटकर कार्य नहीं करती , बल्कि सब सम्मिलित रूप से कार्य करती है । इस प्रकार के संतुलन एवं संगठन से सांस्कृतिक ढाँचे का निर्माण होता है । इस ढाँचे के अन्तर्गत प्रत्येक इकाई की एक निश्चित स्थिति एवं कार्य होता है , किन्तु यह सभी एक – दूसरे पर आधारित एवं सम्बन्धित होती है । संस्कृति के किसी एक अंग में या इकाई में । परिवर्तन होने पर दूसरे पक्ष या दूसरी इकाई पर भी प्रभाव पड़ता है ।
- संस्कृति समूह का आदर्श होती है ( Culture is Ideal for The Croup ) – प्रत्येक समूह की संस्कृति उस समूह के लिए आदर्श होती है । इस तरह की धारण सभी समाज में पायी जाती है । सभी लोग अपनी ही संस्कृति को आदर्श समझते हैं तथा अन्य संस्कृति की तुलना में अपनी संस्कृति को उच्च मानते हैं । संस्कृति इसलिए भी आदर्श होती है कि इसका व्यवहार – प्रतिमान किसी व्यक्ति – विशेष का न होकर सारे समूह का व्यवहार होता है ।
आपको यह समझना आवश्यक है कि – इमाइल दुर्थीम के अनुसार , संस्कृति सामूहिक – चेतना का प्रतीक है अर्थात किसी व्यक्ति विशेष का नहीं बल्कि समूह को प्रतिनिधित्व करती है , इसलिए यह आदर्श मानी जाती है , यही कारण है कि इसकी अवहेलना सामूहिक चेतना के विरूद्ध होती है तथा उस व्यक्ति की निंदा होती है मगर जो इसका सम्मान करते हैं उसकी प्रशंसा होती है ।
संस्कृति के प्रकार
ऑगर्बन एवं निमकॉफ ने संस्कृति के दो प्रकारों की चर्चा की है –
भौतिक संस्कृति एवं अभौतिक संस्कृति । 1 . भौतिक संस्कृति
-1.भौतिक संस्कृति के अर्न्तगत उन सभी भौतिक एवं मूर्त वस्तुओं का समावेश होता है जिनका निर्माण मनुष्य के लिए किया है , तथा जिन्हें हम देख एवं छू सकते हैं । भौतिक संस्कृति की संख्या आदिम समाज की तुलना में आधुनिक समाज में अधिक होती है , प्रो . बीयरस्टीड ने भौतिक संस्कृति के समस्त तत्वों को मुख्य 3 वर्गों में विभाजित करके इसे और स्पष्ट करने का प्रयास किया है iमशीनें 1 . उपकरण iii . बर्तन iv . इमारतें v . सड़कें vi . पुल vii . शिल्प वस्तुएँ viiiकलात्मक वस्तुएँ ix . वस्त्र x . वाहन xi फर्नीचर xii . खाद्य पदार्थ xiii औषधियां आदि ।
भौतिक संस्कृति की विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1 . भौतिक संस्कृति मूर्त होती है ।
2 . इसमें निरन्तर वृद्धि होती रहती है ।
3 . भौतिक संस्कृति मापी जा सकती है ।
4 . मौलिक संस्कृति में परिवर्तन शीध होता है ।
5 . इसकी उपयोगिता एवं लाभ का मूल्यांकन किया जा सकता है ।
6 . भौतिक संस्कृति में बिना परिवर्तन किये इसे ग्रहण नहीं किया जा सकता है । अर्थात एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाने तथा उसे अपनाने में उसके स्वरूप में कोई फर्क नहीं पड़ता । उदाहरण के लिए मोटर गाड़ी , पोशाक तथा कपड़ा इत्यादि ।
अभौतिक संस्कृति – अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत उन सभी अभौतिक एवं अमूर्त वस्तुओं का समावेश होता है , जिनके कोई माप – तौल , आकार एवं रंग आदि नहीं होते । अभौतिक संस्कृति समाजीकरण एवं सीखने की प्रक्रिया द्वारा एक पीढी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरित होती रहती है । इस प्रकार हम कह सकते हैं कि अभौतिक संस्कृति का तात्पर्य संस्कृति के उस
107 पक्ष में होता है , जिसका कोई मूर्त रूप नहीं होता , बल्कि विचारों एवं विश्वासों कि माध्यम से मानव व्यवहार को नियन्त्रित , नियमित एवं प्रभावी करता है । प्रो . बीयरस्टीड ने अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत विचारों और आदर्श नियमों को सर्वाधिक महत्वपूर्ण बताया और कहा कि विचार अभौतिक संस्कृति के प्रमुख अंग है । विचारों की कोई निश्चित संख्या हो सकती है , फिर भी प्रो . बीयरस्टीड ने विचारों के कुछ समूह प्रस्तुत किये हैं वैज्ञानिक सत्य धार्मिक विश्वास पौराणिक कथाएँ iv . उपाख्यान साहित्य vi अन्ध – विश्वास vii . सूत्र viii लोकोक्तियाँ आदि । ये सभी विचार अभौतिक संस्कृति के अंग होते हैं । आदर्श नियमों का सम्बन्ध विचार करने से नहीं , बल्कि व्यवहार करने के तौर – तरीकों से होता है । अर्थात व्यवहार के उन नियमों या तरीकों को जिन्हें संस्कृति अपना आदर्श मानती है , आदर्श नियम कहा जाता है । प्रो . बीयरस्टीड ने सभी आदर्श नियमों को 14 भागों में बाँटा है 1 . कानून 2 . अधिनियम 3 . नियम 4 . नियमन 5 . प्रथाएँ 6 , जनरीतियाँ 7 . लोकाचार 8 . निषेध 9 . फैशन 10 . संस्कार 11 . कर्म – काण्ड 12 . अनुष्ठान 13 . परिपाटी 14 . सदाचार ।
अभौतिक संस्कृति की विशेषताएँ इस प्रकार हैं
1 . अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती है ।
2 . इसकी माप करना कठिन है ।
3 . अभौतिक संस्कृति जटिल होती है ।
4 . इसकी उपयोगिता एवं लाभ का मूल्यांकन करना कठिन कार्य है ।
5 अभौतिक संस्कृति में परिवर्तन बहत ही धीमी गति से होता है ।
6 . अभौतिक संस्कृति को जब एक स्थान से दूसरे स्थान में ग्रहण किया जाता है , तब उसके रूप में थोड़ा – न – थोड़ा परिवर्तन अवश्य होता है ।
7 . अभौतिक संस्कृति मनुष्य के आध्यात्मिक एवं आन्तरिक जीवन से सम्बिन्धित होती है ।
भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति में अन्तर
भौतिक एवं अभौतिक पक्षों के योग से ही संस्कृति की निर्माण होता है किन्तु दोनों में कुछ अन्तर हैं , जो इस प्रकार है
1 . भौतिक संस्कृति को सभ्यता भी कहा जाता है , जबकि अभौतिक संस्कृति को केवल संस्कृति कहा जाता है ।
2 . भौतिक संस्कृति मूर्त होती है , जबकि अभौतिक अमूर्त । जैसे – रेलगाडी तथा वैज्ञानिक का विचार एवं दिमाग , जिससे रेलगाड़ी का आविष्कार हुआ । यहाँ रेलगाड़ी भौतिक संस्कृति है , जबकि वैज्ञानिक का विचार अभौतिक संस्कृति है ।
3 . अभौतिक की तुलना में भौतिक संस्कृति को ग्रहण करना आसान है । उसे कहीं भी किसी स्थान पर स्वीकार किया जा सकता है , किन्तु अभौतिक संस्कृति को ग्रहण करना आसान नहीं है । दूसरे स्थान पर स्वीकार करने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है । बहुत आससनी से हम दूसरे स्थानों के आदर्शों एवं मूल्यों को स्वीकार नहीं कर पाते हैं ।
4 . भौतिक संस्कृति की तुलना में अभौतिक संस्कृति में धीमी गति से परिवर्तन होता है । जैसे – मोटर , घडी आदि बदल जाते हैं , किन्तु मनुष्य के विश्वास जल्द नहीं बदलते । ।
5 . भौतिक संस्कृति चूँकि मूर्त होती है , अतः उसकी माप करना सरल है , किन्तु अभौतिक संस्कृति अमर्त रहने के कारण उसकी माप में कठिनाइयों आती हैं । इसकी माप तौल करना सम्भव नहीं होता ।
6भौतिक संस्कृति में वृद्धि तीव्र गति से होती है , जबकि अभौतिक संस्कृति में वृद्धि बहुत ही मन्द गति से होती है । उदाहरण के लिए समाज में नई – नई खोज एवं आविष्कार से तरह – तरह की वस्तु सामने आती है , किन्तु व्यक्ति का विचार वर्षों पुराना ही पाया जाता है ।
7 . अभौतिक संस्कृति की वृद्धि एवं संचय को स्पष्ट नहीं किया जा सकता । किन्तु भौतिक संस्कृति में वृद्धि एवं संचय होता है और उसे मापा भी जा सकता है ।
8 . भौतिक संस्कृति के लाभ एवं उपयोगिता को माप कर बताया जा सकता है , किन्तु अभौतिक संस्कृति की उपयोगिता एवं लाम को मूल्यांकित नहीं किया जा सकता । इसे मात्र अनुभव किया जा सकता है ।
9 . भौतिक संरकृति मानद के दाह्मय एवं भौतिक जीवन से राम्बिन्धित होती है , जबकि अभौतिक संस्कृति मानव के आध्यात्मिक एवं आन्तरिक जीवन से सम्बिन्धित होती है ।
10 . भौतिक संस्कृति सरल होती है , जबकि अभौतिक संस्कृति का स्वरूप जटिल होता है । ।
संस्कृति की संरचना ( The Structure of Culture )
1 . सांस्कृतिक तत्व ( Culture Traits )
2 . सांस्कृतिक संकुल ( Culture Complex )
3 . सांस्कृतिक प्रतिमान ( Culture Pattern or Culture Configuration )
1 . सास्कृतिक तत्व – सांस्कृतिक तत्व संस्कृति की लघुतम इकाईयों अथवा अकेले तत्व होते हैं । इन इकाइयों को मिलाकर संस्कृति का निर्माण होता है । इन इकाइयों को मिलाकर संस्कृति का निर्माण होता है । हर्षकोविट्स ने सांस्कृतिक तत्व को एक संस्कृति – विशेष में सबसे छोटी पहचानी जा सकने वाली इकाई कहा है । क्रोबर ने इसे ” संस्कृति का न्यून्तम परिभाष्य तत्व कहा । उदाहरण के लिए – हाथ मिलाना , चरण स्पर्श करना , टोप उतारना , गालों का चुम्बन लेना , स्त्रियों को आवास स्थान प्रदान करना , झंडे की सलामी , शोक के समय श्वेत साड़ी पहनना , शाकाहारी भोजन खाना , नंगे पाँव चलना , मूर्तियों पर जल छिड़कना । इसकी तीन प्रमुख विशेषताएं होती हैं i प्रत्येक सांस्कृतिक तत्व का उसकी उत्पत्ति विषयक इतिहास होता है , चाहे वह इतिहास छोटा हो या बड़ा । ii . सांस्कृतिक तत्व स्थिर नहीं होता । गतिशीलता उसकी विशेषता है । iii . सांस्कृतिक तत्वों में संयुक्तीकरण की प्रकृति होती है । वे फूलों के गुलदस्ते की भाँति घुल – मिलकर रहते है ।
2 . सांस्कृति संकुल – सांस्कृतिक तत्वों से मिलकर बनते है । जब कुछ या अनेक तत्व मिलकर मानव अवश्यकता की पूर्ति करते हैं । इस प्रकार , मूर्ति के सम्मुख नतमस्तक होना , उसपर पवित्र जल छिडकना , उसके मुंह में कुछ भोजन रखना , हाथ जोड़ना , पुजारी से प्रसाद लेना तथा आरती गाना आदि सभी तत्व मिलकर धार्मिक सांस्कृतिक संकुल का निर्माण करते हैं । Piddington ने सांस्कृतिक संकुल को सांस्कृतिक तत्वों का प्रकार्यात्मक सम्मिलन ( Functional Association ) कहा जाता
3 . सांस्कृतिक प्रतिमान – जब सास्कृतिक तत्व एवं संकुल मिलकर प्रकार्यात्मक भूमिकाओं में परस्पर संबंधित हो जाते हैं तो उनसे संस्कृति प्रतिमान का जन्म होता है । संस्कृति – प्रतिमान के अध्ययन से किसी संस्कृति की प्रमुख विशेषताओं का ज्ञान होता है । उदाहरणार्थ – गाँधीवाद , अध्यात्मवाद , जाति – व्यवस्था , संयुक्त परिवार , ग्रामीणउसद भारतीय संस्कृति के संस्कृति संकुज हैं जो भारतीय संस्कृति की विशेषताओं का परिचय देते हैं ।
Clark Wissler ने 9 आधार मूलक सांस्कृतिक तत्वों का उल्लेख किया है जो संस्कृति – प्रतिमान को जन्म देते हैं
1 . वाणी एवं भाषा
2 . भौतिक तत्व – 1 भोजन की आदतें निवास iii यातायात iv . बर्तन आदि v . शस्त्र viव्यवसाय एवं उद्योग
3 . कला
4 . पुराण विद्या एवं वैज्ञानिक ज्ञान
5 . धार्मिक क्रियाएँ
6 . परिवारिक एवं सामाजिक प्रजातियाँ
7 . सम्पत्ति
8 . शासन
9 . युद्ध ।
किम्बल यंग ( Kimble Young ) ने संस्कृति के 13 तत्वों को सार्वभौमिक प्रतिमानों में सम्मिलित किया है
1 . स्चरण के प्रतिमान : संकेत एवं भाषा
2 . मनुष्य तक कल्याण हेतु वस्तुएँ एवं दंग
3 . मात्रा एवं यातायात के साधन एवं ढंग
4 , वस्तुओं एवं सेवाओं का विनिमय – व्यापार वाणिज्य
5 . सम्पत्ति के प्रकार – वास्ततिक एवं व्यक्तिक
6 . लगिक एवं पारिवारिक प्रतिमान – विवाह एवं तलाक नातेदारी सम्बन्धों के प्रकार अत्तराधिकारिता संरक्षकता ।
7 . सामाजिक नियंत्रण तथा शासकीय संस्थाएं – लोकाचार जनमत कानून युद्ध
8 . कलात्मक अभिव्यक्तिः निर्माण कला , चित्रकला , संस्कृति
9 . विश्राम के समय गतिविधि
10 . धार्मिक एवं जादूई विचार
11 . पुराण शास्त्र एवं दर्शनशास्त्र
12 . विज्ञान
13 . मूलाधार अंतक्रियात्मक प्रक्रियाओं की सांस्कृतिक संरचना ।
संस्कृति के प्रकार्य
( Function of Culture )
1 . व्यक्ति के लिए
2 समूह के लिए
1 . व्यक्ति के लिए
i संस्कृति मनुष्य को मानव बनाती है ।
- जटिल स्थितियों का समाधान ।
iiiमानव आवश्यकताओं की पूर्ति
iv . व्यक्तित्व निर्माण
V : मानव को मूल्य एवं आदर्श प्रदान करती है ।
vi मानव की आदतों का निर्धारण करती है ।
vii . नैतिकता का निर्धारण करती है ।
viiiव्यवहारों में एकरूपता लाती हैं ।
ixअनुभव एवं कार्यकुशलता बढ़ाती है ।
x . व्यक्ति की सुरक्षा प्रदान करती है ।
xi . समस्याओं का समाधान करती है ।
xii . समाजीकरण में योग देती है ।
xiii प्रस्थिति एवं भूमिका का निर्धारण करती है ।
xiv . सामाजिक नियन्त्रण में सहायक
. 2 समूह के लिए
iसामाजिक सम्बन्धों को स्थिर रखती है ।
iiव्यक्ति के दृष्टिकोण को विस्तृत करती है ।
iiiनई आवश्यकताओं को उत्पन्न करती है ।
. Phase of Culture
Dr . Dube ने संस्कृति की छः अवस्थाओं की चर्चा की है ।
1 . आदि पाषाण युग
2 . पुरापाषाण युग
3 . नवपाषाण युग
4 . ताम्रयुग
5 . कॉस्य युग
6 . लौह युग
संस्कति के नियामक आधार ( Normative Bases of Culture )
Emile Durkhim ने समाज की एकता और स्थिरता को बनाये रखने के लिए नियामक आधारों की आवश्यकता के सम्बन्ध में कहा | W . G . Sumner ने समाज के प्रभावशाली संचालन के लिए नियामक आधारों की आवश्यकता पर बल दत जब हम सस्कृति के नियामक आधारों की बात करते हैं तब हम उन सभी अमूर्त स्वरूपों की चर्चा करते है जो किसी – न – किसी रूप से सामाजिक व्यवहार को नियंत्रित करते हैं , निर्देशित करते हैं एवं प्रभावित करत हो । उदाहरण – नियम – मूल्य , जनरीतियों , रूद्वियों , कानून , प्रथा आदि । करते है ।
सामाजिक अनुशास्ति ( Social Sanction ) सामाजिक अनुशास्ति दो प्रकार की होती है
1 . सकारात्मक अनुशास्ति ( Possitive Sanction )
2 . नकारात्मक अनुशास्ति ( Negative Sanction ) सकारात्मक अनुशास्ति वह है जो किसी कार्य को अपेक्षित सानता है और जिसके करने पर सामाजिक सम्मान में वृद्धि होती है । उदाहरण के लिए कार्यालय में समय पर पहुँचना एक अच्छी बात है और जो ऐसा करते हैं उन्हें अच्छा माना जाता है । नकारात्मक अनुशास्ति , ऐसे कार्य जिसके करने पर प्रतिष्ठा गिरती है , दण्ड मिलता है । उदाहरण के लिए , भारत में स्त्रियों पर हाथ उठाना बुरा माना जाता है , एवं जिससे प्रतिष्ठा गिरती है ।
SOCIOLOGY – SAMAJSHASTRA- 2022 https://studypoint24.com/sociology-samajshastra-2022
समाजशास्त्र Complete solution / हिन्दी में
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SOCIAL CHANGE: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R32rSjP_FRX8WfdjINfujwJ
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INDIAN SOCIETY: https://www.youtube.com/playlist?list=PLuVMyWQh56R1cT4sEGOdNGRLB7u4Ly05x
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सांस्कृतिक विलम्बन
( Culture Lag )
इस अवधारणा की चर्चा डब्ल्यू एफ ऑगबर्न ( W . F . Ogbum ) ने अपनी पुस्तक ‘ Social Change में 1925 में की । अगिबर्न के अनुसार संस्कृति को मोटे तौर पर दो भागों में बाँटा जा सकता है
1 . भौतिक एवं
2 आमौतिक संस्कृति के ये दोनों भागों समान गति से परिवर्तित नहीं होते हैं । किन्हीं कारणों से एक भाग आगे बढ़ जाता है । दूसरा पीछे छूट जाता है । फलस्वरूप सांस्कृतिक विलम्बना की स्थिति पैदा होती है । इससे समाज में व्याधियाँ उत्पन्न होती है । जैसे ही पीछे छूटे हुए भाग को आगे लाया जाता है तो समाज में परिवर्तन होता है । इस तरह ऑगवर्न के अनुसार सांस्क । तिक विलम्बन समाजशास्त्रियों के हाथ में एक मंत्र है जिसके द्वारा समाज परिवर्तित होता है ।इन्हान जितने भी उदाहरण दिए वह सब यही स्पष्ट करते हैं कि भौतिक संस्कृति आगे बढ़ जाती है और अभौतिक पछि रह जाता है । इसपर इनकी काफी आलोचना हुई । इन आलोचनाओं को स्वीकार करते हुए 1957 में अपनी पुस्तक ‘ On Social and Culture Change में सांस्कतिक विलम्बन को पर्ण परिभाषित करते हुए इसे एक सिद्धात के रूप में प्रस्तुत कया । इनके अनुसार – a culture lag occurs when end the two parts which are co – related or change before or in greater degree than the other part does their by causing less adjustment between the part then exist its previously . इस परिभाषा से स्पष्ट है कि सांस्कृतिक विलम्बन के लिए निम्नलिखित परिस्थितियों का होना जरूरी है 1 . कोई दो चर चाहे दोनो भौतिक या एक भौतिक एक अभौतिक । ii . दोनों चरों के बीच में सह – सम्बन्ध होना आवश्यक है । iii . दोनों चरों के बीच एक खास समय में अनुकूलन आवश्यक है । IV . किसी कारणवश एक आगे बढ़ जाए एक पीछे । फलस्वरूप दोनों में विलम्बन हो जाए ।
सांस्कृतिक विलम्बन उत्पन्न होने के चार कारक है
1 . रूढ़िवादिता
2 . अतीत के प्रति निष्ठा
3 . नए विचारों के प्रति भय
4 . निहित स्वार्थ
इसकी आलोचना करते हुए मैकाइवर एवं पेज ( Mackiwar and Page ) ने कहा है कि Cultural Lag की जगह Technological Lag का प्रयोग होना चाहिए । आज के समाजशास्त्र में Culture Lag महत्वहीन है क्योंकि यह केवल दो चरों की बात करता है जबकि आज किसी भी विज्ञान में Multiple of factors की बात होती है ।
Culture Change – प्रश्न उठता है कि संस्कृति में परिवर्तन क्यों होता है । समनर ने इसके तीन कारण बताये हैं
1 . संस्कृति का शत – प्रतिशत हस्तान्तरण असम्भव है । 2 . बाह्य दशाओं में परिवर्तन 3 . अनुकूलन का प्रयत्न ।
Culture Contact – जब दो भिन्न संस्कृतियाँ एक – दूसरे के सम्पर्क में आती हैं तो उसे सांस्कृतिक सम्पर्क करते हैं । सांस्कृतिक सम्पर्क के कारण संस्कृतिकरण या पर –
संस्कृतिकरण ( Acculturation ) की प्रक्रिया शुरू होती है । Accultraltion ( पर – संस्कृतिकरण ) – हर्षकावितस के अनुसार , ” जब दो संस्कृतियों के तत्व आपस में घुजते – मिलते हैं । यह दो तरफा प्रक्रिया है ( Two Way Process ) जैसे – भारतीय मुसलमान और हिन्दू एक दूसरे के तत्व अपनाये हैं ।
Culteral Relativism ( सांस्कृतिक सापेक्षववाद ) – हर्षकोवितस ने इसका उल्लेख किया है । सांस्कृतिक सापेक्षता का अर्थ है विभिन्न संस्कृतियों का पाया जाना । सांस्कृतिक सापेक्षवाद को हम अभिवादन के उदाहरण द्वारा व्यक्त कर सकते हैं । भारत में अभिवादन के लिए हाथ जोड़ते हैं , पश्चिमी समाजों में हाथ मिलाते और टोप उतारते हैं , जापान में शरीर को झुकाया जाता है तो अफ्रीका के मसाई जनजाति के लोग एक – दूसरे पर थूकते हैं । प्रत्येक मनुष्य के अनुभव , निर्णय और व्यवहार अपनी संस्कृ ति के अनुरूप ही होते हैं , इसे ही सांस्कृतिक सापेक्षवाद कहा जाता है । अतः हर्षकोवितस का कहना है कि किसी भी संस्कृति की तुलना दूसरी संस्कृति के मूल्यों के आधार पर नहीं करनी चाहिए बल्कि हर संस्कृति का मूल्यांकन उसके अपने संस्कृति के सापेक्ष में करना चाहिए ।
Ethnocentricism ( स्व – संस्कृति केन्दियता ) – इसकी चर्चा अमेरिकन समाज शास्त्री W . G . Sumner ने की है । जब एक संस्कृति के लोग अपनी संस्कृति के उच्चतर मानकर अन्य सारी संस्कृतियों का मूल्यांकन उसी आधार पर करते हैं तो इसे Ethnocetrism कहते हैं ।
Temperocentricism ( स्वकाल केन्द्रीयता ) Bierstedt ने चर्चा करते हुए कहा कि हर प की भूत क वानस्बत ज्यादा महत्वपूर्ण मानते हैं
TransCulturation ( परा – संस्कृतिग्रहण वह प्रक्रिया जिसमें दो या दो से अधिक संस्कृतिया अपना आदान – प्रदान करती है । उसे Trans – Culturation कहते हैं ।
सास्कृतिक बहुलतावाद Cultural Pluralism इसका तात्पर्य ऐसे समाज से है जहाँ बहुत सारा सा स मल – जुलकर रहते हैं । सभी एक – दूसरे का सम्मान करते हैं , कोई किसी को हीन नहीं समझला । उदाहरण के तौर पर भारतीय संस्कृति ।
शिक्षा में सामाजिक और सांस्कृतिक परिवर्तन के साधन के रूप में जबरदस्त गुंजाइश है। यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि शिक्षा के माध्यम से न केवल ज्ञान प्रदान किया जाता है, बल्कि कौशल, रुचियां, दृष्टिकोण, आकांक्षाएं और मूल्य विकसित किए जाते हैं, सामाजिक और सांस्कृतिक प्रगति की सुविधा होती है, और साथ ही साथ लोगों का सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर भी ऊपर उठता है।
शिक्षा सांस्कृतिक परिवर्तन लाती है जिसके परिणामस्वरूप कई रूपों में समाज में कई परिवर्तन और परिवर्तन हो सकते हैं। यह मानव संस्कृति के हर पहलू में देखा जा सकता है जैसे मूल्यों और सोच के तरीकों के मानदंडों में भिन्नता, भौतिक संस्कृति में बदलाव, विचार, पारिवारिक संबंध, राजनीतिक संस्कृति, प्रशासन के पैटर्न
स्थानीय, राज्य, क्षेत्रीय और राष्ट्रीय स्तर पर स्थिति, सामाजिक गतिविधियों में भागीदारी, कर्मियों की क्षमताओं और दृष्टिकोण में परिवर्तन; मानव गतिविधि के हर पहलू में
शिक्षा और संस्कृति घनिष्ठ और अभिन्न रूप से जुड़े हुए हैं। किसी समाज का सांस्कृतिक प्रतिमान उसके शैक्षिक प्रतिमान को निर्धारित करता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी समाज में संस्कृति का आध्यात्मिक स्वरूप है, तो उसकी शैक्षिक प्रक्रियाएँ जीवन के नैतिक और शाश्वत मूल्यों की उपलब्धि पर जोर देंगी। दूसरी ओर, यदि किसी समाज का सांस्कृतिक प्रतिमान भौतिकवादी है, तो स्वाभाविक रूप से उसका शैक्षिक प्रतिरूप उन भौतिक मूल्यों की प्राप्ति के लिए आकार लेगा जो इंद्रियों के सुख और भौतिक सुख-सुविधाओं को बढ़ावा देते हैं। किसी भी संस्कृति से रहित समाज का कोई निश्चित शैक्षिक संगठन नहीं होगा। इसलिए किसी देश की संस्कृति का उसके शैक्षिक पैटर्न पर बहुत शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है।
संस्कृति और शिक्षा के बीच अंतिम संबंध इस तथ्य से स्पष्ट होता है कि शिक्षा का एक प्रमुख उद्देश्य बच्चे को उसकी सांस्कृतिक विरासत को प्रभावित करना है। किसी भी मानव समूह में, संस्कृति के विभिन्न तत्व और हिस्से हजारों वर्षों के अनुभव के बाद विकसित होते हैं, और ये पूरी तरह से आने वाली पीढ़ियों को सौंप दिए जाते हैं। इसलिए प्रत्येक व्यक्ति एक विशेष संस्कृति में पैदा होता है जो उसे व्यवहार और मूल्यों के निश्चित पैटर्न प्रदान करता है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में उसके आचरण का मार्गदर्शन करता है। इस प्रकार उन्होंने हर बार नए प्रयोग करने की आवश्यकता को बचा लिया है। जाहिर है, तब, संस्कृति मनुष्य के जीवन में प्राकृतिक पर्यावरण के अनुकूलन में, सामाजिक वातावरण के अनुकूलन में, व्यक्तित्व और समाजीकरण के विकास में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
हर समाज की एक संस्कृति या संचालन का एक तरीका होता है जो उसके लिए अद्वितीय होता है। किसी दी गई संस्कृति में सामंजस्यपूर्ण ढंग से रहने के लिए, इसके सदस्यों को उस संस्कृति के लिए स्वीकार्य आचरण के विभिन्न तरीकों से अवगत होना चाहिए। यह शिक्षा की प्रक्रिया के माध्यम से है कि बच्चों और नए सदस्यों को इन तथ्यों से अवगत कराया जाता है। साथ ही, जीवित रहने के लिए, व्यक्ति को अपने वातावरण में इन चीजों की प्रकृति से परिचित होना चाहिए जिससे उसे सामना करना पड़ सकता है। बहुत सामान्य शब्दों में, यह कहा जा सकता है कि सार्वभौमिक रूप से, शिक्षा का उद्देश्य व्यक्ति को उसकी संस्कृति की प्रकृति और उसकी स्वीकार्य विधियों के बारे में सूचित करना है।
उस संस्कृति के साथ मुकाबला निहितार्थ, स्पष्ट रूप से, यह है कि शिक्षा को किसी विशेष देश के छात्रों को यह सिखाना चाहिए कि दुनिया को कैसे देखना है और अपने देश की चीजों को करने के तरीके के अनुसार काम करना है।
(i) शिक्षा पर संस्कृति का प्रभाव
जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, संस्कृति और शिक्षा में लेन-देन का संबंध है। दोनों विभिन्न पहलुओं में एक दूसरे की प्रशंसा और पूरक करते हैं। शिक्षा पर संस्कृति के कुछ प्रभाव निम्नलिखित हैं।
- शिक्षा के उद्देश्य और आदर्श ज्यादातर समाज के मूल्यों और प्रतिमानों द्वारा निर्धारित होते हैं।
- पाठ्यचर्या समाज की संस्कृति के अनुसार वातानुकूलित है। यह सांस्कृतिक मूल्यों को साकार करने के लिए समाज के आदर्शों और जरूरतों के अनुसार तैयार किया गया है।
- शिक्षण और संस्कृति के तरीके घनिष्ठ रूप से जुड़े हुए हैं। समाज के बदलते सांस्कृतिक प्रतिमान शिक्षण के तरीकों पर भी शक्तिशाली प्रभाव डालते हैं। पुराने शिक्षक केन्द्रित शिक्षण से बाल केन्द्रित शिक्षा में परिवर्तन एक उदाहरण है। संस्कृति के प्रभाव के कारण शिक्षण-अधिगम प्रक्रिया में परियोजना पद्धति, संगोष्ठी, संगोष्ठी, चर्चा आदि जैसी सामाजिक पद्धतियों का व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है।
- अनुशासन सांस्कृतिक मूल्यों से भी प्रभावित होता है। सोचने और जीने के वर्तमान सांस्कृतिक पैटर्न हमारे अनुशासन की अवधारणा से सीधे जुड़े हुए हैं। प्राचीन और मध्य युग के दमनकारी अनुशासन की अवधारणा का स्थान जीवन के आधुनिक मूल्यों ने ले लिया है।
- पाठ्य पुस्तकें जो तैयार पाठ्यक्रम के अनुसार लिखी गई हैं और सांस्कृतिक आदर्शों और मूल्यों को बढ़ावा देती हैं और बढ़ावा देती हैं, उनका स्वागत है।
- समाज के सांस्कृतिक आदर्शों और मूल्यों को आत्मसात करने वाला शिक्षक ही अपने लक्ष्य को सफलतापूर्वक प्राप्त कर सकता है। ऐसे शिक्षक ही बच्चों में उच्च आदर्शों और नैतिक मूल्यों का संचार करने में सक्षम होते हैं।
- विद्यालय समाज का लघु रूप है। स्कूल की कुल गतिविधियों और कार्यक्रमों को सांस्कृतिक आदर्शों और समाज के मूल्यों के अनुसार आयोजित किया जाता है। इसलिए विद्यालय समाज के सांस्कृतिक प्रतिमानों को बढ़ावा देने, ढालने, सुधारने और विकसित करने का केंद्र है।
(ii) संस्कृति पर शिक्षा का प्रभाव
जहाँ भी मानव समूह हैं वहाँ संस्कृति है, i. इ। पर्यावरण का एक मानव निर्मित हिस्सा और व्यवहार के सीखे हुए पैटर्न। जहाँ कहीं भी संस्कृति होती है, वह शिक्षा के द्वारा आने वाली पीढ़ियों तक फैलती और प्रसारित होती है। चूँकि मनुष्य समूहों में रहते हैं, हम कह सकते हैं कि जहाँ भी मनुष्य हैं वहाँ विभिन्न रूपों में संस्कृति और शिक्षा है। स्कूली शिक्षा मुख्य रूप से साक्षर संस्कृतियों तक ही सीमित है। निरक्षर समूहों में शिक्षा की भूमिका बहुत कम है।
जिस प्रकार संस्कृति शिक्षा को प्रभावित करती है, उसी प्रकार शिक्षा भी किसी देश की संस्कृति पर एक शक्तिशाली प्रभाव डालती है। निम्नलिखित विभिन्न तरीके हैं जिनके द्वारा शिक्षा देश की संस्कृति को प्रभावित करती है।
- संस्कृति का संरक्षण: प्रत्येक देश अपनी संस्कृति की श्रेष्ठता को मानता है और उसका प्रदर्शन करता है
वह आराम करता है। इसलिए यह अपनी संस्कृति को उसके मूल रूप में संरक्षित करने का प्रयास करता है। शिक्षा ही इस कार्य को पूरा करने का एकमात्र साधन है। इस प्रकार शिक्षा समाज की संस्कृति को संरक्षित करती है।
- संस्कृति का संचारणः संरक्षण की प्रक्रिया में संचरण की प्रक्रिया भी शामिल होती है। संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरण ही इसके संरक्षण की सर्वोत्तम गारंटी है। प्रसिद्ध समाजशास्त्री ओटावे के शब्दों में, “शिक्षा का कार्य सामाजिक मूल्यों और आदर्शों को समाज के युवा और सक्षम सदस्यों तक पहुँचाना है”।
- संस्कृति का विकास: शिक्षा का कार्य समाज की प्रगति और निरंतर विकास के लिए सांस्कृतिक आदर्शों और मूल्यों में आवश्यक और वांछनीय परिवर्तन लाना है, जिसके बिना सामाजिक प्रगति स्तरीकृत हो जाएगी और शून्य हो जाएगी। शिक्षा व्यक्तियों को संस्कारित करती है, मानवीय आवश्यकताओं के सभी क्षेत्रों में अनुसंधान और गहन जाँच द्वारा सांस्कृतिक प्रक्रियाओं को संशोधित करती है।
- संस्कृति की निरंतरता – संस्कृति समाज का जीवन रक्त है। संस्कृति के बिना एक समाज का क्षय होना तय है और देर-सवेर मरना तय है। शिक्षा अपनी विविध गतिविधियों और कार्यक्रमों के माध्यम से संस्कृति की निरंतरता को बनाए रखती है। एक समाज अपनी संस्कृति को संरक्षित रखने और पीढ़ी-दर-पीढ़ी प्रसारित करने के लिए स्कूलों की स्थापना करता है। यह पाया गया है कि कुछ स्कूल अपने बच्चों में अवांछनीय सांस्कृतिक उग्रवाद और श्रेष्ठता की भावना विकसित करने का प्रयास करते हैं। बच्चों को विभिन्न संस्कृतियों के बीच सांस्कृतिक अंतःक्रिया से अधिक से अधिक सीखने के लिए प्रेरित किया जाना चाहिए। आदर्श रूप से शिक्षा को उन्हें आपसी लेन-देन के रवैये के साथ-साथ सहिष्णुता और समायोजन के गुणों को विकसित करने में मदद करनी चाहिए। यह सांस्कृतिक एकीकरण और सांस्कृतिक संश्लेषण आधुनिक समय में विश्व समाज की सख्त जरूरत है। डॉ. एस. राधाकृष्णन कहते हैं कि भारतीय संस्कृति का एक महत्वपूर्ण पहलू इसकी चिरस्थायी प्रकृति है। उसने देखा; –भारतीय संस्कृति जितनी बदलती है, उतनी ही वैसी ही रहती है। कठिन समय में भारतीय भावना की शक्ति ने हमें बनाए रखा है। अमूर्त वस्तुएँ ही किसी राष्ट्र को उसका चरित्र और जीवंतता प्रदान करती हैं।”
- व्यक्तित्व का विकास: शिक्षा सोच, व्यवहार और सांस्कृतिक मूल्यों की वस्तुओं के विविध सांस्कृतिक पैटर्न को नियोजित करती है ताकि बच्चे शारीरिक, मानसिक, सामाजिक और भावनात्मक रूप से अधिकतम सीमा तक विकसित हो सकें। इस प्रकार शिक्षा का उद्देश्य बालक के व्यक्तित्व का विकास करना है।
- सांस्कृतिक पिछड़ापन दूर करना: भौतिक संस्कृति का विकास वैज्ञानिक शोधों और नवाचारों के कारण तीव्र गति से होता है, जबकि आदर्शों, मूल्यों और मानदंडों से युक्त अभौतिक संस्कृति दोनों के बीच खाई पैदा करने में पीछे रह जाती है। शिक्षा अपनी गतिविधियों और विकास के कार्यक्रमों द्वारा इस सांस्कृतिक अंतराल को पाटने का एकमात्र साधन है।
- एकता प्राप्त करना – मानव जाति की एकता के लिए विश्व में विभिन्न समूहों की संस्कृति का प्रसार होना चाहिए। सांस्कृतिक अलगाव जाना चाहिए, और एक संस्कृति और दूसरी संस्कृति के बीच कोई लोहे का पर्दा नहीं होना चाहिए। डॉ. जाकिर हुसैन का मानना है, “एक शिक्षित व्यक्ति की विशेषता संस्कृति के लक्ष्यों के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण होना चाहिए, अर्थात अंतिम वस्तुगत मूल्यों के प्रति। रवैया शैक्षिक और संस्थागत गतिविधि का पोषित उत्पाद होना चाहिए ”।
- सांस्कृतिक बुराइयों का सुधार: शिक्षा सांस्कृतिक बुराइयों के लिए सुधारात्मक है। संस्कृति के आयामों की व्याख्या करके शिक्षा अहंकार और झूठे व्यक्तित्व को ठीक करती है। शैक्षिक प्रबोधन का अर्थ केवल कला और सौंदर्य की सौंदर्यपरक सराहना नहीं है, इसका अर्थ दयालु और उदार हृदय और आत्मा होना भी है। संस्कृति मन को मुक्त करती है। साक्षरता और नैतिक शिक्षा और कला में शिक्षा सांस्कृतिक मूल्यों की प्राप्ति के लिए वास्तविक तकनीकों का निर्माण करती है।
- शिक्षा और नस्लीय पूर्वाग्रह और दुश्मनी: शिक्षा नस्लीय पूर्वाग्रहों और दुश्मनी को कम करती है, जो अन्य संस्कृतियों के बारे में विचारों से उत्पन्न होती है। अपनी संस्कृति को आत्मसात करना, उस पर गर्व करना और उसका संरक्षण करना एक देशभक्ति का कार्य है। लेकिन इसमें किसी भी बदलाव का विरोध करना अन्य सांस्कृतिक प्रतिमानों के प्रवेश के लिए दरवाजे बंद करना और अपनी संस्कृति को बनाए रखने के लिए एक मजबूत लोहे का पर्दा बनाए रखना राष्ट्रवाद को दर्शाता है। यह सांस्कृतिक विकास के लिए अनुकूल नहीं है। सांस्कृतिक प्रसार व्यक्तिगत सांस्कृतिक समूह और संपूर्ण मानवता के लिए अच्छा है।
- समग्र रूप से मानव संस्कृति: अपनी संस्कृति पर बहुत अधिक जोर देने से असमानता और अंतर्राष्ट्रीय समझ में कमी आएगी जो कि शिक्षा के कार्यों में से एक है। यह विभिन्न संस्कृतियों के प्रसार को लाकर संभव है। शिक्षा को मानव संस्कृति को संपूर्ण मानना चाहिए, “विभिन्न पंखुड़ियों वाले फूल की तरह, और प्रत्येक पंखुड़ी एक सांस्कृतिक समूह का प्रतिनिधित्व करती है”। शिक्षा को विविधता में एकता के लिए प्रयास करना चाहिए और विविधता पर अधिक जोर नहीं देना चाहिए।
- स्कूल का कार्य: स्कूल समाज की वर्तमान संस्कृति को समझाने का सरलीकृत वातावरण है और स्कूल की शिक्षा बच्चे को वही सिखाती है और अपना योगदान भी देती है। स्कूल (इसके व्यापक अर्थ में) सांस्कृतिक निर्माण-एजेंस की भूमिका निभाने की दृष्टि से संस्कृति की गुणवत्ता निर्धारित करता है
टी। शिक्षा, संस्कृति का अवशोषक और परावर्तक होने के नाते, बढ़ती पीढ़ी को समाज के सांस्कृतिक मानदंडों और प्रक्रिया में आरंभ करने का सबसे अच्छा माध्यम है। सरकार और अन्य एजेंसियों के ठोस प्रयासों के कारण
शिक्षा के क्षेत्र में लोग शिक्षा के महत्व को समझने लगे हैं। अधिक से अधिक लोग शिक्षा में रुचि ले रहे हैं। अभिभावक अपने बच्चों को स्कूल भेजना चाहते हैं। देर से अंग्रेजी शिक्षा के लिए एक बढ़ी हुई मांग है। अधिक से अधिक अंग्रेजी माध्यम के स्कूल इंटरनेशनल स्कूल, आईसीएसई, सीबीएसई और स्टेट बोर्ड स्कूल खोले जाते हैं और उन सभी को पर्याप्त और अधिक छात्र मिलते हैं। यह गति में प्रवृत्ति का एक स्पष्ट संकेत है। यह गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की नए सिरे से मांग का परिणाम है। वैश्वीकरण के प्रभाव से भी इसमें तेजी आई है। सह-शिक्षा, अब एक दिन, समाज द्वारा बेहतर स्वीकृति प्राप्त करती है। स्कूलों में यौन शिक्षा के खिलाफ प्रतिरोध की तीव्रता को अब कम विरोध का सामना करना पड़ रहा है। इन सभी को शिक्षा का सकारात्मक परिणाम माना जा सकता है।
- अंतर-सांस्कृतिक समझ: शिक्षा विभिन्न संस्कृतियों के बीच अंतर-सांस्कृतिक समझ को बढ़ावा दे सकती है। डॉ. एस. राधाकृष्णन को उद्धृत करने के लिए, “एक राष्ट्र की महानता को उसकी भौतिक शक्ति और धन से नहीं बल्कि उसके लोगों के अंतर-सांस्कृतिक संबंधों से मापा जाता है”। अंतर-सांस्कृतिक समझ व्यक्तियों में उस अंतर्दृष्टि और दृष्टिकोण के विकास को संदर्भित करती है, जो अपने स्वार्थ और संकीर्ण स्वार्थ से ऊपर उठकर, अपने अलावा अन्य सभी संस्कृतियों में वास्तव में मूल्यवान वस्तुओं का पता लगाते हैं। अब शैक्षिक योजनाकारों और शिक्षाविदों द्वारा समान रूप से यह महसूस किया गया है कि हमें ऐसे शैक्षिक अनुभव और कार्यक्रम प्रदान करने चाहिए जो दूसरे की संस्कृति की समझ विकसित करें और इस तरह की समझ का विकास सहयोग को बढ़ावा देगा और लेन-देन की प्रक्रिया के माध्यम से एक सांस्कृतिक संश्लेषण होगा। शिक्षा राष्ट्रीय एकता और राष्ट्रीय एकता के लिए आवश्यक राष्ट्रीय संस्कृति के लक्ष्य को प्राप्त करने में सक्षम होगी। क्लॉसमेयर कहते हैं, “अंतर सांस्कृतिक शिक्षा का संबंध छात्रों को उन व्यक्तियों की भिन्नताओं और समानता को समझने में मदद करने से है जो हमारे समाज और दुनिया को शामिल करते हैं”।
- संस्कृति की शिक्षा और संस्कृति के लिए: संस्कृति व्यक्ति को अच्छे विचारों और कला की सराहना करने में सक्षम बनाती है। यह मानव हितों और सामाजिक दक्षता को सजीव करता है। एक सुसंस्कृत व्यक्ति न तो बहुत हठधर्मी होता है और न ही अधिक हठधर्मी और आक्रामक। वह जुनून की चरम सीमा या भावनाओं की हिंसा या भाषा की फिजूलखर्ची को प्रकट नहीं करता है। ऐसे व्यक्तियों के निर्माण में शिक्षा की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
- पारंपरिक संस्कृति में प्रवाह: संस्कृति निरंतर प्रवाह में है। समाज बदलते ही यह बदल जाता है। किसी भी राष्ट्र की निरंतर सांस्कृतिक परंपराएं नहीं रही हैं। भारत भी इसका अपवाद नहीं है। हर पीढ़ी कुछ नया जोड़ती है और कुछ पुराना सुधारती है। भारत में पारिवारिक बंधन को दुनिया में सबसे मजबूत बंधनों में से एक माना जाता है। संयुक्त परिवार प्रणाली धीरे-धीरे गायब हो रही है, एकल परिवार का स्थान ले रही है, स्वतंत्रता ला रही है, हालांकि एक ही समय में अकेलेपन और असुरक्षा पर जोर दिया जा रहा है। हम देख सकते हैं कि एकल परिवार और इसकी संस्कृति के पैटर्न को शिक्षितों के बीच स्वीकार किया जा रहा है
तेजी से, अर्ध-शिक्षितों में उत्तरोत्तर और निरक्षरों में धीरे-धीरे। शिक्षा और अन्य संस्कृतियों के संपर्क में आने के कारण हमारे खान-पान में बदलाव आ रहा है, हमारे पहनावे में बदलाव आ रहा है, कला के प्रति हमारी प्रशंसा के नए मानदंड समय-समय पर बदल रहे हैं और हमारी धार्मिक मान्यताएं बदल रही हैं। निहित स्वार्थों या कुछ धार्मिक संप्रदायों आदि के दबाव के कारण कुछ हलकों से प्रतिरोध के बावजूद अधिकांश लोग बिना किसी प्रतिरोध के इन परिवर्तनों का स्वागत करने आए हैं।
शिक्षा के क्षेत्र में विकास ने अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के समाजीकरण में उन्हें भारत में अन्य सभी जातियों के साथ एकता की भावना देकर एक गति प्रदान की है। शैक्षिक विकास का एक और परिणाम यह है कि अंतर्जातीय विवाहों की संख्या बढ़ रही है। इसका परिणाम दहेज प्रथा के खिलाफ एक निरंतर अभियान के रूप में सामने आया है, जिस पर प्रतिबंध लगाने के लिए कई राज्य सरकारों ने कानून पारित किए हैं।
तकनीकी प्रगति, शिक्षा के परिणाम ने उन्हें अपनी जीवन शैली बदलने में मदद की है। मनुष्य की अधिक से अधिक यांत्रिक गतिविधियों पर मशीनें हावी होती जा रही हैं। अब उसके पास फुर्सत के पल ज्यादा हैं। आविष्कारशील कौशल का जबरदस्त विस्फोट है।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण और प्रशिक्षण भारतीय को हठधर्मिता, अंधविश्वास, अनम्यता, और भारित नैतिक मूल्यों और पूर्व निर्धारित व्यवहार प्रतिमानों की विरासत में मिली स्थिर पृष्ठभूमि से राहत दिला रहा है। आज भारतीय दिमाग में न केवल अपनी नस्लीय और सांस्कृतिक यादें हैं बल्कि दूसरों के तकनीकी और वैज्ञानिक सत्य भी हैं।
जनसंख्या विस्फोट पर्यावरण के पैटर्न और सामाजिक और आर्थिक प्रथाओं के टूटने के लिए जिम्मेदार एकमात्र सबसे बड़ा कारक है। इसका असर जीवन के हर पहलू पर दिख रहा है। शिक्षित वर्ग में छोटे परिवार के मानक को व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है। मीडिया खासकर विजुअल मीडिया ने मदद की है
एक घर में अधिक बच्चे होने के दुष्परिणामों के बारे में निरक्षर को भी शिक्षित करने और चिता को जलाने के लिए पुत्र होने की गलत सांस्कृतिक धारणा को कमजोर करने और समाज की कई अन्य सांस्कृतिक बुराइयों को अर्थहीन करने का काम किया।
- भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति बढ़ रही है। अधिक से अधिक लोग लिंगों की समानता को स्वीकार करने लगे हैं। केंद्र सरकार और राज्य सरकारों के कानूनों और सरकारी और गैर-सरकारी संगठनों के कार्यक्रमों ने इस उद्देश्य को बढ़ावा दिया है। शिक्षा का अधिकार, माता-पिता की संपत्ति का समान अधिकार, रोजगार का अधिकार, समान काम के लिए समान वेतन आदि ने महिलाओं की स्थिति में जबरदस्त बदलाव लाए हैं और सामाजिक, पारिवारिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, राजनीतिक और अन्य पहलुओं पर दूरगामी प्रभाव डाले हैं। जीवन का। केंद्र सरकार के दोनों सदनों में हाल ही में ‘महिला आरक्षण विधेयक‘ पारित करने का प्रयास इस दिशा में हो रहे परिवर्तनों का स्पष्ट संकेत है।
शिक्षा ने महिलाओं को संपत्ति और पुरस्कारों के वितरण में सांस्कृतिक परिवर्तन लाया है। महिलाओं को अब पैतृक संपत्ति में बराबर का अधिकार है। समान काम के लिए समान वेतन सभी स्तरों पर स्वीकृत मानदंड है। निश्चित रूप से विभिन्न तिमाहियों में प्रतिरोध देखा जा सकता है। लेकिन शिक्षा के और प्रसार से लोगों की मानसिकता में बदलाव आना निश्चित है और सकारात्मक दृष्टिकोण हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग बन जाएगा।
- मानव द्वारा सामान्य संस्कृति का बोध शिक्षा मानव जाति के बौद्धिक, भावनात्मक, सांस्कृतिक और सामाजिक जीवन के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई है। एक ओर यह व्यक्ति को उन गुणों को महसूस करने में सक्षम बनाता है जिनके साथ वह संपन्न है और दूसरी ओर यह उसे यह अहसास दिलाता है कि सभी मनुष्य एक सामान्य संस्कृति को साझा करते हैं, जो सामान्य अच्छे में योगदान देता है। एडिसन के शब्दों में, “शिक्षा, जब यह एक नेक दिमाग पर काम करती है, तो हर अव्यक्त गुण और पूर्णता को देखने के लिए बाहर खींचती है”। शिक्षा अपने अर्थ और शक्ति को वस्तुओं और मनुष्यों के आसपास के वातावरण से प्राप्त करती है। इसलिए यह उन सांस्कृतिक मूल्यों की उपेक्षा नहीं कर सकता, जो पर्यावरण को अर्थ प्रदान करते हैं। मनुष्य उन परिस्थितियों से सीखता है जिनमें वह रहता है, जिन लोगों से वह मिलता है, जो विचार वह प्राप्त करता है और इतिहास की भौगोलिक स्थितियों और समय से सीखता है। शिक्षा सामाजिक व्यवस्था का महत्वपूर्ण विन्यास है, जो युवा पीढ़ी के व्यक्तित्व और उनकी संस्कृति को जीवन के लिए तैयार करती है और उन्हें उस तरह के समाज के लिए तैयार करती है जिसमें वे रहते हैं और उन्हें रहना चाहिए।
- बाल श्रम के प्रति दृष्टिकोण एक अन्य क्षेत्र है जहाँ हम मूल्यों में भारी परिवर्तन पाते हैं। भारतीय समाज में कालीन उद्योग और अन्य क्षेत्रों में बच्चों को नियोजित करने के खिलाफ एक संस्कृति विकसित हुई है। सरकार के प्रयासों से 6 से 14 वर्ष के बच्चों के लिए शिक्षा को नि:शुल्क एवं अनिवार्य बनाने का कानून बनाने, इस दिशा में मीडिया एवं स्वयंसेवी संस्थाओं की सकारात्मक भूमिका तथा सर्व शिक्षा अभियान जैसे स्थानीय लोगों को शामिल करने वाले सरकार के विभिन्न कार्यक्रम प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रमों ने आम जनता को भी शिक्षा की आवश्यकता और महत्व के बारे में शिक्षित किया है। इसके परिणामस्वरूप अधिक से अधिक बच्चे और वयस्क शिक्षा की ओर आकर्षित हुए हैं। वे अपने अधिकारों और कर्तव्यों के प्रति अधिकाधिक जागरूक होते जा रहे हैं। कल्याण कार्यक्रमों को अधिक स्वीकृति मिलती है और वे आसानी से फैल जाते हैं। अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है और इस संबंध में बहुत कुछ किया जाना है।
- सांस्कृतिक पुनर्निर्माण-एजेंट के रूप में शिक्षक: एक साधन संपन्न शिक्षक औपचारिक और गैर-औपचारिक शिक्षा के माध्यम से समाज की उभरती हुई आकांक्षाओं के अनुरूप संस्कृति के नए मॉडल विकसित कर सकता है। यह युवाओं को अनुकूली क्षमताओं को विकसित करने और समाज में परिवर्तनों को समायोजित करने में सक्षम बनाएगा। अंतिम विश्लेषण में शिक्षक संस्कृति का संरक्षक और लोकतांत्रिक मध्यस्थ है। वह ड्राइंग द्वारा संस्कृति-से-संस्कृति के वास्तुकार हैं
पुराने सांस्कृतिक अनुभवों पर और नए अनुभवों का पुनर्निर्माण इस प्रकार नवाचारों का उत्पादन करता है।
उपरोक्त चर्चा इस तथ्य की पुष्टि करती है कि संस्कृति के विभिन्न पहलुओं पर शिक्षा का जबरदस्त प्रभाव है। शिक्षा में विकास एक समाज की संस्कृति में प्रगतिशील परिवर्तन लाता है। शिक्षा सीखने वाले को समाज में अप्रचलित और अप्रासंगिक प्रचलित व्यवस्था में असहज करती है और बेहतर के लिए बदलाव लाने के लिए लगातार प्रयास करती है।
SOCIOLOGY – SAMAJSHASTRA- 2022 https://studypoint24.com/sociology-samajshastra-2022
समाजशास्त्र Complete solution / हिन्दी में
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