विवाह

विवाह

 ( Marriage )

विवाह के अलग – अलग समाजों में अलग – अलग उददेश्य हैं : जैसे – ईसाई धर्म में प्रमुख उद्देश्य यौन सन्तुष्टि है तो हिन्दू समाज में धर्म की रक्षा करना या धार्मिक संस्कार करना , मुस्लिम समाजों में विवाह का उद्देश्य वैध सन्तानोत्पत्ति को जन्म देना वहीं जनजातीय उद्देश्य साथ – साथ रहने का सामाजिक समझौता है । परन्तु समाजशास्त्रीय उद्देश्य स्त्री और पुरुष को एक प्रस्थिति देकर उसके अनुसार , भूमिकाओं का निर्वहन करना है । विवाह स्त्री – पुरुष के बीच मिलन की एक व्यवस्था है । यह मिलन सामाजिक स्वीकृति पर आधारित है , जो विविध संस्कारों एवं समारोहों द्वारा सम्पन्न होता है । इस व्यवस्था में संतुलन के लिए पति व पत्नी को अपने जीवन में अनेक भूमिकाओं ( कार्यों ) का निर्वाह करना होता है । कुछ प्रमुख परिभाषाओं के माध्यम से इसके अर्थ को और अधिक स्पष्ट रूप में जाना जा सकता है , विवाह की परिभाषाएँ :

 बोगार्ड्स ” विवाह स्त्री और पुरुष के पारिवारिक जीवन में प्रवेश कराने की संस्था है । “

वेस्टरमार्क ( E . Westermarck ) के शब्दों में , “ विवाह एक या अधिक पुरुषों और स्त्रियों का सम्बन्ध है जो प्रथा या कानून द्वारा मान्य होते हैं तथा इस संगठन में आनेवाले दोनों पक्षों तथा उनसे उत्पन्न बच्चों के अधिकार एवं कर्तव्यों का समावेश होता है । ”  इस परिभाषा ने चार तथ्यों को उजागर किया है – ( क ) विवाह स्त्री और पुरुष के बीच का सम्बन्ध है , ( ख ) इस सम्बन्ध को प्रथा या कानून द्वारा मान्यता प्रदान की जाती है , ( ग ) विवाह सम्बन्ध एक स्त्री और एक पुरुष के बीच हो सकता है या एक पुरुष का कई स्त्रियों से या एक स्त्री का कई पुरुषों से या कई स्त्रियों का कई पुरुषों से हो सकता है , और ( घ ) पति – पत्नी एवं बच्चों के बीच अधिकार और कर्तव्य के सम्बन्ध होते हैं ।

आर० लावी ( R . Lowie ) के अनुसार , “ विवाह उन स्वीकृत संगठनों को प्रकट करता है जो यौन सम्बन्धों की सन्तुष्टि के पश्चात भी अस्तित्व में रहता है तथा बाद में पारिवारिक जीवन की आधारशिला के रूप में आता है । ”  इस परिभाषा से चार बातों का पता चलता है — ( क ) विवाह एक संगठन है जिसमें स्त्री – पुरुष पति – पत्नी के रूप में मिलते हैं , ( ख ) यह संगठन समाज द्वारा स्वीकृत होता है , ( ग ) यह यौन सन्तुष्टि का जायज माध्यम है , और ( घ ) यह पारिवारिक जीवन में प्रवेश का आधार है ।

 गिलिन एवं गिलिन ( Gillin and Gillin ) ने लिखा है , “ विवाह एक प्रजननमूलक परिवार की संस्थापना की समाज द्वारा ( मान्यता प्राप्त ) विधि है । ”  इस परिभाषा में तीन बातों का उल्लेख है — ( क ) विवाह स्त्री – पुरुष को मिलाने की एक विधि है ,

मजूमदार एवं मदान ” विवाह को कानूनी , धार्मिक तथा सामाजिक स्वीकृति प्राप्त होती है . इसके द्वारा दो विभिन्न लिग के व्यक्तियों को यौन सम्बन्ध स्थापित करने की मान्यता प्रदान की जाती है ।

” जॉनसन ” विवाह एक स्थायी सम्बन्ध है जिसमें एक पुरुष और एक स्त्री समुदाय में अपनी प्रतिष्ठा को खोए बिना सन्तान उत्पन्न करने की सामाजिक स्वीकृति प्राप्त करते हैं । “

 मरडॉक ” एक साथ रहते हुए नियमित यौन सम्बन्ध और आर्थिक सहयोग रखने को विवाह कहते हैं । “

 गिलिन एवं गिलिन ” विवाह एक प्रजनन मूलक परिवार की स्थापना के लिए समाज स्वीकत माध्यम है । “

 मैलिनोवस्की ” विवाह को एक संविदा के रूप में परिभाषित किया है । “

लोवी ” विवाह को जायज साथियों की अपेक्षा पक्का सम्बन्ध कहा है । ” ” विवाह ही नातेदारी व्यवस्था का फाउण्टेन पेन हेड है । “विवाह केवल यौन सम्बन्ध बनाने को नहीं बल्कि पितृत्व बनने की लाइसेन्सिंग व्यवस्था है ।

लसी मेयर “ विवाह स्त्री – पुरुष का एक ऐसा योग है जिसमें स्त्री से जन्मी सन्तान माता – पिता की वैध सन्तान मानी जाती है । ” ” विवाह बच्चों की उत्पत्ति और देखभाल हेतु इकरार नामा है । “

 आगेंस्ट एण्ड ग्रोवजी ” विवाह संगी बनकर रहने की सार्वजनिक स्वीकृति तथा कानूनी पंजीकरण है । ” रिवर्स ” जिन साधनों द्वारा मानव समाज यौन सम्बन्धों का नियमन करता है , उन्हें विवाह की संज्ञा दी जा सकती है । “

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 विवाह की विशेषताएँ :

 

-सामाजिक सुरक्षा

-संस्कृति का एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी में हस्तान्तरण

– वैध सन्तानोत्पत्ति

– . माता – पिता एवं बच्चों में नवीन अधिकारों , दायित्वों एवं भूमिकाओं को जन्म देना

 -. यह धार्मिक , सामाजिक एवं सांस्कृतिक उद्देश्यों की पूर्ति करता है । वेस्टरमार्क ने विवाह को एक सामाजिक संस्था के      अतिरिक्त एक आर्थिक संस्था भी माना है ।

– विवाह दो विषमलिगियों का सम्बन्ध है ।

.- विवाह एक सार्वभौमिक सामाजिक संस्था है ।

– इसके माध्यम से विवाह सम्बन्धों का नियमन करता है ।

-. बच्चों का पालन – पोषण एवं समाजीकरण

 – आर्थिक सहयोग

 – मानसिक सुरक्षा

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 विवाह के उद्देश

 मरडॉक इन्होंने 250 समाजों का तुलनात्मक अध्ययन करके विवाह के तीन उद्देश्य बताए हैं

 ( i) यौन सन्तुष्टि

 ( ii ) आर्थिक सहयोग

 ( iii ) बच्चों का पालन – पोषण एवं समाजीकरण •

 गिलिन एवं गिलिन इन्होंने विवाह के पाँच उद्देश्य बताए हैं ।

( i ) यौन सम्बन्धों का नियमन

( ii ) सन्तानोत्पत्ति

( iii ) आर्थिक सहयोग

 ( iv ) भावनात्मक सम्बन्ध

 ( v ) वंश एवं नातेदारी की स्थापना

मैलिनोवस्की इन्होंने विवाह के तीन उद्देश्य बताए हैं

 ( i ) प्राणिशास्त्रीय उद्देश्य

( ii ) सांस्कृतिक उद्देश्य

 ( iii ) मनोवैज्ञानिक उद्देश्य रॉबिन फॉक्स इन्होंने भी निम्न तीन उद्देश्य बताए हैं

( i v) वैध यौन सन्तुष्टि

( v ) संस्कृति की रक्षा

 ( vi ) भावनात्मक सन्तुष्टि

 

 

 मजूमदार एवं मदान इन्होंने निम्न चार उद्देश्य बताए हैं ।

 ( 1 ) घर की स्थापना  

( ii ) लैंगिक सम्बन्धों में प्रवेश

( iii ) प्रजनन

( iv ) बच्चों का पालन – पोषण

 मजूमदार एवं मदान ने उद्देश्यों की चर्चा करते हुए लिखा है कि ” विवाह से वैयक्तिक स्तर पर या शारीरिक स्तर पर यौन सन्तुष्टि और मनोवैज्ञानिक स्तर पर सन्तान प्राप्त करना और सामाजिक स्तर पर पद की प्राप्ति होती है । “

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