रेड अलर्ट से जलमग्न पटरी तक: भारत के 3 राज्यों में बारिश का कहर – कारण, प्रभाव और समाधान
चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल के दिनों में, भारत के विभिन्न हिस्सों में अत्यधिक वर्षा और इसके परिणामस्वरूप उत्पन्न हुई गंभीर बाढ़ की स्थिति ने देश के एक बड़े हिस्से को प्रभावित किया है। विशेष रूप से, राजस्थान में आठ जिलों के लिए ‘रेड अलर्ट’ जारी किया गया है, जिसके कारण स्कूलों को बंद करना पड़ा है। वहीं, बिहार की राजधानी पटना जंक्शन पर रेल ट्रैक पूरी तरह से जलमग्न हो गए हैं, जिससे रेल यातायात ठप हो गया है। इसके अलावा, ओडिशा के कई तटीय और निचले इलाकों के गांवों में बाढ़ का पानी घुस गया है, जिससे जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। इन घटनाओं ने न केवल स्थानीय प्रशासन के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की है, बल्कि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन, अवसंरचना की भेद्यता और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर भी गंभीर सवाल उठाए हैं। यह स्थिति UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह पर्यावरण, भूगोल, आपदा प्रबंधन, शासन और सामाजिक-आर्थिक विकास जैसे कई जीएस पेपरों से संबंधित है।
यह ब्लॉग पोस्ट इन हालिया घटनाओं का एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें इन बाढ़ों के पीछे के कारणों, उनके व्यापक प्रभावों, सरकार और स्थानीय समुदायों द्वारा सामना की जा रही चुनौतियों और भविष्य के लिए संभावित समाधानों पर प्रकाश डाला जाएगा।
1. भौगोलिक और मौसमी संदर्भ: भारत में मानसून और अत्यधिक वर्षा की प्रवृत्तियाँ
भारत एक मानसून-निर्भर देश है, जहाँ कृषि और जल संसाधनों के लिए मानसून का महत्व सर्वोपरि है। हालांकि, पिछले कुछ वर्षों में, मानसून के पैटर्न में महत्वपूर्ण बदलाव देखे गए हैं। अत्यधिक वर्षा की घटनाएँ (extreme rainfall events) बढ़ रही हैं, जिससे अचानक बाढ़ और भूस्खलन जैसी आपदाएँ आम हो गई हैं।
- मानसून की जटिलता: भारतीय मानसून एक जटिल मौसमी प्रणाली है जो हिंद महासागर और एशिया के स्थलीय भागों के बीच तापमान के अंतर से संचालित होती है। यह अपने साथ भारी मात्रा में नमी लाता है, जो भारत के जल संसाधनों के लिए जीवन रेखा है।
- जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों का तापमान बढ़ रहा है, जिससे वायुमंडल में अधिक नमी धारण करने की क्षमता बढ़ जाती है। इससे अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि हो रही है। मौसम विज्ञानियों का मानना है कि ग्लोबल वार्मिंग मानसून को अधिक अप्रत्याशित बना रही है।
- पूर्वी और पश्चिमी घाटों का प्रभाव: राजस्थान जैसे पश्चिमी क्षेत्रों में, जहाँ वर्षा सामान्यतः कम होती है, भारी वर्षा और बाढ़ की घटनाएँ अधिक विनाशकारी हो सकती हैं क्योंकि वहाँ की अवसंरचना और जल निकासी प्रणालियाँ इतनी बड़ी मात्रा में पानी को संभालने के लिए डिज़ाइन नहीं की गई होती हैं। पटना जैसे गंगा के मैदानी इलाकों में, नदियाँ अपनी उफान पर होती हैं, जिससे निचले इलाकों में पानी भर जाता है। ओडिशा जैसे तटीय राज्यों में, बंगाल की खाड़ी से आने वाले चक्रवात और निम्न दबाव प्रणालियाँ भारी वर्षा लाती हैं, जो तटीय बाढ़ का कारण बनती हैं।
- अर्बन हीट आइलैंड और शहरीकरण: शहरों में, विशेष रूप से पटना जैसे सघन आबादी वाले शहरी केंद्रों में, अनियोजित शहरीकरण और कंक्रीट के बड़े क्षेत्रों का निर्माण (अर्बन हीट आइलैंड प्रभाव) वर्षा जल के अवशोषण को कम करता है। अपर्याप्त जल निकासी व्यवस्था के साथ मिलकर, यह शहरों में बाढ़ की स्थिति को और गंभीर बना देता है।
2. हालिया घटनाओं का विस्तृत विश्लेषण
2.1. राजस्थान: रेड अलर्ट और स्कूल बंदी
राजस्थान, जो आमतौर पर शुष्क जलवायु के लिए जाना जाता है, हाल ही में भारी बारिश की चपेट में आया है। आठ जिलों में ‘रेड अलर्ट’ जारी होने का मतलब है कि अत्यंत गंभीर मौसम की स्थिति की आशंका है, जिससे जीवन और संपत्ति के लिए व्यापक खतरा हो सकता है।
- कारण: यह संभवतः बंगाल की खाड़ी से उठे एक गहरे अवसाद (low-pressure system) या मानसून ट्रफ (monsoon trough) के राज्य के उत्तर-पश्चिमी हिस्सों की ओर बढ़ने का परिणाम है, जो अपनी तरफ अधिक नमी खींच रहा है।
- ‘रेड अलर्ट’ का महत्व: मौसम विभाग द्वारा ‘रेड अलर्ट’ गंभीर चेतावनी है, जो नागरिकों को अत्यधिक सावधानी बरतने, अनावश्यक यात्रा से बचने और स्थानीय प्रशासन द्वारा जारी निर्देशों का पालन करने का निर्देश देता है।
- शैक्षणिक संस्थानों पर प्रभाव: स्कूलों को बंद करने का निर्णय बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक आवश्यक उपाय है। यह दर्शाता है कि स्थिति कितनी गंभीर है।
- अन्य प्रभाव: सड़कों का जलमग्न होना, बिजली की आपूर्ति बाधित होना, भूस्खलन (यदि पहाड़ी क्षेत्र प्रभावित हों) और स्थानीय नदियों का जलस्तर बढ़ना आम समस्याएँ हैं।
2.2. पटना जंक्शन: रेल ट्रैक का जलमग्न होना
पटना, गंगा नदी के किनारे स्थित होने के कारण, मानसून के दौरान नदियों के उफान का सामना करता है। इस बार, पटना जंक्शन जैसे महत्वपूर्ण रेल अवसंरचना का जलमग्न होना एक गंभीर चिंता का विषय है।
- कारण:
- गंडक और गंगा का जलस्तर: उत्तर बिहार की नदियाँ, जैसे गंडक, अपने उफान पर हैं और गंगा नदी का जलस्तर भी बढ़ा हुआ है।
- शहरी जल निकासी: पटना शहर की अपर्याप्त और जीर्ण-शीर्ण जल निकासी प्रणालियाँ भारी वर्षा के पानी को प्रभावी ढंग से बाहर निकालने में विफल रही हैं। पुराने नालों का अतिक्रमण या गाद से भर जाना समस्या को और बढ़ाता है।
- नदी तटबंधों का दबाव: अगर तटबंधों पर दबाव बढ़ता है या वे टूटते हैं, तो स्थिति और भयावह हो सकती है।
- रेल यातायात पर प्रभाव: रेल ट्रैक का जलमग्न होना ट्रेनों के परिचालन को पूरी तरह से रोक देता है, जिससे यात्रियों को भारी असुविधा होती है, माल ढुलाई बाधित होती है, और रेलवे को भारी राजस्व का नुकसान होता है। सुरक्षा कारणों से, जलमग्न पटरियों पर ट्रेनों का संचालन नहीं किया जा सकता।
- आर्थिक और सामाजिक प्रभाव: शहरों में बाढ़ परिवहन, व्यापार और दैनिक जीवन को बाधित करती है। यह बीमारी फैलने का कारण भी बन सकती है।
2.3. ओडिशा: गांवों में बाढ़ का पानी
ओडिशा, अपनी लंबी तटरेखा और कई प्रमुख नदियों (जैसे महानदी, ब्राह्मणी, बैतरणी) के कारण, मानसून और चक्रवातों दोनों से प्रभावित होता है। इस बार, गांवों में बाढ़ की रिपोर्टें तटीय और निचले इलाकों में गंभीर स्थिति का संकेत देती हैं।
- कारण:
- बंगाल की खाड़ी का प्रभाव: बंगाल की खाड़ी में बने कम दबाव के क्षेत्र (low-pressure areas) या अवसाद (depressions) अक्सर ओडिशा के तट पर भारी वर्षा लाते हैं।
- नदी प्रणाली: राज्य की प्रमुख नदियाँ, खासकर जब वे भारी वर्षा के साथ-साथ निचले इलाकों से भी पानी लेती हैं, तो उफान पर आ जाती हैं, जिससे तटबंध तोड़कर या ओवरफ्लो होकर गांवों में घुस जाती हैं।
- चक्रवाती प्रभाव: यदि कोई चक्रवात राज्य के पास से गुजरता है, तो उसका प्रभाव और भी विनाशकारी हो सकता है, जिसमें मूसलाधार बारिश और तूफान-प्रेरित जलभराव शामिल है।
- ग्रामीण जीवन पर प्रभाव: गांवों में बाढ़ का पानी घुसने से लोगों को सुरक्षित स्थानों पर स्थानांतरित करना पड़ता है, घरों को नुकसान पहुँचता है, फसलें बर्बाद हो जाती हैं, और स्वच्छ पेयजल स्रोतों के दूषित होने का खतरा बढ़ जाता है। मवेशियों के लिए भी खतरा पैदा होता है।
- तटीय बाढ़: समुद्र की ऊँची लहरें और तूफान का पानी तटीय इलाकों में प्रवेश कर सकता है, खासकर यदि तटबंधों में कमजोरियाँ हों।
3. बाढ़ों के कारण, प्रभाव और चुनौतियाँ (UPSC परिप्रेक्ष्य से)
यह घटनाएँ UPSC के विभिन्न पत्रों के लिए प्रासंगिक हैं:
3.1. कारण (GS-I: भूगोल, GS-III: पर्यावरण, GS-III: आपदा प्रबंधन)
- प्राकृतिक कारण:
- अत्यधिक वर्षा: जलवायु परिवर्तन से प्रेरित तीव्र और स्थानीयकृत वर्षा की घटनाएँ।
- मानसून पैटर्न में बदलाव: मानसून की अवधि और तीव्रता में अप्रत्याशितता।
- भौगोलिक स्थिति: नदी घाटियों, तटीय क्षेत्रों और कम ऊँचाई वाले इलाकों की भेद्यता।
- मानव निर्मित कारण:
- अनियोजित शहरीकरण: कंक्रीट के जंगल, जल निकासी प्रणालियों पर दबाव।
- वनोन्मूलन: मिट्टी का कटाव, जल सोखने की क्षमता में कमी।
- नदी चैनलों का अतिक्रमण: जल प्रवाह में बाधा।
- तटबंधों की कमजोरियाँ: पुराने या अनुपयुक्त तटबंध।
- अपर्याप्त जल निकासी अवसंरचना: शहरों और कस्बों में पुरानी जल निकासी व्यवस्था।
3.2. प्रभाव (GS-I: सामाजिक मुद्दे, GS-II: शासन, GS-III: अर्थव्यवस्था, GS-III: पर्यावरण)
- मानवीय प्रभाव:
- जीवन की हानि: डूबने, बिजली के झटके, या बीमारियों से मौत।
- विस्थापन: लाखों लोगों को अस्थायी आश्रयों में स्थानांतरित करना।
- स्वास्थ्य संकट: पानी जनित बीमारियों (जैसे हैजा, टाइफाइड) का प्रकोप।
- मानसिक आघात: बाढ़ से बचने वाले लोगों पर मनोवैज्ञानिक प्रभाव।
- आर्थिक प्रभाव:
- अवसंरचना को नुकसान: सड़कें, पुल, रेलवे, बिजली लाइनें, संचार टावर।
- फसलों का विनाश: कृषि अर्थव्यवस्था पर गहरा प्रभाव, खाद्य सुरक्षा पर खतरा।
- संपत्ति का नुकसान: घरों, दुकानों और उद्योगों को नुकसान।
- व्यवसाय और व्यापार में बाधा: आर्थिक गतिविधियों का रुकना।
- पुनर्निर्माण और राहत लागत: सरकार और बीमा कंपनियों पर भारी वित्तीय बोझ।
- सामाजिक और पर्यावरणीय प्रभाव:
- सामाजिक अशांति: राहत वितरण में असमानता या कमी।
- सांस्कृतिक विरासत का नुकसान: पुरातात्विक स्थलों का जलमग्न होना।
- पारिस्थितिकी तंत्र को नुकसान: वन्यजीवों का विस्थापन, आर्द्रभूमि का जलमग्न होना।
- दीर्घकालिक प्रभाव: भूमि का क्षरण, अवसादग्रस्तता।
3.3. चुनौतियाँ (GS-II: शासन, GS-III: आपदा प्रबंधन)
- पूर्वानुमान और चेतावनी प्रणाली: समय पर और सटीक प्रारंभिक चेतावनी देना, खासकर दूरदराज के इलाकों तक पहुँचाना।
- खाली कराने की प्रक्रिया: लोगों को सुरक्षित स्थानों पर ले जाना, विशेषकर उन क्षेत्रों से जहाँ पहुंचना मुश्किल है।
- राहत और बचाव अभियान: पर्याप्त संसाधन, प्रशिक्षित कर्मी और रसद की उपलब्धता सुनिश्चित करना।
- स्वास्थ्य सेवाएँ: बाढ़ के दौरान और बाद में चिकित्सा सुविधाएँ और दवाएँ उपलब्ध कराना।
- जल निकासी और डी-वाटरिंग: जलमग्न क्षेत्रों से पानी निकालने की प्रक्रिया, खासकर शहरों और महत्वपूर्ण अवसंरचनाओं से।
- भ्रष्टाचार और अक्षमता: राहत सामग्री के वितरण या पुनर्निर्माण कार्यों में।
- सरकारी एजेंसियों में समन्वय: राष्ट्रीय, राज्य और स्थानीय स्तर पर विभिन्न विभागों और एजेंसियों के बीच प्रभावी समन्वय।
- जन जागरूकता और भागीदारी: सामुदायिक स्तर पर आपदा के लिए तैयारी और प्रतिक्रिया में लोगों को शामिल करना।
4. भविष्य की राह: समाधान और रणनीतियाँ
इन बढ़ती चुनौतियों का सामना करने के लिए एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है:
4.1. मजबूत आपदा प्रबंधन ढाँचा (GS-II: शासन, GS-III: आपदा प्रबंधन)
- प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली को सुदृढ़ करना:
- तकनीकी उन्नयन: मौसम पूर्वानुमान मॉडल, रडार, उपग्रह डेटा का बेहतर उपयोग।
- प्रभावी संचार: स्थानीय भाषाओं में, मोबाइल अलर्ट, स्थानीय नेताओं के माध्यम से चेतावनी का प्रसार।
- सामुदायिक भागीदारी: स्थानीय समुदायों को चेतावनी प्राप्त करने और प्रतिक्रिया देने में प्रशिक्षित करना।
- शहरी नियोजन और जल निकासी:
- कड़े भवन नियम: बाढ़-प्रवण क्षेत्रों में निर्माण के लिए।
- जल निकासी का आधुनिकीकरण: शहरों में पुरानी प्रणालियों को अपग्रेड करना, नए डिज़ाइन को अपनाना जो भारी वर्षा को संभाल सकें।
- ‘स्पंज सिटी’ अवधारणा: ऐसे शहर जो वर्षा जल को अवशोषित और संग्रहीत करने के लिए डिज़ाइन किए गए हों, जैसे कि पारगम्य फुटपाथ, हरित छतें, और शहरी आर्द्रभूमियाँ।
- नदी प्रबंधन:
- तटबंधों की मजबूती: मौजूदा तटबंधों का नियमित निरीक्षण और सुदृढ़ीकरण।
- नदी पुनर्जीवन: गाद निकालने, नदी को उसकी मूल चौड़ाई में लाने के प्रयास।
- बाढ़ मैदान प्रबंधन: बाढ़ मैदानों में विकास को विनियमित करना।
- वनीकरण और भू-उपयोग:
- वनरोपण: विशेष रूप से नदी घाटियों और पहाड़ी क्षेत्रों में।
- जैव-विविधता संरक्षण: प्राकृतिक जल अवशोषक जैसे आर्द्रभूमियों और मैंग्रोव का संरक्षण।
4.2. जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और शमन (GS-III: पर्यावरण)
- ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना: अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का पालन, नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देना।
- अनुकूलन रणनीतियाँ: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति समाज और पारिस्थितिकी तंत्र की लचीलापन बढ़ाना।
4.3. सुसंगत सरकारी नीतियाँ और कुशल कार्यान्वयन (GS-II: शासन)
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) और राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरणों (SDMAs) को सशक्त बनाना।
- विभिन्न मंत्रालयों (जैसे जल शक्ति, सड़क परिवहन, गृह मंत्रालय) के बीच बेहतर समन्वय।
- स्थानीय निकायों (पंचायतों और नगर पालिकाओं) की क्षमता निर्माण।
- आपदा के बाद पुनर्निर्माण और पुनर्वास के लिए दीर्घकालिक योजनाएँ।
4.4. जन जागरूकता और शिक्षा (GS-II: शासन, GS-IV: नैतिकता)
- आपदा के लिए तैयारी: स्कूलों और समुदायों में मॉक ड्रिल और प्रशिक्षण कार्यक्रम।
- आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) को पाठ्यक्रम में एकीकृत करना।
- जिम्मेदार नागरिक व्यवहार को प्रोत्साहित करना।
5. निबंध और मुख्य परीक्षा के लिए इनपुट
यह घटनाएँ UPSC निबंध के लिए भी प्रासंगिक हैं, विशेषकर उन विषयों पर जो ‘जलवायु परिवर्तन’, ‘भारत में अवसंरचना की चुनौतियाँ’, ‘शहरीकरण के प्रभाव’, ‘आपदा प्रबंधन’ या ‘विकास के साथ पर्यावरण का संतुलन’ जैसे विषयों से संबंधित हो सकते हैं।
मुख्य परीक्षा में, बाढ़ के कारणों (प्राकृतिक बनाम मानव निर्मित), प्रभावों (आर्थिक, सामाजिक, पर्यावरणीय), और समाधानों (सरकारी नीतियाँ, तकनीकी उपाय, सामुदायिक भागीदारी) पर एक संतुलित और विश्लेषणात्मक उत्तर की अपेक्षा की जाती है।
निष्कर्ष (Conclusion):
राजस्थान में ‘रेड अलर्ट’ से लेकर पटना में जलमग्न रेल ट्रैक और ओडिशा के गांवों में बाढ़ तक की तस्वीरें, भारत के सामने एक गंभीर चुनौती पेश करती हैं। यह घटनाएँ स्पष्ट रूप से दर्शाती हैं कि हमें न केवल अप्रत्याशित मौसम की घटनाओं के लिए तैयार रहना होगा, बल्कि जलवायु परिवर्तन के मूल कारणों को संबोधित करने और अपने शहरी नियोजन, अवसंरचना विकास और जल प्रबंधन को अधिक लचीला बनाने की भी आवश्यकता है। एक मजबूत, सहभागी और प्रौद्योगिकी-संचालित आपदा प्रबंधन प्रणाली का निर्माण, सतत विकास के साथ आपदा जोखिम को एकीकृत करना, और नागरिकों को सशक्त बनाना ही भविष्य की राह है। इन घटनाओं से सीखना और प्रभावी उपाय करना हमारी प्राथमिकता होनी चाहिए ताकि जीवन और संपत्ति की रक्षा की जा सके और एक सुरक्षित, लचीला भारत बनाया जा सके।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
-
प्रश्न 1: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
- भारत में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में वृद्धि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी है।
- राजस्थान जैसे शुष्क क्षेत्रों में भारी वर्षा की घटनाएँ अधिक विनाशकारी हो सकती हैं क्योंकि वहाँ की अवसंरचना ऐसे पानी को संभालने के लिए डिज़ाइन नहीं की गई होती है।
- शहरी क्षेत्रों में कंक्रीट के बड़े क्षेत्र जल अवशोषण को कम करते हैं, जिससे शहरी बाढ़ का खतरा बढ़ जाता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या: तीनों कथन सही हैं। जलवायु परिवर्तन अत्यधिक वर्षा की घटनाओं को बढ़ाता है। शुष्क क्षेत्रों की अवसंरचना कम वर्षा के लिए अनुकूलित होती है। शहरीकरण से पारगम्यता कम होती है।
-
प्रश्न 2: भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) द्वारा ‘रेड अलर्ट’ का क्या अर्थ है?
उत्तर: (b) अत्यंत गंभीर मौसम की स्थिति की आशंका, जिससे जीवन और संपत्ति के लिए व्यापक खतरा हो सकता है।
व्याख्या: ‘रेड अलर्ट’ IMD द्वारा जारी की जाने वाली उच्चतम स्तर की चेतावनी है, जो सबसे गंभीर मौसम की घटनाओं को दर्शाती है।
-
प्रश्न 3: पटना जंक्शन पर रेल ट्रैक के जलमग्न होने के संभावित कारणों में से कौन सा सत्य नहीं है?
उत्तर: (d) नदियों में जल स्तर का सामान्य से काफी नीचे होना।
व्याख्या: पटना में बाढ़ का कारण नदियों के जलस्तर का बढ़ना और खराब शहरी जल निकासी है। जल स्तर का सामान्य से नीचे होना बाढ़ का कारण नहीं बन सकता।
-
प्रश्न 4: ‘स्पंज सिटी’ अवधारणा का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
उत्तर: (c) वर्षा जल को अवशोषित और संग्रहीत करके शहरी बाढ़ को कम करना।
व्याख्या: ‘स्पंज सिटी’ अवधारणा शहरी क्षेत्रों में जल प्रबंधन के लिए है, जहाँ प्राकृतिक और कृत्रिम प्रणालियों का उपयोग करके वर्षा जल का प्रबंधन किया जाता है।
-
प्रश्न 5: ओडिशा में बाढ़ के लिए बंगाल की खाड़ी में बनने वाले निम्न दबाव प्रणालियाँ कैसे योगदान करती हैं?
उत्तर: (a) ये प्रणालियाँ राज्य के तट पर भारी वर्षा लाती हैं, जो नदियों के जलस्तर को बढ़ा सकती हैं।
व्याख्या: बंगाल की खाड़ी में निम्न दबाव और अवसाद आमतौर पर तटीय क्षेत्रों में भारी वर्षा और तूफान का कारण बनते हैं।
-
प्रश्न 6: राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की प्राथमिक भूमिका क्या है?
उत्तर: (d) आपदा प्रबंधन के लिए एक नीतिगत ढाँचा तैयार करना और उसके कार्यान्वयन का समन्वय करना।
व्याख्या: NDMA भारत में आपदा प्रबंधन के लिए शीर्ष निकाय है।
-
प्रश्न 7: आपदा जोखिम न्यूनीकरण (DRR) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘अनुकूलन’ (Adaptation) रणनीति का उदाहरण है?
उत्तर: (b) बाढ़-प्रतिरोधी आवासों का निर्माण।
व्याख्या: अनुकूलन का अर्थ है जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के प्रति प्रतिक्रिया देना। बाढ़-प्रतिरोधी आवास एक ऐसी रणनीति है। ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन कम करना ‘शमन’ (Mitigation) है।
-
प्रश्न 8: भारत में मानसून के पैटर्न में बदलाव के लिए कौन सा कारक जिम्मेदार माना जाता है?
- ग्लोबल वार्मिंग
- महासागरीय धाराओं में परिवर्तन
- सौर गतिविधि में भिन्नता
सही कूट चुनें:
उत्तर: (a) 1 और 2
व्याख्या: ग्लोबल वार्मिंग और महासागरीय तापमान में परिवर्तन मानसून पैटर्न को प्रभावित करते हैं। सौर गतिविधि का प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम होता है।
-
प्रश्न 9: भारत की नदियों के संदर्भ में, ‘मानसून ट्रफ’ क्या है?
उत्तर: (c) निम्न दाब की एक रेखा जो मानसून के मौसम में भारत के ऊपर फैली रहती है।
व्याख्या: मानसून ट्रफ वह निम्न दाब क्षेत्र है जो मानसून की गतिविधि को निर्देशित करता है।
-
प्रश्न 10: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था देश में आपदा प्रबंधन के लिए नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करती है?
उत्तर: (a) गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs)
व्याख्या: गृह मंत्रालय, राष्ट्रीय कार्यकारी समिति (National Executive Committee) के माध्यम से, आपदा प्रबंधन के लिए केंद्रीय नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
-
प्रश्न 1: भारत में हाल की बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि के लिए जिम्मेदार प्राथमिक प्राकृतिक और मानव निर्मित कारणों का विश्लेषण करें। विशेष रूप से, जलवायु परिवर्तन और अनियोजित शहरीकरण की भूमिका पर प्रकाश डालें। (250 शब्द, 15 अंक)
-
प्रश्न 2: राजस्थान, बिहार और ओडिशा में हालिया बाढ़ के मानवीय, आर्थिक और पर्यावरणीय प्रभावों पर चर्चा करें। इन प्रभावों को कम करने के लिए एकीकृत आपदा प्रबंधन दृष्टिकोण के महत्व को स्पष्ट करें। (250 शब्द, 15 अंक)
-
प्रश्न 3: भारत में बाढ़ प्रबंधन के लिए सरकारी नीतियों और रणनीतियों की समालोचनात्मक परीक्षण करें। ‘स्पंज सिटी’ अवधारणा और अन्य नवीन जल निकासी समाधानों को अपनाने के महत्व का मूल्यांकन करें। (150 शब्द, 10 अंक)
-
प्रश्न 4: “भारत में बाढ़ केवल एक भौगोलिक घटना नहीं है, बल्कि यह सामाजिक-आर्थिक और प्रशासनिक विफलताओं का भी प्रतिबिंब है।” इस कथन के आलोक में, प्रभावी बाढ़ जोखिम न्यूनीकरण और प्रबंधन के लिए आवश्यक बहु-आयामी दृष्टिकोण पर एक निबंध लिखें। (150 शब्द, 10 अंक)