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राज्यसभा में राजनीतिक तूफान: नड्डा की टिप्पणी, खड़गे का रोष और माफी का ड्रामा

राज्यसभा में राजनीतिक तूफान: नड्डा की टिप्पणी, खड़गे का रोष और माफी का ड्रामा

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** भारतीय संसद की कार्यवाही अक्सर महत्वपूर्ण विधेयकों, नीतियों और बहसों का गवाह बनती है, लेकिन कभी-कभी वह राजनीतिक बयानबाजी के व्यक्तिगत हमलों का मंच भी बन जाती है। हाल ही में, राज्यसभा में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के अध्यक्ष श्री जगत प्रकाश नड्डा द्वारा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य श्री मल्लिकार्जुन खड़गे के प्रति की गई एक टिप्पणी ने सदन में जोरदार हंगामा खड़ा कर दिया। श्री नड्डा ने श्री खड़गे के “मानसिक संतुलन खोने” की बात कही, जिस पर श्री खड़गे ने कड़ी आपत्ति जताई। इस घटना के परिणामस्वरूप, सदन की कार्यवाही बाधित हुई, राजनीतिक सरगर्मी तेज हुई और अंततः श्री नड्डा को अपनी टिप्पणी के लिए माफी मांगनी पड़ी, जिसे रिकॉर्ड से हटा दिया गया। यह घटना न केवल तत्कालीन राजनीतिक माहौल को दर्शाती है, बल्कि संसदीय शिष्टाचार, सार्वजनिक जीवन में भाषा के प्रयोग और जवाबदेही जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों को भी उठाती है, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए विशेष रूप से प्रासंगिक हैं।

यह ब्लॉग पोस्ट इस घटना की विस्तृत पड़ताल करेगा, इसके पीछे के राजनीतिक संदर्भ को समझेगा, और यह विश्लेषण करेगा कि यह घटना भारतीय संसदीय प्रणाली, राजनीतिक संस्कृति और सार्वजनिक नैतिकता के किन पहलुओं को उजागर करती है। हम यह भी देखेंगे कि UPSC परीक्षा के दृष्टिकोण से इस तरह की घटनाओं का अध्ययन क्यों महत्वपूर्ण है और इससे जुड़े कौन से विषय परीक्षा के लिए प्रासंगिक हैं।

संसद का अखाड़ा: व्यक्तिगत हमलों और संसदीय मर्यादा के बीच की महीन रेखा

राज्यसभा, भारत के द्विसदनीय संसदीय प्रणाली का उच्च सदन है, जो राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करता है। इसका मुख्य कार्य विधायी प्रक्रिया में भाग लेना, सरकार पर नियंत्रण रखना और राष्ट्रीय महत्व के मुद्दों पर चर्चा करना है। हालांकि, कभी-कभी, व्यक्तिगत रंजिशें और राजनीतिक वार-पलटवार संसद के गरिमापूर्ण मंच पर भी हावी हो जाते हैं। श्री नड्डा द्वारा श्री खड़गे पर की गई टिप्पणी इसी कड़ी का हिस्सा है।

घटना का घटनाक्रम:**

  • शुरुआती टिप्पणी:** श्री नड्डा ने संभवतः किसी राजनीतिक बयान या बहस के दौरान श्री खड़गे पर आरोप लगाया कि उन्होंने “मानसिक संतुलन खो दिया है।” यह टिप्पणी प्रत्यक्ष रूप से श्री खड़गे के व्यक्तित्व या मानसिक स्थिति पर एक हमला थी।
  • खड़गे की प्रतिक्रिया:** एक वरिष्ठ सांसद और पूर्व केंद्रीय मंत्री होने के नाते, श्री खड़गे ने इस टिप्पणी को व्यक्तिगत अपमान माना और कड़ा विरोध जताया। उन्होंने संभवतः श्री नड्डा से स्पष्टीकरण या माफी की मांग की।
  • सदन में हंगामा:** श्री खड़गे की आपत्ति पर अन्य विपक्षी दलों के सदस्यों ने भी समर्थन किया, जिससे सदन में शोर-शराबा और गतिरोध उत्पन्न हो गया। विपक्षी दलों ने इसे संसदीय मर्यादा का उल्लंघन बताया।
  • नड्डा का जवाब और माफी:** बढ़ते हंगामे और संभावित दबाव के चलते, श्री नड्डा ने या तो अपनी टिप्पणी का बचाव करने की कोशिश की या फिर स्थिति की गंभीरता को समझते हुए माफी मांगी। यह स्पष्ट नहीं है कि माफी किस संदर्भ में मांगी गई – क्या टिप्पणी के सीधे अर्थ के लिए, या फिर सदन में हुए हंगामे के लिए।
  • रिकॉर्ड से हटाना:** सदन की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिए, सभापति (या सदन के पीठासीन अधिकारी) ने श्री नड्डा की विवादास्पद टिप्पणी को कार्यवाही के रिकॉर्ड (Hansard) से हटाने का निर्देश दिया। यह एक सामान्य प्रक्रिया है जब कोई टिप्पणी अनुचित या अपमानजनक पाई जाती है।

इस घटना के पीछे का राजनीतिक संदर्भ

यह घटना अकेले नहीं हुई है। भारतीय राजनीति में, विशेषकर प्रमुख राष्ट्रीय दलों के शीर्ष नेताओं के बीच, बयानबाजी का स्तर अक्सर काफी गिर जाता है। श्री नड्डा और श्री खड़गे दोनों ही अपने-अपने दलों के प्रमुख चेहरा हैं। हाल के वर्षों में, भाजपा और कांग्रेस के बीच राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता अत्यंत तीक्ष्ण रही है। विभिन्न राज्यों में चुनावी हार-जीत, राष्ट्रीय नीतियों पर मतभेद और सत्ता का संघर्ष, इन दोनों दलों के नेताओं के बीच कटुतापूर्ण बयानबाजी का एक निरंतर स्रोत रहा है।

संभावित कारण:**

  • चुनावी रंजिश:** हालिया या आगामी चुनावों के संदर्भ में राजनीतिक विरोधियों को कमजोर करने का प्रयास।
  • जनता का ध्यान भटकाना:** किसी बड़े राष्ट्रीय मुद्दे से जनता का ध्यान हटाने के लिए एक “विवाद” खड़ा करना।
  • व्यक्तिगत वार:** विरोधी नेता के व्यक्तित्व पर हमला करके उन्हें भावनात्मक या नैतिक रूप से कमजोर करना।
  • पार्टी के एजेंडे को आगे बढ़ाना:** अपने समर्थकों के बीच जोश भरने और विपक्षी दलों के खिलाफ एक नैरेटिव स्थापित करने के लिए।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि “मानसिक संतुलन खोना” जैसी टिप्पणी केवल राजनीतिक शब्दावली का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह किसी व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर एक गंभीर, और अक्सर अनुचित, आरोप है। सार्वजनिक जीवन में, विशेषकर नेताओं के लिए, भाषा का प्रयोग अत्यंत विचारशील और जिम्मेदार होना चाहिए।

UPSC के लिए प्रासंगिक मुद्दे (Relevance for UPSC):

यह घटना कई महत्वपूर्ण विषयों को कवर करती है जो UPSC सिविल सेवा परीक्षा के पाठ्यक्रम का अभिन्न अंग हैं।

1. भारतीय राजव्यवस्था (Indian Polity):

  • संसदीय प्रक्रिया और शिष्टाचार:** राज्यसभा की कार्यप्रणाली, सभापति की भूमिका, कार्यवाही का रिकॉर्ड, सदस्यों के विशेषाधिकार और आचरण के नियम।
  • संवैधानिक प्रावधान:** संविधान का अनुच्छेद 105 (संसद और उसके सदस्यों के विशेषाधिकार), जो संसद सदस्यों को कुछ विशेषाधिकारों की गारंटी देता है, लेकिन यह असीमित नहीं है।
  • दल-बदल विरोधी कानून (Anti-defection Law):** हालांकि सीधे तौर पर संबंधित नहीं, लेकिन यह भी संसदीय अनुशासन का एक पहलू है।

2. शासन (Governance):

  • सार्वजनिक जीवन में नैतिकता (Ethics in Public Life):** नेताओं का आचरण, सार्वजनिक संवाद की गुणवत्ता, और जिम्मेदार भाषा का महत्व।
  • जवाबदेही (Accountability):** सार्वजनिक हस्तियों की सार्वजनिक बयानों के लिए जवाबदेही।
  • मीडिया की भूमिका:** ऐसी घटनाओं को कवर करने और जनता को सूचित करने में मीडिया की भूमिका।

3. समसामयिक मामले (Current Affairs):

  • राजनीतिक बयानबाजी का स्तर:** भारतीय राजनीति में भाषा और संवाद का बदलता स्वरूप।
  • दलगत राजनीति (Party Politics):** प्रमुख राष्ट्रीय दलों के बीच वर्तमान समीकरण और बयानबाजी।
  • सदन की कार्यवाही का महत्व:** संसद की गरिमा और उत्पादकता पर व्यक्तिगत हमलों का प्रभाव।

4. सामाजिक मुद्दे (Social Issues):

  • मानसिक स्वास्थ्य के प्रति संवेदनशीलता:** सार्वजनिक बहसों में मानसिक स्वास्थ्य जैसे संवेदनशील मुद्दों को कैसे संबोधित किया जाना चाहिए। हालांकि यह घटना सीधे मानसिक स्वास्थ्य के बारे में नहीं है, लेकिन “मानसिक संतुलन” जैसे शब्दों का प्रयोग इस संवेदनशीलता को उजागर करता है।

संसदीय शिष्टाचार और आचरण के नियम

संसद के दोनों सदनों के अपने-अपने नियम और प्रक्रियाएं होती हैं, जो सदस्यों के आचरण को नियंत्रित करती हैं। सभापति (या पीठासीन अधिकारी) इन नियमों को लागू करने के लिए जिम्मेदार होते हैं।

“सदन में सदस्यों को दूसरों के प्रति शिष्टाचार बनाए रखना चाहिए, भले ही वे उनके विचारों से असहमत हों। किसी सदस्य को दूसरे सदस्य या किसी अन्य व्यक्ति के खिलाफ व्यक्तिगत रूप से आपत्तिजनक भाषा का प्रयोग नहीं करना चाहिए।” – यह संसदीय शिष्टाचार का एक सामान्य सिद्धांत है।

जब कोई सदस्य नियम तोड़ता है, तो सभापति के पास कई शक्तियां होती हैं:

  • चेतावनी देना:** सदस्य को तत्काल अपनी बात वापस लेने या शिष्टाचार बनाए रखने की चेतावनी देना।
  • टिप्पणी को रिकॉर्ड से हटाना:** जैसा कि इस मामले में हुआ, किसी अनुचित टिप्पणी को कार्यवाही के आधिकारिक रिकॉर्ड (Hansard) से हटा दिया जाता है।
  • सदस्य को निलंबित करना:** गंभीर मामलों में, सदस्य को सदन से निलंबित भी किया जा सकता है।

श्री नड्डा के मामले में, टिप्पणी को रिकॉर्ड से हटाना एक मध्यम मार्ग था, जो शायद सदन को सुचारू रूप से चलाने और एक बड़े गतिरोध से बचने के लिए अपनाया गया।

इस घटना से सीखे जाने वाले सबक

यह घटना केवल एक राजनीतिक तकरार नहीं है, बल्कि यह महत्वपूर्ण सबक सिखाती है:

  • सार्वजनिक संवाद का स्तर:** सार्वजनिक जीवन में, विशेषकर राजनीतिक नेताओं को, अपनी भाषा के प्रति अत्यंत सावधान रहना चाहिए। व्यक्तिगत हमले, चाहे वे कितने भी राजनीतिक रूप से प्रभावी क्यों न लगें, अंततः संवाद को दूषित करते हैं और स्वस्थ लोकतंत्र के लिए हानिकारक होते हैं।
  • विपक्षी दलों के प्रति सम्मान:** सत्ता में बैठे दल और विपक्ष के नेताओं के बीच भी आपसी सम्मान का भाव होना चाहिए। एक-दूसरे की गरिमा पर हमला करना लोकतंत्र के लिए स्वस्थ संकेत नहीं है।
  • सदन की उत्पादकता:** जब संसद में ऐसे व्यक्तिगत हमले होते हैं, तो विधायी कार्य और महत्वपूर्ण राष्ट्रीय मुद्दों पर चर्चा बाधित होती है। इससे सदन की उत्पादकता कम होती है और जनता के विश्वास को ठेस पहुंचती है।
  • नेताओं की जवाबदेही:** सार्वजनिक पद पर बैठे व्यक्तियों की अपने शब्दों के लिए जवाबदेही तय होनी चाहिए। माफी मांगना या टिप्पणी को रिकॉर्ड से हटाना एक कदम हो सकता है, लेकिन भविष्य में ऐसे व्यवहार को रोकना अधिक महत्वपूर्ण है।

उपमा:**

इसे ऐसे समझा जा सकता है जैसे कोई डॉक्टर किसी मरीज के शारीरिक बीमारी पर चर्चा कर रहा हो, लेकिन अचानक उस मरीज के चरित्र पर व्यक्तिगत टिप्पणी करने लगे। यह न केवल अप्रसांगिक है, बल्कि अनुचित और अनैतिक भी है। संसद भी एक प्रकार का ‘राष्ट्र का चिकित्सालय’ है जहाँ देश की समस्याओं पर चर्चा और निदान होता है; यहाँ भी व्यक्तिगत आक्षेपों से बचना आवश्यक है।

निष्कर्ष

राज्यसभा में श्री नड्डा की टिप्पणी और उसके बाद की प्रतिक्रिया, माफी और रिकॉर्ड से हटाने की प्रक्रिया, भारतीय राजनीति की जटिलताओं और संसदीय व्यवस्था के भीतर आने वाली चुनौतियों का एक सूक्ष्म चित्रण है। यह घटना हमें याद दिलाती है कि जन प्रतिनिधियों के कंधों पर न केवल देश के विकास की, बल्कि सार्वजनिक संवाद के स्तर को ऊंचा रखने और संसदीय गरिमा को बनाए रखने की भी महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है। UPSC के उम्मीदवारों के लिए, इस तरह की घटनाओं का विश्लेषण करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह उन्हें भारतीय राजव्यवस्था, शासन और समसामयिक मुद्दों की गहरी समझ प्रदान करता है, जो परीक्षा में सफलता के लिए अत्यंत आवश्यक है। यह घटना भारतीय लोक गणराज्य के मूल सिद्धांतों – शिष्टाचार, सम्मान और सार्वजनिक सेवा – पर भी प्रकाश डालती है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1:** भारतीय संविधान का कौन सा अनुच्छेद संसद और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों से संबंधित है?

    (a) अनुच्छेद 100

    (b) अनुच्छेद 105

    (c) अनुच्छेद 110

    (d) अनुच्छेद 115

    उत्तर:** (b)

    व्याख्या:** अनुच्छेद 105 संसद और उसके सदस्यों के विशेषाधिकारों से संबंधित है। यह उन्हें कुछ निश्चित शक्तियों और छूटों की गारंटी देता है ताकि वे अपने कर्तव्यों का निर्वाह स्वतंत्र रूप से कर सकें।
  2. प्रश्न 2:** राज्यसभा के पीठासीन अधिकारी कौन होते हैं?

    (a) भारत के राष्ट्रपति

    (b) भारत के प्रधानमंत्री

    (c) भारत के उपराष्ट्रपति

    (d) लोकसभा के अध्यक्ष

    उत्तर:** (c)

    व्याख्या:** भारत के उपराष्ट्रपति राज्यसभा के पदेन सभापति होते हैं।
  3. प्रश्न 3:** किसी सदस्य द्वारा की गई अनुचित टिप्पणी को सदन की कार्यवाही के रिकॉर्ड (Hansard) से हटाने का अधिकार किसके पास होता है?

    (a) प्रधानमंत्री

    (b) सर्वोच्च न्यायालय

    (c) सदन का पीठासीन अधिकारी (सभापति/अध्यक्ष)

    (d) नेता प्रतिपक्ष

    उत्तर:** (c)

    व्याख्या:** सदन का पीठासीन अधिकारी, चाहे वह राज्यसभा का सभापति हो या लोकसभा का अध्यक्ष, सदन में व्यवस्था बनाए रखने और नियमों के अनुसार कार्यवाही का संचालन करने के लिए जिम्मेदार होता है, जिसमें अनुचित टिप्पणियों को रिकॉर्ड से हटाना भी शामिल है।
  4. प्रश्न 4:** संसदीय शिष्टाचार का उल्लंघन करने वाले सदस्य के खिलाफ सदन के पीठासीन अधिकारी द्वारा उठाए जाने वाले कदमों में निम्नलिखित में से कौन सा शामिल हो सकता है?

    1. चेतावनी देना

    2. टिप्पणी को रिकॉर्ड से हटाना

    3. सदस्य को सदन से निलंबित करना

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    (a) केवल 1 और 2

    (b) केवल 1 और 3

    (c) केवल 2 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर:** (d)

    व्याख्या:** पीठासीन अधिकारी के पास चेतावनी देने, टिप्पणी हटाने और सदस्य को निलंबित करने सहित विभिन्न कार्रवाई करने का अधिकार होता है।
  5. प्रश्न 5:** “मानसिक संतुलन खोना” जैसी टिप्पणी का सार्वजनिक जीवन में प्रयोग निम्नलिखित में से किस पहलू से संबंधित है?

    (a) सरकारी नीतियों की आलोचना

    (b) विधायी प्रक्रिया में बाधा

    (c) सार्वजनिक संवाद में नैतिकता और भाषा का प्रयोग

    (d) वित्तीय अनियमितताओं का आरोप

    उत्तर:** (c)

    व्याख्या:** यह टिप्पणी सीधे तौर पर सार्वजनिक नेताओं द्वारा उपयोग की जाने वाली भाषा की गुणवत्ता और सार्वजनिक जीवन में नैतिक आचरण के मानदंडों से संबंधित है।
  6. प्रश्न 6:** भारतीय संसद में ‘Hansard’ का क्या अर्थ है?

    (a) संसद सदस्यों की सूची

    (b) संसद की कार्यवाही का आधिकारिक रिकॉर्ड

    (c) संसदीय समिति की रिपोर्ट

    (d) विधायी प्रस्ताव

    उत्तर:** (b)

    व्याख्या:** Hansard वह आधिकारिक प्रकाशन है जिसमें संसद में हुई बहस और कार्यवाही का पूरा विवरण दर्ज होता है।
  7. प्रश्न 7:** राज्यसभा का गठन किस सिद्धांत पर आधारित है?

    (a) जनसंख्या के आधार पर प्रतिनिधित्व

    (b) राज्यों का समान प्रतिनिधित्व

    (c) भौगोलिक प्रतिनिधित्व

    (d) शक्ति पृथक्करण सिद्धांत

    उत्तर:** (b)

    व्याख्या:** राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है, और इसमें राज्यों का प्रतिनिधित्व मोटे तौर पर जनसंख्या के अनुपात में होता है, लेकिन कुछ हद तक राज्यों के बीच संतुलन भी देखा जाता है, जो इसे लोकसभा से अलग करता है। इसे “राज्यों की परिषद” भी कहा जाता है।
  8. प्रश्न 8:** किसी सदस्य द्वारा आपत्तिजनक भाषण को रिकॉर्ड से हटाने का निर्णय किस पर निर्भर करता है?

    (a) विपक्षी दलों की मांग

    (b) सत्ताधारी दल का बहुमत

    (c) पीठासीन अधिकारी का विवेक और सदन के नियम

    (d) प्रधानमंत्री का प्रत्यक्ष आदेश

    उत्तर:** (c)

    व्याख्या:** पीठासीन अधिकारी का यह निर्णय संसदीय नियमों और प्रचलनों के आधार पर उनके विवेक का प्रयोग होता है।
  9. प्रश्न 9:** राजनीतिक दल की बयानबाजी का स्तर गिरने से लोकतंत्र पर क्या नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है?

    1. जनहित के मुद्दों पर चर्चा में कमी

    2. नागरिकों का राजनीतिक प्रक्रिया से मोहभंग

    3. राजनीतिक दलों की विश्वसनीयता में वृद्धि

    नीचे दिए गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिए:

    (a) केवल 1 और 2

    (b) केवल 1 और 3

    (c) केवल 2 और 3

    (d) 1, 2 और 3

    उत्तर:** (a)

    व्याख्या:** गिरता हुआ राजनीतिक संवाद अक्सर जनहित के मुद्दों से ध्यान भटकाता है और नागरिकों में निराशा पैदा करता है, जिससे उनकी राजनीतिक प्रक्रिया में भागीदारी कम हो सकती है। विश्वसनीयता में वृद्धि के बजाय कमी होती है।
  10. प्रश्न 10:** इस घटना में श्री नड्डा किस राजनीतिक दल के अध्यक्ष हैं?

    (a) भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस

    (b) भारतीय जनता पार्टी

    (c) आम आदमी पार्टी

    (d) बहुजन समाज पार्टी

    उत्तर:** (b)

    व्याख्या:** श्री जगत प्रकाश नड्डा (जे.पी. नड्डा) भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1:** राज्यसभा में भाजपा अध्यक्ष श्री जे.पी. नड्डा द्वारा कांग्रेस नेता श्री मल्लिकार्जुन खड़गे पर की गई टिप्पणी और उसके बाद की कार्यवाही का विश्लेषण करें। इस घटना से भारतीय संसदीय प्रणाली में शिष्टाचार, मर्यादा और राजनीतिक संवाद के स्तर से संबंधित किन महत्वपूर्ण मुद्दों पर प्रकाश पड़ता है? (लगभग 250 शब्द)
  2. प्रश्न 2:** सार्वजनिक जीवन में नेताओं की भाषा और बयानबाजी के लिए जवाबदेही का क्या महत्व है? श्री नड्डा-खड़गे विवाद के संदर्भ में चर्चा करें और स्पष्ट करें कि ऐसे मामलों में पीठासीन अधिकारी की भूमिका और रिकॉर्ड से टिप्पणी को हटाना किस प्रकार प्रासंगिक है। (लगभग 150 शब्द)
  3. प्रश्न 3:** भारतीय लोकतंत्र में राजनीतिक संवाद का स्तर लगातार गिर रहा है। इस प्रवृत्ति के कारणों की पहचान करें और स्वस्थ सार्वजनिक संवाद को बढ़ावा देने के लिए सरकार, राजनीतिक दलों और नागरिकों की क्या भूमिका हो सकती है, इस पर अपने विचार प्रस्तुत करें। (लगभग 250 शब्द)
  4. प्रश्न 4:** अनुच्छेद 105 के तहत संसद सदस्यों को प्राप्त विशेषाधिकारों की सीमाओं पर चर्चा करें। क्या श्री नड्डा द्वारा की गई टिप्पणी विशेषाधिकारों के दुरुपयोग की श्रेणी में आती है, और यदि हाँ, तो इसके लिए किस प्रकार की जवाबदेही तय की जानी चाहिए? (लगभग 200 शब्द)

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