Get free Notes

सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Click Here

राहुल गांधी के आरोपों पर चुनाव आयोग का पलटवार: क्या 2018 की ‘कमलनाथ स्क्रिप्ट’ दोहराई जा रही है?

राहुल गांधी के आरोपों पर चुनाव आयोग का पलटवार: क्या 2018 की ‘कमलनाथ स्क्रिप्ट’ दोहराई जा रही है?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):

हाल के चुनावी विश्लेषणों और राजनीतिक बहसों के बीच, भारत के चुनाव आयोग (EC) ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी के कुछ बयानों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की है। आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों को “पुरानी स्क्रिप्ट दोहराने” और 2018 के विधान सभा चुनावों के दौरान मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ द्वारा किए गए कार्यों को याद दिलाया है। इस बयानबाजी ने चुनाव प्रक्रिया की निष्पक्षता, राजनीतिक दलों की जवाबदेही और आयोग की भूमिका पर फिर से बहस छेड़ दी है। यह घटनाक्रम न केवल वर्तमान चुनावी परिदृश्य को समझने के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि यह UPSC सिविल सेवा परीक्षा के उम्मीदवारों के लिए भी एक मूल्यवान केस स्टडी प्रस्तुत करता है, खासकर भारतीय लोकतंत्र, चुनाव प्रबंधन और राजनीतिक नैतिकता के संदर्भ में।

पृष्ठभूमि: चुनावी आरोप और ऐतिहासिक संदर्भ

चुनाव, किसी भी जीवंत लोकतंत्र की धड़कन होते हैं। ये वो प्रक्रियाएं हैं जिनके द्वारा नागरिक अपनी सरकारें चुनते हैं और अपने प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराते हैं। हालांकि, इस प्रक्रिया में आरोप-प्रत्यारोप, व्यक्तिगत हमले और मतदाताओं को प्रभावित करने के प्रयास भी आम बात हैं। भारतीय राजनीति में, चुनाव के दौरान इस तरह की बयानबाजी कोई नई बात नहीं है।

चुनाव आयोग का यह बयान, जिसमें 2018 के मध्य प्रदेश विधान सभा चुनावों का जिक्र किया गया है, विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। 2018 के चुनावों में, कांग्रेस ने मध्य प्रदेश में भाजपा को हराकर सरकार बनाई थी, और कमलनाथ मुख्यमंत्री बने थे। उस दौरान भी, कांग्रेस ने चुनाव प्रचार और परिणामों को लेकर भाजपा पर कई आरोप लगाए थे। चुनाव आयोग की इस बार की प्रतिक्रिया, जिसमें उसने इन आरोपों को “पुरानी स्क्रिप्ट” कहा है, यह दर्शाती है कि आयोग को लगता है कि उसी तरह की बयानबाजी और आरोप वर्तमान चुनावों में भी दोहराए जा रहे हैं।

चुनाव आयोग की भूमिका और शक्तियाँ

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 324, चुनाव आयोग को संसद, राज्यों की विधान मंडलों और राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के पदों के लिए चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है। यह आयोग देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार एक स्वायत्त निकाय है। इसकी प्रमुख भूमिकाओं में शामिल हैं:

  • चुनावों की अधिसूचना जारी करना।
  • मतदाताओं की सूची तैयार करना और उसका नवीनीकरण करना।
  • चुनावों के लिए आदर्श आचार संहिता (Model Code of Conduct – MCC) लागू करना।
  • चुनावों का संचालन, पर्यवेक्षण और निष्पक्षता सुनिश्चित करना।
  • चुनावों में होने वाले कदाचारों पर कार्रवाई करना, जैसे कि रैलियों पर रोक लगाना, प्रत्याशियों को अयोग्य ठहराना या मतदान रद्द करना।
  • चुनावों से संबंधित विवादों का निपटारा करना।

चुनाव आयोग के पास अपने आदेशों को लागू करने के लिए पर्याप्त शक्तियाँ हैं, जिनमें उल्लंघन करने वाले राजनीतिक दलों या उम्मीदवारों के खिलाफ कार्रवाई करना शामिल है। हालाँकि, इसकी शक्तियाँ कभी-कभी बहस का विषय भी रही हैं, खासकर जब यह राजनीतिक रूप से संवेदनशील मामलों में निर्णय लेता है।

राहुल गांधी के संभावित आरोप और आयोग की प्रतिक्रिया का विश्लेषण

हालांकि समाचार शीर्षक में विशिष्ट आरोपों का विवरण नहीं दिया गया है, लेकिन “पुरानी स्क्रिप्ट दोहराना” और “कमलनाथ ने भी यही काम किया था” जैसे वाक्यांशों से यह अनुमान लगाया जा सकता है कि राहुल गांधी ने संभवतः चुनाव प्रक्रिया में किसी तरह की धांधली, अनुचित साधनों के प्रयोग, या चुनाव आयोग के निर्णयों में पूर्वाग्रह जैसे मुद्दे उठाए होंगे।

चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया, जो सीधी और आलोचनात्मक है, यह दर्शाती है कि आयोग को लगता है कि ऐसे आरोप अनुचित या आधारहीन हैं, और वे केवल मतदाताओं को भ्रमित करने या चुनावी प्रक्रिया की विश्वसनीयता को कम करने का प्रयास हैं। 2018 के कमलनाथ प्रकरण का उल्लेख करके, आयोग यह जताने की कोशिश कर रहा है कि अतीत में भी इसी तरह के आरोप लगाए गए थे, लेकिन वे सिद्ध नहीं हुए या उनका कोई ठोस आधार नहीं था।

आदर्श आचार संहिता (MCC) और इसका उल्लंघन

चुनावों के दौरान, जब भी चुनावों की घोषणा होती है, आदर्श आचार संहिता (MCC) लागू हो जाती है। यह एक ऐसा दिशानिर्देश है जिसका पालन सभी राजनीतिक दलों और उम्मीदवारों को करना होता है ताकि चुनाव प्रक्रिया निष्पक्ष और समान स्तर पर हो सके। MCC के मुख्य उद्देश्य हैं:

  • शासक दल द्वारा अपनी शक्ति का दुरुपयोग रोकने के लिए।
  • स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने के लिए।
  • मतदाताओं को लुभाने या प्रभावित करने वाले वादों और कार्यों को रोकने के लिए।
  • चुनाव प्रचार में किसी भी प्रकार के धर्म, जाति या समुदाय के आधार पर मतों की अपील को रोकने के लिए।

MCC के उल्लंघन के मामले में, चुनाव आयोग विभिन्न कार्रवाई कर सकता है, जैसे कि:

  • संबंधित दल या उम्मीदवार को चेतावनी देना।
  • जनसभाओं या प्रचार पर रोक लगाना।
  • संबंधित दल या उम्मीदवार के खिलाफ FIR दर्ज कराना।
  • उम्मीदवारों को अयोग्य ठहराना।

यह संभव है कि राहुल गांधी के बयान MCC के उल्लंघन की श्रेणी में आते हों, या वे सीधे तौर पर आयोग के निर्णयों पर प्रश्नचिह्न लगा रहे हों, जिससे आयोग को प्रतिक्रिया देनी पड़ी।

पक्ष और विपक्ष: इस बयानबाजी का प्रभाव

राहुल गांधी और कांग्रेस के पक्ष में तर्क (संभावित):

  • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता: कांग्रेस का तर्क हो सकता है कि उन्हें चुनावी प्रक्रिया में किसी भी संभावित विसंगति पर सवाल उठाने का अधिकार है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के तहत आता है।
  • जवाबदेही की मांग: वे यह तर्क दे सकते हैं कि वे चुनाव आयोग को अधिक पारदर्शी और जवाबदेह बनाने की मांग कर रहे हैं, खासकर जब उन्हें लगता है कि प्रक्रिया में कुछ गलत हो रहा है।
  • जनता की आवाज: वे यह भी कह सकते हैं कि उनके बयान जनता की भावनाओं का प्रतिनिधित्व करते हैं, जो किसी विशेष मुद्दे पर चिंतित हो सकती है।

चुनाव आयोग के पक्ष में तर्क:

  • निष्पक्षता बनाए रखना: आयोग का मुख्य उद्देश्य निष्पक्षता बनाए रखना है। निराधार आरोपों से चुनाव प्रक्रिया की साख को नुकसान पहुँच सकता है।
  • कदाचार पर अंकुश: आयोग की प्रतिक्रिया एक अनुस्मारक हो सकती है कि किसी भी प्रकार के अनुचित प्रचार या झूठे आरोप, जो मतदाताओं को गुमराह करते हैं, स्वीकार्य नहीं हैं।
  • दक्षता और प्रक्रिया की रक्षा: आयोग यह संदेश देना चाहता है कि वह चुनाव कराने के लिए अपनी प्रक्रियाओं का पालन कर रहा है और उसे इस प्रक्रिया की रक्षा करनी है।

विपक्ष में तर्क (आयोग की प्रतिक्रिया के संबंध में):

  • अति-प्रतिक्रिया का आरोप: कुछ लोग आयोग पर “अति-प्रतिक्रिया” करने का आरोप लगा सकते हैं, खासकर यदि राहुल गांधी के आरोप मात्र राजनीतिक बयानबाजी से अधिक कुछ नहीं थे।
  • पक्षपात का आरोप: विपक्षी दल यह तर्क दे सकते हैं कि आयोग सत्ताधारी दल के पक्ष में काम कर रहा है, और यह प्रतिक्रिया उन आरोपों को दबाने का एक तरीका है।
  • राजनीतिकरण का भय: कुछ आलोचक चिंता व्यक्त कर सकते हैं कि आयोग को राजनीतिक बयानबाजी में शामिल होने से बचना चाहिए, ताकि उसकी स्वायत्तता और निष्पक्षता पर संदेह न हो।

2018 की ‘कमलनाथ स्क्रिप्ट’ का गहरा विश्लेषण

चुनाव आयोग द्वारा 2018 के मध्य प्रदेश चुनावों का संदर्भ देना, इस बात पर प्रकाश डालता है कि चुनावी मैदान में आरोप-प्रत्यारोप का एक लंबा इतिहास रहा है। 2018 में, मध्य प्रदेश में सत्ता के हस्तांतरण के बाद, भाजपा ने कांग्रेस पर विभिन्न अनियमितताओं का आरोप लगाया था, जिसमें मतदाता सूचियों में गड़बड़ी और संसाधनों का दुरुपयोग शामिल हो सकता है। कमलनाथ सरकार के कार्यकाल में भी, प्रदेश में राजनीतिक उठापटक देखी गई, जिसने शायद कुछ ऐसी ही स्थितियाँ पैदा कीं होंगी जहाँ आयोग को हस्तक्षेप करना पड़ा हो।

चुनाव आयोग की इस टिप्पणी का अर्थ यह है कि वर्तमान में कांग्रेस द्वारा उठाए जा रहे मुद्दे वही हैं जो 2018 में (जब वे विपक्ष में थे) उठाए गए थे, या उन मुद्दों की प्रकृति समान है। यह एक रणनीतिक चाल हो सकती है ताकि विपक्षी दलों को जवाबदेह ठहराया जा सके और यह दर्शाया जा सके कि उनके आरोप केवल राजनीतिक हताशा का परिणाम हैं, न कि वास्तविक गड़बड़ियों का।

UPSC के लिए महत्वपूर्ण मुख्य अवधारणाएँ

यह घटना UPSC सिविल सेवा परीक्षा के कई महत्वपूर्ण पहलुओं से जुड़ी है:

  1. भारतीय संविधान: अनुच्छेद 324 (चुनाव आयोग की स्थापना), अनुच्छेद 326 (सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार), और चुनाव प्रक्रिया से संबंधित अन्य प्रावधान।
  2. चुनाव आयोग की शक्तियाँ और कार्य: इसकी स्वायत्तता, आदर्श आचार संहिता लागू करने की शक्ति, और चुनाव प्रबंधन।
  3. लोकतंत्र और चुनाव सुधार: निष्पक्ष चुनावों को सुनिश्चित करने में आयोग की भूमिका, और इस प्रक्रिया को बेहतर बनाने के लिए विभिन्न सुझाव।
  4. राजनीतिक नैतिकता और जवाबदेही: राजनीतिक दलों और नेताओं द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली भाषा और उनके द्वारा लगाए जाने वाले आरोपों का प्रभाव।
  5. समसामयिक मामले: वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य और चुनावी राजनीति की गहरी समझ।

चुनाव प्रक्रिया में चुनौतियाँ

चुनाव आयोग के सामने कई चुनौतियाँ होती हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं:

  • धनबल और बाहुबल का प्रयोग: चुनावों में काले धन और बाहुबल का बढ़ता प्रयोग आयोग के लिए एक बड़ी चुनौती है।
  • भ्रामक सूचनाएँ और दुष्प्रचार: सोशल मीडिया के युग में, गलत सूचनाओं और दुष्प्रचार को रोकना अत्यंत कठिन हो गया है।
  • आदर्श आचार संहिता का प्रभावी प्रवर्तन: MCC की प्रभावी निगरानी और उल्लंघन पर त्वरित कार्रवाई करना चुनौतीपूर्ण होता है।
  • सुरक्षा व्यवस्था: देश के विभिन्न हिस्सों में स्वतंत्र और निष्पक्ष मतदान सुनिश्चित करने के लिए कड़ी सुरक्षा व्यवस्था की आवश्यकता होती है।
  • तकनीकी चुनौतियाँ: EVM और VVPAT जैसी तकनीकी प्रणालियों की सुरक्षा और विश्वसनीयता बनाए रखना।
  • राजनीतिक दलों का सहयोग: आयोग की प्रभावशीलता काफी हद तक राजनीतिक दलों के सहयोग पर निर्भर करती है।

भविष्य की राह: चुनाव सुधार और आयोग की भूमिका

इस प्रकार की बयानबाजी और आयोग की प्रतिक्रियाएँ भारतीय चुनाव प्रणाली को और बेहतर बनाने की आवश्यकता को रेखांकित करती हैं। कुछ संभावित सुधारों में शामिल हो सकते हैं:

  • MCC का विधायी दर्जा: आदर्श आचार संहिता को कानून का दर्जा देना, ताकि इसके उल्लंघन पर कठोर कार्रवाई हो सके।
  • चुनाव प्रचार की लागत पर अंकुश: राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव प्रचार पर खर्च की जाने वाली अत्यधिक राशि को नियंत्रित करने के लिए और प्रभावी उपाय।
  • सोशल मीडिया की निगरानी: भ्रामक सूचनाओं और अभद्र भाषा के प्रसार को रोकने के लिए सोशल मीडिया प्लेटफार्मों के साथ बेहतर समन्वय।
  • आयोग की शक्तियों का विस्तार: चुनाव आयोग को उन मामलों में भी कार्रवाई करने की अधिक शक्ति देना जहाँ प्रत्यक्ष उल्लंघन न हो, लेकिन चुनाव प्रक्रिया को नुकसान पहुँचने की आशंका हो।
  • आयोग के सदस्यों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार: ताकि आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता पर कोई प्रश्न न उठे।

निष्कर्ष

राहुल गांधी के आरोपों पर चुनाव आयोग की प्रतिक्रिया, चाहे वह कितनी भी प्रत्यक्ष या आलोचनात्मक क्यों न हो, भारतीय लोकतंत्र की परिपक्वता और चुनाव प्रक्रिया की जटिलताओं को दर्शाती है। यह हमें याद दिलाता है कि निष्पक्ष चुनाव केवल तकनीकी प्रक्रिया नहीं हैं, बल्कि यह विश्वास, पारदर्शिता और सभी हितधारकों की जवाबदेही पर भी निर्भर करते हैं। चुनाव आयोग एक प्रहरी के रूप में कार्य करता है, लेकिन उसे राजनीतिक ताकतों और जनमत के बीच संतुलन बनाए रखना होता है। “पुरानी स्क्रिप्ट दोहराने” का आरोप इस बात का संकेत है कि चुनावी राजनीति में बयानबाजी के पैंतरे अक्सर दोहराए जाते हैं, और आयोग का हस्तक्षेप इस बात पर निर्भर करता है कि ऐसे आरोप चुनाव प्रक्रिया की अखंडता को कितना प्रभावित करते हैं। UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह घटनाक्रम न केवल समसामयिक मामलों की समझ को बढ़ाता है, बल्कि उन्हें चुनावी नैतिकता, संवैधानिक निकायों की भूमिका और एक जीवंत लोकतंत्र की चुनौतियों पर गहन विचार करने के लिए प्रेरित भी करता है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद चुनाव आयोग को संसद, राज्यों की विधान मंडलों, और राष्ट्रपति व उपराष्ट्रपति के पदों के लिए चुनावों के संचालन, निर्देशन और नियंत्रण की शक्ति प्रदान करता है?

    (a) अनुच्छेद 320

    (b) अनुच्छेद 324

    (c) अनुच्छेद 326

    (d) अनुच्छेद 330

    उत्तर: (b) अनुच्छेद 324

    व्याख्या: अनुच्छेद 324 भारतीय संविधान के भाग XV में निहित है और चुनाव आयोग की स्थापना, उसके कार्यों और शक्तियों से संबंधित है।
  2. प्रश्न 2: चुनाव आयोग द्वारा लागू की जाने वाली “आदर्श आचार संहिता” (Model Code of Conduct) का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    (a) चुनावों के लिए धन जुटाना

    (b) राजनीतिक दलों के बीच गठबंधन को बढ़ावा देना

    (c) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना

    (d) चुनाव प्रचार के लिए केवल सरकारी प्रसार माध्यमों का उपयोग सुनिश्चित करना

    उत्तर: (c) स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करना

    व्याख्या: आदर्श आचार संहिता का प्राथमिक उद्देश्य चुनावों के दौरान सत्ताधारी दल द्वारा सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग को रोकना और एक समान अवसर प्रदान करना है।
  3. प्रश्न 3: निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में चुनावों की निष्पक्षता और स्वतंत्रता सुनिश्चित करने के लिए जिम्मेदार है?

    (a) नीति आयोग (NITI Aayog)

    (b) भारतीय रिजर्व बैंक (RBI)

    (c) भारत का चुनाव आयोग (ECI)

    (d) लोकपाल (Lokpal)

    उत्तर: (c) भारत का चुनाव आयोग (ECI)

    व्याख्या: चुनाव आयोग भारत में राष्ट्रीय और राज्य स्तर के चुनावों का संचालन, निर्देशन और नियंत्रण करता है।
  4. प्रश्न 4: किसी राजनीतिक दल या उम्मीदवार द्वारा आदर्श आचार संहिता के उल्लंघन पर चुनाव आयोग द्वारा की जा सकने वाली कार्रवाई के संबंध में निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

    1. चुनाव आयोग जनसभाओं या प्रचार पर रोक लगा सकता है।

    2. चुनाव आयोग संबंधित उम्मीदवार को अयोग्य घोषित कर सकता है।

    3. चुनाव आयोग उल्लंघन करने वाले राजनीतिक दल का राष्ट्रीय दर्जा समाप्त कर सकता है।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    (a) केवल 1 और 2

    (b) केवल 2 और 3

    (c) केवल 1 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (a) केवल 1 और 2

    व्याख्या: चुनाव आयोग जनसभाओं पर रोक लगा सकता है और गंभीर उल्लंघन के मामले में उम्मीदवार को अयोग्य घोषित कर सकता है। हालांकि, किसी दल का राष्ट्रीय दर्जा समाप्त करना उसके दायरे से बाहर है; यह कार्य स्वयं दल के नियमों या अन्य विनियामक निकायों पर निर्भर करता है।
  5. प्रश्न 5: ‘EVM’ और ‘VVPAT’ के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सही है?

    1. EVM का मतलब इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन है, जो मतपत्रों की जगह लेती है।

    2. VVPAT का मतलब वोटर वेरिफिएबल पेपर ऑडिट ट्रेल है, जो मतदाता को यह सत्यापित करने की सुविधा देता है कि उनका वोट किसे पड़ा है।

    3. VVPAT पर्ची को एक सीलबंद लिफाफे में मतपेटी के साथ रखा जाता है।

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    (a) केवल 1 और 2

    (b) केवल 2 और 3

    (c) केवल 1 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर: (a) केवल 1 और 2

    व्याख्या: VVPAT पर्ची को मतदाता द्वारा देखा जाता है और फिर वह ड्रॉप बॉक्स में गिर जाती है, जिसे बाद में आवश्यकतानुसार मतगणना के साथ मिलाकर सत्यापित किया जा सकता है। यह सीधे मतपेटी में सीलबंद नहीं होती।
  6. प्रश्न 6: चुनाव आयोग की शक्तियों के संबंध में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन गलत है?

    (a) चुनाव आयोग राजनीतिक दलों को पंजीकृत कर सकता है।

    (b) चुनाव आयोग मतदाता सूचियों को तैयार करने और उनका नवीनीकरण करने का कार्य करता है।

    (c) चुनाव आयोग किसी भी चुनाव के परिणामों को सीधे तौर पर रद्द करने की शक्ति रखता है।

    (d) चुनाव आयोग उम्मीदवारों के लिए खर्च की सीमा निर्धारित करता है।

    उत्तर: (c) चुनाव आयोग किसी भी चुनाव के परिणामों को सीधे तौर पर रद्द करने की शक्ति रखता है।

    व्याख्या: चुनाव आयोग गंभीर कदाचार के मामले में किसी विशेष मतदान केंद्र पर मतदान रद्द कर सकता है या चुनाव स्थगित कर सकता है, लेकिन पूरे चुनाव के परिणाम को सीधे रद्द करने के लिए आमतौर पर उसे न्यायिक प्रक्रिया या अदालतों का सहारा लेना पड़ता है।
  7. प्रश्न 7: “आदर्श आचार संहिता” (Model Code of Conduct) कब से लागू होती है?

    (a) जब कोई राजनीतिक दल चुनाव लड़ने की घोषणा करता है

    (b) जब चुनाव आयोग चुनावों की तारीखों की घोषणा करता है

    (c) जब सरकार द्वारा नई नीतियां घोषित की जाती हैं

    (d) जब उम्मीदवारों का नामांकन शुरू होता है

    उत्तर: (b) जब चुनाव आयोग चुनावों की तारीखों की घोषणा करता है

    व्याख्या: आदर्श आचार संहिता चुनावों की घोषणा के साथ ही लागू हो जाती है और चुनाव परिणाम घोषित होने तक प्रभावी रहती है।
  8. प्रश्न 8: हालिया घटनाक्रम में, चुनाव आयोग ने किस राजनीतिक दल के नेता के आरोपों को ‘पुरानी स्क्रिप्ट दोहराने’ और 2018 के किस मुख्यमंत्री के कार्यों से तुलना की?

    (a) भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेता, असम के मुख्यमंत्री को लेकर

    (b) कांग्रेस पार्टी के नेता (राहुल गांधी), मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ को लेकर

    (c) आम आदमी पार्टी (AAP) के नेता, दिल्ली के मुख्यमंत्री को लेकर

    (d) तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेता, पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री को लेकर

    उत्तर: (b) कांग्रेस पार्टी के नेता (राहुल गांधी), मध्य प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री कमलनाथ को लेकर

    व्याख्या: समाचार शीर्षक के अनुसार, चुनाव आयोग ने राहुल गांधी के आरोपों पर प्रतिक्रिया देते हुए 2018 में कमलनाथ द्वारा किए गए कार्यों का उल्लेख किया।
  9. प्रश्न 9: राजनीतिक दलों के खातों और उनके द्वारा चुनाव प्रचार पर किए गए खर्च की निगरानी करने की प्राथमिक जिम्मेदारी किस निकाय की है?

    (a) भारत का नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG)

    (b) भारत का चुनाव आयोग (ECI)

    (c) आयकर विभाग (Income Tax Department)

    (d) भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI)

    उत्तर: (b) भारत का चुनाव आयोग (ECI)

    व्याख्या: चुनाव आयोग उम्मीदवारों और राजनीतिक दलों द्वारा चुनाव व्यय की निगरानी करता है और खर्च की सीमा के उल्लंघन पर कार्रवाई कर सकता है।
  10. प्रश्न 10: भारत में लोकतान्त्रिक चुनावों के संदर्भ में ‘काला धन’ (Black Money) और ‘बाहुबल’ (Muscle Power) के प्रयोग को नियंत्रित करने में सबसे बड़ी चुनौती क्या है?

    (a) चुनाव आयोग के पास इन पर अंकुश लगाने के लिए पर्याप्त कानूनी शक्तियाँ नहीं हैं।

    (b) यह सिद्ध करना अत्यंत कठिन होता है कि धन या बल का प्रयोग सीधे तौर पर चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया गया था।

    (c) राजनीतिक दल इन पर अंकुश लगाने के लिए सहयोग नहीं करते हैं।

    (d) नागरिक इन मुद्दों के प्रति उदासीन रहते हैं।

    उत्तर: (b) यह सिद्ध करना अत्यंत कठिन होता है कि धन या बल का प्रयोग सीधे तौर पर चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया गया था।

    व्याख्या: हालाँकि चुनाव आयोग और कानून प्रवर्तन एजेंसियां काला धन और बाहुबल को रोकने का प्रयास करती हैं, लेकिन ऐसे मामलों में निर्णायक प्रमाण जुटाना और उन्हें चुनावी नतीजों से सीधे जोड़ना एक बड़ी चुनौती बनी हुई है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: भारतीय लोकतंत्र में चुनाव आयोग की भूमिका का समालोचनात्मक मूल्यांकन करें। हाल के घटनाक्रमों, जैसे कि राजनीतिक नेताओं के बयानों पर आयोग की प्रतिक्रिया, के आलोक में, आयोग की निष्पक्षता और प्रभावशीलता पर चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)
  2. प्रश्न 2: आदर्श आचार संहिता (MCC) भारतीय चुनावों में निष्पक्षता सुनिश्चित करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। इसके उद्देश्यों, प्रवृत्तियों और चुनौतियों का विश्लेषण करें। चुनाव आयोग को MCC के प्रवर्तन में किन सुधारों की आवश्यकता है? (लगभग 250 शब्द)
  3. प्रश्न 3: समकालीन भारतीय राजनीति में, राजनीतिक बयानबाजी और चुनावी आरोप-प्रत्यारोप की प्रकृति कैसे बदली है? यह चुनाव प्रक्रिया की अखंडता और जनता के विश्वास को कैसे प्रभावित करता है? (लगभग 150 शब्द)
  4. प्रश्न 4: “चुनाव आयोग की स्वायत्तता और निष्पक्षता सुनिश्चित करने हेतु राजनीतिक दलों की भूमिका और आयोग के प्रति उनके आचरण का मूल्यांकन करें।” इस कथन के संदर्भ में, हालिया घटनाक्रमों पर प्रकाश डालते हुए चर्चा करें। (लगभग 250 शब्द)

Leave a Comment