मौत का सैलाब: देहरादून, मंडी में बादल फटने से भारी तबाही, 11 लोगों की दर्दनाक मौत
चर्चा में क्यों? (Why in News?):** हाल ही में, उत्तराखंड के देहरादून जिले और हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में हुई विनाशकारी घटनाओं ने पूरे देश को झकझोर दिया है। देहरादून में टोंस नदी के पास बादल फटने की घटना ने भारी तबाही मचाई, जिसमें कम से कम 8 लोगों की जान चली गई। मलबे और पानी के सैलाब ने मंदिरों, दुकानों और घरों में प्रवेश कर भारी नुकसान पहुंचाया। वहीं, हिमाचल प्रदेश के मंडी जिले में भी ऐसी ही एक घटना में 3 लोगों की मौत की खबर सामने आई है। ये घटनाएं न केवल तत्काल मानवीय त्रासदी का प्रतीक हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन और चरम मौसमी घटनाओं के बढ़ते खतरों की ओर भी इशारा करती हैं।
ये घटनाएँ UPSC की तैयारी करने वाले उम्मीदवारों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं। ये प्राकृतिक आपदा प्रबंधन, भू-विवरण (Geomorphology), समसामयिक घटनाओं और जलवायु परिवर्तन जैसे विषयों पर विस्तृत अध्ययन और विश्लेषण की मांग करती हैं। इस ब्लॉग पोस्ट में, हम इस घटना के विभिन्न पहलुओं, इसके कारणों, प्रभावों, और भविष्य में ऐसी आपदाओं से निपटने की रणनीतियों पर गहराई से चर्चा करेंगे।
बादल फटना: प्रकृति का एक भयावह रूप (Cloudburst: A Terrifying Form of Nature)
बादल फटना क्या है? (What is a Cloudburst?):** सरल शब्दों में, बादल फटना एक ऐसी अत्यधिक स्थानीयकृत और तीव्र वर्षा की घटना है जिसमें बहुत कम समय (आमतौर पर कुछ मिनट से लेकर कुछ घंटों तक) में बहुत अधिक मात्रा में पानी गिरता है। यह तब होता है जब वातावरण में किसी एक क्षेत्र में बहुत अधिक मात्रा में नमी जमा हो जाती है, और वह अचानक से अत्यधिक तीव्रता से नीचे गिरती है।
“बादल फटना कोई रहस्यमयी घटना नहीं है, बल्कि वायुमंडलीय अस्थिरता और विशिष्ट भौगोलिक परिस्थितियों का एक संयोजन है जो अप्रत्याशित विनाश का कारण बनता है।”
परिस्थिति की गंभीरता (Severity of the Situation):**
- देहरादून (टोंस नदी क्षेत्र): बादल फटने से भारी मात्रा में मलबा, बोल्डर और पानी का सैलाब टोंस नदी में आ गया। नदी का जलस्तर अचानक बढ़ने से आसपास के क्षेत्र में भारी बाढ़ आ गई।
- जनहानि: इस भयावह घटना में कम से कम 8 लोगों की मौत की पुष्टि हुई है, जबकि कई अन्य लापता हैं।
- संपत्ति का विनाश: बाढ़ का पानी और मलबा मंदिरों, दुकानों और घरों में घुस गया, जिससे बड़े पैमाने पर संरचनात्मक क्षति हुई।
- मंडी, हिमाचल प्रदेश: इसी तरह की एक घटना में 3 लोगों की जान चली गई, जो दर्शाता है कि यह समस्या सिर्फ एक क्षेत्र तक सीमित नहीं है।
कारणों की पड़ताल: क्यों फटते हैं बादल? (Investigating the Causes: Why Do Clouds Burst?)
बादल फटने की घटनाएँ आमतौर पर विशिष्ट भौगोलिक और मौसमी परिस्थितियों के संगम से होती हैं। UPSC के दृष्टिकोण से, इन कारणों को समझना महत्वपूर्ण है:
- ऊंचाई वाले पहाड़ी इलाके: हिमालय जैसे ऊंचे पहाड़ी इलाकों में बादल फटने की संभावना अधिक होती है। यहाँ की तीव्र ढलानें और संकरी घाटियाँ पानी के तेज बहाव और विनाशकारी बाढ़ का मार्ग प्रशस्त करती हैं।
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स्थानीय वायुमंडलीय स्थितियाँ:
- अत्यधिक नमी: जब हवा बहुत अधिक मात्रा में जलवाष्प (नमी) को धारण करती है, तो बादल बनने लगते हैं।
- तेज वायु धाराएं (Convective Updrafts): गर्म, नम हवा तेजी से ऊपर उठती है। यदि यह ऊपर उठने की गति इतनी तेज हो कि बादल के अंदर जलवाष्प संघनित होकर पानी की बूंदों या बर्फ के क्रिस्टल में बदल जाए और गुरुत्वाकर्षण के खिंचाव से नीचे आने से पहले ही एक निश्चित मात्रा में जमा हो जाए, तो यह स्थिति बादल फटने का कारण बन सकती है।
- स्थिर वायुमंडल: कभी-कभी, एक स्थिर वायुमंडल की परत गर्म, नम हवा को ऊपर उठने से रोक सकती है। जब यह बाधा अचानक हट जाती है, तो संचित नमी एक साथ नीचे गिरती है।
- स्थलाकृति (Topography): पहाड़ी इलाकों में, पहाड़ियाँ हवा को ऊपर की ओर धकेलती हैं (ऑरोग्राफिक लिफ्ट), जिससे नमी संघनित होती है और बादल बनते हैं। घाटियों में, पानी और मलबा एक संकीर्ण मार्ग में केंद्रित हो जाते हैं, जिससे बाढ़ की तीव्रता बढ़ जाती है।
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जलवायु परिवर्तन का प्रभाव:
- बढ़ा हुआ तापमान: वैश्विक तापमान में वृद्धि का मतलब है कि वातावरण अधिक नमी धारण कर सकता है। जब ऐसी स्थितियाँ बनती हैं, तो कम समय में अधिक तीव्र वर्षा की संभावना बढ़ जाती है।
- चरम मौसमी घटनाएँ: जलवायु परिवर्तन दुनिया भर में चरम मौसमी घटनाओं (जैसे अत्यधिक गर्मी, सूखा, भारी वर्षा, तूफान) की आवृत्ति और तीव्रता को बढ़ा रहा है। बादल फटना इसी का एक उदाहरण है।
- ग्लेशियरों का पिघलना: ग्लेशियरों के पिघलने से भी पहाड़ी क्षेत्रों में जल स्तर पर अप्रत्याशित प्रभाव पड़ सकता है, जो अप्रत्यक्ष रूप से ऐसी घटनाओं को बढ़ावा दे सकता है।
विनाशकारी प्रभाव: सिर्फ मौतें नहीं, बल्कि बहुत कुछ (Devastating Impacts: Not Just Deaths, But Much More)
बादल फटने की घटनाओं के प्रभाव बहुआयामी और अत्यंत विनाशकारी होते हैं:
1. मानवीय प्रभाव:
- तत्काल जानमाल का नुकसान: जैसा कि देहरादून और मंडी की घटनाओं में देखा गया, तत्काल मृत्यु और गंभीर चोटें सबसे प्रत्यक्ष और दुखद परिणाम हैं।
- विस्थापन: हजारों लोग अपना घर और आजीविका खो देते हैं, जिससे उन्हें अस्थायी या स्थायी रूप से विस्थापित होना पड़ता है।
- मानसिक आघात: जीवित बचे लोगों और पीड़ितों के परिवारों को गंभीर मनोवैज्ञानिक आघात का सामना करना पड़ता है।
2. भौतिक अवसंरचना पर प्रभाव:
- सड़कों और पुलों का विनाश: बाढ़ के पानी और मलबे से सड़कें टूट जाती हैं, पुल बह जाते हैं, जिससे बचाव और राहत कार्यों में बाधा आती है।
- घरों और इमारतों का ढहना: तीव्र बाढ़ का दबाव और मलबा इमारतों को ढहा सकता है।
- बिजली और संचार लाइनों का क्षतिग्रस्त होना: यह बुनियादी ढांचे को तबाह कर देता है, जिससे संपर्क कट जाता है और राहत प्रयासों में देरी होती है।
- कृषि भूमि का विनाश: उपजाऊ मिट्टी बह जाती है, फसलें नष्ट हो जाती हैं, जिससे किसानों की आजीविका खत्म हो जाती है।
3. पारिस्थितिकीय प्रभाव:
- भूस्खलन: अत्यधिक वर्षा पहाड़ी ढलानों को अस्थिर कर देती है, जिससे बड़े पैमाने पर भूस्खलन हो सकते हैं।
- नदी प्रणालियों का बदलना: बाढ़ अपने साथ गाद (silt) और मलबा लाती है, जो नदी के तल को बदल सकती है और भविष्य में बाढ़ के खतरे को बढ़ा सकती है।
- वनस्पति और वन्यजीवों को नुकसान: स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र गंभीर रूप से प्रभावित होता है।
4. आर्थिक प्रभाव:
- तत्काल राहत और पुनर्वास लागत: सरकार और राहत एजेंसियों पर भारी वित्तीय बोझ पड़ता है।
- पुनर्निर्माण लागत: क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे और घरों के पुनर्निर्माण में भारी निवेश की आवश्यकता होती है।
- पर्यटन और अन्य उद्योगों पर प्रभाव: प्रभावित क्षेत्रों में पर्यटन और स्थानीय अर्थव्यवस्था बुरी तरह प्रभावित होती है।
आपदा प्रबंधन: चुनौतियाँ और रणनीतियाँ (Disaster Management: Challenges and Strategies)
UPSC के पाठ्यक्रम का एक महत्वपूर्ण हिस्सा आपदा प्रबंधन है। बादल फटने जैसी घटनाओं से निपटना एक बहु-आयामी प्रक्रिया है जिसमें पूर्व-आपदा, दौरान-आपदा और पश्च-आपदा चरण शामिल हैं।
चुनौतियाँ (Challenges):
- अप्रत्याशितता: बादल फटने की घटनाएँ अत्यंत स्थानीयकृत और अप्रत्याशित होती हैं, जिससे समय पर चेतावनी जारी करना मुश्किल हो जाता है।
- पहुँच में कठिनाई: पहाड़ी और दुर्गम क्षेत्रों में बचाव और राहत दल अक्सर खराब सड़कों और मौसम के कारण पहुँचने में असमर्थ होते हैं।
- बुनियादी ढांचे की कमी: कई पहाड़ी क्षेत्रों में पहले से ही सीमित बुनियादी ढाँचा होता है, जो आपदा के बाद और भी खराब हो जाता है।
- संसाधनों की कमी: अक्सर, पर्याप्त उपकरण, प्रशिक्षित कर्मी और वित्तीय संसाधन अनुपलब्ध होते हैं।
- जन जागरूकता की कमी: स्थानीय समुदायों में आपदाओं के लिए तैयारी और प्रतिक्रिया के बारे में जागरूकता का अभाव।
रणनीतियाँ (Strategies):
1. पूर्व-आपदा (Pre-Disaster):
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प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली (Early Warning Systems):
- मौसम विज्ञान विभाग (IMD) जैसी संस्थाओं द्वारा उन्नत मौसम पूर्वानुमान क्षमताओं का विकास।
- रडार, उपग्रहों और ग्राउंड-आधारित सेंसर का उपयोग करके स्थानीय स्तर पर वर्षा की निगरानी।
- पहाड़ी क्षेत्रों के लिए विशेष रूप से डिज़ाइन किए गए चेतावनी सिस्टम।
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जोखिम मानचित्रण और भेद्यता आकलन (Risk Mapping & Vulnerability Assessment):
- उन क्षेत्रों की पहचान करना जो बादल फटने और बाढ़ के प्रति सबसे अधिक संवेदनशील हैं।
- जनसंख्या, बुनियादी ढांचे और पारिस्थितिकी तंत्र की भेद्यता का आकलन।
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शहरी और ग्रामीण नियोजन:
- खतरनाक क्षेत्रों में निर्माण पर रोक या सख्त नियम।
- बाढ़-सुरक्षित निर्माण तकनीकों को बढ़ावा देना।
- बाढ़ की आशंका वाले क्षेत्रों से आबादी का स्थानांतरण (जहां संभव हो)।
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समुदाय-आधारित आपदा प्रबंधन (Community-Based Disaster Management):
- स्थानीय समुदायों को प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का हिस्सा बनाना।
- स्थानीय आपदा प्रतिक्रिया टीमों का प्रशिक्षण।
- नियमित मॉक ड्रिल (Mock Drills) का आयोजन।
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जागरूकता अभियान:
- बादल फटने, बाढ़ और भूस्खलन के खतरों के बारे में स्थानीय लोगों को शिक्षित करना।
- सुरक्षा सावधानियों और क्या करना चाहिए/क्या नहीं करना चाहिए, इस पर जानकारी का प्रसार।
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पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखना:
- वनों की कटाई को रोकना और वनीकरण को बढ़ावा देना, क्योंकि पेड़ मिट्टी को बांधे रखने और पानी के बहाव को धीमा करने में मदद करते हैं।
- नदी तल में अतिक्रमण को रोकना।
2. दौरान-आपदा (During Disaster):
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तत्काल चेतावनी प्रसार:
- स्थानीय अधिकारियों, रेडियो, मोबाइल अलर्ट और सायरन के माध्यम से लोगों तक चेतावनी पहुँचाना।
- उन क्षेत्रों को खाली करने का तत्काल आदेश देना जहाँ बाढ़ का खतरा है।
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खोज और बचाव अभियान:
- प्रशिक्षित टीमों (NDRF, SDRF, सेना, स्थानीय स्वयंसेवक) को तुरंत तैनात करना।
- हेलीकॉप्टरों का उपयोग करके फंसे हुए लोगों को निकालना।
- आवश्यक सामग्री (भोजन, पानी, दवाएं) की आपूर्ति।
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संचार बनाए रखना:
- बचाव कार्यों के समन्वय के लिए आपातकालीन संचार लाइनों को प्राथमिकता देना।
3. पश्च-आपदा (Post-Disaster):
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राहत और पुनर्वास:
- सभी प्रभावितों के लिए आश्रय, भोजन, स्वच्छ पानी और चिकित्सा सहायता सुनिश्चित करना।
- नुकसान का आकलन करना और तत्काल सहायता प्रदान करना।
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पुनर्निर्माण:
- क्षतिग्रस्त बुनियादी ढांचे (सड़कें, पुल, बिजली, पानी की आपूर्ति) का पुनर्निर्माण।
- घर खो चुके लोगों के लिए स्थायी आवास प्रदान करना।
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आजीविका की बहाली:
- किसानों और व्यवसायों को हुए नुकसान की भरपाई के लिए सहायता प्रदान करना।
- रोजगार के अवसर पैदा करना।
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दीर्घकालिक जोखिम न्यूनीकरण:
- आपदा से सीखे गए सबक के आधार पर मौजूदा नीतियों और योजनाओं की समीक्षा करना।
- भविष्य की आपदाओं से निपटने के लिए तैयारियों को मजबूत करना।
- जलवायु परिवर्तन के अनुकूलन (Adaptation) और शमन (Mitigation) उपायों को तेज करना।
जलवायु परिवर्तन और भविष्य की राह (Climate Change and the Way Forward)
देहरादून और मंडी की घटनाएँ एक व्यापक चिंता का विषय हैं। ये केवल स्थानीय मौसम की घटनाएँ नहीं हैं, बल्कि जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में बढ़ रही चरम मौसमी घटनाओं का हिस्सा हैं।
UPSC के लिए जलवायु परिवर्तन का आयाम:
- वैश्विक मुद्दे: पेरिस समझौते (Paris Agreement), क्योटो प्रोटोकॉल (Kyoto Protocol) जैसे अंतर्राष्ट्रीय समझौते।
- राष्ट्रीय नीतियाँ: राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन अनुकूलन योजना (National Action Plan on Climate Change – NAPCC), राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) की भूमिका।
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अनुकूलन (Adaptation) बनाम शमन (Mitigation):
- शमन: ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करना (जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, ऊर्जा दक्षता)।
- अनुकूलन: जलवायु परिवर्तन के अपरिहार्य प्रभावों के अनुकूल होना (जैसे बाढ़-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचा, सूखे के प्रति सहनशील फसलें)।
- हिमालयी क्षेत्र का विशेष महत्व: यह क्षेत्र ‘दुनिया का तीसरा ध्रुव’ (Third Pole) कहलाता है और यहाँ के ग्लेशियर लाखों लोगों के लिए जल स्रोत हैं। यहाँ जलवायु परिवर्तन के प्रभाव अत्यंत गंभीर हो सकते हैं, जिससे न केवल भारत बल्कि पूरे एशिया की जल सुरक्षा प्रभावित होती है।
भविष्य की राह (Future Path):
- सबूत-आधारित नीति निर्माण: घटनाओं के वैज्ञानिक विश्लेषण के आधार पर नीतियों को डिजाइन करना।
- अंतर-एजेंसी समन्वय: विभिन्न सरकारी विभागों, अनुसंधान संस्थानों और गैर-सरकारी संगठनों के बीच बेहतर तालमेल।
- प्रौद्योगिकी का उपयोग: प्रारंभिक चेतावनी, निगरानी और राहत कार्यों के लिए उन्नत प्रौद्योगिकी को अपनाना।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: ज्ञान, तकनीक और संसाधनों के आदान-प्रदान के लिए वैश्विक सहयोग।
- स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना: उन्हें आपदा प्रबंधन प्रक्रियाओं में सक्रिय भागीदार बनाना।
“केवल प्रतिक्रियात्मक (Reactive) होने के बजाय, हमें पूर्व-सक्रिय (Proactive) बनना होगा। आपदाएँ हमें सिखाती हैं कि प्रकृति का सम्मान करें और उसके साथ सामंजस्य बिठाकर जिएं।”
निष्कर्ष (Conclusion)
देहरादून और मंडी में बादल फटने की विनाशकारी घटनाएँ एक गंभीर चेतावनी हैं। ये प्राकृतिक आपदाएँ, जो जलवायु परिवर्तन से बढ़ रही हैं, मानव जीवन और आजीविका के लिए एक बड़ा खतरा पेश करती हैं। UPSC के उम्मीदवारों के लिए, यह आवश्यक है कि वे इन घटनाओं को केवल समाचारों तक सीमित न रखें, बल्कि इसके पीछे के वैज्ञानिक, पर्यावरणीय, सामाजिक और प्रशासनिक पहलुओं को गहराई से समझें। प्रभावी आपदा प्रबंधन, मजबूत प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, सामुदायिक भागीदारी और जलवायु परिवर्तन के प्रति सचेत नीतियां ही भविष्य में ऐसी त्रासदियों से निपटने का मार्ग प्रशस्त कर सकती हैं। हमारी तैयारी में इस तरह की घटनाओं का विश्लेषण शामिल होना चाहिए, ताकि हम एक ऐसे राष्ट्र के निर्माण में योगदान दे सकें जो इन चुनौतियों का सामना करने के लिए अधिक लचीला और तैयार हो।
UPSC परीक्षा के लिए अभ्यास प्रश्न (Practice Questions for UPSC Exam)
प्रारंभिक परीक्षा (Prelims) – 10 MCQs
1. निम्नलिखित कथनों पर विचार करें:
1. बादल फटना मुख्य रूप से निचले मैदानी इलाकों में होता है।
2. यह अत्यंत स्थानीयकृत और कम अवधि की तीव्र वर्षा की घटना है।
3. बादल फटने में वायुमंडलीय नमी का अत्यधिक जमा होना एक प्रमुख कारक है।
उपरोक्त कथनों में से कौन से सही हैं?
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b) केवल 2 और 3
व्याख्या: बादल फटना मुख्य रूप से ऊंचे पहाड़ी इलाकों में होता है, मैदानी इलाकों में नहीं। यह एक अत्यंत स्थानीयकृत और कम अवधि की तीव्र वर्षा की घटना है, जिसमें वायुमंडलीय नमी का अत्यधिक जमाव एक महत्वपूर्ण कारक है।
2. बादल फटने की घटना के लिए कौन सी भौगोलिक परिस्थिति अनुकूल होती है?
(a) विस्तृत और समतल पठार
(b) गहरी और संकरी घाटियाँ
(c) विशाल झीलें
(d) घने जंगल
उत्तर: (b) गहरी और संकरी घाटियाँ
व्याख्या: गहरी और संकरी घाटियाँ पानी और मलबे को केंद्रित करती हैं, जिससे बाढ़ की तीव्रता बढ़ जाती है, जो बादल फटने के बाद एक सामान्य परिणाम है।
3. जलवायु परिवर्तन का बादल फटने की घटनाओं पर क्या संभावित प्रभाव पड़ सकता है?
1. वातावरण द्वारा अधिक नमी धारण करने की क्षमता बढ़ना।
2. चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति में कमी।
3. वर्षा की तीव्रता में वृद्धि।
सही कथन चुनें:
(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (b) केवल 1 और 3
व्याख्या: जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ा हुआ तापमान वातावरण को अधिक नमी धारण करने में मदद करता है, जिससे तीव्र वर्षा की संभावना बढ़ती है। यह चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति को भी बढ़ाता है, न कि कम करता है।
4. हिमालयी क्षेत्र को ‘दुनिया का तीसरा ध्रुव’ क्यों कहा जाता है?
(a) यहाँ दुनिया की सबसे ठंडी जलवायु पाई जाती है।
(b) यहाँ ग्लेशियरों की विशाल मात्रा है जो एशिया के लिए जल स्रोत का काम करती है।
(c) यह ध्रुवीय भालुओं का एकमात्र प्राकृतिक आवास है।
(d) यहाँ पृथ्वी का उत्तरी चुंबकीय ध्रुव स्थित है।
उत्तर: (b) यहाँ ग्लेशियरों की विशाल मात्रा है जो एशिया के लिए जल स्रोत का काम करती है।
व्याख्या: यह शब्द हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियरों की विशाल मात्रा को दर्शाता है, जो कई प्रमुख एशियाई नदियों के लिए जल का एक महत्वपूर्ण स्रोत है, जैसे आर्कटिक और अंटार्कटिक के बाद।
5. आपदा प्रबंधन की ‘प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली’ (Early Warning System) का प्राथमिक उद्देश्य क्या है?
(a) आपदा के बाद राहत सामग्री पहुंचाना।
(b) आपदा आने से पहले लोगों को सूचित करना और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना।
(c) आपदा के कारण हुए नुकसान का आकलन करना।
(d) आपदा के बाद पुनर्वास कार्य करना।
उत्तर: (b) आपदा आने से पहले लोगों को सूचित करना और सुरक्षित स्थानों पर पहुंचाना।
व्याख्या: प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली का मुख्य लक्ष्य लोगों को संभावित खतरे के बारे में समय पर सूचित करके उन्हें पहले से तैयारी करने या सुरक्षित स्थानों पर जाने का अवसर देना है, जिससे जान-माल का नुकसान कम हो सके।
6. राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) का गठन किस अधिनियम के तहत किया गया था?
(a) पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986
(b) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
(c) भारतीय संविधान का अनुच्छेद 253
(d) राष्ट्रीय जल नीति, 2012
उत्तर: (b) आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005
व्याख्या: NDMA का गठन भारत सरकार द्वारा आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 के तहत किया गया था।
7. ‘अनुकूलन’ (Adaptation) और ‘शमन’ (Mitigation) के संदर्भ में, निम्नलिखित में से कौन सा एक ‘अनुकूलन’ का उदाहरण है?
(a) जीवाश्म ईंधन के उपयोग को कम करना।
(b) बाढ़-प्रतिरोधी घरों का निर्माण।
(c) कार्बन कैप्चर प्रौद्योगिकियों का विकास।
(d) नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देना।
उत्तर: (b) बाढ़-प्रतिरोधी घरों का निर्माण।
व्याख्या: अनुकूलन जलवायु परिवर्तन के अपरिहार्य प्रभावों के अनुकूल होने से संबंधित है, जैसे बाढ़-प्रतिरोधी घरों का निर्माण। शमन उत्सर्जन को कम करने से संबंधित है।
8. हाल की देहरादून/मंडी घटनाओं के संदर्भ में, ‘मलबा’ (Debris) के प्रवेश से सबसे अधिक प्रभावित होने की संभावना क्या है?
(a) केवल जल आपूर्ति लाइनें
(b) केवल बिजली की लाइनें
(c) मंदिर, दुकानें और घर
(d) केवल सड़कें
उत्तर: (c) मंदिर, दुकानें और घर
व्याख्या: समाचार रिपोर्टों के अनुसार, बादल फटने और बाढ़ के कारण भारी मात्रा में मलबा और पानी घरों, दुकानों और मंदिरों में घुस गया, जिससे सबसे अधिक संरचनात्मक क्षति हुई।
9. निम्नलिखित में से कौन सी संस्था भारत में मौसम पूर्वानुमान के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार है?
(a) भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO)
(b) रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO)
(c) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
(d) राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया बल (NDRF)
उत्तर: (c) भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD)
व्याख्या: IMD भारत में मौसम संबंधी प्रेक्षण, पूर्वानुमान और भूकंप विज्ञान के लिए एक प्रमुख एजेंसी है।
10. पहाड़ी क्षेत्रों में, वनों की कटाई से बादल फटने जैसी घटनाओं की भेद्यता पर क्या प्रभाव पड़ सकता है?
1. भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है।
2. पानी का बहाव धीमा हो जाता है।
3. मिट्टी का क्षरण कम हो जाता है।
सही कथन चुनें:
(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3
उत्तर: (a) केवल 1
व्याख्या: वनों की कटाई से मिट्टी अपनी पकड़ खो देती है, जिससे भूस्खलन का खतरा बढ़ जाता है। यह पानी के बहाव को भी तेज करता है, न कि धीमा, और मिट्टी के क्षरण को बढ़ाता है, न कि कम करता है।
मुख्य परीक्षा (Mains)
1. “बादल फटना एक चरम मौसमी घटना है जो मुख्य रूप से ऊंचे पहाड़ी इलाकों की विशिष्ट स्थलाकृति और वायुमंडलीय परिस्थितियों के कारण होती है। हाल की घटनाओं ने जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभाव और भारत में आपदा प्रबंधन प्रणालियों की तैयारियों पर सवाल उठाए हैं। इस कथन का विश्लेषण करें और प्रभावी आपदा न्यूनीकरण रणनीतियों पर चर्चा करें।” (250 शब्द, 15 अंक)
* मुख्य बिंदु: बादल फटने के कारण (वैज्ञानिक, भौगोलिक), जलवायु परिवर्तन का प्रभाव, वर्तमान आपदा प्रबंधन की चुनौतियाँ (जैसे चेतावनी, पहुंच), और भविष्य की रणनीतियाँ (अनुकूलन, शमन, सामुदायिक भागीदारी)।
2. “भारत एक आपदा-प्रवण देश है, जिसमें हिमालयी क्षेत्र विशेष रूप से भूस्खलन, बाढ़ और बादल फटने जैसी घटनाओं के प्रति संवेदनशील है। इन खतरों से निपटने के लिए एक बहु-आयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है जिसमें प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली, मजबूत सामुदायिक भागीदारी और पारिस्थितिकीय संतुलन बनाए रखना शामिल हो। चर्चा करें कि कैसे भारत इन चुनौतियों का सामना कर सकता है।” (250 शब्द, 15 अंक)
* मुख्य बिंदु: भारत की आपदा संवेदनशीलता, हिमालयी क्षेत्र के विशिष्ट खतरे, प्रारंभिक चेतावनी के महत्व, समुदाय की भूमिका, पारिस्थितिकीय संरक्षण (वनीकरण, नदी प्रबंधन), और एक एकीकृत दृष्टिकोण की आवश्यकता।
3. “जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में चरम मौसमी घटनाओं की आवृत्ति और तीव्रता बढ़ रही है। भारत के लिए, बादल फटना और बाढ़ जैसी घटनाएं न केवल तत्काल मानवीय त्रासदी का कारण बनती हैं, बल्कि दीर्घकालिक आर्थिक और सामाजिक स्थिरता के लिए भी खतरा पैदा करती हैं। इस संदर्भ में, ‘अनुकूलन’ (Adaptation) और ‘शमन’ (Mitigation) की भूमिका को समझाएं और बताएं कि भारत इन दोनों मोर्चों पर कैसे प्रभावी ढंग से काम कर सकता है।” (250 शब्द, 15 अंक)
* मुख्य बिंदु: चरम घटनाओं में वृद्धि, भारत पर प्रभाव (मानवीय, आर्थिक, सामाजिक), अनुकूलन के उदाहरण (जैसे जल प्रबंधन, लचीला बुनियादी ढांचा), शमन के उदाहरण (जैसे नवीकरणीय ऊर्जा, उत्सर्जन नियंत्रण), और दोनों के बीच समन्वय का महत्व।
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