माल्थस का जनसंख्या सम्बन्धी सिद्धान्त
( Population Theory of Malthus )
1798 में ‘ एन ऐसे ऑन प्रिन्सीपल्स ऑफ पापुलेशन ‘ नामक पुस्तक में जनसंख्या सम्बन्धी अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन किया । माल्थस एक पादरी थे और उन्होंने यूरोप के कई देशों की जनसंख्या वृद्धि का गहन अध्ययन किया माल्थस के सिद्धान्त के तीन आधार हैं :
( I ) जनसंख्या में वृद्धि दर – आपका मत था कि जनसंख्या की वृद्धि ज्यामितिक क्रम से होती है अर्थात् उसका क्रम 1 , 2 , 4 , 8 , 16 , 32 , 64 के रूप में होता है । इस प्रकार से यदि कोई बाधा न हो तो किसी भी देश की जनसंख्या 25 वर्षों में दुगुनी हो जाती है ।
खाय – सामग्री के उत्पादन की दर माल्थस का मत है कि जनसंख्या वृद्धि दर की तुलना में खाद्य सामग्री का उत्पादन बहुत धीमा है । खाद्य सामग्री की वृद्धि गणितीय अनुपात अर्थात् 1 , 2 , 3 , 4 , 5 , 6 , 7 , आदि के क्रम में होती है । इस प्रकार जितनी अवधि में एक देश की जनसंख्या 16 गुनी बढ़ेगी , उसी अवधि में खाद्य सामग्री का उत्पादन केवल 5 गुना ही तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या देश में भुखमरी , बेकारी , संघर्ष , युद्ध , अपराध एवं अनेक अन्य बुराइयों को जन्म देती है ।
( 3 ) जनसंख्या नियन्त्रण – माल्थस के अनुसार बढ़ती हुई जनसंख्या को नियन्त्रित करने के दो उपाय हैं –
( क ) नैसर्गिक प्रतिबन्ध ( Positive Check ) ,
( ख ) निवारक या निरोधक प्रतिबन्ध ( Preventive Check ) |
( क ) नैसर्गिक प्रतिबन्ध – इस प्रकार का प्रतिबन्ध प्रकृति द्वारा लगाया जाता है । इस प्रकार के प्रतिबन्ध में मृत्यु दर बढ़ जाती है । जब किसी देश में खाद्य सामग्री की तुलना में जनसंख्या अत्यधिक बढ़ जाती है तो प्रकृति उसे रोकने के लिए बाढ़ , भूकम्प , प्लेग , महामारी , अकाल , अनावृष्टि , भुखमरी , प्राकृतिक प्रकोप एवं युद्ध आदि लाती है जिससे अतिरिक्त जनसंख्या नष्ट हो जाती है और वांछित मात्रा में जनसंख्या बनी रहती है ।
इसमें प्रति आते हैं जो बढ़ती जनसंख्याकी के लिए अपने पर लागू करता है । इसमें कृत्रिम आ जन्म – दर कम होती है । निरीक्षक प्रतिवन्ध है आमदन सन्तति – निरोध , परिवार नियोजन , ब्रह्मचर्य एवं कृि का प्रयोग , आदि मान्य है कि यदि लोग प्रतिबन्ध लगाकर बढ़तीनो रोकने का प्रयास करते हैं
थामस राबर्ट माल्थस का जन्म सन् 1786 ई ० में इंग्लैण्ड में हुआ था । ये अर्थशास्त्र के प्रतिस्थापक एडम स्मिथ के अनुयायी और परम्परावादी अर्थशास्त्र के लोक विश्रुत विद्वान अर्थशास्त्री थे । इनके पिता का नाम बिनाइल माल्थस था जो सम्पन्न घराने के थे । माल्थस की शिक्षा – दीक्षा केम्ब्रिज विश्वविद्यालय में हुई शिक्षा प्राप्ति के अनन्तर ये स्थानीय गिरजाघर में पादरी नियुक्त हुए । यहीं से उन्होंने विश्व को जनसंख्या वृद्धि के भयंकर परिणामों से अवगत कराने वाला लेख 1798 में लिखा An essay on the Principle of Population as it effects the future improvement of the society with remarks on the speculation of Mr. Godwin …. and other writers जिसमें आधार स्पष्ट किया खाद्यान्नो की तुलना में जनसंख्या तेजी से बढ़ रही है जिसके परिणाम भयंकर होंगे । विचारों में निराशावादी इस्टिकोण के साथ माल्टस को आलोचना झेलनी पड़ी । अपने लेखा के समर्थन में उन्हें कई बार यूरोप के दोशों से आंकड़े एकत्र करने के लिए जाना पड़ा । जिसके आधार पर अपने निबन्ध का परिमार्जित संशोधित संस्करण 1803 ई ० में प्रकाशित कराया । जनसंख्या सिद्धान्त से जुड़े उनके छ निबन्ध प्रकाशित हुए । माल्भस 1807 ई ० में
एक कालेज में इतिहास तथा राजनीतिशास्त्र के प्राध्यापक थे । सन् 1834 में उनकी मृत्यु हो गयी ।
प्रेरक तत्व ( Influencing Factors ) यदि माल्थस से सम्बन्धित ग्रन्थों एवं लेखों का अध्ययन करें तो आपको स्पष्ट हो जायेगा कि माल्यस के विचारों पर तत्कालीन आर्थिक , सामाजिक , राजनीतिक परिस्थितियों तथा उनके समकालीन एवं पूर्ववर्ती विचारकों के विचारों का प्रभाव पड़ा था । आइये , देखें कि माल्थस को अपने जनसंख्या सम्बन्धी विचारों को लिखने में जिन कारकों ने उन्हें प्रभावित कर प्रेरित किया है वे कौन – कौन हैं एवं उनका स्वरूप कैसा है ?
इंग्लैण्ड की आर्थिक स्थिति ( Economic condition of England )
जिस समय माल्थस के जनसंख्या सम्बन्धी विचार परिपक्च हो रहे थे , वह एक ऐसा समय था जिसमें इंग्लैण्ड की आर्थिक स्थिति दिन – प्रतिदिन खराब होती जा रही थी । इंग्लैण्ड एवं निकटवर्ती स्थानों में अकाल , बीमारियाँ , गरीबी , गन्दगी व बेरोजगारी जैसे भयावह संकट चतुर्दिक व्याप्त थे । इंग्लैण्ड की कृषि अर्थव्यवस्था जो 18 वीं शती के पूर्वार्द्ध में उन्नत अवस्था में थे उसकी स्थिति उत्तरार्द्ध में दिनोदिन बिगड़ती जा रही थी । एक और जहाँ जनसंख्या के बढ़ने से समाज पर अतिरिक्त दबाव बढ़ रहा था वहीं कृषि की बिगड़ती हुई दशा ने अनेक संकटों को जन्म देकर सामाजिक जीवन को परेशानियों से भर दिया था । आयरलैण्ड में भयानक अकाल पड़ा था । भूमि पर जनसंख्या का दबाव बढ़ता जा रहा था । लगातार कई वर्षों से फसलों को क्षति पहुंच रही थी । युद्ध की विभीषिका के कारण आयात बन्द होने से अनाज के मूल्यों में वृद्धि अधिक हो गयी थी । भोजन की कमी के कारण इंग्लैण्ड ने अनाज नियम ( corn laws ) पारित किये थे । फिर भी शासन की अकर्मण्यता के कारण स्थिति संभालने में अपने को विवश पा रहा था । थॉमस ग्रीन ने इंग्लैण्ड की इस स्थिति से इस तरह वर्णित किया है । ” कुशासन के अभिशाप के साथ – साथ दरिद्रता का अभिशाप भी जुड़ गया था और यह दरिद्रता देश की जनसंख्या की तीव्र वृद्धि के साथ बढ़ती गई , जिसके फलस्वरूप दुर्भिक्ष ने देशों को एक नरक कुण्ड में परिवर्तित कर दिया । माल्थस ने अनेक देशों का भ्रमण किया तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि जनसंख्या के लिए पर्याप्त मात्रा में खाद्य सामग्री का उत्पादन नहीं हो पा रहा है । इस बिगड़ती हुई स्थिति ने माल्थस का विवश किया वह बढ़ती हुई जनसंख्या के कारण एवं निवारण पर चिन्तन करे ।
औद्योगिक क्रान्ति ( Industrial Revolution )
मात्यस का युग औद्योगिक क्रान्ति का युग था । जिस समय माल्थस अपने ज्ञानचक्षु को खोल रहा था उस समय औद्योगिक क्रान्ति का सूत्रपात हो चुका था । कृषि क्षेत्र की बिगड़ती हुई दशा और उद्योगों में होने वाली वृद्धि ने आर्थिक असन्तुलन और अवस्था को और विषमपूर्ण स्थिति में कर दिया था । औद्योगिक क्रान्ति और पूंजीवादी व्यवस्था के समस्त दोष समाज में उभर कर सामने आ गये थे । पूंजीपति वर्ग श्रमिकों का शोषण कर रहा था । औद्योगिक विकास ने पूंजीपतियों धनिक वर्गों तथा समाज के शक्तिशाली व्यक्तियों के प्रभुत्व को बढ़ा दिया लेकिन दूसरी और निर्धन एवं श्रमिकों में बेरोजगारी , बीमारी धन के असमान वितरण एवं निर्धनता की समस्या को घटाने के स्थान पर और बढ़ा दिया । इन स्थितियों का माल्थस पर गहरा प्रभाव पड़ा । माल्थस ने अनुभव किया कि देश की जनता जनसंख्या और खाद्य सामग्री के असंतुलन से पीड़ित है । आद्योगिक क्रान्ति उसका निराकरण करने के स्थान पर गरीबी एवं अमीरी की खाई को गहरी और चौडी करती जा रही है । उन सब समस्याओं का चिन्तन एवं निराकरण माल्यर ने अपने लेखों में किया ।
वणिकवादी और प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों के विचार 18 वीं शताब्दी के अनेक वणिकवादी अर्थशास्त्रियों ने बढ़ती हुई जनसंख्या को आर्थिक , राजनीतिक व सैनिक दृष्टिकोण से लाभकारी मानते हुए उचित ठहराया था । केन्टिलन स्टुअर्ट तथा विलियम पेट्टी जैसे विद्वानों ने जनसंख्या वृद्धि को बिना उसने दुष्परिणामों पर विचार किये लाभकारी बताया था । इसी तरह प्रकृतिवादी अर्थशास्त्रियों ने जनसंख्या की स्वाभाविक गति पर अंकुश लगाना अनुचित और आविष्कार माना । प्रो ० माल्थस का विचार इन आशावादी विचारकों के प्रतिक्रिया के फलस्वरूप थी ।
विलियम गाडविन प्रेरक माल्थस के विचारों को जिन विद्वानों ने सबसे अधिक प्रभावित किया है , उनमें विलियम गाडविन प्रमुख हैं । इस सत्य को स्वयं माल्थस ने स्वीकार किया है । गाडविन की पुस्तक Enquiry concerning political justice and its influence on morals and happiness ‘ सन् 1793 में प्रकाशित हुई । इस पुस्तक में गाडविन ने उस समय के मनुष्यों के समस्त कष्टों एवं दुःखों का मूल कारण शासन को माना । वह बढ़ती हुई जनसंख्या को कष्ट का कारण नहीं मानता था क्योंकि उसका मत था कि समाज स्वयं ही जनसंख्या को उस सीमा तक रखता है , जिस सीमा तक उसके पास साधन होते हैं । बढ़ती हुई जनसंख्या मानव जाति की प्रगति का सूचक है । वह स्वयं स्वीकार करते हैं कि बढ़ती हुई जनसंख्या से लाभ की ही संभावना है हानि की नहीं । फ्रांस के विचारक काण्डरसेट ( condercet ) ने भी बढ़ती हुई जनसंख्या को किसी भी दशा में हानिकारक न मानते हुए गाडविन के विचारों का प्रबल समर्थन किया । वास्तव में गाडविन का उद्देश्य पूर्ण समानता और अराजकतात्मक साम्यवाद की स्थापना करना था । इसी कारण व्यक्तिगत सम्पत्ति का विरोध करता था । गाडविन के विचार वास्तव में काल्पनिक आदर्श लोक से सम्बन्धित है । माल्थस ने गाडदिन के इन विभिन्न काल्पनिक एवं आशावादी विचारों का विरोध किया और अपने विचारों में बताया कि गाडविन के विचार काल्पनिक है । जनसंख्या और खाद्य सामग्री में संतुलन स्थगित करने का कार्य प्रकृति का है ।
अन्य समकालीन विचारकों का प्रभाव जिन समकालीन विचारकों का प्रभाव माल्थस पर पड़ा है उनमें सर मैथ्यू हैले , डेविड ह्यूम , जोसेफ टाउन साइण्ड , सरबाल्टर रेले तथा राबर्ट बेलास प्रमुख हैं । इन विचारकों का मत था कि प्रायः जनसंख्या में वृद्धि मृत्यु दर से अधिक होती है । अतः जनसंख्या के इस अतिरेक को नियंत्रित न किया गया तो उसमें बढ़ती वृद्धि अनेकानेक कष्टों का जन्म देगी । ” माल्थस के जनसंख्या सम्बन्धी सिद्धान्त पर इन विचारकों का भी बहुत प्रभाव पड़ा है । माल्थस के लिए उपर्युक्त तात्कालिक परिस्थितिया और जनसंख्या सम्बन्धी आशावादी विचार चुनौतीपूर्ण प्रभावित हुए । इन्हीं चुनौतियों ने माल्थस को लेख लिखने की प्रेरणा दीं । यद्यपि अनेक आशावादी विचारक माल्थस के जनसंख्या सम्बन्धी विचारों को व्यक्तिगत निरीक्षण और निराशावादी कहकर उपेक्षित करते हैं परन्तु हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि माल्थस का निबन्ध जनसंख्या विज्ञान का आरम्भिक तथा आधारभूत बिन्दु है ।
कुछ विद्वान माल्थस के निबंध को एडम स्मिथ का उत्तर भी कहा है वह इसलिए कि एडम स्मिथ ने अपनी पुस्तक का नाम An Enquiry into the nature and causes of wealth of jnations ” रखा था । वस्तुतः माल्थस की पुस्तक एडम स्मिथ के विचारों की चुनौती थी ।
थामस राईट माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त जानसंख्या में वृद्धि तथा खाद्यान्न आपूर्ति में मध्य सम्बन्ध की व्याख्या करता है । माल्थस ने 1798 मे जनसंख्या के सिद्धान्त पर एक लेख ( An Essay on the Principle of Population , 1798 ) में अपने जनसंख्या सम्बन्धी सिद्धान्त का प्रतिपादन किया । उन्होंने यह सिद्धान्त अनेक तात्कालिक परिस्थितियों , प्रचलित आशावादी विचारों , अपने यूरोपीय देशों के भ्रमण के दौरान विभिन्न देशों की जनसंख्या का विकास का गहन अध्ययन कर प्रतिपादित किया था । इस सिद्धान्त का कथन है कि , जनसंख्या में जीवन निर्वाह साधनों की अपेक्षा तीव्र गति से बढ़ने की प्रवृत्ति होती है । ” ( Population tends to out run susbsistence ) । इस प्रकार यह सिद्धान्त स्पष्ट करता है कि खाद्यपूर्ति की अपेक्षा जनसंख्या में अधिक तेजी से वृद्धि होती है और यदि इस जनसंख्या वृद्धि पर रोक न लगाई गई तो परिणामस्वरूप दुराचार या विपत्ति ( vice or misery ) उत्पन्न हो जाती है । इस प्रकार अपने निबन्ध में आशावादी विचारों को ध्वस्त कर दिया और एक कष्ट पूर्ण समाज की कल्पना की ।
मान्यताएं ( Assumptions )
माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त निम्नलिखित आधारतभूत मान्यताओं पर आधारित है
स्त्री एवं पुरुष के बीच काम भावना स्वाभाविक है । इस प्रकार पुरुष की प्रजनन शक्ति ( fecundity ) तथा सन्तान उत्पत्ति की इच्छा यथा स्थिर रहती है ।
यह शिक्षा तथा सभ्यता की प्रगति से अप्रभावित है । को जीवित रहने के लिए भोजन अनिवार्य है तथा कृषि में उत्पत्ति ह्रास नियम लागू होता है ।
. आर्थिक सम्पन्नता में वृद्धि के साथ – साथ मनुष्य में सन्तानोत्पादन की इच्छा भी तीव्र रहती है तथा जीवन स्तर में कमी होने पर वह घटती है । अध्ययन की सुविधा के दृष्टिकोण से हम माल्थस के सिद्धान्त को निम्नलिखित शीर्षकों के अन्तर्गत रखकर अध्ययन कर सकते हैं ।
जनसंख्या ज्यामिती अनुपात से बढ़ती है
माल्थस का कथन है कि ” अनियंत्रित जनसंख्या ज्यामितिक- दर ( Geometrical ratio ) से बढ़ती है । ” इनका विचार है कि स्त्रियों और पुरुषों के मध्य सदा यौन आकर्षण रहा है और रहेगा । यौन इच्छा स्वाभाविक और अत्यन्त प्रबल है फलतः सन्तान उत्पत्ति भी स्वाभाविक परिणाम है । यदि जनसंख्या को नियंत्रित नहीं किया गया तो वह प्रत्येक 25 वर्ष में हो जायेगी । जैसा कि उन्होंने स्वयं लिखा है- अगर जनसंख्या को रोका न गया ( संयम दुगुनी द्वारा ) तो जनसंख्या प्रत्येक 25 वर्ष में दुगुने हो जाने की प्रवृत्ति रखती है । ” जनसंख्या के ज्यामितिक अनुपात को इस प्रकार दर्शाया जा सकता है 2.4,8,16,32,64 , 128 256 आदि इसी क्रम से बढ़ती है । जनसंख्या वृद्धि के इस अनुपात को गुणोत्तर वृद्धि भी कह सकते हैं । माल्थस ने अपना यह निष्कर्ष कई योरोपीय देशों के भ्रमण के दौरान जनसंख्या वृद्धि के अध्ययन के आधार पर दिया था । आपके अनुसार ” जीविका प्रदान करने वाली भूमि की शक्ति की तुलना में जनसंख्या वृद्धि की शक्ति अनन्त है । “
खाद्य सामग्री अंकगणितीय अनुपात से बढ़ती है
” मानव के जीवन और अस्तित्व के लिए भोजन आवश्यक है लेकिन जिस दर से जनसंख्या में वृद्धि होती है उस दर से खाद्य सामग्री में वृद्धि नहीं होती है । खाद्यसामग्री में तो समानान्तर अर्थात् गणितीय अनुपात में ही वृद्धि होती है क्योंकि कृषि उपज में ‘ उत्पत्ति – हास नियम लागू होता है अर्थात् जैसे – जैसे खेत में फसल उगाने का क्रम बढ़ता जाता है वैसे – वैसे क्रमानुसार कृषि उत्पादन घटता जाता है । खाद्य सामग्री के गणितीय अनुपात को इस प्रकार रखा जा सकता है 1,2,3,4,5,6,7,8 , 9 आदि क्रम से । माल्थस के शब्दों # में यदि अन्य बातें समान रहें , तो . प्रकृति द्वारा मानवीय आहार धीरे – धीरे अंकगणितीय अनुपात में बढ़ता है और मानव स्वयं तेजी से ज्योमितीय अनुपात में बढ़ता है । रेखा चित्र में खाद्यान्न सामग्री में होने वाली अगणितीय दर से वृद्धि प्रदर्शित है ।
जनसंख्या एवं खाद्य सामग्री में असंतुलन
यद्यपि जनसंख्या और खाद्य सामग्री दोनों में वृद्धि होती है । पर वृद्धि दर में अन्तर होने के कारण दोनों के मध्य असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न हो जाती है । चूँकि जनसंख्या में वृद्धि ज्यामितीय दर से होती है अतः इसकी तुलना में गणितीय दर से बढ़ने वाली खाद्य सामग्री पीछे रह जाती है । उदाहरण के लिए जहाँ 5 वर्षों में खाद्य सामग्री अर्थात् 5 गुनी वृद्धि होती है , वहीं जनसंख्या में इतनी ही अवधि में ज्यामितिक अनुपात से 1 , 2 , 4 , 8 18 अर्थात 16 गुनी वृद्धि हो जाती है 5 और 16 ( 16-5-11 ) के मध्य का अन्तर खाद्य और जनसंख्या के असंतुलन को प्रदर्शित करता है । माल्थस का कथन था कि यह असंतुलन भयंकर कष्टदायी परिणामों को उत्पन्न करता है । खाद्य सामग्री और जीवन स्तर में वृद्धि के साथ जनसंख्या बढ़ती है । उसने स्वयं लिखा है , ” Prosperity was not to depend on population but population was to depend on prosperity . “
जनसंख्या पर प्रतिबन्ध या अवरोध
थामस राबर्ट माल्थ्य ने जनसंख्या नियंत्रण के दो प्रकार से प्रतिबन्धों का उल्लेख किया है
नैसर्गिक या प्राकृतिक अवरोध ( Positive or Natural checks )
व . प्रतिबन्धात्मक अवसेव ( Preventive checks )
.1 नैसर्गिक या प्राकृतिक अवरोध ( Positive or Natural checks )
ये वे प्रतिबन्ध है जो प्रकृति की ओर से लगाए जाते हैं । इसके द्वारा मृत्यु दर बढ़ जाती है फलतः खाद्य सामग्री से अतिरिक्त जनसंख्या भार कम होकर उसके बराबर हो जाती है । इन अवरोधों में युद्ध , बीमारी , अकाल , भूकम्प , अतिवृष्टि , बाढ़ आदि अनेक प्राकृतिक प्रकोपों के साथ माल्थस ने खराब कार्य , बच्चों के असन्तोषजनक पालन – पोषण एवं नागरिक जीवन की प्रतिकूल परिस्थितियों आदि को भी सम्मिलित किया है । माल्थस के अनुसार- प्रकृति की मेज सीमित अतिथियों के लिए ही लगी है , इसलिए जो बिना निमंत्रण के आयेगा उसे भूखों मरना पड़ेगा । ” उसने प्राकृतिक अवरोध को अत्यन्त दुःखद और कष्टमय कहा है । यद्यपि इससे मृत्यु दर बढ़ने के कारण जनसंख्या घटकर खाद्यान्न पूर्ति के संतुलित अनुपात में आ जाती है । पर यह संतुलन स्थायी न होकर अल्पकालिक ही होता है । कुछ समय बाद फिर जनसंख्या बढ़ती है और संतुलन भंग होता है , पुनः प्रकृति द्वारा संतुलित जनसंख्या हो जाती है । यह स्थिति एक चक्र की भांति चलती रहती है जिसे कुछ विद्वानों ने माल्थूसियन चक्र कहकर सम्बोधित किया है । इस स्थिति को चित्र में प्रदर्शित किया गया है । माल्थस के अनुसर , ” आजीविका की कठिनाई के कारण जनसंख्या वृद्धि पर एक शक्ति एवं निरन्तर नियंत्रण बना रहता है । ” चित्र जनसंख्या में संतुलन अति जनसंख्या नैसर्गिक अवरोध नसर्गिक अवरोध अति जनसंख्या ( i ) यद्यपि ये प्राकृतिक शक्तियों जनसंख्या पर नियन्त्रण तो लगाती हैं पर ये अतिकष्ट कर ( Miseries ) हैं , इनसे बचना चाहिए । ( ii ) माल्थस का मत था कि किसी देश में नैसर्गिक अवरोध क्रियाशील हो जाते हैं , तो यह इस बात का परिचायक है कि उस देश में खाद्य पूर्ति की तुलना में जनसंख्या अधिक है अर्थात् जनाधिक्य की स्थिति मौजूद है ।
प्रतिबन्धात्मक अवरोध ( Preventive checks ) –
माल्थस ने जनसंख्या नियन्त्रण का दूसरा प्रतिबन्ध मानवीय प्रयत्न को माना है । चूँकि प्राकृतिक प्रतिबन्ध मानव के लिए अत्यन्त दुःखुद एवं कष्टकर है अतः मनुष्य को प्रतिबन्धक अवरोधों से जनसंख्या पर नियन्त्रण बनाये रखना चाहिए । इन अवरोधों को भी दो भागों में बाँटा जा सकता है– “
( i ) नैतिक प्रतिबन्ध- वास्तव में नैतिक प्रतिबन्ध को ही माल्थस ने प्रतिबन्धक अवरोध के रूप में मान्यता दी है । इनमें से सब प्रतिबन्ध ( उपाय ) सम्मिलित हैं । जो मनुष्य अपने विवेक से जन्मदर को रोकने के लिए करता है जैसे – सयम , ब्रह्मचर्य व विलम्ब विवाह आदि ।
माल्थस ने केवल नैतिक प्रतिबन्धों को ही उचित माना है तथा इन्हें ही अपनाकर जन्मदर पर नियंत्रण रखने की सलाह दी है । उसके अनुसार नैतिक प्रतिबन्ध ( ब्रह्मचर्य ) ही एक ऐसा तरीका है जिससे मानव जाति प्राकृतिक अवरोधों की मार ( कष्ट ) से बच सकती है । माल्थस ने पुरुषों को अधिक कामुक मानते हुए महिलाओं से अपील की थी कि उन्हें पुरूषों के बहकावे में नहीं आना चाहिए , बल्कि संयम के साथ 28 वर्ष तक क्वारी रहना चाहिए ।
( ii ) कृत्रिम साधनों से अवरोध- इनके अन्तर्गत जन्म नियन्त्रण के उन समस्त मानव निर्मित साधनों को सम्मिलित किया जाता है , जिन्हें आज संतति निग्रह के साधन कहा जाता है । पर माल्थस ने इन्हें अधर्म ( Vices ) पाप ( Sins ) माना है । वह इनके प्रयोग का घोर विरोधी था । इस प्रकार एक पादरी होने के नाते माल्थस ने केवल नैतिक प्रतिबन्धों को अपनाकर जनसंख्या ( जन्म दर ) को कम करने का सुझाव दिया है । उसने सुझाव रखा था कि जनसंख्या बढ़ाने में लोगों को हतोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे विवेक से काम लें , भविष्य पर बिना गम्भीरता से विचार के विवाह के लिए आतुर न हों । अब आप माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त से परिचित हो चुके हैं तो इनके सिद्धान्त को संक्षेप में निम्न प्रकार भी रखकर और परिचत हो सकते हैं माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त जनसंख्या में ज्यामितीय दर से वृद्धि वृद्धि 1;2:4;8 ;16 ;32;64; 128 ; 256 खाद्यान्न में अंकगणितीय दर में 1 : 2 : 3 : 4 ;5 ;6 ; 7 : 8 : 9 फलत जनसंख्या और खाद्यान्न पूर्ति में असन्तुलन इसे दूर करने का उपाय , जनसंख्या निरोध के दो नैसर्गिक या प्राकृतिक अनुरोध प्रतिबन्धक ( कृत्रिम अवरोध युद्ध बीमारियों अकाल , बाद भुकम्प आदि नैतिक प्रतिबन्ध संयम , काचर्य विलम्ब सम्पति निग्रह के कृत्रिम साधन ये कष्टकारक है इन्हीं द्वारा जनसंख्या का उत माल्थस इन्हें पाप मानता है
माल्थस के सिद्धान्त की मार्शल द्वारा व्याख्या
प्रो ० मार्शल की धारणा थी कि जनसंख्या सम्बन्धी विचारों की विधिवत् व्याख्या तथा अध्ययन का प्रारम्भिक श्रेय माल्थस को ही है । उनके पश्चात ही इस विषय का क्रमबद्ध अध्ययन प्रारंभ हुआ ।
प्रो ० मार्शल ने अपनी पुस्तक ‘ प्रिंसिपल्स ऑफ इकोनामिक्स ( Principles of Economics ) में माल्थस के जनसंख्या के सिद्धान्त की व्याख्या करते हुए लिखा है कि माल्थस का कथन है कि श्रम की माँग उपलब्ध खाद्यान्न की मात्रा द्वारा निर्धारित होती है । चूंकि कृषि में उत्पत्ति इास नियम क्रियाशील होता फलतः ‘ श्रम की माँग में होने वाली वृद्धि श्रम की पूर्ति से कम रहती है । श्रम की माँग के विचार को स्पष्ट करते हुए मार्शल कहते हैं कि प्रकृति मनुष्य को उसके कार्य की वृद्धि में उत्पादन प्रदान करती है जो कि जनसंख्या के लिए माँग है । जनसंख्या में तेजी से वृद्धि होने पर भी श्रम की माँग में आनुपातिक वृद्धि नहीं होगी । ” इनका मानना है कि यदि जीवन निर्वाह के साधन सीमित न होते और महामारी , बीमारी , युद्ध , शिशुओं का बध और संयम द्वारा जनसंख्या को नियंत्रित न किया जाता , तो जनसंख्या में बहुत तेजी से वृद्धि होती क्योंकि मनुष्य अधिक उपजाऊ रहा है । इस प्रकार प्रो ० मार्शल भी यह स्वीकार करते हैं कि जनसंख्या वृद्धि का भूतकालीन इतिहास भविष्य में भी अपने आपको दोहराता रहेगा और निर्धनता , भुखमरी तथा अन्य अत्यन्त कष्टदायक प्राकृतिक अवरोधों द्वारा जनसंख्या नियंत्रित होगी यदि उसे संयम , विलम्ब – विवाह जैसे ऐच्छिक एवं नैतिक साधनों द्वारा नहीं रोका गया ।
माल्थस के सिद्धान्त की आलोचना
( Criticism of Malthusian theory )
अब तक के विश्लेषण से आप माल्थस के पूरे सिद्धान्त से परिचित हो गये होंगे । यहाँ माल्थस के सिद्धान्त की आलोचनात्मक मूल्यांकन प्रस्तुत है जिसे आप और समझ सकते हैं । माल्थस के जनसंख्या सिद्धान्त की आलोचनात्मक समीक्षा ( Critical Analysis ( Oppenheim ) , निकोल्सन of Malthusian Theory of Population ) माल्थस का विश्वविख्यात निबन्ध प्रकाशित होते ही लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित किया । एक तरफ जहां कोसा ( Cossa ) , मार्शल ( Marshall ) , ऐली ( Ely ) , टॉसिंग ( Taussig ) , कार्बर ( Carvar ) , पैटन ( Patten ) , प्राइस ( Price ) , वुल्फ ( Wolf ) , क्लार्क ( Clark ) , तथा वाकर ( Walker ) आदि विद्वानों तथा विचारकों का उन्हें समर्थन प्राप्त हुआ वहीं दूसरी तरफ गाडविन ( Godwin ) , मोम्बार्ट ( Mombart ) , ओपेनहीम ( Nikolson ) , ग्रे ( Gray ) तथा कैनन ( Cannon ) , आदि की कटु आलोचनाओं का शिकार होना पड़ा । गाडविन ने तो निबन्ध के प्रकाशित होने के तत्काल ही प्रत्युत्तर में कहा , ” यह काला भयानक राक्षस मानव जाति की आशाओं का गला घोंटने के लिए सदैव तत्पर है । इस प्रकार उनके सिद्धान्त को लेकर उग्र विवाद उठ खड़ा हुआ । लोगों ने उसे बुरा – भला कहा । प्रो 0 अलेक्जेण्डर ग्रे ने तो यहां तक लिख डाला कि , ” यह स्पष्ट रूप से कहा जा सकता है कि अभी तक किसी भी सम्मानित नागरिक की इतनी बदनामी तथा आलोचना नहीं हुई जितनी कि माल्थस की प्रथम श्रेणी के लेखकों में से किसी के विचारों का इतना अधिक खण्डन नहीं किया गया । इससे यह अनुमान लगाया जा सकता है कि माल्थस के विचार तत्कालीन परिस्थितियों में व्याप्त सामाजिक एवं धार्मिक मान्यताओं के प्रतिकूल थे । निकोल्सन ने लिखा कि जिस प्रकार डार्विन ने मानव जाति के उद्गम सम्बन्धी प्राचीन धार्मिक विश्वासों को तोड़ दिया था , उसी प्रकार माल्थस ने मानव जाति के भविष्य के स्वरूप सम्बन्धी विश्वासों को पूर्णतया बदल दिया है । ” बहुत इसमें सन्देह नहीं कि तत्कालीन विचारधारा में माल्थस ने एक कान्तिकारी परिवर्तन उपस्थित किया फिर भी इतनी कटु आलोचना के भागी नहीं थे । जिस व्यक्ति ने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न समस्याओं के प्रति इतना संवेदनशील होकर विश्व को सजग किया उसे मानव जाति का शत्रु कहना कहां तक न्यायोचित होगा इस सन्दर्भ में जीड तथा रिस्ट ने लिखा है कि माल्थस ने ठीक उसी प्रकार की सलाह दी है जिस प्रकार एक हितैषी तथा स्पष्टवादी चाचा अपने भतीजे मतीजियों को देता है । माल्थस ने मानव जाति को अधिक कष्ट तथा दुख से बचने के लिए काम वासना के दुष्परिणामों के प्रति सचेत किया । इसके सिद्धान्त के समर्थन में क्लार्क लिखते हैं कि ” माल्थस के सिद्धान्त का इतना अधिक खण्डन किया जाना उसकी वैधता की पुष्टि ही है । “
इसी तरह अपना विचार व्यक्त करते हुए प्रो ० ने कहते हैं वास्तव में माल्थस को समझने में कुछ त्रुटियां की गयी हैं , उनका अर्थ जनसंख्या वृद्धि की ओर संकेत करना था जबकि उनका अध्ययन ठोस निष्कर्ष मानकर किया जाता है । अर्थशास्त्रियों द्वारा माल्थस द्वारा व्यक्त किए गए जनसंख्या सिद्धान्त के विरुद्ध जो बातें कही जाती है उनमें से कुछ प्रमुख निम्नलिखित हैं :
माल्थस के सिद्धान्त पर स्थैतिक होने का भी आरोप है स्थैतिक होने का आरोप इस आधार पर लगाया जाता है कि यह प्राकृतिक साधनों ( भूमि ) की सीमितता पर आधारित है । साधनों की मात्रा एक निश्चित समय के लिए स्थिर हो सकती है , परन्तु सदेव के लिए नहीं । समय के साथ पश्चिमी देशों में , ज्ञान तथा तकनीक में बहुत विकास हुआ है । प्राप्त भूमि तथा अन्य साधनों में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है । यह बात ध्यान देने योग्य है कि कृषि योग्य भूमि की मात्रा में वृद्धि महत्वपूर्ण नहीं है वरन अतिरिक्त भूमि का महत्व इस बात से मापा जाता है कि इससे किस मात्रा में अतिरिक्त उत्पादन प्राप्त किया जाता है । कुछ अर्थशास्त्री इस विचार से कि माल्थस का दृष्टिकोण स्थैतिक है . सहमत नहीं है । वे इसे इस आधार पर प्रावैगिक मानते हैं कि यह एक निश्चित समयावधि के भीतर जनसंख्या वृद्धि की प्रक्रिया का अध्ययन करता है ।
जनसंख्या वृद्धि तथा खाद्यपूर्ति कमजोर सम्बन्ध पर आधारित माल्थस का जनसंख्या सिद्धान्त जनसंख्या वृद्धि तथा खाद्यपूर्ति के कमजोर सम्बन्धों के आधार पर टिका हुआ है । आधुनिक अर्थशास्त्रियों के अनुसार किसी देश की जनसंख्या की तुलना उस देश के कुल राष्ट्रीय आय से करनी चाहिए , केवल खाद्यान्नों से ही नहीं । अनुकूलतम जनसंख्या सिद्धान्त ( Optimum Theory of Population ) का आधार यही है । तर्क यह प्रस्तुत किया जाता है कि यदि कोई देश अपनी जनसंख्या के लिए पर्याप्त खाद्य पदार्थों का उत्पादन नहीं कर पाता लेकिन वह यदि भौतिक रूप से धनी है तथा औद्योगिक दृष्टि से उन्नतशील है तो वह अपने यहां निर्मित वस्तुओं अथवा मुद्रा के बदले खाद्य सामग्री को दूसरे कृषि प्रधान देशों से आयात करके अपने लोगों का भली – भांति भरण – पोषण कर सकता है । इंगलैण्ड इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है जहां पर केवल 1/6 जनसंख्या के भरण – पोषण के लायक ही खाद्यान्न उत्पन्न किया जाता है फिर भी वहां माल्थस के द्वारा बताए गए प्रकृति के प्रकोपों को नहीं पाया गया है ।
जनसंख्या की प्रत्येक वृद्धि हानिकारक नहीं माल्थस जनसंख्या में प्रत्येक वृद्धि को हानिकारक समझते थे , परन्तु उनका यह दृष्टिकोण उचित नहीं है । यदि किसी देश की जनसंख्या उस देश के प्राकृतिक साधनों की अपेक्षा कम है तो जनसंख्या में वृद्धि लाभदायक होगी । प्राकृतिक साधनों का भली – भांति विदोहन करके राष्ट्रीय आय एवं प्रति व्यक्ति आय को बढ़ाया जा सकता है । इस प्रकार यदि जनसंख्या अनुकूलतम बिन्दु से नीचे है तो जनसंख्या में वृद्धि से प्रति व्यक्ति वार्षिक आय में वृद्धि होगी । अतः जनसंख्या में वृद्धि राष्ट्रहित में होगी ।
( 11 ) आगमन प्रणाली का दोष माल्थस के सिद्धान्त में आगमन प्रणाली का दोष भी है । उन्होंने यूरोप के कुछ देशों का दौरा किया और सामान्य निरीक्षण के आधार पर अपने सिद्धान्त का प्रतिपादन किया । यह आवश्यक नहीं है कि जो बात कुछ स्थानों पर सत्य है वह सभी जगह सत्य हो । अंतः माल्थस के सिद्धान्त में सार्वभौमिकता का अभाव है ।
जनसंख्या वृद्धि व प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि के बीच सकारात्मक सम्बन्ध नहीं- वास्तव में जनसंख्या वृद्धि प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि होने पर अधिक बच्चा पैदा करने की इच्छा घट जाती है । जब लोग ऊँचे जीवनस्तर के आदी हो जाते हैं तो बड़े परिवार का पालन पोषण महंगा हो जाने के कारण परिवार सीमित ही रखना चाहते हैं क्योंकि इससे जीवनस्तर में गिरावट की सम्भावना रहती है और लोग अपना जीवनस्तर घटाना नहीं चाहते , परिणामस्वरूप जनसंख्या स्थिर होने लगती है । जापान , फ्रांस , इंगलैण्ड तथा अन्य पश्चिमी देश इसके उदाहरण हैं ।
जनसंख्या वृद्धि का उत्तरदायित्व निर्धनों पर ही थोपना उचित नहीं- कुछ आलोचकों का कथन है कि माल्थस का सिद्धान्त जनसंख्या वृद्धि उत्तरदायित्व निर्धनों पर थोपता का है । उनके अनुसार माल्थस ने निर्धनों को ही निर्धनता का कारण बताया है । माल्थस का विचार था कि एक कानून बनाकर निर्धनों को विवाह करने पर प्रतिबन्ध लगा देना चाहिए । यदि निर्धनों का विवाह होगा सौ ज्यादा बच्चे पैदा करेंगे परिणामस्वरूप जनसंख्या और बेरोजगारी में वृद्धि होगी । यह बात तर्कसंगत है कि मनोरंजन के साधनों के अभाव , शिक्षा के अभाव तथा दूरदर्शिता के अभाव में यह सब सम्भव हो सकता है , परन्तु अधिक जनसंख्या का होना निर्धनता ही मुख्य कारण नहीं है बल्कि धन का असमान वितरण एवं सरकार की नीतियों का परिणाम है । यदि श्रमिकों को उचित पुरस्कार प्राप्त हो तथा उनके मनोरंजन , शिक्षा , आदि की उचित व्यवस्था हो तो इस प्रकार के परिणाम की सम्भावना नहीं रहेगी ।
माल्थस के सुझाव व्यावहारिक नहीं माल्थस ने जनसंख्या नियंत्रण हेतु जिस आत्मसंयम , नैतिकता एवं संयमित जीवन व्यतीत करने का सुझाव दिया है वह व्यावहारिक नहीं है । साधारण व्यक्ति के लिए उनका पालन करना दुरूह कार्य है । अपने सैद्धान्तिक दृष्टिकोण में तो यह विचार पूर्ण आदर्श हैं , परन्तु उसकी व्यावहारिकता में उतना ही दोष
माल्थस झूठा भविष्य वक्ता सिद्ध हुआ वास्तव में , माल्थस एक झूठा भविष्यवक्ता सिद्ध हुआ । यह सिद्धान्त उन देशों पर भी नहीं लागू हुआ जिनके लिए यह बनाया गया था इतिहास इस बात का साक्षी है । पश्चिम यूरोपीय देशों में माल्थस के भय तथा निराशावाद पर काबू पा लिया गया है । जन्म दर में कमी , खाद्यपूर्ति में पर्याप्तता , कृषि एवं औद्योगिक उत्पादन के द्वारा उसकी यह भविष्यवाणी गलत सिद्ध की जा चुकी है कि ये देश कृत्रिम अवरोधों के माध्यम से जनसंख्या वृद्धि को रोकने में असमर्थ रहेंगे । इन्हें विपत्ति धर दबोचेगी । उस प्रकार माल्थस की भविष्यवाणी असत्य सिद्ध हुई उपरोक्त वर्णित आलोचनाओं से यह विदित होता है कि माल्थस के जनसंख्या सम्बन्धी सिद्धान्त में कुछ त्रुटिया रह गयीं जिनके कारण इस सिद्धान्त को समझने में कुछ प्रांतियां उत्पन्न हो जाती है । इसके बावजूद माल्थस के सिद्धान्त में पर्याप्त सच्चाई है । माल्थस के प्रति जनसंख्या सम्बन्धी दृष्टिकोण की भयावहता से ही यूरोप के देश समय पर सजग हो गए और जनसंख्या वृद्धि को रोकने के तरीके अपनाने शुरू कर दिए तथा अपने देश को अति जनसंख्या की समस्या का सामना करने से बचा सके ।
माल्थस की आधारभूत मान्यता अवास्तविक आलोचकों का विचार है कि माल्थस की यह आधारभूत मान्यता कि मनुष्य का काम भावना यथा स्थिर रहती है तथा काम – वासना एवं सन्तानोत्पत्ति दोनों एक ही बात है , अवास्तविक है । वास्तव में , माल्थस कामेच्छा और प्रजनन की इच्छा के अन्तर को भली – भांति नहीं समझ पाया । काम वासना की उत्पत्ति तो प्राकृतिक है और यह प्रत्येक मनुष्य में आवश्यक रूप से पाई जाती है जिसे रोक पाना सम्भवतः मनुष्य के वश में लगभग नहीं है । सन्तानोत्पत्ति की इच्छा सामाजिक , धार्मिक तथा आर्थिक कारणों से प्रभावित होती है और मनुष्य उसे कृत्रिम उपायों से रोक सकता है और इस प्रकार जनसंख्या वृद्धि में प्रतिबन्ध लगा सकता है । मनुष्य की काम – वासना को स्थिर मानना भी उचित नहीं है क्योंकि जीवनस्तर में वृद्धि के साथ – साथ मनोरंजन के साधन बढ़ जाते हैं । जिससे उसकी कामेच्छा घट जाती है । इस प्रकार आर्थिक सम्पन्नता और सन्तानोत्पत्ति के बीच सकारात्मक सम्बन्ध नहीं है । अतः यह बताता है कि सम्पन्न लोगों की अपेक्षा गरीबों के अधिक बच्चे होते हैं । सके तथा कृषि
कृषि में उत्पत्ति इास नियम की मान्यता दोषपूर्ण माल्थस का सिद्धान्त इस बात पर आधारित है कि कृषि में उत्पत्ति हास नियम लागू होने के कारण खाद्यान्न में कमी आ जाती है । वास्तव में , माल्थस औद्योगिक क्रान्ति के परिणामों को देखकर भी भविष्य को ठीक – ठीक नहीं आंक सम्बन्धी वैज्ञानिक प्रगति का अनुमान नहीं लगा सके । उन्होंने यह नहीं सोचा कि वैज्ञानिक आविष्कारों की सहायता से यान्त्रिक प्रणाली रासायनिक खाद , उन्नत बीज तथा कीटनाशकों इत्यादि का प्रयोग कर उत्पति हास नियम को स्थगित किया जा सकता है तथा वैज्ञानिक ढंग से खेती करके बढ़ती हुई जनसंख्या का भरण – पोषण किया जा सकता है । माल्थस ने वृद्धि प्रत्याय नियम की भी अवहेलना की अन्यथा इतना निराश होने की आवश्यकता न थी । यातायात एवं परिवहन के साधनों में हुई भारी प्रगति के कारण खाद्य सामग्रियों को एक देश से दूसरे देश को बहुत ही कम समय में तथा सुगमतापूर्वक ले जाया जा सकता है । इसके अतिरिक्त मांस मछलियां भी खाद्य सामग्री बनकर जनसंख्या के काफी भाग की भूख का निवारण कर सकती है । इस तथ्य पर तो माल्थस का ध्यान हीं नहीं गया । माल्थस ने अपने सिद्धान्त में यूरोप तथा उत्तरी अमेरिका का दृष्टान्त उपस्थित किया था जहां मनुष्य ने अपने पुनरुत्पादन की दर को अपेक्षा जीवन निर्वाह के साधनों का अधिक तीव्रता से विकास किया है
सिद्धान्त का गणितीय स्वरूप अवास्तविक माल्थस के सिद्धान्त में प्रयुक्त गणितीय स्वरूप की भी आलोचना की जाती है । अनुभवजन्य साक्ष्यों के आधार पर यह सिद्ध नहीं हो सका कि जनसंख्या गुणोत्तर श्रेणी में बढ़ती है और हर 25 वर्ष बाद दुगनी हो जाती तथा खाद्यान्न में वृद्धि समानान्तर श्रेणी में होती है । वास्तविकता तो यह है कि जनसंख्या या खाधान्न वृद्धि का कोई गणितात्मक रूप दिया जाना सम्भव ही नहीं लगता , परन्तु यह आलोचना के क्षेत्र के बाहर है क्योंकि माल्थस ने अपने निवन्ध के प्रथम संस्करण में अपना नियम अच्छी तरह स्पष्ट करने के लिए इस गणितीय स्वरूप का प्रयोग किया और उसके संशोधित संस्करण में उन्होंने उन शब्दों को हटा दिया था जिसका तात्पर्य यह है कि माल्थस ने गणितीय रूप का प्रयोग मात्र यह स्पष्ट करने के लिए किया था कि जनसंख्या में खाद्यान्नों की अपेक्षा अधिक तीव्रता से बढ़ने की प्रवृत्ति होती है ।
अति जनसंख्या की स्थिति ही प्राकृतिक विपत्तियों का कारण नहीं होती माल्थस के निराशावाद तथा धार्मिक शिक्षा ने उनको यह विश्वास दिला दिया था कि जब अति जनसंख्या की स्थिति उत्पन्न होती है तो नैसर्गिक प्रतिबन्ध कार्यशील हो जाते हैं और अकाल , बाढ़ , सूखा , बीमारी महामारी दुर्भिक्ष तथा युद्ध , आदि की क्रियाशीलता से स्वतः बढ़ी हुई जनसंख्या घट कर सन्तुलित हो जाती है , परन्तु माल्थस की यह अवधारणा सत्य नहीं है । ये प्राकृतिक विपत्तियां वहां भी पाई जाती हैं जहां जनसंख्या न्यून है अथवा स्थिर है ।
मृत्यु दर में कमी के कारण भी जनसंख्या में वृद्धि होती है माल्थस का सिद्धान्त एक पक्षीय है । वह जनसंख्या की वृद्धि को बढ़ती हुई जन्म दर का परिणाम मानता है । वह यह भूल गया कि जनसंख्या में वृद्धि घटती हुई मृत्यु दर के कारण भी होती है । माल्थस चिकित्सा विज्ञान के क्षेत्र में हुई अभूतपूर्व प्रगति का अनुमान नहीं लगा सके जिसने जनसाधारण के साथ – साथ घातक रोगों पर भी काबू पा लिया है और मनुष्य की आयु को बढ़ा दिया है ।
माल्थस नए क्षेत्रों का पूर्वानुमान नहीं लगा सके- माल्थस का दृष्टिकोण संकुचित था । वह इंग्लैण्ड की स्थानीय परिस्थितियों से विशेष प्रभावित था । वह ऑस्ट्रेलिया , अमेरिका और अर्जेण्टाइना के नए खुलने वाले क्षेत्रों का पूर्वानुमान नहीं कर सके जहां अक्षत भूमियों ( vergia lands ) की सघन कृषि से खाद्यान्न की मात्रा में पर्याप्त वृद्धि हुई है जिसके फलस्वरूप इंगलैण्ड , आदि देशों को प्रचुर मात्रा में खाद्य पदार्थ सस्ते दर पर उपलब्ध हो जाते हैं । यह तभी सम्भव हुआ जब परिवहन के साधनों में तेजी से सुधार हुआ । इस पक्ष आज कोई देश यदि बढ़ती हुई जनसंख्या के लिए उत्पादन नहीं कर पाता तो भी उसे भुखमरी तथा विपत्ति से भयभीत होने Cको माल्थस नजरन्दाज कर गया । पर्याप्त खाद्यान्न की आवश्यकता नहीं है आव
माल्थस ने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न जनशक्ति के पक्ष की उपेक्षा की माल्थस का सिद्धान्त इस बात से भी आलोचना का विषय रहा कि उसने जनसंख्या वृद्धि से उत्पन्न जनशक्ति के पक्ष की उपेक्षा की । वह निराशावादी तथा जनसंख्या में प्रत्येक वृद्धि से भयभीत था । प्रो . । प्रो . कॅनन ( Cannon ) के अनुसार , ” वह यह भूल गया कि शिशु दुनिया में केवल एक मुंह और एक पेट ही नहीं , बल्कि दो हाथ भी लेकर आता है । ” ( He forgot that comes to the world not only with a mouth and a stomach but also with a pair of hands ” ) इसका अर्थ यह है कि जनसंख्या में वृद्धि का अर्थ है जनशक्ति में वृद्धि जो न केवल औद्योगिक उत्पादन में बल्कि कृषि उत्पादन में भी वृद्धि कर सकती है और इस प्रकार आय तथ धन के न्यायोचित वितरण के द्वारा देश को धनी बना सकती है । इस प्रकार , जनसंख्या की समस्या केवल आकार की ही समस्या नहीं है बल्कि दक्ष उत्पादन तथा न्यायोचित वितरण की भी a baby माल्थस के सिद्धान्त पर उत्पत्ति हास नियम तथा
सिद्धान्त का मूल्यांकन / व्यावहारिकता ( Evaluation of Theory )
माल्थस के सिद्धान्त के प्रति की गई उपर्युक्त आलोचनाएँ यद्यपि सिद्धान्त की अनेक कर्मियों को स्पष्ट करती है । पर इसका यह तात्पर्य नहीं कि उसके सम्पूर्ण विचारपूर्ण काल्पनिक या निरर्थक हैं , बल्कि यदि हम गहराई से देखें तो उसके विचारों में आज भी इतनी यथार्थता है कि उनके आधार पर उसकी त्रुटियाँ क्षम्य है । जैसा कि प्रो ० हेने ने लिखा है , ” निःसन्देह माल्थस की कुछ कमियों क्षम्य हैं क्योंकि वे कथन को स्पष्ट और प्रभावपूर्ण बनाने के सन्दर्भ में हुई है माल्थस का सिद्धान्त इन तीव्र आलोचनाओं के बाद आज भी अपने अस्तित्व को बनाये हुए है जो कि सिद्धान्त की सार्थकता का प्रमाण है । प्रो . वौकर ने लिखा है कटु वाद – विवाद के बीच भी माल्थस का सिद्धान्त अडिग खड़ा है । “
इसी तरह माल्थस के सिद्धान्त का समर्थन करते हुए क्लार्क ने लिखा है- माल्थस के सिद्धान्त की जितनी अधिक आलोचनाएं की गई है उतनी ही अधिक दृढता उसमें आई है । संसार के विभिन्न भागों में आलोचकों द्वारा सिद्धान्त की इतनी अधिक आलोचनाओं के बावजूद भी यह सिद्धान्त आज भी विशेष रूप से अविकसित देशों के सम्बन्ध में अजेय है और उतना ही स्वयंसिद्ध है जितना कि भूतकाल में था । यह असत्य सिद्ध नहीं हुआ है । कैनेथ रिमय के विचारों का उल्लेख करते हुए Jan Bewen ने किमान्य के
सिद्धान्त के विरुद्ध जो कुछ भी तर्क हो सकते हैं उन्हें सार्वजनिक रूप से , और हमेशा अत्यन्त तीखेपन से हेजलिट , बूथ प्लेंस , ग्राह्य वैलैण्ड तथा अन्य व्यक्तियों ने व्यक्त किया है । लेकिन आज उनकी आलोचनाओं के स्थान पर हम माल्थस के सिद्धान्त को ही याद रखते हैं माल्थस के सिद्धान्त की सत्यता
संक्षेप में माल्थस के सिद्धान्त में पाई जाने वाली सत्यता को निम्न बिन्दुओं में स्पष्ट किया जा सकता है
( 1 ) जनसंख्या वृद्धि की भविष्यवाणी आज भी अर्द्ध – विकसित देशों में सत्य प्रमाणित होती है । भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या इस बात का स्पष्ट प्रमाण है । बरट्रेन्ड रसेल के अनुसार , ” माल्थस का जनसंख्या का विचार उसके लिखते समय तक बहुत सही था पर यह आज भी जंगली – अर्द्धसभ्य और सभ्य जाति में निम्न श्रेणी के मनुष्यों के लिए सत्य है । “
( 2 ) । यह सिद्धान्त प्रगतिशील और उन्नत देशों में भी अपनी यथार्थता को प्रमाणित फ्रांस , इंग्लैण्ड व अमेरिका जैसे उन्नत देशों द्वारा परिवार नियोजन व संतति – निग्रह का बढ़ता हुआ प्रयोग इन देशों में माल्थस के सिद्धान्त की प्रभावशीलता को स्पष्ट करता है ।
( 3 ) माल्थस का यह निष्कर्ष आज भी सत्य है कि यदि मानव द्वारा प्रतिबन्धों का प्रयोग न किया गया तो जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ेगी जो अनेक समस्याओं को जन्म देगी । करता है ।
( 4 ) यह कथन कि खाद्यान्न की तुलना में जनसंख्या यदि अधिक रही और असंतुलन को न किया गया तो जन्मदर की वृद्धि के साथ ही मृत्युदर भी बढ़ेगी , सत्य है । प्रो सेम्युल्सन के यदि प्रतिबंधक निरोधों द्वारा दूर अवरोधों की क्रियाशीलता से ” भारत , चीन तथा संसार के अन्य भागों में जहाँ खाद्य प्राकृतिक अनुसार- सामग्री की पूर्ति और जनसंख्या के मध्य असंतुलन एक महत्वपूर्ण समस्या है , जनसंख्या का व्यवहार समझने के लिए माल्थस के सिद्धान्त में आज भी सत्य के तत्त्व महत्त्वपूर्ण हैं ।
( 5 ) यदि हम सम्पूर्ण विश्व की खाद्य यह कथन बिल्कुल सत्य है कि सामग्री को दृष्टि में रखते हुए सोचें तो माल्थस का सामग्री का कुल उत्पादन निश्चित है । एडवर्ड ईस्ट ने लिखा है कि , ” यदि जनसंख्या इसी प्रकार बढ़ती रही तो संसार का कृषि योग्य क्षेत्र बढ़ती हुई जनसंख्या की खाद्य सामग्री की पूर्ति में अपर्याप्त हो जायेगा । खाद्य
( 6 ) कम विकसित देशों के सम्बन्ध में सिद्धान्त की यह बात आज भी सत्य है कि जनसंख्या तीव्र गति से बढ़ती है और अप्रतिबन्धित रहने पर शीघ्र ही दुगुनी हो जाती है । भले ही जनसंख्या दुगुनी होने की अवधि 25 वर्ष न होकर 30 या 35 वर्ष हो । से यह स्पष्ट हो जाता है कि माल्थस का सिद्धान्त अनेक सारगर्भित है । इस सन्दर्भ में वाकर का यह कथन उल्लेखनीय कमियों के है कि ” माल्थस के विरूद्ध उठाये गये सम्पूर्ण विवादों के मध्य माल्थसवाद अजेय तथा उपर्युक्त तथ्यों को देखने बावजूद आज भी अविच्छिन्न रूप से स्थित है ।