राजनीतिक उदासीनता

 राजनीतिक उदासीनता

2023 NEW SOCIOLOGY – नया समाजशास्त्र
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राजनीतिक उदासीनता से अभिप्राय व्यक्ति की राजनीति के प्रति उदासीनता और राजनीतिक सहभागिता में ह्रास से लगाया जाता है। राजनीतिक उदासीनता वास्तव मे अधिक व्यापक अवधारणा

राजनीतिक  अलगाव  का  एक  भाग  है।  राजनीतिक  उदासीनता  को  समझने  के  लिए  राजनीतिक अलगाव  को  समझना  आवश्यक  है।  यद्यपि  अलगाव  एक  प्राचीन  अवधारणा  है  तथापि  सामाजिक विज्ञानों में इसने महत्वपूर्ण स्थान पूंजीवादी समाजों के अध्ययन के परिणाम स्वरूप ही ग्रहण किया है।  फ्रांसीसी  भाषा  में  एलीने  ;।सपदमद्ध  तथा  स्पेनी  भाषा  मे  एलिण्डो  ;।सपमदेद्ध  ऐसे  शब्द  हैं जिनका प्रयोग व्यक्ति की उन मानसिक दशाओं को व्यक्त करने के लिए किया जाता है जिसमें वह अपने आपको परदेशी समझने लगता है तथा अपने एवं अन्य व्यक्तियों के प्रति पृथक्करण अनुभव करने  लगता  है।  वर्तमान  समय  में  इस  शब्द  का  प्रयोग  चिन्ताग्रस्त  मनोदशाओं  अथवा  असन्तुलित

 

मनोदशाओं व प्रवृत्तियांे के लिए किया जाता है जो व्यक्ति को समाज से पर्यावरण से और स्वयं से उदासीन बना देती हैं।

राजनीतिक अलगाव में राजनीति या शक्ति के प्रति विकर्षण तथा राजनैतिक सहभागिता मे ह्रास  व  उदासीनता  निहित  है।  इसमें  व्यक्ति  अपने  आपको  राष्ट्रीय  लक्ष्यों  के  प्रति  उत्तरदायी  एवं सम्बन्धित  नहीं  समझता।  समकालीन  विद्वान  राजनीतिक  अलगाव  को  आधुनिक  औद्योगिक  समाजों का ही लक्षण मानते है।ं  समाजशास्त्रियों के अनुसार नगरीय-औद्योगिक अधिकारी-तन्त्रीय समाजों मे शक्ति  की जितनी दूरी आज हैउतनी पहले कभी नहीं रही।  राजनीतिक उदासीनता हमें प्राचीन स्थितियों में भी देखने को मिलती है। उदाहरणार्थ, प्राचीन ग्रीक और रोमन प्रथा मे जनता की अपने नेताओं के प्रति पूर्ण अधीनता इसी प्रवृत्ति का उदाहरण है।

संक्षेप  मेराजनीतिक  उदासीनता  के  अन्तर्गत  व्यक्ति  मे  राजनीति  के  प्रति  विकर्षण, शक्तिहीनता और राजनीतिक नेतृत्व पर से विश्वास उठ जाना है। इसमे केवल राजनीति के प्रति मन  मुटाव  तथा  उदासीनता  ही  सम्मिलित  नहीं  है  अपितु  यह  अनुभूति  निर्णय  लेने  की  प्रक्रिया  से सम्बन्धित व्यक्तियों एवं संस्थाओं के प्रति नफरत पैदा करती है।

 

 

 

 

 

 

 

प्रमुख कारण

 

 

 

राजनीतिक विचारकों ने राजनीतिक उदासीनता के निम्नांकित प्रमुख कारण बताये है –

 

         अविवेकी भावावेश (आवेश),

ऽ   राजनीतिक ज्ञान का अभाव,

ऽ   राजनीतिक प्रभाविता-भावना का अभावविभक्त चेतना,

ऽ   राजनीतिक संचार का अभाव,

         नगरीकरण एवं औद्योगीकरण,    राजनीतिक अस्थिरता

 

 

ऽ   निरपेक्ष राजतन्त्र

ऽ   सर्वाधिकारवादिता

ऽ   सत्ता का केन्द्रीकरण,

 

ऽ   भावात्मक परिक्षीणता,

ऽ   व्यक्तिगत स्वतन्त्रता के अभाव की सम्भावित धमकी,

         अमूर्त राजनीति; तथा

ऽ   नेताओं एवं सदस्यों मे अनुकूल सम्बन्धों का अभाव

 

राजनीतिक उदासीनता के इन कारणों में से कुछ कारण भारत के सन्दर्भ मे भी लागू होते है।ं   राजनीतिक  ज्ञान  का  अभाव,  विभक्त  चेतनाराजनीतिक  संचार  का  अभावनगरीकरण  एवं औद्योगिकीकरण  राजनीतिक  अस्थिरतासत्ता  का  केन्द्रीकरणव्यक्तिगत  स्वतन्त्रता  में  अभाव  की सम्भाविता धमकी और नेताओं एवं जनता के बीच अनुकूल सम्बन्धों का अभाव प्रमुख है।

21वीं शताब्दी के प्रारम्भिक दो दशकों मे  भारतीय राजनीति  मे राजनीतिक उदासीनता का प्रमुख  कारण  जनता  का  राजनेताओं  पर  अविश्वास  का  बढ़ता  जाना।  नेताओं  के  नैतिक  पतन  के कारण नेतृत्व और जनता के मध्य अनुकूल सम्बन्ध समाप्त होते जा रहे है। जनता का यह विश्वास दृढ़ होता जा रहा है कि सभी नेता नैतिक रूप से कमजोर है, चाहे वे जिस राजनीतिक दल का प्रतिनिधित्व  करते  है।  उनका  अंतिम  उद्देश्य  शक्ति  एवं  सत्ता  का  दुरूपयोग  है  और  वे  मिलकर जनता के धन को लूट रहे है।

 

जनता का यह विश्वास होता जा रहा है कि मतदान मे भाग लेकर और  सत्ता  परिवर्तन  से  कुछ  नहीं  होगा।   राजनीतिक  नेतृत्व  पर  भ्रष्टाचारभाई  भतीजावाद  के आरोप लगते जा रहे है। राजनेताओं की चल-अचल संपत्ति उनके ज्ञात स्रोतों से कहीं अधिक होने की सूचनाएं सामाने आ रही है। अनेक राजनेता भ्रष्टाचार के आरोप में जेल जा चुके है।

भारत  में  राजनीतिक  अभिजनों  मे  भर्ती  की  प्रक्रिया  अत्यधिक  कठिन  और  जटिल  है।  इस कारण आमजन राजनीतिक अभिजन वर्ग मे नहीं पहुंच पाता। धन, बल आपराधिक चरित्र, वंशवाद, नौकरशाह पिछले कुछ समय से राजनीतिक भर्ती का प्रमुख आधार बन गए है। इसलिए जनता में राजनीति के प्रति निराशा का भाव घर कर गया है।

भारत में उभरता मध्य वर्ग भी राजनीतिक उदासीनता के लिए सहायक सिद्ध हुआ है। पवन वर्मा के अनुसार भारतीय मध्य वर्ग स्वार्थी और हित केन्द्रीत है। वह अपने काम येन-केन प्रकारेण कराने पर विश्वास रखता है चाहे वो कैसी भी राजनीतिक स्थिति हों। मध्यवर्गीय सोच राजनीतिक उदासीनता की है। वह मतदान में भाग लेने की अपेक्षा क्रिकेट मैंच देखना ज्यादा पसन्द करता है।

 

भारत  मे  राजनीतिक  उदासीनता  ने  कुछ  महत्वपूर्ण  परिणाम  उत्पन्न  किये  हैं।  राजनीतिक उदासीनता का सर्वाधिक महत्वपूर्ण परिणाम हाल के दिनों ने न्यायिक सक्रियता के रूप में सामने आ रहा  है।  चूंकि  जनता  का  विधायिका  एवं  कार्यपालिका  पर  से  विश्वास  उठता  जा  रहा  है  इसलिए सामान्य  कार्यों  मे  भी  न्यायपालिका  का  हस्तक्षेप  बढ़ता  जा  रहा  है।  जनता  आशा  भरी  दृष्टि  से न्यायपालिका की ओर देख रही है।

राजनेताआंे पर बढ़ते अविश्वास के कारण अनेक छोटे बड़े जन आंदोलन प्रस्फुटित हो रहे हैं। ये जन आंदोलन न केवल विकास कार्यों मे अवरोध उत्पन्न कर रहे है बल्कि विधान निर्माण की प्रक्रिया को भी प्रभावित कर है।

भारत में अनेक भूमि-अधिग्रहण के विवाद एवं जन आंदोलन  है। सिंगरू , कुडन्कलम, नोएडा विवाद एवं अन्ना आन्दोलन कुछ प्रमुख उदाहरण है।

 

सूचना  क्रान्ति  के  इस  दौर  में  नेताओं  के  नैतिक  पतन  का  मीडिया  ने  फायदा  उठाया  है। चैबीस घंटे चलने वाले चैनल, स्टिंग आॅपरेशन नेताओं को ब्लैक मेल करते हैं। जनता मीडिया की बात पर बिना प्रमाण के भरोसा कर लेती है क्योंकि उसका वर्तमान नेतृत्व पर से विश्वास जाता रहा है और इस तरह राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा मिलता है।

आधुनिक लोकतान्त्रिक समाज व्यवस्थाओं मे राजनीतिक दल एक अनिवार्य अंग बन गए हैं। राजनीतिक दल शक्ति एवं सत्ता-प्राप्त करने का प्रमुख अभिकरण हैं। राजनीतिक दलों के माध्यम से  ही  शक्ति  एवं  सत्ता  प्राप्ति  के  लिए  होने  वाले  संघर्षों  को  संस्थाबद्ध  किया  जाता  है।  जनता राजनीतिक  दलों  के  माध्यम  से  अपनी  आकांक्षा  को  अभिव्यक्ृत  करती  है।  राजनीतिक  दलों  के सामाजिक संगठन से हमे यह ज्ञात होता है कि राजनीतिक दल के निर्माण में समाज के कौन-कौन

से समूह भाग ले रहे है।ं  राजनीतिक भर्ती की प्रक्रिया से अभिजन वर्गों मे चयन का विश्लेषण होता

है। जन सहभागिता से शासन मे जनता की भागीदारी का पता चलता है। जनता की राजनीति के प्रति उदासीनता और राजनीतिक सहभागिता में ह्रास राजनीतिक व्यवस्था के लिए चिन्ताजनक होती है  और  इनका  परिणाम  न्यायिक  सक्रियताजनता  से  अविश्वास  और  जन  आन्दोलनों  के  रूप  में प्रकट होता है। इन सभी परिणामों से देश के आर्थिक विकास मे बाधा पड़ती है और राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा मिलता है।

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