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रूस से कितना तेल भारत को? अमेरिकी जुर्माने की धमकी और ऊर्जा आयात का जटिल जाल

रूस से कितना तेल भारत को? अमेरिकी जुर्माने की धमकी और ऊर्जा आयात का जटिल जाल

चर्चा में क्यों? (Why in News?):**
हाल के महीनों में, अंतर्राष्ट्रीय भू-राजनीतिक परिदृश्य में एक महत्वपूर्ण बदलाव आया है, जिसने भारत की ऊर्जा सुरक्षा को एक नए चौराहे पर ला खड़ा किया है। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए कड़े प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने रूसी कच्चे तेल का आयात काफी हद तक जारी रखा है। ऐसे में, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि भारत रूस से कितना कच्चा तेल आयात करता है, और अमेरिका द्वारा संभावित प्रतिबंधों की धमकी के बाद क्या यह आपूर्ति रुक सकती है? यह स्थिति न केवल भारत की अर्थव्यवस्था और ऊर्जा आत्मनिर्भरता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक ऊर्जा बाजार और अंतर्राष्ट्रीय संबंधों पर भी गहरा प्रभाव डालती है।

यह ब्लॉग पोस्ट UPSC के उम्मीदवारों के लिए इस जटिल मुद्दे का एक विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें हम रूसी तेल आयात की मात्रा, अमेरिका के प्रतिबंधों के पीछे का तर्क, भारत पर इसके संभावित प्रभाव, और भविष्य में भारत की ऊर्जा रणनीति के लिए इसके मायने समझेंगे।

भारत के ऊर्जा आयात का बदलता परिदृश्य

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और आयातक है। हमारी अधिकांश तेल आवश्यकताएं आयात द्वारा पूरी होती हैं, जो हमारी अर्थव्यवस्था को अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों और आपूर्ति की अस्थिरता के प्रति संवेदनशील बनाती है। पारंपरिक रूप से, भारत मध्य पूर्व के देशों जैसे इराक, सऊदी अरब, और संयुक्त अरब अमीरात से तेल आयात करता रहा है।

हालांकि, 2022 की शुरुआत में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस पर व्यापक आर्थिक प्रतिबंध लगा दिए। इन प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस की अर्थव्यवस्था को पंगु बनाना और उसे युद्ध के लिए धन जुटाने से रोकना था। इन प्रतिबंधों में रूसी तेल की खरीद पर भी रोक लगाना शामिल था।

इसके बावजूद, भारत ने पश्चिमी देशों के आग्रह के विपरीत, रूसी कच्चे तेल का आयात बढ़ाना जारी रखा। इसके पीछे मुख्य कारण थे:

  • छूट पर उपलब्धता (Availability at Discount): पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण, रूस को अपना तेल बेचने के लिए बड़ी छूट देनी पड़ रही थी। भारतीय तेल कंपनियों ने इस अवसर का लाभ उठाया, जिससे उन्हें सस्ते दाम पर कच्चा तेल उपलब्ध हुआ।
  • ऊर्जा सुरक्षा (Energy Security): वैश्विक स्तर पर आपूर्ति की चिंताओं के बीच, भारतीय कंपनियों के लिए एक विश्वसनीय और सस्ता आपूर्तिकर्ता ढूंढना महत्वपूर्ण था। रूस एक ऐसा विकल्प बन गया।
  • विदेशी मुद्रा भंडार का संरक्षण (Conservation of Foreign Exchange Reserves): कम कीमत पर तेल खरीदकर, भारत अपने बहुमूल्य विदेशी मुद्रा भंडार को बचा सकता था, जो अन्यथा उच्च कीमतों पर आयात करने में खर्च हो जाता।

भारत को रूस से कितना कच्चा तेल मिल रहा है?

यूक्रेन युद्ध से पहले, भारत रूस से बहुत कम मात्रा में कच्चा तेल आयात करता था। लेकिन युद्ध के बाद, यह मात्रा नाटकीय रूप से बढ़ गई है। विभिन्न रिपोर्टों और सरकारी आंकड़ों के अनुसार:

  • 2023 में, भारत अपने कच्चे तेल आयात का लगभग 30-35% रूस से प्राप्त कर रहा था। यह मात्रा युद्ध-पूर्व स्तरों से कई गुना अधिक है।
  • कुछ महीनों में, यह प्रतिशत 40% से भी अधिक तक पहुँच गया था, जिससे रूस भारत का सबसे बड़ा तेल आपूर्तिकर्ता बन गया था।
  • यह आयात, जो पहले मुख्य रूप से पश्चिमी देशों से होता था, अब काफी हद तक रूस की ओर स्थानांतरित हो गया है।

यह shift इतना महत्वपूर्ण है कि इसने वैश्विक तेल व्यापार के प्रवाह को भी प्रभावित किया है। रूस अब अपने तेल को यूरोपीय बाजारों के बजाय भारत और चीन जैसे एशियाई देशों को बेच रहा है, अक्सर छूट पर।

इसे ऐसे समझें: कल्पना कीजिए कि आपके पास दो दोस्त हैं जो आपको खिलौने बेचते हैं। एक दोस्त (जैसे मध्य पूर्व के देश) हमेशा एक निश्चित कीमत लेता है। दूसरा दोस्त (रूस) एक बड़ी समस्या में फंस गया है और आपको अपने खिलौने बहुत कम कीमत पर दे रहा है। आपकी प्राथमिकता अपने खिलौने (तेल) सस्ते में खरीदना है, भले ही दूसरा दोस्त थोड़ा विवादास्पद हो। भारत ने यही रणनीति अपनाई।

अमेरिका की प्रतिबंधों की धमकी: कारण और निहितार्थ

संयुक्त राज्य अमेरिका (USA) और उसके पश्चिमी सहयोगी देशों ने रूस पर प्रतिबंधों का उद्देश्य रूसी अर्थव्यवस्था को कमजोर करना और उसे यूक्रेन युद्ध को वित्तपोषित करने से रोकना है। इन प्रतिबंधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा “मूल्य सीमा” (Price Cap) तंत्र है, जिसे G7 देशों द्वारा लागू किया गया है।

मूल्य सीमा तंत्र क्या है? (What is the Price Cap Mechanism?)

इस तंत्र के तहत, पश्चिमी देशों की कंपनियाँ (जैसे बीमा कंपनियाँ, शिपिंग कंपनियाँ) रूसी तेल के परिवहन या बीमा में तब तक मदद नहीं कर सकतीं जब तक कि तेल एक निश्चित मूल्य सीमा (जैसे $60 प्रति बैरल) के भीतर न बेचा जाए। इसका उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि रूस को अपने तेल के लिए उचित मूल्य मिले, लेकिन इतना नहीं कि वह युद्ध के लिए बड़े पैमाने पर धन जुटा सके।

अमेरिका की धमकी और उसका आधार

हाल ही में, अमेरिका ने भारत और अन्य देशों को चेतावनी दी है कि वे रूसी तेल के आयात के संबंध में अमेरिकी प्रतिबंधों का उल्लंघन न करें। विशेष रूप से, यह चिंता व्यक्त की गई है कि कुछ भारतीय रिफाइनरियां रूसी तेल खरीदकर उसे परिष्कृत (refine) कर रही हैं और फिर पश्चिमी देशों के सहायता प्राप्त तंत्र का उपयोग करके उसे निर्यात कर रही हैं।

  • चिंता का विषय: अमेरिकी सरकार का मानना ​​है कि यदि रूसी तेल को परिष्कृत करने के बाद ‘भारतीय तेल’ के रूप में बेचा जाता है, तो यह सीधे तौर पर रूस को अप्रत्यक्ष लाभ पहुँचा सकता है और मूल्य सीमा तंत्र को कमजोर कर सकता है।
  • संभावित दंड: यदि कोई भारतीय कंपनी या जहाजरानी कंपनी इन नियमों का उल्लंघन करती पाई जाती है, तो अमेरिका उस पर प्रत्यक्ष प्रतिबंध लगा सकता है। इसमें अमेरिकी वित्तीय प्रणाली तक पहुँच को रोकना, अमेरिकी कंपनियों के साथ व्यापार पर रोक, या अन्य गंभीर आर्थिक दंड शामिल हो सकते हैं।

उदाहरण: सोचिए एक देश ‘X’ ने एक नियम बनाया है कि आप एक खास कंपनी ‘Y’ से केवल $100 में ही कोई वस्तु खरीद सकते हैं। अब, एक तीसरा देश ‘Z’ उस वस्तु को ‘Y’ से $50 में खरीदता है, उसे थोड़ा बदलता है (जैसे उसे रंग देता है) और फिर उसे $120 में बेचता है। देश ‘X’ कहेगा कि ‘Z’ ने नियमों को तोड़ने में मदद की, क्योंकि अप्रत्यक्ष रूप से वह वही वस्तु बेच रहा है, और ‘X’ देश ‘Z’ पर प्रतिबंध लगा सकता है। भारत के मामले में, रूसी तेल को परिष्कृत करके ‘भारतीय उत्पाद’ के रूप में बेचना कुछ ऐसा ही माना जा सकता है।

भारत पर अमेरिकी जुर्माने का संभावित प्रभाव

यदि अमेरिका भारत पर या भारतीय कंपनियों पर प्रतिबंध लगाता है, तो इसके गंभीर परिणाम हो सकते हैं:

  • ऊर्जा आपूर्ति में बाधा: यदि प्रमुख भारतीय तेल कंपनियाँ या शिपिंग कंपनियाँ अमेरिकी प्रतिबंधों की चपेट में आती हैं, तो उन्हें अंतर्राष्ट्रीय बाजारों में काम करने में कठिनाई होगी। इससे भारत की ऊर्जा आपूर्ति श्रृंखला बाधित हो सकती है।
  • आर्थिक लागत में वृद्धि: प्रतिबंधों से बचने के लिए, भारत को वैकल्पिक, शायद अधिक महंगे, आपूर्तिकर्ताओं की ओर रुख करना पड़ सकता है, जिससे आयात लागत बढ़ जाएगी।
  • निवेश और व्यापार पर प्रभाव: भारत में अमेरिकी निवेश और द्विपक्षीय व्यापार पर भी नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। भारत के लिए अमेरिका एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है, और किसी भी तरह का आर्थिक तनाव हानिकारक होगा।
  • भू-राजनीतिक दबाव: इससे भारत को अमेरिका और रूस के बीच एक मुश्किल स्थिति में खड़ा होना पड़ेगा, जिससे उसकी विदेश नीति की स्वायत्तता प्रभावित हो सकती है।

भारत की प्रतिक्रिया और आगे की राह

भारत सरकार इस स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रही है। भारत ने हमेशा अपनी ऊर्जा सुरक्षा को राष्ट्रीय हित में प्राथमिकता दी है और वह किसी एक देश पर अत्यधिक निर्भर नहीं रहना चाहता।

भारत का रुख:

  • सार्वभौमिकता का सिद्धांत: भारत का तर्क है कि वह किसी भी देश से, उचित मूल्य पर, तेल खरीद सकता है। यह अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा बाजार के सिद्धांतों के अनुरूप है।
  • राष्ट्रीय हित: भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए उन सभी अवसरों का लाभ उठाएगा जो उसके राष्ट्रीय हित में हों।
  • बातचीत और कूटनीति: भारत अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों के साथ लगातार बातचीत कर रहा है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उसके कार्य अंतर्राष्ट्रीय नियमों का उल्लंघन न करें और उसके राष्ट्रीय हितों को नुकसान न पहुँचे।

आगे की राह (Way Forward):

  1. विविधीकरण (Diversification): भारत को अपनी ऊर्जा आपूर्ति को और अधिक विविध बनाने की आवश्यकता है। केवल रूस पर निर्भरता बढ़ाना दीर्घकालिक रणनीति के लिए सही नहीं है। मध्य पूर्व, अफ्रीका और अमेरिका के अन्य स्रोतों से तेल आयात बढ़ाना महत्वपूर्ण है।
  2. घरेलू उत्पादन को बढ़ावा: हालांकि यह एक दीर्घकालिक समाधान है, भारत को अपने घरेलू तेल और गैस उत्पादन को बढ़ाने के उपायों पर ध्यान देना चाहिए।
  3. ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा: ऊर्जा की मांग को कम करने के लिए ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन, आदि) में निवेश बढ़ाना भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण हैं।
  4. रणनीतिक साझेदारी: भारत को अपने ऊर्जा भागीदारों के साथ मजबूत रणनीतिक संबंध बनाने चाहिए ताकि आपूर्ति की निरंतरता सुनिश्चित हो सके।
  5. स्मार्ट कूटनीति: अमेरिकी प्रतिबंधों के संबंध में, भारत को कूटनीतिक स्तर पर सक्रिय रहना होगा, स्पष्टीकरण देना होगा और सुनिश्चित करना होगा कि रूसी तेल से उत्पन्न उत्पादों का निर्यात अंतर्राष्ट्रीय नियमों के दायरे में रहे।

एक भू-राजनीतिक शतरंज का खेल: इस पूरी स्थिति को एक बड़े भू-राजनीतिक शतरंज के खेल के रूप में देखा जा सकता है। हर देश अपनी चालें अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों को ध्यान में रखकर चल रहा है। भारत एक तरफ अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करना चाहता है, वहीं दूसरी ओर अपने प्रमुख सहयोगियों (जैसे अमेरिका) के साथ संबंधों को भी बनाए रखना चाहता है। यह संतुलन साधने का एक जटिल कार्य है।

निष्कर्ष

रूस से कच्चे तेल का आयात भारत के लिए इस समय एक महत्वपूर्ण ऊर्जा स्रोत बन गया है, जो काफी हद तक छूट पर उपलब्ध है। हालाँकि, अमेरिका द्वारा लगाए गए मूल्य सीमा तंत्र और संभावित प्रतिबंधों की धमकी ने इस स्थिति को जटिल बना दिया है। भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखने के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय कानूनों और अपने प्रमुख सहयोगियों के साथ संबंधों का भी ध्यान रखना होगा।

यह स्थिति UPSC परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंध, अर्थव्यवस्था, और भू-राजनीति जैसे विषयों की गहरी समझ प्रदान करती है। तेल कूटनीति, प्रतिबंधों का प्रभाव, और ऊर्जा सुरक्षा जैसे पहलू वैश्विक राजनीति के निरंतर बदलते परिदृश्य को दर्शाते हैं। भारत को अपनी ऊर्जा स्वतंत्रता को मजबूत करने के लिए एक बहु-आयामी रणनीति अपनाने की आवश्यकता है, जिसमें आपूर्ति का विविधीकरण, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश, और स्मार्ट कूटनीति शामिल है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. प्रश्न: हाल ही में, भारत ने रूस से कच्चे तेल का आयात काफी बढ़ाया है। निम्नलिखित में से कौन सा भारत के इस कदम के प्रमुख कारणों में से एक है?
(a) रूसी तेल पर भारी छूट
(b) पश्चिम देशों द्वारा रूसी तेल पर प्रतिबंध हटाना
(c) भारत का रूस के साथ सैन्य गठबंधन मजबूत होना
(d) भारतीय रिफाइनरियों की रूसी तेल पर निर्भरता बढ़ना

उत्तर: (a)
व्याख्या: यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों के प्रतिबंधों के कारण, रूस ने अपने कच्चे तेल की बिक्री पर भारी छूट देना शुरू कर दिया था। भारत ने इस अवसर का लाभ उठाते हुए सस्ते दाम पर तेल खरीदना शुरू कर दिया।

2. प्रश्न: G7 देशों द्वारा लागू किया गया “मूल्य सीमा” (Price Cap) तंत्र का मुख्य उद्देश्य क्या है?
(a) रूसी तेल की वैश्विक कीमत को बढ़ाना
(b) रूस को उसके तेल से होने वाली आय को सीमित करना
(c) यूरोपीय संघ के देशों को सस्ता तेल उपलब्ध कराना
(d) भारत को रूसी तेल खरीदने से रोकना

उत्तर: (b)
व्याख्या: मूल्य सीमा तंत्र का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि रूस को उसके तेल के लिए एक निश्चित सीमा से अधिक भुगतान न मिले, जिससे उसकी युद्ध वित्तपोषण क्षमता सीमित हो सके।

3. प्रश्न: यदि कोई भारतीय कंपनी रूसी तेल खरीदकर उसे परिष्कृत (refine) करने के बाद निर्यात करती है, तो अमेरिकी चिंता का मुख्य बिंदु निम्नलिखित में से क्या हो सकता है?
(a) यह परिष्कृत तेल की गुणवत्ता को प्रभावित करता है।
(b) यह पश्चिमी कंपनियों के लिए प्रतिस्पर्धा बढ़ाता है।
(c) यह अप्रत्यक्ष रूप से रूस को लाभ पहुंचा सकता है और मूल्य सीमा को कमजोर कर सकता है।
(d) यह अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग नियमों का उल्लंघन है।

उत्तर: (c)
व्याख्या: अमेरिकी चिंता यह है कि परिष्कृत तेल को ‘भारतीय उत्पाद’ के रूप में बेचना, भले ही वह रूसी मूल का हो, रूस को प्रतिबंधों से बचने और मूल्य सीमा को अप्रत्यक्ष रूप से दरकिनार करने में मदद कर सकता है।

4. प्रश्न: निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता और आयातक है।
2. यूक्रेन युद्ध से पहले, भारत रूस से बहुत कम मात्रा में कच्चा तेल आयात करता था।
उपरोक्त कथनों में से कौन सा/से सही है/हैं?
(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (c)
व्याख्या: दोनों कथन भारत के तेल आयात परिदृश्य और रूस के साथ उसके पहले के संबंधों के बारे में सही हैं।

5. प्रश्न: भारत की ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में, नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाना क्यों महत्वपूर्ण है?
(a) यह केवल पर्यावरण संरक्षण के लिए है।
(b) यह आयात पर निर्भरता कम करता है और दीर्घकालिक स्थिरता प्रदान करता है।
(c) यह अंतर्राष्ट्रीय तेल कीमतों को नियंत्रित करने में मदद करता है।
(d) यह केवल विकसित देशों के लिए प्रासंगिक है।

उत्तर: (b)
व्याख्या: नवीकरणीय ऊर्जा स्रोत घरेलू रूप से उपलब्ध होते हैं और आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करके ऊर्जा सुरक्षा को बढ़ाते हैं।

6. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा देश पारंपरिक रूप से भारत के प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ताओं में से रहा है?
(a) वेनेजुएला
(b) ईरान
(c) इराक
(d) रूस (युद्ध-पूर्व काल में)

उत्तर: (c)
व्याख्या: इराक, सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात पारंपरिक रूप से भारत के प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता रहे हैं। वेनेजुएला और ईरान पर भी प्रतिबंधों के कारण भारत का आयात प्रभावित हुआ है।

7. प्रश्न: यदि अमेरिका भारत पर तेल आयात को लेकर प्रतिबंध लगाता है, तो इसका भारत की अर्थव्यवस्था पर क्या संभावित नकारात्मक प्रभाव हो सकता है?
1. ऊर्जा आपूर्ति में बाधा
2. आयात लागत में वृद्धि
3. अमेरिकी निवेश में कमी
नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:
(a) केवल 1
(b) 1 और 2 दोनों
(c) 2 और 3 दोनों
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (d)
व्याख्या: अमेरिकी प्रतिबंध भारत की ऊर्जा आपूर्ति, आयात लागत और द्विपक्षीय आर्थिक संबंधों (निवेश सहित) को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकते हैं।

8. प्रश्न: हाल के आंकड़ों के अनुसार, भारत अपने कच्चे तेल का कितना प्रतिशत रूस से प्राप्त कर रहा है?
(a) 5-10%
(b) 15-20%
(c) 30-35%
(d) 50-60%

उत्तर: (c)
व्याख्या: नवीनतम अनुमानों के अनुसार, भारत अपने कच्चे तेल आयात का लगभग 30-35% रूस से प्राप्त कर रहा है।

9. प्रश्न: भारत का “ऊर्जा सुरक्षा” (Energy Security) के संदर्भ में मुख्य लक्ष्य क्या है?
(a) केवल सस्ते दर पर तेल प्राप्त करना
(b) आयात पर निर्भरता पूरी तरह समाप्त करना
(c) ऊर्जा स्रोतों की स्थिर, विश्वसनीय और किफायती पहुँच सुनिश्चित करना
(d) केवल परमाणु ऊर्जा का उपयोग करना

उत्तर: (c)
व्याख्या: ऊर्जा सुरक्षा का अर्थ है कि देश के नागरिकों और अर्थव्यवस्था के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा स्रोतों की निर्बाध, विश्वसनीय और किफायती उपलब्धता सुनिश्चित करना।

10. प्रश्न: रूस के तेल पर पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों का एक प्रमुख कारण क्या है?
(a) रूसी तेल की गुणवत्ता में गिरावट
(b) यूक्रेन पर रूस का आक्रमण
(c) रूस का OPEC+ से बाहर निकलना
(d) वैश्विक तेल की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि

उत्तर: (b)
व्याख्या: यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के जवाब में पश्चिमी देशों ने रूस पर आर्थिक प्रतिबंध लगाए थे, जिसमें रूसी तेल पर नियंत्रण भी शामिल था।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. प्रश्न: भारत के कच्चे तेल के आयात में रूस का बढ़ता महत्व और अमेरिकी प्रतिबंधों के संभावित प्रभाव का विश्लेषण करें। इस संदर्भ में भारत की ऊर्जा सुरक्षा को बनाए रखने के लिए क्या रणनीतिक विकल्प मौजूद हैं? (लगभग 250 शब्द)
2. प्रश्न: “मूल्य सीमा” (Price Cap) तंत्र क्या है और यह वैश्विक ऊर्जा बाजार को कैसे प्रभावित करता है? चर्चा करें कि भारत जैसे देशों के लिए इस तंत्र का अनुपालन करना क्यों चुनौतीपूर्ण हो सकता है। (लगभग 250 शब्द)
3. प्रश्न: भू-राजनीतिक तनावों के दौर में, भारत की ऊर्जा कूटनीति का सामना किन प्रमुख चुनौतियों से करना पड़ता है? रूस से तेल आयात के संदर्भ में इन चुनौतियों का वर्णन करें और दीर्घकालिक ऊर्जा सुरक्षा के लिए भारत की रणनीति पर प्रकाश डालें। (लगभग 150 शब्द)
4. प्रश्न: पश्चिमी देशों के आग्रह के बावजूद, भारत द्वारा रूसी कच्चे तेल का आयात जारी रखने के पीछे की आर्थिक और रणनीतिक तर्क क्या हैं? अमेरिकी जुर्माने की धमकी को देखते हुए, भारत के लिए “रूसी तेल परिदृश्य” का प्रबंधन कैसे महत्वपूर्ण हो जाता है? (लगभग 250 शब्द)

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