Get free Notes

सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Click Here

वस्तुनिष्ठता प्राप्ति के साधन

वस्तुनिष्ठता प्राप्ति के साधन

( Means for achieving Objectivity )

 

सामाजिक शोध का वास्तविक उद्देश्य वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति है । अनेक ऐसी समस्याएँ आती हैं , जो वस्तुनिष्ठ अध्ययन के मार्ग में बाधा उपस्थित करती हैं । यहाँ मौलिक प्रश्न यह है कि सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति के मार्ग में कौन – सी मौलिक बाधाएँ हैं ? इन बाधाओं को कैसे प्राप्त किया जा सकता है ? इन बाधाओं को दूर करना ही वस्तुनिष्ठता के मार्ग को प्रशस्त करना है । निम्न साधनों के द्वारा सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता प्राप्त की जा सकती है

 

प्रयोगसिद्ध प्रणालियों का उपयोग ( Use of empirical methods ) – सामाजिक शोध को वस्तुनिष्ठ बनाने का सबसे अच्छा और सरल उपाय यह है कि इसमें वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रयोग तो किया जाय , किन्तु उन्हीं वैज्ञानिक पद्धतियों को अपनाया जाय , जो प्रयोगसिद्ध प्रणालियों का प्रयोग करके अनुसंधानकर्ता अपने को व्यक्तिगत विचारों । और भावनाओं के पूर्वाग्रह से रोक सकता है । प्रयोगसिद्ध प्रणालियाँ वे हैं , जिनकी सहायता से गणनात्मक ( Quantitative ) अध्ययन किया जा सके और उनकी समय पर । परीक्षा भी की जा सके । प्रयोगसिद्ध प्रणालियाँ शोधकर्ता को ऐसे आधार प्रदान करती हैं , जिनके द्वारा शोधकर्ता एक सीमा में रहकर शोध करता है । प्रणालियों की सहायता से जो तथ्य प्राप्त होंगे , वे सही तो होंगे ही , इसके साथ ही उनका परीक्षण और सत्यापन भी किया जा सकेगा । इस प्रकार , सामाजिक शोध में प्रयोग शिक्षा पद्धति का प्रयोग करके अध्ययनकर्ता वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति कर सकता है ।

MUST READ THIS

MUST READ THIS

पारिभाषिक शब्दों और अवधारणाओं का प्रमाणीकरण ( Standardization ofterms and concepts ) – भाषा की भिन्नता के कारण शब्दों और अवधारणाओं में भी मिलता आ जाती है । इस भिन्नता के कारण तथ्यपूर्ण निष्कर्ष निकालने में कठिनाई होती है । इस कठिनाई को समाप्त करने के लिए आवश्यक यह है कि सामाजिक शोध में प्रयोग किए जाने वाले शब्द और अवधारणाओं का एक मानक स्तर तैयार किया जाय । इससे शब्दों और अवधारणाओं में व्याप्त असमानता समाप्त होगी और जो भी निष्कर्ष निकाले जायेंगे , उन्हें सार्वभौमिक रूप से स्वीकार किया जायेगा ।

 

यांत्रिक साधनों का प्रयोग ( Use of mechanical devices ) – सामाजिक घटनाओं की प्रकृति गुणात्मक होती है और इसका अध्ययन करने के लिए जिन पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है , वे वैज्ञानिक तथा यांत्रिक नहीं होती हैं । यही कारण है कि वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में बाधा उपस्थित होती है । इस बाधा को दूर करने के लिए आवश्यक है कि यांत्रिक साधनों का प्रयोग किया जाय । यांत्रिक साधनों में कम्प्यूटर , टेपरिकार्डर , फिल्म , कैमरा , संगणक आदि को सम्मिलित किया जाता है । इन साधनों की सहायता से सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता प्राप्त करने में मदद मिलती है ।

 

दैव निदर्शन का प्रयोग ( Use of random sample ) – शोध इकाइयों ( Research Units ) के चुनाव में पक्षपात के कारण भी सामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता की प्राप्ति में बाधा उपस्थित होती है । इस समस्या को समाप्त करने के लिए दैव निदर्शन का प्रयोग किया जाना चाहिए । दैव निदर्शन का प्रयोग करने से शोधकर्ता व्यक्तिगत पक्षपात और पूर्वाग्रह से बच जायेगा । इस प्रकार , वह जो शोध कार्य सम्पादित करेगा , उसमें वस्तुनिष्ठता रहेगी और इनकी जाँच तथा सत्यापन किया जा सकेगा ।

 

समूह शोध ( Group research ) – एक व्यक्ति के द्वारा जो शोध किए जाते हैं , उनमें पक्षपात की सम्भावना हो सकती है । एक व्यक्ति के विचार और दृष्टिकोण निष्कर्षों को अपनी ओर मोड़ सकते हैं । इसमें एक व्यक्ति का स्वार्थ भी सम्मिलित हो सकता है । इस प्रकार एक व्यक्ति के द्वारा जिस शोध कार्य का सम्पादन किया जायेगा , उसमें वस्तुनिष्ठता की कमी हो सकती है । इस समस्या के समाधान के लिए यह आवश्यक है कि अनुसंधान का सम्पादन एक व्यक्ति द्वारा न किया जाकर समूह के द्वारा किया जाय । इसमें विभिन्न विद्वानों द्वारा निकाले गये निष्कर्षों की तुलना की जा सकती है , दोषों को निकाला जा सकता है , तथ्यों की पारस्परिक तुलना की जा सकता है , निष्कर्षों की जाँच और उनका सम्पादन किया जा सकता है और इस प्रकारसामाजिक शोध में वस्तुनिष्ठता प्राप्त की जा सकती है ।

 

 अन्तराविज्ञानीय अनुसंधान ( Inter – disciplinary research ) – सामाजिक शोधों में वस्तनिष्ठता की प्राप्ति के लिए अन्तराविज्ञानीय पद्धति का महत्त्व निरन्तर बढ रहा है । सामाजिक घटनाएँ एक – दूसरे से न केवल सम्बद्ध अपितु एक – दूसरे पर आधारित होती हैं । इसीलिए एक का प्रभाव दूसरे पर पड़ता है । इसीलिए किसी घटना के एक कारक पर बल नहीं दिया जाता । अन्तराविज्ञानीय पद्धति के द्वारा विभिन्न क्षेत्रों और पहलओं में प्रशिक्षण प्राप्त व्यक्ति शोध कार्य का सम्पादन करते हैं । और समस्या के विभिन्न पहलुओं का अध्ययन प्रस्तुत करते हैं । इस प्रकार जो निष्कर्ष निकलेंगे , उनमें वस्तुनिष्ठता की पर्याप्त मात्रा होती है ।

 

 प्रश्नावली और अनुसूची का प्रयोग ( Use of questionnaire and schedule ) – सामाजिक शोध की वस्तुनिष्ठता संकलित तथ्यों पर आधारित होती है इसलिए तथ्यों के संकलन को सबसे अधिक महत्त्व प्रदान किया जाना चाहिए साथ ही , ऐसी पद्धतियों की सहायता से तथ्यों को संकलित किया जाना चाहिए , जो पर्याप्त विश्वसनीय हों । प्रश्नावली और अनुसूची सामाजिक अध्ययन में तथ्य संकलन की सर्वोत्तम पद्धतियाँ हैं । इनमें प्रश्न और उन प्रश्नों के उत्तर पर्याप्त ही निश्चित होते हैं । प्रश्न और उत्तर सुव्यवस्थित रूप से लिखे जाने के कारण भी गलतियों की कम सम्भावना रहती है । इस प्रकार अनुसूची और प्रश्नावली का प्रयोग करके सामाजिक अनुसंधान में वस्तुनिष्ठता को प्राप्त किया जा सकता है । माना कि

 

 परीक्षण पद्धति का प्रयोग ( Use of experimental method ) – परीक्षण विज्ञान का मूल आधार है । परीक्षण पद्धति का प्रयोग दो प्रकार के समूहों – परीक्षणात्मक समूह और नियन्त्रित समूह का चुनाव करके किया जाता है । ये दोनों समूह सभी दृष्टियों से समान होते हैं । नियन्त्रित समूह में परिवर्तन लाने का प्रयास नहीं किया जाता है और उसे उसी अवस्था में नियन्त्रित या अपरिवर्तित रखने का प्रयास किया जाता है । इसके साथ ही साथ परीक्षणात्मक समूह का परिवर्तित परिस्थितियों में अध्ययन किया । जाता ह आर उन दोनों समूहों की तुलना की जाती है तथा उन दोनों में अन्तर का जानने का प्रयास किया जाता है । इस प्रकार जो अध्ययन किए जाते है , उनम वस्तुनिष्ठता की मात्रा अधिक होती है ।

 

Leave a Comment