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युद्धविराम की पुकार: जब पाकिस्तान का DGMO बोला ‘बस करो’, मोदी ने याद दिलाया ‘कोई नेता जंग नहीं रुकवा पाया’

युद्धविराम की पुकार: जब पाकिस्तान का DGMO बोला ‘बस करो’, मोदी ने याद दिलाया ‘कोई नेता जंग नहीं रुकवा पाया’

चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, पाकिस्तान के महानिदेशक सैन्य अभियान (DGMO) की ओर से एक ऐसी गुहार आई जिसने अंतरराष्ट्रीय संबंधों और भू-राजनीति के गलियारों में हलचल मचा दी। पाकिस्तान के DGMO ने स्पष्ट शब्दों में कहा कि “बस करो, अब ज्यादा मार झेलने की ताकत नहीं”। यह बयान उस संदर्भ में आया जब नियंत्रण रेखा (LoC) पर तनाव और संघर्ष की स्थिति बनी हुई थी। दूसरी ओर, भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सार्वजनिक मंच पर टिप्पणी की कि “दुनिया के किसी नेता ने जंग नहीं रुकवाई”। दोनों बयानों का एक साथ आना, जहाँ एक ओर युद्ध से थकित राष्ट्र की पीड़ा झलकती है, वहीं दूसरी ओर अंतरराष्ट्रीय शांति स्थापना में नेताओं की भूमिका पर एक तीखा सवाल भी उठाता है। यह ब्लॉग पोस्ट इस घटनाक्रम के विभिन्न पहलुओं, इसके ऐतिहासिक संदर्भ, भू-राजनीतिक निहितार्थों और UPSC उम्मीदवारों के लिए इसके महत्व का विस्तृत विश्लेषण करेगा।

युद्ध का इतिहास और शांति की तलाश: एक जटिल पहेली

मानव सभ्यता के उदय के साथ ही युद्ध भी एक अटूट साथी रहा है। छोटे-छोटे कबीलों के बीच संघर्ष से लेकर महाशक्तियों के बीच विश्वव्यापी युद्धों तक, इतिहास युद्धों की गाथाओं से भरा पड़ा है। इस इतिहास के समानांतर ही शांति की स्थापना के प्रयास भी चलते रहे हैं, लेकिन अक्सर ये प्रयास अपर्याप्त सिद्ध हुए हैं।

एक उपमा: युद्ध को एक ऐसी आग के रूप में सोचिए जो बुझने का नाम ही नहीं लेती। कभी यह छोटी चिंगारी के रूप में भड़कती है, कभी लपटों का रूप ले लेती है। शांति की तलाश उस पानी की तरह है जो आग को बुझाने की कोशिश करता है, लेकिन अक्सर पानी इतना कम होता है कि आग पर उसका प्रभाव क्षणिक ही रहता है।

प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन कि “दुनिया के किसी नेता ने जंग नहीं रुकवाई”, इस जटिल वास्तविकता को दर्शाता है। इतिहास गवाह है कि कई युद्ध महान नेताओं के हस्तक्षेप से शुरू हुए, लेकिन शांति स्थापना के प्रयास उतने प्रभावी नहीं रहे। प्रथम विश्व युद्ध के बाद वर्साय की संधि, जिसने जर्मनी पर भारी शर्तें थोपीं, द्वितीय विश्व युद्ध के बीज बोने का कारण बनी। शीत युद्ध के दौरान, जहाँ एक ओर परमाणु युद्ध का भय बना रहा, वहीं दूसरी ओर प्रत्यक्ष सैन्य टकराव से बचने के लिए कूटनीतिक प्रयास भी हुए।

पाकिस्तान के DGMO की गुहार: एक गंभीर संकेत

पाकिस्तान के DGMO का बयान “बस करो, अब ज्यादा मार झेलने की ताकत नहीं” कई स्तरों पर महत्वपूर्ण है:

  • आर्थिक और सामाजिक दबाव: यह बयान पाकिस्तान की आंतरिक स्थिति पर प्रकाश डालता है। लगातार सैन्य संघर्ष, सीमा पर तनाव और एक अस्थिर राजनीतिक माहौल देश की अर्थव्यवस्था पर भारी बोझ डालते हैं। नागरिकों को नुकसान उठाना पड़ता है, संसाधनों का दुरुपयोग होता है और विकास बाधित होता है। इस बयान से संकेत मिलता है कि पाकिस्तान शायद इन आंतरिक दबावों से उबरने की कोशिश कर रहा है।
  • सैन्य हताहत: DGMO का यह कहना कि “ज्यादा मार झेलने की ताकत नहीं” सीधे तौर पर सैन्य हताहतों और अवसंरचना पर पड़ने वाले प्रभाव को दर्शाता है। सीमा पर लगातार झड़पों में दोनों पक्षों को नुकसान होता है, लेकिन एक विकासशील देश के लिए यह नुकसान अधिक गंभीर हो सकता है।
  • कूटनीतिक संदेश: यह बयान एक कूटनीतिक संकेत के रूप में भी देखा जा सकता है। पाकिस्तान, जो अक्सर अंतरराष्ट्रीय मंचों पर कश्मीर मुद्दे को उठाता रहा है, इस प्रकार की गुहार लगाकर भारत पर प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दबाव बनाने की कोशिश कर सकता है कि वह अपनी नीतियों में नरमी लाए।
  • नैतिक अपील: यह बयान मानवतावादी दृष्टिकोण से भी देखा जा सकता है। युद्ध की विभीषिका का वर्णन करते हुए, यह एक नैतिक अपील है कि हिंसा को रोका जाए और शांतिपूर्ण समाधान खोजे जाएं।

मोदी का जवाब: एक यथार्थवादी दृष्टिकोण

प्रधानमंत्री मोदी का बयान, “दुनिया के किसी नेता ने जंग नहीं रुकवाई”, कई मायनों में पाकिस्तान के DGMO की गुहार पर एक यथार्थवादी और तीखी प्रतिक्रिया है:

  • ऐतिहासिक अनुभव: जैसा कि ऊपर उल्लेख किया गया है, इतिहास नेताओं द्वारा युद्धों को रोकने में अक्सर अप्रभावी रहा है। कई युद्ध उन नेताओं के कारण शुरू हुए जिन्होंने शांति के नाम पर संघर्ष को बढ़ावा दिया।
  • कूटनीतिक सीमाएं: यह बयान कूटनीति की सीमाओं को भी दर्शाता है। जबकि कूटनीति शांति स्थापना का एक महत्वपूर्ण साधन है, यह हमेशा प्रभावी नहीं होती, खासकर जब द्वेष और अविश्वास की भावनाएँ गहरी हों।
  • आत्मनिर्भरता का संदेश: यह अप्रत्यक्ष रूप से भारत की आत्मरक्षा की क्षमता और किसी भी बाहरी दबाव से निपटने के संकल्प को भी दर्शाता है। भारत अपनी सुरक्षा के लिए दूसरों पर निर्भर नहीं है और अपनी शर्तों पर शांति बनाए रखने का हकदार है।
  • पाकिस्तान को सीधी नसीहत: यह बयान पाकिस्तान को यह भी संदेश देता है कि वह अपनी हरकतों के परिणामों के लिए तैयार रहे। भारत किसी भी उकसावे का जवाब देने में सक्षम है और शांति की उम्मीद में अपनी रक्षा से समझौता नहीं करेगा।

भारत-पाकिस्तान संबंध: एक सतत संघर्ष

भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध दशकों से तनावपूर्ण रहे हैं। ये संबंध ऐतिहासिक घटनाओं, विशेष रूप से 1947 के विभाजन, कश्मीर मुद्दे और विश्वास की कमी से प्रभावित हैं। नियंत्रण रेखा (LoC) पर लगातार होने वाली झड़पें, सीमा पार आतंकवाद और कूटनीतिक गतिरोध इस रिश्ते की पहचान बन गए हैं।

ऐतिहासिक संदर्भ:

  • 1947 का विभाजन: विभाजन के दौरान हुई हिंसा और बड़े पैमाने पर विस्थापन ने दोनों देशों के बीच गहरी खाई पैदा की।
  • कश्मीर मुद्दा: कश्मीर को लेकर दोनों देशों के बीच तीन युद्ध (1947, 1965, 1971) और कई छोटे-बड़े संघर्ष हुए हैं।
  • आतंकवाद: पाकिस्तान से उत्पन्न होने वाले आतंकवाद को भारत के लिए एक प्रमुख सुरक्षा चिंता माना जाता है।
  • कूटनीतिक वार्ता: विभिन्न मौकों पर शांति वार्ता हुई है, लेकिन वे अक्सर अस्थायी सफलता ही हासिल कर पाई हैं।

वर्तमान स्थिति: हाल के वर्षों में, दोनों देशों के बीच कूटनीतिक संबंध काफी हद तक ठंडे रहे हैं। नियंत्रण रेखा पर संघर्षविराम उल्लंघनों की घटनाएं आम हैं। ऐसे में, पाकिस्तान के DGMO का बयान और उस पर भारत के प्रधानमंत्री की प्रतिक्रिया, दोनों देशों के जटिल और अस्थिर संबंधों का एक और अध्याय जोड़ती है।

नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्ष: कारण और परिणाम

नियंत्रण रेखा (LoC) भारत और पाकिस्तान के बीच एक वास्तविक सीमा है, जो जम्मू और कश्मीर को विभाजित करती है। यह दुनिया की सबसे अधिक सैन्यीकृत सीमाओं में से एक है। LoC पर संघर्ष के कई कारण हैं:

  • सीमा पार घुसपैठ: पाकिस्तान की ओर से भारतीय सीमा में आतंकवादियों की घुसपैठ कराने के प्रयास।
  • गोलीबारी: पाकिस्तान द्वारा भारतीय चौकियों और नागरिक आबादी पर की जाने वाली अंधाधुंध गोलीबारी।
  • सैनिकों की हताहत: दोनों पक्षों के सैनिकों की मृत्यु और घायल होना।
  • नागरिकों को नुकसान: सीमावर्ती क्षेत्रों में रहने वाले नागरिकों का जीवन और संपत्ति का नुकसान।
  • विश्वास की कमी: दोनों देशों के बीच गहरे अविश्वास के कारण संघर्ष को रोकना मुश्किल हो जाता है।

परिणाम:

  • मानवीय लागत: अनगिनत लोगों की जान जाती है, परिवार उजड़ जाते हैं और लोग विस्थापित होते हैं।
  • आर्थिक प्रभाव: सीमावर्ती क्षेत्रों के विकास में बाधा आती है, और सैन्य व्यय बढ़ता है।
  • क्षेत्रीय अस्थिरता: यह संघर्ष पूरे दक्षिण एशिया की क्षेत्रीय स्थिरता को प्रभावित करता है।
  • कूटनीतिक गतिरोध: संघर्ष की स्थिति में द्विपक्षीय कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ावा देना मुश्किल हो जाता है।

“युद्ध की भयावहता हमें शांति के महत्व का एहसास कराती है, लेकिन जब तक मूल कारण संबोधित नहीं किए जाते, तब तक शांति एक दूर का सपना बनी रह सकती है।”

शांति स्थापना में नेताओं की भूमिका: एक गंभीर विश्लेषण

प्रधानमंत्री मोदी का यह कथन कि “दुनिया के किसी नेता ने जंग नहीं रुकवाई”, नेताओं की शांति स्थापना में भूमिका पर एक गंभीर प्रश्न उठाता है। हालांकि, इस बात को भी समझना महत्वपूर्ण है कि नेताओं की भूमिका बहुआयामी होती है:

  • प्रेरणा और नेतृत्व: नेता अपने शब्दों और कार्यों से जनता को प्रेरित कर सकते हैं। वे शांति के लिए एक साझा दृष्टिकोण बना सकते हैं।
  • कूटनीतिक पहल: नेता शांति संधियों, वार्ता और समझौतों के माध्यम से संघर्षों को समाप्त करने की दिशा में काम कर सकते हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय सहयोग: नेता संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों का उपयोग शांति स्थापित करने के लिए कर सकते हैं।
  • मानवीय सहायता: युद्ध से प्रभावित क्षेत्रों में मानवीय सहायता प्रदान करके वे दुख को कम कर सकते हैं।

विफलता के कारण:

  • राष्ट्रीय हित: नेता अक्सर अपने देश के राष्ट्रीय हितों को सर्वोपरि रखते हैं, जो कभी-कभी शांति के रास्ते में बाधा बन सकते हैं।
  • विचारधारात्मक मतभेद: विभिन्न देशों के बीच विचारधारात्मक मतभेद संघर्षों को गहरा कर सकते हैं।
  • आर्थिक हित: कुछ मामलों में, युद्ध या संघर्ष से जुड़े आर्थिक हित भी शांति स्थापना को मुश्किल बना सकते हैं।
  • शक्ति संतुलन: वैश्विक शक्ति संतुलन को बनाए रखने के लिए कुछ देश संघर्षों में हस्तक्षेप करते हैं, जो शांति प्रक्रिया को जटिल बना सकता है।

उदाहरण:

  • नेल्सन मंडेला: दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद को समाप्त करने और शांतिपूर्ण परिवर्तन लाने में उनकी भूमिका प्रेरणादायक रही है।
  • महात्मा गांधी: अहिंसा के माध्यम से भारत को स्वतंत्रता दिलाने के उनके दर्शन ने दुनिया भर में शांति आंदोलनों को प्रेरित किया।
  • शीत युद्ध का अंत: मिखाइल गोर्बाचेव जैसे नेताओं की नीतियों ने शीत युद्ध को समाप्त करने और परमाणु युद्ध के जोखिम को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।

चुनौतियाँ और आगे की राह

भारत-पाकिस्तान जैसे जटिल रिश्तों में शांति स्थापित करना एक बड़ी चुनौती है। इस संदर्भ में, पाकिस्तान के DGMO की गुहार और मोदी के बयान के आलोक में, आगे की राह में कई महत्वपूर्ण बिंदु शामिल हैं:

  • विश्वास बहाली के उपाय (CBMs): दोनों देशों को विश्वास बहाली के उपायों पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जैसे कि सीमा पर तनाव कम करना, कैदियों की अदला-बदली और सांस्कृतिक आदान-प्रदान।
  • कूटनीतिक चैनलों का खुला रहना: भले ही संबंध तनावपूर्ण हों, कूटनीतिक चैनलों को खुला रखना महत्वपूर्ण है ताकि संवाद जारी रहे।
  • सीमा पार आतंकवाद पर अंकुश: पाकिस्तान को अपनी जमीन से होने वाली आतंकवाद की गतिविधियों पर प्रभावी ढंग से अंकुश लगाना होगा। यह भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है।
  • कश्मीर मुद्दे का समाधान: कश्मीर मुद्दा भारत और पाकिस्तान के बीच संबंधों का एक प्रमुख केंद्र बिंदु है। इस मुद्दे पर एक स्थायी और स्वीकार्य समाधान खोजने के लिए रचनात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • आर्थिक सहयोग: यदि दोनों देश द्विपक्षीय व्यापार और आर्थिक सहयोग को बढ़ावा दे पाते हैं, तो यह विश्वास निर्माण में सहायक हो सकता है।
  • क्षेत्रीय शांति के लिए प्रयास: दोनों देशों को मिलकर अफगानिस्तान जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर भी काम करना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय समुदाय की भूमिका: अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से प्रमुख शक्तियां, मध्यस्थता और शांति स्थापना के प्रयासों में रचनात्मक भूमिका निभा सकती हैं। हालांकि, यह महत्वपूर्ण है कि किसी भी बाहरी हस्तक्षेप से दोनों देशों की संप्रभुता का सम्मान हो।

UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता

यह पूरा घटनाक्रम UPSC सिविल सेवा परीक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  • अंतरराष्ट्रीय संबंध (GS-II): भारत-पाकिस्तान संबंध, सीमा प्रबंधन, आतंकवाद, कूटनीति, क्षेत्रीय सुरक्षा।
  • भू-राजनीति (GS-I, GS-II): दक्षिण एशिया में शक्ति संतुलन, भू-राजनीतिक तनाव, सीमा विवाद।
  • सुरक्षा (GS-III): सीमा सुरक्षा, आतंकवाद का मुकाबला, राष्ट्रीय सुरक्षा।
  • सामाजिक मुद्दे (GS-I): युद्ध और संघर्ष के सामाजिक प्रभाव, मानवीय लागत।
  • नैतिकता (GS-IV): नेताओं की भूमिका, शांति की नैतिकता, युद्ध की नैतिकता।

UPSC उम्मीदवार इस घटना का विश्लेषण करते समय इन सभी आयामों को ध्यान में रखें। यह केवल एक समाचार रिपोर्ट नहीं है, बल्कि एक जटिल भू-राजनीतिक स्थिति का प्रतिबिंब है, जिसके विभिन्न ऐतिहासिक, आर्थिक, सामाजिक और नैतिक निहितार्थ हैं।

निष्कर्ष

पाकिस्तान के DGMO की “बस करो” की गुहार और प्रधानमंत्री मोदी के “कोई नेता जंग नहीं रुकवा पाया” जैसे बयानों ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान संबंधों की जटिलताओं और युद्ध की अनवरत विनाशकारी प्रकृति को उजागर किया है। जहाँ एक ओर यह गुहार युद्ध की मानवीय और आर्थिक लागतों का प्रमाण है, वहीं दूसरी ओर यह शांति स्थापना में नेताओं और कूटनीति की सीमाओं को भी दर्शाती है। भारत के लिए, आत्मरक्षा, सीमा पार आतंकवाद पर अंकुश और दीर्घकालिक शांति के लिए एक सतत और मजबूत कूटनीतिक दृष्टिकोण आवश्यक है। जब तक मूल कारणों का समाधान नहीं होता, तब तक नियंत्रण रेखा पर तनाव एक चिंता का विषय बना रहेगा। UPSC उम्मीदवारों को इस मुद्दे के बहुआयामी विश्लेषण पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, ताकि वे एक व्यापक और संतुलित दृष्टिकोण विकसित कर सकें।

UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)

प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs

  1. प्रश्न 1: हाल ही में पाकिस्तान के DGMO द्वारा व्यक्त की गई “बस करो, अब ज्यादा मार झेलने की ताकत नहीं” जैसी टिप्पणी, किस प्रमुख राष्ट्रीय मुद्दे पर पाकिस्तान के दबाव को इंगित करती है?
    • (a) कश्मीर विवाद
    • (b) भारत के साथ सीमा पर निरंतर सैन्य तनाव
    • (c) आर्थिक संकट
    • (d) उपरोक्त सभी

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: DGMO का बयान एक व्यापक संकेत है जिसमें पाकिस्तान की आर्थिक कठिनाइयां, सीमा पर निरंतर तनाव के कारण सैन्य हताहत और आपूर्ति की समस्या, और कश्मीर जैसे लंबे समय से चले आ रहे विवादों के समाधान की आवश्यकता शामिल है। ये सभी मिलकर पाकिस्तान पर दबाव बनाते हैं।

  2. प्रश्न 2: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा यह कहा जाना कि “दुनिया के किसी नेता ने जंग नहीं रुकवाई”, किस ऐतिहासिक और भू-राजनीतिक वास्तविकता को दर्शाता है?
    • (a) शांति स्थापना में नेताओं की सीमित प्रभावशीलता
    • (b) युद्धों को शुरू करने में नेताओं की भूमिका
    • (c) अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की असफलता
    • (d) केवल (a) और (b)

    उत्तर: (d)

    व्याख्या: मोदी का बयान दोनों बातों को दर्शाता है। इतिहास में कई नेताओं ने युद्ध शुरू किए और शांति स्थापित करने के उनके प्रयास अक्सर सीमित रहे। यह अंतरराष्ट्रीय कूटनीति की भी सीमाओं को उजागर करता है, लेकिन मुख्य रूप से नेताओं की व्यक्तिगत प्रभावशीलता पर केंद्रित है।

  3. प्रश्न 3: भारत-पाकिस्तान के संदर्भ में, “नियंत्रण रेखा (LoC)” क्या है?
    • (a) भारत और पाकिस्तान के बीच औपचारिक सीमा
    • (b) जम्मू और कश्मीर को विभाजित करने वाली वास्तविक सीमा
    • (c) भारत का आंतरिक नियंत्रण क्षेत्र
    • (d) पाकिस्तान द्वारा दावा किया गया क्षेत्र

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: नियंत्रण रेखा (LoC) वह वास्तविक सीमा है जो भारत प्रशासित कश्मीर को पाकिस्तान प्रशासित कश्मीर से अलग करती है, न कि एक औपचारिक अंतर्राष्ट्रीय सीमा।

  4. प्रश्न 4: भारत-पाकिस्तान संबंधों में विश्वास बहाली के उपायों (Confidence Building Measures – CBMs) का एक उदाहरण क्या हो सकता है?
    • (a) सीमा पार आतंकवाद को बढ़ावा देना
    • (b) सैन्य अभ्यास को बढ़ाना
    • (c) कैदियों की अदला-बदली
    • (d) राष्ट्रीय हित के मुद्दों पर मौन रहना

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: कैदियों की अदला-बदली जैसे उपाय दोनों देशों के बीच मानवीय गरिमा और संवाद को बढ़ावा देते हैं, जो विश्वास बहाली का एक महत्वपूर्ण साधन है।

  5. प्रश्न 5: अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में, “भू-राजनीति” (Geopolitics) का अध्ययन मुख्य रूप से किस पर केंद्रित होता है?
    • (a) केवल देशों की अर्थव्यवस्था
    • (b) देशों के राजनीतिक और भौगोलिक कारकों का प्रभाव
    • (c) सांस्कृतिक आदान-प्रदान
    • (d) केवल ऐतिहासिक घटनाएँ

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: भू-राजनीति देशों के भौगोलिक स्थिति, संसाधनों, जनसंख्या आदि जैसे कारकों का उनके राजनीतिक निर्णयों और शक्ति पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन है।

  6. प्रश्न 6: 1947 के भारत-पाकिस्तान विभाजन के प्रमुख परिणामों में से एक क्या था?
    • (a) दोनों देशों के बीच गहरी मित्रता
    • (b) बड़े पैमाने पर धार्मिक हिंसा और विस्थापन
    • (c) कश्मीर मुद्दे का तत्काल समाधान
    • (d) दोनों देशों के बीच व्यापार में भारी वृद्धि

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: विभाजन के दौरान हुई अभूतपूर्व हिंसा और बड़े पैमाने पर जनसंख्या विस्थापन ने दोनों देशों के बीच अविश्वास की गहरी खाई पैदा की।

  7. प्रश्न 7: “सामरिक स्वायत्तता” (Strategic Autonomy) का भारतीय विदेश नीति के संदर्भ में क्या अर्थ है?
    • (a) किसी भी विदेशी शक्ति के साथ गठबंधन करना
    • (b) अन्य देशों के प्रभाव से मुक्त होकर अपने राष्ट्रीय हित में निर्णय लेना
    • (c) सभी अंतरराष्ट्रीय संधियों का पालन करना
    • (d) केवल आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करना

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: सामरिक स्वायत्तता का अर्थ है कि भारत अपने रक्षा, विदेश नीति और अन्य राष्ट्रीय सुरक्षा से संबंधित निर्णयों में किसी बाहरी दबाव या प्रभाव से स्वतंत्र रहकर, अपने राष्ट्रीय हितों को प्राथमिकता देता है।

  8. प्रश्न 8: निम्नलिखित में से कौन सा अंतर्राष्ट्रीय संगठन शांति स्थापना और सुरक्षा बनाए रखने के लिए जिम्मेदार है?
    • (a) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
    • (b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
    • (c) संयुक्त राष्ट्र (UN)
    • (d) विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)

    उत्तर: (c)

    व्याख्या: संयुक्त राष्ट्र (UN) का प्राथमिक उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखना, राष्ट्रों के बीच मैत्रीपूर्ण संबंध विकसित करना और सामाजिक प्रगति, बेहतर जीवन स्तर और मानवाधिकारों को बढ़ावा देना है।

  9. प्रश्न 9: भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए “सीमा पार आतंकवाद” का क्या तात्पर्य है?
    • (a) भारत के भीतर आतंकवाद
    • (b) दूसरे देश से भारत में आतंकवाद को बढ़ावा देना
    • (c) भारत से बाहर के देशों में आतंकवाद
    • (d) अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: सीमा पार आतंकवाद का अर्थ है कि किसी देश की सीमा के बाहर से, अक्सर राज्य द्वारा प्रायोजित या समर्थित, आतंकवादी गतिविधियों को अंजाम देना। भारत के संदर्भ में, यह पाकिस्तान से होने वाली आतंकवाद की घटनाओं को संदर्भित करता है।

  10. प्रश्न 10: “कूटनीति” (Diplomacy) का मुख्य उद्देश्य क्या होता है?
    • (a) सैन्य कार्रवाई को अंजाम देना
    • (b) राज्यों के बीच शांतिपूर्ण संचार और वार्ता के माध्यम से संबंधों का प्रबंधन करना
    • (c) आर्थिक प्रतिबंध लगाना
    • (d) सांस्कृतिक आदान-प्रदान को रोकना

    उत्तर: (b)

    व्याख्या: कूटनीति का मुख्य लक्ष्य बातचीत, समझौता और संवाद के माध्यम से देशों के बीच संबंधों को सुचारू रूप से चलाना, हितों का समन्वय करना और संघर्षों को रोकना या हल करना है।

मुख्य परीक्षा (Mains)

  1. प्रश्न 1: “प्रधानमंत्री मोदी के इस बयान कि ‘दुनिया के किसी नेता ने जंग नहीं रुकवाई’ को पाकिस्तान के DGMO की युद्धविराम की गुहार के संदर्भ में विश्लेषित करें। यह दोनों देशों के बीच तनाव और शांति स्थापना की चुनौतियों को कैसे उजागर करता है?” (250 शब्द, 15 अंक)
  2. मुख्य बिंदु:

    • मोदी के बयान का ऐतिहासिक और भू-राजनीतिक संदर्भ।
    • DGMO की गुहार के पीछे के संभावित कारण (आर्थिक, सैन्य, सामाजिक)।
    • युद्ध की अंतर्निहित विनाशकारी प्रकृति।
    • शांति स्थापना में नेताओं और कूटनीति की सीमाएं।
    • भारत-पाकिस्तान संबंधों में विश्वास की कमी और निरंतर तनाव।
    • आगे की राह में चुनौतियाँ और समाधान की आवश्यकता।
  3. प्रश्न 2: “नियंत्रण रेखा (LoC) पर लगातार होने वाले संघर्ष भारत-पाकिस्तान संबंधों के लिए एक बड़ा अवरोध हैं। इन संघर्षों के मूल कारणों का विश्लेषण करें और इन्हें कम करने के लिए भारत द्वारा उठाए जा सकने वाले कदमों पर चर्चा करें।” (150 शब्द, 10 अंक)
  4. मुख्य बिंदु:

    • LoC पर संघर्ष के मुख्य कारण (घुसपैठ, गोलीबारी, आतंकवाद)।
    • संघर्षों के भारत-पाकिस्तान संबंधों पर प्रभाव (कूटनीतिक गतिरोध, सुरक्षा चिंताएं)।
    • संघर्षों को कम करने के उपाय (विश्वास बहाली के उपाय, सीमा प्रबंधन, आतंकवाद पर अंकुश)।
    • दीर्घकालिक शांति के लिए रचनात्मक दृष्टिकोण की आवश्यकता।
  5. प्रश्न 3: “अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने में राष्ट्रों के नेताओं की भूमिका की जांच करें। उदाहरणों सहित बताएं कि नेता शांति स्थापना में कितने प्रभावी या अप्रभावी रहे हैं।” (250 शब्द, 15 अंक)
  6. मुख्य बिंदु:

    • नेताओं की भूमिका के विभिन्न आयाम (प्रेरणा, कूटनीति, सहयोग)।
    • शांति स्थापना में नेताओं की सफलता के उदाहरण (मंडेला, गांधी, गोर्बाचेव)।
    • शांति स्थापना में नेताओं की विफलता के कारण (राष्ट्रीय हित, विचारधारा, आर्थिक हित)।
    • वर्तमान वैश्विक परिदृश्य में नेताओं की प्रासंगिकता।
  7. प्रश्न 4: “सीमा पार आतंकवाद भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है। इस खतरे की प्रकृति का विश्लेषण करें और भारत सरकार द्वारा इस खतरे से निपटने के लिए अपनाई गई रणनीतियों पर प्रकाश डालें।” (150 शब्द, 10 अंक)
  8. मुख्य बिंदु:

    • सीमा पार आतंकवाद की परिभाषा और भारत के लिए इसके निहितार्थ।
    • आतंकवाद के स्रोत और प्रायोजक।
    • भारत की सुरक्षा रणनीतियाँ (सैन्य, कूटनीतिक, खुफिया)।
    • आतंकवाद को समाप्त करने में अंतरराष्ट्रीय सहयोग का महत्व।

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