Get free Notes

सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत से नहीं, सही मार्गदर्शन से मिलती है। हमारे सभी विषयों के कम्पलीट नोट्स, G.K. बेसिक कोर्स, और करियर गाइडेंस बुक के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Click Here

यूरोप और ट्रंप के रूस व्यापार पर भारत का पलटवार: विदेश मंत्रालय की दो टूक, क्या है भू-राजनीतिक चाल?

यूरोप और ट्रंप के रूस व्यापार पर भारत का पलटवार: विदेश मंत्रालय की दो टूक, क्या है भू-राजनीतिक चाल?

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, भारत के विदेश मंत्रालय (MEA) ने पश्चिमी देशों, विशेष रूप से अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और यूरोपीय देशों द्वारा भारत की रूस के साथ व्यापारिक संबंधों को लेकर की जा रही आलोचनाओं पर तीखा पलटवार किया है। विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि जो देश भारत को रूस के साथ व्यापार करने को लेकर नसीहत दे रहे हैं, वे स्वयं भी रूस के साथ बड़े पैमाने पर व्यापारिक संबंध बनाए हुए हैं। यह बयानबाजी यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में रूस पर लगाए गए प्रतिबंधों और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं पर इसके प्रभाव के बीच आई है, जिसने भारत की स्वतंत्र विदेश नीति पर नई बहस छेड़ दी है।

अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के जटिल जाल में, जहाँ हित सर्वोपरि होते हैं, भारत की यह प्रतिक्रिया न केवल पश्चिमी देशों के पाखंड को उजागर करती है, बल्कि वैश्विक मंच पर भारत की बढ़ती आत्मनिर्भरता और कूटनीतिक परिपक्वता को भी दर्शाती है। यह घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह अंतर्राष्ट्रीय संबंध, भारतीय विदेश नीति, भू-राजनीति, राष्ट्रीय सुरक्षा और समकालीन विश्व घटनाओं के प्रमुख पहलुओं को छूता है।

पृष्ठभूमि: यूक्रेन युद्ध और वैश्विक प्रतिक्रिया (Background: Ukraine War and Global Response)

फरवरी 2022 में यूक्रेन पर रूस के आक्रमण के बाद से, पश्चिमी देशों ने रूस पर व्यापक आर्थिक प्रतिबंध लगाए हैं। इन प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस की युद्ध क्षमता को कमजोर करना और उसे बातचीत की मेज पर लाना था। इन प्रतिबंधों के दायरे में ऊर्जा, वित्त, प्रौद्योगिकी और कई अन्य क्षेत्र शामिल हैं। अमेरिका और यूरोपीय संघ (EU) इन प्रतिबंधों को लागू करने में सबसे आगे रहे हैं।

इसके विपरीत, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस की निंदा करने वाले कई प्रस्तावों पर या तो मतदान से परहेज किया है या रूस के खिलाफ मतदान नहीं किया है। भारत ने लगातार यूक्रेन में बिगड़ती मानवीय स्थिति पर चिंता व्यक्त की है और बातचीत व कूटनीति के माध्यम से शांतिपूर्ण समाधान का आह्वान किया है। हालांकि, भारत ने रूस से तेल और अन्य वस्तुओं का आयात जारी रखा है, क्योंकि यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है और पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों के दायरे से बाहर भी है (कुछ मामलों में)।

यह स्थिति पश्चिम के लिए एक दुविधा प्रस्तुत करती है। एक ओर, वे रूस को अलग-थलग करना चाहते हैं; दूसरी ओर, रूस से ऊर्जा आयात पर उनकी अपनी निर्भरता (विशेषकर यूरोप की) उन्हें कड़े कदम उठाने से रोकती है। इसी संदर्भ में, भारत के रूस के साथ व्यापारिक संबंध पश्चिमी देशों की आलोचना का विषय बन गए हैं।

विदेश मंत्रालय का पलटवार: क्या कहा गया? (MEA’s Counter-Attack: What was Said?)

विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने स्पष्ट रूप से कहा कि जो देश भारत की रूस के साथ व्यापारिक गतिविधियों पर सवाल उठा रहे हैं, उन्हें अपने गिरेबान में झाँकना चाहिए। उन्होंने कहा कि ये वही देश हैं जो स्वयं रूस के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार कर रहे हैं, जिसमें ऊर्जा खरीद भी शामिल है। मंत्रालय ने इस बात पर जोर दिया कि भारत अपनी राष्ट्रीय हितों के आधार पर निर्णय लेता है और किसी भी देश के साथ व्यापार करने का अधिकार रखता है, जब तक कि वह अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का पालन करता हो।

यह बयान केवल कूटनीतिक प्रतिक्रिया नहीं थी, बल्कि यह पश्चिम के तथाकथित ‘दोहरे मापदंड’ (double standards) को उजागर करने का एक सोची-समझी रणनीति थी। विदेश मंत्रालय ने यह संदेश दिया कि भारत वैश्विक राजनीति में एक स्वतंत्र खिलाड़ी है और अपनी विदेश नीति तय करने में किसी बाहरी दबाव को स्वीकार नहीं करेगा।

मुख्य बिंदु:**

  • आलोचना का जवाब: पश्चिम के उन देशों की आलोचना जिन्होंने भारत की रूस के साथ व्यापार नीतियों पर सवाल उठाए।
  • दोहरे मापदंड का आरोप: आलोचक देशों पर स्वयं रूस के साथ व्यापार करने का आरोप लगाया, विशेषकर ऊर्जा क्षेत्र में।
  • राष्ट्रीय हित सर्वोपरि: भारत की विदेश नीति के मूल सिद्धांत को रेखांकित किया कि निर्णय राष्ट्रीय हितों पर आधारित होते हैं।
  • आर्थिक वास्तविकता: वैश्विक ऊर्जा बाजार में रूस की महत्वपूर्ण भूमिका और पश्चिमी देशों की उस पर निर्भरता को परोक्ष रूप से इंगित किया।
  • संप्रभुता का प्रदर्शन: भारत की संप्रभुता और स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता का प्रदर्शन।

विश्लेषण: कूटनीतिक दांव-पेंच और भू-राजनीतिक आयाम (Analysis: Diplomatic Maneuvers and Geopolitical Dimensions)

विदेश मंत्रालय की यह प्रतिक्रिया कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है:

1. पश्चिम के पाखंड का खुलासा (Exposing Western Hypocrisy)

यह सबसे प्रत्यक्ष और शक्तिशाली संदेश है। जब यूरोपीय देश और अमेरिका रूस से ऊर्जा (तेल, गैस) खरीद रहे हैं, जो रूस की अर्थव्यवस्था के लिए महत्वपूर्ण राजस्व का स्रोत है, तो वे भारत पर रूस के साथ व्यापार कम करने का दबाव कैसे डाल सकते हैं? यह तर्क कमजोर पड़ता है जब आलोचक स्वयं अपने हितों को साधने के लिए प्रतिबंधों के कुछ पहलुओं से विचलन करते हैं। विदेश मंत्रालय ने प्रभावी ढंग से इस पाखंड को उजागर किया, जिससे पश्चिमी देशों के लिए अपनी आलोचनाओं को उचित ठहराना कठिन हो गया।

“यदि प्रतिबंधों का उद्देश्य रूस को अलग-थलग करना है, तो ऊर्जा खरीद को पूरी तरह से क्यों नहीं रोका गया? भारत की कार्रवाई, जबकि आलोचनात्मक, पश्चिम की अपनी आर्थिक वास्तविकताओं से भी प्रेरित है।”

2. भारत की स्वतंत्र विदेश नीति (India’s Independent Foreign Policy)

भारत की विदेश नीति हमेशा से ‘गुटनिरपेक्षता’ (Non-Alignment) और ‘सामरिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) के सिद्धांतों पर आधारित रही है। यह घटनाक्रम इस सिद्धांत को पुष्ट करता है। भारत किसी एक महाशक्ति या गुट के प्रति पूरी तरह से प्रतिबद्ध होने के बजाय, अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार विभिन्न देशों के साथ संबंध विकसित करता है। रूस भारत का एक दीर्घकालिक रणनीतिक भागीदार रहा है, विशेष रूप से रक्षा और ऊर्जा के क्षेत्र में। यूक्रेन युद्ध के दौरान भी, भारत ने अपने इस संबंध को बनाए रखा है, जो उसकी स्वतंत्र विदेश नीति का प्रतीक है।

3. वैश्विक ऊर्जा बाजार की हकीकत (Reality of the Global Energy Market)

रूस दुनिया के सबसे बड़े तेल और गैस उत्पादकों में से एक है। यूक्रेन युद्ध के कारण जब पश्चिमी देशों ने रूसी ऊर्जा के बहिष्कार का आह्वान किया, तो वैश्विक ऊर्जा की आपूर्ति में भारी कमी आई और कीमतों में अप्रत्याशित वृद्धि हुई। भारत, एक विशाल विकासशील अर्थव्यवस्था होने के नाते, ऊर्जा की ऊंची कीमतों से सीधे प्रभावित होता है। ऐसे में, रूस से रियायती दर पर तेल खरीदना भारत के लिए आर्थिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण हो गया। विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया इस आर्थिक वास्तविकता को स्वीकार करती है।

4. ट्रंप और यूरोप का संदर्भ (Context of Trump and Europe)

डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने कई मौकों पर भारत की विदेश नीति, विशेषकर रूस के साथ उसके संबंधों की आलोचना की थी। उन्होंने अक्सर ‘अमेरिका फर्स्ट’ की नीति के तहत अन्य देशों पर अपनी नीतियों को थोपने का प्रयास किया। वहीं, यूरोप, विशेष रूप से जर्मनी और इटली जैसे देश, रूसी ऊर्जा पर बहुत अधिक निर्भर रहे हैं। युद्ध के बाद, इन देशों को भी अपनी ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए कठिन विकल्प चुनने पड़े हैं। विदेश मंत्रालय का संयुक्त रूप से ट्रंप और यूरोप का उल्लेख करना दर्शाता है कि यह आलोचना एक व्यापक पश्चिमी दृष्टिकोण का हिस्सा है, जिसकी अपनी आंतरिक जटिलताएँ हैं।

5. कूटनीतिक चतुराई (Diplomatic Savvy)

विदेश मंत्रालय की प्रतिक्रिया केवल प्रतिक्रियात्मक नहीं थी, बल्कि यह एक आक्रामक कूटनीतिक कदम भी था। इसने न केवल भारत के रुख को स्पष्ट किया, बल्कि उन आलोचनाओं को भी कमजोर किया जो अनुचित थीं। यह दर्शाता है कि भारतीय कूटनीति अब केवल रक्षात्मक नहीं है, बल्कि वह अपनी बात प्रभावी ढंग से रखने में भी सक्षम है।

भारत की रूस के साथ व्यापार नीति: मुख्य पहलू (India’s Trade Policy with Russia: Key Aspects)

भारत और रूस के बीच व्यापारिक संबंध कई दशकों पुराने हैं, लेकिन हाल के वर्षों में, विशेष रूप से यूक्रेन युद्ध के बाद, इसने एक नया आयाम लिया है।

ऊर्जा आयात:

  • रूस भारत को तेल का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बन गया है, खासकर पश्चिमी प्रतिबंधों के बाद जब रूस ने भारी छूट की पेशकश की।
  • यह भारत की ऊर्जा सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद करता है।
  • रूबल-रुपया व्यापार तंत्र को मजबूत करने के प्रयास जारी हैं ताकि डॉलर पर निर्भरता कम की जा सके।

रक्षा सहयोग:

  • रूस भारत का पारंपरिक रक्षा भागीदार रहा है। भारत अभी भी अपने रक्षा उपकरणों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा रूस से आयात करता है।
  • हालांकि, भारत अब अपने रक्षा विनिर्माण को विविध बनाने और आत्मनिर्भरता बढ़ाने पर भी जोर दे रहा है।

अन्य क्षेत्र:

  • कृषि उत्पाद, उर्वरक, खदान, फार्मास्यूटिकल्स और विशेष रसायन जैसे क्षेत्रों में भी व्यापार होता है।
  • भारत रूस से उर्वरक का एक बड़ा आयातक है, जो भारतीय कृषि के लिए महत्वपूर्ण है।

सकारात्मक पक्ष (The Positives)

  • ऊर्जा सुरक्षा: रूस से रियायती दरों पर तेल की खरीद भारत की ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करती है और आयात बिल को कम रखती है, जिससे मुद्रास्फीति पर लगाम लगाने में मदद मिलती है।
  • आर्थिक लाभ: रूस से आयातित माल, विशेष रूप से ऊर्जा और उर्वरक, भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए किफायती साबित हो रहे हैं।
  • सामरिक संबंध: रूस के साथ मजबूत संबंध भारत के लिए एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक संतुलन बनाए रखने में सहायक है, खासकर जब पश्चिम के साथ संबंध भी महत्वपूर्ण हैं।
  • कूटनीतिक स्वायत्तता: यह घटनाक्रम भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के प्रति उसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • वैश्विक प्रभाव: भारत का रुख अन्य गैर-पश्चिमी देशों के लिए एक मिसाल कायम कर सकता है जो अपनी राष्ट्रीय प्राथमिकताओं के आधार पर निर्णय लेना चाहते हैं।

नकारात्मक पक्ष और चुनौतियाँ (The Negatives and Challenges)

  • पश्चिमी देशों के साथ संबंध: कुछ पश्चिमी देशों के साथ भारत के आर्थिक और रणनीतिक संबंध प्रभावित हो सकते हैं। हालाँकि, यह प्रभाव कितना गहरा होगा, यह देखना बाकी है, क्योंकि पश्चिम स्वयं भारत को एक महत्वपूर्ण शक्ति के रूप में देखता है।
  • प्रतिबंधों का जोखिम: यद्यपि भारत रूसी ऊर्जा की खरीद पर पश्चिमी प्रतिबंधों के दायरे में नहीं आता है, लेकिन द्वितीयक प्रतिबंधों (secondary sanctions) का एक सूक्ष्म जोखिम हमेशा बना रहता है, विशेषकर वित्तीय लेन-देन में।
  • रुपया-रूबल तंत्र की जटिलता: रूबल-रुपया व्यापार तंत्र अभी भी पूरी तरह से स्थापित नहीं है और इसमें अस्थिरता का खतरा हो सकता है, क्योंकि यह रूबल की विनिमय दर पर अत्यधिक निर्भर है।
  • छवि पर प्रभाव: कुछ हलकों में, भारत की छवि मानवाधिकारों या अंतरराष्ट्रीय कानून के प्रति कम संवेदनशील देश के रूप में पेश की जा सकती है, हालाँकि भारत अपनी स्थिति को शांति और कूटनीति के समर्थन के रूप में प्रस्तुत करता है।
  • संसाधन की कमी: भारत को रूस से व्यापारिक छूट और अवसरों का लाभ उठाने के लिए अपने लॉजिस्टिक और वित्तीय तंत्र को अनुकूलित करना होगा।

आगे की राह (The Way Forward)

भारत के लिए भविष्य की राह बहुआयामी है। उसे न केवल अपने राष्ट्रीय हितों को साधते हुए, बल्कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में अपनी स्थिति को मजबूत करते हुए आगे बढ़ना होगा।

मुख्य रणनीतियाँ:**

  • संतुलित कूटनीति: पश्चिम के साथ संबंधों को बनाए रखते हुए रूस के साथ अपने रणनीतिक हितों को साधना।
  • वित्तीय तंत्र का सुदृढ़ीकरण: सुरक्षित और विश्वसनीय वित्तीय तंत्र विकसित करना जो प्रतिबंधों के जोखिम को कम करे।
  • विविधीकरण: ऊर्जा स्रोतों और रक्षा आपूर्तिकर्ताओं का विविधीकरण जारी रखना ताकि किसी एक देश पर निर्भरता कम हो।
  • स्पष्ट संवाद: अपनी विदेश नीति के औचित्य को स्पष्ट रूप से और लगातार वैश्विक मंचों पर प्रस्तुत करना।
  • आंतरिक क्षमता निर्माण: आर्थिक और रक्षा विनिर्माण जैसे क्षेत्रों में आत्मनिर्भरता बढ़ाना।

“भारत का लक्ष्य ‘सामरिक स्वायत्तता’ बनाए रखना है, जिसका अर्थ है कि वह अपने राष्ट्रीय हितों को सबसे ऊपर रखते हुए, विभिन्न देशों के साथ संबंध बना सकता है और अपनी कूटनीति को किसी एक शक्ति के दबाव में झुकाएगा नहीं।”

निष्कर्ष (Conclusion)

विदेश मंत्रालय का यह तीखा पलटवार केवल एक बयान नहीं था, बल्कि यह एक सचेत प्रयास था जिसके द्वारा भारत ने वैश्विक मंच पर अपनी कूटनीतिक परिपक्वता, राष्ट्रीय हितों के प्रति प्रतिबद्धता और स्वतंत्र विदेश नीति के सिद्धांतों को रेखांकित किया। यूक्रेन युद्ध के जटिल भू-राजनीतिक परिदृश्य में, भारत ने यह स्पष्ट कर दिया है कि वह एक मुखर और आत्मनिर्भर राष्ट्र है, जो अपने निर्णय स्वयं लेता है। यह घटनाक्रम UPSC उम्मीदवारों के लिए अंतर्राष्ट्रीय संबंध, कूटनीति और समकालीन विश्व की गतिशीलता को समझने का एक उत्कृष्ट अवसर प्रदान करता है। भारत का रुख यह दर्शाता है कि 21वीं सदी की वैश्विक व्यवस्था में, राष्ट्र अपने हितों के आधार पर नए समीकरण बना रहे हैं, और भारत इस प्रक्रिया में एक प्रमुख खिलाड़ी के रूप में उभर रहा है।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. हाल ही में विदेश मंत्रालय ने किस देश के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों को लेकर पश्चिमी देशों की आलोचना पर पलटवार किया?

    a) अमेरिका
    b) यूरोपीय संघ
    c) रूस
    d) चीन

    उत्तर: c) रूस
    व्याख्या: विदेश मंत्रालय ने स्पष्ट रूप से रूस के साथ भारत के व्यापारिक संबंधों को लेकर पश्चिमी देशों की आलोचना का जवाब दिया।
  2. भारत की विदेश नीति का कौन सा सिद्धांत इस घटनाक्रम के संदर्भ में महत्वपूर्ण है?

    a) गुटनिरपेक्षता
    b) सामरिक स्वायत्तता
    c) एक्ट ईस्ट पॉलिसी
    d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: d) उपरोक्त सभी
    व्याख्या: भारत की विदेश नीति हमेशा से गुटनिरपेक्षता और सामरिक स्वायत्तता पर आधारित रही है, जो उसके राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखती है। एक्ट ईस्ट पॉलिसी भी एक महत्वपूर्ण पहलू है।
  3. यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में, भारत ने संयुक्त राष्ट्र में रूस की निंदा करने वाले प्रस्तावों पर आम तौर पर क्या रुख अपनाया है?

    a) रूस के खिलाफ मतदान किया
    b) मतदान से परहेज किया या पक्ष में मतदान नहीं किया
    c) रूस का समर्थन किया
    d) किसी भी प्रस्ताव पर मतदान नहीं किया

    उत्तर: b) मतदान से परहेज किया या पक्ष में मतदान नहीं किया
    व्याख्या: भारत ने रूस के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र में कई प्रस्तावों पर मतदान से परहेज किया है, जो उसकी स्वतंत्र विदेश नीति का हिस्सा है।
  4. विदेश मंत्रालय के अनुसार, भारत की रूस के साथ व्यापार नीतियों की आलोचना करने वाले देशों के बारे में क्या कहा गया?

    a) वे भारत की आलोचना करना बंद कर दें।
    b) वे स्वयं रूस के साथ बड़ा व्यापार कर रहे हैं।
    c) उन्हें भारत से सीखना चाहिए।
    d) वे भारत के हितों को नहीं समझते।

    उत्तर: b) वे स्वयं रूस के साथ बड़ा व्यापार कर रहे हैं।
    व्याख्या: विदेश मंत्रालय ने इंगित किया कि आलोचक देश स्वयं रूस के साथ बड़े पैमाने पर व्यापार में संलग्न हैं।
  5. निम्नलिखित में से कौन सा कारक भारत के लिए रूस से ऊर्जा आयात को महत्वपूर्ण बनाता है?

    1. ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करना
    2. घरेलू मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना
    3. पश्चिमी प्रतिबंधों से बचने के लिए
    4. रूस के साथ रणनीतिक साझेदारी बनाए रखना

    a) केवल 1 और 2
    b) केवल 1, 2 और 4
    c) केवल 1 और 3
    d) 1, 2, 3 और 4

    उत्तर: b) केवल 1, 2 और 4
    व्याख्या: ऊर्जा सुरक्षा, मुद्रास्फीति नियंत्रण और रणनीतिक साझेदारी महत्वपूर्ण कारक हैं। पश्चिमी प्रतिबंधों से बचना सीधे तौर पर कारण नहीं है, बल्कि छूट पर खरीद एक सुविधा है।
  6. ‘सामरिक स्वायत्तता’ (Strategic Autonomy) का क्या अर्थ है?

    a) किसी एक गुट के प्रति पूर्ण निष्ठा।
    b) सभी देशों के साथ समान संबंध रखना।
    c) राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना।
    d) केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना।

    उत्तर: c) राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हुए स्वतंत्र रूप से निर्णय लेना।
    व्याख्या: सामरिक स्वायत्तता का अर्थ है अपने राष्ट्रीय हितों के अनुसार, बिना किसी बाहरी दबाव के, स्वतंत्र निर्णय लेना।
  7. यूरोप की रूसी ऊर्जा पर निर्भरता किस वैश्विक घटना के कारण चर्चा में आई?

    a) कोविड-19 महामारी
    b) यूक्रेन पर रूस का आक्रमण
    c) ब्रेक्सिट
    d) मध्य पूर्व संकट

    उत्तर: b) यूक्रेन पर रूस का आक्रमण
    व्याख्या: यूक्रेन युद्ध ने यूरोप की रूसी ऊर्जा पर निर्भरता को उजागर किया और वैश्विक ऊर्जा बाजार को प्रभावित किया।
  8. भारत ने हाल ही में अपने रक्षा विनिर्माण को बढ़ाने के लिए किस पर जोर दिया है?

    a) रूस पर निर्भरता बढ़ाना
    b) पश्चिमी देशों से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण
    c) आत्मनिर्भरता और विविधीकरण
    d) केवल सेवा-आधारित रक्षा उद्योग

    उत्तर: c) आत्मनिर्भरता और विविधीकरण
    व्याख्या: भारत अपनी रक्षा आवश्यकताओं के लिए आत्मनिर्भरता और आपूर्तिकर्ताओं के विविधीकरण पर जोर दे रहा है।
  9. विदेश मंत्रालय के बयान का संभावित प्रभाव निम्नलिखित में से किस पर हो सकता है?

    a) पश्चिमी देशों के साथ भारत के संबंध मजबूत होंगे।
    b) भारत पर पश्चिमी देशों से प्रतिबंध लगने का खतरा बढ़ जाएगा।
    c) भारत के पक्ष में वैश्विक कूटनीतिक विमर्श को बल मिलेगा।
    d) भारत पूरी तरह से रूस के पक्ष में खड़ा हो जाएगा।

    उत्तर: c) भारत के पक्ष में वैश्विक कूटनीतिक विमर्श को बल मिलेगा।
    व्याख्या: यह बयान पश्चिमी देशों के पाखंड को उजागर करके भारत के पक्ष में कूटनीतिक विमर्श को बल दे सकता है।
  10. रूबल-रुपया व्यापार तंत्र का मुख्य उद्देश्य क्या है?

    a) डॉलर पर निर्भरता बढ़ाना
    b) यूरोपीय संघ के साथ व्यापार बढ़ाना
    c) अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करना
    d) रूस पर प्रतिबंधों को मजबूत करना

    उत्तर: c) अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली में अमेरिकी डॉलर के प्रभुत्व को कम करना
    व्याख्या: रूबल-रुपया तंत्र का उद्देश्य डॉलर पर निर्भरता को कम करना और राष्ट्रीय मुद्राओं में व्यापार को बढ़ावा देना है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में, भारत की रूस के साथ व्यापारिक नीतियों पर पश्चिमी देशों की आलोचना और भारत के विदेश मंत्रालय के पलटवार का समालोचनात्मक विश्लेषण करें। भारत के रुख के भू-राजनीतिक निहितार्थों पर चर्चा करें। (250 शब्द)
  2. ‘सामरिक स्वायत्तता’ के सिद्धांत के आलोक में, भारत द्वारा अपनी विदेश नीति में अपनाए गए संतुलनकारी दृष्टिकोण का मूल्यांकन करें। वैश्विक शक्ति संतुलन में भारत की भूमिका पर इसके प्रभाव का विश्लेषण करें। (250 शब्द)
  3. अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में ‘दोहरे मापदंड’ (Double Standards) की अवधारणा को समझाते हुए, हाल की वैश्विक घटनाओं के संदर्भ में इसके उदाहरण प्रस्तुत करें। भारत की कूटनीतिक प्रतिक्रियाएं इन मापदंडों को कैसे उजागर करती हैं? (150 शब्द)
  4. विश्व की बदलती भू-राजनीतिक व्यवस्था में, भारत की स्वतंत्र विदेश नीति और बहु-संरेखण (Multi-alignment) की रणनीतियाँ राष्ट्रीय हितों को सुरक्षित रखने में कितनी प्रभावी हैं? विस्तार से बताएं। (150 शब्द)

Leave a Comment