राजनैतिक दलों की संरचना
- राजनैतिक दल
- विशेषतायें
- राजनैतिक दलों की संरचना
- राजनैतिक दलों का सामाजिक संगठन
- राजनैतिक भर्तीकरण
- जन-सहभागिता
- राजनैतिक उदासीनता
- कारण और परिणाम (भारत के सन्दर्भ मे)
- 2023 NEW SOCIOLOGY – नया समाजशास्त्र
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राजनीतिक दल राजनीतिक समाजशास्त्र की महत्वपूर्ण अवधारणा है। राजनीतिक दल को विश्लेषित करने से पूर्व राजनीतिक समाजशास्त्र का संक्षिप्त परिचय सभी चीन है।
लोकतान्त्रिक राजनैतिक व्यवस्था में राजनैतिक दलों का स्थान केन्द्रीय अवधारणा के रूप में अत्यन्त महत्वपूर्ण है। राजनैतिक दल किसी समाज व्यवस्था मे शक्ति के वितरण और सत्ता के आकांक्षी व्यक्तियों एवं समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। वे परस्पर विरोधी हितों के सारणीकरण, अनुशासन और सामंजस्य का प्रमुख साधन रहे हैं। इस तरह से राजनैतिक दल समाज व्यवस्था के लक्ष्यों, सामाजिक गतिशीलता, सामाजिक परिवर्तनों, परिवर्तनों के अवरोधों और सामाजिक आन्दोलनों से भी सम्बन्धित होते हैं। राजनैतिक दलों का अध्ययन समाजशास्त्री और राजनीतिशास्त्री दोनों करते हैं, लेकिन दोनों के दृष्टिकोणों में पर्याप्त अन्तर है। समाजशास्त्री राजनैतिक दल को सामाजिक समूह मानते हैं जबकि राजनीतिज्ञ राजनीतिक दलों को आधुनिक राज्य में सरकार बनाने की एक प्रमुख संस्था के रूप मे देखते है।ं
राजनीतिक दल राजनीतिक समाजशास्त्र की महत्वपूर्ण अवधारणा है। राजनीतिक दल को विश्लेषित करने से पूर्व राजनीतिक समाजशास्त्र का संक्षिप्त परिचय समीचीन हैं। राजनीतिक
समाशास्त्र के अन्तर्गत सामाजिक जीवन के राजनीतिक एंव सामाजिक पक्षों के मध्य पाई जाने वाली अन्तः क्रिया का विश्लेषण विभिन्न राजनीतिक व सामाजिक चरों के पास्परिक सम्बन्ध, प्रभाव एंव समागम का अध्ययन करते है समाज और राजनीतिक को एक नवीन परिपे्रक्ष्य में प्रस्तुत करने का काम राजनीतिक समाजशास्त्र करता है। दूसरे शब्दों में राजनीतिक समाजशास्त्र‘ राजनीतिकृत समाज और समाजीकृत राजनीति का अध्ययन करता है। राजनीतिक समाशास्त्र को अनेक विश्वविद्यालयों में समाजशास्त्र एंव राजनीति विज्ञान दोनों विषयों में पढ़ाया जाता है, जिससे इसकी सर्वमान्य परिभाषा करना कठिन हो गया क्योंकि समाजशास्त्री अपने अध्ययन में सामाजिक पक्षों पर अधिक महत्व देते है तथा राजनीतिक समाजशास्त्र को सामान्य समाजशास्त्र की एक उपशाखा मानते हैं। दूसरी ओर, राजनतिज्ञ पक्षों पर अधिक ध्यान देते है और उसे राजनीति- विज्ञान की एक शाखा मानते है।
राजनीतिक शब्द का प्रयोग परम्परागत रूप से राज्य, सरकार एंव राजनीतिक संस्थाओं के सन्दर्भ में किया जाता है। एस. ग्रीर एंव पी. आॅरलियन्स ने लिखा है कि ‘‘राजनीतिक समाजशास्त्र का प्रमुख अध्ययन राज्य नामक अनुपम सामाजिक संरचना का वर्णन, विश्लेषण एंव समाज शास्त्रीय व्याख्या करना है बी. क्रिक के अनुसार, ‘‘राजनीतिक का आशय राज्यों में सन्धियों की प्रक्रिया को माना हैं। मैक्स बेबर के अनुसार, ‘‘राजनीति का आशय शक्ति विभाजन के प्रयास अथवा राज्यों या राज्यों के अन्तर्गत समूहों में शक्ति के विवरण को प्रभावित करने के प्रयास को माना है लेकिन वर्तमान समाजशास्त्री राजनीति संस्थाओं का अध्ययन मात्र नहीं मानकर समस्त अवलोकनीय व्यवहार ;व्इेमतअंजपवदंस ठमींअपवतद्ध को इनमें सम्मिलित करते है।‘‘
डेविड ईस्टन ने लिखा है कि, ‘‘किसी समाज में मूल्यों के प्राधिकारिक वितरण से सम्बन्धित क्रिया राजनीतिक है अथात् राजनीति के अध्ययन में केवल राज्य एंव औपचारिक राजनीतिक सस्थाओं का अध्ययन करना ही नहीं है बल्कि यह सामाजिक क्रिया है जो सभी प्रकार के सम्बन्धों में राजनीति पाई जाती है‘‘ एसलेस्वेल ने कहा है कि, ‘‘ राजनीति के अध्ययन से हमारा अभिप्रयाय प्रभाव तथा प्रभावशाली, शक्ति तथा शाक्तिशाली का अध्ययन करना है।‘‘ एच. चुलाउ ने लिखा है कि, ‘‘ व्यक्ति का व्यवहार इस अर्थ में राजनीतिज्ञ व शासनकर्ता है अथवा आज्ञा पालनकर्ता है जब वह समझौता करता है, वादा करता है एंव सौदेबाजी करता है, जबरदस्ती सहयोग लेता है एंव प्रतिनिधत्व करता है, लड़ता है एंव डरता है।‘‘ राजनीतिक समाजशास्त्र को परिभाषाएँ उन विद्वानों
द्वारा की गई जो इसे राजनीति विज्ञान से सम्बन्धित मानते है जबकि दूसरों वर्ग में उन परिभाषाओं को रखते है जो इसे समासशास्त्र की एक विशिष्ट शाखा मानते है।
राजनैतिक समाजशास्त्री राजनीतिक दल को सामाजिक समूह के रूप मे विश्लेषित करते हैं। इन्हें सामाजिक समूह इसलिए माना जाता हैं क्योंकि इनमें सभी प्रकार के सामाजिक सम्बन्ध पाये जाते हैं। इनकी सदस्यता स्वैǔिछक तथा औपचारिक होती है। इनमें अन्योन्याश्रितओं तथा क्रियाएं अन्तर्वैयक्तिक सम्बन्धों की एक व्यवस्था पायी जाती है। इनका प्रचालन लक्ष्य उन्मुख क्रियाओं द्वारा समीन्वत होता है। राजनीतिक दलों के सदस्यों से सामान्य लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए तर्कसंगत व्यवहार की आशा की जाती है। सभी राजनीतिक दल समाज की राजनीतिक आवश्यकताओं के प्रति संरचनात्मक प्रत्युत्तर हैं। समाजशास्त्री राजनीतिक दलों एवं अन्य सामाजिक समूहों (यथा-परिवार,
चर्च, व्यवसायिक समूह आदि) में भेद करते है।ं राजनीतिक दलों का प्राथमिक उद्देश्य सत्ता को प्राप्त करना तथा अकेले या अन्य दलों की सहायता से सत्ता को बनाए रखना है। इनका सामान्य वैचारिक दृष्टिकोण तथा इनके संगठन की जनसेवार्थी प्रकृति इन्हें अन्य समूहों से पृथक करती है। इस नाते राजनीतिक दल विविध प्रकार के सामाजिक-आर्थिक हितों को भी समायोजित करते है।ं इसी कारण इन्हें कई बार उपसंस्कृतियों के रूप में या बहुदलीय सहबन्ध के रूप मे देखा जाता है।
जिन अर्थों मे राजनीतिक समाजशास्त्र में राजनीतिक दलों का प्रयोग हो रहा है, वास्तव मे वह सवा सौ वर्षों से अधिक पुरानी अवधारणा नहीं है। सन् 1850 ई0 में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के अलावा किसी राष्ट्र में राजनीतिक दल का वर्तमान प्रतिमान विद्यमान नहीं था। वर्तमान समय में राजनैतिक चेतना इतनी आगे बढ़ चुकी है कि सामान्य व्यक्ति भी आज राजनीतिक दलों का तुलनात्मक मूल्यांकन करता है।
जोसेफ ए0 शेलिसिंगर के अनुसार ‘राजनीतिक दल’ शब्द का आविर्भाव उन्नीसवीं शताब्दी मे यूरोप एवं अमेरिका में मताधिकार और प्रतिनिध्यात्मक संस्थाओं के विकास के परिणाम स्वरूप हुआ। इनका सम्बन्ध उन संगठनों से था जिनका लक्ष्य एक या अन्य राजनीतिक दलों से निर्वाचकीय प्रतियोगिता द्वारा लोकसत्तात्मक पद प्राप्त करना था। बाद मे दल शब्द का प्रयोग निर्वाचकीय प्रतियोगिता में लगे हुए संगठनों यथा (कुछ छोटे दल, जो मतदाताओं को प्रभावित कर पद प्राप्ति की आकांक्षा नहीं रखते, प्रतियोगी निर्वाचन के उन्मूलन मे संलग्न क्रान्तिकारी संगठन तथा सर्वाधिकारी राज्यों के शासक समूह जैसे चीन, उत्तर कोरिया आदि के लिए प्रयोग किया जाता है।
मैकाइवर राजनीतिक दल को ऐसी समिति के रूप में परिभाषित करते हैं जो किसी सिद्धान्त या ऐसी किसी नीति के समर्थन मे संगठित होती है जिसे वह सवैधानिक उपायों से शासन की निर्णयकारी वस्तु बनाने का प्रयास करती है।
कुछ विद्वानों ने राजनीतिक दल की परिभाषा इसके द्वारा निष्पादित प्रकार्यों के आधार पर दी है।
जोसेफ ए. शुम्पीटर भी निर्वाचकीय प्रतियोगिता पर बल देते हैं। इनके अनुसार ‘प्रत्येक राजनीतिक दल का प्रथम उद्देश्य सत्ता प्राप्ति के लिए या सत्ता मे बने रहने के लिए अन्य दलों पर हावी होना है।,
एफ0 डब्ल्यू0 रिग्स के अनुसार ‘दल वह संगठन हैं जो विधान मण्डल के चुनाव के लिए प्रत्याशियों को मनोनीत करता है। यह परिभाषा अधिक व्यापक है क्योंकि इसमें बहुदलीय और एक दलीय राज्यों को समाहित किया जा सकता है। डाउसे तथा ह्यूज ने भी विधानमंडलों के लिए प्रत्याशियों को मनोनीत करना दल का प्रमुख लक्षण बताया है।
लाॅपेलोम्बरा तथा वीनर के शब्दों मे, ‘‘प्रथम, इससे जनमत को संगठित करने तथा माँगों को सरकारी शक्ति एवं निर्णय के केन्द्र तक पहुंचाने की आशा की जाती है, द्वितीय, इसके लिए अपने अनुयायियों में वृहत समुदाय का अर्थ एवं संप्रत्यय सुस्पष्ट करना अनिवार्य है तथा तृतीय, दल राजनीतिक भर्ती, राजनीतिक नेतृत्व, जिनके हाथों मे शक्ति तथा निर्णय लेने का अधिकार होगा तथा चयन से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित है।ं
कोलमैन तथा रोज़बर्ग के शब्दों मे, ‘‘राजनीतिक दल वेे समितियां है जिनको अकेले या बहुदलीय आधार पर या किसी वास्तविक अथवा भावी स्वायत्त राज्य की सरकार के कर्मचारियों तथा नीतियों के लिए अन्य समरूपीय समितियों से निर्वाचकीय प्रतियोगिता द्वारा कानूनी नियन्त्रण को प्राप्त करने अथवा इसे रखने सुस्पष्ट एवं घोषित उद्देश्य द्वारा गठित किया गया है।’’ इस परिभाषा में निर्वाचकीय प्रतियोगिता पर बल दिया गया है इस कारण एक दलीय राज्यों का वर्णन करना पड़ेगा।
राजनीतिक दल की उपर्युक्त परिभाषाओं से हमे यह पता चलता है कि इनमे मानव स्वभाव की दो विशेषताओं मतैक्य एवं संगठन, को महत्व दिया गया है तथा ये दो भिन्न विचारधाराओं पर आधारित हैं। मैकाइवर की परिभाषा आदर्शवादी है तथा इसके अनुसार राजनीतिक दल के कुछ मूल
सामूहिक हितों एवं शासकीय नीतियों का निर्धारण होता है कोलमैन तथा रोजबर्ग और शुम्पीटर की परिभाषाएं वास्तविक विचारधारा पर आधारित हैं क्योंकि इनमे राजनीतिक दलों को मुख्यतः सत्ता के लिए संघर्षरत संगठन माना गया है। इस विचारधारा पर आधारित परिभाषाएं अधिक उपयुक्त लगती हैं। अतः राजनीतिक दल को न्यूनाधिक संगठन समूह के रूप मे परिभाषित किया जा सकता हैं जो विशिष्ट लक्ष्यों की प्राप्ति, सामान्यतः सत्ता प्राप्त करने के लिए निर्वाचकीय प्रक्रिया में भाग लेता है अथवा प्रत्याशियों को मनोनीत करता है।
राजनीतिक दल की संरचना में कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो इसे अन्य समूह से अलग करती
हैं –
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- हर राजनीतिक दल मे अल्पतन्त्र होता है। प्रथम अवस्था मे शक्ति का केन्द्रीकरण कुछ अनुभवी नेताओं के हाथ में होता है, जो प्रमुख पदाधिकारी होते हैं, जबकि दूसरी अवस्था मे दल का संगठन एक विशेष स्तरीकरण व्यवस्था मे विभाजित होता है और हर स्तर पर कुछ स्वायत्तता पाई जाती है।
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- दल में सदस्यता निरन्तर बनी रहती है। एक सदस्य दूसरे सदस्य को दल की गतिविधियों की जानकारी देते रहते हैं। नए सदस्यों के लिए दल में सदस्यता के द्वार हमेशा खुले रहते
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- राजनीतिक दल ऐसा संगठन है जिसका प्राथमिक उद्देश्य राजनीतिक नेतृत्व की प्राप्ति होता है। इसमें दल का नेता संगठित अल्पतंत्र (कार्यकारिणी) द्वारा शक्ति हथियाने का पूरा-पूरा प्रयत्न करता है।
- सामाजिक एवं आर्थिक उद्देश्यों को लेकर उप संरचनाएं एवं समितियां होती है, जो भौगोलिक सीमाओं, सामाजिक समग्रताओं के आधार पर होती हैं। दल मे कई परस्पर विरोधी समूह किसी उद्देश्य तथा राजनीतिक विचारधारा को लेकर साथ जुड़े हुए रहते हैं।
- हैं। यहीं यह एक खुली संरचना होती है। कुछ लोग दल के सदस्य इसलिए होते हैं कि उन्हें समाज मे उसके कारण एक विशेष स्थान मिल जाता है।
- उपर्युक्त लक्षणों द्वारा राजनीतिक दल को अन्य संगठन से भिन्न करके देख सकते है।ं राजनीतिक दल का गठन समाज व्यवस्था की दो विशेषताओं द्वारा पाया जाता है –
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- राजनीतिक शक्ति का आधार ‘वोट’ है अर्थात् सरकार का निर्धारण मतदान प्रणाली से किया जाता है।
- विभिन्न समूहों में शक्ति के लिए परस्पर प्रतिस्पर्धा होती है। अर्थात् राजनीतिक शक्ति को सत्ता हथियाने के लिए परस्पर होड़ हो रही होती है।
- मौरिस डुवर्जर ने राजनीतिक दल के सामाजिक संगठन का महत्वपूर्ण विश्लेषण प्रस्तुत किया है। इन्होंने दल के संगठन को चार सूत्रीय वर्गीकरण द्वारा समझाने का प्रयास किया है। ये वर्ग निम्न हैं-
- समिति या काॅकस ब्ंनबने
- शाखा या ब्रांच ठतंदबी
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- कोष्ठक या सेल ब्मसस
नागरिक सेना या मिलिशिया डपसपजपं
काॅकस दल के जाने पहचाने लोगों का एक लघु समूह कहा जा सकता है जो न अपने विस्तार और न ही अपनी भर्ती मे रूचि रखता है। वास्तव में यह एक बन्द समूह है। जिसकी प्रकृति अर्द्ध-स्थायी होती है। केवल चुनाव के समय ही काॅकस अधिक सक्रिय होता है तथा चुनावों के बीच के समय मे यह निष्क्रिय रहता है। इसके सदस्यों की न्यून संख्या इसकी शक्ति का माप नहीं है क्योंकि इसके सदस्यों का व्यक्तिगत प्रभाव, शक्ति एवं क्षमता उनकी संख्या से काफी अधिक होती है। अतः इसके ख्याति प्राप्त सदस्यों की संख्या की अपेक्षा उनका प्रभाव एवं क्षमता अधिक महत्वपूर्ण है। डुवर्जर ने फ्रांसीसी रैडिकल पार्टी और 1918 से पूर्व की ब्रिटिश लेबर पार्टी को इसका उदाहरण बताया है। मताधिकार के विस्तार के साथ ‘काॅकस’ प्रकार के दल का ह्रास हो जाता है।
शाखा या ब्रांच ;ठतंदबीद्ध दल परिश्मी यूरोप में मताधिकार के विस्तार का परिणाम है। इसका सम्बन्ध जनता से होता है तथा काॅकस की तरह यह एक बन्द समूह नहीं है क्योंकि इनमें गुणों की अपेक्षा संख्या को अधिक महत्व दिया जाता है। अतः यह अधिक से अधिक सदस्यों की भर्ती में सदैव रूचि रखता है। इनकी राजनीतिक संक्रियताएं केवल चुनाव तक ही सीमित नहीं होती अपितु निरन्तर चलती रहती हैं। ब्रांच काॅकस की अपेक्षा बड़ा समूह है इसलिए इसका संगठन अधिक होता है तथा इसमें काॅकस की अपेक्षा अधिक एकीकरण पाया जाता है। इसमें संस्तरण तथा कत्र्तव्यों का विभाजन सुस्पष्ट होता है तथा स्थानीयता एवं संकीर्णता का भी आभास पाया जाता है। इसमे अधिकतर केन्द्रीकृत दल संरचना होती है और प्रारम्भिक इकाईयां निर्वाचन क्षेत्रांे की ही भांति भौगोलिक आधार पर संगठित होती हैं। यूरोप के समाजवादी दलों मे ब्रांच के सभी लक्षण पाये जाते हैं। कैथोलिक और अनुदारवादी दलों ने न्यूनाधिक सफलतापूर्वक इसका अनुसरण किया है। जर्मन सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी संगठनात्मक आधार पर इस प्रकार के दल का एक अछा उदाहरण है।
डुवर्जर द्वारा बताया गया दल संगठन का तीसरा प्रकार कोष्ठक या सेल ;बमससद्ध है जो क्रान्तिकारी साम्यवादी दलों की खोज है। यह ब्रांच की अपेक्षा काफी छोटा समूह होता है तथा इसका आधार भौगोलिक न होकर व्यावसायिक होता है। व्यावसायिक आधार के कारण सेल किसी स्थान पर कार्य करने वाले सभी सदस्यों को एक सूत्र में बाँधना है। कारखाना, वर्कशाॅप, दफ्तर एवं प्रशासन आदि इसके अंग हो सकते हंै। चूंकि सेल उन सदस्यों का समूह हैं जो एक ही व्यवसाय में
लगे हुए हैं तथा जो प्रतिदिन कार्य के समय मिलते है,ं इसलिए इसके सदस्यों में दलीय एकात्मकता अधिक होती है। वैयक्तिक सेल का अन्य सेलों से कोई प्रत्यक्ष सम्बन्ध नहीं होता है। सेल का संगठन अनिवार्य रूप से षड्यन्त्रकारी होता है और इसकी निर्माण शैली इस बात का पक्का इन्तजाम करती है कि एक सेल के नष्ट होने पर सम्पूर्ण दल-संरचना संकट में पड़े क्योंकि एक ही स्तर पर पृथक-पृथक इकाइयों के बीच कोई संपर्क नहीं रहता। यह गुप्त सक्रियता के लिए सबसे उपयुक्त माध्यम है। इसकी गुप्त सक्रियताएं मुख्यतः राजनैतिक होती हैं तथा सदस्यों के लिए अधिक महत्वपूर्ण होती हैं। मतों को जीतने, प्रतिनिधियों के समूहन तथा मतदाताओं के प्रतिनिधियों से संपर्क रखने की अपेक्षा सेल दल संघर्ष, प्रचार, अनुशासन तथा अगर अनिवार्य तो गुप्त सक्रियता का एक माध्यम है। इनमे चुनाव जीतने की दूसरे दर्जे के महत्व की बात मानने की प्रवृत्ति होती है। प्रजा तांत्रिक केन्द्रवाद की धारणा दल के सभी पहलुओं पर केन्द्रीकृत नियंत्रण स्थापित कर देती है
जिसका उदाहरण 1917 से पहले लेनिनवादी दल था। डुवर्जर फ्रांसीसी साम्यवादी दल के सदस्यांे में सेल संरचना के प्रति शत्रु भाव होने का भी संकेत करते है।ं
डुवर्जर का दल-संगठन का चैथा प्रकार मिलिशिया प्रकार का संगठन है। यह एक प्रकार की निजी सेना है जिसके सदस्यों को सैनिकों की तरह भर्ती किया जाता है तथा जिन्हें सैनिक संगठन की भाँति अनुशासन में रहना और प्रशिक्षण लेना पड़ता है। इसकी संरचना भी सैनिक संरचना के समान होती है अर्थात् इसके सदस्य सेना की तरह टुकड़ियों, कम्पनियों और बटालियनों से संगठित होते हैं।
मिलिशिया सेना के अधिक्रमिक लक्षण ग्रहण कर लेती है। मिलिशिया की चुनाव तथा संसदीय गतिविधियों मे कोई रूचि नहीं होती क्योंकि यह प्रजातन्त्रीय व्यवस्था को मजबूत करने की अपेक्षा इसे उखाड़ फेंकने का एक मौलिक साधन है। जिस प्रकार सेल एक साम्यवादी खोज है, ठीक उसी प्रकार मिलिशिया क्रान्तिकारियों की खोज है। हिटलर के आक्रामी सैनिक और मुसोलिनी की क्रान्तिकारी मिलिशिया इस प्रकार की संरचना का उदाहरण हैं। इनकी ओर डुवर्जर यह संकेत
करते हैं कि केवल मिलिशिया के आधार पर कभी भी कोई राजनीतिक दल नहीं बना है।
राजनीतिक दल
जिस संगठित रूप मे राजनीतिक दल आज हमारे सामने विद्यमान हैं, उस रूप मे उनका इतिहास अधिक प्राचीन नहीं है। उनकी उत्पत्ति उन्नीसवीं शताब्दी मे हुई है परन्तु इससे पूर्व भी मनुष्यों द्वारा निर्मित कुछ संगठन, शासन से प्रत्यक्ष न होने पर भी जनमत के निर्माण तथा मांगों को
शासकों तक पहुंचाने मे महत्वपूर्ण भूमिकानिभाते रहे है।ं गठन विविध आधारों पर किया गया हैआधुनिक समाज में राजनीतिक दलों का
राजनीतिक दलों के निर्माण मे मनोवैज्ञानिक आधार अर्थात् मानव स्वभाव मे निहित प्रवृत्तियां प्रमुख हैं। मतैक्य एवं संगठन मानव स्वभाव की दो प्रमुख प्रवृत्तियां हैं। समान स्वभाव एवं मूल्यों वाले व्यक्ति संगठित होकर राजनीतिक दल का निर्माण करते हैं तथा फिर उन मूल्यों को बनाये रखने का प्रयास करते हैं। ब्रिटिश कंज़रवेटिव दल का गठन रूढ़िवादी व्यवस्था को बनाये रखने के समर्थक व्यक्तियों द्वारा किया गया है। कुछ व्यक्ति रूढ़िवादी व्यवस्था में परिवर्तन लाना चाहते हैं तथा इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उदारवादी दलों का निर्माण करते हैं, जबकि कुछ लोग विगत
युग की पुनरावृत्ति की आकांक्षा के आधार पर प्रतिक्रियावादी दलों का निर्माण करते हैं।
मानव इतिहास मे धर्म की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका रही है तथा आज भी अनेक देशों मे धार्मिक नेता एवं पदाधिकारी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से राजनीति मे हस्तक्षेप करते हैं। राजनैतिक दलांे के सामाजिक संगठन में धर्म प्रमुख भूमिका निभाता है। उदाहरणार्थ भारत मे मुस्लिम लीग, अकाली दल, जनसंघ हिन्दू महासभा जैसे दलों के सामाजिक संगठन में धर्म केन्द्रीय भूमिका निभाता है।
राजनीतिक दलों के निर्माण में क्षेत्रीयता अथवा प्रादेशिकता भी एक प्रमुख आधार है। प्रादेशिक हितों की रक्षा के लिए तथा प्रादेशिक समस्याआंे के शीघ्र निपटारे के लिए कुछ प्रादेशिक दलों का निर्माण होता है। भारत में डी0एम0के0, तेलंगेना, प्रजा समिति, असम गण परिषद, झारखण्ड मुक्ति मोर्चा आदि।
राजनीतिक दल आर्थिक या वर्गीय आधारों पर भी संगठित होते हैं। माक्र्स के अनुसार राजनीतिक दलों तथा वर्गों का परस्पर सम्बन्ध राज्य व राजनीति के सिद्धान्त का केन्द्रीय बिन्दु होता है। अनेक अन्वेषणों से हमे यह पता चलता है कि वर्गीय हित, दलीय सम्बद्धताओं तथा निर्वाचनों की पसन्द के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध है तथा अधिकांश समाज मे राजनीतिक दल निर्वाचक वर्गीय हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं। ब्रिटिन में श्रमिक दल, भारत में मजदूर दल, किसान यूनियन आदि।
जाति भारतीय समाज की आधारभूत विशेषता है। भारत मे राजनैतिक दलों के सामाजिक संगठन को जाति हमेशा से प्रभावित करती रही है। स्वतन्त्रता से पूर्व जाति मुक्ति का आन्दोलन राजनैतिक दलों के गठन को प्रभावित करना रहा है। दलित वर्ग कल्याण लीग, बहिष्कृत हितकारिणी सभा, जस्टिस पार्टी इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
स्वतन्त्रता के पश्चात् निर्वाचन प्रतियोगिता में ‘जाति’ राजनैतिक गतिशीलता लाने वाला प्रमुख सामाजिक आधार बन गया। ‘जातीय संलयन’ और ‘जातीय विखण्डन’ राजनैतिक प्रक्रियाओं में केन्द्रीय भूमिका निभाने लगी। सभी राजनैतिक दल जातीय गणना के आधार पर उम्मीदवारों को तय करने लगे। वर्तमान समय मे जातीय आधार पर राजनैतिक दलों के गठन का प्रमुख आधार है। समाजवादी पार्टी, बहुजन समाज पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल, जनता दल यूनाइटेड आदि इसके प्रमुख उदाहरण हैं।
दलीय संगठन में विचारधारा भी प्रमुख भूमिका निभाती है। समाजवादी, लेनिनवादी और माओवादी विचारधाराओं पर आधारित अनेक दलों का निर्माण भारतीय राजनीति की प्रमुख विशेषता रही है।