वैश्विक अस्थिरता की आहट: अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध और पीएम मोदी का कूटनीतिक संदेश
चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल के वर्षों में, वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य तीव्र बदलावों का गवाह रहा है। प्रमुख शक्तियों के बीच व्यापारिक प्रतिद्वंद्विता, आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान और क्षेत्रीय संघर्षों ने एक अनिश्चित और अस्थिर माहौल को जन्म दिया है। इस पृष्ठभूमि में, भारत के प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी का हालिया बयान, जिसमें उन्होंने “वैश्विक अस्थिरता के माहौल” का उल्लेख किया है, विशेष रूप से महत्वपूर्ण हो जाता है। यह बयान विशेष रूप से अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापारिक गतिरोध के संदर्भ में आया है, जिसने दुनिया भर के देशों की अर्थव्यवस्थाओं और कूटनीतिक संबंधों को प्रभावित किया है। यह लेख इस घटनाक्रम की गहराई से पड़ताल करेगा, इसके पीछे के कारणों, भारत पर इसके प्रभाव और प्रधान मंत्री के संदेश के निहितार्थों का विश्लेषण करेगा।
वैश्विक अस्थिरता: एक बढ़ता हुआ यथार्थ (Global Instability: A Growing Reality)
प्रधान मंत्री मोदी का “वैश्विक अस्थिरता” का उल्लेख कोई अतिशयोक्ति नहीं है, बल्कि एक कड़वी सच्चाई है। विभिन्न कारक इस अस्थिरता में योगदान कर रहे हैं:
- भू-राजनीतिक तनाव: प्रमुख विश्व शक्तियों के बीच बढ़ते तनाव, जैसे कि अमेरिका और चीन के बीच व्यापार युद्ध, क्षेत्रीय संघर्षों को बढ़ावा देना और अंतर्राष्ट्रीय संस्थानों की प्रभावशीलता में कमी, वैश्विक स्थिरता को चुनौती दे रहे हैं।
- आर्थिक अनिश्चितता: मुद्रास्फीति, बढ़ती ब्याज दरें, विकसित देशों में मंदी की आशंका और विकासशील देशों पर कर्ज का बोझ, वैश्विक आर्थिक परिदृश्य को अनिश्चित बना रहा है।
- आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधान: कोविड-19 महामारी, यूक्रेन युद्ध और भू-राजनीतिक तनावों ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को अभूतपूर्व रूप से बाधित किया है, जिससे वस्तुओं की कमी और कीमतों में वृद्धि हुई है।
- जलवायु परिवर्तन: चरम मौसमी घटनाएं, प्राकृतिक आपदाएं और संसाधनों पर बढ़ता दबाव भी सामाजिक और राजनीतिक अस्थिरता के कारक बन रहे हैं।
- राष्ट्रवाद का उदय: कई देशों में संरक्षणवादी नीतियों और “पहले अपना देश” (America First, China First) जैसे दृष्टिकोणों का उदय वैश्विक सहयोग को कमजोर कर रहा है।
अमेरिका-चीन व्यापार गतिरोध: एक शक्तिशाली उत्प्रेरक (The US-China Trade Stalemate: A Potent Catalyst)
वैश्विक अस्थिरता के इस माहौल में, अमेरिका और चीन के बीच व्यापार गतिरोध एक प्रमुख उत्प्रेरक के रूप में कार्य कर रहा है। यह गतिरोध केवल दो देशों के बीच आर्थिक लेन-देन का मामला नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन, प्रौद्योगिकी प्रभुत्व और अंतर्राष्ट्रीय नियमों पर आधारित व्यवस्था की दिशा को भी प्रभावित कर रहा है।
क्या है व्यापार गतिरोध? (What is the Trade Stalemate?)
यह गतिरोध कई वर्षों से चल रहा है, लेकिन हाल के वर्षों में इसमें और तीव्रता आई है। मुख्य मुद्दे इस प्रकार हैं:
- व्यापार घाटा: अमेरिका का चीन के साथ विशाल व्यापार घाटा एक प्रमुख शिकायत रही है। अमेरिका का मानना है कि चीन अनुचित व्यापार प्रथाओं का उपयोग करता है, जैसे कि मुद्रा में हेरफेर, बौद्धिक संपदा की चोरी और गैर-टैरिफ बाधाएं, जो अमेरिकी निर्यातकों को नुकसान पहुंचाती हैं।
- प्रौद्योगिकी और बौद्धिक संपदा: अमेरिका चीन पर अमेरिकी प्रौद्योगिकी और बौद्धिक संपदा की जबरन हस्तांतरण का आरोप लगाता है। यह चिंता विशेष रूप से 5G, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और सेमीकंडक्टर जैसी महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकियों के क्षेत्र में है।
- सुरक्षा चिंताएँ: प्रौद्योगिकी से संबंधित विवादों में राष्ट्रीय सुरक्षा संबंधी चिंताएँ भी जुड़ जाती हैं। अमेरिका का मानना है कि कुछ चीनी तकनीकी कंपनियाँ चीनी सरकार के लिए जासूसी कर सकती हैं।
- टैरिफ और प्रति-टैरिफ: इस विवाद के जवाब में, दोनों देशों ने एक-दूसरे के उत्पादों पर भारी टैरिफ लगाए हैं, जिससे द्विपक्षीय व्यापार की लागत बढ़ गई है और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को बाधित किया है।
इसके वैश्विक प्रभाव (Its Global Repercussions)
अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का प्रभाव केवल इन दो देशों तक सीमित नहीं है। इसके दूरगामी परिणाम हुए हैं:
- आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्निर्माण: कंपनियों को अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं का पुनर्निर्माण करने के लिए मजबूर होना पड़ा है, जिससे उत्पादन लागत बढ़ गई है और कुछ मामलों में उत्पादन में देरी हुई है। कई कंपनियाँ चीन से उत्पादन को अन्य देशों, जैसे वियतनाम, भारत या मेक्सिको में स्थानांतरित कर रही हैं।
- वैश्विक आर्थिक विकास पर प्रभाव: व्यापार युद्धों और अनिश्चितता ने वैश्विक आर्थिक विकास को धीमा कर दिया है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) और विश्व बैंक (World Bank) जैसे संस्थानों ने बार-बार वैश्विक विकास के लिए जोखिमों की चेतावनी दी है।
- बाजारों में अस्थिरता: टैरिफ की घोषणाएं और व्यापार वार्ता में अनिश्चितता ने शेयर बाजारों और मुद्रा बाजारों में अस्थिरता पैदा की है।
- अन्य देशों पर दबाव: छोटे और मध्यम आकार के देश अक्सर इन दो महाशक्तियों के बीच चयन करने या दोनों तरफ से दबाव का सामना करने के लिए मजबूर होते हैं।
प्रधान मंत्री मोदी का संदेश: “वैश्विक अस्थिरता” और भारत की स्थिति (PM Modi’s Message: “Global Instability” and India’s Position)
जब प्रधान मंत्री मोदी ने “वैश्विक अस्थिरता के माहौल” का उल्लेख किया, तो यह एक सतर्क और दूरदर्शी बयान था। इस बयान के कई गहरे निहितार्थ हैं:
“हम एक ऐसे युग में जी रहे हैं जहां वैश्विक अस्थिरता के माहौल में, कूटनीतिक समझ और आर्थिक सहयोग सर्वोपरि है। भारत, इन अनिश्चितताओं के बीच, स्थिरता और विकास का एक महत्वपूर्ण केंद्र बनना चाहता है।”
संदेश के मुख्य बिंदु (Key Points of the Message)
- परिस्थिति की स्वीकृति: यह स्वीकार करना कि दुनिया एक नाजुक दौर से गुजर रही है, समस्या का पहला समाधान है। प्रधान मंत्री ने वैश्विक नेताओं से इस वास्तविकता को पहचानने और तदनुसार कार्य करने का आह्वान किया।
- कूटनीतिक समाधान पर जोर: उन्होंने व्यापार विवादों और भू-राजनीतिक तनावों को सुलझाने के लिए बातचीत, कूटनीति और संवाद के महत्व पर जोर दिया। यह एक संकेत है कि भारत टकराव के बजाय सहयोग का पक्षधर है।
- स्थिरता का आह्वान: अस्थिरता के माहौल में, स्थिरता एक मूल्यवान वस्तु बन जाती है। भारत एक ऐसा देश है जो अपनी विशाल अर्थव्यवस्था, लोकतांत्रिक मूल्यों और रणनीतिक स्थिति के कारण वैश्विक स्थिरता में योगदान कर सकता है।
- आर्थिक अवसरों का दोहन: जबकि अन्य देश संघर्ष कर रहे हैं, यह भारत के लिए एक अवसर प्रस्तुत करता है। “चीन प्लस वन” (China Plus One) रणनीति, जिसमें कंपनियाँ अपने उत्पादन को चीन के अलावा किसी अन्य देश में स्थानांतरित करती हैं, भारत के लिए एक बड़ा अवसर है। प्रधान मंत्री का संदेश इस अवसर का लाभ उठाने के लिए भारत की तत्परता को दर्शाता है।
- आत्मनिर्भर भारत (Atmanirbhar Bharat): वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच, आत्मनिर्भरता का महत्व और बढ़ जाता है। भारत अपनी घरेलू क्षमताओं को मजबूत करने, विनिर्माण को बढ़ावा देने और आयात पर निर्भरता कम करने के लिए “आत्मनिर्भर भारत” पहल को आगे बढ़ा रहा है।
भारत पर प्रभाव और अवसर (Impact on India and Opportunities)
अमेरिका-चीन व्यापार गतिरोध और बढ़ती वैश्विक अस्थिरता भारत के लिए मिश्रित अवसर और चुनौतियां प्रस्तुत करती है:
चुनौतियाँ (Challenges)
- वैश्विक मंदी का खतरा: यदि प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में मंदी आती है, तो भारत के निर्यात और आर्थिक विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- कच्चे तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव: भू-राजनीतिक तनाव अक्सर कच्चे तेल की कीमतों को प्रभावित करते हैं, जो भारत जैसे आयात-निर्भर देश के लिए चिंता का विषय है।
- आपूर्ति श्रृंखलाओं पर निर्भरता: कुछ क्षेत्रों में, भारत अभी भी महत्वपूर्ण घटकों के लिए आयात पर निर्भर है, जिससे यह वैश्विक व्यवधानों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।
- संरक्षणवाद का बढ़ना: यदि अन्य देश संरक्षणवादी नीतियां अपनाते हैं, तो भारतीय निर्यातकों के लिए बाजार पहुंच मुश्किल हो सकती है।
अवसर (Opportunities)
- “चीन प्लस वन” रणनीति: जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, यह भारत के लिए विदेशी निवेश आकर्षित करने और विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने का एक अनूठा अवसर है। कंपनियाँ जोखिमों को कम करने के लिए अपने उत्पादन ठिकानों में विविधता लाना चाहती हैं, और भारत इसके लिए एक आकर्षक गंतव्य है।
- निर्यात में वृद्धि: वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधानों के कारण, भारत अन्य देशों के लिए एक वैकल्पिक आपूर्ति स्रोत के रूप में उभर सकता है।
- डिजिटल अर्थव्यवस्था का विकास: वैश्विक व्यवधानों ने डिजिटल समाधानों और ई-कॉमर्स के महत्व को और बढ़ा दिया है, जो भारत की तेजी से बढ़ती डिजिटल अर्थव्यवस्था के लिए एक सकारात्मक संकेत है।
- रणनीतिक साझेदारी: अस्थिरता के माहौल में, देश अपने रणनीतिक सहयोगियों की तलाश करते हैं। भारत की ‘एक्ट ईस्ट’ (Act East), ‘कनेक्ट सेंट्रल एशिया’ (Connect Central Asia) और इंडो-पैसिफिक (Indo-Pacific) जैसी पहलें इसे विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत भागीदार के रूप में स्थापित करने में मदद करती हैं।
- आत्मनिर्भर भारत को बल: स्वदेशी उत्पादन, अनुसंधान और विकास (R&D) पर जोर देने से भारत की आर्थिक संप्रभुता और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में लचीलापन बढ़ेगा।
भारत की विदेश नीति और कूटनीति (India’s Foreign Policy and Diplomacy)
प्रधान मंत्री मोदी का संदेश भारत की विदेश नीति के मुख्य सिद्धांतों को रेखांकित करता है:
- रणनीतिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy): भारत किसी एक शक्ति गुट का हिस्सा नहीं है, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेने में स्वतंत्र है। यह दृष्टिकोण इसे बदलते वैश्विक परिदृश्य में लचीला बनाता है।
- बहुध्रुवीय विश्व (Multipolar World): भारत एक ऐसी दुनिया का पक्षधर है जहाँ शक्ति का समान वितरण हो, न कि केवल कुछ महाशक्तियों का वर्चस्व।
- राष्ट्र-केंद्रित दृष्टिकोण (Nation-Centric Approach): भारत अपनी विदेश नीति को अपने नागरिकों के कल्याण और राष्ट्रीय विकास को प्राथमिकता देते हुए आकार देता है।
- सामूहिक कार्रवाई (Collective Action): वैश्विक समस्याओं के समाधान के लिए सामूहिक कार्रवाई और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग पर जोर।
निष्कर्ष: एक सतर्क आशावाद (Conclusion: A Cautious Optimism)
वैश्विक अस्थिरता का माहौल निश्चित रूप से चिंता का विषय है, लेकिन यह भारत के लिए अपनी कूटनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक स्थिति को मजबूत करने के अवसर भी प्रदान करता है। प्रधान मंत्री मोदी का संदेश इस बदलते परिदृश्य के प्रति भारत की जागरूकता और प्रतिक्रिया को दर्शाता है। अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध जैसी प्रमुख घटनाएँ वैश्विक शक्ति समीकरणों को पुन: परिभाषित कर रही हैं, और भारत को इन बदलावों को चतुराई से नेविगेट करना होगा।
भारत को अपनी घरेलू अर्थव्यवस्था को मजबूत करने, विनिर्माण क्षेत्र को बढ़ावा देने, नवाचार को प्रोत्साहित करने और अपने रणनीतिक साझेदारी को गहरा करने पर ध्यान केंद्रित करना जारी रखना चाहिए। “आत्मनिर्भर भारत” और “मेक इन इंडिया” (Make in India) जैसी पहलें वैश्विक अनिश्चितताओं के बीच भारत को एक मजबूत और अधिक लचीला राष्ट्र बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम हैं। इस प्रकार, वैश्विक अस्थिरता की आहट के बीच, भारत के पास न केवल इन चुनौतियों का सामना करने, बल्कि वैश्विक व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण और सकारात्मक भूमिका निभाने का भी अवसर है।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. **प्रश्न:** वैश्विक अस्थिरता में योगदान देने वाले कारकों में से कौन सा एक प्रमुख आर्थिक कारक है?
(a) जलवायु परिवर्तन
(b) राष्ट्रवाद का उदय
(c) बढ़ती ब्याज दरें और मंदी की आशंका
(d) क्षेत्रीय संघर्ष
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** बढ़ती ब्याज दरें और विकसित अर्थव्यवस्थाओं में मंदी की आशंका वैश्विक आर्थिक अस्थिरता को बढ़ाती है, जिससे निवेश और विकास प्रभावित होता है।
2. **प्रश्न:** अमेरिका-चीन व्यापार युद्ध का एक प्रमुख कारण क्या रहा है?
(a) चीन द्वारा अमेरिका के साथ विशाल व्यापार अधिशेष
(b) अमेरिका द्वारा चीन पर बौद्धिक संपदा की चोरी का आरोप
(c) दोनों देशों के बीच सांस्कृतिक मतभेद
(d) चीन द्वारा अमेरिकी डॉलर के मुकाबले अपनी मुद्रा का अवमूल्यन
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** अमेरिका का मानना है कि चीन अमेरिकी प्रौद्योगिकी और बौद्धिक संपदा की जबरन हस्तांतरण और चोरी करता है, जो व्यापार युद्ध का एक मुख्य कारण है।
3. **प्रश्न:** “चीन प्लस वन” (China Plus One) रणनीति का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
(a) चीन के साथ व्यापार बढ़ाना
(b) कंपनियों द्वारा अपने उत्पादन ठिकानों में विविधता लाना
(c) चीन में निवेश को बढ़ावा देना
(d) चीन पर टैरिफ बढ़ाना
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** “चीन प्लस वन” रणनीति का उद्देश्य कंपनियों को अपने आपूर्ति श्रृंखलाओं के जोखिम को कम करने के लिए चीन के अलावा किसी अन्य देश में भी उत्पादन सुविधाएँ स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करना है।
4. **प्रश्न:** प्रधान मंत्री मोदी के “वैश्विक अस्थिरता” के बयान का संदर्भ अक्सर किस प्रमुख द्विपक्षीय व्यापार गतिरोध से जोड़ा जाता है?
(a) भारत-यूरोपीय संघ व्यापार
(b) अमेरिका-चीन व्यापार
(c) भारत-जापान व्यापार
(d) अमेरिका-यूरोपीय संघ व्यापार
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** प्रधान मंत्री मोदी का बयान मुख्य रूप से अमेरिका और चीन के बीच चल रहे व्यापारिक तनाव के संदर्भ में आया है।
5. **प्रश्न:** भारत की “आत्मनिर्भर भारत” पहल का उद्देश्य क्या है?
(a) आयात को पूरी तरह से बंद करना
(b) घरेलू क्षमताओं को मजबूत करना और आयात पर निर्भरता कम करना
(c) केवल निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना
(d) विदेशी कंपनियों को भारत से बाहर निकालना
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** “आत्मनिर्भर भारत” का लक्ष्य भारत को अपनी आर्थिक और औद्योगिक क्षमताओं में आत्मनिर्भर बनाना, आयात पर निर्भरता कम करना और घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना है।
6. **प्रश्न:** वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में व्यवधानों का एक प्रमुख कारण कौन सी घटना रही है?
(a) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का गठन
(b) कोविड-19 महामारी और यूक्रेन युद्ध
(c) विश्व व्यापार संगठन (WTO) की स्थापना
(d) ब्रिक्स (BRICS) देशों का उदय
**उत्तर:** (b)
**व्याख्या:** कोविड-19 महामारी और यूक्रेन युद्ध ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को अभूतपूर्व रूप से बाधित किया है।
7. **प्रश्न:** प्रधान मंत्री मोदी के कूटनीतिक संदेश का मुख्य जोर किस पर है?
(a) सैन्य शक्ति का प्रदर्शन
(b) संरक्षणवादी नीतियों को अपनाना
(c) बातचीत, कूटनीति और सहयोग
(d) अलगाववादी दृष्टिकोण
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** प्रधान मंत्री मोदी ने वैश्विक अनिश्चितताओं के समाधान के लिए बातचीत, कूटनीति और सहयोग के महत्व पर जोर दिया है।
8. **प्रश्न:** भारत की विदेश नीति का एक मुख्य सिद्धांत क्या है?
(a) किसी भी विश्व शक्ति गुट का पूर्ण समर्थन
(b) पूर्ण आर्थिक अलगाव
(c) बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थन
(d) केवल द्विपक्षीय संबंधों पर ध्यान केंद्रित करना
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** भारत एक ऐसी बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का पक्षधर है जहाँ शक्ति का समान वितरण हो, और वह अपनी रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखता है।
9. **प्रश्न:** वैश्विक अस्थिरता के बीच, भारत के लिए कौन सा क्षेत्र एक महत्वपूर्ण अवसर प्रस्तुत करता है?
(a) केवल सेवा क्षेत्र
(b) केवल कृषि क्षेत्र
(c) विनिर्माण और प्रौद्योगिकी
(d) केवल पर्यटन क्षेत्र
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** “चीन प्लस वन” रणनीति के कारण, विनिर्माण और प्रौद्योगिकी क्षेत्रों में भारत के लिए निवेश आकर्षित करने और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी बनने का अवसर है।
10. **प्रश्न:** वैश्विक व्यापार में राष्ट्रवाद के उदय का क्या परिणाम हो सकता है?
(a) वैश्विक सहयोग में वृद्धि
(b) संरक्षणवादी नीतियों में कमी
(c) संरक्षणवादी नीतियों का बढ़ना और वैश्विक सहयोग का कमजोर होना
(d) मुक्त व्यापार समझौतों में वृद्धि
**उत्तर:** (c)
**व्याख्या:** राष्ट्रवाद का उदय अक्सर संरक्षणवादी नीतियों को बढ़ावा देता है, जैसे कि आयात पर टैरिफ बढ़ाना, जो वैश्विक व्यापार को बाधित करता है और सहयोग को कमजोर करता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. प्रश्न: अमेरिका-चीन व्यापार गतिरोध के वैश्विक अर्थव्यवस्था, विशेष रूप से आपूर्ति श्रृंखलाओं और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर पड़ने वाले प्रभावों का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। इस संदर्भ में, भारत के लिए “चीन प्लस वन” रणनीति किस प्रकार एक अवसर प्रस्तुत करती है, इस पर विस्तार से चर्चा करें।
(Evaluate the impacts of the US-China trade stalemate on the global economy, particularly on supply chains and international trade. In this context, discuss in detail how the “China Plus One” strategy presents an opportunity for India.)
2. प्रश्न: प्रधान मंत्री मोदी द्वारा “वैश्विक अस्थिरता के माहौल” का उल्लेख, समकालीन भू-राजनीतिक और आर्थिक प्रवृत्तियों के प्रकाश में, भारत की विदेश नीति और रणनीतिक स्वायत्तता की भूमिका को कैसे रेखांकित करता है?
(In light of contemporary geopolitical and economic trends, how does the Prime Minister’s mention of an “atmosphere of global instability” highlight India’s foreign policy and the role of its strategic autonomy?)
3. प्रश्न: बढ़ती वैश्विक अनिश्चितताओं और प्रमुख शक्तियों के बीच बढ़ते तनाव के युग में, भारत की “आत्मनिर्भर भारत” पहल के महत्व और इसके संभावित लाभों तथा चुनौतियों का विश्लेषण करें।
(Analyze the significance, potential benefits, and challenges of India’s “Atmanirbhar Bharat” initiative in an era of increasing global uncertainties and rising tensions between major powers.)