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रूसी कच्चे तेल पर अमेरिकी टैरिफ की धमकी: भारत की ऊर्जा रणनीति पर गहरा विश्लेषण

रूसी कच्चे तेल पर अमेरिकी टैरिफ की धमकी: भारत की ऊर्जा रणनीति पर गहरा विश्लेषण

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल के दिनों में, वैश्विक ऊर्जा बाजारों में हलचल तब मच गई जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत पर रूसी कच्चे तेल की खरीद को कम करने के लिए टैरिफ (शुल्क) लगाने की धमकी दी। यह बयान भारत की ऊर्जा सुरक्षा, भू-राजनीतिक संरेखण और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार संबंधों के जटिल जाल को उजागर करता है। यह धमकी सिर्फ एक व्यावसायिक मामला नहीं है, बल्कि वैश्विक शक्ति संतुलन, राष्ट्रीय हितों और आर्थिक संप्रभुता का एक महत्वपूर्ण प्रतिबिंब है।

यह स्थिति UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। यह अंतर्राष्ट्रीय संबंध (IR), अर्थशास्त्र (Economy), समसामयिक मामले (Current Affairs) और भूगोल (Geography) जैसे विषयों के बीच अंतर्संबंध को समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करती है। आइए, इस मुद्दे की गहराई में उतरें और इसके विभिन्न पहलुओं का विश्लेषण करें, जो आपकी परीक्षा की तैयारी के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका प्रदान करेगा।

पृष्ठभूमि: भारत का ऊर्जा परिदृश्य और रूस के साथ संबंध (Background: India’s Energy Landscape and Relations with Russia)

भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है और अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 85% आयात करता है। यह भारी आयात बिल भारत की अर्थव्यवस्था पर महत्वपूर्ण दबाव डालता है और ऊर्जा सुरक्षा को एक प्रमुख राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाता है। इस संदर्भ में, विभिन्न देशों से तेल की खरीद भारत की विदेश और आर्थिक नीति का एक केंद्रीय स्तंभ रही है।

रूस भारत के लिए एक महत्वपूर्ण ऊर्जा आपूर्तिकर्ता रहा है। ऐतिहासिक रूप से, भारत और रूस के बीच गहरे राजनीतिक और रणनीतिक संबंध रहे हैं, जो सोवियत संघ के समय से चले आ रहे हैं। रक्षा, अंतरिक्ष और परमाणु ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में सहयोग के अलावा, ऊर्जा व्यापार भी इन संबंधों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गया है। हाल के वर्षों में, रूस के पश्चिमी देशों के साथ तनावपूर्ण संबंधों के बावजूद, भारत ने रूसी कच्चे तेल का आयात बढ़ाया है। इसके कई कारण हैं:

  • मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता: रूसी कच्चे तेल की कीमतें अक्सर अंतरराष्ट्रीय बाजार में उपलब्ध अन्य कच्चे तेलों की तुलना में अधिक प्रतिस्पर्धी रही हैं।
  • भू-राजनीतिक लाभ: रूस के साथ मजबूत संबंध भारत को कुछ भू-राजनीतिक लाभ प्रदान करते हैं, खासकर जब भारत अमेरिका और चीन जैसे देशों के साथ अपने संबंधों को संतुलित कर रहा हो।
  • आपूर्ति की विश्वसनीयता: रूस एक विश्वसनीय आपूर्तिकर्ता के रूप में उभरा है, खासकर जब वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाएं अस्थिर होती हैं।
  • आसान भुगतान तंत्र: रूस के साथ व्यापार के लिए कुछ विशेष भुगतान तंत्र भी विकसित किए गए हैं, जो इसे और अधिक आकर्षक बनाते हैं।

अमेरिकी टैरिफ की धमकी: कारण और उद्देश्य (The US Tariff Threat: Reasons and Objectives)

डोनाल्ड ट्रम्प प्रशासन की यह धमकी कई कारणों से उत्पन्न हुई है:

  1. ईरान पर प्रतिबंध: अमेरिका ने ईरान पर प्रतिबंध लगा रखे हैं, जिसका उद्देश्य उसके परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय गतिविधियों को रोकना है। अमेरिका चाहता है कि उसके सहयोगी देश, जिनमें भारत भी शामिल है, ईरान से तेल खरीदना बंद कर दें। हालाँकि, भारत ने यह तर्क दिया है कि उसके पास रूसी तेल का विकल्प होने पर भी, ईरान से तेल की खरीद भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है।
  2. भू-राजनीतिक दबाव: अमेरिका अक्सर अपने सहयोगियों पर अपनी विदेश नीति के एजेंडे का पालन करने के लिए दबाव डालता है। रूसी कच्चे तेल की खरीद को कम करके, अमेरिका रूस पर अपना आर्थिक और राजनीतिक दबाव बढ़ाना चाहता है।
  3. व्यापार असंतुलन: अमेरिका अपने व्यापार घाटे को लेकर भी चिंतित रहा है और वह उन देशों से आयात कम करना चाहता है जिनके साथ उसका व्यापार असंतुलन है। हालाँकि, यह टैरिफ सीधे तौर पर भारत-अमेरिका व्यापार असंतुलन से संबंधित नहीं है, यह एक व्यापक व्यापार युद्ध का हिस्सा हो सकता है।
  4. रणनीतिक तेल भंडार: अमेरिका वैश्विक तेल कीमतों को स्थिर रखने में भी रुचि रखता है, और वह रूस जैसे बड़े तेल उत्पादकों के प्रभाव को सीमित करना चाहता है।

मुख्य बिंदु: अमेरिकी धमकी मुख्य रूप से ईरान पर प्रतिबंधों को लागू कराने और रूस पर दबाव बनाने के उद्देश्य से आई है।

भारत के लिए चुनौतियाँ और विकल्प (Challenges and Options for India)

अमेरिकी टैरिफ की धमकी भारत के लिए एक महत्वपूर्ण कूटनीतिक और आर्थिक चुनौती पेश करती है। यदि अमेरिका ऐसे टैरिफ लागू करता है, तो भारत को कई जटिलताओं का सामना करना पड़ेगा:

  • बढ़ी हुई लागत: रूसी तेल के विकल्प खोजने पर भारत को अधिक महंगी दर पर तेल खरीदना पड़ सकता है, जिससे व्यापार घाटा बढ़ेगा और मुद्रास्फीति को बढ़ावा मिलेगा।
  • आपूर्ति की अनिश्चितता: नए आपूर्तिकर्ताओं को ढूंढना और आपूर्ति श्रृंखलाओं को स्थिर करना एक चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया हो सकती है।
  • संबंधों पर प्रभाव: अमेरिका के एक प्रमुख सहयोगी के रूप में, भारत को अमेरिकी दबाव के सामने अपनी स्थिति पर विचार करना होगा, जिससे अमेरिका के साथ संबंधों पर भी असर पड़ सकता है।

इन चुनौतियों के बावजूद, भारत के पास कुछ विकल्प भी मौजूद हैं:

  1. आपूर्तिकर्ताओं का विविधीकरण: भारत मध्य पूर्व (सऊदी अरब, इराक, यूएई), अफ्रीका (नाइजीरिया, अंगोला) और दक्षिण अमेरिका (वेनेजुएला) जैसे अन्य क्षेत्रों से भी तेल की खरीद बढ़ा सकता है।
  2. घरेलू उत्पादन में वृद्धि: हालांकि यह अल्पकालिक समाधान नहीं है, दीर्घकालिक रूप से भारत को अपने घरेलू तेल उत्पादन को बढ़ाने के लिए निवेश और नीतियों पर ध्यान देना होगा।
  3. ऊर्जा दक्षता और नवीकरणीय ऊर्जा: भारत ऊर्जा की मांग को कम करने के लिए ऊर्जा दक्षता उपायों को बढ़ावा दे सकता है और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों (सौर, पवन) में निवेश बढ़ा सकता है, जिससे जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता कम होगी।
  4. कूटनीतिक समाधान: भारत अमेरिका के साथ कूटनीतिक माध्यमों से बातचीत कर सकता है, अपनी ऊर्जा सुरक्षा की चिंताओं को समझा सकता है और संभावित टैरिफ से छूट या रियायतें प्राप्त करने का प्रयास कर सकता है।

एक महत्वपूर्ण विचार: भारत की ऊर्जा कूटनीति हमेशा “राष्ट्रीय हित” के सिद्धांत पर आधारित रही है। जब भी भारत किसी भी देश से तेल खरीदता है, तो यह उस समय उपलब्ध सर्वोत्तम मूल्य, आपूर्ति की विश्वसनीयता और अपने सामरिक हितों को ध्यान में रखकर किया जाता है।

भू-राजनीतिक संरेखण और राष्ट्रीय हित (Geopolitical Alignment and National Interest)

यह स्थिति भारत के लिए एक “पसंदीदा साझेदार” चुनने के बजाय “राष्ट्रीय हित” को प्राथमिकता देने का एक स्पष्ट उदाहरण है। भारत के पास रूस के साथ दीर्घकालिक रणनीतिक साझेदारी है, जबकि अमेरिका के साथ उसके संबंध हाल के वर्षों में मजबूत हुए हैं, खासकर “रणनीतिक वैश्विक साझेदारी” के तहत।

भारत की विदेश नीति गुटनिरपेक्ष आंदोलन की विरासत और “रणनीतिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) के सिद्धांत पर आधारित है। इसका मतलब है कि भारत किसी भी एक शक्ति पर पूरी तरह से निर्भर नहीं रहना चाहता और अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए अपने निर्णय लेने की स्वतंत्रता बनाए रखना चाहता है।

उपमा: सोचिए कि आप एक छात्र हैं जिसके पास दो ट्यूटर हैं। एक आपको अच्छी सामग्री और सस्ती फीस दे रहा है, और दूसरा आपको बहुत सारी अतिरिक्त सामग्री और कुछ विशेष सुविधाएँ दे रहा है। आपको दोनों के साथ अच्छे संबंध बनाए रखने हैं, लेकिन अपनी पढ़ाई के लिए सबसे अच्छा विकल्प चुनना है, भले ही वह विकल्प किसी एक ट्यूटर को नाराज़ कर दे। भारत भी इसी तरह वैश्विक ऊर्जा बाजार में अपने हितों को साधने की कोशिश कर रहा है।

इस मामले में, भारत अमेरिकी दबाव को महसूस करेगा, लेकिन वह रूसी कच्चे तेल की खरीद को इतनी आसानी से नहीं छोड़ेगा, खासकर यदि यह उसकी ऊर्जा सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करता है। भारत की प्रतिक्रिया अमेरिका के साथ अपने संबंधों को खराब किए बिना, अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करेगी।

संरचनात्मक विश्लेषण: क्या होगा यदि टैरिफ लागू होते हैं? (Structural Analysis: What if Tariffs are Imposed?)

यदि अमेरिका टैरिफ लागू करता है, तो इसके कई संभावित प्रभाव होंगे:

  1. ऊर्जा बाजार में अस्थिरता: टैरिफ से वैश्विक तेल आपूर्ति श्रृंखला में और अधिक अस्थिरता आ सकती है। यदि भारत रूसी तेल की मात्रा कम करता है, तो उस तेल की मांग अन्य बाजारों में बढ़ सकती है, जिससे कीमतें प्रभावित होंगी।
  2. भारत के लिए “डायवर्जन” लागत: भारत को रूसी तेल के बदले अन्य, संभवतः अधिक महंगे, स्रोतों की ओर मुड़ना होगा। यह “डायवर्जन” लागत (diversion cost) न केवल बढ़ी हुई खरीद कीमतों के रूप में होगी, बल्कि नए आपूर्तिकर्ताओं के साथ अनुबंध स्थापित करने, लॉजिस्टिक्स को समायोजित करने और आपूर्ति की स्थिरता सुनिश्चित करने में लगने वाले समय और प्रयास के रूप में भी होगी।
  3. अमेरिकी निर्यात पर संभावित प्रतिक्रिया: यदि भारत अमेरिका के दबाव में आकर रूसी तेल छोड़ता है, तो यह संभव है कि अमेरिका भारत से कुछ आयात कम करने पर भी विचार करे, जिससे व्यापार संबंध प्रभावित हो सकते हैं।
  4. रूस की प्रतिक्रिया: रूस भी इस स्थिति पर प्रतिक्रिया दे सकता है, संभवतः उन देशों को रियायती दर पर तेल उपलब्ध कराकर जो अमेरिका के दबाव का विरोध करते हैं।

एक जटिल समीकरण: भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा, आर्थिक स्थिरता और भू-राजनीतिक संबंधों के बीच एक नाजुक संतुलन बनाना होगा।

भविष्य की राह: भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति (The Way Forward: India’s Long-Term Energy Strategy)

यह घटनाक्रम भारत की दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति के महत्व को रेखांकित करता है। भारत को केवल अल्पकालिक समाधानों पर निर्भर रहने के बजाय, एक मजबूत और लचीली ऊर्जा प्रणाली विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए:

  • आपूर्तिकर्ता विविधीकरण को और गहरा करना: केवल नए आपूर्तिकर्ता ढूंढना पर्याप्त नहीं है; आपूर्ति श्रृंखलाओं को और अधिक लचीला और विविध बनाना होगा।
  • नवीकरणीय ऊर्जा में आक्रामक निवेश: भारत को सौर, पवन, हाइड्रोजन और अन्य नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश को तेजी से बढ़ाना होगा ताकि आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को मौलिक रूप से कम किया जा सके।
  • ऊर्जा दक्षता को राष्ट्रीय प्राथमिकता बनाना: उद्योगों, परिवहन और घरेलू क्षेत्रों में ऊर्जा दक्षता को बढ़ाना मांग को कम करने का सबसे किफायती तरीका है।
  • घरेलू अन्वेषण और उत्पादन को बढ़ावा देना: तेल और गैस के घरेलू अन्वेषण और उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिए अनुकूल नीतियां और निवेश की आवश्यकता है।
  • रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (SPRs) का विस्तार: तेल की कीमतों में अचानक वृद्धि या आपूर्ति में व्यवधान की स्थिति में, SPRs बफर के रूप में काम कर सकते हैं।
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: ऊर्जा सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए अन्य ऊर्जा-आयात करने वाले देशों के साथ सहयोग बढ़ाना।

निष्कर्ष: यह स्थिति भारत के लिए एक परीक्षा है कि वह अपनी ऊर्जा संप्रभुता और राष्ट्रीय हितों को कैसे सुरक्षित रखता है, जबकि वह एक बदलती भू-राजनीतिक दुनिया में अपने प्रमुख वैश्विक भागीदारों के साथ संतुलन बनाए रखता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग कितना प्रतिशत आयात करता है?

    (a) 50%

    (b) 65%

    (c) 85%

    (d) 95%

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: भारत दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है और अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं का लगभग 85% आयात करता है।

  2. प्रश्न 2: हालिया भू-राजनीतिक तनावों के संदर्भ में, अमेरिका किस देश से भारत के कच्चे तेल के आयात को कम करने के लिए दबाव डाल रहा है?

    (a) सऊदी अरब

    (b) ईरान

    (c) रूस

    (d) वेनेजुएला

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने रूस से कच्चे तेल की खरीद पर टैरिफ लगाने की धमकी दी है, जिसका उद्देश्य रूस पर दबाव बनाना है।

  3. प्रश्न 3: भारत की विदेश नीति का कौन सा सिद्धांत उसे किसी भी एक शक्ति पर पूरी तरह निर्भर न रहने और अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार निर्णय लेने की स्वतंत्रता देता है?

    (a) पंचशील

    (b) गुटनिरपेक्ष आंदोलन

    (c) सामरिक स्वायत्तता (Strategic Autonomy)

    (d) एक्ट ईस्ट पॉलिसी

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: सामरिक स्वायत्तता का सिद्धांत भारत को वैश्विक मंच पर स्वतंत्र रूप से कार्य करने और अपने राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखने की अनुमति देता है।

  4. प्रश्न 4: निम्नलिखित में से कौन सा देश वर्तमान में भारत के प्रमुख तेल आपूर्तिकर्ताओं में से एक है, जिससे अमेरिका के साथ व्यापारिक तनाव जुड़ा हुआ है?

    (a) संयुक्त अरब अमीरात

    (b) इराक

    (c) रूस

    (d) नाइजीरिया

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: रूस हाल के वर्षों में भारत के महत्वपूर्ण तेल आपूर्तिकर्ताओं में से एक रहा है, और अमेरिकी दबाव इसी खरीद से संबंधित है।

  5. प्रश्न 5: भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित में से कौन सा उपाय दीर्घकालिक रूप से सबसे प्रभावी होगा?

    (a) केवल रूस से तेल आयात बढ़ाना

    (b) तेल के लिए केवल एक वैकल्पिक देश पर निर्भर रहना

    (c) नवीकरणीय ऊर्जा में भारी निवेश और ऊर्जा दक्षता को बढ़ावा देना

    (d) केवल घरेलू तेल उत्पादन पर पूरी तरह से निर्भर होना

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: नवीकरणीय ऊर्जा में निवेश और ऊर्जा दक्षता मांग को कम करके आयातित जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करने के सबसे टिकाऊ तरीके हैं।

  6. प्रश्न 6: अमेरिका द्वारा ईरान पर लगाए गए प्रतिबंधों का एक उद्देश्य क्या है?

    (a) ईरान के साथ व्यापार को बढ़ावा देना

    (b) ईरान के परमाणु कार्यक्रम को रोकना

    (c) ईरान को तेल निर्यात करने वाले देशों पर दबाव बनाना

    (d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: अमेरिका ईरान पर उसके परमाणु कार्यक्रम और क्षेत्रीय गतिविधियों को रोकने के लिए प्रतिबंध लगाता है।

  7. प्रश्न 7: “डायवर्जन लागत” (Diversion Cost) का क्या अर्थ है, जैसा कि भारत की ऊर्जा कूटनीति के संदर्भ में प्रयोग किया जा सकता है?

    (a) रूसी तेल को स्थानांतरित करने का रसद खर्च

    (b) रूसी तेल के बदले अधिक महंगे वैकल्पिक स्रोतों से तेल खरीदने की बढ़ी हुई लागत

    (c) नए आपूर्तिकर्ताओं के साथ अनुबंध स्थापित करने की प्रशासनिक लागत

    (d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: डायवर्जन लागत में बढ़ी हुई खरीद कीमतें, रसद, और नए अनुबंध स्थापित करने की लागत शामिल हो सकती है।

  8. प्रश्न 8: भारत की ऊर्जा कूटनीति का मुख्य सिद्धांत क्या रहा है?

    (a) किसी भी कीमत पर पश्चिमी देशों के साथ संबंध बनाए रखना

    (b) राष्ट्रीय हित और ऊर्जा सुरक्षा

    (c) रूस के साथ सैन्य गठबंधन

    (d) ऊर्जा के लिए पूरी तरह से घरेलू स्रोतों पर निर्भर रहना

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: भारत की ऊर्जा कूटनीति हमेशा राष्ट्रीय हितों और ऊर्जा सुरक्षा की रक्षा पर केंद्रित रही है।

  9. प्रश्न 9: निम्नलिखित में से कौन से कारक भारत को रूसी कच्चे तेल का आयात जारी रखने के लिए प्रेरित कर सकते हैं?

    1. मूल्य प्रतिस्पर्धात्मकता

    2. आपूर्ति की विश्वसनीयता

    3. रूस के साथ दीर्घकालिक भू-राजनीतिक संबंध

    4. अमेरिकी प्रतिबंधों से पूर्ण छूट

    विकल्प:

    (a) 1, 2 और 3

    (b) 1, 2 और 4

    (c) 1, 3 और 4

    (d) 2, 3 और 4

    उत्तर: (a)

    व्याख्या: उपरोक्त 1, 2 और 3 कारक भारत को रूसी तेल खरीदने के लिए प्रेरित करते हैं। विकल्प 4, “अमेरिकी प्रतिबंधों से पूर्ण छूट”, एक कारण नहीं, बल्कि एक परिणाम है।

  10. प्रश्न 10: रणनीतिक पेट्रोलियम भंडार (SPRs) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?

    (a) घरेलू तेल उत्पादन बढ़ाना

    (b) तेल की कीमतों को कृत्रिम रूप से कम रखना

    (c) तेल की आपूर्ति में अचानक व्यवधान के समय बफर प्रदान करना

    (d) नवीकरणीय ऊर्जा के लिए धन जुटाना

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: SPRs अप्रत्याशित आपूर्ति व्यवधानों या मूल्य वृद्धि के खिलाफ एक सुरक्षा जाल प्रदान करते हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: हाल के भू-राजनीतिक तनावों के संदर्भ में, अमेरिकी टैरिफ की धमकी भारत की ऊर्जा सुरक्षा और विदेश नीति के लिए क्या चुनौतियाँ प्रस्तुत करती है? आपकी राय में, भारत इन चुनौतियों का सामना कैसे कर सकता है, और इसकी दीर्घकालिक ऊर्जा रणनीति के प्रमुख तत्व क्या होने चाहिए?

  2. प्रश्न 2: “सामरिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) की अवधारणा के आलोक में, भारत को रूसी कच्चे तेल की खरीद के संबंध में अपने राष्ट्रीय हितों को अमेरिकी दबावों के विरुद्ध कैसे संतुलित करना चाहिए? इस संदर्भ में भारत की कूटनीतिक युक्ति का विश्लेषण करें।

  3. प्रश्न 3: भारत के ऊर्जा आयात परिदृश्य के बदलते स्वरूप पर चर्चा करें, जिसमें रूस, मध्य पूर्व और अन्य क्षेत्रों से आयात के महत्व को दर्शाया गया हो। अमेरिकी टैरिफ की धमकी जैसे बाहरी कारक इस परिदृश्य को कैसे प्रभावित कर सकते हैं?

  4. प्रश्न 4: भारत को अपनी ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने के लिए केवल जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता से हटकर किन वैकल्पिक और नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों में निवेश को प्राथमिकता देनी चाहिए? भारत को इस संक्रमण को प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए किन नीतिगत हस्तक्षेपों की आवश्यकता है?

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