Get free Notes

सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Click Here

रूस से अरबों की आयात: अमेरिका, यूरोप और भारत की हकीकत – एक विस्तृत विश्लेषण

रूस से अरबों की आयात: अमेरिका, यूरोप और भारत की हकीकत – एक विस्तृत विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल के दिनों में, वैश्विक भू-राजनीतिक परिदृश्य में यूक्रेन युद्ध के बाद से रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों और उसके आर्थिक परिणामों पर व्यापक चर्चा हुई है। इस संदर्भ में, एक महत्वपूर्ण ‘वास्तविकता की जांच’ सामने आई है: अमेरिका और यूरोप, जिन पर रूस को अलग-थलग करने का सबसे अधिक दबाव था, वे भी अरबों डॉलर का सामान रूस से आयात कर रहे हैं। यह स्थिति भारत की स्थिति को और अधिक जटिल बनाती है, जो रूस के साथ अपने ऐतिहासिक संबंधों और वर्तमान वैश्विक दबावों के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहा है। यह लेख इस जटिल मुद्दे को गहराई से खंगालता है, यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए प्रासंगिक सभी पहलुओं को कवर करता है।

परिचय: भू-राजनीति, अर्थव्यवस्था और आयात का त्रि-आयामी संबंध

जब हम अंतर्राष्ट्रीय संबंधों और वैश्विक अर्थव्यवस्था की बात करते हैं, तो आयात-निर्यात केवल आर्थिक लेन-देन से कहीं अधिक होते हैं। वे देशों के बीच राजनीतिक संरेखण, रणनीतिक निर्भरता और साझा हितों को दर्शाते हैं। यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद, पश्चिमी देशों ने रूस पर अभूतपूर्व प्रतिबंध लगाए, जिसका उद्देश्य उसकी युद्ध मशीनरी को पंगु बनाना और उसे वैश्विक मंच पर अलग-थलग करना था। इन प्रतिबंधों के मूल में रूस को उसकी राजस्व धाराओं से वंचित करना था, विशेष रूप से ऊर्जा निर्यात से।

हालांकि, जमीनी हकीकत अक्सर राजनीतिक बयानों से अलग होती है। हालिया आंकड़ों से पता चलता है कि अमेरिका और यूरोप, जिन्होंने रूस पर सबसे सख्त प्रतिबंध लगाए हैं, वे स्वयं महत्वपूर्ण मात्रा में रूसी वस्तुओं का आयात जारी रखे हुए हैं। यह विरोधाभासी स्थिति कई सवाल खड़े करती है: ये आयात क्यों जारी हैं? इन आयात का क्या महत्व है? और इस पूरी तस्वीर में भारत कहाँ खड़ा है?

अमेरिका और यूरोप का रूस से आयात: विरोधाभास की जड़ें

जब पश्चिमी देशों ने रूस पर प्रतिबंध लगाए, तो उनका प्राथमिक लक्ष्य ऊर्जा (तेल और गैस) पर आधारित था। रूस वैश्विक ऊर्जा आपूर्ति का एक प्रमुख स्रोत रहा है, और यूरोप विशेष रूप से रूसी गैस पर अत्यधिक निर्भर रहा है। प्रतिबंधों का उद्देश्य इस निर्भरता को तोड़ना और रूस की वित्तीय शक्ति को कम करना था।

ऊर्जा आयात: अपरिहार्य निर्भरता

  • कारण: यूरोप की ऊर्जा ग्रिड, विशेष रूप से जर्मनी और पूर्वी यूरोपीय देशों में, रूसी गैस पर गहराई से निर्भर है। अचानक आपूर्ति बंद करने से गंभीर आर्थिक संकट पैदा हो सकता था, जिसमें बिजली की कमी, उद्योगों का बंद होना और मुद्रास्फीति में भारी वृद्धि शामिल है।
  • रियायतें: इस निर्भरता को देखते हुए, कई पश्चिमी देशों ने ऊर्जा आयात पर प्रतिबंधों में कुछ रियायतें दीं या उन्हें पूरी तरह से लागू करने में देरी की। यह “समझौता” था – रूस को अलग-थलग करने की कोशिश करना, लेकिन अपनी खुद की अर्थव्यवस्थाओं को पतन से बचाना।
  • परिणाम: इसके बावजूद, कई यूरोपीय देशों ने प्रत्यक्ष रूसी तेल और गैस के आयात को कम करने या बंद करने के लिए कदम उठाए, लेकिन अन्य स्रोतों से आयात को बढ़ाना पड़ा, जिससे वैश्विक ऊर्जा की कीमतें बढ़ गईं।

गैर-ऊर्जा आयात: विविध चिंताएँ

यह केवल ऊर्जा की बात नहीं है। अमेरिका और यूरोप अभी भी रूस से अन्य प्रकार की वस्तुओं का आयात कर रहे हैं, जिनमें शामिल हैं:

  • धातुएँ: रूस पैलेडियम, निकल, एल्यूमीनियम और टाइटेनियम जैसे महत्वपूर्ण धातुओं का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है। ये धातुएँ ऑटोमोटिव, एयरोस्पेस और इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे उद्योगों के लिए महत्वपूर्ण हैं। अमेरिका और यूरोप के लिए इन धातुओं के अन्य स्रोतों को तुरंत खोजना बेहद मुश्किल है, खासकर ऐसे समय में जब वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला पहले से ही बाधित है।
  • खाद्य और कृषि उत्पाद: रूस उर्वरकों (fertilizers) का एक बड़ा निर्यातक है। उर्वरकों का वैश्विक स्तर पर खाद्य उत्पादन पर सीधा प्रभाव पड़ता है। यदि रूस से उर्वरकों का आयात पूरी तरह से बंद हो जाए, तो वैश्विक खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है, जो पहले से ही युद्ध और जलवायु परिवर्तन से प्रभावित है।
  • हीरे: रूस दुनिया के सबसे बड़े हीरा उत्पादकों में से एक है। भले ही पश्चिमी देशों ने रूसी हीरे के आयात पर प्रतिबंध लगाने की कोशिश की है, लेकिन इन प्रतिबंधों को लागू करना एक जटिल प्रक्रिया है, क्योंकि हीरे अक्सर तीसरे देशों से होकर गुजरते हैं।

उपमा: सोचिए कि आपका पड़ोस एक व्यक्ति से नाराज है और उस पर प्रतिबंध लगाना चाहता है। लेकिन, उसी व्यक्ति के पास आपके घर के लिए एकमात्र नलसाज है, जिसके बिना आपके घर में पानी नहीं आ सकता। आप उस व्यक्ति को सजा देना चाहते हैं, लेकिन आपको अपने घर को बाढ़ से बचाने के लिए उसे काम पर रखना होगा। यह अमेरिका और यूरोप की स्थिति के समान है – वे रूस को दंडित करना चाहते हैं, लेकिन उन्हें अपनी अर्थव्यवस्थाओं को सुचारू रूप से चलाने के लिए कुछ रूसी वस्तुओं की आवश्यकता है।

भारत की स्थिति: संतुलन का नाजुक कार्य

भारत की स्थिति इस वैश्विक पहेली में अत्यंत महत्वपूर्ण और जटिल है। भारत के रूस के साथ ऐतिहासिक रूप से मजबूत संबंध रहे हैं, विशेष रूप से रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में। रूस भारत के लिए हथियारों और रक्षा उपकरणों का सबसे बड़ा आपूर्तिकर्ता रहा है। इसके अलावा, हाल के वर्षों में, भारत ने रूसी तेल का आयात बढ़ा दिया है, खासकर यूक्रेन युद्ध के बाद।

भारत द्वारा रूस से आयात बढ़ाने के कारण:

  • ऊर्जा सुरक्षा: भारत अपनी ऊर्जा का लगभग 85% आयात करता है। यूक्रेन युद्ध के बाद वैश्विक तेल की कीमतों में भारी वृद्धि हुई। इस दौरान, रूस ने रियायती दरों पर तेल की पेशकश की, जिसे भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए भुनाया। यह भारत के लिए एक आर्थिक आवश्यकता थी।
  • रक्षा संबंध: भारत अभी भी रक्षा क्षेत्र में रूस पर महत्वपूर्ण रूप से निर्भर है। मौजूदा रक्षा उपकरणों के रखरखाव, स्पेयर पार्ट्स की आपूर्ति और नई खरीद के लिए रूस के साथ संबंध बनाए रखना भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
  • आर्थिक विवेक: पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद, भारत ने रूस के साथ व्यापार जारी रखने का निर्णय लिया। यह निर्णय भारत के अपने आर्थिक हितों, पश्चिमी देशों की प्रतिबंधों के प्रति रणनीतिक प्रतिक्रिया और रूस के साथ दीर्घकालिक संबंधों को बनाए रखने की इच्छा से प्रेरित था।

भारत के सामने चुनौतियाँ:

  • पश्चिमी दबाव: भारत पर अमेरिका और यूरोपीय देशों द्वारा रूस के साथ अपने व्यापार को कम करने या बंद करने का दबाव है। ये देश भारत को महत्वपूर्ण रक्षा, प्रौद्योगिकी और आर्थिक सहायता प्रदान करते हैं, और रूस के साथ गहरे संबंध उनके लिए एक राजनीतिक चिंता का विषय हैं।
  • भुगतान तंत्र: पश्चिमी प्रतिबंधों के कारण, भारत के लिए रूस को भुगतान करना एक चुनौती बन गया है। रुपये-रूबल विनिमय दर और भुगतान के वैकल्पिक तरीकों को खोजना एक जटिल प्रक्रिया रही है।
  • बढ़ती कीमतें: भले ही भारत को रियायती दर पर रूसी तेल मिल रहा है, लेकिन वैश्विक स्तर पर ऊर्जा की बढ़ती कीमतों का प्रभाव भारतीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ता है, जिससे घरेलू स्तर पर पेट्रोल-डीजल की कीमतें बढ़ती हैं।
  • भू-राजनीतिक संरेखण: भारत को लगातार यह सुनिश्चित करना होता है कि उसके कार्य किसी एक प्रमुख शक्ति गुट के साथ उसके संबंधों को गंभीर रूप से नुकसान न पहुंचाएं।

भारत कहाँ खड़ा है: एक स्वतंत्र विदेश नीति का प्रदर्शन

भारत का रुख एक ‘संतुलित’ या ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की विदेश नीति का उदाहरण है। भारत ने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक हितों को प्राथमिकता दी है, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने की कोशिश भी की है। भारत ने यूक्रेन में युद्ध की निंदा की है और मानवीय सहायता प्रदान की है, लेकिन उसने रूस पर व्यापक प्रतिबंधों में भाग लेने से इनकार कर दिया है।

केस स्टडी: भारत का रूसी तेल आयात

यूक्रेन युद्ध शुरू होने से पहले, भारत रूस से बहुत कम मात्रा में तेल आयात करता था। लेकिन 2022 में, भारत रूस से कच्चे तेल के सबसे बड़े खरीदारों में से एक बन गया, जो पहले के मुकाबले कई गुना अधिक आयात कर रहा था। यह कदम पश्चिमी देशों के लिए एक चौंकाने वाला था। यह भारत की “अपनी जरूरतें पहले” वाली विदेश नीति का एक स्पष्ट उदाहरण है। भारत ने वैश्विक बाजारों में उपलब्ध सबसे आकर्षक कीमत पर तेल खरीदा, जिससे न केवल उसकी ऊर्जा बास्केट में विविधता आई, बल्कि उसके विदेशी मुद्रा भंडार पर भी दबाव कम हुआ।

आयात का प्रभाव: वैश्विक अर्थव्यवस्था पर दूरगामी परिणाम

अमेरिका, यूरोप और भारत के बीच रूस से आयात का पैटर्न वैश्विक अर्थव्यवस्था पर कई तरह से प्रभाव डालता है:

  • ऊर्जा बाजार: जब तक यूरोप रूसी ऊर्जा पर कुछ हद तक निर्भर रहा, तब तक यह वैश्विक तेल और गैस की कीमतों को स्थिर रखने में मदद करता रहा। हालांकि, रूस से दूर होने के प्रयास के कारण, तेल की कीमतें बढ़ीं, जिससे मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिला।
  • आपूर्ति श्रृंखला: धातुओं और उर्वरकों जैसे रूसी उत्पादों पर निर्भरता ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला को और अधिक जटिल बना दिया है। इन वस्तुओं के वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं को खोजना या उत्पादन बढ़ाना समय लेने वाला और महंगा है।
  • भू-राजनीतिक शक्ति संतुलन: यह स्थिति पश्चिमी देशों की रूस को अलग-थलग करने की क्षमता पर सवाल उठाती है। यह रूस को अपनी अर्थव्यवस्था को बनाए रखने के लिए वैकल्पिक बाजार खोजने की अनुमति देता है, खासकर भारत और चीन जैसे देशों में।
  • मुद्रास्फीति: वैश्विक स्तर पर ऊर्जा और वस्तुओं की कीमतों में वृद्धि ने दुनिया भर में मुद्रास्फीति को बढ़ाया है, जिससे लोगों की क्रय शक्ति कम हुई है।

चुनौतियाँ और अवसर

चुनौतियाँ:

  • विकल्पों की सीमितता: कई महत्वपूर्ण वस्तुओं के लिए, रूस एक प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता है, और इसके उत्पादों के लिए तत्काल विकल्प खोजना मुश्किल है।
  • प्रतिबंधों का प्रवर्तन: प्रतिबंधों को पूरी तरह से लागू करना और उनसे बचना बहुत कठिन है, खासकर जटिल वैश्विक व्यापार नेटवर्क में।
  • नैतिक दुविधा: क्या एक देश को आर्थिक रूप से उन देशों के साथ व्यापार जारी रखना चाहिए जो अंतर्राष्ट्रीय कानून या मानवाधिकारों का उल्लंघन करते हैं? यह एक जटिल नैतिक प्रश्न है।
  • कूटनीतिक दबाव: देशों को अपने राष्ट्रीय हितों और अंतर्राष्ट्रीय सहयोगियों की अपेक्षाओं के बीच संतुलन बनाना पड़ता है।

अवसर:

  • आपूर्ति श्रृंखला का विविधीकरण: यह स्थिति देशों को महत्वपूर्ण कच्चे माल और उत्पादों के लिए अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने के लिए प्रेरित कर सकती है, जिससे वे भविष्य में झटकों के प्रति अधिक प्रतिरोधी बन सकें।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश: ऊर्जा निर्भरता को कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश के अवसर पैदा होते हैं।
  • नई व्यापार साझेदारी: यह स्थिति नए व्यापारिक संबंधों और गठबंधनों को विकसित करने का अवसर भी प्रदान करती है।

भविष्य की राह: एक बदलती दुनिया

यह स्थिति इंगित करती है कि भू-राजनीतिक तनावों के बीच भी, वैश्विक आर्थिक वास्तविकताएं अक्सर राजनीतिक बयानों से अधिक प्रभावी होती हैं। अमेरिका और यूरोप को अपनी ऊर्जा और औद्योगिक जरूरतों को पूरा करने के लिए रूस पर किसी न किसी रूप में निर्भर रहना पड़ा है, जबकि भारत ने अपनी ऊर्जा सुरक्षा और राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखा है।

भविष्य में, हम उम्मीद कर सकते हैं कि:

  • यूरोप रूसी ऊर्जा पर अपनी निर्भरता कम करने के लिए आक्रामक कदम उठाएगा, लेकिन इसमें समय लगेगा।
  • धातुओं और उर्वरकों जैसे आवश्यक उत्पादों के लिए नए वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं की खोज तेज होगी।
  • भारत रूस के साथ अपने व्यापारिक संबंधों को जारी रखने की कोशिश करेगा, लेकिन पश्चिमी देशों के साथ अपने संबंधों को भी संतुलित करने का प्रयास करेगा।
  • वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं अधिक स्थानीयकृत और विविध हो सकती हैं।
  • भू-राजनीतिक गुटबंदी और आर्थिक सहयोग के बीच एक निरंतर तनाव बना रहेगा।

यह एक जटिल और गतिशील स्थिति है, और यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए यह महत्वपूर्ण है कि वे इस मुद्दे के विभिन्न आयामों को समझें – आर्थिक, राजनीतिक और कूटनीतिक। यह केवल आयात-निर्यात का आंकड़ा नहीं है, बल्कि यह दर्शाता है कि कैसे राष्ट्र अपने हितों को साधते हैं और बदलते वैश्विक परिदृश्य में खुद को कैसे स्थापित करते हैं।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न: हालिया विश्लेषणों के अनुसार, अमेरिका और यूरोप के देश रूस से किन मुख्य श्रेणियों की वस्तुओं का आयात जारी रखे हुए हैं?
  2. (a) केवल ऊर्जा उत्पाद
  3. (b) केवल कृषि उत्पाद
  4. (c) ऊर्जा, धातुएँ, कृषि उत्पाद और हीरे
  5. (d) केवल रक्षा उपकरण
  6. उत्तर: (c)
    व्याख्या: भले ही ऊर्जा आयात पर ध्यान केंद्रित है, अमेरिका और यूरोप अभी भी रूस से पैलेडियम, निकल जैसी धातुएँ, उर्वरक और हीरे जैसी महत्वपूर्ण वस्तुओं का आयात कर रहे हैं, क्योंकि उनके लिए तत्काल विकल्प उपलब्ध नहीं हैं।

  7. प्रश्न: यूक्रेन युद्ध के बाद, भारत द्वारा रूस से कच्चे तेल के आयात में उल्लेखनीय वृद्धि का मुख्य कारण क्या था?
  8. (a) भारत की रूस के साथ रक्षा साझेदारी मजबूत हुई।
  9. (b) भारत को रियायती दरों पर तेल मिला, जिससे उसकी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित हुई।
  10. (c) पश्चिमी देशों द्वारा भारत पर रूसी तेल खरीदने का दबाव था।
  11. (d) भारत को पश्चिमी देशों पर अपनी निर्भरता कम करनी थी।
  12. उत्तर: (b)
    व्याख्या: युद्ध के कारण वैश्विक तेल की कीमतें बढ़ने पर, रूस ने भारत को रियायती दरों पर तेल की पेशकश की, जिसने भारत की ऊर्जा सुरक्षा आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद की और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में भूमिका निभाई।

  13. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा देश रूस से “पैलेडियम” धातु का एक प्रमुख वैश्विक आपूर्तिकर्ता है, जिसका आयात अमेरिका और यूरोप अभी भी कर रहे हैं?
  14. (a) ब्राजील
  15. (b) कनाडा
  16. (c) रूस
  17. (d) ऑस्ट्रेलिया
  18. उत्तर: (c)
    व्याख्या: रूस पैलेडियम का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता है, जो ऑटोमोटिव उत्प्रेरक कन्वर्टर्स (catalytic converters) में प्रयोग किया जाता है। इसके आयात पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना कई उद्योगों के लिए मुश्किल रहा है।

  19. प्रश्न: भारत की विदेश नीति, विशेष रूप से रूस के संबंध में, किस सिद्धांत का उदाहरण प्रस्तुत करती है?
  20. (a) गुटनिरपेक्षता
  21. (b) पश्चिमी-ध्रुवीकृत नीति
  22. (c) रणनीतिक स्वायत्तता
  23. (d) केवल आर्थिक हित
  24. उत्तर: (c)
    व्याख्या: भारत रूस के साथ अपने संबंधों को बनाए रखते हुए पश्चिमी देशों के साथ अपने हितों को भी संतुलित करने का प्रयास कर रहा है, जो रणनीतिक स्वायत्तता के सिद्धांत को दर्शाता है।

  25. प्रश्न: रूस से उर्वरकों का आयात कई देशों के लिए महत्वपूर्ण क्यों है?
  26. (a) ये उर्वरक उच्च गुणवत्ता वाले होते हैं।
  27. (b) ये वैश्विक खाद्य उत्पादन को सीधे प्रभावित करते हैं।
  28. (c) रूस दुनिया का एकमात्र उर्वरक निर्यातक है।
  29. (d) ये विशेष प्रकार की फसलों के लिए आवश्यक हैं।
  30. उत्तर: (b)
    व्याख्या: रूस दुनिया के सबसे बड़े उर्वरक निर्यातकों में से एक है। इसके आयात में कमी से वैश्विक स्तर पर उर्वरक की कीमतें बढ़ सकती हैं और खाद्य उत्पादन प्रभावित हो सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा को खतरा हो सकता है।

  31. प्रश्न: पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?
  32. (a) रूस को आर्थिक रूप से मजबूत करना।
  33. (b) रूस की युद्ध मशीनरी को कमजोर करना और उसे अलग-थलग करना।
  34. (c) रूस के आंतरिक राजनीतिक मामलों में हस्तक्षेप करना।
  35. (d) रूस के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाना।
  36. उत्तर: (b)
    व्याख्या: प्रतिबंधों का मुख्य लक्ष्य रूस की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करके, विशेष रूप से ऊर्जा निर्यात से उसकी आय को कम करके, उसकी सैन्य क्षमता को कमजोर करना और उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग करना था।

  37. प्रश्न: भारत को रूस से भुगतान करने में किन तकनीकी/आर्थिक चुनौतियों का सामना करना पड़ता है?
  38. (a) रुपये-रूबल विनिमय दर की अस्थिरता।
  39. (b) पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए वित्तीय प्रतिबंध।
  40. (c) SWIFT प्रणाली से रूस को बाहर करना।
  41. (d) उपरोक्त सभी
  42. उत्तर: (d)
    व्याख्या: पश्चिमी प्रतिबंधों ने रूस के लिए अंतर्राष्ट्रीय भुगतान प्रणाली, जैसे SWIFT, से बाहर होने और भारतीय रुपये के साथ व्यापार करने की एक जटिल भुगतान तंत्र बनाने की आवश्यकता पैदा की है, जिससे विनिमय दर संबंधी चिंताएँ भी उत्पन्न होती हैं।

  43. प्रश्न: हाल के वर्षों में, कौन से प्रमुख क्षेत्र भारत और रूस के बीच द्विपक्षीय व्यापार के महत्वपूर्ण स्तंभ रहे हैं?
  44. (a) केवल ऊर्जा
  45. (b) केवल रक्षा
  46. (c) ऊर्जा और रक्षा
  47. (d) केवल प्रौद्योगिकी
  48. उत्तर: (c)
    व्याख्या: भारत के लिए रूस पारंपरिक रूप से हथियारों और रक्षा उपकरणों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहा है, और हाल के वर्षों में, ऊर्जा (विशेष रूप से तेल) आयात भी महत्वपूर्ण हो गया है।

  49. प्रश्न: आपूर्ति श्रृंखलाओं के विविधीकरण से राष्ट्रों को किस प्रकार लाभ हो सकता है?
  50. (a) वे भविष्य के झटकों के प्रति अधिक प्रतिरोधी बन जाते हैं।
  51. (b) वे केवल एक ही आपूर्तिकर्ता पर निर्भर रहते हैं।
  52. (c) वे उत्पादन लागत बढ़ा देते हैं।
  53. (d) वे अंतरराष्ट्रीय व्यापार से अलग हो जाते हैं।
  54. उत्तर: (a)
    व्याख्या: आपूर्ति श्रृंखलाओं में विविधता लाने का मतलब है कि किसी देश के पास विभिन्न देशों से माल प्राप्त करने के कई स्रोत हैं, जिससे किसी एक स्रोत में व्यवधान होने पर अर्थव्यवस्था पर कम प्रभाव पड़ता है।

  55. प्रश्न: “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) की अवधारणा का क्या अर्थ है?
  56. (a) पूरी तरह से किसी एक महाशक्ति के साथ संरेखित होना।
  57. (b) अन्य देशों पर पूर्ण निर्भरता।
  58. (c) अपनी विदेश नीति और राष्ट्रीय हितों को अपने विवेक से निर्धारित करने की क्षमता, बिना किसी बाहरी दबाव के।
  59. (d) केवल आर्थिक लाभ पर ध्यान केंद्रित करना।
  60. उत्तर: (c)
    व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता का अर्थ है कि एक देश अपनी विदेश नीति, सुरक्षा और आर्थिक फैसलों को स्वतंत्र रूप से, अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के अनुसार ले सकता है, भले ही वह अन्य शक्तियों के साथ सहयोग करे।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न: यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के बावजूद, अमेरिका और यूरोप द्वारा रूस से महत्वपूर्ण मात्रा में वस्तुओं का आयात जारी रखने के पीछे की आर्थिक और भू-राजनीतिक मजबूरियों का विश्लेषण करें। इस संदर्भ में भारत की स्थिति का समालोचनात्मक मूल्यांकन करें। (250 शब्द)
  2. प्रश्न: रूस से आयातित वस्तुएं, विशेष रूप से ऊर्जा और महत्वपूर्ण धातुएँ, वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं और संबंधित देशों की अर्थव्यवस्थाओं को कैसे प्रभावित करती हैं? भारत जैसे देशों के लिए इसके क्या निहितार्थ हैं जो इन आयातों पर निर्भर हैं? (250 शब्द)
  3. प्रश्न: “रणनीतिक स्वायत्तता” के सिद्धांत को ध्यान में रखते हुए, भारत के रूस से रक्षा उपकरणों और तेल के आयात को जारी रखने के निर्णय का परीक्षण करें। पश्चिमी देशों के दबाव और भारत के राष्ट्रीय हितों के बीच संतुलन बनाने में भारत की कूटनीतिक चुनौतियों का वर्णन करें। (250 शब्द)
  4. प्रश्न: एक वैश्विक घटना के रूप में रूस से वस्तुओं के आयात को एक “वास्तविकता की जांच” के रूप में देखें। यह कैसे दर्शाता है कि कूटनीति और राष्ट्रीय हित अक्सर भू-राजनीतिक संघर्षों के दौरान भी आर्थिक संबंधों को कैसे प्रभावित करते हैं? (250 शब्द)

Leave a Comment