मृत्युदर  के निर्धारक

मृत्युक्रम अर्थ एवं निर्धारक तत्व

जैविकीय दृष्टि से मृत्यु का आशय इस शरीर की नश्वरता से है जिसका सजीव जन्म हुआ था । इसमें व्यक्ति विशेष में निहित जीवशास्त्रीय शक्ति का अन्त हो जाता है । इस तरह मृत्यु जैविकीय शक्ति की समाप्ति का सूचक है । इसमें जन्म के समय से काम कर रहे सभी अवयवों में स्पन्दन बन्द हो जाता है । मृत्यु शाश्वत सत्य है । स्वास्थ्य सेवाएँ , जीवन स्तर , औषधि विज्ञान , वैज्ञानिक प्रगति चिकित्सा विज्ञान चाहे कितनी भी उन्नति क्यों न कर लें मृत्यु को सुविधाओं के आधार पर समय में परिवर्तन तो ला सकते हैं लेकिन मृत्यु को रोक नहीं सकते । इस आधार पर कहा जा सकता है कि मृत्यु शून्य नहीं हो सकती क्योंकि जिसका जन्म हुआ है उसकी मृत्यु ध्रुब सत्य है । इस तरह मृत्युक्रम का प्रमुख कार्य जनसंख्या आकार को घटाना तथा प्रजननशीलता का प्रमुख कार्य इस कमी की क्षतिपूर्ति करना है । यह सृष्टि का सृजन , पालन एवं संहार का नियमित कार्य है इसमें कोई रुकावट संभव नहीं है ।

 मृत्यु सामाजिक परिवर्तन का वाहक होती है । जैसे ही अगली पीढ़ी के हाथ में व्यवस्था आती है वह सामाजिक ताने – बाने में अपने अनुसार आमूल – चूल परिवर्तन लाने का भरसक प्रयत्न करता है । इस तरह विकास एवं विनाश की प्रक्रिया सतत् चलती रहती है ।

मृत्युक्रम की कुछ सामान्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं

 सामान्य रूप से मृत्युक्रम और मृत्यु का प्रयोग समानार्थक रूप में किया जाता है । जनांकिकी के अन्तर्गत इसे जीवन का रहस्य या ईश्वर का नियंत्रण प्रकोप न • मानकर जनांकिकी घटना मानते है । मृत्यु सत्य और अवश्यसंभावी है । यद्यपि समय की अनिश्चितता बनी रहती है ।

मृत्यु एक अनैच्छिक घटना है । इस पर मानव का नियंत्रण नहीं रहता है । ऊँची मृत्यु दर अर्थ व्यवस्था के अविकसित अवस्था का प्रतीक होता है ।

जनसंख्या वृद्धि में मृत्युक्रम महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह करती है । किसी देश में जनसंख्या वृद्धि का कारण जन्म – दर में वृद्धि न होकर , मृत्यु दर में कमी होना भी हो सकता है ।

मृत्यु समका का जनांकिकी में महत्व होता है इसलिए इसके अध्ययन का भी महत्व है ।

मृत्युक्रम न केवल जनसंख्या के परिमाणको निर्धारित करता है वरन इसके गठन स्वरूप उसके रीति – रिवाजों को भी प्रभावित करता है । ऐसी स्थिति में उन कारकों को जानना और भी आवश्यक एवं महत्वपूर्ण हो जाता है जिनसे मृत्युक्रम या मृत्यु दर निर्धारित होती है ।

 मृत्यु के विभिन्न कारणों को निम्न भागों में बाँटकर अध्ययन कर सकते हैं  

 

मृत्युदर  के निर्धारक

 

 किसी भी देश में ऊँची मृत्युदर को प्रभावित करने वाले निम्न कारक होते हैं ।

  • बाल विवाह तथा अधिक सन्तान की इच्छा भारत में कम आयु में करने की प्रथा आज भी प्रचलित है जिसके कारण यौन सम्बन्ध भी कम आयु में स्थापित होते हैं परिणामस्वरूप बच्चों की संख्या में बढ़ोतरी हो जाती है ।

  • जनस्वास्थ्य एवं चिकित्सा सुविधाओं का अभाव ऐसी स्थिति में रोगों से बाधित व्यक्तियों का समय पर इलाज सम्भव नहीं हो पाता जिससे व्यक्तियों की असामयिक मृत्यु होना स्वाभाविक ही है ।

  • शिक्षा का निम्न स्तर भारत में आज भी शिक्षा का स्तर बहुत निम्न है जिसके कारण व्यक्तियों में जागरूकता नहीं आ पाती है और स्वास्थ्य के प्रति सचेत नहीं रहते हैं ।

  • प्राकृतिक प्रकोप भारत में ऊंची मृत्युदर का एक कारण यहाँ समय – समय पर आने वाली प्राकृतिक आपदाएँ भी है जिसमें बाढ़ , सूखा , अकाल , भूकम्प आदि है । कभी – कभी संक्रामक बीमारियाँ जैसे- मलेरिया , हैजा , चेचक भी उच्च मृत्युदर का कारण बनती है ।
  • निर्धनता भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग निर्धनता या गरीबी की रेखा से नीचे रह रहा है । जिससे व्यक्तियों की न्यूनतम आवश्यकताएं अपूर्ण रह जाती है ।

  • अन्धविश्वास तथा सामाजिक आवते भारत में आज भी बीमारियों को दैवी प्रकोप है तथा उचित चिकित्सा नहीं करा पाते हैं तथा झाड़ – फूंक को अधिक महत्त्व प्रदान करते है ।

  • यह स्पष्ट होता है कि भारत में जनसंख्या मृत्युदर में कमी आ रही है जहाँ वर्ष 1901-1911 में मृत्युदर6 प्रति हजार थी , वर्तमान में लगभग 7.2 प्रति हजार है ।

 शिशु मृत्युदर

भारत में शिशु मृत्युदर असुरक्षित प्रसव तथा चिकित्सा सुविधाओं की कभी के कारण बढ़ जाती है । वर्ष 1901 में IMR.215 प्रति हजार थी लेकिन , वर्तमान में यह मात्र 68 प्रति हजार से घटकर मात्र 47 रह गई है । यह विकसित देशों की शिशु मृत्युदर से 5 गुना अधिक है । विकसित देशो मे जैसे यू एस ए . रूस , जर्मनी , यू के आदि में मात्र 5 से 6 प्रति हजार है । शिशु मृत्युदर के सन्दर्भ में नगरीय तथा ग्रामीण क्षेत्र एक – दूसरे से विपरीत दशाएँ प्रस्तुत करते हैं ।

भारत में शिशु मृत्यु का कारण

 शिशु मृत्यु के कारणों को दो वर्गों में विभाजिसत किया जाता है

  • अन्तर्जात कारण इसके अन्तर्गत बच्चे के जन्म के समय कम वजन का होना , जन्म के बाद दम घुटना तथा जीवन के प्रारम्भिक दिनों में ही पालन – पोषण की कमी मुख्य कारण होता है ।

  • बहिर्जात कारण इसके अन्तर्गत बीमारियों को मुख्य रूप से रखा जाता है ; जैसे- निमोनिया , संक्रामक पराश्रयी रोग , दुर्घटना आदि । कभी – कभी मृत्यु के कई कारण होते हैं तथा बीमारियाँ भी एक से अधिक होती है । अतः मृत्युदर से हास की प्रवृत्ति प्रारम्भिक शताब्दी के आरम्भिक दशकों में प्रारम्भ होकर पश्चिमी देशों के समकक्ष होती जा रही है ।

 

 

 

 

 

मातृत्त्व मृत्युदर के कारण

 मातृ मृत्युदर

 ऐसे समाज जो सामाजिक और आर्थिक विकास के निम्न स्तर पर है और जिनमें स्त्रियों बार – बार गर्भधारण करती है , के लिए मातृ मृत्युदर बहुत महत्त्वपूर्ण है । इसका सम्बन्ध स्त्रियों के मृत्युदर से है जिनका कारण बार – बार है गर्भ धारण करना सामान्यतः इसे मातृ कारणों से होने वाली स्त्री मृत्यु तथा प्रति दस हजार जीवित जन्मों के अनुपात के रूप में प्रदर्शित किया जाता है । इस पाठ् मृत्युदर समाज में उपलब्ध स्वास्थ्य सम्बन्धी सुविधाओं का द्योतक है । वर्ष 1951 में जहाँ मातृ मृत्युदर काफी उंची थी , वर्तमान में यह 212 से कम है लेकिन विकसित देशों में और भी कम है । विश्व स्वास्थ्य संगठन अनुमान के अनुसार सम्पूर्ण विश्व में लगभग 5 लाख स्त्रियां गर्भावस्था और शिशु जन्म से सम्बन्धित कारणों से  है ।

मातृत्व मृत्युदर के निम्नलिखित कारण है

  • अशिक्षा यह भी मातृत्व मृत्युदर ऊंचा रखने में सहायक है । अशिक्षा के कारण सामाजिक कुरीतियों तथा अन्धविश्वास घर कर जाता है ।

  • कुपोषण कुपाषण मुख्य रूप से निर्धनता के कारण ही फैलता है । क्योंकि पौष्टिक आहार की आवश्यकता पूरी नहीं हो पाता है अन्ततः महिलाएं रोगग्रस्त होकर मृत्यु को प्राप्त हो जाती है ।

  • बाल विवाह भारत में बाल विवाह अभी भी प्रचलित है जिसके कारण आ लड़कियों माँ बन जाती है जबकि उनके शरीर का विकास बनने के योग्य नहीं होता । जिससे अस्वस्थता एवं कमजोरी के कारण मृत्युका शिकार बन जाती है ।

  • निर्धनता निर्धन होने के कारण आवश्यक चिकित्सीय सुविधाएं नहीं उपलब्ध हो पाती है जिसके कारण मातृत्व मृत्युदर में वृद्धि हो जाती है ।

  • उपरोक्त कारणों के अलावा अन्य कारण भी हैं जैसे- बार – बार सन्तानो को उत्पन्न करना तथा दो सन्तानों के बीच कम अन्तर होना , समाज में स्त्रियों की उपेक्षा आदि है

रुग्णता दर

 रुग्णता की माप बीमारी तथा बीमार व्यक्तियों की गणना के आधार पर की जाती है जिस क्षेत्र अथवा स्थान की रुणता सम्बन्धी दर निकालनी होती है , वहाँ के बीमार व्यक्तियों की संख्या ज्ञात कर ली जाती है फिर स्थान या काल विशेष की औसत जनसंख्या से भाग देकर प्राप्त भजनफल को 1000 से गुणा कर दिया जाता है । ये बीमार व्यक्ति चूँकि देश एवं समाज की आर्थिक प्रगति विकास में नकारात्मक योगदान देते हैं । अत : इस प्रकार की गणना महत्त्वपूर्ण है । जनगणना आँकड़ों में यद्यपि रुग्णता दर को प्रदर्शित नहीं किया जाता है लेकिन इस प्रकार के प्रयास किए जाने की जरूरत है ताकि उनके हित में कल्याणकारी योजनाएँ चलाई जा सके ।

कुपोषण ( Malnutrition )

बीमारियाँ ( Diseases )

 

 पर्यावरण सम्बन्धी दशाएँ ( Environmental Conditions )

 

चिकित्सकीय सुविधाओं का अभाव

सामाजिक एवं आर्थिक कारक

 

 दुर्घटनाएँ ( Accidents )

 उपर्युक्त निर्धारक तत्वों का क्रमानुसार व्याख्या आप जानना चाहेंगे । कुपोषण ( Malnutrition ) and विश्व में मृत्यु एवं अस्वस्थता का सबसे प्रमुख कारण कुपोषण है । गरीब एवं आर्थिक दृष्टि से पिछड़े देशों में कुपोषण की समस्या व्यापक स्तर से विद्यमान है । Food Agricultural Organisation की रिपोर्ट्स के अनुसार विश्व में लगभग 400 मिलियन लोग कुपोषण के शिकार हैं जिनमें 300 मिलियन लोग दक्षिणी एशिया में ही निवास करते हैं । भारत में इनकी संख्या लगभग 220 मिलियन है । अनुमान है कि 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों की होने वाली मृत्यु में लगभग 50 % मृत्यु प्रोटीन की कमी से होती है । कुपोषण प्रायः गरीबी , भोजन सम्बन्धी आदतों , सामाजिक एवं धार्मिक रूढ़ियों , अज्ञानता , दुर्व्यसन तथा प्रदूषण व मिलावटों के फलस्वरूप मनुष्यकृत रोग है

 बीमारियाँ ( Diseases )

कुपोषण से मनुष्य की रोग प्रतिरोधक शक्ति कमजोर हो जाती है फलत : जैसे ही बीमारियों के घेरे में आता है शरीर में तत्काल क्षरण तदुपरान्त मृत्यु की ओर मनुष्य जाने लगता है । सामाजिक , आर्थिक , पर्यावरण एवं जलवायु तथा संक्रामकता बीमारियों के बढ़ने के प्रमुख कारण है । संयुक्त राष्ट्र संघ की संस्था विश्व स्वास्थ्य संगठन ने लगभग एक हजार प्रकार की बीमारियों को पांच समूहों में वर्णित किया है जिसे निम्न रूपों में आप जान सकते हैं । इन्हीं के आधार पर विश्व में आंकड़े भी इकट्ठे किये जाते हैं समूह = 1 संक्रमण पराश्रयी तथा श्वास सम्बन्धी बीमारियाँ कैंसर समूह समूह – 3 परिवहन तंत्रीय बीमारियों 4- हिंसा से मृत्यु समूह समूह = 5 अन्य उदर सम्बन्धी अथवा आन्तरिक बीमारियाँ वायु विकार , मधुमेह इत्यादि ।

पर्यावरण सम्बन्धी दशाएँ ( Environmental Conditions )

पर्यावरण सम्बन्धी दशाओं के अन्तर्गत आवासीय व्यवस्था , पेय जल , वायु , मल विसर्जन , -साफ – सफाई , सीवर लाइन कूड़ा सफाई मिलावट प्रदूषण आदि को सम्मिलित किया जाता है । वर्तमान समय में जल वायु , एवं ध्वनि प्रदूषण पुरे विश्व के पर्यावरण को असंतुलित कर रहा है । विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार भारत में मात्र 35 % शहरी तथा केवल ग्रामीणों को ही सुरक्षित पयजल उपलब्ध है । शहरीकरण , औद्योगीकरण , टेनरियों की संख्या में बढोतरी , कल – कारखानों के द्वारा कचरों का जल में बहाव नदियों के जल को गंभीर रूप से प्रदूषित करता जा रहा है । शहरों का पानी बचते ऑरसैनिक जहर के कारण पेयजल योग्य नहीं रह गया है । संक्रामक रोगों का और विस्तार हुआ है । आवासीय कालोनियों में गन्दी दशाओं के कारण ही टीकाली खासी एवं मलेरिया रोगियों की संख्या में तेजी से वृद्धि

दुर्घटनाएँ ( Accitients )

 

 बढती दुर्घटनाओं के कारण मृत्यु की संख्या में तेजी से वृद्धि हुई है । ये दुर्घटनाएँ मानव जनित या प्रकृति जनित दोनों हो सकती है । ट्रेनों का लड़ना , हवाई जहाजों का क्रैश होना , पहाड़ों पर बादल फटना , फोर लेन पर गाड़ियों की टक्कर , आंतकवादी घटनाएँ , भीड़ भाड़ के इलाके में बम विस्फोट , युद्ध या लड़ाईयाँ , घात लगाकर सैनिकों सिपाहियों को इत करना , सूखा , बाढ़ , अकाल , आपदा , आगजनी एवं सूनामी प्रकृति जन्य एवं मानव जन्य दुर्घटनाओं के मिश्रित उदाहरण हैं ।

चिकित्सीय सुविधाओं की कमी विज्ञान , प्रौद्योगिकी एवं चिकित्सा जगत् में क्रान्ति के बावजूद आज भी निर्धन एवं अविकसित देशों में चिकित्सकीय सुविधाओं की कमी है । जो कुछ भी सुविधाएँ हैं वह समाज के उच्च वर्ग को सुलभ है । गरीबों को यह सुविधा सहज सुलभ नहीं है । जहाँ अधिक जनसंख्या निवास करती है अभी भी गाँवों में बीमारियों , कुपोषण , स्वास्थ्य सुविधाओं का दबाव है ।

सामाजिक एवं आर्थिक कारक ( Socio – Economic Factors )

 

किसी भी देश व समाज में व्याप्त सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था मृत्यु की सीधे प्रभावित करते है । यथा गरीबी , अशिक्षा , बेरोजगारी , ॠऋणग्रस्तता , पर्दा प्रथा , विवाह पद्धति , ऑनर किलिंग , प्रसव पद्धति , शिशु पालन , धार्मिक तथा सामाजिक रीति – रिवाज प्रमुख कारक हैं जिनके कारण मृत्यु दर प्रभावित होती है व जनसंख्या वृद्धि दर प्रभावित होती है ।

 शिशु मृत्यु दर

भारत में शिशु मृत्यु दर ऊँचा होने के प्रमुख कारण निम्न हैं बाल विवाह । गर्भावस्था में माँ के लिए पौष्टिक आहार का अभाव । अकुशल दाइयों द्वारा प्रसव आधुनिक प्रसूति सुविधाओं की कमी एवं अप्रचलन । मातृत्व अज्ञानता । रूढ़िवादिता एवं अन्ध विश्वास ।  अतिशय दरिद्रता । जन्म अन्तराल कम होना व बार – बार प्रसव से स्वास्थ्य में गिरावट पालन – पोषण का दोषपूर्ण ढंग

 मातृ मृत्यु निर्धन एवं अविकसित देशों में न केवल शिशु मृत्यु दर ऊँची है वरन मातृ मृत्यु दर भी ऊँची है । इसके अन्तर्गत प्रसव अथवा प्रजनन से सम्बन्धित कारकों से होने वाली मृत्यु को सम्मिलित किया जाता है । विश्व में अधिकांश विकसित देशों में प्रति हजार जीवित प्रसवों पर 0-5 मातृ मृत्यु दर है । भारत में आजादी के पहले दर बहुत ऊँची थी । 1933 में 24.5 , 1946 में 20 थी । 1970 में पर्याप्त गिरावट हुई । मातृ मृत्युदर ऊँची होने के कारण निम्नवत् आप मान सकते हैं । यथा –

बाल विवाह ( Early Marriage )

 

शारीरिक थकावट का दबाव प्रसव व्यवस्था असुविधाजनक एवं दोषपूर्ण होना । चिकित्सा एवं सुविधाओं का अभाव । सामाजिक कुरीतियों निरक्षरता ।

कपोषण । निर्धनता

 इस प्रकार मृत्युक्रम के विभिन्न निर्धारक तत्वों का अध्ययन कर अब आप जान चुके हैं कि कुपोषण , बीमारियाँ , पर्यावरण सम्बन्धी दशाएँ , दुर्घटनाएँ , चिकित्सा सुविधाओं की कमी , मृत्यु दर का निर्धारण कितना करते हैं और आपस में ये कारण कितना अन्तर्निर्भर करते हैं 

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