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रूसी तेल पर प्रतिबंध: भारत की जेब पर पड़ेगा कितना बोझ? जानिए पूरी गणित!

रूसी तेल पर प्रतिबंध: भारत की जेब पर पड़ेगा कितना बोझ? जानिए पूरी गणित!

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल के वैश्विक भू-राजनीतिक घटनाक्रमों और पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए विभिन्न प्रतिबंधों के बीच, अंतर्राष्ट्रीय तेल बाजार में एक अनिश्चितता का माहौल है। ऐसे में, भारत जैसे तेल आयात करने वाले प्रमुख देश के लिए यह समझना अत्यंत महत्वपूर्ण हो जाता है कि यदि वह रूस से तेल खरीदना बंद कर दे तो उसकी आर्थिक स्थिति पर क्या प्रभाव पड़ेगा, खासकर अमेरिकी प्रतिबंधों के संभावित प्रभाव को देखते हुए। यह लेख इसी जटिल प्रश्न का विस्तृत विश्लेषण प्रस्तुत करता है, जिसमें यह बताया जाएगा कि किस प्रकार रूसी कच्चे तेल पर भारत की निर्भरता और उसके बदले विकल्प तलाशने की लागत, देश की अर्थव्यवस्था के लिए एक महत्वपूर्ण चुनौती बन सकती है।

पृष्ठभूमि (Background):

दुनिया की ऊर्जा सुरक्षा, विशेष रूप से तेल की आपूर्ति, हमेशा से भू-राजनीतिक तनावों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण संकेतक रही है। हाल के वर्षों में, रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल उत्पादकों और निर्यातकों में से एक रहा है। भारत, अपनी बढ़ती ऊर्जा मांगों को पूरा करने के लिए, तेल आयात पर बहुत अधिक निर्भर करता है। पिछले कुछ वर्षों में, विशेष रूप से यूक्रेन संघर्ष के बाद, भारत ने अपने तेल आयात पोर्टफोलियो में विविधता लाने के प्रयास किए हैं, जिसमें रूसी कच्चे तेल की खरीद में वृद्धि एक महत्वपूर्ण पहलू रहा है। यह वृद्धि मुख्य रूप से रूसी तेल पर भारी छूट के कारण हुई थी, जिसने भारत को अपनी ऊर्जा लागत को प्रबंधित करने में मदद की।

हालांकि, अमेरिका और उसके सहयोगी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों ने इस समीकरण को जटिल बना दिया है। ये प्रतिबंध न केवल रूसी तेल के निर्यात को प्रभावित करते हैं, बल्कि उन देशों को भी चेतावनी देते हैं जो रूसी ऊर्जा से लेनदेन करते हैं। इस संदर्भ में, यह सवाल उठना स्वाभाविक है कि यदि भारत को अमेरिकी प्रतिबंधों के डर से या किसी अन्य कारण से रूसी कच्चे तेल का आयात पूरी तरह से बंद करना पड़े, तो उसकी अर्थव्यवस्था पर क्या असर पड़ेगा?

भारत की तेल आयात निर्भरता (India’s Oil Import Dependence):

भारत अपनी लगभग 85% तेल आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है। यह एक बहुत बड़ी संख्या है और इसे वैश्विक तेल की कीमतों में किसी भी तरह की अस्थिरता के प्रति अत्यधिक संवेदनशील बनाती है। भारत का ऊर्जा मिश्रण विविध है, लेकिन कच्चे तेल की खरीद राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता का एक महत्वपूर्ण स्तंभ है।

रूसी कच्चे तेल का महत्व (Significance of Russian Crude Oil):

  • छूट पर उपलब्धता: पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद, रूस ने अपने तेल की बिक्री को बढ़ावा देने के लिए भारी छूट की पेशकश की। इससे भारत को रियायती दरों पर तेल प्राप्त करने का अवसर मिला, जिससे उसके आयात बिल में कमी आई।
  • विविधीकरण: पहले भारत मुख्य रूप से मध्य पूर्व (सऊदी अरब, इराक, यूएई) और कुछ हद तक पश्चिम अफ्रीका से तेल आयात करता था। रूसी तेल ने आपूर्ति स्रोतों का विविधीकरण किया, जिससे किसी एक क्षेत्र पर अत्यधिक निर्भरता कम हुई।
  • आपूर्ति की निरंतरता: रूसी तेल की खरीद ने भारत को वैश्विक आपूर्ति के मुद्दों से निपटने और अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने में मदद की, खासकर जब अन्य प्रमुख आपूर्तिकर्ता देशों में उत्पादन या निर्यात में बाधाएं आईं।

“ट्रम्प टैरिफ” का क्या मतलब है? (What does “Trump Tariffs” mean here?):

यह समझना महत्वपूर्ण है कि “ट्रम्प टैरिफ” शब्द यहां सीधे तौर पर पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा लगाए गए टैरिफ से संबंधित नहीं है, बल्कि यह एक व्यापक अवधारणा को दर्शाता है कि कैसे संयुक्त राज्य अमेरिका अपने भू-राजनीतिक लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए विभिन्न देशों पर आर्थिक दबाव (जैसे टैरिफ, प्रतिबंध, या व्यापार बाधाएं) डाल सकता है। इस विशेष संदर्भ में, यह रूस पर लगाए गए अमेरिकी नेतृत्व वाले प्रतिबंधों का एक प्रतीकात्मक संदर्भ है, जो रूसी तेल के आयात को प्रभावित करते हैं और अप्रत्यक्ष रूप से उन देशों पर दबाव डालते हैं जो रूसी तेल खरीदते हैं। यदि अमेरिका किसी देश पर रूसी तेल खरीदने के लिए “टैरिफ” या समकक्ष प्रतिबंध लगाता है, तो इसका मतलब होगा कि उस देश को या तो अधिक महंगा तेल खरीदना होगा या वैकल्पिक स्रोतों की तलाश करनी होगी, जो कि उच्च लागत वाला हो सकता है।

रूसी तेल खरीदना बंद करने पर भारत के लिए क्या लागतें होंगी? (What would be the costs for India if it stops buying Russian crude?):

रूसी तेल खरीदना बंद करने का निर्णय भारत के लिए एक बहुआयामी लागत प्रस्तुत करेगा:

  1. ऊंची खरीद लागत (Higher Procurement Costs):

    बिना छूट के तेल: वर्तमान में, भारत को रूसी तेल रियायती दरों पर मिल रहा है। यदि यह बंद हो जाता है, तो भारत को अंतर्राष्ट्रीय बाजार मूल्य पर तेल खरीदना होगा, जो रूसी तेल की तुलना में काफी महंगा होगा।

    विकल्पों की लागत: भारत को अन्य देशों से तेल खरीदना पड़ेगा। ये देश या तो गैर-रूसी आपूर्तिकर्ता होंगे (जैसे मध्य पूर्व, अफ्रीका, अमेरिका) या जो देश रूसी तेल से अपने भंडार को फिर से भर रहे होंगे। इन स्रोतों से तेल की कीमत छूट के बिना, अंतर्राष्ट्रीय बाजार मूल्य पर होगी।

    शिपिंग और लॉजिस्टिक्स: भौगोलिक दूरी और वैकल्पिक आपूर्ति मार्गों की स्थापना में अतिरिक्त शिपिंग लागतें भी शामिल हो सकती हैं।

  2. ऊर्जा सुरक्षा पर प्रभाव (Impact on Energy Security):

    आपूर्ति की अनिश्चितता: यदि भारत अपने एक महत्वपूर्ण आपूर्तिकर्ता को खो देता है, तो उसे अपनी आपूर्ति को बनाए रखने के लिए अधिक जटिल व्यवस्था करनी होगी। वैश्विक तेल बाजार अस्थिर हो सकता है, और अचानक मांग बढ़ने पर आपूर्ति में कमी का खतरा हो सकता है।

    बढ़ती निर्भरता: यदि भारत को एक बार फिर मध्य पूर्व या अन्य क्षेत्रों पर अधिक निर्भर होना पड़ता है, तो यह उस क्षेत्र में अस्थिरता के प्रति अधिक संवेदनशील हो जाएगा।

  3. आर्थिक प्रभाव (Economic Impact):

    व्यापार घाटा: तेल एक प्रमुख आयात वस्तु है। तेल की कीमतों में वृद्धि से भारत का व्यापार घाटा (आयात और निर्यात के बीच का अंतर) बढ़ेगा।

    मुद्रास्फीति: परिवहन लागत बढ़ने, औद्योगिक उत्पादन के लिए कच्चे माल की लागत बढ़ने और ऊर्जा की समग्र लागत बढ़ने से देश में मुद्रास्फीति (महंगाई) बढ़ेगी। यह आम आदमी के जीवन पर सीधा प्रभाव डालेगा।

    चालू खाता घाटा (Current Account Deficit): व्यापार घाटे में वृद्धि सीधे तौर पर चालू खाता घाटे को प्रभावित करेगी, जिससे देश की भुगतान संतुलन की स्थिति कमजोर हो सकती है।

    रुपये का अवमूल्यन: उच्च आयात बिल और बढ़ते चालू खाता घाटे से भारतीय रुपये पर दबाव पड़ सकता है, जिससे उसका मूल्य गिर सकता है।

    औद्योगिक उत्पादन पर असर: ऊर्जा लागत बढ़ने से विनिर्माण और अन्य उद्योगों की उत्पादन लागत बढ़ेगी, जिससे उनकी प्रतिस्पर्धात्मकता प्रभावित हो सकती है और विकास दर धीमी हो सकती है।

  4. भू-राजनीतिक प्रभाव (Geopolitical Impact):

    पश्चिम के साथ संबंध: यदि भारत रूसी तेल का आयात जारी रखता है, तो यह अमेरिका और उसके सहयोगियों के साथ उसके संबंधों को तनावपूर्ण बना सकता है। दूसरी ओर, यदि वह रूसी तेल को छोड़ देता है, तो यह रूस के साथ उसके संबंधों को प्रभावित कर सकता है।

    रणनीतिक स्वायत्तता: भारत अपनी “रणनीतिक स्वायत्तता” बनाए रखने की कोशिश कर रहा है, जिसका अर्थ है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेता है, चाहे वे किसी भी प्रमुख शक्ति के साथ हों। रूसी तेल का निर्णय इस स्वायत्तता का एक महत्वपूर्ण परीक्षण है।

वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता और उनकी लागतें (Alternative Suppliers and Their Costs):

यदि भारत रूसी तेल का आयात बंद कर देता है, तो उसे अपने तेल आयात के लिए अन्य स्रोतों की ओर देखना होगा। मुख्य वैकल्पिक आपूर्तिकर्ता कौन होंगे और उनकी क्या लागतें होंगी:

  1. मध्य पूर्व (Middle East):

    • आपूर्तिकर्ता: सऊदी अरब, इराक, यूएई, कुवैत।
    • ऐतिहासिक संबंध: भारत के इन देशों के साथ पुराने और मजबूत संबंध हैं।
    • लागत: वर्तमान में, इन देशों से तेल की कीमतें अंतर्राष्ट्रीय बाजार दरों पर चल रही हैं। रूसी तेल की तुलना में ये दरें निश्चित रूप से अधिक होंगी, खासकर छूट के बिना।
    • शिपिंग: भौगोलिक निकटता के कारण शिपिंग लागत अपेक्षाकृत कम होती है।
  2. अफ्रीका (Africa):

    • आपूर्तिकर्ता: नाइजीरिया, अंगोला, लीबिया।
    • लागत: यह तेल अक्सर ब्रेंट क्रूड (Brent Crude) से थोड़ा कम मूल्य का होता है, लेकिन रूसी तेल पर मिलने वाली छूट से इसकी तुलना करना मुश्किल है।
    • शिपिंग: शिपिंग लागत मध्य पूर्व से थोड़ी अधिक हो सकती है।
  3. अमेरिका (United States):

    • आपूर्तिकर्ता: शेल तेल (Shale Oil)।
    • लागत: अमेरिकी तेल की कीमतें अक्सर वैश्विक बाजार से जुड़ी होती हैं। यदि प्रतिबंधों के कारण वैश्विक आपूर्ति कम होती है, तो अमेरिकी तेल की कीमतें भी बढ़ सकती हैं।
    • शिपिंग: भारत तक अमेरिकी तेल लाने के लिए लंबी दूरी की शिपिंग लागतें महत्वपूर्ण हो सकती हैं।
  4. अन्य (Others):

    • आपूर्तिकर्ता: कनाडा, ब्राजील, नॉर्वे।
    • लागत: इन स्रोतों से भी तेल अंतर्राष्ट्रीय बाजार दरों पर उपलब्ध होगा।
    • शिपिंग: लंबी शिपिंग दूरी लागत को बढ़ाएगी।

संख्यात्मक अनुमान (Numerical Estimation):

यह अनुमान लगाना कठिन है कि भारत को “कितना अधिक” भुगतान करना पड़ेगा, क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय तेल की कीमतों, रूसी तेल पर मिलने वाली छूट की मात्रा और वैकल्पिक आपूर्तिकर्ताओं की उपलब्धता पर निर्भर करता है। हालांकि, हम एक सैद्धांतिक गणना कर सकते हैं:

मान लीजिए कि भारत प्रति दिन 4 मिलियन बैरल (MBPD) कच्चे तेल का आयात करता है।
वर्तमान में, मान लीजिए कि इसमें से 1.5 MBPD रूसी तेल है, जिस पर भारत को प्रति बैरल $15-$20 की छूट मिल रही है।
यदि भारत को यह 1.5 MBPD रूसी तेल छोड़ना पड़ता है और उसे अंतर्राष्ट्रीय बाजार दर पर (मान लीजिए $85 प्रति बैरल) खरीदना पड़ता है, जबकि उसे रूसी तेल $65-$70 प्रति बैरल में मिल रहा था।

दैनिक अतिरिक्त लागत:

1.5 मिलियन बैरल * ($85 – $70) = 1.5 मिलियन बैरल * $15 = $22.5 मिलियन प्रतिदिन।

वार्षिक अतिरिक्त लागत:

$22.5 मिलियन/दिन * 365 दिन/वर्ष = लगभग $8.2 बिलियन प्रति वर्ष।

यह केवल एक अनुमान है। वास्तविक लागत बाजार की स्थितियों, छूट की मात्रा और अन्य कई कारकों के आधार पर भिन्न हो सकती है। यदि छूट की मात्रा अधिक है या अंतर्राष्ट्रीय कीमतें बढ़ती हैं, तो यह लागत काफी अधिक हो सकती है। इसके अलावा, यह केवल खरीद मूल्य है; इसमें शिपिंग, बीमा और अन्य संबंधित लागतें शामिल नहीं हैं।

क्या भारत रूसी तेल का बहिष्कार कर सकता है? (Can India Boycott Russian Oil?):

तकनीकी रूप से, भारत रूसी तेल का बहिष्कार कर सकता है, लेकिन यह एक जटिल निर्णय होगा जिसके दूरगामी परिणाम होंगे।

संभावित कारण क्यों नहीं (Potential reasons why not):

  • आर्थिक दबाव: उच्च तेल आयात लागत भारत की अर्थव्यवस्था पर गंभीर दबाव डालेगी, जिससे मुद्रास्फीति बढ़ेगी और विकास दर प्रभावित होगी।
  • ऊर्जा सुरक्षा: अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए विश्वसनीय आपूर्ति बनाए रखना भारत की प्राथमिकता है।
  • रूस के साथ संबंध: रूस भारत का एक पारंपरिक रणनीतिक भागीदार रहा है।

संभावित कारण क्यों कर सकता है (Potential reasons why it might):

  • पश्चिमी देशों का दबाव: अमेरिका और यूरोपीय संघ जैसे प्रमुख आर्थिक साझेदारों के साथ संबंधों को बनाए रखने के लिए।
  • वित्तीय और कानूनी जोखिम: यदि पश्चिमी देश रूसी तेल के साथ व्यापार करने वाले देशों पर सीधे तौर पर प्रतिबंध लगाने लगते हैं, तो भारत को वित्तीय दंड या कानूनी बाधाओं का सामना करना पड़ सकता है।

विशेषज्ञों की राय और विश्लेषण (Experts’ Opinions and Analysis):

ऊर्जा विश्लेषक इस बात पर सहमत हैं कि रूसी तेल पर निर्भरता कम करना या समाप्त करना भारत के लिए एक महत्वपूर्ण आर्थिक चुनौती पेश करेगा। कई विशेषज्ञों का मानना ​​है कि भारत को अपनी ऊर्जा लागत को प्रबंधित करने के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण अपनाना होगा।

“भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा और अपनी अर्थव्यवस्था की स्थिरता के बीच संतुलन बनाना होगा। रूसी तेल पर मिलने वाली छूट एक महत्वपूर्ण वित्तीय लाभ है, लेकिन इसके भू-राजनीतिक निहितार्थ भी हैं जिन पर विचार करना होगा।” – एक प्रमुख ऊर्जा थिंक टैंक के विश्लेषक।

अन्य विश्लेषक इस बात पर जोर देते हैं कि भारत को नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों और ऊर्जा दक्षता को बढ़ाकर अपनी आयात पर निर्भरता को कम करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। यह दीर्घकालिक समाधान प्रदान करेगा।

भारत के समक्ष चुनौतियाँ (Challenges before India):

रूसी तेल को छोड़ना भारत के लिए कई चुनौतियाँ खड़ी करेगा:

  • सही कीमत पर विकल्प ढूंढना: अंतर्राष्ट्रीय बाजार में कीमतों के उतार-चढ़ाव के बीच, समान गुणवत्ता और मात्रा में तेल ढूंढना एक चुनौती होगी।
  • आपूर्ति श्रृंखलाओं का प्रबंधन: नए आपूर्तिकर्ताओं के साथ दीर्घकालिक अनुबंध स्थापित करना और आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित करना।
  • घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना: बढ़ती ऊर्जा लागत के कारण होने वाली मुद्रास्फीति को रोकना सरकार के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय होगा।
  • भू-राजनीतिक दबावों को संतुलित करना: विभिन्न वैश्विक शक्तियों के साथ अपने संबंधों को बनाए रखते हुए अपने राष्ट्रीय हितों की रक्षा करना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश: जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए नवीकरणीय ऊर्जा और वैकल्पिक ईंधनों में बड़े पैमाने पर निवेश की आवश्यकता है।

भविष्य की राह (Future Path):

भारत के लिए आगे बढ़ने का मार्ग एक बहुआयामी रणनीति पर आधारित होना चाहिए:

  • ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण: केवल एक या दो देशों पर निर्भर रहने के बजाय, विभिन्न क्षेत्रों से तेल और गैस आयात के स्रोतों का विस्तार करना।
  • नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा: सौर, पवन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश बढ़ाना ताकि बिजली उत्पादन में उनकी हिस्सेदारी बढ़ाई जा सके।
  • ऊर्जा दक्षता: उद्योगों, परिवहन और घरों में ऊर्जा की खपत को कम करने के लिए ऊर्जा दक्षता उपायों को लागू करना।
  • इलेक्ट्रिक वाहनों को बढ़ावा: परिवहन क्षेत्र में जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करने के लिए इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
  • रणनीतिक तेल भंडार: भविष्य की आपूर्ति बाधाओं से निपटने के लिए रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (Strategic Petroleum Reserves) का निर्माण और विस्तार करना।
  • रूस के साथ संवाद: रूस के साथ कूटनीतिक संवाद बनाए रखना ताकि प्रतिबंधों के प्रभाव और संभावित समाधानों पर चर्चा की जा सके, साथ ही अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को भी पूरा किया जा सके।

निष्कर्ष (Conclusion):

रूसी कच्चे तेल पर भारत की निर्भरता एक जटिल भू-राजनीतिक और आर्थिक समीकरण का हिस्सा है। यदि भारत को अमेरिका जैसे देशों के दबाव में या किसी अन्य कारण से रूसी तेल का आयात बंद करना पड़ता है, तो उसे निश्चित रूप से उच्च खरीद लागत, बढ़ी हुई मुद्रास्फीति और व्यापार घाटे में वृद्धि का सामना करना पड़ेगा। अनुमानित वार्षिक लागत अरबों डॉलर में हो सकती है। भारत के लिए यह आवश्यक है कि वह ऊर्जा स्रोतों का विविधीकरण करे, नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश बढ़ाए और ऊर्जा दक्षता में सुधार करे ताकि वैश्विक तेल बाजार की अस्थिरता और भू-राजनीतिक दबावों से अपनी अर्थव्यवस्था को बचाया जा सके। यह न केवल वर्तमान चुनौतियों का सामना करने के लिए, बल्कि भारत के दीर्घकालिक ऊर्जा भविष्य को सुरक्षित करने के लिए भी महत्वपूर्ण है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

1. कथन 1: भारत अपनी लगभग 85% तेल आवश्यकताओं के लिए आयात पर निर्भर है।
कथन 2: हाल के वर्षों में, भारत ने यूक्रेन संघर्ष के बाद रूसी कच्चे तेल की खरीद बढ़ाई है, जिसका मुख्य कारण रियायती दरें थीं।
कथन 3: पश्चिमी देशों के रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों का अप्रत्यक्ष प्रभाव भारत जैसे तेल आयात करने वाले देशों पर भी पड़ सकता है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (d) 1, 2 और 3
व्याख्या: तीनों कथन वर्तमान भू-राजनीतिक और आर्थिक परिदृश्य के अनुरूप सही हैं। भारत की आयात निर्भरता अधिक है, रूसी तेल की खरीद बढ़ी है, और प्रतिबंधों का प्रभाव अप्रत्यक्ष रूप से पड़ रहा है।

2. वैश्विक तेल बाजार में “ट्रम्प टैरिफ” शब्द का प्रयोग किस संदर्भ में किया गया है?
(a) डोनाल्ड ट्रम्प द्वारा चीन पर लगाए गए टैरिफ
(b) अमेरिकी प्रतिबंधों के माध्यम से अन्य देशों पर आर्थिक दबाव, जो रूसी तेल के आयात को प्रभावित करते हैं
(c) यूरोपीय संघ द्वारा रूस पर लगाए गए विशिष्ट तेल टैरिफ
(d) अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (IEA) द्वारा प्रस्तावित एक नया शुल्क
उत्तर: (b) अमेरिकी प्रतिबंधों के माध्यम से अन्य देशों पर आर्थिक दबाव, जो रूसी तेल के आयात को प्रभावित करते हैं
व्याख्या: यहाँ “ट्रम्प टैरिफ” एक प्रतीकात्मक अर्थ में प्रयोग किया गया है, जो अमेरिकी नेतृत्व वाले प्रतिबंधों और आर्थिक दबाव को दर्शाता है जो रूस और उसके व्यापारिक भागीदारों को प्रभावित करते हैं।

3. यदि भारत रूसी कच्चे तेल का आयात बंद कर देता है, तो निम्नलिखित में से कौन सा आर्थिक प्रभाव सबसे अधिक संभावित है?
(a) व्यापार घाटे में कमी
(b) मुद्रास्फीति में कमी
(c) चालू खाता घाटे में वृद्धि
(d) रुपये का सुदृढ़ीकरण
उत्तर: (c) चालू खाता घाटे में वृद्धि
व्याख्या: तेल की खरीद लागत बढ़ने से व्यापार घाटा बढ़ेगा, जो बदले में चालू खाता घाटे को बढ़ाएगा। इससे रुपये पर दबाव भी पड़ सकता है।

4. निम्नलिखित में से कौन सा देश भारत का एक प्रमुख पारंपरिक तेल आपूर्तिकर्ता रहा है?
(a) कनाडा
(b) ब्राजील
(c) सऊदी अरब
(d) नॉर्वे
उत्तर: (c) सऊदी अरब
व्याख्या: सऊदी अरब, इराक और यूएई भारत के पारंपरिक और प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ता रहे हैं।

5. रूसी तेल पर मिलने वाली छूट के मुख्य कारण क्या हैं?
(a) रूस की कम उत्पादन क्षमता
(b) पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण मांग में कमी
(c) भारत और रूस के बीच विशेष रणनीतिक समझौता
(d) तेल की वैश्विक गुणवत्ता में सुधार
उत्तर: (b) पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण मांग में कमी
व्याख्या: प्रतिबंधों के कारण रूसी तेल के खरीदार सीमित हो गए हैं, जिससे रूस को छूट देनी पड़ रही है।

6. भारत की ऊर्जा सुरक्षा के संदर्भ में, “रणनीतिक स्वायत्तता” का क्या अर्थ है?
(a) केवल अमेरिका के साथ मजबूत संबंध बनाए रखना।
(b) अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेना, चाहे वे किसी भी प्रमुख शक्ति के साथ हों।
(c) केवल नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर पूरी तरह निर्भर रहना।
(d) अन्य देशों से तेल आयात पूरी तरह से बंद कर देना।
उत्तर: (b) अपने राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेना, चाहे वे किसी भी प्रमुख शक्ति के साथ हों।
व्याख्या: रणनीतिक स्वायत्तता का अर्थ है कि भारत अपने स्वयं के राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देते हुए स्वतंत्र विदेश नीति का पालन करता है।

7. अंतर्राष्ट्रीय तेल बाजार में किसी भी देश के लिए “ऊर्जा सुरक्षा” का क्या महत्व है?
(a) यह केवल देश की ऊर्जा खपत से संबंधित है।
(b) यह देश की आर्थिक स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के लिए ऊर्जा की निरंतर और विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
(c) यह केवल तेल के आयात पर निर्भरता को कम करने से संबंधित है।
(d) यह केवल देश के भीतर तेल के उत्पादन को बढ़ाने से संबंधित है।
उत्तर: (b) यह देश की आर्थिक स्थिरता और राष्ट्रीय सुरक्षा को बनाए रखने के लिए ऊर्जा की निरंतर और विश्वसनीय आपूर्ति सुनिश्चित करता है।
व्याख्या: ऊर्जा सुरक्षा का व्यापक अर्थ है, जिसमें आपूर्ति की निरंतरता, सामर्थ्य और उपलब्धता शामिल है।

8. यदि भारत रूसी तेल का आयात बंद कर देता है, तो अमेरिकी तेल की कीमतें किस कारक से सबसे अधिक प्रभावित हो सकती हैं?
(a) अमेरिकी तेल उत्पादन में भारी वृद्धि
(b) भारत जैसे बड़े खरीदारों द्वारा रूसी तेल के विकल्प के रूप में अमेरिकी तेल की बढ़ी हुई मांग
(c) अमेरिकी डॉलर का मजबूत होना
(d) कच्चे तेल के भंडार में अचानक वृद्धि
उत्तर: (b) भारत जैसे बड़े खरीदारों द्वारा रूसी तेल के विकल्प के रूप में अमेरिकी तेल की बढ़ी हुई मांग
व्याख्या: यदि भारत और अन्य देश रूसी तेल का विकल्प तलाशते हैं, तो अमेरिकी तेल जैसे विकल्पों की मांग बढ़ेगी, जिससे कीमतें बढ़ सकती हैं।

9. भारत के नवीकरणीय ऊर्जा लक्ष्यों को बढ़ावा देने में निम्नलिखित में से कौन सी नीति सबसे अधिक सहायक हो सकती है?
(a) जीवाश्म ईंधन पर सब्सिडी बढ़ाना
(b) इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के उपयोग को प्रोत्साहित करना
(c) कोयला आधारित बिजली संयंत्रों का विस्तार करना
(d) आयातित तेल पर निर्भरता बढ़ाना
उत्तर: (b) इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के उपयोग को प्रोत्साहित करना
व्याख्या: EVs जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम करते हैं और नवीकरणीय ऊर्जा से चार्ज होने पर कार्बन उत्सर्जन में कमी लाते हैं।

10. **वर्ष 2023-24 के लिए, भारत के तेल आयात बिल में वृद्धि का मुख्य कारण क्या होने की संभावना है?**
(a) तेल की वैश्विक कीमतों में भारी गिरावट
(b) देश के भीतर तेल उत्पादन में अचानक भारी वृद्धि
(c) भू-राजनीतिक तनाव के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि और रियायतों की समाप्ति
(d) घरेलू मांग में भारी कमी
उत्तर: (c) भू-राजनीतिक तनाव के कारण तेल की कीमतों में वृद्धि और रियायतों की समाप्ति
व्याख्या: भू-राजनीतिक तनाव तेल की कीमतों को बढ़ाता है, और यदि रियायतें समाप्त हो जाती हैं, तो आयात बिल बढ़ जाएगा।

मुख्य परीक्षा (Mains)

1. रूसी कच्चे तेल के आयात पर भारत की निर्भरता और हाल के वैश्विक प्रतिबंधों के आलोक में, भारत के तेल आयात बिल में संभावित वृद्धि के आर्थिक और भू-राजनीतिक निहितार्थों का आलोचनात्मक विश्लेषण करें।
(Keywords: Economic implications, geopolitical implications, Russian crude oil imports, global sanctions, India’s oil import bill, trade deficit, inflation, current account deficit, strategic autonomy)

2. भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए, रूसी तेल पर निर्भरता कम करने के लिए भारत सरकार द्वारा अपनाई जा सकने वाली विभिन्न रणनीतियों पर चर्चा करें। इसमें नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता और विविधीकरण पर विशेष जोर दें।
(Keywords: Energy security, reducing dependence on Russian oil, renewable energy, energy efficiency, diversification of energy sources, strategic petroleum reserves, electric vehicles)

3. “ट्रम्प टैरिफ” (प्रतीकात्मक अर्थ में) और अन्य अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रतिबंधों का भारत जैसे विकासशील देशों की अर्थव्यवस्थाओं पर क्या प्रभाव पड़ सकता है? अपने उत्तर को ऊर्जा आयात, व्यापार संतुलन और मुद्रास्फीति जैसे कारकों के संदर्भ में समझाएं।
(Keywords: Impact of “Trump tariffs”, international economic sanctions, developing economies, energy imports, trade balance, inflation, economic vulnerability, global trade)

4. वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में, भारत के लिए अपनी “रणनीतिक स्वायत्तता” बनाए रखना और साथ ही अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करना कितना संभव है? इस संदर्भ में रूसी तेल के आयात पर भारत की स्थिति का मूल्यांकन करें।
(Keywords: Strategic autonomy, India’s energy needs, Russian oil imports, geopolitical scenario, balancing national interests, foreign policy, energy security challenges)

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