वन कंडीशन: पुतिन का यूक्रेन में शांति के लिए अल्टीमेटम

वन कंडीशन: पुतिन का यूक्रेन में शांति के लिए अल्टीमेटम

चर्चा में क्यों? (Why in News?)

हाल ही में, यूक्रेन युद्ध में एक महत्वपूर्ण मोड़ तब आया जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने शांति वार्ता के लिए अपनी तत्परता व्यक्त की, लेकिन इसके साथ एक बड़ी शर्त रखी। यह घोषणा स्विट्जरलैंड में होने वाले यूक्रेन शांति शिखर सम्मेलन से ठीक पहले हुई, जिसमें रूस को आमंत्रित नहीं किया गया था। पुतिन की यह शर्त, जिसमें मुख्य रूप से यूक्रेन द्वारा रूस के कब्ज़े वाले क्षेत्रों को रूसी हिस्से के रूप में मान्यता देना और नाटो में शामिल न होने की प्रतिबद्धता शामिल है, ने वैश्विक कूटनीति में एक नई बहस छेड़ दी है। यह न केवल युद्ध के भविष्य को प्रभावित करती है, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय कानून, संप्रभुता और सुरक्षा गारंटी के जटिल मुद्दों को भी उजागर करती है। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटना वैश्विक भू-राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और संघर्ष समाधान के एक महत्वपूर्ण केस स्टडी का प्रतिनिधित्व करती है।

पृष्ठभूमि (Background): संघर्ष की जड़ें

रूस-यूक्रेन संघर्ष कोई अचानक भड़की आग नहीं है, बल्कि यह दशकों पुरानी ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और भू-राजनीतिक तनावों का परिणाम है। इसे समझने के लिए हमें इसकी जड़ों को गहराई से खंगालना होगा।

ऐतिहासिक जड़ें: पहचान, साम्राज्य और प्रभाव क्षेत्र

  • कीवन रुस (Kievan Rus’): रूस और यूक्रेन दोनों अपनी ऐतिहासिक जड़ों को कीवन रुस से जोड़ते हैं, जो मध्यकालीन पूर्वी यूरोप का एक शक्तिशाली राज्य था। यह साझा विरासत अक्सर दोनों देशों के बीच पहचान और प्रभाव के दावों को जन्म देती है।
  • साम्राज्यवादी अतीत और सोवियत संघ का विघटन: यूक्रेन सदियों तक विभिन्न साम्राज्यों – रूसी साम्राज्य, पोलिश-लिथुआनियाई राष्ट्रमंडल और ऑस्ट्रो-हंगेरियन साम्राज्य – के अधीन रहा है। 20वीं सदी में यह सोवियत संघ का हिस्सा बना। 1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद, यूक्रेन ने अपनी पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त की, लेकिन रूस इसे अपने पारंपरिक प्रभाव क्षेत्र का हिस्सा मानता रहा।
  • नाटो का विस्तार और सुरक्षा दुविधा: सोवियत संघ के पतन के बाद, उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO) का पूर्व की ओर विस्तार हुआ, जिसमें कई पूर्व वारसॉ संधि देश और बाल्टिक राज्य शामिल हुए। रूस इसे अपनी सुरक्षा के लिए एक खतरे के रूप में देखता है, यह तर्क देते हुए कि नाटो की मिसाइल प्रणालियाँ और सैन्य अवसंरचना उसकी सीमाओं के बहुत करीब आ रही हैं। यह एक “सुरक्षा दुविधा” का उत्कृष्ट उदाहरण है, जहाँ एक राज्य द्वारा अपनी सुरक्षा बढ़ाने के उपाय दूसरे राज्य के लिए खतरा बन जाते हैं।

मैदान क्रांति और क्रीमिया का विलय (2014)

  • ऑरेंज क्रांति (2004): यूक्रेन में पश्चिमी देशों के करीब आने की इच्छा और रूसी प्रभाव के खिलाफ पहली बड़ी राजनीतिक उथल-पुथल।
  • यूरोमैदान क्रांति (2014): यूक्रेन के तत्कालीन राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच द्वारा यूरोपीय संघ के साथ एक समझौते से पीछे हटने के बाद बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए, जिससे अंततः यानुकोविच को सत्ता छोड़नी पड़ी। रूस ने इसे एक पश्चिमी-समर्थित तख्तापलट करार दिया।
  • क्रीमिया का विलय: यूरोमैदान के बाद, रूस ने रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण क्रीमिया प्रायद्वीप पर कब्ज़ा कर लिया और उसका रूस में विलय कर लिया। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय ने इसे यूक्रेन की संप्रभुता का उल्लंघन मानते हुए निंदा की, लेकिन रूस ने इसे स्थानीय आबादी की इच्छा का परिणाम बताया।
  • डोनबास संघर्ष: क्रीमिया के विलय के बाद, यूक्रेन के पूर्वी क्षेत्रों – डोनेट्स्क और लुहांस्क (सामूहिक रूप से डोनबास के रूप में जाने जाते हैं) में रूसी-समर्थित अलगाववादियों और यूक्रेनी सेना के बीच संघर्ष छिड़ गया। यह संघर्ष वर्षों तक चला, और इसे सुलझाने के लिए मिन्स्क समझौते (Minsk Agreements) किए गए, लेकिन वे पूरी तरह से लागू नहीं हो पाए।

वर्तमान संघर्ष की शुरुआत (फरवरी 2022)

24 फरवरी, 2022 को रूस ने यूक्रेन पर एक पूर्ण पैमाने का आक्रमण शुरू किया, जिसे उसने “विशेष सैन्य अभियान” करार दिया। रूस ने इस कार्रवाई के पीछे कई उद्देश्य बताए:

  • यूक्रेन का विसैन्यीकरण (Demilitarization): यूक्रेन की सैन्य क्षमताओं को कम करना।
  • यूक्रेन का विनाज़ीकरण (Denazification): यूक्रेन की सरकार से कथित “नाज़ी” तत्वों को हटाना।
  • यूक्रेन की तटस्थता: यूक्रेन को नाटो में शामिल होने से रोकना।
  • रूसी भाषी आबादी की सुरक्षा: यूक्रेन में रूसी बोलने वाले लोगों के अधिकारों की रक्षा करना।

यूक्रेन और पश्चिमी देशों ने इन दावों को निराधार बताया और इसे एक संप्रभु राष्ट्र पर “अकारण और अवैध आक्रमण” करार दिया। इस संघर्ष ने वैश्विक सुरक्षा, ऊर्जा बाजारों और खाद्य आपूर्ति पर गहरा प्रभाव डाला है, जिससे लाखों लोग विस्थापित हुए हैं और हजारों लोग मारे गए हैं।

पुतिन का प्रस्ताव: “बड़ी शर्त” क्या है?

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने हाल ही में यूक्रेन में शांति स्थापित करने के लिए एक ‘नई’ शर्त रखी है, जिसे उन्होंने “वास्तविक शांति वार्ता” के लिए आधार बताया है। यह प्रस्ताव, अपने सार में, यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता पर सीधा प्रहार है, जैसा कि पश्चिमी और यूक्रेनी नेताओं का मानना है। आइए इस “बड़ी शर्त” के मुख्य बिंदुओं को समझते हैं:

1. क्रीमिया और नए क्षेत्रों की मान्यता (Recognition of Crimea and new territories)

“यूक्रेन को यह मानना होगा कि क्रीमिया, डोनेट्स्क, लुहांस्क, खेरसॉन और ज़ापोरिज़िया क्षेत्र रूसी संघ के हिस्से हैं।”

यह पुतिन के प्रस्ताव का सबसे महत्वपूर्ण और विवादास्पद पहलू है। रूस ने 2014 में क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया था, और सितंबर 2022 में, चार यूक्रेनी क्षेत्रों (डोनेट्स्क, लुहांस्क, खेरसॉन और ज़ापोरिज़िया) को कथित जनमत संग्रह के बाद अपने हिस्से के रूप में घोषित कर दिया। इन विलयों को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा व्यापक रूप से अवैध और अंतर्राष्ट्रीय कानून का उल्लंघन माना जाता है। पुतिन की शर्त का मतलब है कि यूक्रेन को अपने लगभग 20% क्षेत्र पर रूसी कब्जे को कानूनी रूप से स्वीकार करना होगा। यह यूक्रेन के लिए एक अत्यंत कठिन और असंभव मांग है, क्योंकि यह सीधे तौर पर उसकी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन करती है। यूक्रेन का संविधान स्पष्ट रूप से इन क्षेत्रों को अपनी संप्रभुता का अभिन्न अंग मानता है।

2. यूक्रेन की तटस्थता और गैर-गठबंधन स्थिति (Ukraine’s Neutrality and Non-aligned Status)

“यूक्रेन को एक तटस्थ और गैर-गठबंधन वाला देश बनना होगा। उसे नाटो में शामिल होने के किसी भी इरादे को त्यागना होगा।”

यह रूस की सुरक्षा चिंताओं का एक प्रमुख घटक रहा है। रूस का मानना है कि नाटो का पूर्व की ओर विस्तार उसकी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा है। पुतिन की मांग है कि यूक्रेन अपनी ‘गैर-ब्लॉक’ स्थिति को संविधान में निहित करे, जिसका अर्थ है कि वह किसी भी सैन्य गठबंधन, विशेष रूप से नाटो, में शामिल नहीं हो सकता। यह यूक्रेन के अपनी विदेश नीति और सुरक्षा व्यवस्था चुनने के संप्रभु अधिकार पर प्रतिबंध लगाता है। यूक्रेन और पश्चिमी देशों का तर्क है कि प्रत्येक देश को अपनी सुरक्षा व्यवस्था चुनने का अधिकार है, और रूस को इस पर वीटो का अधिकार नहीं होना चाहिए।

3. यूक्रेन का विसैन्यीकरण (Demilitarization of Ukraine)

“यूक्रेन को अपने सशस्त्र बलों के आकार और क्षमताओं को सीमित करना होगा। यह विसैन्यीकरण अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों की निगरानी में होना चाहिए।”

रूसी राष्ट्रपति ने यूक्रेन के “विनाज़ीकरण” (denazification) की भी बात की, लेकिन “विसैन्यीकरण” की मांग अधिक ठोस है। इसका अर्थ है कि यूक्रेन को अपनी सैन्य शक्ति को इस हद तक कम करना होगा कि वह रूस के लिए कोई खतरा न रहे। इस मांग का उद्देश्य यूक्रेन की रक्षा क्षमताओं को कमज़ोर करना है, जिससे वह भविष्य में रूसी आक्रमण का प्रभावी ढंग से मुकाबला न कर सके। यूक्रेन और उसके सहयोगियों का कहना है कि एक संप्रभु देश को अपनी रक्षा के लिए पर्याप्त सैन्य बल रखने का अधिकार है, खासकर जब उस पर हमला हुआ हो।

4. प्रतिबंधों का उन्मूलन (Lifting of Sanctions)

“पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए सभी प्रतिबंधों को हटाना होगा।”

यह शर्त सीधे तौर पर रूस की अर्थव्यवस्था पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए व्यापक प्रतिबंधों से संबंधित है। यूक्रेन पर आक्रमण के बाद, अमेरिका, यूरोपीय संघ और अन्य देशों ने रूस पर अभूतपूर्व आर्थिक प्रतिबंध लगाए, जिनका उद्देश्य उसकी युद्ध मशीन को पंगु बनाना था। पुतिन चाहते हैं कि इन प्रतिबंधों को हटाया जाए, जिससे रूस को अपनी अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और वैश्विक वित्तीय प्रणाली में फिर से प्रवेश करने का मौका मिले। पश्चिमी देश इस शर्त को मानने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उनका मानना है कि प्रतिबंध रूस को उसकी आक्रामकता के लिए दंडित करने और उसे भविष्य में ऐसी कार्रवाई से रोकने का एक महत्वपूर्ण साधन हैं।

सारांश में, पुतिन का प्रस्ताव एक “विजेता की शांति” का प्रतिनिधित्व करता है, जिसमें यूक्रेन को रूसी क्षेत्रीय लाभों को स्वीकार करना और अपनी संप्रभुता के महत्वपूर्ण पहलुओं का त्याग करना शामिल है। आलोचकों का मानना है कि यह यूक्रेन को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करने का एक प्रयास है, न कि वास्तविक शांति वार्ता का आधार।

पुतिन के प्रस्ताव पर प्रतिक्रियाएं (Reactions to Putin’s Proposal)

पुतिन के शांति प्रस्ताव पर अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएं अपेक्षा के अनुरूप अलग-अलग थीं, जो संघर्ष में विभिन्न पक्षों के गहरे मतभेदों को दर्शाती हैं।

यूक्रेन की प्रतिक्रिया: अस्वीकृति और संप्रभुता का उल्लंघन

“यह कोई शांति प्रस्ताव नहीं है, बल्कि एक अल्टीमेटम है। पुतिन युद्ध को रोकना नहीं चाहते, बल्कि यह दिखावा करना चाहते हैं कि वे चाहते हैं।”

– मिखाइलो पोडोल्याक, यूक्रेनी राष्ट्रपति के सलाहकार

  • सख्त अस्वीकृति: यूक्रेन ने पुतिन के प्रस्ताव को तुरंत और कड़ाई से खारिज कर दिया। राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की और अन्य यूक्रेनी अधिकारियों ने इसे “अस्वीकार्य अल्टीमेटम” और “क्रीमिया और डोनबास को आत्मसमर्पण करने की मांग” बताया।
  • क्षेत्रीय अखंडता पर ज़ोर: यूक्रेन का मुख्य तर्क यह है कि कोई भी शांति समझौता उसकी क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का उल्लंघन नहीं कर सकता। वे उन क्षेत्रों को कभी नहीं छोड़ेंगे जिन पर रूस ने अवैध रूप से कब्ज़ा किया है। उनका मानना है कि ऐसा करना भविष्य में रूसी आक्रामकता को और बढ़ावा देगा।
  • रूस की विश्वसनीयता पर सवाल: यूक्रेन ने पुतिन के “शांति” के इरादों पर सवाल उठाया, यह तर्क देते हुए कि रूस ने 2014 के बाद से कई समझौतों (जैसे मिन्स्क समझौते) का उल्लंघन किया है।
  • वास्तविक शांति वार्ता की परिभाषा: यूक्रेन का मानना है कि वास्तविक शांति वार्ता में रूसी सेना की पूर्ण वापसी, युद्ध अपराधों के लिए जवाबदेही और यूक्रेन की अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमाओं की बहाली शामिल होनी चाहिए।

पश्चिमी देशों की प्रतिक्रिया: रूस की विस्तारवादी नीति का हिस्सा

“पुतिन एक विजेता की शांति की तलाश में हैं, जहाँ वह यूक्रेन की भूमि को निगलना चाहते हैं। यह शांति नहीं, बल्कि आत्मसमर्पण है।”

– जेन्स स्टोलटेनबर्ग, नाटो महासचिव

  • निंदा और अस्वीकृति: संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय संघ और नाटो के सदस्यों ने पुतिन के प्रस्ताव को “अनुचित” और “युद्ध को जारी रखने का एक बहाना” बताया। उनका मानना है कि यह प्रस्ताव रूस को उसकी आक्रामकता के लिए पुरस्कृत करेगा और अंतर्राष्ट्रीय कानून की धज्जियां उड़ाएगा।
  • यूक्रेन का समर्थन: पश्चिमी देशों ने यूक्रेन के क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता के अधिकार का समर्थन दोहराया। उन्होंने यूक्रेन को सैन्य, वित्तीय और मानवीय सहायता जारी रखने का संकल्प लिया।
  • पुनर्गठन का समय: कुछ पश्चिमी विश्लेषकों ने सुझाव दिया कि पुतिन का प्रस्ताव युद्धविराम की आड़ में रूसी सेना को पुनर्गठित करने और भविष्य के आक्रमणों के लिए तैयारी करने का एक तरीका हो सकता है।
  • कूटनीतिक दिखावा: कई पश्चिमी नेताओं ने इसे एक प्रचार स्टंट करार दिया, जिसका उद्देश्य स्विट्जरलैंड शांति शिखर सम्मेलन के महत्व को कम करना और रूस को शांति के पैरोकार के रूप में प्रस्तुत करना था।

अंतर्राष्ट्रीय समुदाय (गैर-पश्चिमी) और शांति की अपील

  • शांति की अपील: भारत, चीन, ब्राजील और अफ्रीका के कुछ देशों सहित कई गैर-पश्चिमी देशों ने शांति वार्ता और संघर्ष को कूटनीतिक रूप से हल करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है। वे किसी भी शर्त के बिना तत्काल युद्धविराम का आह्वान करते हैं।
  • शर्तों पर मतभेद: इन देशों में से कई ने पुतिन की विशिष्ट शर्तों पर सीधी टिप्पणी करने से परहेज किया है, लेकिन उन्होंने आम तौर पर संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांतों का सम्मान करने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया है।
  • चीन की स्थिति: चीन ने एक तटस्थ स्थिति बनाए रखी है, लेकिन उसने रूसी सुरक्षा चिंताओं को मान्यता देने और बातचीत के माध्यम से समाधान खोजने का आह्वान किया है।
  • समझौते की आवश्यकता: कुछ देशों का मानना है कि दोनों पक्षों को रियायतें देनी होंगी ताकि एक व्यवहार्य शांति समझौता हो सके, भले ही वे रियायतें कितनी भी दर्दनाक क्यों न हों।

कुल मिलाकर, पुतिन के प्रस्ताव ने वैश्विक कूटनीति में एक बड़ा विभाजन पैदा कर दिया है, जिसमें एक तरफ रूस अपनी शर्तों पर एकतरफा शांति चाहता है, और दूसरी तरफ यूक्रेन और उसके सहयोगी अंतर्राष्ट्रीय कानून और संप्रभुता के सिद्धांतों पर आधारित एक न्यायपूर्ण और टिकाऊ शांति की मांग कर रहे हैं।

शांति वार्ता की चुनौतियाँ (Challenges for Peace Talks)

यूक्रेन में एक टिकाऊ शांति हासिल करना एक “गोर्डियन नॉट” सुलझाने जैसा है – यह इतना उलझा हुआ है कि इसे केवल एक तलवार के वार से काटा नहीं जा सकता, बल्कि इसके लिए धैर्य, कूटनीति और सभी पक्षों की इच्छाशक्ति की आवश्यकता है। शांति वार्ता की राह में कई बड़ी चुनौतियाँ हैं:

1. विश्वास की कमी (Lack of Trust)

“जब एक बार विश्वास टूट जाता है, तो उसे दोबारा बनाना पहाड़ चढ़ने जैसा होता है।”

  • ऐतिहासिक अविश्वास: रूस और यूक्रेन के बीच दशकों से चला आ रहा अविश्वास गहरा है, खासकर 2014 में क्रीमिया के विलय और डोनबास में संघर्ष के बाद। यूक्रेन रूस पर मिन्स्क समझौतों जैसे पिछले समझौतों का उल्लंघन करने का आरोप लगाता है।
  • पुतिन के इरादे: यूक्रेन और पश्चिमी देश पुतिन के शांति प्रस्ताव को एक धोखे के रूप में देखते हैं, जिसका उद्देश्य केवल युद्धविराम के नाम पर अपनी स्थिति को मजबूत करना है।
  • युद्ध अपराधों का मुद्दा: रूस पर युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के गंभीर आरोप लगे हैं, जिससे विश्वास और गहरा हुआ है।

2. क्षेत्रीय अखंडता बनाम सुरक्षा गारंटी (Territorial Integrity vs. Security Guarantees)

  • यूक्रेन की संप्रभुता: यूक्रेन के लिए, अपनी अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त सीमाओं के भीतर क्षेत्रीय अखंडता एक गैर-परक्राम्य सिद्धांत है। वे उन क्षेत्रों को कभी नहीं छोड़ेंगे जिन पर रूस ने कब्ज़ा कर लिया है।
  • रूस की सुरक्षा चिंताएँ: रूस अपनी सीमाओं पर नाटो के विस्तार को अपनी सुरक्षा के लिए सीधा खतरा मानता है। वह यूक्रेन को एक तटस्थ, सैन्य-मुक्त बफर जोन के रूप में देखना चाहता है।
  • यह एक दुविधा है: यूक्रेन अपनी सुरक्षा नाटो सदस्यता में देखता है, जबकि रूस नाटो को अपनी सुरक्षा के लिए खतरा मानता है। जब एक पक्ष की सुरक्षा दूसरे के लिए खतरा बन जाती है, तो समझौता करना लगभग असंभव हो जाता है।

3. युद्ध अपराधों का मुद्दा और जवाबदेही (Issue of War Crimes and Accountability)

  • अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय (ICC): ICC ने पुतिन के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया है। युद्ध अपराधों के लिए जवाबदेही की मांग अंतर्राष्ट्रीय समुदाय, विशेषकर यूक्रेन, के लिए एक महत्वपूर्ण मुद्दा है।
  • रूस का इनकार: रूस सभी आरोपों से इनकार करता है और ICC के अधिकार क्षेत्र को मान्यता नहीं देता। जवाबदेही का मुद्दा किसी भी शांति समझौते में एक बड़ा गतिरोध बन सकता है।

4. विभिन्न पक्षों की अपेक्षाएँ (Expectations of Different Parties)

  • यूक्रेन की अपेक्षाएँ: सभी रूसी सैनिकों की वापसी, 1991 की सीमाओं की बहाली, युद्ध के नुकसान के लिए मुआवजा, और भविष्य की सुरक्षा गारंटी।
  • रूस की अपेक्षाएँ: कब्ज़े वाले क्षेत्रों को मान्यता, यूक्रेन की तटस्थता और विसैन्यीकरण, और पश्चिमी प्रतिबंधों को हटाना।
  • पश्चिमी देशों की अपेक्षाएँ: यूक्रेन की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय कानून का पालन।

ये अपेक्षाएँ इतनी विरोधाभासी हैं कि उनके बीच सामान्य आधार खोजना अत्यंत कठिन है।

5. बाहरी शक्तियों का प्रभाव (Influence of External Powers)

  • नाटो और यूरोपीय संघ: नाटो यूक्रेन को सैन्य सहायता प्रदान करता है और रूस पर दबाव बनाए रखने के लिए प्रतिबद्ध है। यूरोपीय संघ यूक्रेन के पुनर्निर्माण और यूरोपीय एकीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका: अमेरिका यूक्रेन को सैन्य और वित्तीय सहायता का सबसे बड़ा प्रदाता है, और उसकी नीतियां संघर्ष के पाठ्यक्रम को बहुत प्रभावित करती हैं।
  • चीन और भारत: ये देश शांति वार्ता का समर्थन करते हैं, लेकिन रूस के साथ उनके अपने रणनीतिक और आर्थिक हित हैं, जो उनकी मध्यस्थता भूमिका को जटिल बनाते हैं।

बाहरी शक्तियों के हित और दबाव शांति प्रक्रिया को और भी जटिल बना सकते हैं, क्योंकि वे केवल यूक्रेन और रूस के बीच द्विपक्षीय मुद्दे नहीं रह जाते हैं।

6. जनता की राय और राजनीतिक दबाव (Public Opinion and Political Pressure)

  • यूक्रेन में: अधिकांश यूक्रेनी लोग रूसी कब्जे वाले क्षेत्रों को नहीं छोड़ना चाहते हैं। किसी भी राजनीतिक नेता के लिए रियायतें देना राजनीतिक आत्महत्या हो सकती है।
  • रूस में: रूसी जनता को बताया गया है कि यह एक “विशेष सैन्य अभियान” है जो रूस की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। किसी भी समझौते को राष्ट्रीय हित के रूप में बेचा जाना चाहिए।
  • पश्चिमी देशों में: पश्चिमी देशों में यूक्रेन को समर्थन जारी रखने के लिए राजनीतिक दबाव है, लेकिन युद्ध की लागत को लेकर भी चिंताएं बढ़ रही हैं।

इन चुनौतियों को देखते हुए, शांति वार्ता की सफलता एक लंबी और कठिन प्रक्रिया होगी, जिसके लिए रचनात्मकता, लचीलेपन और सभी पक्षों की ओर से वास्तविक इच्छाशक्ति की आवश्यकता होगी।

विभिन्न परिदृश्य और उनके निहितार्थ (Various Scenarios and their Implications)

यूक्रेन संघर्ष के भविष्य के कई संभावित परिदृश्य हो सकते हैं, जिनमें से प्रत्येक के अपने निहितार्थ हैं:

1. दीर्घकालिक गतिरोध और घर्षण युद्ध (Protracted Stalemate and Attrition War)

  • परिदृश्य: यह सबसे संभावित परिदृश्यों में से एक है। दोनों पक्ष किसी निर्णायक जीत या शांति समझौते तक पहुँचने में असमर्थ रहते हैं। लड़ाई चलती रहती है, लेकिन एक स्थिर फ्रंटलाइन के साथ, जिसमें समय-समय पर छोटे-मोटे लाभ और नुकसान होते रहते हैं।
  • निहितार्थ:
    • मानवीय लागत: भारी मानवीय पीड़ा, विस्थापन और जान-माल का नुकसान जारी रहेगा।
    • आर्थिक प्रभाव: वैश्विक ऊर्जा और खाद्य बाजारों में अस्थिरता बनी रहेगी। पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं पर यूक्रेन का समर्थन करने का दबाव बना रहेगा। रूस पर प्रतिबंधों का प्रभाव जारी रहेगा।
    • भू-राजनीतिक: यूरोप में सुरक्षा ढांचा अस्थिर रहेगा। नाटो की भूमिका और मजबूत होगी, और रूस व पश्चिम के बीच संबंध तनावपूर्ण बने रहेंगे।
    • सैन्य: दोनों पक्षों को अपने सैन्य स्टॉक को फिर से भरने में बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

2. रूस द्वारा सीमित क्षेत्रीय लाभ (Limited Territorial Gains by Russia)

  • परिदृश्य: रूस कुछ और क्षेत्रों पर कब्ज़ा कर लेता है, लेकिन यूक्रेन का प्रतिरोध जारी रहता है। यूक्रेन अपने सहयोगियों से समर्थन के साथ लड़ना जारी रखता है, लेकिन सभी खोए हुए क्षेत्रों को वापस लेने में असमर्थ रहता है।
  • निहितार्थ:
    • अंतर्राष्ट्रीय कानून: अंतर्राष्ट्रीय कानून और क्षेत्रीय अखंडता के सिद्धांत कमजोर होंगे, जिससे भविष्य में अन्य संघर्षों को बढ़ावा मिल सकता है।
    • पश्चिमी एकता: यूक्रेन को आगे समर्थन देने या रूस के साथ संबंधों को सामान्य करने के तरीके पर पश्चिमी देशों के बीच दरार पैदा हो सकती है।
    • स्थायी संघर्ष: यह एक “जमे हुए संघर्ष” (Frozen Conflict) का रूप ले सकता है, जैसा कि मोल्दोवा के ट्रांसनिस्ट्रिया या जॉर्जिया के अबकाज़िया/दक्षिण ओसेशिया में है, जो कभी भी फिर से भड़क सकता है।

3. समझौता वार्ता (Negotiated Settlement)

  • परिदृश्य: दोनों पक्ष बातचीत के लिए तैयार होते हैं और कुछ रियायतों के साथ एक समझौते पर पहुंचते हैं। इसमें कुछ क्षेत्रों को लेकर समझौता, यूक्रेन की तटस्थता की स्थिति, और भविष्य की सुरक्षा गारंटी शामिल हो सकती है। यह परिदृश्य सबसे कम संभावित लगता है, लेकिन यह एकमात्र ऐसा है जो एक टिकाऊ शांति ला सकता है।
  • निहितार्थ:
    • संवर्धित सुरक्षा: यदि समझौता व्यापक और संतुलित हो, तो यह यूरोप में एक नए सुरक्षा ढांचे का आधार बन सकता है।
    • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: वैश्विक कूटनीति को एक सफलता मिलेगी, और अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के नए रास्ते खुल सकते हैं।
    • चुनौतियाँ: समझौते को लागू करना और दोनों पक्षों के बीच विश्वास का पुनर्निर्माण करना एक बड़ी चुनौती होगी। आंतरिक राजनीतिक विरोध भी एक मुद्दा हो सकता है।

4. यूक्रेन की पूर्ण विजय (Full Ukrainian Victory)

  • परिदृश्य: यूक्रेन सभी रूसी-कब्जे वाले क्षेत्रों को वापस ले लेता है, जिसमें क्रीमिया भी शामिल है। रूस पूरी तरह से हार मान लेता है और अपनी सेना वापस बुला लेता है।
  • निहितार्थ:
    • कम संभावना: यह परिदृश्य वर्तमान सैन्य और राजनीतिक वास्तविकताओं को देखते हुए अत्यधिक असंभव है।
    • रूस में अस्थिरता: रूस में एक बड़ी हार से राजनीतिक अस्थिरता और सत्ता परिवर्तन हो सकता है, जिसके वैश्विक परिणाम अप्रत्याशित होंगे।
    • अंतर्राष्ट्रीय कानून की जीत: यह अंतर्राष्ट्रीय कानून और संप्रभुता की जीत होगी, लेकिन इसकी लागत बहुत अधिक होगी।

5. पश्चिमी समर्थन की सीमा और थकन (Limits of Western Support and Fatigue)

  • परिदृश्य: पश्चिमी देशों में यूक्रेन को समर्थन जारी रखने को लेकर राजनीतिक और आर्थिक थकन बढ़ जाती है, जिससे सहायता में कमी आती है। यूक्रेन को कम संसाधनों के साथ अकेले लड़ने के लिए मजबूर होना पड़ता है।
  • निहितार्थ:
    • यूक्रेन पर दबाव: यूक्रेन पर शांति समझौते के लिए प्रतिकूल शर्तों को स्वीकार करने का दबाव बढ़ेगा।
    • रूस को लाभ: रूस को सैन्य लाभ मिल सकता है और वह अपनी शर्तों को थोपने में अधिक सक्षम हो सकता है।
    • पश्चिमी एकता का क्षरण: पश्चिमी गठबंधन की एकता कमजोर हो सकती है, जिससे भविष्य में अन्य संकटों से निपटने की उनकी क्षमता प्रभावित होगी।

इनमें से प्रत्येक परिदृश्य वैश्विक भू-राजनीति, अर्थव्यवस्था और मानव सुरक्षा पर गहरे प्रभाव डालेगा। अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के लिए सबसे बड़ी चुनौती एक ऐसे रास्ते को खोजना है जो न केवल संघर्ष को समाप्त करे, बल्कि एक टिकाऊ और न्यायसंगत शांति की नींव भी रखे।

भारत के लिए निहितार्थ (Implications for India)

रूस-यूक्रेन संघर्ष और शांति वार्ता के संभावित परिणाम भारत के लिए बहुआयामी निहितार्थ रखते हैं, जो उसकी विदेश नीति, अर्थव्यवस्था और रणनीतिक स्वायत्तता को प्रभावित करते हैं। भारत ने इस संघर्ष में एक तटस्थ रुख अपनाया है, बातचीत और कूटनीति के माध्यम से समाधान का आह्वान किया है, लेकिन इसके बावजूद उसे कई चुनौतियों और अवसरों का सामना करना पड़ रहा है।

1. आर्थिक निहितार्थ (Economic Implications)

  • ऊर्जा सुरक्षा: भारत रूस से रियायती तेल आयात का प्रमुख खरीदार बना हुआ है। यदि युद्ध लंबा खिंचता है या प्रतिबंधों में बदलाव आता है, तो भारत की ऊर्जा सुरक्षा प्रभावित हो सकती है। वैश्विक तेल और गैस की कीमतें अस्थिर बनी रह सकती हैं।
  • व्यापार और भुगतान: पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण रूस के साथ व्यापार में बाधाएँ आई हैं। रुपये-रूबल व्यापार तंत्र विकसित करने के प्रयास किए गए हैं, लेकिन यह अभी भी पूरी तरह से सुचारू नहीं है। रक्षा सौदों और अन्य व्यापार के लिए भुगतान प्रणालियाँ जटिल बनी हुई हैं।
  • खाद्य सुरक्षा: रूस और यूक्रेन गेहूं और उर्वरकों के प्रमुख आपूर्तिकर्ता हैं। संघर्ष के कारण आपूर्ति श्रृंखलाएं बाधित हुई हैं, जिससे वैश्विक खाद्य और उर्वरक की कीमतें बढ़ी हैं, जिसका भारत जैसे कृषि प्रधान देश पर सीधा असर पड़ता है।
  • रक्षा आयात: भारत अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए पारंपरिक रूप से रूस पर बहुत अधिक निर्भर रहा है। प्रतिबंधों और आपूर्ति श्रृंखला की बाधाओं से रूस से स्पेयर पार्ट्स और नई प्रणालियों की आपूर्ति प्रभावित हो सकती है, जिससे भारत को अपने रक्षा स्रोतों में विविधता लाने की आवश्यकता होगी।

2. सामरिक निहितार्थ (Strategic Implications)

  • रूस के साथ संबंध: भारत के रूस के साथ लंबे समय से चले आ रहे रणनीतिक संबंध हैं, जो रक्षा, ऊर्जा और भू-राजनीतिक सहयोग पर आधारित हैं। भारत रूस को पश्चिम के खिलाफ संतुलन के रूप में देखता है, खासकर चीन-पाकिस्तान धुरी के संदर्भ में। इस युद्ध ने इन संबंधों पर दबाव डाला है।
  • पश्चिमी देशों के साथ संतुलन: भारत को पश्चिम (विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय संघ) के साथ अपने संबंधों को भी संतुलित करना होगा। क्वाड जैसे मंचों पर भारत पश्चिमी देशों के साथ हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सहयोग करता है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण की निंदा न करने के लिए भारत पर पश्चिमी देशों का दबाव बढ़ा है।
  • बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था: भारत एक बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था का समर्थक रहा है, जहाँ शक्ति का केंद्र एक या दो देशों के बजाय कई देशों में फैला हो। यह संघर्ष इस अवधारणा को चुनौती देता है, क्योंकि यह पश्चिम बनाम रूस के ध्रुवीकरण को मजबूत करता है।
  • चीन कारक: चीन ने रूस के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को गहरा किया है। यह भारत के लिए चिंता का विषय है, खासकर वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर चल रहे तनाव को देखते हुए। रूस-चीन अक्ष का मजबूत होना भारत के लिए एक रणनीतिक चुनौती प्रस्तुत करता है।

3. कूटनीतिक निहितार्थ (Diplomatic Implications)

  • शांति स्थापित करने में भूमिका: भारत ने संघर्ष को समाप्त करने के लिए बातचीत और कूटनीति का आह्वान किया है। यदि भविष्य में कोई वास्तविक शांति वार्ता होती है, तो भारत एक संभावित मध्यस्थ या facilitator की भूमिका निभा सकता है, विशेषकर यदि दोनों पक्ष एक गैर-पश्चिमी देश की मध्यस्थता को प्राथमिकता देते हैं।
  • गुटनिरपेक्षता 2.0: भारत ने इस संघर्ष में “तटस्थ” या “गुटनिरपेक्ष” स्थिति बनाए रखी है, जिससे उसकी “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति मजबूत हुई है। यह भारत को वैश्विक मंच पर एक स्वतंत्र आवाज के रूप में स्थापित करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र में सुधार: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की स्थायी सदस्यता के लिए भारत के दावों को इस संघर्ष ने प्रभावित किया है। UNSC की संघर्ष को रोकने में अक्षमता ने इसके सुधारों की आवश्यकता को उजागर किया है, जिसका भारत लंबे समय से समर्थक रहा है।

संक्षेप में, रूस-यूक्रेन युद्ध ने भारत की भू-राजनीतिक रणनीति में जटिलता की एक नई परत जोड़ दी है। भारत को अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करते हुए, अपनी ऐतिहासिक दोस्ती को बनाए रखते हुए और वैश्विक शांति और स्थिरता में योगदान करते हुए इस जटिल रास्ते पर सावधानी से चलना होगा।

आगे की राह (Way Forward)

यूक्रेन में एक टिकाऊ और न्यायसंगत शांति की ओर बढ़ना एक लंबी और जटिल यात्रा होगी, जिसमें कई बाधाएँ हैं। हालांकि, अंतर्राष्ट्रीय समुदाय और संघर्षरत पक्षों के लिए कुछ संभावित रास्ते हैं जो इस लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद कर सकते हैं:

1. अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता और बहुपक्षीय प्रयास (International Mediation and Multilateral Efforts)

  • विश्वसनीय मध्यस्थ: ऐसे विश्वसनीय देशों या संगठनों की आवश्यकता है जो दोनों पक्षों के साथ संवाद कर सकें और एक निष्पक्ष मंच प्रदान कर सकें। संयुक्त राष्ट्र, तुर्की, या यहां तक कि भारत या चीन जैसे तटस्थ देश एक मध्यस्थ की भूमिका निभा सकते हैं, यदि उन्हें दोनों पक्षों द्वारा स्वीकार किया जाए।
  • विभिन्न ट्रैक कूटनीति: औपचारिक वार्ता के साथ-साथ, ‘ट्रैक-टू’ (गैर-सरकारी) और ‘ट्रैक-थ्री’ (जनता से जनता) कूटनीति को भी बढ़ावा दिया जाना चाहिए ताकि विश्वास का पुनर्निर्माण किया जा सके और विभिन्न दृष्टिकोणों को समझा जा सके।
  • अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का महत्व: स्विट्जरलैंड शांति शिखर सम्मेलन जैसे मंच, भले ही सभी पक्ष मौजूद न हों, शांति प्रक्रिया के लिए आधार तैयार करने और अंतरराष्ट्रीय समुदाय की एकजुटता दिखाने में महत्वपूर्ण हैं।

2. विश्वास बहाली के उपाय (Confidence Building Measures – CBMs)

  • मानवीय गलियारे और युद्धविराम: सबसे पहले, मानवीय सहायता के लिए सुरक्षित गलियारों की स्थापना और स्थानीय युद्धविराम पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिए ताकि नागरिकों को बचाया जा सके।
  • युद्धबंदियों का आदान-प्रदान: युद्धबंदियों का आदान-प्रदान दोनों पक्षों के बीच कुछ हद तक विश्वास पैदा करने में मदद कर सकता है।
  • परमाणु सुरक्षा पर संवाद: ज़ापोरिज़िया परमाणु ऊर्जा संयंत्र जैसे संवेदनशील स्थलों पर सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए संवाद आवश्यक है।

3. व्यापक सुरक्षा ढाँचा (Comprehensive Security Framework for Europe)

  • पुरानी संधियों पर पुनर्विचार: शीत युद्ध के बाद के सुरक्षा ढांचे, जिसमें NATO विस्तार और OSCE (Organization for Security and Co-operation in Europe) जैसी संस्थाएं शामिल हैं, पर फिर से विचार करने की आवश्यकता हो सकती है ताकि रूस की वैध सुरक्षा चिंताओं को दूर किया जा सके, जबकि यूक्रेन की संप्रभुता का सम्मान किया जाए।
  • गैर-आक्रामकता के सिद्धांत: यूरोपीय सुरक्षा के लिए स्पष्ट और पारस्परिक रूप से सहमत सिद्धांतों को फिर से स्थापित किया जाना चाहिए, जिसमें संप्रभुता, क्षेत्रीय अखंडता और बल के प्रयोग से इनकार शामिल है।

4. संयुक्त राष्ट्र की भूमिका (Role of UN)

  • शांति स्थापना और शांति बनाए रखना: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना अभियानों में अपनी विशेषज्ञता का उपयोग कर सकता है, यदि भविष्य में कोई शांति समझौता होता है, तो उसकी निगरानी और कार्यान्वयन में मदद कर सकता है।
  • मानवीय सहायता: संयुक्त राष्ट्र एजेंसियां मानवीय सहायता और शरणार्थियों को सहायता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती रहेंगी।
  • कानून का शासन: संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय कानून और मानवाधिकारों के सिद्धांतों को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।

5. आर्थिक पुनर्निर्माण और न्याय (Economic Reconstruction and Justice)

  • यूक्रेन का पुनर्निर्माण: युद्ध के बाद यूक्रेन के पुनर्निर्माण के लिए एक बड़ी अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी। इसमें बुनियादी ढांचे, अर्थव्यवस्था और सामाजिक सेवाओं का पुनर्निर्माण शामिल है।
  • जवाबदेही और न्याय: युद्ध अपराधों और मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करना एक स्थायी शांति के लिए महत्वपूर्ण होगा। इसमें अंतर्राष्ट्रीय आपराधिक न्यायालय और अन्य कानूनी तंत्रों का समर्थन करना शामिल है।

यह स्पष्ट है कि यूक्रेन में शांति एक ‘जीत-हार’ की स्थिति से नहीं आएगी, बल्कि एक ऐसे ‘जीत-जीत’ के समाधान से आ सकती है, जहाँ सभी पक्ष कुछ रियायतें देने को तैयार हों, और सबसे महत्वपूर्ण, जहाँ मानवीय गरिमा और अंतर्राष्ट्रीय कानून के सिद्धांतों को सर्वोपरि रखा जाए। यह एक सतत प्रक्रिया होगी जिसमें धैर्य, कूटनीतिक कौशल और संघर्षरत पक्षों के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की ओर से मजबूत प्रतिबद्धता की आवश्यकता होगी।

निष्कर्ष (Conclusion)

रूस-यूक्रेन संघर्ष, एक जटिल भू-राजनीतिक त्रासदी, ने वैश्विक व्यवस्था की नाजुकता को उजागर किया है। व्लादिमीर पुतिन का शांति प्रस्ताव, जिसमें यूक्रेन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर रूसी कब्जे की मान्यता और उसकी तटस्थता की मांग शामिल है, ने शांति की संभावनाओं को और जटिल बना दिया है। यह एक “विजेता की शांति” का प्रयास है जिसे यूक्रेन और उसके पश्चिमी सहयोगी अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सीधा उल्लंघन मानते हुए सिरे से खारिज कर चुके हैं।

यह गतिरोध गहरे अविश्वास, परस्पर विरोधी सुरक्षा चिंताओं और क्षेत्रीय दावों से उपजा है जो दशकों से चले आ रहे हैं। शांति वार्ता की राह में क्षेत्रीय अखंडता बनाम सुरक्षा गारंटी, युद्ध अपराधों की जवाबदेही, और विभिन्न पक्षों की अपेक्षाओं के बीच व्यापक अंतर जैसी बड़ी चुनौतियाँ खड़ी हैं। भारत जैसे देशों के लिए, यह संघर्ष जटिल आर्थिक, सामरिक और कूटनीतिक निहितार्थ रखता है, जिससे उन्हें अपने राष्ट्रीय हितों को बनाए रखते हुए एक नाजुक संतुलन बनाना पड़ता है।

भविष्य के परिदृश्य अनिश्चित हैं – एक दीर्घकालिक गतिरोध, सीमित क्षेत्रीय लाभ के साथ स्थायी संघर्ष, या सबसे कम संभावना वाला लेकिन सबसे वांछित समझौता। किसी भी टिकाऊ शांति के लिए अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता, विश्वास बहाली के उपाय, एक नए व्यापक यूरोपीय सुरक्षा ढांचे पर विचार और संयुक्त राष्ट्र जैसे बहुपक्षीय संस्थानों की मजबूत भूमिका की आवश्यकता होगी। अंततः, यूक्रेन में वास्तविक शांति तभी आ सकती है जब अंतर्राष्ट्रीय कानून और संप्रभुता के सिद्धांतों का सम्मान किया जाए, और जब सभी पक्ष, कड़वे अनुभवों के बावजूद, कूटनीति को एक साथ आगे बढ़ने के एकमात्र मार्ग के रूप में देखें। यह सिर्फ यूक्रेन का युद्ध नहीं, बल्कि वैश्विक व्यवस्था की स्थिरता की परीक्षा है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. निम्नलिखित में से कौन से क्षेत्र रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के हालिया शांति प्रस्ताव में रूस के हिस्से के रूप में मान्यता देने की शर्त में शामिल हैं?

    1. क्रीमिया, डोनबास, ओडेसा
    2. खेरसॉन, ज़ापोरिज़िया, लिवाड़िया
    3. क्रीमिया, डोनेट्स्क, लुहांस्क, खेरसॉन, ज़ापोरिज़िया
    4. डोनबास, खेरसॉन, खार्किव, ज़ापोरिज़िया

    उत्तर: c
    व्याख्या: पुतिन ने क्रीमिया (जो 2014 में रूस में विलय कर लिया गया था), और डोनेट्स्क, लुहांस्क, खेरसॉन और ज़ापोरिज़िया (जिनका 2022 में रूस द्वारा विलय किया गया था) को रूसी क्षेत्र के रूप में मान्यता देने की शर्त रखी है।

  2. मिन्स्क समझौते, जो रूस-यूक्रेन संघर्ष से संबंधित हैं, मुख्य रूप से निम्नलिखित में से किस क्षेत्र में संघर्ष को हल करने से संबंधित थे?

    1. क्रीमिया
    2. डोनबास
    3. ज़ापोरिज़िया
    4. कीव

    उत्तर: b
    व्याख्या: मिन्स्क समझौते (मिन्स्क I और मिन्स्क II) 2014 और 2015 में पूर्वी यूक्रेन के डोनबास क्षेत्र में रूसी-समर्थित अलगाववादियों और यूक्रेनी सेना के बीच संघर्ष को रोकने के लिए किए गए थे।

  3. यूक्रेन में 2014 की यूरोमैदान क्रांति का तात्कालिक कारण क्या था?

    1. रूस द्वारा क्रीमिया का विलय।
    2. राष्ट्रपति यानुकोविच का यूरोपीय संघ के साथ समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार करना।
    3. नाटो में यूक्रेन की प्रस्तावित सदस्यता।
    4. डोनबास क्षेत्र में युद्ध का प्रकोप।

    उत्तर: b
    व्याख्या: यूरोमैदान क्रांति तब शुरू हुई जब तत्कालीन यूक्रेनी राष्ट्रपति विक्टर यानुकोविच ने यूरोपीय संघ के साथ एक प्रमुख राजनीतिक और मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया, रूस के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए रखने का विकल्प चुना।

  4. निम्नलिखित में से कौन सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन रूस द्वारा यूक्रेन पर आक्रमण को “अकारण और अवैध” मानता है और यूक्रेन को समर्थन प्रदान करता है?

    1. शंघाई सहयोग संगठन (SCO)
    2. ब्रिक्स (BRICS)
    3. उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (NATO)
    4. एशियाई अवसंरचना निवेश बैंक (AIIB)

    उत्तर: c
    व्याख्या: नाटो (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) ने रूस के आक्रमण की कड़ी निंदा की है और यूक्रेन को सैन्य, वित्तीय और मानवीय सहायता प्रदान करने में सबसे आगे रहा है।

  5. रूसी राष्ट्रपति पुतिन द्वारा उल्लिखित यूक्रेन के “विसैन्यीकरण” का क्या अर्थ है?

    1. यूक्रेन में सभी सैन्य ठिकानों को बंद करना।
    2. यूक्रेन के सशस्त्र बलों के आकार और क्षमताओं को कम करना।
    3. यूक्रेन को परमाणु हथियार मुक्त क्षेत्र बनाना।
    4. नाटो के साथ यूक्रेन के सभी सैन्य सहयोग को समाप्त करना।

    उत्तर: b
    व्याख्या: “विसैन्यीकरण” का रूसी उद्देश्य यूक्रेन की सैन्य शक्ति को कम करना था ताकि वह रूस के लिए खतरा न बने या नाटो में शामिल न हो सके।

  6. निम्नलिखित में से कौन सा देश रूस-यूक्रेन संघर्ष में मध्यस्थता के लिए एक सक्रिय भूमिका निभा चुका है या निभाने की इच्छा रखता है?

    1. उत्तर कोरिया
    2. कनाडा
    3. तुर्की
    4. अर्जेंटीना

    उत्तर: c
    व्याख्या: तुर्की ने संघर्ष के दौरान कई मौकों पर रूस और यूक्रेन के बीच मध्यस्थता का प्रयास किया है, जिसमें अनाज निर्यात समझौता भी शामिल है।

  7. रूस-यूक्रेन संघर्ष के संदर्भ में, “सुरक्षा दुविधा” शब्द का सबसे अच्छा वर्णन क्या करता है?

    1. एक देश अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सैन्य साधनों का उपयोग करता है।
    2. एक देश अपनी सुरक्षा बढ़ाने के लिए कदम उठाता है, जो दूसरे देश के लिए खतरा बन जाता है, जिससे वह भी अपनी सुरक्षा बढ़ाने के लिए मजबूर होता है।
    3. दो देशों के बीच सीमा विवाद जो उनके पड़ोसियों की सुरक्षा को प्रभावित करता है।
    4. एक देश द्वारा आतंकवाद का मुकाबला करने के लिए की गई सैन्य कार्रवाई जो नागरिकों की सुरक्षा को खतरे में डालती है।

    उत्तर: b
    व्याख्या: सुरक्षा दुविधा वह स्थिति है जहाँ एक राज्य द्वारा अपनी सुरक्षा बढ़ाने के उपाय (जैसे नाटो का विस्तार) दूसरे राज्य (जैसे रूस) द्वारा अपने लिए खतरे के रूप में देखे जाते हैं, जिससे वह भी प्रतिशोध में अपनी सुरक्षा बढ़ाता है, और इस प्रकार एक सर्पिल तनाव पैदा होता है।

  8. रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर क्या प्रभाव पड़ा है?

    1. वैश्विक खाद्य कीमतों में गिरावट आई है क्योंकि मांग कम हो गई है।
    2. रूस और यूक्रेन के प्रमुख कृषि निर्यातक होने के कारण गेहूं और उर्वरक की आपूर्ति बाधित हुई है।
    3. यूरोप में खाद्यान्न का उत्पादन बढ़ गया है जिससे वैश्विक आपूर्ति में वृद्धि हुई है।
    4. खाद्य व्यापार मार्गों पर कोई महत्वपूर्ण प्रभाव नहीं पड़ा है।

    उत्तर: b
    व्याख्या: रूस और यूक्रेन दोनों गेहूं, मक्का, सूरजमुखी तेल और उर्वरकों के प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता हैं। युद्ध ने इन वस्तुओं की आपूर्ति श्रृंखलाओं को गंभीर रूप से बाधित किया है, जिससे वैश्विक खाद्य और उर्वरक की कीमतें बढ़ी हैं।

  9. निम्नलिखित में से कौन सा शहर यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की का गृह नगर है और युद्ध के दौरान विशेष रूप से रूसी हमलों का निशाना बना है?

    1. ओडेसा
    2. लविवि
    3. क्रिवी रिह
    4. मारियुपोल

    उत्तर: c
    व्याख्या: वलोडिमिर ज़ेलेंस्की का गृह नगर क्रिवी रिह है, जो मध्य यूक्रेन में एक औद्योगिक शहर है। हालांकि मारियुपोल सबसे गंभीर रूप से प्रभावित शहरों में से एक है, प्रश्न ज़ेलेंस्की के गृह नगर के बारे में है।

  10. भारत ने रूस-यूक्रेन संघर्ष के संबंध में अपनी विदेश नीति में किस सिद्धांत का पालन किया है?

    1. रणनीतिक गठबंधन
    2. आक्रामक तटस्थता
    3. रणनीतिक स्वायत्तता
    4. हस्तक्षेपवादी कूटनीति

    उत्तर: c
    व्याख्या: भारत ने इस संघर्ष में “रणनीतिक स्वायत्तता” का प्रदर्शन किया है, जिसमें उसने किसी भी पक्ष का स्पष्ट रूप से पक्ष नहीं लिया है, बल्कि अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए स्वतंत्र निर्णय लिए हैं और बातचीत के माध्यम से शांति का आह्वान किया है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. “रूस-यूक्रेन युद्ध में व्लादिमीर पुतिन द्वारा रखी गई ‘बड़ी शर्त’ वास्तविक शांति वार्ता की संभावनाओं को जटिल बनाती है, बजाय इसके कि उन्हें सरल करे।” इस कथन का आलोचनात्मक विश्लेषण करें, और वैश्विक शांति व सुरक्षा पर इसके निहितार्थों पर चर्चा करें। (250 शब्द)
  2. रूस-यूक्रेन संघर्ष ने भारत के लिए आर्थिक और सामरिक दोनों तरह से महत्वपूर्ण चुनौतियाँ और अवसर पैदा किए हैं। इस संघर्ष के आलोक में भारत की “रणनीतिक स्वायत्तता” की नीति का विश्लेषण करें और मूल्यांकन करें कि भारत ने अपनी भू-राजनीतिक स्थिति को कैसे संतुलित किया है। (250 शब्द)
  3. यूक्रेन में स्थायी शांति प्राप्त करने की राह में विश्वास की कमी, क्षेत्रीय अखंडता के मुद्दे और बाहरी शक्तियों के प्रभाव सहित कई चुनौतियाँ हैं। इन चुनौतियों पर विस्तार से चर्चा करें और एक टिकाऊ शांति समझौता प्राप्त करने के लिए “आगे की राह” के रूप में क्या कदम उठाए जा सकते हैं, इसका सुझाव दें। (250 शब्द)

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