युद्धविराम की पुकार: जब पाकिस्तान की सेना ने कहा ‘बस करो’, भारत का रुख और विश्व शांति की हकीकत
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, पाकिस्तान के महानिदेशक सैन्य संचालन (DGMO) द्वारा संघर्ष विराम की अपील ने एक बार फिर भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव और शांति स्थापना की जटिलताओं को उजागर किया है। यह घटनाक्रम ऐसे समय में आया है जब प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा है कि दुनिया के किसी भी नेता ने युद्ध नहीं रुकवाया है, और केवल दबाव से ही ऐसे प्रयास सफल हुए हैं। यह दोहरा मापदंड और कूटनीतिक दांव-पेंच UPSC सिविल सेवा परीक्षा की तैयारी कर रहे उम्मीदवारों के लिए भू-राजनीति, अंतर्राष्ट्रीय संबंध और राष्ट्रीय सुरक्षा के दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण हैं।
यह ब्लॉग पोस्ट इस घटना के पीछे की गहराई में जाएगा, जिसमें भारत और पाकिस्तान के सैन्य रुख, युद्धविराम समझौतों का इतिहास, और वैश्विक शांति में नेताओं की भूमिका जैसे महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाला जाएगा। हम यह भी देखेंगे कि कैसे इस तरह की घटनाएँ UPSC परीक्षा के विभिन्न चरणों के लिए प्रासंगिक हो जाती हैं।
पृष्ठभूमि: नियंत्रण रेखा पर तनाव और पाकिस्तान की अपील
भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) पर तनाव कोई नई बात नहीं है। दोनों देश अक्सर सीमा पार से घुसपैठ, आतंकवाद और गोलाबारी के आरोपों का आदान-प्रदान करते रहते हैं। ऐसे में, पाकिस्तान के DGMO का संघर्ष विराम की गुहार लगाना एक असामान्य घटना है, जो शायद मौजूदा तनाव की गंभीरता को दर्शाता है।
DGMO की अपील का महत्व:
- सैन्य कमजोरी का संकेत?: यह अपील पाकिस्तान की सेना के लिए एक कठिन परिस्थिति को दर्शा सकती है, जहाँ शायद वह अधिक सैन्य नुकसान उठाने में सक्षम नहीं है। यह एक प्रकार से अपनी सीमाओं को स्वीकार करना है।
- कूटनीतिक चाल?: यह एक कूटनीतिक चाल भी हो सकती है, जिसका उद्देश्य अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करना और पाकिस्तान को पीड़ित के रूप में प्रस्तुत करना हो।
- आंतरिक दबाव?: पाकिस्तान की घरेलू राजनीतिक और आर्थिक अस्थिरता भी सेना को ऐसे कदम उठाने के लिए मजबूर कर सकती है।
प्रधानमंत्री मोदी का वक्तव्य: ‘दुनिया के किसी नेता ने जंग नहीं रुकवाई’
प्रधानमंत्री मोदी का यह बयान एक गंभीर अवलोकन है, जो अक्सर उन देशों के संदर्भ में प्रासंगिक होता है जो अंतरराष्ट्रीय मंच पर शांति की बात तो करते हैं, लेकिन ज़मीनी हकीकत में संघर्ष को बढ़ावा देते हैं।
इस बयान के निहितार्थ:
- भारत का रुख: यह दर्शाता है कि भारत किसी भी देश पर, विशेषकर पाकिस्तान पर, तभी भरोसा कर सकता है जब वह अपनी हरकतों से बाज आए। केवल शब्दों से युद्ध नहीं रुकता, बल्कि कृत्य महत्वपूर्ण होते हैं।
- अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की कड़वी सच्चाई: कई बार, युद्ध को रोकने के लिए सिर्फ ‘शांति की अपील’ पर्याप्त नहीं होती। इसके लिए एक मजबूत राजनयिक दबाव, आर्थिक प्रतिबंध या सैन्य निवारक की आवश्यकता होती है।
- आत्मनिर्भरता और शक्ति का प्रदर्शन: यह बयान भारत की अपनी शक्ति और सुरक्षा के प्रति प्रतिबद्धता को भी दर्शाता है। भारत किसी अन्य देश की दया पर अपनी सुरक्षा को निर्भर नहीं रखता।
‘किसी भी नेता ने जंग नहीं रुकवाई, हमने अपने दुश्मन को मारा है, हम उन्हें मारेंगे।’ – यह सीधा और स्पष्ट संदेश है कि भारत अपनी संप्रभुता और नागरिकों की सुरक्षा के लिए निर्णायक कार्रवाई करने से नहीं हिचकिचाएगा।
भारत-पाकिस्तान युद्धविराम समझौते: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
भारत और पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम को बनाए रखने के प्रयास कई बार हुए हैं।
1999 का कारगिल युद्ध: यह युद्ध भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक महत्वपूर्ण मोड़ था, जिसने दोनों देशों के बीच अविश्वास और तनाव को और गहरा किया।
2003 का संघर्ष विराम समझौता: यह समझौता नियंत्रण रेखा पर कुछ हद तक शांति बनाए रखने में सफल रहा था, लेकिन 2010 के दशक में इसमें लगातार उल्लंघन होते रहे।
2021 का संयुक्त बयान: भारत और पाकिस्तान के DGMOs ने फरवरी 2021 में नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम समझौते का कड़ाई से पालन करने पर सहमति व्यक्त की थी। इस समझौते ने सीमा पर कुछ महीनों के लिए शांति स्थापित की, लेकिन यह नाजुक बनी रही।
संघर्ष विराम की विफलता के कारण:
- सीमा पार आतंकवाद: पाकिस्तान द्वारा समर्थित आतंकवादी समूह अक्सर संघर्ष विराम का उल्लंघन करते हुए सीमा पार से घुसपैठ करने का प्रयास करते हैं, जिससे भारतीय सुरक्षा बलों को जवाबी कार्रवाई करनी पड़ती है।
- पारस्परिक अविश्वास: दोनों देशों के बीच गहरा अविश्वास और ऐतिहासिक दुश्मनी किसी भी शांति समझौते को टिकने नहीं देती।
- सैन्य उद्देश्यों को साधना: कभी-कभी, संघर्ष विराम के उल्लंघन का उपयोग रणनीतिक या सामरिक उद्देश्यों को साधने के लिए किया जाता है।
DGMO की अपील: क्या यह एक युद्धविराम की शुरुआत है या सिर्फ एक अस्थायी राहत?
पाकिस्तान के DGMO की अपील को अलग-अलग दृष्टिकोणों से देखा जा सकता है:
- मानवीय दृष्टिकोण: यह स्वीकार करना कि निरंतर संघर्ष में आम लोगों और सैनिकों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है। पाकिस्तान शायद मानवीय लागत को कम करना चाहता है।
- आर्थिक दबाव: लगातार सीमा पर तनाव बनाए रखना पाकिस्तान की कमजोर अर्थव्यवस्था पर अतिरिक्त बोझ डालता है।
- अंतर्राष्ट्रीय छवि: पाकिस्तान की अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एक जिम्मेदार राष्ट्र के रूप में छवि बनाने की कोशिश, भले ही यह दिखावटी हो।
भारत का प्रतिक्रियात्मक दृष्टिकोण:
भारत की प्रतिक्रिया हमेशा इस सिद्धांत पर आधारित रही है कि शांति तभी संभव है जब पाकिस्तान अपनी नापाक हरकतों, विशेष रूप से सीमा पार आतंकवाद को रोके। भारत का मानना है कि जब तक पाकिस्तान अपनी जमीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए होने देगा, तब तक कोई भी संघर्ष विराम स्थायी नहीं हो सकता।
“जब तक सीमा पार से आतंकवाद रुकेगा नहीं, तब तक बात नहीं बनेगी।”
कूटनीति और सैन्य निवारक: एक जटिल संतुलन
अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में, युद्ध को रोकने के लिए कूटनीति और सैन्य निवारक (military deterrence) दोनों ही आवश्यक हैं।
कूटनीति की सीमाएँ:
- समान स्तर पर बातचीत: कूटनीतिक बातचीत तभी सफल होती है जब दोनों पक्ष समान स्तर पर हों और गंभीर हों।
- क्रियान्वयन की समस्या: अक्सर वादे किए जाते हैं, लेकिन उन्हें लागू नहीं किया जाता, जैसा कि आतंकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तान के मामले में देखा गया है।
- अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता: कुछ देशों को लगता है कि अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता से हल निकल सकता है, लेकिन भारत हमेशा इस पर संशय व्यक्त करता रहा है, क्योंकि यह उसके आंतरिक मामले का हिस्सा है।
सैन्य निवारक की भूमिका:
- शक्ति का प्रदर्शन: भारत का अपनी सैन्य क्षमता का प्रदर्शन और मजबूत रक्षा नीतियां पाकिस्तान को किसी भी आक्रामक कार्रवाई से रोकती हैं।
- कठोर प्रतिक्रिया: किसी भी घुसपैठ या हमले पर भारत की तत्काल और कठोर प्रतिक्रिया पाकिस्तान को यह संदेश देती है कि उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ेगी।
- ‘नो फर्स्ट यूज’ नीति: हालांकि भारत की परमाणु नीति ‘नो फर्स्ट यूज’ है, लेकिन वह अपनी संप्रभुता की रक्षा के लिए किसी भी प्रकार की जवाबी कार्रवाई करने में सक्षम है।
एक केस स्टडी: 2016 का ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ और 2019 का ‘एयर स्ट्राइक’ भारत की निवारक क्षमता और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई करने की इच्छाशक्ति को दर्शाता है। इन घटनाओं के बाद, पाकिस्तान को अपनी रणनीति पर पुनर्विचार करना पड़ा, भले ही उसने सार्वजनिक रूप से इसे स्वीकार न किया हो।
UPSC परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: एक गहन विश्लेषण
यह घटना UPSC परीक्षा के विभिन्न पहलुओं के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है:
1. अंतर्राष्ट्रीय संबंध (GS Paper II)
- भारत-पाकिस्तान संबंध: यह संबंध हमेशा परीक्षा का एक प्रमुख हिस्सा रहा है। DGMO की अपील और पीएम मोदी के बयान इस संबंध की वर्तमान स्थिति और जटिलताओं को समझने में मदद करते हैं।
- सीमा प्रबंधन: नियंत्रण रेखा पर संघर्ष विराम की स्थिति, घुसपैठ और सुरक्षा की चुनौतियाँ।
- क्षेत्रीय सुरक्षा: अफगानिस्तान, मध्य एशिया और दक्षिण एशिया में सुरक्षा परिदृश्य पर इसका प्रभाव।
- कूटनीति बनाम निवारक: भारत की विदेश नीति में इन दोनों पहलुओं का संतुलन।
2. राष्ट्रीय सुरक्षा (GS Paper III)
- सीमा सुरक्षा: LoC पर सुरक्षा बनाए रखने की चुनौतियाँ।
- सैन्य आधुनिकीकरण: भारत की सैन्य क्षमताएं और पाकिस्तान की सैन्य क्षमताएं।
- आतंकवाद: सीमा पार आतंकवाद का खतरा और उसे रोकने के लिए भारत की नीतियां।
- सैन्य कूटनीति: DGMO स्तर की बातचीत और उनका महत्व।
3. निबंध (Essay Paper)
- “युद्ध और शांति की राजनीति”
- “सीमा प्रबंधन: राष्ट्र सुरक्षा की पहली पंक्ति”
- “कूटनीति की प्रभावशीलता: क्या केवल बातचीत से समस्या हल होती है?”
4. समसामयिक मामले (Current Affairs)
यह सीधे तौर पर समसामयिक मामलों से जुड़ा है और इसके सभी पहलुओं को समझना आवश्यक है।
निष्कर्ष: आगे की राह
पाकिस्तान के DGMO की संघर्ष विराम की अपील एक महत्वपूर्ण संकेत है, लेकिन भारत को सतर्क रहना होगा। जब तक पाकिस्तान आतंकवाद को प्रायोजित करना बंद नहीं करता और अपनी ज़मीन का इस्तेमाल भारत के खिलाफ नहीं होने देता, तब तक किसी भी शांति की उम्मीद नाजुक ही रहेगी।
प्रधानमंत्री मोदी का कड़ा रुख भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के प्रति उसकी अटूट प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत का लक्ष्य शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व है, लेकिन यह आत्म-सम्मान और संप्रभुता से कोई समझौता किए बिना होगा।
UPSC उम्मीदवारों के लिए, यह समझना महत्वपूर्ण है कि भू-राजनीति केवल भाषणों और करारों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें सैन्य क्षमता, कूटनीतिक दांव-पेंच और राष्ट्रीय हितों की रक्षा शामिल है। इस घटनाक्रम का विश्लेषण करते समय, हमें इन सभी आयामों पर विचार करना चाहिए।
मुख्य परीक्षा के लिए विश्लेषण:
- भारत-पाकिस्तान संबंधों में संघर्ष विराम की स्थिति: हालिया घटनाक्रमों के आलोक में मूल्यांकन करें।
- राष्ट्रीय सुरक्षा के संदर्भ में सीमा प्रबंधन की चुनौतियाँ: DGMO की अपील और पीएम मोदी के वक्तव्य के बीच के द्वंद्व को स्पष्ट करें।
- ‘शक्ति’ और ‘शांति’ के बीच संतुलन: क्या भारत की ‘निवारक शक्ति’ पाकिस्तान को शांति के लिए मजबूर कर सकती है, या यह केवल एक अस्थायी विराम है?
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
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नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्ष विराम के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा कथन सत्य है?
(a) भारत हमेशा संघर्ष विराम का उल्लंघन करने वाले को पहले निशाना बनाता है।
(b) पाकिस्तान की सेना के DGMO द्वारा अपील अक्सर शांति बनाए रखने की प्रतिबद्धता दर्शाती है।
(c) 2021 में भारत और पाकिस्तान के DGMOs के बीच संघर्ष विराम समझौते पर सहमति हुई थी।
(d) संघर्ष विराम का सफल कार्यान्वयन केवल कूटनीतिक प्रयासों पर निर्भर करता है।
उत्तर: (c)
व्याख्या: फरवरी 2021 में, भारत और पाकिस्तान के DGMOs ने LoC पर संघर्ष विराम समझौते का कड़ाई से पालन करने पर सहमति व्यक्त की थी। (a) भारत जवाबी कार्रवाई करता है, लेकिन पहले उकसावे का विश्लेषण आवश्यक है। (b) अपील के पीछे कई कारण हो सकते हैं। (d) सैन्य निवारक और अन्य कारक भी महत्वपूर्ण हैं।
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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के बयान ‘दुनिया के किसी नेता ने जंग नहीं रुकवाई’ का सबसे उपयुक्त निहितार्थ क्या है?
(a) यह दर्शाता है कि वैश्विक नेताओं के पास युद्ध रोकने की सीमित शक्ति है।
(b) यह इंगित करता है कि प्रभावी युद्ध-रोधी उपाय केवल मजबूत कार्रवाई या निवारक से ही संभव हैं।
(c) यह पाकिस्तान जैसे देशों के शांति प्रस्तावों के प्रति भारत के अविश्वास को दर्शाता है।
(d) उपर्युक्त सभी
उत्तर: (d)
व्याख्या: यह बयान उपरोक्त सभी निहितार्थों को समाहित करता है, जो युद्ध की वास्तविकताओं और वैश्विक कूटनीति की सीमाओं को दर्शाता है।
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सीमा पार आतंकवाद के संबंध में भारत की मुख्य चिंता क्या है?
(a) पाकिस्तान द्वारा अपने क्षेत्र का इस्तेमाल भारत के खिलाफ आतंकवादी गतिविधियों के लिए होने देना।
(b) पाकिस्तान की परमाणु हथियार क्षमता।
(c) अफगानिस्तान में तालिबान का उदय।
(d) कश्मीर मुद्दे पर अंतर्राष्ट्रीय हस्तक्षेप।
उत्तर: (a)
व्याख्या: सीमा पार आतंकवाद भारत के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है, जिसमें पाकिस्तान द्वारा समर्थित समूहों का योगदान शामिल है।
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भारत-पाकिस्तान संबंधों में ‘सैन्य निवारक’ (military deterrence) का क्या अर्थ है?
(a) युद्ध को रोकने के लिए दूसरे देश को अपनी सैन्य शक्ति का प्रदर्शन करना।
(b) केवल कूटनीतिक माध्यमों से समस्या का समाधान खोजना।
(c) अंतर्राष्ट्रीय संगठनों से मदद मांगना।
(d) मानवीय सहायता प्रदान करना।
उत्तर: (a)
व्याख्या: सैन्य निवारक का अर्थ है दुश्मन को किसी कार्रवाई से रोकने के लिए अपनी सैन्य क्षमता या संभावित जवाबी कार्रवाई का प्रदर्शन करना।
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नियंत्रण रेखा (LoC) किस भौगोलिक क्षेत्र को विभाजित करती है?
(a) भारत और चीन
(b) भारत और बांग्लादेश
(c) भारत-पाकिस्तान के बीच कश्मीर का विभाजित क्षेत्र
(d) भारत और म्यांमार
उत्तर: (c)
व्याख्या: LoC वह सीमा है जो भारत-नियंत्रित कश्मीर और पाकिस्तान-नियंत्रित कश्मीर को अलग करती है।
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भारत द्वारा 2016 में की गई ‘सर्जिकल स्ट्राइक’ का प्राथमिक उद्देश्य क्या था?
(a) पाकिस्तान को बातचीत के लिए मजबूर करना।
(b) आतंकवादी लॉन्च पैड को नष्ट करना और आतंकवाद के खिलाफ निर्णायक कार्रवाई का प्रदर्शन करना।
(c) अंतर्राष्ट्रीय समुदाय का ध्यान आकर्षित करना।
(d) सीमा पर नियंत्रण रेखा को फिर से स्थापित करना।
उत्तर: (b)
व्याख्या: सर्जिकल स्ट्राइक का मुख्य उद्देश्य उरी हमले के जवाब में आतंकवादी लॉन्च पैड को लक्षित करना और आतंकवाद के खिलाफ भारत की दृढ़ता दिखाना था।
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निम्नलिखित में से कौन सा संगठन भारत-पाकिस्तान के सैन्य संबंधों से सीधे तौर पर जुड़ा है?
(a) संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद
(b) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF)
(c) महानिदेशक सैन्य संचालन (DGMO) स्तर की बातचीत
(d) विश्व व्यापार संगठन (WTO)
उत्तर: (c)
व्याख्या: DGMO स्तर की बातचीत दोनों देशों की सेनाओं के बीच सीधे संचार का एक महत्वपूर्ण माध्यम है, खासकर सीमावर्ती मुद्दों पर।
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प्रधानमंत्री मोदी के बयान के अनुसार, युद्ध रोकने के लिए सबसे प्रभावी कारक क्या है?
(a) अंतर्राष्ट्रीय शांति प्रस्ताव
(b) आर्थिक सहायता
(c) कूटनीतिक बातचीत
(d) ‘दबाव’ (Pressure) और निर्णायक कार्रवाई
उत्तर: (d)
व्याख्या: बयान का अर्थ है कि केवल ‘अपील’ या ‘बातचीत’ से युद्ध नहीं रुकता, बल्कि प्रभावी ‘दबाव’ या निवारक उपाय काम आते हैं।
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भारत-पाकिस्तान संबंधों में ‘विश्वास बहाली के उपाय’ (Confidence Building Measures – CBMs) का उद्देश्य क्या है?
(a) दोनों देशों के बीच सैन्य संघर्ष को बढ़ाना।
(b) सीमा पार आतंकवाद को प्रोत्साहित करना।
(c) अविश्वास को कम करना और सहयोग के अवसर बढ़ाना।
(d) एक-दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करना।
उत्तर: (c)
व्याख्या: CBMs का उद्देश्य दोनों देशों के बीच तनाव कम करना और विश्वास का माहौल बनाना है, जो शांतिपूर्ण संबंधों के लिए महत्वपूर्ण है।
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2003 के संघर्ष विराम समझौते के बाद, नियंत्रण रेखा पर स्थिति के बारे में सबसे सटीक कथन कौन सा है?
(a) समझौता कड़ाई से लागू किया गया और कभी उल्लंघन नहीं हुआ।
(b) शुरुआत में शांति रही, लेकिन बाद के वर्षों में उल्लंघन की घटनाएँ बढ़ीं।
(c) समझौता कभी भी लागू ही नहीं हुआ।
(d) भारत ने समझौते के तुरंत बाद LoC पर एकतरफा नियंत्रण स्थापित कर लिया।
उत्तर: (b)
व्याख्या: 2003 के समझौते ने कुछ समय के लिए शांति लाई, लेकिन समय के साथ इसके उल्लंघन होते रहे, खासकर सीमा पार आतंकवाद और घुसपैठ के प्रयासों के कारण।
मुख्य परीक्षा (Mains)
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भारत-पाकिस्तान के बीच नियंत्रण रेखा (LoC) पर संघर्ष विराम की स्थिति का विश्लेषण करें। पाकिस्तान के DGMO की हालिया अपील और प्रधानमंत्री मोदी के वक्तव्य के आलोक में, इस क्षेत्र में स्थायी शांति की संभावनाओं और चुनौतियों पर चर्चा करें।
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समकालीन भू-राजनीति में ‘सैन्य निवारक’ (military deterrence) और ‘कूटनीति’ के बीच संतुलन पर एक विस्तृत टिप्पणी लिखें। इस संदर्भ में, हाल के भारत-पाकिस्तान सैन्य कूटनीतिक घटनाक्रमों का मूल्यांकन करें।
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सीमा पार आतंकवाद, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए एक गंभीर खतरा है। भारत की आतंकवाद विरोधी रणनीति के विभिन्न आयामों पर प्रकाश डालें, और DGMO की अपील जैसे घटनाक्रमों को इस रणनीति के हिस्से के रूप में कैसे देखा जा सकता है, इसका विश्लेषण करें।
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अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में ‘शांति की अपील’ की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक मूल्यांकन करें। क्या केवल शांति की बात करने से युद्ध रुकते हैं, या प्रभावी परिणाम के लिए ठोस कार्रवाई और दबाव की आवश्यकता होती है? अपने तर्क को हालिया घटनाक्रमों से प्रमाणित करें।