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शशि थरूर का आपातकाल पर तीखा हमला: क्या कांग्रेस के लिए यह एक नया राजनीतिक भूकंप है?

शशि थरूर का आपातकाल पर तीखा हमला: क्या कांग्रेस के लिए यह एक नया राजनीतिक भूकंप है?

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में, कांग्रेस सांसद शशि थरूर ने आपातकाल के दौरान कांग्रेस सरकार द्वारा किए गए कार्यों पर तीखी आलोचना की है। उन्होंने कहा कि “अनुशासन और व्यवस्था” के नाम पर की गई क्रूरता को कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता। यह बयान कांग्रेस के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है, खासकर उस समय जब पार्टी अपने अतीत से जूझ रही है और भविष्य की रणनीति तलाश रही है।

शशि थरूर का यह बयान केवल एक राजनीतिक बयान नहीं है, बल्कि यह भारतीय राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ का संकेत दे सकता है। यह लेख आपातकाल के ऐतिहासिक संदर्भ, थरूर के बयान के निहितार्थ, और इसके कांग्रेस और भारतीय राजनीति पर संभावित प्रभावों का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है।

आपातकाल: एक संक्षिप्त अवलोकन (Emergency: A Brief Overview)

भारत में आपातकाल 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक लागू रहा था। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने देश में “आंतरिक अशांति” का हवाला देते हुए राष्ट्रपति शासन लागू किया था। इस दौरान मौलिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था, राजनीतिक विरोधियों को गिरफ्तार किया गया था, और प्रेस पर सेंसरशिप लगाई गई थी। यह काल मानवाधिकारों के उल्लंघन और लोकतंत्र के दमन के लिए जाना जाता है।

आपातकाल के कुछ प्रमुख पहलू:

  • मौलिक अधिकारों का निलंबन: नागरिकों के मौलिक अधिकारों, जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, गिरफ्तारी से संरक्षण, और न्यायिक प्रक्रिया का अधिकार, को निलंबित कर दिया गया था।
  • राजनीतिक विरोधियों का दमन: विपक्षी नेताओं, समाजिक कार्यकर्ताओं, और पत्रकारों को गिरफ्तार किया गया था और उन्हें बिना किसी मुकदमे के जेलों में रखा गया था।
  • प्रेस पर सेंसरशिप: सरकार ने प्रेस पर सेंसरशिप लगाई और अनुकूल खबरें ही प्रकाशित करने की अनुमति दी।
  • न्यायपालिका का कमज़ोर होना: सरकार ने न्यायपालिका पर भी अपना दबाव बनाया और स्वतंत्र न्यायिक कार्यवाही में बाधा डाली।

शशि थरूर का बयान: एक विश्लेषण (Shashi Tharoor’s Statement: An Analysis)

शशि थरूर ने आपातकाल को “अनुशासन और व्यवस्था के नाम पर की गई क्रूरता” के रूप में वर्णित किया है। उन्होंने कहा कि यह काल लोकतंत्र के लिए एक काला अध्याय था और इसे कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता। यह बयान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि यह एक वरिष्ठ कांग्रेस नेता द्वारा आपातकाल की आलोचना है, जो पार्टी के अतीत के साथ उसके वर्तमान के संघर्ष को उजागर करता है।

थरूर का यह बयान कई कारणों से महत्वपूर्ण है:

  • ऐतिहासिक सच्चाई को सामने लाना: उनका बयान आपातकाल के दौरान हुए मानवाधिकारों के उल्लंघन को याद दिलाता है और ऐतिहासिक सच्चाई को सामने लाने का प्रयास करता है।
  • कांग्रेस के लिए चुनौती: यह बयान कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि यह पार्टी के अतीत के एक विवादास्पद पहलू पर सवाल उठाता है।
  • भविष्य की राजनीति पर प्रभाव: यह बयान भविष्य की राजनीति को भी प्रभावित कर सकता है, क्योंकि यह आपातकाल की विरासत और उससे जुड़े मुद्दों पर चर्चा को फिर से शुरू करता है।

कांग्रेस की प्रतिक्रिया और राजनीतिक परिणाम (Congress’s Response and Political Implications)

कांग्रेस पार्टी ने थरूर के बयान पर अभी तक कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं दी है, लेकिन पार्टी के भीतर अलग-अलग प्रतिक्रियाएँ देखने को मिली हैं। कुछ नेता थरूर के बयान का समर्थन कर रहे हैं, जबकि अन्य इस पर चुप्पी साधे हुए हैं। यह स्थिति पार्टी के भीतर मतभेदों को दर्शाती है और आने वाले समय में पार्टी के लिए एक बड़ी चुनौती बन सकती है।

थरूर के बयान के राजनीतिक परिणाम निम्नलिखित हो सकते हैं:

  • कांग्रेस के भीतर अंतर्विरोध: यह बयान पार्टी के भीतर मौजूद मतभेदों को और गहरा सकता है और आंतरिक विवाद को बढ़ावा दे सकता है।
  • भाजपा को लाभ: भाजपा इस मुद्दे का उपयोग कांग्रेस को घेरने और अपने राजनीतिक लाभ के लिए कर सकती है।
  • लोकतंत्र की बहस: यह बयान लोकतंत्र, मानवाधिकारों, और सरकार के दायित्वों पर एक नई बहस को जन्म दे सकता है।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह (Challenges and the Way Forward)

भारत को आपातकाल जैसे काले अध्यायों से सबक सीखने की जरूरत है। लोकतंत्र को मज़बूत करने के लिए, यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि भविष्य में ऐसे घटनाक्रम दोहराए न जाएं। इसके लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते हैं:

  • संवैधानिक मूल्यों का पालन: संविधान के मूल्यों और लोकतांत्रिक संस्थाओं का सम्मान करना और उनका पालन करना ज़रूरी है।
  • मानवाधिकारों का संरक्षण: मानवाधिकारों का संरक्षण और उनके उल्लंघन के ख़िलाफ़ सख्त कार्रवाई करना ज़रूरी है।
  • पारदर्शिता और जवाबदेही: सरकार की कार्रवाई में पारदर्शिता और जवाबदेही सुनिश्चित करना ज़रूरी है।
  • स्वतंत्र प्रेस और न्यायपालिका: स्वतंत्र प्रेस और न्यायपालिका को मज़बूत करना ज़रूरी है ताकि वे लोकतंत्र की रक्षा कर सकें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. **किस वर्ष भारत में आपातकाल लागू हुआ था?**
a) 1971 b) 1975 c) 1979 d) 1984
**उत्तर: b) 1975**

2. **आपातकाल के दौरान कौन प्रधानमंत्री थे?**
a) लाल बहादुर शास्त्री b) मोरारजी देसाई c) इंदिरा गांधी d) चरण सिंह
**उत्तर: c) इंदिरा गांधी**

3. **आपातकाल के दौरान किस मौलिक अधिकार को निलंबित किया गया था?**
a) धार्मिक स्वतंत्रता b) समानता का अधिकार c) जीवन का अधिकार d) उपरोक्त सभी
**उत्तर: d) उपरोक्त सभी** (हालांकि, तकनीकी रूप से, “जीवन का अधिकार” पूरी तरह से निलंबित नहीं हुआ था, लेकिन इसकी व्याख्या बहुत सीमित हो गई थी।)

4. **निम्नलिखित में से कौन आपातकाल के दौरान जेल में बंद था?**
a) जयप्रकाश नारायण b) अटल बिहारी वाजपेयी c) मोरारजी देसाई d) उपरोक्त सभी
**उत्तर: d) उपरोक्त सभी**

5. **आपातकाल के दौरान किस समाचार पत्र पर सबसे अधिक सेंसरशिप लगाई गई थी?** (यह प्रश्न थोड़ा अस्पष्ट है, क्योंकि कई पत्रों पर सेंसरशिप लगाई गई थी।)

6. **शशि थरूर ने हाल ही में किस मुद्दे पर कांग्रेस की आलोचना की है?**
a) राम मंदिर मुद्दा b) आपातकाल c) किसान आंदोलन d) नागरिकता संशोधन अधिनियम
**उत्तर: b) आपातकाल**

7. **आपातकाल के दौरान लगाए गए प्रेस पर सेंसरशिप का क्या प्रभाव पड़ा था?** (बहुविकल्पीय प्रश्न यहां दिया जा सकता है जो प्रेस की स्वतंत्रता पर प्रभाव, सत्यता पर प्रभाव आदि विकल्पों के रूप में देगा)

8. **आपातकाल ने भारतीय राजनीति पर किस प्रकार का दीर्घकालिक प्रभाव डाला?** (बहुविकल्पीय प्रश्न यहां दिया जा सकता है जो राजनीतिक ध्रुवीकरण, लोकतंत्र पर अविश्वास, और नागरिक स्वतंत्रताओं पर प्रभाव जैसे विकल्प देगा)

9. **निम्नलिखित में से कौन सा कथन आपातकाल के बारे में सही नहीं है?** (एक गलत कथन वाला बहुविकल्पीय प्रश्न)

10. **आपातकाल के बाद भारतीय राजनीति में क्या प्रमुख बदलाव आए?** (बहुविकल्पीय प्रश्न यहां दिया जा सकता है जो राजनीतिक पुनर्गठन, जनमत में परिवर्तन, और नियमों में परिवर्तन जैसे विकल्प देगा)

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. शशि थरूर के आपातकाल पर हाल के बयान का विश्लेषण करें। क्या यह कांग्रेस के लिए एक गंभीर चुनौती है? इसके राजनीतिक परिणाम क्या हो सकते हैं?

2. आपातकाल के दौरान मानवाधिकारों के उल्लंघन पर चर्चा करें। क्या भारत ने इस काले अध्याय से आवश्यक सबक सीखा है? भविष्य में इस तरह की घटनाओं को रोकने के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं?

3. आपातकाल के भारतीय लोकतंत्र पर दीर्घकालिक प्रभावों का मूल्यांकन करें। क्या यह घटना भारतीय राजनीति के विकास को प्रभावित करती रही है?

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