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राजभवन की बदलती तस्वीर: लद्दाख, हरियाणा, और गोवा में नियुक्तियों के राजनीतिक मायने और संवैधानिक निहितार्थ

राजभवन की बदलती तस्वीर: लद्दाख, हरियाणा, और गोवा में नियुक्तियों के राजनीतिक मायने और संवैधानिक निहितार्थ

चर्चा में क्यों? (Why in News?): हाल ही में, भारत सरकार ने कुछ महत्वपूर्ण नियुक्तियाँ की हैं, जिनमें लद्दाख के लिए नए उपराज्यपाल (LG) और हरियाणा व गोवा जैसे राज्यों के लिए नए राज्यपाल शामिल हैं। इन नियुक्तियों में विशेष रूप से पूर्व जम्मू-कश्मीर के उपमुख्यमंत्री कविंदर गुप्ता को लद्दाख जैसे रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण केंद्र शासित प्रदेश की कमान सौंपना उल्लेखनीय है। ये नियुक्तियाँ केवल प्रशासनिक फेरबदल नहीं हैं, बल्कि ये भारतीय संघीय ढांचे, केंद्र-राज्य संबंधों और शासन के बदलते परिदृश्य पर व्यापक प्रभाव डालने की क्षमता रखती हैं। इस विस्तृत विश्लेषण में, हम इन नियुक्तियों के विभिन्न आयामों, राज्यपाल और उपराज्यपाल के संवैधानिक पदों, उनके अधिकारों, जिम्मेदारियों, और इनसे जुड़े ऐतिहासिक विवादों के साथ-साथ भविष्य की राह पर भी गहन चर्चा करेंगे, जो UPSC उम्मीदवारों के लिए एक व्यापक मार्गदर्शिका साबित होगी।

नियुक्तियों का अवलोकन: कौन, कहाँ और क्यों?

हालिया नियुक्तियों ने देश के विभिन्न हिस्सों में नए चेहरों को संवैधानिक पदों पर लाया है। लद्दाख में कविंदर गुप्ता की नियुक्ति विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। जम्मू-कश्मीर के उप मुख्यमंत्री रह चुके गुप्ता का अनुभव इस क्षेत्र की जटिल भू-राजनीतिक और सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थितियों को समझने और संभालने में सहायक हो सकता है। लद्दाख, अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद एक अलग केंद्र शासित प्रदेश के रूप में गठित हुआ है, और यहाँ एक मजबूत व अनुभवी नेतृत्व की आवश्यकता है। हरियाणा और गोवा में भी राज्यपालों की नियुक्तियाँ राज्य की राजनीतिक गतिशीलता और केंद्र के साथ उनके संबंधों को प्रभावित कर सकती हैं।

कविंदर गुप्ता: एक संक्षिप्त परिचय

कविंदर गुप्ता भारतीय जनता पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं, जिन्होंने जम्मू और कश्मीर में उपमुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया है। उनका राजनीतिक अनुभव और राज्य के जटिल मुद्दों की समझ उन्हें लद्दाख जैसे नवगठित केंद्र शासित प्रदेश के लिए एक महत्वपूर्ण पद पर स्थापित करती है। लद्दाख की भू-रणनीतिक स्थिति, चीन और पाकिस्तान से लगी सीमाएँ, साथ ही क्षेत्र के भीतर विकास और स्थानीय आकांक्षाओं का संतुलन बनाए रखना एक बड़ी चुनौती है, जिसके लिए एक अनुभवी प्रशासक की आवश्यकता है।

राज्यपाल और उपराज्यपाल: भारतीय संविधान के दो महत्वपूर्ण स्तंभ

भारतीय संविधान ने संघ और राज्यों के बीच शक्ति संतुलन स्थापित करने के लिए एक अद्वितीय संघीय ढाँचा तैयार किया है। इस ढांचे में, राज्यपाल और उपराज्यपाल दो ऐसे महत्वपूर्ण पद हैं जो केंद्र और राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों के बीच एक सेतु का काम करते हैं। हालाँकि, उनकी भूमिकाएँ और शक्तियाँ, विशेष रूप से उनकी नियुक्ति के तरीके और केंद्र के साथ उनके संबंधों के कारण, अक्सर बहस का विषय रही हैं।

राज्यपाल (Governor): एक राज्य का संवैधानिक प्रमुख

राज्यपाल राज्य का संवैधानिक प्रमुख होता है, ठीक उसी तरह जैसे राष्ट्रपति केंद्र का संवैधानिक प्रमुख होता है। भारतीय संविधान के भाग VI में राज्यों के शासन के बारे में प्रावधान हैं, और इसमें राज्यपाल की भूमिका विस्तार से वर्णित है।

संवैधानिक प्रावधान:

  • अनुच्छेद 153: प्रत्येक राज्य का एक राज्यपाल होगा। एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जा सकता है।
  • अनुच्छेद 154: राज्य की कार्यकारी शक्ति राज्यपाल में निहित होगी, और वह इसका प्रयोग प्रत्यक्षतः या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा।
  • अनुच्छेद 155: राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा अपने हस्ताक्षर और मुहर के तहत की जाती है। व्यवहार में, यह केंद्रीय मंत्रिमंडल की सलाह पर होता है।
  • अनुच्छेद 156: राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत पद धारण करेगा। हालाँकि, उनके पास 5 वर्ष का एक निश्चित कार्यकाल होता है, लेकिन राष्ट्रपति उन्हें किसी भी समय हटा सकता है।
  • अनुच्छेद 157: राज्यपाल बनने के लिए भारत का नागरिक होना चाहिए और 35 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो।

राज्यपाल की शक्तियाँ और कार्य:

राज्यपाल की शक्तियाँ विस्तृत हैं और इन्हें विभिन्न श्रेणियों में वर्गीकृत किया जा सकता है:

  1. कार्यकारी शक्तियाँ:
    • मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति।
    • राज्य के महाधिवक्ता और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियुक्ति।
    • राज्य की कार्यकारी कार्रवाई उनके नाम पर की जाती है।
    • वह राज्य के प्रशासन के बारे में मुख्यमंत्री से जानकारी मांग सकते हैं।
    • राष्ट्रपति शासन की सिफारिश कर सकते हैं।
  2. विधायी शक्तियाँ:
    • राज्य विधानमंडल के सत्र को आहूत करना, सत्रावसान करना और भंग करना।
    • विधानसभा के प्रत्येक आम चुनाव के पहले सत्र को और प्रत्येक वर्ष के पहले सत्र को संबोधित करना।
    • विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को अनुमति देना, रोकना, या राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करना (अनुच्छेद 200)।
    • अध्यादेश जारी करना जब विधानमंडल सत्र में न हो (अनुच्छेद 213)।
  3. वित्तीय शक्तियाँ:
    • धन विधेयक उनकी पूर्व सहमति से ही विधानमंडल में पेश किया जा सकता है।
    • राज्य के वार्षिक वित्तीय विवरण (राज्य बजट) को विधानमंडल के समक्ष रखवाना।
    • आकस्मिक निधि से अग्रिम लेना।
  4. न्यायिक शक्तियाँ:
    • राष्ट्रपति से परामर्श कर उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की नियुक्ति।
    • राज्य कानून से संबंधित किसी मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को क्षमादान, लघुकरण, निलंबन या परिहार देना (अनुच्छेद 161)।
  5. विवेकाधीन शक्तियाँ (Discretionary Powers):
    • राज्यपाल की कुछ शक्तियाँ ऐसी हैं जिनका प्रयोग वह मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना अपने विवेक से कर सकते हैं। यह अक्सर विवाद का विषय रहा है। उदाहरण:
      • किसी भी दल को स्पष्ट बहुमत न मिलने पर मुख्यमंत्री का चयन।
      • राज्य विधानमंडल में बहुमत साबित करने के लिए मुख्यमंत्री को कहना।
      • किसी बिल को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करना।
      • मुख्यमंत्री से प्रशासनिक मामलों और विधायी प्रस्तावों के संबंध में जानकारी मांगना।
      • राज्य में संवैधानिक मशीनरी के टूटने पर राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करना।

उपराज्यपाल (Lieutenant Governor – LG): केंद्र शासित प्रदेशों का प्रशासक

उपराज्यपाल केंद्र शासित प्रदेशों (UTs) में केंद्र सरकार के प्रतिनिधि होते हैं। उनका पद राज्यपाल से इस मायने में भिन्न है कि वे सीधे केंद्र सरकार के अधीन कार्य करते हैं। केंद्र शासित प्रदेशों को तीन श्रेणियों में बांटा जा सकता है, जिसके आधार पर LG की शक्तियाँ और भूमिका तय होती है:

  1. बिना विधानमंडल वाले UTs (जैसे लद्दाख, चंडीगढ़, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह):
    • इन UTs में LG प्रशासक के रूप में कार्य करते हैं और सीधे केंद्र सरकार (राष्ट्रपति के माध्यम से) के प्रति जवाबदेह होते हैं।
    • सभी कार्यकारी शक्तियाँ उनके पास होती हैं और वे केंद्र सरकार की सलाह पर कार्य करते हैं।
  2. विधानमंडल वाले UTs (जैसे दिल्ली, पुदुचेरी):
    • इन UTs में एक निर्वाचित विधानमंडल और मंत्रिपरिषद होती है।
    • LG को मंत्रिपरिषद की सलाह पर कार्य करना होता है, सिवाय उन मामलों के जहाँ संविधान उन्हें अपने विवेक से कार्य करने का अधिकार देता है।
    • हालांकि, केंद्र सरकार का नियंत्रण ऐसे UTs पर भी काफी मजबूत होता है, विशेषकर दिल्ली में ‘सार्वजनिक व्यवस्था’, ‘पुलिस’ और ‘भूमि’ जैसे मामलों पर LG का सीधा नियंत्रण होता है।
    • यहां अक्सर निर्वाचित सरकार और LG के बीच शक्तियों के बँटवारे को लेकर संघर्ष देखा जाता है।

लद्दाख, एक ऐसा केंद्र शासित प्रदेश है जिसके पास वर्तमान में अपनी कोई विधायिका नहीं है। इसका मतलब है कि लद्दाख के उपराज्यपाल की भूमिका बहुत अधिक विस्तृत और प्रत्यक्ष होगी, जिसमें प्रशासन के लगभग सभी पहलुओं पर उनका सीधा नियंत्रण होगा। यह स्थिति उन्हें केंद्र सरकार के प्रत्यक्ष प्रतिनिधि के रूप में सशक्त बनाती है और क्षेत्र के विकास तथा सुरक्षा में उनकी भूमिका को अत्यधिक महत्वपूर्ण बनाती है।

इन नियुक्तियों के व्यापक निहितार्थ: संघवाद और केंद्र-राज्य संबंध

राज्यपाल और उपराज्यपाल की नियुक्तियाँ मात्र औपचारिक प्रक्रियाएँ नहीं होतीं। उनके राजनीतिक और संवैधानिक निहितार्थ दूरगामी होते हैं, खासकर भारतीय संघवाद के संदर्भ में।

1. संघवाद पर प्रभाव (Impact on Federalism):

“भारत एक ऐसा संघ है जिसमें अधिक से अधिक एकात्मक विशेषताएँ हैं।” – डॉ. बी.आर. अम्बेडकर

राज्यपाल का पद भारतीय संघीय व्यवस्था में एक अद्वितीय स्थान रखता है। वे न केवल राज्य के संवैधानिक प्रमुख होते हैं, बल्कि केंद्र और राज्य के बीच एक महत्वपूर्ण कड़ी भी होते हैं।

  • संतुलन का कार्य: आदर्श रूप से, राज्यपाल को केंद्र और राज्य के बीच संतुलन बनाने वाले के रूप में कार्य करना चाहिए। वे केंद्र के निर्देशों को राज्य तक पहुँचाते हैं और राज्य की चिंताओं को केंद्र तक।
  • संघर्ष का बिंदु: हालाँकि, अक्सर राज्यपालों पर केंद्र सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करने का आरोप लगता है, जिससे राज्य की स्वायत्तता पर सवाल उठते हैं। नियुक्तियों में राजनीतिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों का चुनाव इस आरोप को और बल देता है।
  • लद्दाख का विशिष्ट मामला: लद्दाख जैसे UT में LG की नियुक्ति, जहाँ कोई निर्वाचित विधायिका नहीं है, सीधे तौर पर केंद्र के नियंत्रण को दर्शाता है। यह केंद्र सरकार को इस रणनीतिक क्षेत्र में अपनी नीतियों को सीधे लागू करने की अनुमति देता है। यह स्थिति, हालांकि प्रशासनिक रूप से कुशल हो सकती है, स्थानीय लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को पूरा करने की चुनौती भी प्रस्तुत करती है।

2. केंद्र-राज्य संबंध (Centre-State Relations):

राज्यपाल का पद केंद्र-राज्य संबंधों में अक्सर तनाव का एक स्रोत रहा है।

  • विवादों का इतिहास: राज्यपालों द्वारा अपनी विवेकाधीन शक्तियों का प्रयोग, जैसे कि मुख्यमंत्री को नियुक्त करना, विधानसभा भंग करना, या विधेयकों को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करना, कई बार राज्य सरकारों के साथ टकराव का कारण बना है।
    • एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामला (1994): इस ऐतिहासिक फैसले में सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यपाल की राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश करने की शक्ति को न्यायिक समीक्षा के अधीन कर दिया, जिससे उनके विवेकाधीन अधिकारों पर लगाम लगी।
    • सरकारिया आयोग (1983) और पुंछी आयोग (2007): इन आयोगों ने केंद्र-राज्य संबंधों पर विस्तार से रिपोर्ट दी और राज्यपाल के पद से संबंधित कई सिफारिशें कीं, जिनमें राज्यपाल की नियुक्ति के लिए एक पैनल का गठन, उनके कार्यकाल की सुरक्षा, और विवेक के इस्तेमाल के लिए दिशानिर्देश शामिल हैं।
  • नई नियुक्तियों का प्रभाव: नए राज्यपालों की नियुक्तियाँ मौजूदा केंद्र-राज्य संबंधों को सुदृढ़ या तनावपूर्ण कर सकती हैं। यदि नए राज्यपाल निष्पक्ष और संवैधानिक मानदंडों के अनुसार कार्य करते हैं, तो वे सद्भाव को बढ़ावा देंगे। अन्यथा, वे राज्य सरकारों के साथ मतभेद का कारण बन सकते हैं।

3. शासन और प्रशासन (Governance and Administration):

राज्यपाल/LG की भूमिका सुशासन सुनिश्चित करने में महत्वपूर्ण है।

  • नीतियों का कार्यान्वयन: एक प्रभावी राज्यपाल/LG राज्य या UT में केंद्र और राज्य की नीतियों के सुचारू कार्यान्वयन को सुनिश्चित कर सकता है।
  • संवैधानिक मशीनरी का अनुरक्षण: वे यह सुनिश्चित करते हैं कि राज्य में शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार चले।
  • विकास की प्राथमिकताएँ: लद्दाख जैसे क्षेत्रों में, LG की भूमिका क्षेत्र के त्वरित विकास, बुनियादी ढांचे के उन्नयन और स्थानीय आबादी की आकांक्षाओं को पूरा करने में महत्वपूर्ण होगी।

चुनौतियाँ और भविष्य की राह

राज्यपाल और उपराज्यपाल के पद हमेशा से भारतीय राजव्यवस्था में एक जटिल विषय रहे हैं। इनकी नियुक्तियों के इर्द-गिर्द कई चुनौतियाँ और विवाद मंडराते रहे हैं।

प्रमुख चुनौतियाँ:

  1. पार्टीगत निष्ठा बनाम संवैधानिक भूमिका: अक्सर राज्यपालों पर सत्तारूढ़ केंद्र सरकार के राजनीतिक एजेंट के रूप में कार्य करने का आरोप लगता है, खासकर जब केंद्र और राज्य में अलग-अलग राजनीतिक दल सत्ता में होते हैं। यह स्थिति राज्यपाल की संवैधानिक निष्पक्षता को कम करती है।
  2. अस्पष्ट विवेकाधीन शक्तियाँ: संविधान में राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों की स्पष्ट परिभाषा का अभाव कई विवादों का मूल कारण रहा है। मुख्यमंत्री का चयन, बहुमत साबित करने का समय, और बिलों को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करना कुछ ऐसे क्षेत्र हैं जहाँ विवाद उत्पन्न हुए हैं।
  3. उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच टकराव: दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में, उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच शक्तियों के बँटवारे को लेकर लगातार टकराव देखा गया है। यह शासन में बाधा डालता है और जनता के कल्याण को प्रभावित करता है।
  4. लद्दाख की विशेष स्थिति: लद्दाख में एक सशक्त LG की नियुक्ति, बिना स्थानीय विधायिका के, स्थानीय आबादी की लोकतांत्रिक आकांक्षाओं को पूरा करने की चुनौती पेश कर सकती है। यहाँ के लोग लंबे समय से अपनी पहचान और अधिकारों को लेकर संवेदनशील रहे हैं।

सुधार के लिए सुझाव और भविष्य की राह:

इन चुनौतियों का समाधान करने और राज्यपाल/LG के पद की गरिमा और प्रभावशीलता को बनाए रखने के लिए विभिन्न आयोगों और विशेषज्ञों ने कई सिफारिशें की हैं:

  1. नियुक्ति प्रक्रिया का मानकीकरण:
    • राज्यपाल की नियुक्ति के लिए एक अधिक पारदर्शी और परामर्शकारी प्रक्रिया विकसित की जानी चाहिए। इसमें मुख्यमंत्री से अनिवार्य परामर्श या एक कॉलेजियम प्रणाली (जैसा कि सरकारिया आयोग और पुंछी आयोग ने सुझाया था) शामिल हो सकती है।
    • यह सुनिश्चित किया जाना चाहिए कि नियुक्त व्यक्ति राजनीतिक रूप से तटस्थ और संवैधानिक विशेषज्ञता वाला हो।
  2. कार्यकाल की सुरक्षा:
    • राज्यपाल के कार्यकाल को ‘राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत’ के बजाय निश्चित किया जाना चाहिए और हटाने की प्रक्रिया को अधिक कठिन बनाया जाना चाहिए, ताकि वे दबाव के बिना कार्य कर सकें।
    • पुंछी आयोग ने कार्यकाल की सुरक्षा को सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के समान करने का सुझाव दिया था।
  3. विवेकाधीन शक्तियों का स्पष्टीकरण:
    • संविधान में राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियों के दायरे और उपयोग के लिए स्पष्ट दिशानिर्देश स्थापित किए जाने चाहिए ताकि मनमानी पर रोक लग सके।
    • सर्वोच्च न्यायालय के विभिन्न निर्णयों ने इस दिशा में कुछ स्पष्टता प्रदान की है, लेकिन विधायी स्पष्टता अभी भी आवश्यक है।
  4. केंद्र-राज्य समन्वय तंत्र:
    • अंतर-राज्यीय परिषद (Inter-State Council) जैसे मंचों को और अधिक सक्रिय किया जाना चाहिए ताकि केंद्र और राज्यों के बीच संवाद और समन्वय बढ़ सके, जिससे राज्यपाल के माध्यम से होने वाले टकरावों को कम किया जा सके।
  5. लद्दाख में भागीदारी शासन:
    • लद्दाख जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में, जहाँ कोई निर्वाचित विधायिका नहीं है, स्थानीय स्वशासन संस्थाओं को मजबूत करके और स्थानीय आबादी को नीति-निर्माण में अधिक भागीदारी देकर लोकतांत्रिक घाटे को कम किया जा सकता है।
    • दीर्घकालिक रूप से, स्थानीय प्रतिनिधियों की आकांक्षाओं को ध्यान में रखते हुए विधायिका के गठन पर विचार किया जा सकता है।

निष्कर्ष

लद्दाख, हरियाणा और गोवा में हालिया नियुक्तियाँ भारतीय राजनीतिक और प्रशासनिक ढांचे में एक सामान्य प्रक्रिया का हिस्सा हो सकती हैं, लेकिन इनके गहरे संवैधानिक और राजनीतिक निहितार्थ हैं। राज्यपाल और उपराज्यपाल के पद भारतीय संघवाद के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, और उनकी कार्यप्रणाली सीधे तौर पर केंद्र-राज्य संबंधों, सुशासन और देश की लोकतांत्रिक भावना को प्रभावित करती है। यह आवश्यक है कि ये पद संविधान की भावना के अनुरूप कार्य करें, राजनीतिक निष्पक्षता और संवैधानिक सर्वोच्चता को बनाए रखें। इन नियुक्तियों के माध्यम से, केंद्र सरकार न केवल अपने प्रशासनिक उद्देश्यों को पूरा करती है, बल्कि विभिन्न क्षेत्रों में अपनी नीतियों को लागू करने और केंद्र-राज्य के बीच संबंधों को आकार देने का भी प्रयास करती है। भविष्य में, इन पदों पर नियुक्त व्यक्तियों का प्रदर्शन, उनके संवैधानिक कर्तव्यों का निर्वहन और केंद्र-राज्य सहयोग की भावना, भारतीय लोकतंत्र के स्वास्थ्य और संघीय ढांचे की मजबूती को निर्धारित करेगा। यूपीएससी उम्मीदवारों के लिए, इन नियुक्तियों को संवैधानिक प्रावधानों, ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य और केंद्र-राज्य संबंधों की व्यापक समझ के साथ देखना अत्यंत महत्वपूर्ण है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

(यहाँ 10 MCQs, उनके उत्तर और व्याख्या प्रदान करें)

  1. प्रश्न: राज्यपाल की शक्तियों के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
    1. वह राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है।
    2. वह राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों को उनके पद से हटा सकता है।
    3. वह राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल a और b

    (B) केवल b और c

    (C) केवल a और c

    (D) a, b और c

    उत्तर: (C) केवल a और c

    व्याख्या: राज्यपाल राज्य के महाधिवक्ता की नियुक्ति करता है (अनुच्छेद 165) और राज्य लोक सेवा आयोग के सदस्यों की नियुक्ति भी करता है, लेकिन उन्हें केवल राष्ट्रपति द्वारा हटाया जा सकता है, राज्यपाल द्वारा नहीं। राज्यपाल राज्य विधानमंडल द्वारा पारित किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है (अनुच्छेद 200)।

  2. प्रश्न: भारतीय संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत, राज्यपाल की क्षमादान शक्ति के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
    1. वह मृत्युदंड को क्षमा कर सकता है।
    2. वह सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजा को क्षमा कर सकता है।
    3. वह राज्य कानून से संबंधित किसी मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति को क्षमादान दे सकता है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल a

    (B) केवल c

    (C) केवल a और b

    (D) b और c

    उत्तर: (B) केवल c

    व्याख्या: राज्यपाल मृत्युदंड को क्षमा नहीं कर सकता (केवल राष्ट्रपति) और न ही सैन्य न्यायालय द्वारा दी गई सजा को क्षमा कर सकता है। उसकी क्षमादान शक्ति केवल राज्य कानून से संबंधित मामलों तक सीमित है।

  3. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन-से केंद्र शासित प्रदेशों में निर्वाचित विधानमंडल और मंत्रिपरिषद है?
    1. दिल्ली
    2. पुदुचेरी
    3. चंडीगढ़
    4. लद्दाख

    सही विकल्प चुनिए:

    (A) केवल a और b

    (B) केवल a, b और c

    (C) केवल b, c और d

    (D) केवल a, b, c और d

    उत्तर: (A) केवल a और b

    व्याख्या: दिल्ली और पुदुचेरी दो ऐसे केंद्र शासित प्रदेश हैं जहाँ निर्वाचित विधानमंडल और मंत्रिपरिषद है। चंडीगढ़ और लद्दाख में वर्तमान में कोई निर्वाचित विधानमंडल नहीं है।

  4. प्रश्न: राज्यपाल के अध्यादेश जारी करने की शक्ति के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
    1. वह अध्यादेश तभी जारी कर सकता है जब राज्य विधानमंडल सत्र में न हो।
    2. अध्यादेश की शक्ति राज्य विधानमंडल के कानून बनाने की शक्ति के समान होती है।
    3. अध्यादेश को विधानमंडल के पुनः समवेत होने के छह सप्ताह के भीतर अनुमोदित किया जाना चाहिए, अन्यथा वह समाप्त हो जाएगा।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल a

    (B) केवल b और c

    (C) केवल a और c

    (D) a, b और c

    उत्तर: (D) a, b और c

    व्याख्या: अनुच्छेद 213 के तहत राज्यपाल की अध्यादेश जारी करने की शक्ति, उपर्युक्त सभी कथन सही हैं। यह शक्ति तब प्रयोग की जाती है जब विधानमंडल सत्र में न हो, इसकी शक्ति विधानमंडल के कानून के बराबर होती है, और इसे विधानमंडल के पुनः समवेत होने के छह सप्ताह के भीतर अनुमोदित किया जाना आवश्यक है।

  5. प्रश्न: एस.आर. बोम्मई बनाम भारत संघ मामले (1994) का संबंध किससे है?

    (A) राज्यपाल की क्षमादान शक्ति

    (B) राष्ट्रपति शासन लगाने की राज्यपाल की सिफारिश

    (C) दल-बदल विरोधी कानून की संवैधानिकता

    (D) अनुच्छेद 370 की व्याख्या

    उत्तर: (B) राष्ट्रपति शासन लगाने की राज्यपाल की सिफारिश

    व्याख्या: एस.आर. बोम्मई मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) के तहत राज्यपाल की सिफारिश की न्यायिक समीक्षा को स्थापित किया, जिससे राज्यपाल की विवेकाधीन शक्ति पर अंकुश लगा।
  6. प्रश्न: निम्नलिखित में से किस आयोग/समिति ने राज्यपाल की नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्यमंत्री के परामर्श का सुझाव दिया था?
    1. प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC)
    2. सरकारिया आयोग
    3. पुंछी आयोग
    4. राजमन्नार समिति

    सही विकल्प चुनिए:

    (A) केवल 1 और 2

    (B) केवल 2 और 3

    (C) केवल 1, 2 और 3

    (D) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (B) केवल 2 और 3

    व्याख्या: सरकारिया आयोग और पुंछी आयोग दोनों ने राज्यपाल की नियुक्ति प्रक्रिया में मुख्यमंत्री के परामर्श का सुझाव दिया था ताकि राज्यपाल के पद की निष्पक्षता सुनिश्चित की जा सके।

  7. प्रश्न: राज्यपाल के पद के संबंध में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
    1. राज्यपाल अपने पद से त्यागपत्र राष्ट्रपति को संबोधित करके देता है।
    2. राज्यपाल का कार्यकाल संविधान द्वारा निश्चित 5 वर्ष का होता है और उसे इस अवधि से पहले हटाया नहीं जा सकता।
    3. राज्यपाल को राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शपथ दिलाई जाती है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल a और b

    (B) केवल b और c

    (C) केवल a और c

    (D) a, b और c

    उत्तर: (C) केवल a और c

    व्याख्या: राज्यपाल राष्ट्रपति को त्यागपत्र देता है और राज्य उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश द्वारा शपथ दिलाई जाती है। हालाँकि, वह 5 वर्ष का कार्यकाल धारण करता है, लेकिन वह राष्ट्रपति के “प्रसादपर्यंत” पद धारण करता है, जिसका अर्थ है कि उसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय हटाया जा सकता है, इसलिए कथन (b) गलत है।

  8. प्रश्न: केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल (LG) की भूमिका के संदर्भ में, निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिए:
    1. वह सीधे केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है।
    2. सभी केंद्र शासित प्रदेशों में LG की शक्तियाँ और भूमिका समान होती है।
    3. दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेश में, LG को कुछ मामलों में निर्वाचित मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना कार्य करने का अधिकार है।

    उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

    (A) केवल a

    (B) केवल b और c

    (C) केवल a और c

    (D) a, b और c

    उत्तर: (C) केवल a और c

    व्याख्या: उपराज्यपाल सीधे केंद्र सरकार के प्रतिनिधि होते हैं। हालांकि, सभी केंद्र शासित प्रदेशों में LG की शक्तियां समान नहीं होतीं; यह इस बात पर निर्भर करता है कि UT में निर्वाचित विधायिका है या नहीं। दिल्ली जैसे UT में, कुछ आरक्षित मामलों (पुलिस, सार्वजनिक व्यवस्था, भूमि) में LG मंत्रिपरिषद की सलाह के बिना कार्य कर सकता है।

  9. प्रश्न: राज्यपाल द्वारा किसी विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित करने का क्या उद्देश्य हो सकता है?
    1. यदि विधेयक राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों के विरुद्ध हो।
    2. यदि विधेयक उच्च न्यायालय की स्थिति को खतरे में डालता हो।
    3. यदि विधेयक राष्ट्रीय महत्व का हो।
    4. यदि विधेयक संविधान के प्रावधानों के विरुद्ध हो।

    सही विकल्प चुनिए:

    (A) केवल 1, 2 और 3

    (B) केवल 2, 3 और 4

    (C) केवल 1, 3 और 4

    (D) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: (D) 1, 2, 3 और 4

    व्याख्या: अनुच्छेद 200 के तहत, राज्यपाल कई कारणों से विधेयक को राष्ट्रपति के विचारार्थ आरक्षित कर सकता है, जिनमें उपर्युक्त सभी स्थितियाँ शामिल हैं। खासकर, यदि विधेयक उच्च न्यायालय की स्थिति को कम करता है तो आरक्षित करना अनिवार्य है।

  10. प्रश्न: निम्नलिखित में से कौन सा अनुच्छेद राज्यपाल को राज्य के मुख्यमंत्री और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति का अधिकार देता है?

    (A) अनुच्छेद 153

    (B) अनुच्छेद 163

    (C) अनुच्छेद 164

    (D) अनुच्छेद 165

    उत्तर: (C) अनुच्छेद 164

    व्याख्या: अनुच्छेद 164 स्पष्ट रूप से कहता है कि मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाएगी और अन्य मंत्रियों की नियुक्ति मुख्यमंत्री की सलाह पर राज्यपाल द्वारा की जाएगी।

मुख्य परीक्षा (Mains)

(यहाँ 3-4 मेन्स के प्रश्न प्रदान करें)

  1. “राज्यपाल का पद भारतीय संघीय व्यवस्था में एक आवश्यक कड़ी के रूप में कार्य करता है, परंतु अक्सर यह केंद्र के एजेंट के रूप में कार्य करने के आरोपों से घिरा रहता है।” इस कथन के आलोक में राज्यपाल की शक्तियों और भूमिका का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिए तथा इससे जुड़े विवादों को स्पष्ट कीजिए।
  2. केंद्र शासित प्रदेशों में उपराज्यपाल (LG) की भूमिका राज्यों में राज्यपाल की भूमिका से किस प्रकार भिन्न है? दिल्ली जैसे केंद्र शासित प्रदेशों में LG और निर्वाचित सरकार के बीच शक्ति संतुलन से उत्पन्न होने वाले संघर्षों का विश्लेषण कीजिए।
  3. भारत में केंद्र-राज्य संबंधों को सुदृढ़ करने के लिए राज्यपाल के पद में सुधार हेतु विभिन्न आयोगों (जैसे सरकारिया और पुंछी आयोग) द्वारा की गई प्रमुख सिफारिशों पर चर्चा कीजिए। क्या ये सिफारिशें वर्तमान चुनौतियों का समाधान कर सकती हैं?
  4. हाल की नियुक्तियों, विशेषकर लद्दाख में उपराज्यपाल की नियुक्ति, भारतीय संघीय ढांचे और क्षेत्रीय शासन पर क्या प्रभाव डाल सकती है? लद्दाख जैसे रणनीतिक रूप से संवेदनशील केंद्र शासित प्रदेश के लिए एक सशक्त केंद्र-नियंत्रित प्रशासन के पक्ष और विपक्ष में तर्क प्रस्तुत कीजिए।

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